Avyakta Murli”14-07-1972

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

अंतिम सेवा के लिए रमतायोगी बनो

जैसे गवर्मेन्ट के गुप्त अनुचर नये-नये प्लैन्स बनाते हैं, कहां भी कोई उल्टा कर्त्तव्य आदि होता है तो उसको चेक करते हैं। वैसे आप भी सभी पाण्डव गवर्मेन्ट के गुप्त अनुचर हो। आत्माओं को जो धोखे में फंसाने वाले हैं वा उलटी राह पर चलाने वाले वा मिलावट करने वाले हैं अथवा गिराने के निमित्त हैं उन्हों के लिए नये-नये प्लैन्स बनाते हो? वह गवर्मेट भी सदैव नई-नई प्लैन्स बनाती है ना, जिससे मिलावट करने वाले उन्हों की नज़र से बच नहीं पाते हैं। अभी चारों ओर आवाज़ तो फैला दिया है लेकिन यह विद्वान, आचार्य आदि जो निमित्त बने हुए हैं यथार्थ ज्ञान के बदली अयथार्थ रीति देने, उन्हों की तरफ अटेन्शन जाता है? एक द्वारा भी अनेकों को आवाज पहुंचता है। वह कौन निमित्त बन सकता है? साधारण जनता को तो सुनाते रहते हो, उनमें से जो बनने वाले हैं वह अपना यथा शक्ति पुरूषार्थ करते चल रहे हैं। लेकिन जो आवाज फैलना है वह किन्हों के द्वारा? शक्तियों का जो अन्तिम गायन है वह क्या इस साधारण जनता के प्रति गायन है? शक्तियों की शक्ति की प्रत्यक्षता इन साधारण जनता द्वारा होगी? जो पोलीटिकल लोग हैं उन्हों के द्वारा इतना आवाज नहीं फैल सकता क्योंकि आजकल जो भी नेता बनते हैं, इन सभी की बुराइयां जनता जानती है। आजकल प्रजा का प्रजा पर राज्य है ना। तो नेताओं की आवाज का प्रभाव नहीं है। तो एक द्वारा अनेकों तक आवाज करने के निमित्त कौन बनेगा? इन गुरूओं की जंजीरों में तो सभी फंसे हुए हैं ना। भले अन्दर में क्या भी हो लेकिन उन्हों के शिष्य अन्धश्रद्धा से सत्- सत् करने के आदती हैं। नेताओं के पीछे सत्-सत् करने वाले नहीं हैं। तो शक्तियों का जो गायन है वह कब प्रैक्टिकल में आना है? वा उसके लिए अब धरती नहीं बनी है? जैसे गुप्त अनुचर जो होते हैं वह क्या करते हैं? मिलावट वालों को ही घेराव डालते हैं। मिलावट करने वाले बड़े आदमी होते हैं, जिससे गवर्मेन्ट को बहुत प्राप्ति होती है। साधारण के पीछे नहीं पड़ते। उन्हों के नये- नये प्लैन्स बनते रहते हैं कि किस रीति मिलावट को प्रसिद्ध करें। तो ऐसी बुद्धि चलती है? कि जो सहज प्रजा बनती है उसमें ही सन्तुष्ट हो? प्रभाव पड़ने का जो मुख्य साधन है वह तो प्रैक्टिकल में करना पड़े ना। वह कब होगा? जब पहले बुद्धि में प्लैन्स चलेंगे, उमंग आयेगा कि हमको आज यह करना है। तो अभी वह संकल्प उठते हैं वा संकल्प ही मर्ज हैं? जैसे सर्विस चलती रहती है ऐसे तो प्रजा बनने का साधन है। लेकिन आवाज फैलने का साधन, जिससे प्रत्यक्षता हो, वह प्रैक्टिकल में लाना है। जब विमुख करने वाले सम्मुख आवें तब है प्रभाव। बाकी विमुख होने वाले सम्मुख आयें तो कोई बड़ी बात नहीं है। इसलिए बाप से भी ज्यादा शक्तियों का, कुमारियों का गायन है। कन्यायें अर्थात् ब्रह्माकुमारियां। इसका मतलब यह नहीं कि कुमारी ही होगी। ब्रह्मा- कुमार-कुमारियां तो सभी हैं। कन्याओं द्वारा बाण मरवाये हैं। बाप खुद सम्मुख नहीं आये, सम्मुख शक्तियों को रखा। तो जब प्रैक्टिकल में शक्ति सेना निमित है तो शक्तियों का जो विशेष कर्त्तव्य गाया हुआ है वह उन्हों से ही गाया हुआ है। वह उमंग-उत्साह है? क्या सेमीनार करने में ही खुश हो? यह तो सभी साधन हैं नंबरवार प्रजा बनाने के। कुछ-ना-कुछ कनेक्शन में आते हैं और प्रजा बन जाती है। लेकिन अब तो इससे भी आगे बढ़ना है। अंतिम सर्विस को प्रैक्टिकल लाने में अभी से तैयारी करो। पहले तो संकल्प रखो, फिर उसका प्लैन बनाओ, फिर प्लैन से प्रैक्टिकल में आओ। उसमें भी समय तो चाहिए ना। शुरू तो अभी से करना पड़े। जैसे शुरू-शुरू में जोश था कि जिन्होंने हमको गिराया है उन्हों को ही संदेश देना है। बीच में प्रजा के विस्तार में चले गये। लेकिन जो आदि में था वह अंत में भी आना है। जैसे माया की जंजीरों से छुड़ाने के लिए मेहनत करते हैं। वैसे यह भी बड़ी जंजीर है और अब तो दिन-प्रतिदिन यह जंजीरें मोहिनी रूप लेते हुए अपनी तरफ खैंचती जा रही हैं वा अल्पकाल की बुद्धि द्वारा प्राप्ति कराते हुए अपनी जंजीर में फंसाते जाते हैं। उन्हों से सभी को कब छुड़ायेंगे? अंतिम प्रभाव का साधन यही है जिसका गायन भी है कि चींटी महारथी को भी गिरा देती है। गायन तो कमालियत का होता है ना। साधरण जनता को सुनाते रहते हो, वह क्या बड़ी बात है। यह तो वह मिलावट वाले भी करते हैं। झूठे लोग भी अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। लेकिन जो अपने को महारथी समझते हैं उन्हों के पोल खोल दो। उन्हों को झुकाओ तब कमाल है। ऐसी कमाल दिखाने के लिये कुछ बुद्धि चलती है? असत्य को असत्य सिद्ध करो तब तो सत्य की जय हो। जय-जयकार होगी ही तब। फिर इतनी मेहनत करने की ज़रूरत नहीं। इसके लिए प्लैन्स चाहिए, तरीका चाहिए और अन्दर में वह नशा चाहिए कि हम गुप्त अनुचर हैं, इन्हों के पोल सिद्ध करना हमारा काम है, हम ही इसके लिए निमित्त हैं। यह अन्दर से उमंग-उत्साह आवे, तब यह काम हो सकता है। यह प्रोग्राम से नहीं हो सकता। किसी को आप प्रोग्राम दो कि यह-यह करो, ऐसे वो नहीं कर सकेंगे। उसमें सामना करने की इतनी शक्ति नहीं आयेगी। अपने दिल से जोश आवे कि मुझे यह करना है, वह प्रैक्टिकल हो सकता है। संकल्प को रचने से फिर प्रैक्टिकल में आ जायेगा। अभी सभी की नज़र कोई कमाल देखने की तरफ है और बिना शक्तियों के यह कार्य पाण्डव अथवा कोई कर नहीं सकता। निमित्त शक्तियों को बनना है। जैसे शुरू-शुरू में रमता योगी माफिक जहां के लिए भी संकल्प आता था, जोश में चल पड़ते थे और यथा शक्ति सफलता भी पा लेते थे। ऐसा ही फिर इस बात के लिए भी रमता योगी चाहिए। प्रजा बनाने में बहुत बिजी हो गये हो और जो रचना रची है उसको पालने में ही समय बीत जाता है।

