Avyakta Murli”21-01-1971(03)

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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प्रजा तो त्रेता के अन्त वाली चाहिए।

द्वापर युग के लिए भक्त चाहिए। भक्त भी बनाओ और प्रजा भी बनाओ। अब तो ऐसा समय आयेगा — देते जाओ, झोली भरते जाओ। इतनी तड़पती हुई आत्मायें आयेंगी, उन्हें बूँद भी देंगे तो खुश हो जायेंगी। ऐसा समय अब आने वाला है। जैसे वह सुनाते हैं मिनट मोटर (सिक्के पर छाप की मशीन), ऐसी मशीनरी चलेगी। दृष्टि, वृत्ति, स्मृति, वाणी सभी से सर्विस चलेगी। आपका घर भी आश्रम है। उनमें से जो भी निकलेंगे वह स्वयं सेन्टर पर जाने के लिए रूक नहीं सकेंगे। इन्होंने तो सर्विस की स्थापना में धक्के खाये हैं। आप लोग तो बने-बनाये पर आये हो। इन्होंने मेहनत कर मक्खन निकाला, आप खाने पर आ गये लेकिन मक्खन खाने वाले कितने शक्तिशाली होने चाहिए? सदैव यह ख्याल रखो कि जो भी आत्मायें सम्पर्क में आती हैं उनको जो आवश्यकता है वह मिले। रोटी की आवश्यकता वाले को पानी दे दो तो… किसको मान देना पडता है, उसको कहो जाकर दरी पर बैठो तो कैसे बैठेगा! कोई को दरी पर बिठाकर कोर्स कराया जाता है कोई को सोफे पर। अभी गवर्नर आया तो क्या किया? रिगार्ड दिया ना। अगर रिवाजी रीति से चलाओ तो चल न सके। कहाँ रिगार्ड देकर लेना पड़ता है। सभी को एक जैसा डोज़ देने से बीमार भी पड़ जाते हैं। आजकल डाक्टर्स के पास पेशेन्टस जाते हैं तो लम्बा कोर्स नहीं चाहते हैं। आया इन्जेक्शन लगाया और खलास। यहाँ भी ऐसे है, आया और उनको उड़ाया। ऐसी सर्विस करते हो? स्वभाव से भी सर्विस कर सकते हो। ड्रामा अनुसार किसको स्वभाव भी अच्छा मिलता है तो उस स्वभाव की भी मदद है। सहेली बनाकर किसको अनुभव से भी प्रभावित कर सकते हैं। छोड़ न दो कि यह ज्ञान सुनते नहीं हैं। पहले सम्पर्क में लाकर फिर सम्बन्ध में लाओ। स्वभाव से भी किसको समीप ला सकते हो। इसका प्रयोग करो।

तुम सभी विश्व के कल्याण के आधारमूर्त हो। अपने को आधारमूर्त समझेंगे तो बहुतों का उद्धार कर सकेंगे। जो ऐसी सर्विस करते हैं वह उस खाते में, जैसे बैंक में भिन्न-भिन्न खाते होते हैं, जो जो जिसकी सर्विस करने के निमित्त बनते हैं वह उस समय ऐसे ही खाते में जमा होते हैं। फाउन्डेशन जितना गहरा डालेंगे उतना मज़बूत होगा। फाउन्डेशन तो डालते हैं लेकिन गहराई में डालने से, जैसे सुनाया कि सम्पर्क में तो लाया है परन्तु सम्बन्ध में लाना है। जो अनेकों को सम्बन्ध में लाता है वह नज़दीक सम्बन्ध में आयेगा। जो अनेकों को सम्पर्क में लाते हैं वह वहाँ भी नज़दीक सम्पर्क में आयेगा।

प्रजा तो त्रेता के अन्त वाली चाहिए

प्रश्न और उत्तर

  1. प्रश्न: द्वापर युग के लिए किन आत्माओं की आवश्यकता होती है?
    उत्तर: द्वापर युग के लिए भक्त आत्माओं की आवश्यकता होती है, जो भक्ति मार्ग पर चलते हैं और परमात्मा की याद में रहते हैं।
  2. प्रश्न: भविष्य में कैसी आत्माएँ अधिक संख्या में आएंगी?
    उत्तर: तड़पती हुई आत्माएँ आएंगी, जो थोड़ी भी अनुभूति या ज्ञान की बूँद पाकर संतुष्ट हो जाएँगी।
  3. प्रश्न: सेवा की कौन-कौन सी विधियाँ होंगी?
    उत्तर: दृष्टि, वृत्ति, स्मृति, वाणी सभी से सेवा चलेगी, जिससे आत्माओं को साक्षात्कार और शक्ति मिलेगी।
  4. प्रश्न: पुराने सेवाधारियों और नए सेवाधारियों में क्या अंतर है?
    उत्तर: पुराने सेवाधारियों ने सेवा की स्थापना में बहुत धक्के खाए हैं और मेहनत करके मक्खन निकाला है, जबकि नए सेवाधारी बने-बनाए मार्ग पर आए हैं, इसलिए उन्हें अधिक शक्तिशाली बनना चाहिए।
  5. प्रश्न: आत्माओं को उनकी आवश्यकता अनुसार सेवा कैसे दी जानी चाहिए?
    उत्तर: प्रत्येक आत्मा को उसकी जरूरत के अनुसार सेवा देनी चाहिए, जैसे भूखे को भोजन और प्यासे को पानी। सभी को एक जैसी शिक्षा देने से वे स्वीकार नहीं करेंगे।
  6. प्रश्न: आजकल आत्माएँ लंबा कोर्स क्यों नहीं चाहतीं?
    उत्तर: आजकल आत्माएँ त्वरित परिणाम चाहती हैं, जैसे डॉक्टर से जाकर तुरंत इंजेक्शन लगवाना, इसलिए उन्हें झटपट अनुभव कराकर आगे बढ़ाना आवश्यक है।
  7. प्रश्न: स्वभाव से भी सेवा कैसे हो सकती है?
    उत्तर: किसी के स्वभाव में मधुरता, स्नेह और सहयोग हो तो वह अपने स्वभाव के आधार पर भी आत्माओं को समीप ला सकता है और उन्हें ज्ञान मार्ग पर प्रेरित कर सकता है।
  8. प्रश्न: “सम्पर्क में लाना” और “सम्बन्ध में लाना” में क्या अंतर है?
    उत्तर: सम्पर्क में लाने का अर्थ है किसी को ज्ञान से परिचित कराना, जबकि सम्बन्ध में लाने का अर्थ है उसे गहराई से ज्ञान के मार्ग पर स्थिर करना।
  9. प्रश्न: विश्व कल्याण के लिए स्वयं को किस रूप में देखना चाहिए?
    उत्तर: स्वयं को “आधारमूर्त” समझना चाहिए, क्योंकि आधारमूर्त आत्माएँ ही विश्व के उद्धार में योगदान दे सकती हैं।
  10. प्रश्न: गहरी नींव (फाउंडेशन) डालने का क्या महत्व है?
    उत्तर: जितनी गहरी नींव होगी, उतना ही ज्ञान का आधार मजबूत होगा, जिससे अधिक आत्माएँ स्थिरता से जुड़ सकेंगी और उनका आध्यात्मिक उत्थान होगा।
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