Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
रूहानी जज़ और जिस्मानी जज़
कैसे स्वयं का जस्टिस बनो अभी वह तरीका सुना रहे हैं। जब स्वयं को जज करना आ जायेगा तो फिर दूसरों को भी सहज ही परख सकेंगे। जब स्वयं प्राप्ति-सम्पन्न होंगे तो दूसरों को भी प्राप्ति करा सकेंगे। यह चेक करना तो सहज है ना? एक सब्जेक्ट् अथवा एक सम्बन्ध व एक धारणा व एक सलोगन में भी कमी नहीं होनी चाहिए।
जबकि अभी रिजल्ट आउट होने का समय आ रहा है, तो रिजल्ट आउट होने से पहले कम्पलेन्ट्स को कम्पलीट करो। अपनी कम्प्लेन्ट भी आप स्वयं ही करते हो। अमृत वेले से अपनी कम्पलेन्ट करते हो। जब तक अपनी कम्पलेन्ट्स हैं, तब तक कम्पलीट नहीं हो सकेंगे। इसलिये स्वयं ही मास्टर सर्वशक्तिवान् बन अपनी कम्पलेन्ट को कम्पलीट करो। अभी फिर भी लास्ट चान्स का समय है। फिर नहीं तो टू लेट का बोर्ड लग जायेगा। अभी प्राप्ति का समय भी-’बहुत गई, थोड़ी रही है’ — नहीं तो पश्चाताप का समय आ जायेगा फिर पश्चाताप के समय प्राप्ति नहीं कर सकेंगे। इसलिये अभी जो थोड़ी रही हुई है, यह चान्स भी चाहे किसी और के निमित्त, आप लोगों को भी यह चान्स मिला है। फिर भी किसी प्रकार का चान्स तो है ना? तो चान्स को गँवाना वा लेना, अपने प्रयत्न से आप जो चाहो वह कर सकते हो। इसलिये अभी से रिवाइज करो। यह तो सुना दिया कि जब रिवाइज करो व जज़ करो तो किस रूप में करना है। विधि तो सुना ही दी है। क्योंकि विधि-पूर्वक करने से सिद्धि की प्राप्ति तो हो ही जायेगी।
जो सम्पूर्ण स्टेज के अति नजदीक होंगे उनके संकल्प में, बोल में और कर्म में एक नशा रहेगा। वह कौन-सा? ईश्वरीय नशा तो सबको है ही। ईश्वरीय नशे का वर्सा तो ईश्वरीय गोद ली और प्राप्त हुआ। वह तो है ही। लेकिन वह विशेष क्या नशा रहेगा? उनके संकल्प में, बोल में नशे की कौन-सी बात होगी? नशा यह होगा कि जो भी कुछ कर रहा हूँ उसमें सम्पूर्ण सफलता हुई ही पड़ी है। ‘होनी है’ व ‘होगी’ ऐसा नहीं, परन्तु ‘हुई ही पड़ी है’। संकल्प में भी यह नशा होगा कि ‘मेरे हर संकल्प की सिद्धि हुई ही पड़ी है’। कर्म में भी यह नशा होगा कि मेरे हर कर्म में पीछे सफलता मेरी परछाई की तरह है। मेरे बोल की सिद्धि हुई ही पड़ी है। सफलता मेरे पीछे-पीछे आने वाली है। सफलता मुझसे अलग हो ही नहीं सकती। ऐसा नशा हर संकल्प में, हर बोल और हर कर्म में जब होता है, तब समझो अति समीप है। होना तो चाहिए, लॉ तो ऐसे कहता है व कर्म की फिलॉसाफी व ज्ञान तो यह कहता है-यह है समीप। अभी इससे जज करो तो अति समीप हैं या समीप हैं या सामने हैं। ये तीन स्टेजिस हो गई न? अच्छा।
सभी के अन्दर एक संकल्प की हलचल है – वह कौन-सी? तो न मालूम यह मिलन भी कब तक? इस हलचल का रेसपॉन्स कौन-सा है? देखो पहले भी सुनाया कि प्राप्ति का समय अभी बहुत गया, थोड़ा रहा, थोड़े का भी थोड़ा है। जबकि प्राप्ति का समय थोड़ा है और कई आत्मायें आने वाली हैं जिनके निमित्त आप लोगों को भी चान्स है। ऐसी आत्माओं के प्रति अभी बाप भी बन्धन में बन्धे हुए हैं। इसलिये जब नये-नये रत्न आ रहे हैं अपना कल्प पहले का हक नम्बरवार ले रहे हैं तो बापदादा को भी हक देने आना ही पड़े ना? तो ऐसी हलचल नहीं मचाओ कि न मालूम क्या होना है? लेकिन अव्यक्त मिलन का अव्यक्त रूप से अनुभव कराने के लिये बीच-बीच में मार्जिन दी जाती है व समय दिया जाता है कि जिससे कभी अचानक व्यक्त द्वारा अव्यक्त