17-03-1982 “संगमयुग का विशेष वरदान – ‘अमर भव’
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
आज बापदादा अपने कल्प-कल्प की अधिकारी आत्माओं को देख रहे हैं। कौन-कौन श्रेष्ठ भाग्य के अधिकारी बने हैं, वह देख हर्षित हो रहे हैं। बापदादा अधिकारी आत्माओं को देख आज आपस में रुहरिहान करते मुस्करा रहे थे। ब्रह्मा बाप बोले कि ऐसे बच्चों पर आपकी नज़र गई हैं कि जिनके लिए दुनिया वालों का यह सोचना भी असम्भव है कि ऐसी आत्मायें भी श्रेष्ठ बन सकती हैं। जो दुनिया की नज़रों में अति साधारण आत्मायें हैं उन्हों को बापदादा ने अपने नयनों के नूर बना लिया है। बिल्कुल ही नाउम्मीद आत्माओं को विश्व के आगे सर्वश्रेष्ठ आत्मायें बना दिया है। तो बापदादा अपनी सेना के महावीरों को, अस्त्रधारी आत्माओं को देख रहे थे कि कौन-कौन आलमाइटी अथॉरिटी की पाण्डव सेना में मैदान पर उपस्थित हैं। क्या देखा होगा? कितनी वनडरफुल सेना है! दुनिया के हिसाब से अनपढ़ दिखाई देते हैं लेकिन पाण्डव सेना में टाइटल मिला है नॉलेजफुल। सभी नॉलेजफुल हो ना? शरीर चलना, उठना भी मुश्किल है लेकिन पाण्डव सेना के हिसाब से सेकेण्ड में परमधाम तक पहुँच कर आ सकते हैं। वे तो एक हिमालय के ऊपर झण्डा लहराते हैं लेकिन शिव शक्ति पाण्डव सेना ने तीनों लोकों में अपना झण्डा लहरा दिया है। भोले भाले लेकिन ऐसे चतुर-सुजान हैं जो विचित्र बाप को भी अपना बना दिया है। तो ऐसी सेना को देख बापदादा मुस्करा रहे थे। चाहे देश में, चाहे विदेश में सच्चे ब्राह्मण फिर भी साधारण आत्मायें ही बनते हैं। जो वर्तमान समय के वी. आई. पीज्. गाये जाते, सबकी नज़रों में हैं लेकिन बाप की नजरों में कौन हैं? वे नामीग्रामी, कलियुगी आत्माओं द्वारा स्वार्थ के कारण गाये जाते वा माने जाते हैं। उन्हों की अल्पकाल की कलियुगी जमाने की महिमा है। अभी-अभी महिमा है, अभी-अभी नहीं है। लेकिन आप संगमयुगी पाण्डव सेना के पाण्डव और शक्तियों की महिमा सारा कल्प ही कायम रहती है क्योंकि अविनाशी बाप के मुख द्वारा जो महिमा गाई जाती वह अविनाशी बन जाती है। तो कितना नशा रहना चाहिए! जैसे आजकल की दुनिया में कोई नामीग्रामी श्रेष्ठ आत्मा जिनको गुरु के रुप में मानते हैं वह भी अगर कोई बात किसको कह देते हैं तो समझते हैं गुरु ने कहा है तो वह सत्य ही होगा। और उसी फलक में रहते हैं। निश्चय के आधार पर नशा रहता है। ऐसे ही सोचो आपकी महिमा कौन करता है? कौन कहता है – श्रेष्ठ आत्मायें! तो आप लोगों को कितना नशा होना चाहिए!
वरदाता कहो, विधाता कहो, भाग्यदाता कहो, ऐसे बाप द्वारा आप श्रेष्ठ आत्माओं को कितने टाइटल मिले हुए हैं! दुनिया में कितने भी बड़े-बड़े टाइटल हों लेकिन आप श्रेष्ठ आत्माओं के एक टाइटल के आगे वह अनेक टाइटिल्स भी कुछ नहीं हैं। ऐसी खुशी रहती है?
