Avyakta Murli “04-03”-1969

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

YouTube player

“होली के शुभ अवसर”

आज आपकी खास होली है क्या? होली कैसे मनाई जाती है? होली मनाने आती है? काम की होली कौन सी है? वर्तमान पार्ट अनुसार होली कैसे मनायेंगे? वर्तमान समय कौन सी होली मनाने की आवश्यकता है? होली में कई बातें करनी होती है। लग भी जाता है। जलाया भी जाता है और साथ-साथ श्रृंगारा भी जाता है। और कुछ मिटाना भी होता है। जो भी बातें होली में करनी है वह सभी इस समय चल रही है। जलाना क्या है, मिटाना क्या है, रंगना क्या है और श्रृंगारना क्या है? यह सभी कर लेना इसको कहा जाता है मनाना। अगर इन चारों बातों में से कुछ कमी है तो मनाना नहीं कहेंगे। होली के दिनों में बहुत सुन्दर सजते हैं। कैसे सजते हैं? देव- ताओं के समान। आप सभी सजे हुए हैं? सजावट में कोई कमी तो नहीं है। सजावट में मुख्य होली का श्रृंगार कौनसा होता है? सांग जो बनाते हैं उन्हों को पहले-पहले मस्तक में बल्ब लगाते हैं। यह भी इस समय की कॉपी की हुई है। आप का भी काम का मुख्य श्रृंगार है मस्तक पर आत्मा का दीपक जलाना। इसकी निशानी बल्व जलाते हैं। लेकिन यह सभी बातें होने लिए होली का अर्थ याद रखना है। ‘ ‘होली ” जो कुछ हुआ वह हो गया। हो लिया। जो सीन हुई होली अर्थात् बीत चुकी। वर्तमान समय जो प्याइन्ट ध्यान में रखनी है वह है यह होली की अर्थात् ड्रामा के ढाल की। जब ऐसे मजबूत होंगे तब वह रंग भी पक्का लग सकेगा। अगर होली का अर्थ जीवन में नहीं लायेंगे तो रंग कच्चा हो जाता है। पक्का रंग खाने के लिए हर वक्त सोचो हो ली। जो बीता हो ही गया। ऐसी होली मना रहे हो? वा कभी-कभी ड्रामा की सीन देखकर कुछ मंथन चलता है। ज्ञान का मंथन दूसरी बात है। लेकिन ड्रामा की सीन पर मंथन करना क्यों, क्या, कैसे। वह किस चीज का मंथन किया जाता। दही को जब मंथन किया जाता है तब मक्खन निकलता है। अगर पानी को मंथन करेंगे तो क्या निकलेगा? कुछ भी नहीं। रिजल्ट में यही होगा एक तो थकावट, दूसरा टाइम वेस्ट। इसलिए यह हुआ पानी का मंथन। ऐसा मंथन करने के बजाये ज्ञान का मंथन करना है। साकार रूप में लास्ट दिनों में सर्विस की मुख्य युक्ति कौन सी सुनाई थी? ‘ ‘घेराव डालना’ ‘ डबल घेराव डालना है एक तो वाणी द्वारा सर्विस का दूसरा- अव्यक्त आकर्षण का। यह ऐसा घराव डालना है जो खुद न उससे निकल सकें, न दूसरे निकल सकें। घेराव डालने का ढंग अभी तक प्रैक्टिकल में दिखाया नहीं है। म्युजियम बनाना तो सहज है। म्युजियम बनाना यह कोई घेराव डालना नहीं है। लेकिन अपने अव्यक्त आकर्षण से उन्हों को घायल करना यह है घेराव डालना। वह अभी चल रहा है। अभी सर्विस का समय भी ज्यादा नहीं मिलेगा। समस्यायें ऐसी खड़ी हो जाएँगी जो आपके सर्विस में भी बाधा पड़ने की सम्भावना होगी। इसलिए जो समय मिल रहा है उसमें जिसको जितनी सर्विस करनी है वह अधिक से अधिक कर लें। नहीं तो सर्विस का समय भी होली हो जायेगा। यानी बीत जायेगा। इसलिए अब अपने को आपे ही ज्यादा में ज्यादा सर्विस के बन्धन में बांधना चाहिए। इस एक बन्धन से ही अनेक बन्धन मिट जाते हैं। अपने को खुद ईश्वरीय सेवा में लगाना चाहिए औरों के कहने से नहीं। औरों के कहने से क्या होगा? आधा फल मिलेगा। क्योंकि जिसने कहा अथवा प्रेरणा दी उनकी भाईवारी हो जाती है। दुकान में अगर दो भाईवार (साझीदार) हो तो बंटवारा हो जाता है ना! एक है तो वह मालिक हो रहता है। इसलिए अगर किसके कहने से करते हैं तो उस कार्य में भाईवारी हो जाती है। और स्वयं ही मालिक बन करके करते हैं तो सारी मिलकियत के अधिकारी बन जाते हैं। इसलिए हरेक को मालिक बनकर करना है लेकिन मालिकपने के साथ-साथ बालकपन भी पूरा होना चाहिए। कहाँ-कहाँ मालिक बनकर खड़े हो जाते हैं, कहाँ फिर बालक होकर छोड़ देते हैं। तो न छोड़ना है न पकड़ना है। पकड़ना अर्थात् जिद से नहीं पकड़ना है। कोई चीज को अगर बहुत जोर से पकड़ा जाता है तो उस चीज का रूप बदल जाता है ना। फूल को जोर से पकड़ों तो क्या हाल होगा। पकड़ना तो है लेकिन कहाँ तक, कैसे पकड़ना है, यह भी समझना है। या तो पकड़ते अटक जाते हैं वा छोड़ते हैं तो छूट जाते हैं। दोनों ही समान रहे यह पुरुषार्थ करना है। जो मालिक और बालक दोनों रीति से चलने वाला होगा उनकी मुख्य परख यह होगी – एक तो निर्माणता होगी उसके साथ निरहंकारी, निर्माण और साथ-साथ प्रेम स्वरूप। यह चारों ही बातें उनके हर चलन से देखने में आएँगी। अगर चारों में से कोई भी कम है तो कुछ स्टेज की कमी है। अच्छा-

