Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“शिवरात्रि के अवसर पर अव्यक्त बापदादा के महावाक्य”
(सन्तरी दादी के तन द्वारा)
आज किसके स्वागत का दिन है? (बाप और बच्चों का) परन्तु कई बच्चे अपने को भी भूले हुए हैं तो बाप को भी भुला दिया है। आज कि दिन वह स्वागत है जैसे पहले होती थी? कितनी तारें आती थी! तो भूला ना। बाप जब है ही तो फिर भुलाना कहाँ तक! यह है निश्चय, यह है पढ़ाई। जब पढ़ाई कायम है तो वह कार्य भी जैसा का वैसा चलता रहेगा। वह निश्चय नहीं तो कार्य में भी जरा बच्चे अपने मर्तबे को समझते हैं कि मैं किसका बच्चा हूँ? बाप सदा है तो बच्चे भी सदा है। परन्तु देह अभिमान अपने स्वधर्म को भुला देता है। भूलने से कार्य कैसे चलेगा। आगे कैसे बढ़ेंगे? जबकि बाप ने अपना परिचय दिया है, बच्चों को भी अपना परिचय मिला हुआ है। कितना समय से इसी लक्ष्य को पक्का कराने के लिए मेहनत की गई है, उस मेहनत का फल कहाँ तक? सिर्फ याद कराने के लिए यह कह रहा हूँ, मुरली तो चलानी नहीं है। सिर्फ बच्चों से मिलने आया हूँ। बच्ची ने कहा बहुत याद कर रहे हैं, बाबा आप चलेंगे तो रिफ्रेश करेंगे। रिफ्रेश तो हो ही – अगर निश्चय है तो। फिर भी बच्चों से मिलने के लिए आना पड़ा, थोड़े समय के लिए। स्वमान की स्मृति दिलाने के लिए आये हैं। बच्चे, सदैव अपने को सौभाग्यशाली समझें। सदा सौभाग्यशाली उनको कहा जाता है जिनका बाप, टीचर और सतगुरू से पूरा कनेक्शन, पूरी लगन है।
कन्या की सगाई के बाद क्या होता है? पति के साथ लगन लग जाती है। तब उनको कहते हैं सदा सुहागिन। परन्तु वह कहाँ तक सुहागिन है? अन्दर में क्या भरा पड़ा है! कन्या सौ ब्राह्माणों से उत्तम गिनी जाती है। सगाई करने के बाद अशुद्ध बनने कारण आन्तरिक अभागिन है। यह किसको भी पता नहीं है। बाप ही बतलाते हैं सदा सुहागिन कौन है। सदा के लिए परमात्मा से पूरी लगन रहे, वो सदा सुहागिन है।
यह तो अभी पढ़ाई का समय है, बाप अपना कर्तव्य कर रहे हैं, डायरेक्शन देते पढ़ाते हैं। जब तक पढ़ाना है, पढ़ाते रहेंगे। विनाश सामने खड़ा है, उसका कनेक्शन बाप के साथ है। ऐसे मत समझो बाप की जुदाई है। जुदाई भी नहीं विदाई भी नहीं। जब तक विनाश नहीं तब तक बाप साथ है। वतन में बाप गया है कोई कार्य के लिए। समय अनुसार वह सब कुछ होता रहेगा। इसमें न कोई विदाई है, न जुदाई, जुदाई लगती है? तुमने विदाई दी थी? अगर विदाई दी होगी तो जुदाई भी होगी। विदाई नहीं दी होगी तो जुदाई भी नहीं होगी। यह ड्रामा के अन्दर पार्ट चलता रहता है। बाप का खेल चल रहा है। खेल में खेल चलता रहेगा। आगे तो बहुत ही खेल देखने हैं। इतनी हिम्मत है? जब हिम्मत रखेंगे तब बहुत देखेंगे। आगे बहुत कुछ देखना है। परन्तु कदम को सम्भाल-सम्भाल कर चलाना है। अगर सम्भल कर नहीं चलेंगे तो कहाँ खड्डा भी आ जायेगा। एक्सीडेंट भी हो पड़ेंगे। बच्चों से मिलने के लिए थोड़े समय के लिए आया हूँ। बहुत कार्य करना है। वतन से बहुत कुछ करना पड़ता है। बच्चों की भी दिल पूरी करनी पड़ती है तो भक्तों की भी दिल पूरी करनी पड़ती है। सभी कार्य काम पर ही होते हैं। बाप का परिचय मिला ,खज़ाना, लाटरी मिली। अभी बच्चों की सर्विस पूरी की। वतन से अभी सबकी करनी है। बच्चे सगे भी हैं तो लगे भी हैं। सर्विस तो सबकी करनी है। सवेरे भी आकर दृष्टि से परिचय दे दिया। दृष्टि द्वारा सर्चलाइट दे सभी को सुख देना बाप का कर्तव्य है। अभी तो सभी को म्यूजियम की सर्विस करनी है। सबको बाप का परिचय देना है। बाप ने जो सर्विस के चित्र बनवाये हैं, उस पर सर्विस करनी है। अंगुली देने से पहाड़ उठता है ना। यही गायन है गोप गोपियों ने अंगुली से पहाड़ उठाया। अंगुली नहीं देंगे तो पहाड़ नहीं उठेगा। सृष्टि पर आत्माओं का उद्धार कर, वह पहाड़ उठाकर फिर साथ ले जाना है। समूह होता है ना। अन्त में समूह बनकर सभी के साथ रहना है। पहले-पहले साक्षात्कार में लाल-लाल समूह देखा था तब तो समझ में नहीं आया परन्तु अब वही आत्माओं का समूह है, जिनको साथ ले जाने का ड्रामा के अन्दर प्रोग्राम है। सभी की सर्विस करनी है। अच्छा
