Avyakta Murli”25-01-1974

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

YouTube player

निराकार स्वरूप की स्मृति में रहने तथा आनंद रस लेने की सहज विधि

प्रस्तावना

स्वरूप की स्मृति दिलाने वाले, आनंद रस का रसास्वादन कराने वाले, अव्यक्त शिव बाबा बोलेः-

जैसे अपना साकार स्वरूप सदा और सहज स्मृति में रहता है, क्या वैसे ही अपना निराकारी स्वरूप सदा और सहज स्मृति में रहता है? जैसे साकार स्वरूप अपना होने के कारण स्वत: ही स्मृति में रहता है, क्या वैसे निराकारी स्वरूप भी अपना है तो अपनापन सहज याद रहता है? अपनापन भूलना मुश्किल होता है। स्थूल वस्तु में भी जब अपनापन आ जाता है, तो वह स्वत: ही याद रहती है, उसे याद किया नहीं जाता है। यह भी अपना निजी और अविनाशी स्वरूप है, तो इसको याद करना मुश्किल क्यों? जानने के बाद तो, सहज स्मृति में ही रहना चाहिए। जान तो लिया है न? अब इसी स्मृति-स्वरूप के अभ्यास की गुह्यता में जाना चाहिए।

निजी स्वरूप की गहराई में जाने की विधि

जैसे साइंस वाले हर वस्तु की गुह्यता में जाते हैं और नई-नई खोज (इन्वेंशन) करते रहते हैं, वैसे ही अपने निजी स्वरूप और उसके अनादि गुण व संस्कार की गहराई में जाना चाहिए। जैसे आनंद स्वरूप कहते हैं, तो वह आनंद स्वरूप की स्थिति क्या है? उसकी अनुभूति क्या है? आनंद स्वरूप होने से उसकी विशेष प्राप्ति क्या है और आनंद कहा किसको जाता है? उस समय की स्थिति का प्रत्यक्ष प्रभाव स्वयं पर और अन्य आत्माओं पर क्या होता है? ऐसे हर गुण की गुह्यता में जाओ। जैसे वे लोग सागर के तले में जाते हैं और जितना अंदर जाते हैं, उतने ही उन्हें नए-नए पदार्थ प्राप्त होते हैं। ऐसे ही आप जितना अंतर्मुख होकर स्वयं में खोए रहोगे, तो आपको बहुत नए-नए अनुभव होंगे। ऐसे महसूस करोगे जैसे कि आप इसमें खोए हुए हैं।

स्वरूप की स्मृति में खोने की सहज अवस्था

जैसे मछली पानी के अंदर रहती हुई अपना जीवन दान महसूस करती है, उसका लगाव पानी से होता है। शरीर निर्वाह-अर्थ यदि बाहर निकलेगी भी, तो एक सेकंड बाहर आई और फिर अंदर चली जाएगी, क्योंकि बिना पानी के वह रह नहीं सकती। ऐसे ही आप सबकी लगन अपने निजी स्वरूप के भिन्न-भिन्न अनुभव के सागर से होनी चाहिए। कार्य-अर्थ बाह्यमुखता में आएं, इंद्रियों का आधार लिया अर्थात् साकार स्वरूपधारी स्थिति में आएं, लेकिन लगाव और आकर्षण उस अनुभव के सागर की तरफ होना चाहिए।

अनुभव द्वारा आकर्षण बढ़ाने की विधि

जैसे स्थूल वस्तु अपनी भिन्न-भिन्न रसनाओं का अनुभव कराती है, जैसे मिश्री अपनी मिठास का अनुभव कराती है और हर गुण वाली वस्तु अपने गुण का अनुभव कराती हुई अपनी तरफ आकर्षित कराती है, वैसे ही आप अपने निजी स्वरूप के हर गुण की रसना का अनुभव अन्य आत्माओं को कराओ। तब ही आत्माएँ आकर्षित होंगी। तो अब यह अनुभव करना और कराना, यही अपना विशेष कर्त्तव्य समझो। वर्णन के साथ-साथ हर गुण की अनुभूति कराओ। वह तब करा सकोगे जब स्वयं इस सागर में समाए होंगे। तो क्या ऐसा समाए हुए रहते हो? इससे सहज स्मृति स्वरूप हो जाओगे।

सहज स्मृति स्वरूप बनने की कला

‘याद कैसे करें?’ – इसकी बजाय यह प्रश्न उठे कि ‘याद भूल कैसे सकती है?’ इतना परिवर्तन आ जाए। अभी तो सिर्फ थोड़ा-सा अनुभव किया है, सिर्फ चख कर देखा है। जब उसमें खो जाओगे तब कहेंगे खाया भी और स्वरूप में भी लाया। अभी बहुत अनुभव करने की आवश्यकता है। जब इस अनुभव में चले जाओगे तो फिर यह छोटी-छोटी बातें स्वत: ही किनारा कर लेंगी, अर्थात् विदाई ले लेंगी!

