Avyakta Murli”23-06-1973

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

 

अलौकिक खज़ाने के मालिक

सर्व कमजोर आत्माओं को बल देने वाले, सर्व आत्माओं के तमोगुणी स्वभाव और संस्कारों को परिवर्तन करने वाले और पद्मापद्म भाग्यशाली बनाने वाले बाबा बोले :-

अपने को लाइट हाउस और माइट हाउस दोनों समझते हो? वर्तमान समय की स्थिति प्रमाण आप सभी का कौन-सा स्वरूप विश्व-कल्याण का कर्त्तव्य कर सकता है? उस स्वरूप को जानते हो? इस समय आवश्यकता है माइट हाउस के स्वरूप की। क्या ऐसा अनुभव करते हो कि ऑलमाइटी बाप की सन्तान हम भी माइट हाउस बने हैं? सर्व शक्तियाँ अपने में समाई हुई समझते हो? शक्तिवान् नहीं लेकिन सर्वशक्तिवान्। जिनका ‘सर्वशक्तियाँ सम्पन्न’ के लिए गायन है कि अप्राप्त कोई शक्ति नहीं ब्राह्मणों के खजाने में।

जैसे देवताओं के लिये गायन है, अप्राप्त कोई वस्तु नहीं देवताओं के खजाने में, वैसे आप ब्राह्मणों का गायन है कि अप्राप्त नहीं कोई शक्ति ब्राह्मणों के खजाने में क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिवान् हैं। जब बाप का नाम ही सर्वशक्तिवान् ऑलमाइटी अथॉरेटी है, अर्थात् सर्वशक्तियों के खजाने के मालिक के बालक हो, तो ऐसे बालक जो बाप की सर्वशक्तियों के मालिक हैं तो क्या उनके पास कोई अप्राप्ति हो सकती है? जो बालक सो मालिक हैं। ऐसा कोई है जो अपने को बालक सो मालिक नहीं समझते हैं? सभी मालिक बैठे हैं ना? सर्वशक्तियों के खजाने के मालिक हो ना? खजाने के मालिक कभी यह संकल्प भी कर सकते हैं क्या, कि हमारे पास सहनशक्ति नहीं है व माया को परखने की शक्ति नहीं है व ज्ञान के खजाने को सम्भालने की शक्ति नहीं है व संकल्पों को समाने की शक्ति नहीं है व खजाने को सुमिरण करने की शक्ति नहीं है? कितना भी कोई कार्य में बुद्धि विस्तार में गई हुई हो लेकिन विस्तार को एक सेकेण्ड में समाने की शक्ति नहीं है? ऐसे मालिक के क्या यह बोल व यह संकल्प भी हो सकता है? अगर होता है तो उसको क्या कहें? उस समय की स्टेज को व स्थिति को क्या मालिकपन की स्थिति कह सकते हैं?

मालिक सदा मालिक ही होता है। अभी-अभी मालिक, अभी-अभी भिखारी ऐसे मास्टर सर्वशक्तिवान् होते हैं क्या? मालिक से बार-बार रॉयल (रॉयल) भिखारी क्यों बनते हो? बाप के सामने भी जब बच्चा आकर यह कहे कि बाबा हमको मदद करना, शक्ति देना और सहारा देना, इसको क्या कहा जाता है? क्या इसको रॉयल भिखारीपन नहीं कहेंगे? यह हैं भक्ति के संस्कार। जैसे देवताओं के आगे जाकर कहते थे कि आप तो सर्वगुण सम्पन्न हो और मैं…. वैसे ही बाप के आगे मास्टर सर्वशक्तिवान् आकर कहता है कि बाबा आप तो सर्वशक्तियों के सागर हो लेकिन मुझ में वह शक्ति नहीं है, निर्बल हूँ, माया से हार खा लेता हूँ, व्यर्थ संकल्पों को कन्ट्रोल नहीं कर पाता हूँ और माया के विघ्नों से घबरा जाता हूँ तो क्या ये वही भक्ति के संस्कार नहीं हुए?

