Avyakta Murli”16-10-1969

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Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

“परखने की शक्ति को तीव्र बनाओ” 

आज विशेष क्या देख रहे है? परिवर्तन कैसे देखते है? इस ग्रुप में प्रश्र का उत्तर देने में होशियार कौन है? देखने और परखने की शक्ति कहाँ तक आई है? अच्छा – योग की स्थिति में निरन्तर रहने वाला कौन? दिव्यगुणों की धारणा में दिव्यगुण मूर्त कौन नजर आता है? यह क्यों पूछते है? क्योंकि अगर परखने की प्रैक्टिस होगी तो जब दुनिया में कार्य अर्थ जाते हो और आसुरी सम्प्रदाय के साथ सम्बन्ध रखना पड़ता है तो परखने की प्रैक्टिस होने से बहुत बातों में विजयी बन सकते हो। अगर परखने की शक्ति नहीं तो विजयी नहीं बन सकते। यह तो थोड़ी-सी रेख-देख की कि अपने ही परिवार कि अन्दर कहाँ तक परख सकते हो। यूँ तो हरेक रत्न एक दो से श्रेष्ठ है। लेकिन फिर भी परखने की प्रैक्टिस जरूर चाहिए। यह परखने की प्रैक्टिस छोटी बात नहीं समझना। इस पर ही नम्बर ले सकते हो। कोई भी परिस्थिति को, कोई भी संकल्प वाली आत्माओं को, वर्तमान और भविष्य दोनों कालों को भी परखने की प्रैक्टिस चाहिए। विशेष करके जो पाण्डव सेना है, उन्हों को यह परखने की शक्ति बहुत आवश्यक है। क्योंकि आप गोपों को बहुत प्रकार की परिस्थितियाँ सामने आती है। उन्हों का सामना करने लिये यह बुद्धि बहुत आवश्यक है। परखने की पावर कैसे आयेगी – उसके लिए मुख्य साधन कौनसा है? परखने की शक्ति को तीव बनाने लिए मुख्य कौन सा साधन है? परखने का तरीका कौन सा होना चाहिए? तुम्हारे सामने कोई भी आये उनको परख सकते हो? (हरेक ने अपना-अपना विचार बताया) सभी का रहस्य तो एक ही है। अव्यक्त स्थिति वा याद वा आत्मिक स्थिति बात तो वही है। लेकिन आत्मिक स्थिति के साथ-साथ यथार्थ रूप से वही परख सकता है जिनकी बुद्धि में ज्यादा व्यर्थ संकल्प नहीं चलते होंगे। उनकी बुद्धि एक के ही याद में, एक के ही कार्य में और एकरस स्थिति में होगी। वह दूसरे को जल्दी परख सकेंगे। जिनकी बुद्धि में ज्यादा संकल्प उत्पन्न होंगे तो उनकी बुद्धि दूसरों को परखने के लिए भी अपने व्यर्थ संकल्प की मिक्सचरिटी होगी। इसलिए जो जैसा है वैसा परख नहीं सकेंगे। तो मूल रहस्य निकला बुद्धि की सफाई। जितना बुद्धि की सफाई होगी उतना ही योग युक्त अवस्था में रह सकेंगे। यह व्यर्थ संकल्प और विकल्प जो चलते है वह अव्यक्त स्थिति होने में विघ्न है। बार-बार इस शरीर के आकर्षण में आ जाते है उसका मूल कारण है कि बुद्धि की सफाई नहीं है। बुद्धि की सफाई अर्थात बुद्धि को जो महामन्त्र मिला हुआ है उसमें बुद्धि मगन रहे। एक की याद को छोड़ अनेक तरफ बुद्धि जाने के