Avyakta Murli”18-01-1971

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं) 

YouTube player

अव्यक्त स्थिति द्वारा सेवा

आज आवाज़ से परे जाने का दिन रखा हुआ है। तो बापदादा भी आवाज़ में कैसे आयें? आवाज़ से परे रहने का अभ्यास बहुत आवश्यक है। आवाज़ में आकर जो आत्माओं की सेवा करते हो, उससे अधिक आवाज़ से परे स्थिति में स्थित होकर सेवा करने से सेवा का प्रत्यक्ष प्रमाण देख सकेंगे। अपनी अव्यक्ति स्थिति होने से अन्य आत्माओं को भी अव्यक्त स्थिति का एक सेकेण्ड में अनुभव कराया तो वह प्रत्यक्षफल-स्वरूप आपके सम्मुख दिखाई देगा। आवाज़ से परे स्थिति में स्थित हो फिर आवाज़ में आने से वह आवाज़, आवाज़ नहीं लगेगा। लेकिन उस आवाज़ में भी अव्यक्ति वायब्रेशन का प्रवाह किसी को भी बाप की तरफ आकर्षित करेगा। वह आवाज़ सुनते हुये उन्हों को आपकी अव्यक्त स्थिति का अनुभव होने लगेगा। जैसे इस साकार सृष्टि में छोटे बच्चों को लोरी देते हैं, वह भी आवाज़ होता है लेकिन वह आवाज़, आवाज़ से परे ले जाने का साधन होता है। ऐसे ही अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर आवाज़ में आओ तो आवाज़ से परे स्थिति का अनुभव करा सकते हो। एक सेकेण्ड की अव्यक्त स्थिति का अनुभव आत्मा को अविनाशी सम्बन्ध में जोड़ सकता है। ऐसा अटूट सम्बन्ध जुड़ जाता है जो माया भी उस अनुभवी आत्मा को हिला नहीं सकती। सिर्फ आवाज़ द्वारा प्रभावित हुई आत्माएं अनेक आवाज़ सुनने से आवागमन में आ जाती हैं। लेकिन अव्यक्त स्थिति में स्थित हुए आवाज़ द्वारा अनुभवी आत्मायें आवागमन से छूट जाती हैं। ऐसी आत्मा के ऊपर किसी भी रूप का प्रभाव नहीं पड़ सकता। सदैव अपने को कम्बाइन्ड समझ, कम्बाइन्ड रूप की सर्विस करो अर्थात् अव्यक्त स्थिति और फिर आवाज़।

दोनों की कम्बाइन्ड रूप की सर्विस वारिस बनायेगी। सिर्फ आवाज़ द्वारा सर्विस करने से प्रजा बनती जा रही है। तो अब सर्विस में नवीनता लाओ। (इस प्रकार की सर्विस करने का साधन कौनसा है?) जिस समय सर्विस करते हो उस समय मंथन चलता है, लेकिन ‘याद में मगन’ — यह स्टेज मंथन की स्टेज से कम होती है। दूसरे के तरफ ध्यान अधिक रहता है, अपनी अव्यक्त स्थिति की तरफ ध्यान कम रहता है। इस कारण ज्ञान के विस्तार का प्रभाव पड़ता है लेकिन लगन में मगन रहने का प्रभाव कम दिखाई देता है। रिजल्ट में यह कहते हैं कि ज्ञान बहुत ऊंचा है। लेकिन मगन रहना है — यह हिम्मत नहीं रखते। क्योंकि अव्यक्त स्थिति द्वारा लगन का अर्थात् सम्बन्ध जोड़ने का अनुभव नहीं किया है। बाकी थोड़ा कणा-दाना लेने से प्रजा बन जाती है। अब के सम्बन्ध जुटने से ही भविष्य सम्बन्ध में आयेंगे, नहीं तो प्रजा में। तो नवीनता यही लानी है, जो एक सेकेण्ड में अव्यक्ति अनुभव द्वारा सम्बन्ध जोड़ना है। सम्बन्ध और सम्पर्क — दोनों में फर्क है। सम्पर्क में आते हैं, सम्बन्ध में नहीं आते। समझा?

