Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
सर्वोच्च स्वमान
सर्व खजानों से भरपूर करने वाले, महादानी, वरदानी, महात्यागी व पद्मापद्म भाग्यशाली बनाने वाले, वरदानीमूर्त्त शिवबाबा बोले:-
वर्तमान समय अपने-आप को किस स्वमान में समझते हो? अपने स्वमान को जानते हो? सभी से बड़े-से-बड़ा स्वमान अभी ही है यह तो जानते ही हो। लेकिन वह कौन-सा स्वमान है? बड़े-से बड़ा स्वमान अभी कौन-सा है। जिसको वर्णन करने में ही दिखाई पड़े कि इससे बड़ा स्वमान कोई हो नहीं सकता? वह कौन-सा है? इस समय का बड़े-से-बड़ा स्वमान यही हुआ कि ‘बाप के भी अभी तुम मालिक बनते हो।’ विश्व के मालिक बनने से पहले विश्व के रचयिता के भी मालिक बनते हो। शिव बाबा के भी मालिक हो। इसलिए ‘वालेकम सलाम’ कहते हैं। सुपात्र बच्चा बाप का भी मालिक है। इस समय बाप को भी अपना बना लिया है। सारे कल्प में बाप को ऐसे अपना नहीं बना सकते हो। अभी तो जब चाहो, जिस रूप में चाहो, उस रूप से बाप को अपना बना सकते हो। बाप भी इस समय किस बन्धन में है? (बच्चों के बन्धन में)। तो रचयिता को भी बन्धन में बाँधने वाले, ऐसा स्वमान फिर कब अनुभव करेंगे? रचयिता को सेवाधारी बनाने वाले-बाप को गुलाम बना दिया ना, अपनी सेवा के लिये। यह है शुद्ध स्वमान। इसमें अभिमान नहीं होता है। जहाँ स्वमान होता है, वहाँ अभिमान नहीं होता है। बाप को सेवाधारी बनाया लेकिन अभिमान नहीं आयेगा। तो अपने ऐसे शुद्ध स्वमान में-जहाँ अभिमान का नाम निशान नहीं है इस स्थिति में स्थित रहते हो?
जैसे बाप सदैव हाँ बच्चे, मीठे बच्चे, विश्व के मालिक बच्चे समझ कर अपना सिरताज बनाते हैं, ऐसे सिरताज स्थिति में स्थित रहते हो? ब्राह्मणों की चोटी का स्थान कहाँ होता है? सिर के ऊपर है न। तो ब्राह्मण चोटी अर्थात् बाप के सिरताज। तो जैसे बाप सदैव बच्चों को स्वमान देते हुए आप समान बनाते हैं, ऐसे आप सभी भी हर — एक आत्मा को सदा स्वमान देते बाप समान बनाते रहते हो? यह सदा स्मृति में रहता है कि इस समय सिवाय एक बाप से लेने के और सभी को देना है? तुम आत्माओं को आत्माओं से लेना नहीं है परन्तु उन्हें देना है। सिर्फ एक बाप से ही लेना है। जो लिया है, वह देना है। दाता है ना? यह सदा स्मृति में रहता है? अथवा जहाँ देना है, वहाँ भी लेने की इच्छा रखते हो? अगर आत्मा, आत्मा द्वारा कुछ-भी लेने की इच्छा रखती है तो वह प्राप्ति क्या होगी? अल्प काल की होगी न? अल्पज्ञ आत्माओं से अल्पकाल की ही प्राप्ति होगी। सर्वज्ञ बाप से सदाकाल की प्राप्ति होगी। तो जहाँ से लेना है वहाँ ले रहे हैं और जहाँ देना है वहाँ दे रहे हो? अथवा कभी बदली कर देते हो? अगर आत्मा, आत्मा को कुछ देती भी है तो बाप से लिया हुआ ही तो देगी ना? जरा भी किसी प्रकार की लेने की इच्छा, अपने स्वमान से गिरा देती है।
जब आप लोग भी किसी आत्मा को बाप द्वारा मिला हुआ ख़ज़ाना देने के निमित्त भी बनती हो तो भी स्मृति क्या रहती है? आत्मा के पास अपना कुछ है क्या? बाप के दिये हुए को ही अपना बनाया है। जब औरों को भी देने के निमित्त बनते हो, उस समय अगर यह स्मृति में नहीं रहता कि बाप का ख़ज़ाना दे रहे हैं तो उन आत्माओं को श्रेष्ठ सम्बन्ध में जोड़ नहीं सकते हो। क्या ऐसी स्मृति में रहते हुए हर कर्म करते हो? नशा भी रहे अपने श्रेष्ठ स्वमान का। उनके साथ-साथ और क्या रहता है? (खुशी)। जितना बुद्धि में नशा होगा, उतनी ही कर्म में नम्रता-इस नशे की निशानी यह है। नशा भी ऊँचा होगा लेकिन कर्म में नम्रता रहेगी। नयनों में सदैव नम्रता होगी। इसलिए इस नशे में कभी नुकसान नहीं होता है। समझा?