अंतिम सेवा के लिए रमतायोगी बनो – प्रश्नोत्तर

1. गुप्त अनुचर किसे कहते हैं?
➡️ वे जो आत्माओं को सत्य मार्ग पर लाने के लिए गुप्त रूप से सेवा करते हैं।

2. पांडव सरकार का मुख्य कार्य क्या है?
➡️ यथार्थ ज्ञान को फैलाना और आत्माओं को मिलावट से बचाना।

3. शक्तियों का गायन कब प्रमाणित होगा?
➡️ जब वे प्रैक्टिकल में सत्य को सिद्ध करेंगी।

4. अंतिम सेवा के लिए क्या तैयारी आवश्यक है?
➡️ पहले संकल्प, फिर योजना, और अंत में उसे व्यवहार में लाना।

5. मुख्य रूप से किसकी जिम्मेदारी है असत्य को असत्य सिद्ध करने की?
➡️ ब्रह्माकुमार एवं ब्रह्माकुमारियों की।

6. कौन-सा सबसे बड़ा अवरोध है सत्य को फैलाने में?
➡️ गुरुओं की जंजीरें और अंधश्रद्धा।

7. शक्तियों को प्रभावी बनाने के लिए क्या आवश्यक है?
➡️ आत्मविश्वास, संकल्प की दृढ़ता और प्रैक्टिकल कदम।

8. अंतिम सेवा किसे कहा गया है?
➡️ जो सत्य को सिद्ध कर सके और असत्य का पर्दाफाश करे।

9. क्या केवल प्रजा बनाने से कार्य पूर्ण हो जाएगा?
➡️ नहीं, प्रभावशाली सेवा के लिए रमतायोगी बनना आवश्यक है।

10. क्या सिर्फ सेमिनार और प्रवचन करना ही पर्याप्त है?
➡️ नहीं, उसे प्रैक्टिकल में लाने की भी आवश्यकता है।

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