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Avyakta Murli-14/13-03-1982

July 12, 2025omshantibk07@gmail.com

(14)“चैतन्य पुष्पों में रंग,रुप, खुशबू का आधार

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“रंग, रूप और खुशबूदार पुष्प कैसे बनें? | चैतन्य पुष्पों का रहस्य | Avyakt Murli 12-03-1982 | Brahma Kumaris”


 चैतन्य पुष्पों की दिव्य रौनक

ओम् शांति।

आज बापदादा हमें ले चल रहे हैं एक ऐसे बगीचे की सैर पर, जो स्थूल नहीं, परंतु चैतन्य है — जहाँ परमात्मा स्वयं बागवान हैं, और हम आत्माएँ उनके बगीचे के पुष्प।
यह कोई साधारण बगीचा नहीं, बल्कि वह रुहानी बगीचा है जो कल्प में केवल एक बार सजता है — ऐसा अनुपम सौंदर्य, ऐसा आध्यात्मिक सुगंधित वातावरण, जिसकी तुलना कोई भी स्थूल बागीचा नहीं कर सकता।


1. आत्मा के रंग, रूप और खुशबू का रहस्य

बापदादा हर आत्मा को एक पुष्प के रूप में देखते हैं।
लेकिन वह पुष्प कितना सुन्दर है — यह तीन बातों पर निर्भर करता है:

रंग = ज्ञान की गहराई
रूप = योगयुक्त जीवन की स्थिरता
खुशबू = दिव्य गुणों की सेवा करने की शक्ति

जैसे कोई सुंदर फूल दूर से ही आकर्षित करता है, वैसे ही ज्ञान में रंगी हुई आत्मा अपनी उपस्थिति मात्र से दूसरों को खींचती है।
परंतु अगर उसमें खुशबू नहीं है — यानि याद और गुण नहीं हैं — तो वह फूल केवल सजावट बनकर रह जाता है।


2. मैं कौन सा पुष्प हूँ? – आत्म-चिंतन का समय

बापदादा हमें आत्मचिंतन कराते हैं:
क्या मैं ऐसा पुष्प हूँ जो पास आने पर खुशबू फैलाता है?
या मैं सिर्फ ज्ञान जानता हूँ लेकिन जीवन में दिव्यता का अनुभव नहीं?

 अगर ज्ञान है, परंतु गुण नहीं…
 अगर योग है, परंतु सेवा की शक्ति नहीं…
…तो मैं प्रजा बन सकता हूँ, परंतु राजा नहीं।

बगीचा एक है, बागवान भी एक है — पर फूलों में वैरायटी है।
आज हमें यह देखना है: मैं अल्लाह के बगीचे का कौन-सा पुष्प हूँ?


3. देश-विदेश के बच्चों का योगदान और विशेषता

बापदादा विशेष रूप से डबल विदेशियों और कर्नाटक के बच्चों की सराहना करते हैं।

 विदेशों में रुहानी सेवा की शानदार वृद्धि हुई है।
 सेवा केन्द्र खुले, सेवाधारी निकले, और ज्ञान का प्रकाश फैला।
 कर्नाटक के बच्चों ने भी स्थायित्व और गुणों से सेवा में विशेषता लाई है।

बापदादा कहते हैं: “अच्छे-अच्छे बच्चों को माया भी अच्छे से देखती है।”
इसलिए मायाजीत स्थिति में स्थित रहना आवश्यक है।


4. मास्टर ज्ञान सूर्य बनो – वायुमंडल को शक्तिशाली बनाओ

जो आत्माएँ निमित्त बनी हैं, वे केवल अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे वातावरण को प्रभावित करती हैं।

 जैसे सूर्य स्वयं प्रकाश देता है, वैसे ही मास्टर ज्ञान सूर्य बनकर हमें:

  • अपने अंधकार को मिटाना है

  • औरों को रोशनी देनी है

  • समस्याओं को समाप्त करने का वातावरण बनाना है

स्टॉक में शक्ति जमा करो ताकि समय पर काम आ सके।


5. डबल सेवा का रहस्य – समय कम, प्राप्ति अधिक

विदेशी बच्चों को कहा जाता है:
“आपको डबल सेवा क्यों करनी पड़ती है – तन, मन और धन से?”

 क्योंकि समय कम है और आप सब कुछ प्राप्त करना चाहते हो।
इसलिए हर सेवा का मार्क्स जमा हो रहा है — यह व्यर्थ नहीं जा रहा।

 सच्चा सरेन्डर है – जब हम मनमत नहीं, श्रीमत से चलते हैं।
 जो निमित्त आत्माएँ कुछ कहें – उसमें अपना कल्याण निहित है।


6. टीचर्स का सेवास्थान – विश्व की स्टेज

बाबा विशेष रूप से टीचर्स से कहते हैं:
“आपका सेवास्थान केवल एक सेंटर नहीं, बल्कि विश्व की स्टेज है।”

 जैसे स्टेज पर बैठा व्यक्ति हर कर्म पर ध्यान देता है —
वैसे ही हर टीचर को हर क्षण अटेन्शन में रहना है।

दो बहनें सेंटर पर हों, लेकिन कार्य उनका पूरे विश्व के लिए हो।


 क्या मैं वो खुशबूदार फूल हूँ?