सिर्फ नशा नहीं रखना। एक तरफ अति नशा, दूसरी तरफ अति नम्रता। जैसे सुनाया कि ऊँच-ते ऊँच बाप भी बच्चों के आगे गुलाम बन कर आते हैं तो नम्रता हुई ना? जितना ऊँच उतनी ही नम्रता-ऐसा बैलेन्स रहता है? अथवा जिस समय नशे में रहते हो, तो कुछ सुझता ही नहीं? क्योंकि जब अपने इस स्वमान के नशे में रहते हैं कि हम विश्व के रचयिता के भी मालिक हैं तो ऐसे नशे में रहने वाले का कर्त्तव्य क्या होगा? विश्व का कल्याण नम्रता के बिना हो नहीं सकता। बाप को भी अपना तब बनाया जब बाप भी नम्रता से बच्चों का सेवाधारी बना। ऐसे ही फॉलो फादर।
हर समय यह चेक करो कि बाप से कितने खजाने मिले हैं? मालूम है कितने खजानों के मालिक हो?-(अनगिनत) फिर भी मुख्य तो वर्णन करने में आते हैं ना? इस संगमयुग में मुख्य कितने खजाने हैं? आप लोगों को कितने मिले हैं? सभी से बड़े-से-बड़ा ख़ज़ाना तो बाप मिला। पहले नम्बर का ख़ज़ाना तो ये है ना? जैसे किसी को चाबी मिल जाय तो गोया सब मिल गया। बाप मिल गया अर्थात् सभी कुछ मिल गया। और क्या मिला? वह भी साथ-साथ वर्णन करो। ज्ञान भी है और अष्ट-शक्तियाँ भी हैं। एक-एक शक्ति को अलग- अलग वर्णन करो तो अलग-अलग शक्ति भी खजाने के रूप में है। इस प्रकार जो बाप के गुण वर्णन करते हो, वह गुण भी खजाने के रूप में वर्णन कर सकते हो। इस रीति से इस अमूल्य संगमयुग के समय का एक सेकेण्ड भी ख़ज़ाना है। जैसे खजाने से प्राप्ति होती है वैसे इस संगमयुग के एक-एक सेकेण्ड से श्रेष्ठ प्राप्ति कर सकते हो। तो यह संगम का समय अर्थात् एक-एक सेकेण्ड अनेक पद्मों से ज्यादा बड़ा ख़ज़ाना है। अगर अनेक पद्म इकठ्ठा करो और संगमयुग का एक सेकेण्ड दूसरी तरफ रखो तो भी श्रेष्ठ संगम का ही एक सेकेण्ड गिना जायेगा। क्योंकि इस एक सेकेण्ड में ही सदा काल के प्रारब्ध की प्राप्ति होती है। सभी को सुनाते हो न – एक सेकेण्ड में मुक्ति और जीवनमुक्ति का वर्सा ले सकते हो। तो एक सेकेण्ड की भी वैल्यु हो गई ना? तो संगम का समय भी बहुत बड़ा खज़ाना है।
अब इतने सभी खजाने चेक करो कि हम इन खजानों को अपने अन्दर कितना धारण कर सके हैं? अथवा ऐसा तो नहीं कि कोई खज़ाना धारण हुआ है और कोई नहीं हुआ है? किसी भी खज़ाने से अधूरे तो नहीं रह गये हो? वंचित तो होंगे नहीं लेकिन यदि अधूरी प्राप्ति की, तो भी चन्द्रवंशी हो गये, सूर्यवंशी नहीं हुए।
सर्वोच्च स्वमान – प्रश्न और उत्तर
1. इस समय सबसे बड़ा स्वमान कौन-सा है?
👉 सबसे बड़ा स्वमान यह है कि हम विश्व के रचयिता शिवबाबा के भी मालिक बनते हैं।
2. बाप को अपना बनाने का अर्थ क्या है?
👉 इसका अर्थ है कि हम शिवबाबा को अपनी सेवा के लिए अपना सेवाधारी बना सकते हैं, जो पूरे कल्प में संभव नहीं है।
3. शुद्ध स्वमान और अभिमान में क्या अंतर है?
👉 शुद्ध स्वमान में कोई अहंकार नहीं होता, जबकि अभिमान में खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझने की भावना होती है।
4. आत्मा को किससे प्राप्ति करनी चाहिए?
👉 आत्मा को सिर्फ बाप (शिवबाबा) से ही प्राप्ति करनी चाहिए, न कि किसी अन्य आत्मा से।
5. संगमयुग का समय क्यों मूल्यवान है?
👉 संगमयुग का एक-एक सेकंड पद्मों से भी अधिक मूल्यवान है क्योंकि इसमें सदा काल की प्राप्ति संभव है।
6. आत्मा को बाप के खजाने कैसे प्राप्त होते हैं?
👉 बाप से ज्ञान, शक्तियाँ, और अष्ट-शक्तियाँ प्राप्त होती हैं, जो हमारे आध्यात्मिक जीवन को सम्पन्न बनाते हैं।
7. नशा और नम्रता का बैलेंस क्यों आवश्यक है?
👉 क्योंकि जितना ऊँचा नशा होगा, उतनी ही कर्मों में नम्रता होनी चाहिए, ताकि सेवा में सफलता प्राप्त हो।
8. क्या आत्मा का अपना कुछ होता है?
👉 नहीं, आत्मा के पास अपना कुछ नहीं होता, वह केवल बाप के दिए हुए खजानों को अपना बनाती है।
9. ब्राह्मण आत्माओं का स्थान कहाँ होता है?
👉 ब्राह्मण आत्माएँ बाप के सिरताज होती हैं, जो सदा श्रेष्ठ स्थिति में स्थित रहती हैं।
10. दाता कौन है और प्राप्ति किससे करनी चाहिए?
👉 सच्चा दाता सिर्फ शिवबाबा हैं, और हमें उन्हीं से सबकुछ लेना चाहिए तथा दूसरों को देना चाहिए।
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