सवेरे उठकर बाप की याद में रहो, क्योंकि उस समय बाप सभी को याद करते हैं। उस समय कोई-कोई बच्चे दिखाई नहीं पड़ते हैं। ढूढना पड़ता है। भल अकेले रीति याद करते हैं, परन्तु संगठन के साथ भी जरूर चलना है। जितना याद में रहेंगे उतना ही बाप के नजदीक होते जायेंगे। बाप को भुलाने से मूंझते है। बाप को सदैव साथ रखेंगे तो भूल नहीं सकते।
महिमा सुनना छोड़ो – महान बनो
1. प्रश्न: कैसे हम अपने जीवन में बाप और दादा के चरित्र को प्रदर्शित कर सकते हैं?
उत्तर: हम अपनी हर चलन, वाणी, और दृष्टि से बाप और दादा के चरित्र को प्रदर्शित करेंगे, ताकि दूसरों को उनके गुण और अलौकिकता का अनुभव हो सके।
2. प्रश्न: याद की यात्रा का महत्व क्या है?
उत्तर: याद की यात्रा, अव्यक्त स्थिति में रहते हुए हर कर्म करना है, जिससे हम महान बनकर बाप-दादा के गुणों को साकार रूप में प्रदर्शित कर सकें।
3. प्रश्न: ‘मेहमान’ और ‘महिमा’ में क्या अंतर है?
उत्तर: हमें खुद को ‘मेहमान’ समझना है, लेकिन ‘महिमा’ में नहीं आना चाहिए, क्योंकि महिमा में आने से हम गिर सकते हैं, जबकि मेहमान समझने से हम महान बनते हैं।
4. प्रश्न: तीन बातें छोड़ने और तीन बातें धारण करने की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर: हमें बहाना, कहलाना, और मुरझाना छोड़ना है, और त्याग, तपस्वा, और सेवा धारण करनी है। ये तीन बातें हमारे स्वरूप और सर्विस में सफलता लाएंगी।
5. प्रश्न: त्रिमूर्ति शब्द का क्या महत्व है?
उत्तर: त्रिमूर्ति का ज्ञान हमें तपस्वी और त्रिनेत्री बनने की दिशा में मदद करता है। ज्ञान का तीसरा नेत्र ही हमारे तपस्वी रूप को सशक्त बनाता है।
6. प्रश्न: शिवरात्रि के अवसर पर हमें कैसे नया रूप दिखाना है?
उत्तर: शिवरात्रि के अवसर पर हमें विशेष शक्ति रूप में ललकार करना है, समय की पहचान और बाप के कर्तव्य का प्रचार जोर-शोर से करना है, ताकि आत्माओं में जागरूकता उत्पन्न हो।
7. प्रश्न: बीजरूप स्थिति में क्यों रहना चाहिए?
उत्तर: बीजरूप स्थिति में रहकर हम बीज डाल सकते हैं, जो आत्माओं में समय की पहचान और बाप के परिचय का बीज फैला सकते हैं। विस्तार में जाने से उसका प्रभाव कम हो सकता है।
8. प्रश्न: स्नेह का सबूत देने का क्या मतलब है?
उत्तर: स्नेह का सबूत हमें अपने कार्यों से देना है, जैसे बाप ने अपने शरीर और समय को न देखते हुए बच्चों से स्नेह दिखाया। हमें भी अपनी प्रैक्टिकल सेवा से स्नेह का प्रदर्शन करना है।
9. प्रश्न: अमृतवेले मुलाकात के दौरान क्या ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर: अमृतवेले मुलाकात करते समय हमें अपनी आंतरिक स्थिति पर ध्यान देना चाहिए और किसी भी प्रकार की सुस्ती से बचना चाहिए, ताकि मुलाकात का प्रभाव सशक्त हो।
10. प्रश्न: स्नेह और बलिदान का क्या संबंध है?
उत्तर: स्नेह हमेशा बलिदान में होता है। हमें स्नेह को दिखाने के लिए अपनी अहमियत और स्वार्थ से परे होकर बलिदान करना पड़ता है।
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