Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
परिवर्तन
प्रैक्टिकल मूर्त्त बनाने वाले, सर्वगुण सम्पन्न बाबा बोले:-
वर्तमान समय को परिवर्तन का समय कहते हैं। इस समय के अनुसार जो निमित्त बने हुए हैं उन में भी अवश्य हर समय परिवर्तन होता जा रहा है तभी तो उन के आधार से समय परिवर्तन होता है। समय एक परिवर्तन का आधार है। परिवर्तन करने वालों के ऊपर अर्थात् जो परिवर्तन करने के लिए निमित्त बने हुए हैं, वह अपने में ऐसे अनुभव करते हैं कि हर समय मनसा, वाचा और कर्मणा सभी रूप से परिवर्तन होता जा रहा है। इसको कहेंगे-’चढ़ती कला का परिवर्तन’। परिवर्तन तो द्वापर में भी होता है, परन्तु वह है गिरती कला का परिवर्तन। अभी संगम पर है चढ़ती कला का परिवर्तन। तो जब समय अनुसार भी चढ़ती कला का परिवर्तन है, तो जो निमित्त आधार मूर्तियाँ हैं उन में भी अवश्य ऐसे ही परिवर्तन हैं। ऐसे अनुभव करते हो कि परिवर्तन होता जा रहा है? परिवर्तन की स्पीड (Speed) कभी चेक की है? परिवर्तन तो एक सप्ताह में होता है, एक दिन में और एक घण्टे में भी होता है। हाँ, टोटल कहेंगे परिवर्तन हो रहा है। लेकिन अभी के समय-प्रमाण परिवर्तन की स्टेज क्या होनी चाहिए, वह अनुभव करती हो? जो मुख्य निमित्त बने हुए महावीर हैं यदि उन को किसी भी बात में परिवर्तन लाने में समय लगता है, तो फाईनल परिवर्तन में भी अवश्य समय लगेगा।
निमित्त बने हुए महावीर जो हैं वह हैं मानों समय की घड़ी। जैसे घड़ी समय स्पष्ट दिखाती है, इसी प्रकार महावीर जो बनते हैं, निमित्त बने हुए हैं, वह भी घड़ी हैं, तो घड़ी में समय नज़दीक दिखाई पड़ता है या दूर? स्वयं घड़ी हो और स्वयं ही साक्षी हो समय को चेक करने वाली हो, तो परिवर्तन की प्रगति फास्ट है? फाइनल परिवर्तन जिससे सृष्टि का भी फाइनल परिवर्तन हो। अभी तो थोड़ा-थोड़ा परिवर्तन होता है, तो सृष्टि की हालतों में भी थोड़ा-थोड़ा परिवर्तन है। लेकिन फाइनल सम्पूर्ण परिवर्तन की निशानी क्या है जिससे समझें कि यह परिवर्तन की सम्पूर्ण स्टेज है?
अभी की परिवर्तन की स्टेज, सम्पूर्ण परिवर्तन की निशानी, वर्ष गिनती करते-करते अब बाकी समय क्या रहा है? परिवर्तन ऐसा हो जो सभी के मुख से निकले कि इनमें तो पूरा ही परिवर्तन आ गया है। अपने परिवर्तन की बात पूछते हैं, सदा काल के लिए नेचरल रूप में दिखाई दे, वह कैसे होगा? अभी नेचरल रूप में नहीं है। अब पुरूषार्थ से थोड़े समय के लिए वह झलक दिखाई देती है लेकिन नेचरल रूप सदा काल रहता है। तो सम्पूर्ण परिवर्तन की निशानी यह है। हरेक में जो कमजोरी का मूल संस्कार है यह तो हरेक अपना-अपना जानते हैं। कभी भी कोई स्टेज में सम्पूर्ण पास नहीं होते, परसेन्टेज में पास हो जाते हैं, इसका कारण यह है। तो हर बात में हरेक में विशेष रूप से जो मूल संस्कार है, जिसको आप नेचर कहती हो तो वह दिखाई देवे कि उनका पहले यह संस्कार था, अभी यह नहीं है। आपस में एक दूसरे के मूल संस्कार वर्णन भी करते हैं। यह पुरूषार्थ में बहुत अच्छे हैं लेकिन यह संस्कार इनको समय-प्रति-समय आगे बढ़ने में रूकावट डालता है। उन मूल संस्कारों में जब तक पूरा परिवर्तन नहीं हुआ है तब तक सम्पूर्ण विश्व का परिवर्तन हो नहीं सकता। सभी में सम्पूर्ण परिवर्तन हो वह तो दूसरी बात है। वह तो नम्बरवार रिजल्ट में भी होता है। लेकिन जो परिवर्तन के मूल आधार मूर्तियाँ हैं जिनको महावीर और महारथी कहते हैं उन के लिए यह परिवर्तन आवश्यक है। जो कोई भी ऐसे वर्णन