Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
रूहानी जज़ और जिस्मानी जज़
सदा सफलतामूर्त्त बनाने वाले, शक्तियों से सम्पन्न कर मास्टर सर्वशक्तिवान् बनाने वाले, सर्व धारणायें कराके धारणा मूर्त्त बनाने वाले, सुप्रिम जस्टिस प्यारे बाबा बोले:-
अपने को जस्टिस समझते हो? क्या अपने आपको और सर्व- आत्माओं को जज़ कर सकते हो? वह जस्टिस तो सिर्फ बोल और कर्म को ही जज़ करते हैं लेकिन आप तो संकल्प को भी जज़ कर सकते हो। ऐसे जस्टिस जो अपने और दूसरी आत्माओं के भी संकल्प को जज़ कर सकें व परख सकें, ऐसे बन गये हो? ऐसा जस्टिस कौन बन सकता है? जिसकी बुद्धि का काँटा एकाग्र हो। जैसे तराजू की सही परख तब होती है जब काँटा एकाग्र हो जाता है, हलचल बन्द हो जाती है और दोनों तरफ समान हो जाती है। ऐसे ही जिसका बुद्धि-योग रूपी काँटा एकाग्र है, जिसकी बुद्धि में कोई हलचल नहीं और निर्विकल्प स्टेज व स्थिति है और जिसके बोल और कर्म में, लव और लॉ में, और स्नेह और शक्ति में अर्थात् इन दोनों का बैलेन्स है, तो ऐसा जस्टिस यथार्थ जज़मेन्ट दे सकता है। ऐसी आत्मा सहज ही किसी को परख सकती है। क्या ऐसी परखने की शक्ति व जज़मेन्ट करने की शक्ति अपने में अनुभव करते हो?
लौकिक जज़ अगर जज़मेन्ट राँग करते हैं तो किसी आत्मा का एक जन्म व्यर्थ गँवा सकते हैं या उसका कुछ समय व्यर्थ गँवा सकते हैं अथवा उसको कई प्रकार के नुकसान पहुँचाने के निमित्त बन सकते हैं, लेकिन आप रूहानी जस्टिस अगर किसी को परख न सकें तो आत्मा के अनेक जन्मों की तकदीर को नुकसान पहुँचाने के निमित्त बन जायेंगे। क्या अपने ऊपर ऐसी जिम्मेवारी महसूस करते हो? जब आप लोग सर्व-आत्माओं के कल्याण के निमित्त बनते हो, अनेक आत्माओं का बाप से मिलन मनाने के निमित्त बनते हो, तो ऐसी आत्माओं को अपने ऊपर कितनी बड़ी जिम्मेवारी महसूस करनी चाहिए? यदि कोई तड़पती हुई प्यासी आत्मा आपके सामने आये, उनकी तड़प या प्यास को समाप्त कर उसकी प्यास मिटाने के निमित्त कौन हैं? बाप या आप? बाप तो बैकबोन हैं, लेकिन निमित्त शक्ति सेना और पाण्डव सेना ही है। तो निमित्त बनने वालों के ऊपर इतनी बड़ी जिम्मेवारी है जो किसी भी आत्मा को किसी भी बात से या किसी प्रॉपर्टी से भी वंचित नहीं कर सकते – क्या ऐसे सर्व के महादानी और वरदानी बने हो? क्या एक सेकेण्ड में किसी को परख सकते हो? अगर किसी को आवश्यकता हो शान्ति की और आप उसको सुख का रास्ता बताओ (परखने की शक्ति कम होने के कारण) तो भी वह सन्तुष्ट नहीं होगा। इसलिये हरेक की प्राप्ति की इच्छा को परखने वाला ही सम्पूर्ण और यथार्थ जज़मेन्ट कर सकता है। ऐसी सर्व की इच्छाओं को जानने वाले की विशेष क्वॉलिफिकेशन्स कौन-सी होगी कि जिससे बुद्धि रूपी काँटा एकाग्र हो? लव और लॉ का बैलेन्स हो, उसके लिये मुख्य विशेष धारणा क्या होगी? (सभी ने बताया) बातें तो बहुत अच्छी-अच्छी सुनाई। इन सभी का सार हुआ कि स्वयं जो ‘इच्छा मात्रम् अविद्या’ की स्थिति में स्थित होगा, वही किसी की भी इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है।
