Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
सेवा में सफलता पाने की युक्तियाँ – २३-०१-१९७०
अगर युगल साथ होगा तो माया आ नहीं सकेगी | युगल मूर्त समझना यही बड़े ते बड़ी युक्ति है | कदम-कदम पर साथ रहने के कारण साहस रहता है |युगल मूर्त समझना यही बड़े ते बड़ी युक्ति है | कदम-कदम पर साथ रहने के कारण साहस रहता है |शक्ति रहती है फिर माया आएगी नहीं |
तुम गोडली स्टूडेंट हो ? डबल स्टूडेंट बनकर के फिर आगे का लक्ष्य क्या रखा है ? उंच पद किसको समझते हो ? लक्ष्मी-नारायण बनेंगे ? जैसा लक्ष्य रखा जाता है तो लक्ष्य के साथ फिर और क्या धारणा करनी पड़ती है ? लक्षण अर्थात् दैवी गुण | लक्ष्य जो इतना उंच रखा है तो इतने उंच लक्षण का भी ध्यान रखना है | छोटी कुमारी बहुत बड़ा कार्य कर सकती है | अपनी प्रैक्टिकल स्थिति में स्थित हो किसको बैठ सुनाये तो उनका असर बड़ों से भी अधिक हो सकता है | सदैव लक्ष्य यही रखना है कि मुझ छोटी को कर्त्तव्य बहुत बड़ा करके दिखाना है | देह भल छोटी है लेकिन आत्मा की शक्ति बड़ी है | जो जास्ती पुरुषार्थ करने की इच्छा रखते हैं उनको मदद भी मिलती है | सिर्फ अपनी इच्छा को दृढ़ रखना, तो मदद भी दृढ़ मिलेगी | कितनी भी कोई हिलाए लेकिन यह संकल्प पक्का रखना | सकल्प पक्का होगा तो फिर सृष्टि भी ऐसी बनेगी | भाल जिस्मानी सर्विस भी करते रहो | जिस्मानी सर्विस भी एक साधन है इसी साधन से सर्विस कर सकते हो | ऐसे ही समझो कि इस सर्विस के सम्बन्ध में जो भी आत्माएं आती हैं उनको सन्देश देने का यह साधन है | सर्विस में तो कई आत्माएं कनेक्शन में आती हैं | जैसे यहाँ जो आये उन्हीं को भी सर्विस के लिए सम्बन्धियों के पास भेजा ना | ऐसे ही समझो कि सर्विस के लिए यह स्थूल सर्विस कर रहे हैं | तो फिर मन भी उसमें लगेगा और कमाई भी होगी | लौकिक को भी अलौकिक समझ करो | फिर कोई और वातावरण में नहीं आयेंगे | जैसे जैसे अव्यक्त स्थिति होती जाएगी वैसे बोलना भी कम होता जायेगा | कम बोलने से ज्यादा लाभ होगा | फिर इस योग की शक्ति से सर्विस करेंगे | योगबल और ज्ञान-बल दोनों इकठ्ठा होता है | अभी ज्ञान बल से सर्विस हो रही है | योगबल गुप्त है | लेकिन जितना योगबल और ज्ञानबल दोनों समानता में लायेंगे उतनी-उतनी सफ़लता होगी | सरे दिन में चेक करो कि योगबल कितना रहा, ज्ञानबल कितना रहा ? फिर मालूम पद जायेगा कि अंतर कितना है | सर्विस में बिजी हो जायेंगे तो फिर विघ्न आदि भी टल जायेंगे | दृढ़ निश्चय के आगे कोई रुकावट नहीं आ सकती | ठीक चल रहे हैं | अथक और एकरस दोनों ही गुण हैं | सदैव फॉलो फ़ादर करना है | जैसे साकार रूप में भी अथक और एकरस, एग्जाम्पल बनकर दिखाया | वैसे ही औरों के प्रति एग्जाम्पल बनना है | यही सर्विस है | समय भाल न भी मिले सर्विस का, लेकिन चरित्र भी सर्विस दिखला सकता है | चरित्र से भी सर्विस होती है | सिर्फ वाणी से नहीं होती | आप के चरित्र उस विचित्र बाप की याद दिलाएं | यह तो सहज सर्विस है न | जैसे कई लोग अपने गुरु का वा स्त्री अपने पति का फोटो लॉकेट में लगा देती है न | यह एक स्नेह की निशानी है | तो तुम्हारा या मस्तक जो है यह भी उस विचित्र का चरित्र दिखलायें | यह नयन उस विचित्र का चित्र दिखाएं | ऐसा अविनाशी लॉकेट पहन लेना है | अपनी स्मृति भी रहेगी और सर्विस भी होगी |