मुरली का सार

  1. जिस प्रकार अपना साकार स्वरूप सदा और सहज स्मृति में रहता है, वैसे ही अपना निजी अनादि और निराकारी स्वरूप भी स्मृति में रहना चाहिए।
  2. जैसे वैज्ञानिक हर वस्तु की गहराई में जाते हैं, वैसे ही हमें अपने निजी स्वरूप और उसके अनादि गुण व संस्कार की गहराई में जाना चाहिए।
  3. जैसे मछली बिना पानी के नहीं रह सकती, वैसे ही हमें अपने निजी स्वरूप के भिन्न-भिन्न अनुभव के सागर से लगन और आकर्षण बनाए रखना चाहिए।
  4. जैसे स्थूल वस्तु अपनी भिन्न-भिन्न रसनाओं का अनुभव कराती है, वैसे ही हमें अपने निजी स्वरूप के हर गुण की रसना का अनुभव अन्य आत्माओं को कराना चाहिए।

    निराकार स्वरूप की स्मृति में रहने तथा आनन्द रस लेने की सहज विधि

    प्रश्न-उत्तर श्रृंखला

    प्रश्न 1: निराकार स्वरूप को सहज स्मृति में रखना क्यों आवश्यक है?
    उत्तर: जैसे साकार स्वरूप अपना होने के कारण स्वतः स्मृति में रहता है, वैसे ही निराकारी स्वरूप भी हमारा निजी और अविनाशी स्वरूप है। अपनापन भूलना मुश्किल होता है, इसलिए इसे सहज स्मृति में रखना चाहिए।

    प्रश्न 2: अपने निराकारी स्वरूप की स्मृति में गहराई से जाने का क्या लाभ है?
    उत्तर: जैसे वैज्ञानिक गहराई में जाकर नई खोज करते हैं, वैसे ही अपने अनादि गुणों व संस्कारों की गहराई में जाने से नए-नए आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होते हैं।

    प्रश्न 3: आनंद स्वरूप की अवस्था का अनुभव कैसे किया जा सकता है?
    उत्तर: आनंद स्वरूप की अवस्था में रहने से आत्मा पूर्ण संतुष्टि अनुभव करती है और उसका प्रभाव स्वयं पर व अन्य आत्माओं पर सकारात्मक रूप से पड़ता है।

    प्रश्न 4: आत्मा के निराकार स्वरूप की स्थायी स्मृति कैसे बन सकती है?
    उत्तर: जैसे मछली पानी के बिना जीवित नहीं रह सकती, वैसे ही आत्मा को अपने स्वरूप के सागर से गहरा लगाव होना चाहिए, ताकि बाहरी दुनिया में आकर भी आकर्षण आत्म-अनुभूति की ओर बना रहे।

    प्रश्न 5: अन्य आत्माओं को उनके मूल स्वरूप का अनुभव कैसे कराया जाए?
    उत्तर: जैसे मिश्री मिठास का अनुभव कराती है, वैसे ही आत्मा अपने स्वरूप के हर गुण की रसना का अनुभव दूसरों को कराए तो आत्माएं आकर्षित होंगी और जागृत होंगी।

    प्रश्न 6: सहज रूप से निरंतर याद में रहने के लिए क्या परिवर्तन आवश्यक है?
    उत्तर: यह प्रश्न उठने के बजाय कि “याद कैसे करें?”, यह अनुभव होना चाहिए कि “याद भूल कैसे सकती है?” जब आत्मा इस स्मृति में लीन हो जाएगी, तो अन्य व्यर्थ की बातें स्वतः समाप्त हो जाएंगी।

    आपको यह प्रश्न-उत्तर श्रृंखला कैसी लगी? कोई और संशोधन या विस्तार चाहते हैं?

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            निराकार स्मृति, आत्मा का अनुभव, आनंद रस, आत्मस्मृति, आध्यात्मिक जागृति, ध्यान विधि, निराकारी स्वरूप, शिव बाबा ज्ञान, मुरली सार, आत्मा का स्वरूप, आध्यात्मिक अभ्यास, अंतर्मुखता, ब्रह्मा कुमारिज, राजयोग ध्यान, आत्मा की शुद्धता, दिव्य गुण, आत्म-अनुभूति, आध्यात्मिक रस, परमात्म स्मरण, सहज योग, योग की गहराई, शिव बाबा का संदेश, आनंद की स्थिति, ईश्वरीय अनुभव, आत्मिक यात्रा                                                                            Formless memory, experience of soul, bliss, self-remembrance, spiritual awakening, meditation method, formless form, Shiv Baba knowledge, Murli essence, nature of soul, spiritual practice, introspection, Brahma Kumaris, Raja Yoga meditation, purity of soul, divine qualities, self-realization, spiritual bliss, remembrance of God, Sahaja Yoga, depth of yoga, message of Shiv Baba, state of bliss, divine experience, spiritual journey