न करे कि इनके यह संस्कार तो शुरू से ही हैं। इस लिए अब परसेन्टेज में भी दिखाई देते हैं। यह वर्णन करने में नहीं आये, दिखाई न दे, इसको कहा जाता है — सम्पूर्ण परिवर्तन। अगर जरा अंश मात्र भी है तो उसको सम्पूर्ण परिवर्तन नहीं कहेंगे। साधारण परिवर्तन महारथियों से थोड़े ही पूछेंगे? जो विश्व-परिवर्तन के निमित्त बने हुए हैं उन की परिवर्तन की स्टेज भी औरों से ऊंची होगी तो यह चैकिंग (checking) होनी चाहिए। रात दिन का अन्तर दिखाई दे, इस पर ही लक्की स्टार्स का गायन है। ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा तो अपने स्टेज पर हैं, लेकिन सम्पूर्ण परिवर्तन में लक्की स्टार्स का नाम बाला है। वर्तमान समय साकार रूप में फॉलो तो सभी आप लोगों को करते हैं ना? बुद्धि योग से शक्ति लेना, बुद्धियोग से श्रेष्ठ कर्म को फॉलो करना — वह तो मात-पिता निमित्त हैं। लेकिन साकार रूप में अब किसको फॉलो करेंगे? जो निमित्त हैं। तो परिवर्तन का ऐसा उदाहरण बनो। वर्ष में एक दो बारी भी ऐसा संगठन हो जाये। हर समय के संगठन में अपनी चढ़ती कला का परिवर्तन है। जैसे जो वर्ष बीत चुका है, उसमें स्नेह, सम्पर्क, सहयोग, इसमें चढ़ती कला और परिवर्तन है। अभी सम्पूर्ण स्टेज प्रत्यक्ष रूप में दिखाई दे। इस वर्ष में यह परिवर्तन विशेष रूप में होना आवश्यक है।
अब धीरे-धीरे प्रत्यक्षता के लिये जानबूझ कर बम लगाने शुरू किए हैं ना? जब धर्म-युद्ध की स्टेज पर आना है। आप लोग एक बात में ही हार खिला सकते हो कि धर्म और धारणा, उन लोगों का प्रैक्टिकल नहीं है और परमात्म- ज्ञान का प्रूफ (Proof) आपका प्रैक्टिकल लाइफ (Practical Life) है। एक तरफ धर्म-युद्ध की स्टेज दूसरी तरफ प्रैक्टिकल धारणामूर्त्त की स्टेज। अगर इन दोनों का साथ न होगा तो आप लोग की चेलेंज (Challenge) है प्रैक्टिकल लाइफ की-वह प्रत्यक्ष रूप में दिखाई नहीं देंगी। जैसे-जैसे आगे आते जाते हो, वैसे इस बात पर भी अटेन्शन (Attention) देना है। प्रैक्टिकल में ज्ञान अर्थात् धारणामूर्त्त, ज्ञान मूर्त्त वा गुण-मूर्त्त। मूर्त्त से भी वह ज्ञान और गुण दिखाई देवें। आजकल डिसकस (Discuss) करने से अपनी मूर्त्त को सिद्ध नहीं कर सकते लेकिन मूर्त्त से उन को एक सेकेण्ड में शान्त करा सकती हो। एक तरफ भाषण हो, लेकिन दूसरी तरफ फिर प्रैक्टिकल मूर्त्त भी हो। तब धर्म-युद्ध में सक्सेसफुल (Successful) होंगे; इसलिए जैसे सर्विस का प्रोग्राम बनाते हो, साथ-साथ अपने प्रोग्राम (Programme) में भी प्रोग्रेस (Progress) करो। यह भी होना आवश्यक है। अपने पुरूषार्थ के प्रोग्रेस का, अपने-अपने पुरूषार्थ के भिन्न-भिन्न अनुभव का लेन-देन करने का भी प्रोग्राम साथ-साथ होना चाहिए। दोनों का बैलेन्स (Balance) साथ-साथ हो। अच्छा।
इस मुरली का सार
बाबा कहते तुम बच्चे समय की घड़ी हो। चेक करो तुम्हारी परिवर्तन की स्पीड फास्ट है? सम्पूर्ण परिवर्तन की निशानी यह है कि जो संस्कार पहले थे, वह अब बिल्कुल दिखाई न दें। परिवर्तन ऐसा हो जो सभी के मुख से निकले कि यह तो बिल्कुल ही बदल गया है।
अभी धर्म-युद्ध की स्टेज पर आना है। आप लोग उन्हें एक बात में ही हार खिला सकती हो कि धर्म और धारणा जिसमें प्रैक्टिकल में नहीं हैं। आपकी मूर्त्त में भी वह ज्ञान और गुण दिखाई देना चाहिए। डिस्कस करने से नहीं बल्कि अपनी मूर्त्त से ही तुम उन्हें शान्त करा सकती हो
परिवर्तन – प्रश्नोत्तर
1. वर्तमान समय को परिवर्तन का समय क्यों कहा जाता है?