अगर स्वयं में ही कोई इच्छा रही होगी तो वह दूसरे की इच्छाओं को पूर्ण नहीं कर सकते। ‘इच्छा मात्रम् अविद्या’ की स्टेज तब रह सकती है जब स्वयं युक्ति-युक्त, सम्पन्न, नॉलेज़फुल और सदा सक्सेसफुल अर्थात् सफलता-मूर्त्त होंगे। जो स्वयं सफलता-मूर्त्त नहीं होगा तो वह अनेक आत्माओं में संकल्प को भी सफल नहीं कर सकता। इसलिये जो सम्पन्न नहीं तो उसकी इच्छायें ज़रूर होंगी क्योंकि सम्पन्न होने के बाद ही ‘इच्छा मात्रम् अविद्या’ की स्टेज आती है। तब कोई अप्राप्त वस्तु नहीं रह जाती तो ऐसी स्टेज को ही ‘कर्मातीत’ अथवा ‘फरिश्तेपन’ की स्टेज कहा जाता है। ऐसी स्थिति वाला ही हर आत्मा को यथार्थ परख सकता है और दूसरों को प्राप्ति करा सकता है। तो ऐसी स्टेज अपने समीप अनुभव करते हो या कि अभी तक यह स्टेज बहुत दूर है? सामने है या समीप है? इतने समीप है कि अभी-अभी चाहो तो वहाँ पहुंच जाओ अथवा उसको भी अभी समीप ला रहे हो? विनाश की ताली व सीटी बजे और आप अपनी स्टेज पर स्थित हो जाओ जैसे कि सिंहासन पर समीप आ गये और सिर्फ चढ़कर बैठना ही बाकी रह जाये अर्थात् सीटी बजे और सीट पर बैठ जाओ।
जैसे चेयर्स का खेल होता है ना? दौड़ते रहते हैं, सीटी बजी और कुर्सी पर बैठ गये। जिसने कुर्सी ली वह विजयी, नहीं तो हार। यह भी कुर्सी का खेल चल रहा है। तो इसमें आप क्या समझते हो? अभी तीन तालियाँ बजेंगी और तीसरी पर चेयर पर बैठ जाओ – क्या इतनी तैयारी है? लेकिन ये तीन तालियाँ जल्दी-जल्दी बजती हैं, उनके बीच में ज्यादा टाईम नहीं होता है। तो क्या इतनी तैयारी है कि जो तीसरी पर झट चेयर पर बैठ जाओ? ऐसी गॉरन्टी है ना? ‘कोशिश’ शब्द कहना तो मानो कि शक है कोई। कल्प पहले सीट पर नहीं बैठे थे क्या? कोई-न-कोई कुर्सी लेना-वह कोई बड़ी बात नहीं है। कोई-न-कोई कुर्सी तो प्रजा को भी मिलेगी। जब सोलह हज़ार को सीट मिलेगी तो 9 लाख वालों को भी सीट मिलेगी। लेकिन फर्स्ट सीट के लिये सदा अपने को एवर-रेडी बनाना पड़े। अगर निमित्त बनने वाले ही सेकेण्ड स्टेज तक पहुंचे तो जिनकी आप निमित्त बनेंगी वह कहाँ तक पहुंचेंगे? इसलिये जो अपने को विश्व-कल्याणकारी समझ कर चल रहे हैं, उनको तो सदैव ताली अथवा सीटी का इन्तजार करना चाहिए। इन्तज़ार वह करेगा जिसका पहले से ही अपना इन्तज़ाम हुआ पड़ा होगा। अगर इन्तज़ाम नहीं है तो वह इन्तज़ार नहीं कर सकता तो पहले से ही इन्तज़ाम करना-यह है महारथियों की व महावीरों की निशानी। तो अभी एवर-रेडी बनने के लिये अभी से ही अपनी चैकिंग करो।
जैसे सारी नॉलेज का रिवाइज़ कोर्स कर रहे हो, वैसे ही अपनी प्राप्ति व पुरूषार्थ का चार्ट भी शुरू से रिवाइज़ करके देखो। उसमें मुख्य चार सब्जेक्ट्स हैं। चारों को सामने रखो और हर सब्जेक्ट्स में पास हो उसको देखो। जैसे चार सब्जेक्ट्स हैं — ज्ञान, योग, दैवी गुणों की धारणा और ईश्वरीय सेवा। वैसे ही यहाँ चार सम्बन्ध भी हैं, तीन सम्बन्ध तो स्पष्ट हैं — सत् बाप, सत् शिक्षक और सद्गुरू परन्तु चौथा सम्बन्ध है साजन और सजनी का। यह भी एक विशेष सम्बन्ध है-आत्मा-परमात्मा का मिलन अर्थात् सगाई। यह सम्बन्ध भी पुरूषार्थ को सहज कर देता है। जैसे चार सब्जेक्ट्स हैं, वेसे ही चार सम्बन्ध सामने लाओ और इन चार सम्बन्धों के आधार से मुख्य चार धारणायें हैं। एक तो बाप के सम्बन्ध में-’फरमान वरदार’, शिक्षक के सम्बन्ध में-’इर्मानदार’ और गुरू के सम्बन्ध में-’आज्ञाकारी’ और साजन के सम्बन्ध में-’वफादार।’ जो यह चारों सम्बन्ध और चार विशेष धारणायें इन सभी को रिवाइज करके देखो।