मधुबन में आकर मुख्य कर्त्तव्य क्या किया ? जैसे कोई खान पर जाते हैं तो खान के पास जाकर क्या किया जाता है | खान से जितना ले सकते हैं उतना लिया जाता है | सिर्फ़ थोड़ा-सा नहीं | वैसे ही मधुबन है सर्व प्राप्तियों की खान | तो आप खान पर आये हो ना | बाकि सेवाकेंद्र हैं इस खान की ब्रान्चेस | खान पर जाने से ख्याल रखा जाता है जितना ले सकें | तो यहाँ भी जितना ले सको ले सकते हो | यहाँ की एक-एक वस्तु एक-एक ब्राह्मण आत्मा बहुत कुछ शिक्षा और शक्ति देनेवाली है | बापदादा यही चाहते हैं कि जो भी आते हैं वह थोड़ा बहुत नहीं लेकिन सभी कुछ ले लेवें | बापदादा का बच्चों में शेन है तो एक-एक को संपन्न बनाने चाहते हैं | जितना यहाँ लेने में संपन्न बनेंगे उतना ही भविष्य में राज्य पाने के संपन्न होंगे | इसलिए एक सेकंड भी इन अमूल्य दिनों को ऐसे नहीं गँवाना | एक-एक सेकंड में पद्मों की कमाई कर सकते हो | पदम सौभाग्यशाली तो हो | जो इस भूमि पर पहुँच गए हो | लेकिन इस पदम भाग्य को सदा कायम रखने के लिए पुरुषार्थ सदैव सम्पूर्णता का रखना | जैसा बीज होता है वैसा फल निकलता है | तो आप लोग जैसे बीज हो, नींव जितनी खुद मज़बूत होगी उतना ही ईमारत भी पक्की होगी | इसलिए सदैव समझना चाहिए कि हम नींव हैं | हमारे ऊपर साड़ी बिल्डिंग का आधार है |
याद का रेस्पोंड मिलता है ? बापदादा तो अब सभी के साथ हैं ही, क्योंकि साकार में तो एक स्थान पर साथ रह सकते थे | अभी तो सर्व के साथ रह सकते हैं | सदैव यह ध्यान रखो कि एक मत से एक रिजल्ट होगी | इस गुण को परिवर्तन में लाना | कैसी भी परिस्थिति आये, लेकिन अपने को मज़बूत रखना है | औरों को अपने गुणों का दान देना है | जैसे दान करने से रिटर्न में भविष्य में मिलता है ना | इस गुण का दान करने से भी बड़ी प्रालब्ध मिलती है जो एक मत होते हैं वाही एक को प्यारे लगे हैं | बापदादा दो होते एक हैं न | वैसे भाल कितने भी हो लेकिन एक मत होकर चलना | बाप के घर में आकर विशेष खज़ाना लिया ? बाप के घर में विशेषताएं भरी हुई हैं ना | अपने घर में असली स्वरुप में स्थित होने आये हो अपना असली स्वरुप और असली स्थिति क्या है, वह याद आती है ? आत्मा की असली स्थिति क्या है ? जैसे पहले आत्मा परमधाम की निवासी, सर्व गुणों का स्वरुप है | वैसे ही यहाँ भी अपनी स्थिति का अनुभव् करने के लिए आये हो | मधुबन में आये हो उस स्थिति का टेस्ट करने | टेस्ट करने बाद उनको सदा के लिए अपनाना है | इसका नाम ही है मधुबन | मधु अर्थात् मधुरता यानि स्नेह और शक्ति दोनों ही वरदान पूर्ण रूप से प्राप्त करना | यहाँ मधुबन में दोनों चीज़ वरदान रूप में मिलती है | फिर बहार में जायेंगे तो इन दोनों चीज़ के लिए अपना पुरुषार्थ करना पड़ेगा | इसलिए यहाँ वरदान रूप में प्राप्त जो हो रहा है उनको ऐसा प्राप्त करना जो अविनाशी रहे | जब वरदान रूप में प्राप्त हो सकते हैं तो पुरुषार्थ करके क्यों लेवें | गुरु वरदान देता है तो क्या करना होता है ? अपने को उसके अर्पण करना पड़ता है, तब वरदान प्राप्त होता है | तो यहाँ भी जितना अपने को अर्पण करेंगे, उतना वरदान प्राप्त होगा | वरदान तो सभी को मिलता है, लेकिन जो ज्यादा अपने को अर्पण करता है, उतना ही वरदान का पात्र बनता है | वरदान से ऐसी झोली भर लो, जो भरी हुई झोली कभी खाली न हो | जितना जो भरना चाहे वह भर सकते हैं | ऐसा ही ध्यान रखकर इन थोड़े दिनों में अथक लाभ उठाना है | एक-एक सेकंड सफल करने के यह दिन है | अभी का एक सेकंड बहुत फायदे और बहुत नुकसान का भी है | एक सेकंड में जैसे कई वर्षों की कमाई गँवा भी देते हैं ना | तो यहाँ का एक सेकंड इतना बड़ा है |