➡ क्योंकि इस समय चढ़ती कला का परिवर्तन हो रहा है, जिससे आत्माएँ और समय दोनों बदल रहे हैं।
2. द्वापर और संगमयुग के परिवर्तन में क्या अंतर है?
➡ द्वापर में गिरती कला का परिवर्तन होता है, जबकि संगमयुग में चढ़ती कला का परिवर्तन होता है।
3. परिवर्तन की स्पीड कैसे चेक कर सकते हैं?
➡ यह देखना होगा कि परिवर्तन एक सप्ताह, एक दिन, या एक घंटे में भी हो रहा है या नहीं।
4. सम्पूर्ण परिवर्तन की निशानी क्या है?
➡ पुराने संस्कार बिल्कुल समाप्त हो जाएँ और कोई यह न कहे कि यह तो शुरू से ही इनके संस्कार हैं।
5. आत्माओं के परिवर्तन से विश्व परिवर्तन कैसे जुड़ा है?
➡ जब तक आत्माओं का सम्पूर्ण परिवर्तन नहीं होगा, तब तक विश्व का परिवर्तन भी नहीं हो सकता।
6. महावीर आत्माएँ समय की घड़ी क्यों कही जाती हैं?
➡ क्योंकि वे स्वयं परिवर्तन के निमित्त बनकर समय को स्पष्ट रूप से दिखाती हैं।
7. धर्म-युद्ध में जीतने का सबसे बड़ा आधार क्या है?
➡ आत्माओं की प्रैक्टिकल धारणा और गुणों का मूर्त स्वरूप।
8. मूर्त स्थिति से दूसरों पर प्रभाव कैसे पड़ता है?
➡ सिर्फ शब्दों से नहीं, बल्कि आत्मिक स्थिति से भी दूसरों को परिवर्तन का अनुभव कराया जा सकता है।
9. संतुलन (Balance) बनाए रखने के लिए क्या करना आवश्यक है?
➡ सेवा के साथ-साथ आत्मिक प्रगति और अनुभवों का लेन-देन भी होना चाहिए।
10. इस वर्ष के लिए मुख्य लक्ष्य क्या होना चाहिए?
➡ ऐसा परिवर्तन लाना जिससे सभी के मुख से निकले कि यह आत्मा सम्पूर्ण रूप से बदल गई है।
परिवर्तन, आत्मिक परिवर्तन, आध्यात्मिकता, चढ़ती कला, संगमयुग, बाबा की मुरली, आत्मा का विकास, धर्म-युद्ध, संस्कार परिवर्तन, गुण मूर्त्त, प्रैक्टिकल जीवन, आत्मिक शक्ति, बुद्धियोग, पुरूषार्थ, आत्मा की पहचान, विश्व परिवर्तन, साकार अनुकरण, आध्यात्मिक शक्ति, महावीर आत्माएँ, महारथी आत्माएँ, धर्म और धारणा, आत्म-अनुभूति, ध्यान और स्मृति, ज्ञान मूर्त्त, दिव्य गुण, सम्पूर्णता, आत्मिक जागृति, सर्वगुण सम्पन्न, समय की घड़ी, श्रेष्ठ कर्म, जीवन में परिवर्तन
Transformation, spiritual transformation, spirituality, ascending stage, Confluence Age, Baba’s Murli, development of soul, religious war, transformation of sanskars, image of virtues, practical life, spiritual power, Buddhiyoga, effort, recognition of soul, world transformation, physical imitation, spiritual power, Mahavir souls, Maharathi souls, religion and belief, self-realization, meditation and awareness, image of knowledge, divine virtues, completeness, spiritual awakening, full of all virtues, clock of time, noble deeds, change in life