संगमयुग का विशेष वरदान कौन-सा है? अमर बाप द्वारा ‘अमर भव’, संगमयुग पर ही ‘अमर भव’ का वरदान मिलता है। इस वरदान को सदा याद रखते हो? नशा रहता है, खुशी रहती है, याद रहती है लेकिन अमर भव के वरदानी बने हो? जिस युग की जो विशेषता है, उस विशेषता को कार्य में लगाते हो? अगर अभी यह वरदान नहीं लिया तो फिर कभी भी यह वरदान मिल नहीं सकता। इसलिए समय की विशेषता को जानकर सदा यह चेक करो कि अमर भव के वरदानी बने हैं? अमर कहो, निरन्तर कहो इस विशेष शब्द को बार-बार अन्डरलाइन करो। अमरनाथ बाप के बच्चे अगर अमर भव के वर्से के अधिकारी नहीं बने तो क्या कहा जायेगा? कहने की जरुरत है क्या! इसलिए मधुबन वरदान भूमि में आकर सदा वरदानी भव!
अच्छा, ऐसे सदा बापदादा के नयनों में समाये हुए नूरे रत्न, सदा वरदाता द्वारा वरदान प्राप्त कर वरदानी मूर्त, श्रेष्ठ भाग्यवान मूर्त, सदा विश्व के आगे चमकते हुए सितारे बन विश्व को रोशन करने वाले, ऐसे संगमयुगी पाण्डव शिव शक्ति सेना को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दीदी जी के साथ:- चक्रधारी तो हो। चक्रधारी के साथ-साथ चक्रवर्ती भी हो गई। डबल चक्कर लगाती हो? स्थूल भी और बुद्धि द्वारा भी। चक्रधारी सदा सर्व को वरदानों की नज़र से, वाणी से, कर्म से, वरदानों से झोली भरते रहते हैं। तो वर्तमान समय विधाता के बच्चे विधाता हो वा वरदाता बाप के बच्चे वरदानी मूर्त हो? ज्यादा क्या पार्ट चलता है? दाता का या वरदाता का? महादानी का या वरदानी का? दोनों ही पार्ट चलता है व दोनों में से विशेष एक पार्ट चलता है? लास्ट पार्ट कौन-सा है? विधाता का या वरदानी का? वरदान लेना तो सहज है लेकिन देने वाले को इतना प्राप्ति स्वरुप की स्टेज पर स्थित रहना पड़े। लेने वालों के लिए वरदान एक गोल्डन लॉटरी है क्योंकि लास्ट में वे ही आत्मायें आयेंगी जो बिल्कुल कमजोर होंगी। समय कम और कमजोर ज्यादा। इसलिए लेने की भी हिम्मत नहीं होगी। जैसे किसका हार्ट बहुत कमजोर हो और आप कितनी भी बढ़िया चीज़ दो लेकिन वह ले नहीं सकता। समझते भी हैं कि बढ़िया चीज़ है लेकिन ले नहीं सकते। ऐसे लास्ट आत्मायें सब बातों में कमजोर होंगी इसलिए वरदानी का पार्ट ज्यादा चलेगा। जो स्वयं के प्रति सम्पन्न हो चुके, ऐसी सम्पन्न आत्मायें ही वरदानी बन सकती हैं। सम्पन्न बनना यह है वरदानी स्टेज। अगर स्वयं प्रति कुछ रहा हुआ होगा तो दूसरों को देखते भी स्वयं तरफ अटेन्शन जायेगा और स्वयं में भरने में समय लगेगा। इसलिए स्वयं सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न होंगे तब वरदानी बन सकेंगे। अच्छा।
पार्टियों के साथ मुलाकात:-
1. सच्चे ब्राह्मणों के तकदीर की लम्बी लकीर – 21 जन्मों के लिए
कितने भाग्यवान हो जो भगवान के साथ पिकनिक कर रहे हो! ऐसा कब सोचा था कि ऐसा दिन भी आयेगा जो साकार रुप में भगवान के साथ खायेंगे, खेलेंगे, हंसेगे… यह स्वप्न में भी नहीं आ सकता लेकिन इतना श्रेष्ठ भाग्य है जो साकार में अनुभव कर रहे हो। कितनी श्रेष्ठ तकदीर की लकीर है जो सर्व प्राप्ति सम्पन्न हो। वैसे जब किसी को तकदीर दिखाते हैं तो कहेंगे इसके पास पुत्र है, धन है, आयु है लेकिन थोड़ी छोटी आयु है… कुछ होगा, कुछ नहीं। लेकिन आपके तकदीर की लकीर कितनी लम्बी है। 21 जन्म तक सर्व प्राप्तियों के तकदीर की लकीर है। 21 जन्म गैरन्टी है और बाद में भी इतना दु:ख नहीं होगा। सारे कल्प का पौना हिस्सा तो सुख ही प्राप्त होता है। इस लास्ट जन्म में भी अति दु:खी की लिस्ट में नहीं हो। तो कितने श्रेष्ठ तकदीरवान हुए! इसी श्रेष्ठ तकदीर को देख सदा हर्षित रहो।