सुनाया था ना कि बाप जो है, जैसा है उसको वैसा न मान कर भावना के वश सर्वव्यापी भी कहते हैं, इसको भी आप बाप की इनसल्ट करते हो ना? कड़े से कड़ा शब्द गाली देते हो। वैसे ही अपने श्रेष्ठ स्वमान, मास्टर सर्वशक्तिवान्, मास्टर ज्ञान, प्रेम और आनन्द सभी के सागर, अपने लिये फिर कहे कि जरा-सी शक्ति की कमी है तो क्या उनको मास्टर सागर कहेंगे? एक तो स्वयं को मास्टर ज्ञान का सागर, आनन्द का सागर कहे फिर यह कहे तो अपनी इनसल्ट करना नहीं हुआ क्या? स्वयं ही स्वयं की इनसल्ट करना क्या यह ब्राह्मणों का स्वमान है? यह बोल बोलना व यह संकल्प करना इससे अपनी भी इनसल्ट करते हो और बाप की भी इनसल्ट करते हो-कैसे?

एक तो बाप जो दाता है, स्वयं ही देने वाला है और किसी के कहने से देने वाला नहीं है, तो दाता को मनुष्य बनाना क्या यह इनसल्ट नहीं है? कहने से कौन करता है?-मनुष्य। दूसरी बात बाप को भी स्मृति दिलाने वाले बनते हो। इससे क्या सिद्ध होता है? क्या बाप को अपना कर्त्तव्य करना भूल गया है? क्या इसलिये आप बाप को स्मृति दिलाते हो? बाबा, ‘आप तो मददगार हैं ही, इसलिये मदद करना’ इस कहने को क्या कहा जाय? जब कि गायन ही यह है कि ब्राह्मण अर्थात् सर्वप्राप्ति स्वरूप। प्राप्ति स्वरूप के पास अप्राप्ति कहाँ से आयी? इसलिये कहा कि ब्राह्मणों की स्टेज पॉवर हाउस है। अब पॉवर हाउस से परे की भाषा समझे? पॉवर हाउस के यह बोल नहीं होते हैं। अब तो फाईनल रिजल्ट आउट  होने का समय भी समीप आ रहा है। फाईनल रिजल्ट के समय में भी अगर कोई पहला पाठ ही पढ़ता रहे, उसमें भी मजबूत न हुआ हो तो ऐसे का रिजल्ट क्या होगा? इसलिये फिर भी बापदादा कुछ समय पहले सुना रहे हैं कि जिसको भी हाईजम्प देना हो व आगे बढ़ना हो तो अभी से छ: मास के अन्दर अर्थात् इस वर्ष में अपने आप को जिस भी स्टेज पर व जिस भी स्थिति में स्थित करना चाहते हो, उसके लिए यह चॉन्स है। ऐसे थोड़े समय के अन्दर अपने को सम्पन्न बनाने के लिए साधारण पुरूषार्थ नहीं चलेगा। अभी तो तीव्र पुरूषार्थ अर्थात् संकल्प, बोल और कर्म इन तीनों में समानता का अभ्यास करना उसको कहा जाता है-तीव्र पुरुषार्थी।