कारण शक्तिशाली नहीं रहते। वैसे भी जब बुद्धि बहुत कार्य तरफ लगी हुई होती है। तो अनुभव किया होगा बुद्धि में वीकनेस, थकावट महसूस होती है। और जो भी है यथार्थ रूप से निर्णय नहीं कर सकेंगे। इसी रीति व्यर्थ संकल्प, विकल्प जो चलते है, यह भी बुद्धि को थकावट में लाते है। थकी हुई कोई भी आत्मा न परख सकेगी न निर्णय कर सकेगी। कितना भी होशियार होगा तो थकावट में उनके परखने, निर्णय करने में फर्क पड़ जाता है। सारा दिन इन संकल्पों से बुद्धि थकी हुई होने कारण निर्णय करने की शक्ति में कमी आ जाती है। इसलिए विजयी नहीं बन सकते। हार खाने का मुख्य कारण यह है। बुद्धि वनी सफाई नहीं है। जैसे उन्हीं की हाथ की सफाई होती है ना। आप फिर बुद्धि की सफाई से क्या से क्या कर सकते हो। वह हाथ की सफाई से झट से बदल देते है। देरी नहीं लगती। इसलिए कहते है जादूगर। आप में भी बदलने का जादू आ जायेगा। अभी बदलने सीखे हो, लेकिन जादू के समान नहीं बदल सकते हो अर्थात् जल्दी नहीं बदल सकते हो। समय लगता है। जादू चलाने के लिये जितना समय जिसको मन्त्र याद रहता है, उतना उसका जादू सफल होता है। आपको भी अगर महामन्त्र याद होगा तो जादू के समान कार्य होगा। अब इसी में देरी है। तो अब इस भट्ठी से क्या बनकर निकलेंगे? (जादूगर) अगर इतने जादूगर भारत के कोने-कोने में, छा जायेंगे तो क्या हो जावेगा? एक मास के अदर कुछ और नजारा देखने में आयेगा? अब तो तैयारी करनी पड़ेगी ना। अगर इतने जादूगर बदलने का कार्य शुरू कर देंगे तो फिर क्या करना पड़ेगा? ऐसी कुछ नवीनता आप भी देखना चाहते हो और बाप-दादा भी चाहते है। ऐसा आवाज पैनल जाये कि यह कौन कहाँ से प्रगट हुए है। ऐसे महसूस हो कि एक-एक स्थान पर कोई अलौकिक आत्मा अवतरित होकर आई है। एक अवतार इतना कुछ कर सकता है तो यह कितने अवतार है। यहाँ से जब जाओ तो ऐसे ही समझकर जाना कि हम इस शरीर में अवतरित हुए है – ईश्वरीय सेवा के लिये। अगर यह स्मृति रखकर जायेंगे तो आपके हर चलन में अलौकिकता देखने में आयेगी। जो भी आपके दैवी परिवार वाले वा लौकिक परिवार वाले है वह महसूस करे कि यह कुछ अनोखे ही बनकर आये है, बदलकर आये है। जब आप की बदलने की महसूसता आयेगी तब आप दुनिया को बदल सकेंगे। अगर आप सभी के बदलने की भासना नहीं तो दुनिया को नहीं बदल सकेंगे। खुद बदल कर दुनिया को बदलना है। ऐसे ही समझकर चलना कि निमित्त मात्र इस शरीर वना लोन लेकर ईथरीय कार्य के लिए, थोड़े दिन के लिए अवतरित हुये है। कार्य समाप्त करके फिर चले जायेंगे। यह स्मृति, लक्ष्य रख करके, ऐसी स्थिति बनाकर फिर चलना। यह बगीचा है। बापदादा चैतन्य बगीचे में आते है। तो कुछ वाणी से खुशबू लेते है, कुछ नयनों से, कुछ मस्तक के मणी से। हरेक के