2. प्यार के सागर से प्यार पाने की विधि – न्यारा बनो
कई बच्चों की कम्पलेन है कि याद में तो रहते हैं लेकिन बाप का प्यार नहीं मिलता है। अगर प्यार नहीं मिलता है तो जरुर प्यार पाने की विधि में कमी है। प्यार का सागर बाप, उससे योग लगाने वाले प्यार से वचिंत रह जाएं यह हो नहीं सकता। लेकिन प्यार पाने का साधन है न्यारा बनो। जब तक देह से वा देह के सम्बन्धियों से न्यारे नहीं बने हो तब तक प्यार नहीं मिलता। इसलिए कहाँ भी लगाव न हो। लगाव हो तो एक सर्व सम्बन्धी बाप से। एक बाप दूसरा न कोई… यह सिर्फ कहना नहीं लेकिन अनुभव करना है। खाओ, पियो, सोओ… बाप के प्यारे अर्थात् न्यारे बनकर। देहधारियों से लगाव रखने से दु:ख अशान्ति की ही प्राप्ति हुई। जब सब सुन चखकर देख लिया तो फिर उस जहर को दुबारा कैसे खा सकते! इसलिए सदा न्यारे और बाप के प्यारे बनो।
3. मेहनत से छूटने की विधि – मेरापन समाप्त करो
बापदादा सभी बच्चों को मेहनत से छुड़ाने आये हैं। आधाकल्प बहुत मेहनत की अब मेहनत समाप्त। उसकी सहज विधि सुनाई है, सिर्फ एक शब्द याद करो – “मेरा बाबा।” मेरा बाबा कहने में कोई भी मेहनत नहीं। मेरा बाबा कहो तो दु:ख देने वाला मेरा-मेरा सब समाप्त हो जायेगा। जब अनेक मेरा है तो मुश्किल है, एक मेरा हो गया तो सब सहज हो गया। बाबा-बाबा कहते चलो तो भी सतयुग में आ जायेंगे। मेरा पोत्रा, मेरा धोत्रा, मेरा घर, मेरी बहू… अब यह जो मेरे-मेरे की लम्बी लिस्ट है इसे समाप्त करो। अनेकों को भुलाकर एक बाप को याद करो तो मेहनत से छूट आराम से खुशी के झूले में झूलते रहेंगे। सदा बाप की याद के आराम में रहो।
संगमयुग – वरदानों का युग
ओम् शांति।
आज हम एक ऐसे दिव्य विषय पर मंथन करने जा रहे हैं जिसे सुनते ही आत्मा में उमंग और नशा भर जाता है – संगमयुग का विशेष वरदान: ‘अमर भव’।
यह वह अमूल्य वरदान है जो केवल संगमयुग पर, परमपिता परमात्मा शिवबाबा द्वारा मिलता है। यह कोई साधारण शब्द नहीं, बल्कि सम्पूर्णता की पहचान है।
1. साधारण आत्माओं को श्रेष्ठ बनाने वाला परमात्मा
आज बापदादा बड़ी मुस्कान के साथ देख रहे थे – कि जिन आत्माओं को संसार ने नकार दिया, जिन्हें असम्भव माना – उन्हीं को बापदादा ने नयनों का नूर और विश्व की रत्नमाला बना दिया।
“जो दुनिया की नजरों में साधारण थे, वे अब बाप की नजरों में विशेष बन गए हैं।”
ब्रह्माकुमारिज की यह पाण्डव सेना – जो दिखने में भोली-भाली, लेकिन अंदर से नॉलेजफुल, शक्तिशाली और अलौकिक है – इस युग की सच्ची VIP आत्माएं हैं।
2. संगमयुग का सबसे अमूल्य वरदान – ‘अमर भव’
“अमर बाप से अमर भव का वरदान संगमयुग पर ही मिलता है।”
यह वरदान सिर्फ एक शब्द नहीं – यह आत्मा की स्थिति का प्रमाण है।
“अमर” अर्थात् जो न टूटे, न थके, न रुके। यह वरदान हमें मृत्यु, कमजोरी, संकल्पों की हानि – इन सबसे पार ले जाता है।
अब प्रश्न यह है – क्या हमने यह वरदान केवल सुना है या उसे स्वरूप भी बना लिया है?