आज बापदादा ने हमें अपने चैतन्य बगीचे के फूलों के रंग, रूप और खुशबू को जानने का अमूल्य अवसर दिया।
अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम यह नशा रखें:
“मैं उस बगीचे का विशेष पुष्प हूँ, जो बाप को प्रिय है।”

 सदा स्वयं को दिव्य समझते हुए, दिव्य गुणों की सेवा करते हुए,
मास्टर ज्ञान सूर्य बनकर, इस जगत को रौशन करें।

ओम् शांति।

प्रश्नोत्तर श्रृंखला: चैतन्य पुष्पों का रहस्य


प्रश्न 1: बापदादा आत्माओं को किस प्रकार के पुष्पों से तुलना करते हैं?

 उत्तर:बापदादा आत्माओं को चैतन्य पुष्प मानते हैं — ऐसे पुष्प जो परमात्मा के रुहानी बगीचे को सुशोभित करते हैं। यह बगीचा कल्प में केवल एक बार सजता है और उसकी सुगंध, सुंदरता और विविधता अद्वितीय होती है।


प्रश्न 2: आत्मा के “रंग, रूप और खुशबू” का क्या आध्यात्मिक अर्थ है?

 उत्तर:
रंग = ज्ञान की गहराई
रूप = योगयुक्त जीवन की स्थिरता
खुशबू = दिव्य गुणों की सेवा करने की शक्ति
यह तीनों गुण आत्मा को आकर्षक और प्रभावशाली बनाते हैं।


प्रश्न 3: क्या केवल ज्ञान होना ही श्रेष्ठ पुष्प बनने के लिए पर्याप्त है?

 उत्तर:नहीं, केवल ज्ञान होना पर्याप्त नहीं है।
यदि ज्ञान है लेकिन याद नहीं, और दिव्य गुण नहीं हैं, तो आत्मा केवल एक डेकोरेशन फूल बनती है — सेवा का स्रोत नहीं। श्रेष्ठ पुष्प बनने के लिए तीनों गुण — ज्ञान, योग और गुण — आवश्यक हैं।


प्रश्न 4: “मैं कौन-सा पुष्प हूँ?” — यह प्रश्न आत्मा को क्यों पूछना चाहिए?

 उत्तर:यह प्रश्न आत्मचिंतन हेतु है। इससे आत्मा अपनी स्थिति जांच सकती है कि क्या वह पास आने पर खुशबू फैलाती है? क्या वह केवल दिखावटी पुष्प है या वास्तव में सेवा का साधन है? इससे आत्म-विकास की दिशा तय होती है।


प्रश्न 5: डबल विदेशियों को “डबल सेवा” क्यों करनी होती है?

 उत्तर:क्योंकि उन्हें कम समय में ज्यादा प्राप्ति करनी होती है।
इसलिए तन, मन और धन तीनों से सेवा करनी होती है। यह सेवा व्यर्थ नहीं जाती — हर सेवा मार्क्स जमा करती है जो आत्मा को ऊँचा पद दिलाती है।


प्रश्न 6: बापदादा “मायाजीत स्थिति” पर इतना ज़ोर क्यों देते हैं?

 उत्तर:क्योंकि अच्छे-अच्छे बच्चों को माया विशेष रूप से परखती है।
अगर आत्मा मायाजीत नहीं बनी, तो वायुमंडल कमजोर हो जाता है और सेवा में विघ्न आते हैं। मायाजीत आत्मा स्वयं भी विघ्न-विनाशक बनती है और दूसरों को भी बनाती है।


प्रश्न 7: “मास्टर ज्ञान सूर्य” बनने का क्या अर्थ है?

 उत्तर:“मास्टर ज्ञान सूर्य” वह आत्मा है जो स्वयं प्रकाशमान है और दूसरों के अंधकार को भी दूर करती है। ऐसी आत्मा वायुमंडल को शक्तिशाली बनाती है, विघ्नों को समाप्त करती है और सेवा में स्वतः लग जाती है।


प्रश्न 8: टीचर्स के लिए “सेवास्थान” क्या होता है?

 उत्तर:टीचर्स का सेवास्थान केवल उनका सेंटर नहीं होता, बल्कि विश्व की स्टेज होता है। उन्हें हर समय अटेन्शन में रहना होता है, जैसे कोई कलाकार मंच पर रहता है — हर कर्म, हर बोल जिम्मेदारी से होना चाहिए।


प्रश्न 9: खुशबूदार पुष्प बनने के लिए आत्मा को क्या करना चाहिए?

 उत्तर:ज्ञान से रंगीन बनें, योग से स्वरूप सुन्दर बनाएं और दिव्य गुणों से जीवन में खुशबू भरें।
ऐसी आत्मा स्वतः ही सेवा करती है, वातावरण को बदलती है और परमात्मा को प्रिय बनती है।


प्रश्न 10: बापदादा की दृष्टि में सच्चा सरेन्डर क्या है?

 उत्तर:सच्चा सरेन्डर तब होता है जब आत्मा श्रीमत अनुसार चलती है, मनमत नहीं।
जो निमित्त आत्माएँ कहें, उसमें कल्याण समझकर सहजता से स्वीकार करती है — वही आत्मा हल्की, आज्ञाकारी और सफल बनती है।

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