इसके साथ-साथ चार सलोगन्स भी स्मृति में रखो-वह कौन-से? बाबा के सम्बन्ध में सलोगन है-’सन शोज फादर’, अर्थात् सपूत बन सबूत देना है। शिक्षक के रूप में सलोगन है-जब तक जीना है तब तक पढ़ना है, अर्थात् लास्ट घड़ी तक पढ़ना है। यह लक्ष्य अगर मजबूत है तो फिर सर्व प्राप्तियाँ स्वत: ही होती हैं। और गुरू के रूप में सलोगन है-जहाँ बिठाये, जैसे बिठाये, जो सुनाये, जैसे सुनावें, जैसे चलावे और जैसे सुलावे अर्थात् जैसे कि सभी हुकमी हुकम चला रहा है-यह है सद्गुरू का सलोगन। अभी साजन के रूप में क्या सलोगन है-तुम्हीं से बैठूँ, तुम्हीं से खाऊं और तुम्हीं से श्वाँसोंश्वाँस साथ रहूँ। यह है साजन के रूप का सलोगन। यह सभी बातें अपने सामने लाकर अपने पुरूषार्थ को चेक करो। इन सभी को रिवाईज़ करना है।
यह भी चेक करना है कि बहुत समय से और एक-रस अर्थात् लगातार क्या चारों ही सम्बन्ध निभाते रहे हैं या बीच-बीच में कट हुआ है? अगर बीच में कुछ मार्जिन रह गयी है तो बार-बार कटी हुई चीज़ कमजोर होती है। इसलिये अपने जीवन को इन चारों ही बातों के आधार पर रिवाईज़ कर के देखो। इस चैकिंग को करके अपने-आप को परख सकेंगे कि मेरी प्राप्ति व प्रारब्ध क्या है? सूर्यवंशी है या चन्द्रवंशी है? सूर्यवंशी में राजाई फैमिली में हैं या स्वयं महाराजा महारानी बनने वाले हैं? अभी जबकि समय नजदीक है फाइनल पेपर का तो जैसे लौकिक पढ़ाई में भी सभी सब्जेक्ट्स को रिवाइज किया जाता है और एक-एक सबजेक्ट्स को रिवाइज कर अपनी कमी को सम्पन्न करते हैं, इसी प्रकार सभी को अपने पुरूषार्थ को इसी रीति रिवाइज करना है।
रूहानी जज़ और जिस्मानी जज़
प्रश्न 1: रूहानी जज़ कौन होता है?
उत्तर: जो अपने और दूसरों के संकल्पों को परख सके और सही जज़मेन्ट दे सके, वही रूहानी जज़ कहलाता है।
प्रश्न 2: जिस्मानी जज़ किसे कहते हैं?
उत्तर: जो केवल बोल और कर्म को जज़ करता है, लेकिन संकल्पों को नहीं परख सकता, वह जिस्मानी जज़ होता है।
प्रश्न 3: सही जज़मेंट देने के लिए बुद्धि की क्या स्थिति होनी चाहिए?
उत्तर: बुद्धि का काँटा एकाग्र, निर्विकल्प और हलचल-रहित होना चाहिए।
प्रश्न 4: रूहानी जज़ बनने के लिए सबसे महत्वपूर्ण विशेषता क्या है?
उत्तर: लव और लॉ का बैलेन्स होना चाहिए, जिससे आत्मा सहज और यथार्थ जज़मेन्ट कर सके।
प्रश्न 5: रूहानी जज़ की गलती से क्या नुकसान हो सकता है?
उत्तर: यदि रूहानी जज़ सही परख न कर सके, तो आत्मा के अनेक जन्मों की तकदीर प्रभावित हो सकती है।
प्रश्न 6: ‘इच्छा मात्रम् अविद्या’ की स्थिति का क्या अर्थ है?
उत्तर: जब आत्मा में कोई इच्छा न रहे और वह सम्पन्न, नॉलेज़फुल व सफलता मूर्त हो जाए।
प्रश्न 7: कर्मातीत स्थिति प्राप्त करने के लिए कौन-सी मुख्य धारणा आवश्यक है?
उत्तर: स्वयं को सफलता-मूर्त बनाना और हर स्थिति में एवर-रेडी रहना।
प्रश्न 8: चार मुख्य विषय कौन-से हैं जिन पर चेकिंग करनी चाहिए?
उत्तर: ज्ञान, योग, दैवी गुणों की धारणा और ईश्वरीय सेवा।
प्रश्न 9: चार मुख्य ईश्वरीय सम्बन्ध कौन-से हैं?
उत्तर: बाप, शिक्षक, सद्गुरू और साजन।
प्रश्न 10: फाइनल पेपर की तैयारी के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर: चारों विषयों और चारों सम्बन्धों का रिवाइज़ कर अपनी स्थिति को परखना चाहिए।
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