आज के दिन अव्यक्त स्थिति का अनुभव किया है। यही अनुभव सदाकाल कायम रखते रहो तो औरों को भी अनुभव करा सकेंगे। आजकल वाणी व अन्य साधन अनेक प्रकार से अनेकों द्वारा आत्माओं को प्रभावित कर रहे हैं। लेकिन अनुभव सिवाय आप लोगों के अन्य कोई नहीं कर सकते हैं, न करा सकते हैं। इसलिये आज के समय में यह अनुभव कराने की आवश्यकता है। सभी के अन्दर अभिलाषा भी है, थोड़े समय में अनुभव करने के इच्छुक हैं। सुनने के इच्छुक नहीं हैं। अनुभव में स्थित रह अनुभव कराओ। सभी का स्नेह वतन में मिला। सुनाया था – तीन प्रकार की याद और स्नेह वतन में पहुँची। वियोगी, योगी और स्नेही। तीनों ही रूप का याद-प्यार बापदादा को मिला। रिवाइज कोर्स के वर्ष भी समाप्त होते जा रहे हैं। वर्ष समाप्त होने से स्टूडेंट को अपनी रिजल्ट निकालनी होती है। तो इस वर्ष की रिजल्ट में हरेक को अपनी कौनसी रिजल्ट निकालनी है? इसकी मुख्य चार बातें ध्यान में रखनी हैं। एक — अपने में सर्व प्रकार की श्रेष्ठता कितनी है? दूसरा — सम्पूर्णता में वा सर्व के सम्बन्ध में समीपता कितनी आई है? तीसरा– अपने में वा दूसरों के सम्बन्ध में सन्तुष्टता कहाँ तक आई है? और चौथा – अपने में शूरवीरता कहाँ तक आई है? यह चार बातें अपने में चेक करनी हैं। आज के दिन अपनी रिजल्ट को चेक करने का कर्त्तव्य पहले करना है। आज का दिवस सिर्फ स्मृति-दिवस नहीं मनाना लेकिन आज का दिवस समर्थी बढ़ाने का दिवस मनाना। आज का दिवस स्थिति वा स्टेज ट्रान्सफर करने का दिवस समझो। जैसे आजकल ट्रान्सपेरेंट चीजें अच्छी लगती हैं ना। वैसे अपने को भी ऐसी ट्रान्सपेरेंट स्थिति में ट्रान्सफर करना है। आज के दिन का महत्व समझा? ऐसे ट्रान्सपेरेंट हो जाओ जो आपके शरीर के अन्दर जो आत्मा विराजमान है वह स्पष्ट सभी को दिखाई दे। आपका आत्मिक स्वरूप उन्हों को अपने आत्मिक स्वरूप का साक्षात्कार कराये। इसको ही कहते हैं अव्यक्ति वा आत्मिक स्थिति का अनुभव कराना।

आज याद के यात्रा की रिजल्ट क्या थी? स्नेह स्वरूप थी या शक्ति स्वरूप थी? यह स्नेह भी शक्ति का वरदान प्राप्त कराता है। तो आज स्नेह का वरदान प्राप्त करने का दिवस है। एक होती है पुरूषार्थ से प्राप्ति दूसरी होती है वरदान से प्राप्ति। तो आज का दिन पुरूषार्थ से शक्ति प्राप्त करने का नहीं लेकिन स्नेह द्वारा शक्ति का वरदान प्राप्त करने का दिवस है। आज के दिन को विशेष वरदान का दिन समझना। स्नेह द्वारा कोई भी वरदाता से वर प्राप्त हो सकता है। समझा पुरूषार्थ द्वारा नहीं लेकिन स्नेह द्वारा। किसने कितना वरदान लिया है वह हरेक के ऊपर है। लेकिन स्नेह द्वारा सभी समीप आकर वरदान प्राप्त कर सकते हैं। वरदान के दिवस को जितना जो समझ सके उतना ही पा सकता है। कैच करने वाले की कमाल होती है। आज के वरदान दिवस पर जो जितना कैच कर सके उन्होंने उतना ही वरदान प्राप्त किया। जैसे पुरूषार्थ करते हो एक बाप के सिवाय और कोई याद आकर्षित न करे ऐसे आज का दिन सहज याद का अनुभव किया।

अव्यक्त स्थिति द्वारा सेवा

प्रश्न 1: आवाज़ से परे स्थिति में स्थित रहने का क्या लाभ है?
उत्तर: आवाज़ से परे स्थिति में स्थित रहने से आत्मा अपनी अव्यक्त स्थिति का अनुभव कर सकती है। यह स्थिति आत्मा को अविनाशी संबंध में जोड़ देती है, जिससे माया का कोई भी प्रभाव उस आत्मा पर नहीं पड़ता। इस स्थिति में रहकर की गई सेवा अधिक प्रभावशाली होती है, क्योंकि यह आत्माओं को प्रत्यक्ष अनुभव कराती है।