मिलन का पार्ट समाप्त हो तो अव्यक्त स्थिति द्वारा अव्यक्त मिलन का अनुभव कर सको। जब तक बाप की सम्पूर्ण प्रत्यक्षता नहीं हो जाती तब तक बच्चों और बाप का मिलन तो होना ही है। लेकिन चाहे व्यक्त द्वारा अव्यक्त मिलन और चाहे अव्यक्त स्थिति द्वारा अव्यक्त मिलन, लेकिन मिलन तो अन्त तक है ना? इसलिये ऐसा समय आने वाला है कि जिसमें अव्यक्त स्थिति द्वारा अव्यक्त मिलन का अनुभव न होगा तो बाप के मिलन का, प्राप्ति का और सर्वशक्तियों के वरदान का जो सुन्दर मिलन का अनुभव है, उससे वंचित रह जायेंगे। इसलिये यह दोनों मिलन अभी तक तो साथसाथ चल रहे हैं लेकिन लास्ट स्टेज क्या है? लास्ट स्टेज की तैयारी कराने के लिये बाप को ही समय देना पड़ता है और सिखलाना पड़ता है। अभी समझा क्या होने वाला है? अभी इतने हलचल में नहीं आओ। जब होने वाला होगा तो अव्यक्त स्थिति में स्थित रहने वालों को स्वयं ही आवाज़ आयेगा, टचिंग होगी, सूक्ष्म संकल्प होगा, तार पहुंचेगी या ट्रंक-काल होगा। समझा? जब लाइन क्लियर होगी तभी तो पकड़ सकेंगे। जब अव्यक्त मिलन का अनुभव होगा तब तो पहचानेंगे व पहुंचेंगे। इसके बीच-बीच में यह चान्स दे अभ्यास कराते हैं। बाकी घबराने की कोई बात नहीं। समझा? अच्छा।
ऐसे सदा सफलता-मूर्त्त, ज्ञान स्वरूप, शक्ति-सम्पन्न, दिव्य धारणा सम्पन्न, योग-युक्त, युक्ति-युक्त संकल्प और कर्म करने वाले, परखने की शक्ति को हर आत्मा के प्रति कर्म में लाने वाले, रूहानी जस्टिस श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा वरदानी मूर्त्त आत्माओं को और बापदादा के नूरे रत्नों को याद-प्यार और नमस्ते।
महावाक्यों का सार
स्वयं जो इच्छा मात्रम् अविद्या की स्थिति में स्थित होगा वो ही किसी के इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है।
इन्तज़ार वह करेगा जिनका पहले से ही अपना इन्तज़ाम हुआ पड़ा होगा।
रूहानी जज़ और जिस्मानी जज़
प्रश्न 1: स्वयं का जज कैसे बनें?
उत्तर: स्वयं को जज करने के लिए निष्पक्षता से आत्म-निरीक्षण करें और हर संकल्प, बोल और कर्म की सफलता को सुनिश्चित करें।
प्रश्न 2: आत्म-परख क्यों आवश्यक है?
उत्तर: आत्म-परख से हम अपनी कमजोरियों को जानकर सुधार सकते हैं और दूसरों को भी सहज रूप से परख सकते हैं।
प्रश्न 3: सम्पूर्ण सफलता का नशा क्या होता है?
उत्तर: यह नशा कि ‘मेरे हर संकल्प, बोल और कर्म की सिद्धि हुई ही पड़ी है’ और सफलता मेरी परछाई की तरह है।
प्रश्न 4: प्राप्ति के समय का सही उपयोग कैसे करें?
उत्तर: अपनी शेष कमियों को अभी पूरा कर लें, क्योंकि बाद में पश्चाताप का समय आएगा, प्राप्ति का नहीं।
प्रश्न 5: जब ईश्वरीय मिलन प्रत्यक्ष नहीं होगा तो क्या अनुभव होगा?
उत्तर: अव्यक्त स्थिति द्वारा अव्यक्त मिलन का अनुभव होगा, जो आत्मा को सदा प्राप्ति की अनुभूति में स्थित रखेगा।
प्रश्न 6: बापदादा आत्माओं को क्या संदेश देते हैं?
उत्तर: सदा सफलता-मूर्त्त बनो, अपनी परखने की शक्ति जागृत रखो और अव्यक्त स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास करो।
प्रश्न 7: ईश्वरीय संकल्प में स्थित आत्मा की पहचान क्या होगी?
उत्तर: ऐसी आत्मा इच्छामात्रम् अविद्या की स्थिति में होगी और दूसरों की इच्छाओं को सहज पूरा करने की शक्ति रखेगी।
प्रश्न 8: कौन इन्तज़ार करेगा?
उत्तर: वही, जिसने पहले से ही अपनी आत्मिक स्थिति को उच्च बनाने का इन्तज़ाम कर लिया है।