Check Point: क्या मेरा हर संकल्प अमर भावना से प्रेरित है? क्या मैं स्वयं को और दूसरों को वरदान दे सकता हूँ?
3. संगमयुगी आत्माओं की अविनाशी महिमा
“आपकी महिमा सारा कल्प चलती है, क्योंकि यह स्वयं ‘वरदाता’ बाप द्वारा दी गई है।”
दुनिया में कितनी भी बड़ी हस्तियाँ हों, उनके नाम समय के साथ मिट जाते हैं। लेकिन जो आत्मा संगमयुग पर भगवान के साथ “सच्चा ब्राह्मण” बनती है, उसकी महिमा अविनाशी बन जाती है।
आपका टाइटल: चक्रधारी, चक्रवर्ती, वरदानी मूर्त, विश्व की आधारमूर्ति आत्मा।
4. बाप का प्यार कैसे प्राप्त हो? – ‘न्यारा बनो, प्यारा बनो’
कई बच्चे कहते हैं – “बाबा याद में तो आते हैं, लेकिन प्यार का अनुभव नहीं होता।”
तो बापदादा उत्तर देते हैं –
“प्यार पाने की विधि है – न्यारा बनो।”
जहां लगाव है – वहां परमात्म प्यार नहीं टिक सकता।
“एक बाप, दूसरा न कोई” – यही प्यार पाने की सबसे शक्तिशाली कुंजी है।
5. मेहनत से मुक्ति कैसे मिले? – ‘मेरा बाबा’ का मंत्र
“मेरे-मेरे की लम्बी लिस्ट को समाप्त करो। बस कहो – ‘मेरा बाबा।’”
जब आत्मा एक बाबा को ही सब कुछ मानती है, तो जीवन सहज और शक्तिशाली बन जाता है।
मेहनत, अशांति, संघर्ष – सब समाप्त।
6. लास्ट टाइम की सर्वशक्तिशाली आत्माएं कौन?
“लास्ट समय में वह आत्माएं आयेंगी जो कमजोर होंगी – इसलिए वरदान देने वाले आत्माओं की अधिक आवश्यकता होगी।”
आपको वरदानी बनना है – इसलिए स्वयं को सम्पन्न बनाना अनिवार्य है।
जो आत्मा स्वयं में पूरी है – वही दूसरों को भर सकती है।
7. श्रेष्ठ भाग्य और अमर तकदीर की पहचान
बापदादा कहते हैं:
“21 जन्मों तक की लम्बी तकदीर की लकीर है तुम्हारे पास।”
यह कोई अलंकारिक बात नहीं – यह वास्तविक आत्मिक सौभाग्य है, जहाँ
आप भगवान के साथ पिकनिक, भोजन, हँसी और खेल का अनुभव कर रहे हैं।
निष्कर्ष: अमर भव – अब या कभी नहीं
“अगर अभी यह वरदान नहीं लिया, तो फिर कभी नहीं मिलेगा।”
इसलिए, इस विशेष संगमयुग को पहचानो, और ‘अमर भव’ का अनुभव स्वरूप बनो।
मुरली सार स्मृति व स्लोगन:
वरदान: “समय के महत्व को जान, स्वयं को सम्पन्न बनाने वाले विश्व के आधारमूर्त भव।”
स्लोगन: “स्वयं को सम्पन्न बना लो तो विशाल कार्य में स्वतः सहयोगी बन जायेंगे।”
इशारा: “संकल्पों की शक्ति जमा कर श्रेष्ठ सेवा के निमित्त बनो।”संगमयुग – वरदानों का युग | छोटे प्रश्नोत्तर शैली में सार
प्रश्न 1: परमात्मा संगमयुग पर किस प्रकार की आत्माओं को चुनते हैं?