जैसे बुद्धि में यह सोचते हो, समझते हो कि हम दाता के बच्चे हैं लेकिन बोल और कर्म में अन्तर है। संकल्प में सोचते हो कि हम सर्व आत्माओं से ऊँचे ब्राह्मण हैं लेकिन बोल और कर्म में अन्तर है। सोचते हैं कि विश्वकल्याणकारी हैं लेकिन बोल और कर्म में अन्तर है। तो तीनों ही समान हो जायें इसको कहा जाता है तीव्र-पुरूषार्थ अर्थात् बाप-समान। तो क्या ऐसे अपने को बाप-समान बनाने के लिए समय दे रहे हैं? छ: मास के बाद इस रूहानी सेना के महावीर, घोड़ेसवार और प्यादे अर्थात् प्रजा सभी प्रत्यक्ष होंगे। जब तक आपस में ही प्रत्यक्ष नहीं होंगे तो विश्व के आगे प्रख्यात कब होंगे? और विश्व के आगे प्रख्यात नहीं होंगे तो प्रत्यक्षता कैसे होंगी? तो स्वयं को और बाप को प्रख्यात करने के लिए व बाप की प्रत्यक्षता करने के लिए अब लास्ट पुरूषार्थ व लास्ट सो फास्ट पुरूषार्थ कौन-सा रह गया है? फास्ट पुरूषार्थ कौन-सा है जो फास्ट ही लास्ट है, इसको जानते हो? कौन-सा पुरूषार्थ सामने आता है? फास्ट पुरूषार्थ की विधि कौन-सी है कि जिससे बाप समान बन जायेंगे? यह सिद्धि होगी। बिना विधि के सिद्धि नहीं हो सकती। बहुत बार सुनाया है। सिर्फ एक शब्द है। लास्ट सो फास्ट पुरूषार्थ की विधि है — प्रतिज्ञा। कोई भी बात की प्रतिज्ञा करना कि यह करना ही नहीं है। यह अभी करना है। प्रतिज्ञा की विधि यह है कि लास्ट इज फास्ट। प्रतिज्ञा अर्थात् संकल्प किया और स्वरूप हुआ। प्रतिज्ञा करने में सेकेण्ड लगता है। तो अब फास्ट पुरूषार्थ एक सेकेण्ड का ही होना चाहिए। क्योंकि सुनाया था कि लास्ट पेपर की जो रिजल्ट आउट होना है। लास्ट पेपर का समय क्या मिलेगा? एक सेकेण्ड। लास्ट पेपर का टाइम भी फिक्स है और पेपर भी फिक्स है। पेपर सुनाया था ना-नष्टोमोहा, स्मृति स्वरूप। एक सेकेण्ड में ऑर्डर हुआ — नष्टोमोहा बन जाओ तो एक सेकेण्ड में अगर नष्टोमोहा, स्मृति स्वरूप न बने, अपने को स्वरूप बनाने अर्थात् युद्ध करने में ही समय गंवा दिया और बुद्धि को ठिकाने लगाने में समय लगा दिया तो क्या हो जायेंगे? -फेल। तो समय भी एक सेकेण्ड का मिलना है। यह भी पहले ही सुन रहे हैं। पेपर भी पहले सुन रहे हैं तो कितने पास होने चाहिये? फास्ट पुरूषार्थ की विधि है – प्रतिज्ञा, प्रतिज्ञा से अपने को प्रख्यात करो। बाप को प्रख्यात करो अर्थात् प्रतिज्ञा से प्रत्यक्षता करो। यह मुश्किल है क्या? हिम्मत और उल्हास और नशा और निशाना अगर सदा साथ रखेंगे तो अनेक कल्प के समान फुल पास हुए ही पड़े हैं। कोई मुश्किल नहीं। सिर्फ इन छ: मास के अन्दर अपने मुख्य चार सब्जेक्ट्स को सामने रखकर चेक करना कि चारों में पास मार्क्स हैं? यह हैं कम-से-कम पास मार्क्स। लेकिन जो विशेष आत्माएं हैं उनको फुल मार्क्स लेने का लक्ष्य रखना है। ऐसे नहीं समझना कि दो या तीन सब्जेक्ट्स में अच्छे मार्क्स हैं और एक या दो में कम हैं तो पास हो जायेंगे। अगर एक सब्जेक्ट में यदि कोई फेल होता है तो क्या होता है? जिसको दोबारा पेपर देना पड़ता है। उसका वह वर्ष तो खत्म हुआ ना? अर्थात् वह सूर्यवंशी से तो मिस हुआ ना? सूर्यवंश के पहले राजभाग्य और प्रकृति के फर्स्ट सर्व प्राप्ति सम्पन्न प्रारब्ध से तो मिस हो जायेंगे न? हाँ, यदि चढ़ती कला होते-होते त्रेता में आकर फुल मार्क्स लेंगे तो त्रेतायुग में कुछ श्रेष्ठ प्रारब्ध पा लेंगे। इसलिये यह भी नहीं सोचना। चारों ही सब्जेक्ट्स में फर्स्ट पुरूषार्थ है – फुल पास होना अर्थात् फुल मार्क्स लेने हैं। सेकेण्ड पुरूषार्थ सभी सब्जेक्ट्स में पास मार्क्स लेने का है। और तीसरा पुरूषार्थ तो करना ही नहीं है क्योंकि तीसरे का तो सोचना ही नहीं है, बाबा फिर भी टाइम दे रहे हैं। अपने आपको सभी सब्जेक्ट्स में कम्पलीट कर लो। समझा? तीन ग्रुप आउट करने हैं। नम्बर 1 एवररेडी ग्रुप 2 रेडी ग्रुप 3 लेजी ग्रुप। इस छ: मास के अन्दर अपने को परिवर्तित कर फर्स्ट ग्रुप में लाना है अर्थात् एवररेडी ग्रुप। ऑर्डर हुआ और किया। ऑर्डर मानने में लेजी नहीं। इन तीन ग्रुप्स में स्वयं भी स्वयं को दर्पण में साक्षात्कार हो जायेगा। जैसे कल्प पहले ब्रह्माकुमार (नारद) ने दर्पण में अपना साक्षात्कार किया ना वैसे नॉलेज रूपी दर्पण में स्वयं ही स्वयं का साक्षात्कार करेंगे कि मैं किस ग्रुप में हूँ और किस ग्रेड में आने वाला हूँ। जैसा ग्रुप वैसे ग्रेड्स होंगे न? अच्छा।