वतन में आज होली कैसे खेली मालूम है? सिर्फ बच्चों के साथ ही थे। आप भी होली मना रहे हो ना! वहाँ सन्देशी आई तो एक खेल किया। कौन सा खेल किया होगा? (आप ले चलो तो देखे) बुद्धि का विमान तो है। बुद्धि का विमान तो दिव्य दृष्टि से भी अच्छा है। यहाँ तो वह हो ही नहीं सकता। वह चीज ही नहीं। आज सुहेजों का दिन था ना! तो जब सन्देशियॉ वतन में आई तो साकार को छिपा दिया। एक बहुत सुन्दर फूलों की पहाड़ी बनाई थी उनके अन्दर साकार को छिपाया हुआ था। दूर से देखने में तो पहाड़ी ही नजर आती थी। तो जब सदेशी आई तो साकार को देखा नहीं। बहुत ढूढा देखने में ही नहीं आया। फिर अचानक ही जैसे छिपने का खेल करते हैं ना! ऐसा खेल देखा। फूलों के बीच साकार बैठा हुआ नजर आया। वह सीन बड़ी अच्छी थी।

अव्यक्त बापदादा हरेक को अमृत कर भोग दे रहे थे और एकएक से मुलाकात भी कर रहे थे। खास म्युजियम वालों को डायरेक्शन दे रहे थे अव्यक्ति आकर्षण से म्युजियम ऐसा बनाओ जो कोई भी अन्दर आये, देखे तो एकदम आकर्षित हो जाये।

होली के शुभ अवसर

1. आज आपकी खास होली है क्या?
उत्तर: हां, आज की होली का मतलब है अपने पुराने संस्कारों को जलाना और नई ऊर्जा से रंगना। यह समय आत्मा के सच्चे श्रृंगार का है।

2. होली कैसे मनाई जाती है?
उत्तर: होली जलाने, मिटाने, रंगने और श्रृंगारने का समय है। इन चारों बातों से जीवन को नया रूप देना होता है।

