Avyakta Murli-(26)“Get Powerful by Giving Up the Useless”

अव्यक्त मुरली-(26)“व्यर्थ का त्याग कर समर्थ बनो”

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“विकर्माजीत आत्मा कैसे बनें? | व्यर्थ और साधारण का त्याग | 


1. विकर्माजीत आत्माओं का दर्शन

आज बापदादा अपने सभी विकर्माजीत अर्थात् विकर्म सन्यासी बच्चों को देख रहे हैं।
ब्राह्मण आत्मा बनना ही श्रेष्ठ कर्म करना और विकर्म का त्याग करना है।
ब्राह्मण बनते ही प्रत्येक ने संकल्प किया कि – अब हम विकर्मी से सुकर्मी बन गए हैं।


2. ब्राह्मण आत्मा = श्रेष्ठ आत्मा

  • श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा वही है, जो हर क्षण सुकर्म करे।

  • जैसे उच्च रॉयल वंश का कोई व्यक्ति साधारण आचरण नहीं कर सकता, वैसे ही ब्राह्मण आत्मा विकर्म नहीं कर सकती।

  • ब्राह्मण धर्म के अनुसार विकर्म और तामसी कर्म पूर्णत: निषिद्ध हैं।


3. विकर्म की परिभाषा

  • किसी भी विकार के अंश मात्र वश होकर कर्म करना ही विकर्म है।

  • विकार का सूक्ष्म या रॉयल रूप भी विकर्म है।

  • ऐसी आत्मा सदा सुकर्मी नहीं बन सकती।


4. चेकिंग की विधि

  • अमृतवेले से लेकर रात तक हर कर्म को देखें:

    • श्रीमत पर किया = सुकर्म

    • भूल से, आलस्य से हुआ = व्यर्थ

    • विकार वश हुआ = विकर्म

  • हर कार्य के लिए श्रीमत मिली हुई है। उसी अनुसार चलना ही श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाना है।


5. व्यर्थ = नुकसान

  • कई सोचते हैं, हमने कोई विकर्म नहीं किया।

  • लेकिन व्यर्थ बोल और साधारण कर्म भी समर्थ नहीं बनने देते।

  • व्यर्थ का अर्थ है – समय और शक्ति का नुकसान।

  • श्रेष्ठ आत्मा का हर कदम, हर बोल, हर संकल्प हीरे से भी ज्यादा मूल्यवान है।


6. ब्राह्मण आत्मा का मूल्य

  • आपके एक संकल्प, एक वचन, एक दृष्टि की भी अमूल्य वैल्यु है।

  • भक्तजन आज भी कहते हैं – हमें बस एक सेकण्ड दर्शन मिल जाए।

  • इसका अर्थ है कि समय, संकल्प, वचन और दृष्टि – सब वरदान समान हैं।


7. त्याग का सही अर्थ

  • केवल बुराई का त्याग नहीं, बल्कि व्यर्थ, साधारण और “ऐसे ही ऐसे” अलबेलेपन का त्याग करना है।

  • हर सेकण्ड अलौकिक और अमूल्य बनाना ही ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है।


8. डबल फल वाला जीवन

  • सुकर्म का परिणाम है – वर्तमान में खुशी और शक्ति, और भविष्य में श्रेष्ठ प्रालब्ध।

  • यह डबल प्राप्ति है – स्वयं की अनुभूति और दूसरों की सेवा।

  • इसलिए ब्राह्मण आत्मा का जीवन हमेशा डबल फल खाने वाला है।


9. आज का संकल्प

“मैं सदा विकर्माजीत, व्यर्थ और साधारण का त्यागी,
हर क्षण को हीरे से भी अमूल्य बनाने वाला,
बाप समान श्रेष्ठ संकल्प और श्रेष्ठ कर्म करने वाला भाग्यवान आत्मा हूँ।”

प्रश्नोत्तर (Q&A)


प्रश्न 1: विकर्माजीत आत्मा किसे कहते हैं?

उत्तर:वह आत्मा जो किसी भी विकार या विकल्प के वश होकर कर्म न करे और सदा श्रीमत पर आधारित सुकर्म ही करे, वही विकर्माजीत कहलाती है।


प्रश्न 2: ब्राह्मण आत्मा का असली लक्षण क्या है?

उत्तर:ब्राह्मण आत्मा का हर बोल, हर कदम और हर संकल्प श्रेष्ठ होना चाहिए।
जैसे रॉयल परिवार साधारण आचरण नहीं कर सकता, वैसे ही ब्राह्मण आत्मा विकर्म या साधारण कर्म नहीं कर सकती।


प्रश्न 3: विकर्म की परिभाषा क्या है?

उत्तर:किसी भी विकार के अंशमात्र प्रभाव में आकर किया गया कर्म विकर्म है।
चाहे वह सूक्ष्म या रॉयल रूप में क्यों न हो।


प्रश्न 4: अपने कर्मों की चेकिंग कैसे करें?

उत्तर:

  • अमृतवेले से रात तक हर कर्म को देखें:

    • श्रीमत पर हुआ = सुकर्म

    • आलस्य या भूल से हुआ = व्यर्थ

    • विकार वश हुआ = विकर्म


प्रश्न 5: व्यर्थ कर्म क्यों हानिकारक है?

उत्तर:क्योंकि व्यर्थ समय, शक्ति और भाग्य को नष्ट कर देता है।
विकर्म न भी किया हो, तो भी व्यर्थ बोल और साधारण कर्म समर्थ नहीं बनने देते।


प्रश्न 6: ब्राह्मण आत्मा के समय और संकल्प की वैल्यु क्यों है?

उत्तर:क्योंकि भक्त आज भी कहते हैं – “हमें एक सेकण्ड दर्शन या वचन मिल जाए।”
इसका अर्थ है कि ब्राह्मण आत्मा का हर सेकण्ड हीरे से भी अमूल्य है।


प्रश्न 7: त्याग का वास्तविक अर्थ क्या है?

उत्तर:त्याग का मतलब सिर्फ बुराई का त्याग नहीं, बल्कि व्यर्थ, साधारण और “ऐसे ही ऐसे” अलबेलेपन का त्याग करना है।
हर सेकण्ड को अलौकिक और मूल्यवान बनाना ही सही त्याग है।


प्रश्न 8: डबल फल वाला जीवन किसे कहते हैं?

उत्तर:जब सुकर्म से वर्तमान में खुशी और शक्ति मिलती है और साथ ही भविष्य की श्रेष्ठ प्रालब्ध भी बनती है, तो यह डबल फल वाला जीवन कहलाता है।


प्रश्न 9: आज का संकल्प क्या है?

उत्तर:“मैं सदा विकर्माजीत, व्यर्थ और साधारण का त्यागी,
हर क्षण को अमूल्य बनाने वाला,
बाप समान श्रेष्ठ संकल्प और श्रेष्ठ कर्म करने वाला भाग्यवान आत्मा हूँ।”

Disclaimer

यह वीडियो केवल आध्यात्मिक शिक्षा और व्यक्तिगत आत्म-उन्नति के उद्देश्य से बनाया गया है।
इसका किसी भी प्रकार से किसी संगठन, संस्था या व्यक्ति की आलोचना या प्रचार से कोई संबंध नहीं है।
इसमें साझा की गई बातें BapDada की मुरली के आधार पर आध्यात्मिक अध्ययन और प्रेरणा हेतु प्रस्तुत हैं।
दर्शक अपनी समझ और विवेक के अनुसार इनका लाभ लें।

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