सदा स्वयं के प्रति और विश्व के प्रति शुभ चिन्तक स्थिति में स्थित रहने वाले, हर सेकेण्ड और हर संकल्प श्रेष्ठ व्यतीत करने वाले, सदा अपने खजाने की स्मृति और सुमिरण में रहने वाले, सदा खुशी की खुराक में भरपूर रहने वाले, सर्व कमजोर आत्माओं को बल देने वाले, सर्व आत्माओं के तमोगुणी स्वभाव और संस्कारों को परिवर्तन करने वाले, साक्षी और सदा साथी अनुभव करने वाले, ऐसे कोटों में से कोई और कोई में से कोई, पद्मापद्म भाग्यशाली आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।

अलौकिक खज़ाने के मालिक

प्रश्न-उत्तर:

  1. प्रश्न: क्या आप अपने को लाइट हाउस और माइट हाउस दोनों समझते हैं?
    उत्तर: हाँ, हम आत्माएँ प्रकाश और शक्ति के स्रोत हैं, जो विश्व-कल्याण का कर्तव्य निभा सकते हैं।

  2. प्रश्न: इस समय कौन-सा स्वरूप विश्व-कल्याण का कार्य कर सकता है?
    उत्तर: माइट हाउस स्वरूप, जो सर्वशक्तियों से सम्पन्न हो।

  3. प्रश्न: क्या आपको अनुभव होता है कि आप ऑलमाइटी बाप की संतान हैं?
    उत्तर: हाँ, हम मास्टर सर्वशक्तिवान् हैं और हमारे पास सभी शक्तियाँ हैं।

  4. प्रश्न: ब्राह्मण आत्माओं के खजाने में कौन-कौन सी शक्तियाँ हैं?
    उत्तर: ब्राह्मण आत्माओं के पास कोई शक्ति अप्राप्त नहीं है; वे सर्वशक्तियाँ सम्पन्न हैं।

  5. प्रश्न: क्या खजाने के मालिक कभी यह संकल्प कर सकते हैं कि हमारे पास कोई शक्ति नहीं है?
    उत्तर: नहीं, मालिक सदा मालिक होता है, उसे कभी दुर्बलता का संकल्प नहीं करना चाहिए।

  6. प्रश्न: जब बापदादा कहते हैं कि “बालक सो मालिक” तो उसका क्या अर्थ है?
    उत्तर: इसका अर्थ है कि हम बाप के समान शक्तिशाली हैं और हमारे पास कुछ भी अप्राप्त नहीं है।