उत्तर: जो आत्माएं दुनिया की नजरों में साधारण होती हैं, उन्हीं को परमात्मा नयनों का नूर बनाकर श्रेष्ठ बनाते हैं।
प्रश्न 2: संगमयुग पर कौन-सा विशेष वरदान मिलता है?
उत्तर: ‘अमर भव’ – यह अमूल्य वरदान केवल संगमयुग पर शिवबाबा द्वारा मिलता है।
प्रश्न 3: ‘अमर भव’ का अर्थ क्या है?
उत्तर: अमर भव का अर्थ है ऐसी आत्मिक स्थिति जिसमें मृत्यु, कमजोरी या हार का कोई प्रभाव न हो – निरंतर विजयी, स्थिर और शक्तिशाली अवस्था।
प्रश्न 4: संगमयुगी आत्माओं की महिमा कैसी होती है?
उत्तर: उनकी महिमा अविनाशी होती है क्योंकि वह स्वयं भगवान द्वारा दी जाती है और कल्प-कल्प तक चलती है।
प्रश्न 5: बाप का सच्चा प्यार किसे प्राप्त होता है?
उत्तर: जो आत्मा न्यारी बनती है, देह और देह के संबंधों से न्यारी होकर “एक बाप, दूसरा न कोई” की अवस्था में रहती है – वही बाप का सच्चा प्यार अनुभव करती है।
प्रश्न 6: मेहनत से मुक्ति पाने का सबसे सरल तरीका क्या है?
उत्तर: सिर्फ एक स्मृति रखो – “मेरा बाबा”। यह संकल्प सारे संघर्षों को समाप्त कर देता है और सहजता दे देता है।
प्रश्न 7: लास्ट समय की आत्माओं को कौन मदद करेगा?
उत्तर: वे आत्माएं जो स्वयं वरदानी और सम्पन्न बन चुकी हैं – वही लास्ट समय में कमजोर आत्माओं को शक्ति और वरदान दे सकेंगी।
प्रश्न 8: श्रेष्ठ भाग्य की सच्ची पहचान क्या है?
उत्तर: परमात्मा के साथ साकार में अनुभव, पिकनिक, भोजन व संग – यही 21 जन्मों तक चलने वाली अमर तकदीर की पहचान है।
प्रश्न 9: अगर संगमयुग पर ‘अमर भव’ का वरदान न लिया जाए तो क्या होगा?
उत्तर: फिर यह वरदान कभी भी प्राप्त नहीं होगा। संगमयुग ही इसका एकमात्र अवसर है।
प्रश्न 10: ‘वरदाता’ बनने के लिए आत्मा में क्या स्थिति होनी चाहिए?
उत्तर: आत्मा को स्वयं में सर्वप्राप्ति से सम्पन्न होना चाहिए, तभी वह सच्ची वरदानी मूर्त बन सकती है।
मुरली सार स्मृति:
वरदान:
“समय के महत्व को जान, स्वयं को सम्पन्न बनाने वाले विश्व के आधारमूर्त भव।”स्लोगन:
“स्वयं को सम्पन्न बना लो तो विशाल कार्य में स्वतः सहयोगी बन जायेंगे।”इशारा:
“संकल्पों की शक्ति जमा कर श्रेष्ठ सेवा के निमित्त बनो।”संगमयुग, ब्रह्माकुमारिज, अमर भव, परमात्म वरदान, बापदादा, शिवबाबा की शिक्षा, सहज राजयोग, आत्मा की शक्ति, श्रेष्ठ संकल्प, ब्रह्मा बाबा, ब्राह्मण जीवन, संगमयुग का रहस्य, मुरली सार, वरदानों का युग, आत्मिक अनुभव, अविनाशी आत्मा, अमर स्थिति, मेरा बाबा मंत्र, परमात्म प्यार, संगमयुगी भाग्य, अविनाशी तकदीर, वरदानी आत्मा, अंत समय की सेवा, आध्यात्मिक लेख, हिंदी आध्यात्मिक ब्लॉग
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