मस्तिष्क के मणी की चमक बापदादा देखते है। ऐसे ही अगर आप सभी भी मस्तिष्क के मणी को ही देखते रहो तो फिर यह दृष्टि और वृत्ति शुद्ध सतोप्रधान बन जायेगी। दृष्टि जो चचल होती है उसका मूल कारण यह है। मस्तिष्क के मणी को न देख शारीरिक रूप को देखते हो। रूप को न देखो लेकिन मस्तिष्क के मणी को देखो। जब रूप को देखते हो तो ऐसे ही समझो कि सांप को देख रहे है। सांप के मस्तिष्क में मणी होती है ना। तो मणी को देखना है न कि सांप को। अगर शरीर भान में देखते हो तो मानो सांप को देखते हो। सांप को देखा और सांप ने काटा। सांप तो अपना कार्य करेगा। सांप में विष भी होता है। कोई-कोई विशेष सांप होते है। जिनमें मणी होती है। आप गोपों को सांप को कैसे मारना है। क्या करेंगे? आप सांप को देखते हुए भी सांप को न देखो। मणी को ही देखो। मणी को देखने से सांप का जो विष है वह हल्का हो जायेगा। अगर शरीर रूपी सांप को देखा तो फिर उनको बन जायेंगे। उन समान बन जायेंगे। लेकिन मणी को देखेंगे तो बापदादा के माला के मणी बन जायेंगे। या तो बनना है सांप के समान या तो बनना है माला की मणी। अगर मणी बनना है तो देखो भी मणी को। फिर जो यह कम्प्लेन है वह बदल कर कम्पलीट हो जायेगी। सिर्फ बुद्धि की परख से कहाँ कम्प्लेन कहाँ कम्पलीट। रात-दिन का फर्क है। लेकिन सिन्धी भाषा में लिखेंगे तो सिर्फ दो बिन्दियों का फर्क है। यहाँ भी ऐसे है। दो बिन्दी एक स्वयं की, एक बापदादा की। यह दो बिन्दी ही याद रहे तो कम्प्लेन की बजाय कम्पलीट हो जाये। इसलिए आज से यह प्रतिज्ञा अपने आप से करो। बापदादा के सामने तो बहुत प्रतिज्ञाएं की हैं लेकिन आज अपने आपसे प्रतिज्ञा करो कि अब से लेकर सिवाए मणी के और कुछ नहीं देखेंगे और खुद ही माला के मणी बन करके सारे सृष्टि के बीच चमकेंगे। जब खुद मणी बनेंगे तब चमकेंगे। अगर मणी नहीं बनेंगे तो चमक नहीं सकेंगे। जब प्रतिज्ञा करेंगे तब ही प्रत्यक्षता होगी। अपने आपसे पूर्ण रूप से प्रतिज्ञा नहीं कर पाते हो इसलिए प्रत्यक्षता भी पूर्ण रूप से नहीं हो पाती है। प्रत्यक्षता कम निकलने का कारण अपने आपसे प्रतिज्ञा की कमी है। अभी-अभी बोलते हो फिर अभी-अभी भूलते हो। लेकिन अब प्रतिज्ञा के साथ-साथ यह भी निश्चय करो कि प्रत्यक्षता भी लायेंगे तब आपकी प्रतिज्ञा प्रत्यक्षता कर दिखायेगी। पाण्डव सेना है ज्ञानी तू आत्मा और शक्ति सेना है स्नेही तू आत्मा। जो स्नेही है वह योगी है। अभी तो एक-एक पाण्डव के मस्तक में उमंग-उत्साह झलक रहा है। यह उमंग और उत्साह एकरस सदा रहे। मेहनत जो ली है उसका फल दिखाना है। अगर मेहनत ली हुई यहाँ चुक्तू नहीं करेंगे तो फिर सतयुग में वह मेहनत का फल देना पड़ेगा इसलिए जो मेहनत ली है उसे भरकर देना।