3. काम की होली कौन सी है?
उत्तर: आत्म-संस्कारों को जलाना और अपने स्वभाव को रंगना, यही असली काम की होली है।

4. वर्तमान समय में कौन सी होली मनाने की आवश्यकता है?
उत्तर: यह समय है पुराने नकारात्मक संस्कारों को जलाने और सच्चे आत्मस्वरूप से रंगने का।

5. होली में क्या करना होता है?
उत्तर: होली में जलाना, मिटाना, रंगना और श्रृंगार करना होता है। यह चार क्रियाएँ आत्मिक शुद्धता और सजावट को दर्शाती हैं।

6. श्रृंगार में मुख्य होली का हिस्सा क्या होता है?
उत्तर: मस्तक पर आत्मा का दीपक जलाना, यही होली का मुख्य श्रृंगार है, जो हमारे भीतर दिव्य ऊर्जा और प्रकाश लाता है।

7. क्या होली का अर्थ जीवन में लाना आवश्यक है?
उत्तर: हां, होली का सही अर्थ जीवन में लाना बहुत जरूरी है ताकि जीवन में स्थायिता और रंग की पक्की छाप हो।

8. ज्ञान का मंथन क्या होता है?
उत्तर: ज्ञान का मंथन हमारी समझ और प्रज्ञा को बढ़ाता है, जिससे हम अपने कार्यों को शुद्ध और सटीक रूप से समझ पाते हैं।

9. क्या सर्विस का समय होली के समान हो सकता है?
उत्तर: हां, अगर हम समय का सही उपयोग नहीं करते तो सर्विस का समय भी बीत सकता है, जैसे होली का दिन।

10. घेराव डालने का मतलब क्या है?
उत्तर: घेराव डालने का मतलब है किसी को इतने गहरे प्यार और अव्यक्त आकर्षण से घेर लेना कि वह खुद न निकल सके।

11. क्या सर्विस का समय कम हो सकता है?
उत्तर: हां, समस्याएँ सामने आ सकती हैं जो सर्विस में बाधा डाल सकती हैं, इसलिए जितना समय मिल रहा है, उतना अधिक सर्विस में लगाना चाहिए।

12. होली के अवसर पर हमें क्या ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर: हमें अपने आत्मस्वरूप और सेवा की भावना को मजबूत रखना चाहिए, ताकि होली का असली रंग जीवन में चढ़ सके।

13. वतन में होली कैसे खेली जाती है?
उत्तर: वतन में होली एक विशेष खेल की तरह होती है, जहाँ हम दिव्य दृष्टि से आत्माओं को श्रृंगारित और आत्मिक रूप से सशक्त करते हैं।

14. म्युजियम के बारे में क्या निर्देश दिए गए?
उत्तर: म्युजियम को ऐसे बनाओ कि जो भी अंदर आए, वह तुरंत आकर्षित हो जाए और आत्मिक रूप से उससे जुड़ सके।

Tags for Blog: होली, होली के शुभ अवसर, आत्मिक होली, होली का महत्व, होली जलाना, होली रंगना, होली श्रृंगार, ज्ञान का मंथन, अव्यक्त आकर्षण, आत्मा का दीपक, सर्विस का समय, होली की पूजा, ईश्वरीय सेवा, म्युजियम, दिव्य दृष्टि, आत्मिक सजावट, बापदादा, घेराव डालना, होली की परख, मालिक और बालक, होली के रिवाज, वर्तमान समय, होली उत्सव, होली मनाने के तरीके, शुद्धता और प्रेम, होली के संस्कार, ज्ञान के अनुसार होली, होली के खेल, साकार रूप में होली

Holi, auspicious occasion of Holi, spiritual Holi, importance of Holi, lighting Holi, colouring Holi, Holi decoration, churning of knowledge, latent attraction, lamp of the soul, time for service, worship of Holi, divine service, museum, divine vision, spiritual decoration, Bapdada, encirclement, test of Holi, master and child, customs of Holi, present time, Holi festival, ways of celebrating Holi, purity and love, rituals of Holi, Holi according to knowledge, Holi games, Holi in the corporeal form