प्रश्न 2: सेवा में नवीनता लाने का कौन सा तरीका बताया गया है?
उत्तर: सेवा में नवीनता लाने के लिए अव्यक्त स्थिति और आवाज़ दोनों के संयुक्त रूप से सेवा करने का तरीका बताया गया है। सिर्फ आवाज़ से सेवा करने से आत्माएँ प्रजा बनती जाती हैं, लेकिन अव्यक्त स्थिति के अनुभव से सेवा करने से आत्माएँ वारिस बन सकती हैं।

प्रश्न 3: सेवा के समय कौन सी अवस्था अधिक महत्वपूर्ण मानी गई है?
उत्तर: सेवा के समय ‘याद में मगन’ रहने की अवस्था अधिक महत्वपूर्ण मानी गई है। सिर्फ मंथन करने से ज्ञान का विस्तार होता है, लेकिन ‘याद में मगन’ रहने से आत्मा में लगन उत्पन्न होती है और अविनाशी संबंध जुड़ता है।

प्रश्न 4: अनुभव द्वारा सेवा करने का क्या महत्व है?
उत्तर: आजकल आत्माएँ सिर्फ सुनने की इच्छुक नहीं हैं, वे अनुभव करना चाहती हैं। अनुभव द्वारा सेवा करने से आत्मा स्थायी परिवर्तन कर सकती है और आवागमन से मुक्त हो सकती है।

प्रश्न 5: वर्ष समाप्त होने पर आत्मा को किन चार बातों की जांच करनी चाहिए?
उत्तर:

  1. अपने में सर्व प्रकार की श्रेष्ठता कितनी है?
  2. सम्पूर्णता और सर्व के संबंध में समीपता कितनी आई है?
  3. अपने में या दूसरों के संबंध में संतुष्टता कहाँ तक आई है?
  4. अपने में शूरवीरता कहाँ तक आई है?

प्रश्न 6: आज का दिवस किस रूप में मनाना चाहिए?
उत्तर: आज का दिवस सिर्फ स्मृति-दिवस नहीं बल्कि अपनी स्थिति को समर्थ बनाने का दिवस है। इसे अपनी स्टेज को ट्रांसफर करने का दिवस समझना चाहिए, ताकि आत्मा ट्रांसपेरेंट होकर अपने आत्मिक स्वरूप का अनुभव करा सके।

प्रश्न 7: आज की याद यात्रा की क्या विशेषता रही?
उत्तर: आज की याद यात्रा में आत्माएँ स्नेह स्वरूप थीं या शक्ति स्वरूप। स्नेह भी शक्ति का वरदान दिला सकता है। आज का दिन पुरुषार्थ से शक्ति प्राप्त करने का नहीं, बल्कि स्नेह द्वारा शक्ति का वरदान प्राप्त करने का दिन है।

प्रश्न 8: वरदान दिवस पर विशेष क्या ध्यान देना चाहिए?
उत्तर: वरदान दिवस पर आत्मा को यह समझना चाहिए कि जितना वह कैच कर सकती है, उतना ही वरदान प्राप्त कर सकती है। आज का दिन सहज याद का अनुभव करने का दिन है, जिसमें आत्मा को एक बाप के सिवाय और कोई आकर्षित न करे।

अव्यक्त स्थिति, सेवा, आवाज़ से परे, आत्मिक अनुभव, दिव्य वाइब्रेशन, याद में मगन, अविनाशी संबंध, आत्मा की स्थिति, कम्बाइन्ड रूप, योग शक्ति, ज्ञान और लगन, सेवा की नवीनता, अनुभव द्वारा सेवा, स्मृति दिवस, स्टेज ट्रांसफर, ट्रांसपेरेंट स्थिति, स्नेह और शक्ति, वरदान दिवस, पुरूषार्थ और वरदान, आत्मिक स्वरूप, योगी जीवन, रिवाइज कोर्स, आत्मा की श्रेष्ठता, संतुष्टता, शूरवीरता, मायाजीत अवस्था, सहज योग, स्नेह वतन, दिव्य संकल्प, आत्मिक यात्रा,

Avyakt stage, service, beyond sound, spiritual experience, divine vibrations, engrossed in remembrance, imperishable relationship, state of the soul, combined form, yoga power, knowledge and dedication, newness of service, service through experience, remembrance day, stage transfer, transparent stage, love and power, blessing day, effort and blessing, spiritual form, Yogi life, revise course, superiority of soul, contentment, bravery, state of being conqueror of Maya, Sahaj yoga, land of love, divine resolution, spiritual journey,