हरेक सेवाकेन्द्र से यह समाचार आना चाहिए यह कुमार तो अवतरित होकर के इस पृथ्वी पर पधारे है। ऐसा समाचार जब आये तब समझो कि फल निकल रहा है। अभी स्थिति की आवश्यकता है। जैसे बापदादा लोन लेकर आते है ना। अभी तो दोनों ही लोन लेते है। थोड़े समय के लिये आते है किसलिए? मिलने के लिये। वैसे ही आप सभी भी समझो कि हम लोन लेकर सर्विस के निमित्त आये हैं – थोड़े समय के लिये। जब ऐसी स्थिति होगी तब बाप का प्रभाव दुनिया के सामने आयेगा। दोनों ही हिसाब ठीक किया है। या लेने का किया है, देने का नहीं? 6 मास तक एकरस रहेंगे ना कि 15 दिन के बाद लिखेंगे चाहते तो है लेकिन क्या करे, यह हो गया ऐसी कोई भी कम्पलेन नहीं आये। फिर तो दीदी का काम हल्का हो जायेगा। आप खुद भारी होंगे तो सारा कार्य भारी हो जायेगा। बापदादा की आशा कहे वा शुद्ध संकल्प कहे यही रहता है और रहेगा ही की एक-एक नम्बरवन हो। लेकिन सारे कल्प के अन्दर जो अब की स्थिति बनायेंगे वह तो अब के हिसाब से नम्बरवन है ना। जो वास्तविक सम्पूर्ण स्टेज है। इसके लिये कह रहे है। सभी यही लक्ष्य रखे कि हम नम्बरवन जायेंगे। यह नहीं सोचना कि सभी कैसे नम्बरवन जोयेंगे। इसमें महादानी नहीं बनना है। दो बातें मुख्य याद रखना है कि एक तो मणी को देखना, देह रूपी सांप को न देखना। और दूसरी बात अपने को अवतरित समझो। इस शरीर में अवतरित होकर कार्य करना है। और एक स्लोगन सदा याद रखना कि जो बापदादा कहेंगे, जो करायेंगे, जैसे चलायेंगे, वैसे ही करेंगे, चलेंगे, बोलेगे, देखेंगे। यह है पाण्डव सेना का मुख्य स्लोगन। जो कहेंगे वे सोचेंगे और कुछ सोचना नहीं है। इन आँखों से और कुछ देखना नहीं है। आखें भी दे दी ना। पूरे परवाने हो ना। परवाने को शमा बिगर और कुछ देखने में आता है क्या? आपकी आखें और क्यों देखती? जब और कुछ देखते हैं तो धोखा देती है। अपने को धोखा न दो। इसके लिए परवानों को सिवाए शमा के और किसी को नहीं देखना है। सम्पूर्ण अर्थात् पूरा परवाना हैं। यह है छाप। रिजल्ट तो अच्छी है लेकिन उसको अविनाशी रखना है। जब जैसे चाहे वैसी स्थिति बना सके। यह मन को ड्रिल करानी है। यह जरूर प्रैक्टिस करो। एक सेकेण्ड में आवाज में, एक सेकेण्ड में फिर आवाज से परे। एक सेकेण्ड में सर्विस के संकल्प में आये और एक सेकेण्ड में संकल्प से परे स्वरूप में स्थित हो जाये। इस ड्रिल की बहुत आवश्यकता है। ऐसे नहीं कि शारीरिक भान से निकल ही न सके। एक सेकेण्ड में कार्य प्रति शारीरिक भान में आये फिर एक सेकेण्ड में अशरीरी हो जाये, जिसकी यह ड्रिल पक्की होगी वह सभी परिस्थितियों का सामना कर सकते है। जैसे शारीरिक ड्रिल सुबह को कराई जाती है वैसे यह अव्यक्त ड्रिल भी अमृतवेले विशेष रूप से करना है। करना तो सारा दिन है लेकिन विशेष प्रैक्टिस करने का समय अमृतवेले है। जब देखो बुद्धि बहुत बिजी है तो उसी समय यह प्रैक्टिस करो। परिस्थिति में होते हुए भी हम अपनी बुद्धि को न्यारा कर सकते है। लेकिन न्यारे तब हो सकेंगे जब जो भी कार्य करते हो वह न्यारी अवस्था में होकर करेंगे। अगर उस कार्य में अटैचमेंट होगी तो फिर एक सेकेण्ड में डिटैच नहीं होंगे। इसलिए यह प्रैक्टिस करो। कैसी भी परिस्थिति हो। क्योंकि फाइनल पेपर अनेक प्रकार के भयानक और न चाहते हुए भी अपने तरफ आकर्षित करने वाली परिस्थितियों के बीच होंगे। उनकी भेट में जो आजकल की परिस्थितियाँ है वह कुछ नहीं है। जो अन्तिम परिस्थिति आने वाली है, उन परिस्थितियों के बीच पेपर होना है। इसकी तैयारी पहले से करनी है। इसलिए जब अपने को देखो कि बहुत बिजी हूँ, बुद्धि बहुत स्कूल कार्य में बिजी है, चारों ओर सरकमस्टान्सेज अपने तरफ खैंचने वाली है तो ऐसे समय पर यह अभ्यास करो। तब मालूम पड़ेगा कहाँ तक हम ड्रिल कर सकते है। यह भी बात बहुत आवश्यक है। इसी ड्रिल में रहते रहेंगे तो सफलता को पायेंगे। एक-एक सबजेक्ट की नम्बर होती है। मुख्य तो यही है। इसमें अगर अच्छे हैं तो नम्बर आगे ले सकते हैं। अगर इस सबजेक्ट में नम्बर कम है तो फाइनल नम्बर आगे नहीं आ सकते। इसलिए सुनाया था कि ज्ञानी तू आत्मा के साथ में स्नेही भी बनना है। जो स्नेही होता है वह स्नेह पाता है। जिससे ज्यादा स्नेह होता है। तो कहते है यह तो सुध-बुध ही भूल जाते है। सुध-बुध का अर्थ ही है अपने स्वरुप की जो स्मृति रहती है वह भी भूल जाते है। बुद्धि की लगन भी उसके सिवाए कहाँ नहीं हो। ऐसे जो रहने वाले होते उनको कहा जाता है स्नेही।