  7. प्रश्न: बापदादा के सामने मदद और शक्ति मांगने को क्या कहा जाता है?
    उत्तर: इसे “रॉयल भिखारीपन” कहा जाता है, जो भक्ति मार्ग के संस्कार हैं।

  8. प्रश्न: क्या हम स्वयं को मास्टर ज्ञान, प्रेम और आनंद का सागर मानते हैं?
    उत्तर: हाँ, हमें अपने श्रेष्ठ स्वरूप की स्मृति रखनी चाहिए और अपनी आत्म-शक्ति को पहचानना चाहिए।

  9. प्रश्न: फाइनल रिजल्ट के समय आत्मा को कौन-सी स्थिति में होना चाहिए?
    उत्तर: नष्टोमोहा और स्मृति स्वरूप, जो एक सेकंड में स्थिति परिवर्तन कर सके।

  10. प्रश्न: फास्ट पुरुषार्थ की विधि क्या है?
    उत्तर: प्रतिज्ञा—जो संकल्प किया और तुरंत स्वरूप बन गए।

  11. प्रश्न: कौन-से चार मुख्य विषयों में ब्राह्मण आत्माओं को फुल मार्क्स लेने हैं?
    उत्तर: ज्ञान, योग, धारणा, सेवा।

  12. प्रश्न: ब्राह्मण आत्माएँ कौन-कौन से तीन ग्रुप्स में बंट सकती हैं?
    उत्तर: (1) एवररेडी ग्रुप, (2) रेडी ग्रुप, (3) लेजी ग्रुप।

  13. प्रश्न: हमें स्वयं को किस ग्रुप में लाने का संकल्प करना चाहिए?
    उत्तर: एवररेडी ग्रुप, ताकि हम बाप समान बन सकें।

  14. प्रश्न: सच्चे ब्राह्मण की विशेषता क्या है?
    उत्तर: वह हर संकल्प और हर सेकंड को श्रेष्ठ बनाता है और विश्व के प्रति शुभ-चिंतक रहता है।

  15. प्रश्न: बापदादा का संदेश किसे दिया जाता है?
    उत्तर: उन आत्माओं को, जो सर्वशक्तिवान बनने के लिए तत्पर हैं और अपने भाग्य को जागृत करना चाहती हैं।

स्मृति: “हम मास्टर सर्वशक्तिवान हैं और हमारे पास सर्वशक्तियाँ सदा विद्यमान हैं।”

अलौकिक खजाने, माइट हाउस, लाइट हाउस, सर्वशक्तिवान, ब्राह्मण जीवन, आत्मिक शक्ति, आध्यात्मिक खजाना, बाबा का ज्ञान, बाप समान, तीव्र पुरुषार्थ, स्मृति स्वरूप, नष्टोमोहा, विश्व परिवर्तन, दिव्य शक्तियाँ, आध्यात्मिक सफलता, प्रतिज्ञा शक्ति, परमात्म अनुभूति, ब्रह्माकुमार ज्ञान, योग और तपस्या, आध्यात्मिक जागृति, रूहानी सेना, फाइनल रिजल्ट, सर्वगुण सम्पन्न, मास्टर सर्वशक्तिवान, बापदादा की याद, आत्मा का उत्थान, साकार और निराकार, ब्रह्मा बाबा, ईश्वरीय पढ़ाई, ब्रह्माकुमार संस्कृति

Supernatural treasures, might house, light house, Almighty Authority, Brahmin life, spiritual power, spiritual treasure, Baba’s knowledge, like the Father, intense effort, embodiment of awareness, devoid of attachment, world transformation, divine powers, spiritual success, promise power, Godly experience, Brahma Kumar knowledge, yoga and tapasya, spiritual awakening, spiritual army, final result, full of all virtues, master Almighty Authority, remembrance of BapDada, soul’s upliftment, corporeal and incorporeal, Brahma Baba, divine study, Brahma Kumar culture