इस ग्रुप का विशेष गुण यही है कि सभी बातों को सीखने और धारण करने और आगे के लिए भी अपने को उसमें चलाने के लिये चात्रक है। चात्रक बने हो लेकिन साथ में चरित्रवान भी बनना है। चात्रक है, यह इस ग्रुप की विशेषता है। लेकिन चात्रक का कार्य होता है उसके प्यासी रहना। यह चित्र चरित्र में देखे तब फिर चात्रकों के साथ में पात्र भी कहेंगे। अभी चात्रक तो है। फिर रिजल्ट आने बाद दो टाइटिल मिलेंगे, अभी चात्रक हैं। फिर विजय माला के नजदीक आने के पात्र भी होंगे। जो स्लोगन सुनाया और जो भट्ठी की छाप सुनाई उनको कायम रखेंगे तो दोनों ही गुण आ जायेंगे।

परखने की शक्ति को तीव्र बनाओ

प्रश्न और उत्तर:

प्रश्न 1:
आज विशेष क्या देख रहे हैं?
उत्तर:
आज स्वयं की स्थिति और दूसरों के गुणों को परखने की क्षमता देख रहे हैं।

प्रश्न 2:
परिवर्तन को कैसे पहचान सकते हैं?
उत्तर:
परिवर्तन को ध्यान, मन की शुद्धता, और व्यवहार में आई स्थिरता से पहचाना जा सकता है।

प्रश्न 3:
इस ग्रुप में प्रश्न का उत्तर देने में होशियार कौन है?
उत्तर:
जो योग में स्थित रहते हैं और जिनकी बुद्धि व्यर्थ संकल्पों से मुक्त है, वही उत्तर देने में होशियार हैं।

प्रश्न 4:
देखने और परखने की शक्ति कहाँ तक पहुँची है?
उत्तर:
यह बुद्धि की सफाई, योग की गहराई और आत्मिक स्थिति पर निर्भर है।

प्रश्न 5:
योग की स्थिति में निरंतर रहने वाला कौन है?
उत्तर:
वही, जिसकी बुद्धि एक के याद में स्थिर रहती है और व्यर्थ संकल्पों से दूर है।

प्रश्न 6:
दिव्य गुणों की धारणा में दिव्यगुण मूर्त कौन नजर आता है?
उत्तर:
वही, जो अपने रूप में आत्मिक स्थिति को धारण करता है और दूसरों के मणी स्वरूप को देखता है।

प्रश्न 7:
परखने की शक्ति को तीव्र बनाने का मुख्य साधन क्या है?
उत्तर:
बुद्धि की सफाई, एक के साथ संबंध और याद की गहराई।

प्रश्न 8:
परखने का तरीका क्या होना चाहिए?
उत्तर:
आत्मिक स्थिति में स्थित रहकर वर्तमान और भविष्य दोनों को समझने का प्रयास करना।

प्रश्न 9:
सांप को देखकर मणी को देखने का क्या अर्थ है?
उत्तर:
शारीरिक रूप को नहीं, बल्कि आत्मा के प्रकाश को देखना।

प्रश्न 10:
विजयी बनने के लिए क्या मुख्य बात ध्यान रखनी चाहिए?
उत्तर:
बुद्धि को व्यर्थ से मुक्त रखकर हर परिस्थिति में स्थिर और शक्तिशाली रहना।

प्रश्न 11:
एक सेकंड में अशरीरी होने की ड्रिल का महत्व क्या है?
उत्तर:
यह ड्रिल मन और बुद्धि को परिस्थितियों से न्यारा रखने और स्थिरता बनाए रखने में मदद करती है।

प्रश्न 12:
प्रतिज्ञा को कैसे मजबूत बनाएं?
उत्तर:
बुद्धि में दृढ़ता और आत्मा में स्नेह और समर्पण की भावना बनाए रखें।

यह अभ्यास और समझ ही परखने की शक्ति को तीव्र बनाते हैं, जो जीवन में हर चुनौती का समाधान बनता है।

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