त्याग से ही भाग्य बनता है | लेकिन त्याग करने के बाद मनसा में भी संकल्प उत्पन्न नहीं होना चाहिए | जब कोई बलि चढ़ता है तो उमे अगर ज़रा भी चिल्लाया वा आँखों से बूँद निकली तो उनको देवी के आगे स्वीकार नहीं कराएँगे | झाटकू सुना है ना | एक धक् से कोई चीज़ को ख़त्म करने और बार बार काटने में फ़र्क रहता है ना | झाटकू अर्थात् एक धक् से ख़त्म | बापदादा के पास भी कौन से बच्चे स्वीकार होंगे ? जिनको मनसा में भी संकल्प न आये इसको कहा जाता है महाबली | ऐसे महान बलि को ही महान बल की प्राप्ति होती है | सर्वशक्तिवान के बच्चे हो और फिर शक्ति नहीं, बाप की प्पुरु जायदाद का हक़दार बनना है ना | सर्वशक्तिवान बाप की सर्व शक्तियों की जायदाद, जन्म-सिद्ध अधिकार सदैव अपने सामने रखो | सर्वशक्तिवान के आगे कमज़ोरी ठहर सकती है ? आज से कमज़ोरी ख़त्म | सिर्फ एक शक्ति नहीं | पाण्डव भी शक्ति रूप हैं | एक दीप से अनेक जगते हैं |
डबल सर्जरी करते हो ? और ही अच्छा चांस मिलता है दो मार्ग बताने का | शरीर का भी और मन का भी | जैसे स्थूल सर्विस करने से तनख्वाह मिलती है ? (स्वर्ग की बादशाही मिलती है) वह तो वहां मिलेगी लेकिन यहाँ क्या मिलता है ? प्रत्यक्ष फल का अनुभव होता है ? भविष्य तो बनता ही है लेकिन भविष्य से भी ज्यादा अभी की प्राप्ति है | अभी जो ईश्वरीय अतीन्द्रिय सुख मिलता है वह भविष्य में नहीं मिल सकता | यह अतीन्द्रिय सुख सारे कल्प में कभी नहीं मिल सकता | ऐसा खजाना अभी बाप द्वारा मिलता है | अनेक जन्म इन्द्रियों का सुख और एक सेकंड में अतीन्द्रिय सुख अनुभव होता है ? शिवबाबा को युगल बनाया है ? वह देहधारी युगल तो सुख के साथी होते हैं लेकिन यह तो दुःख के समय साथी बनता है | ऐसे युगल को तो एक सेकंड भी अलग नहीं करना चाहिए | साथ रखना अर्थात् शक्ति रूप बनना | यह ब्राह्मण परिवार देखा | इतना बड़ा परिवार कब मिलता है ? सिर्फ इस संगम पर ही इतना बड़ा परिवार मिलता है | हम इतने बड़े परिवार के हैं – यह नशा रहता है ? जितना कोई बड़े परिवार का होता है उतनी उसको ख़ुशी रहती है | सारी दुनिया में हम थोड़ों को इतना बड़ा परिवार मिलता है | तो यह निश्चय और नशा होना चाहिए | हरेक को यह नशा होना चाहिए कि कोटों में से कोई हम गायन में आनेवाली आत्माएं हैं | कभी सोचा था क्या कि ऐसा सौभाग्य प्राप्त हो सकता है ? अचानक लॉटरी मिली है | लॉटरी की ख़ुशी होती है ना और फिर यह अविनाशी लॉटरी है | जो कभी ख़त्म हो न सके | ऐसी लॉटरी हम आत्माओं को मिली है | यह नशा रहता है ? कोने-कोने से बापदादा ने देखो कीन्हों को चुना है | चुने हुए रत्नों में आप विशेष हैं | यह याद रहता है | बापदादा को कौन-से रत्न अच्छे लगते हैं ? साधारण | ऐसी ख़ुशी सदैव अविनाशी रहे | वह कैसे रहेगी ? जैसे दीपक होता है वह सदैव जगा रहे इसके लिए ध्यान रखते हैं | घृत और बत्ती इन दो चीज़ का ख्याल रखना पड़ता है | तो यहाँ भी ख़ुशी का दीपक सदैव जगा रहे इसके लिए दो बातें ध्यान में रखनी है | ज्ञान घृत और योग है बत्ती | अगर यह दोनों ही ठीक हैं तो ख़ुशी का दीपक अविनाशी रहेगा | कभी बुझेगा नहीं |
१५ दिन भी इस संगमयुग के बहुत हैं | ऐसे मत समझना कि हम तो १५ दिन के बच्चे हैं लेकिन संगम का समय ही अभी बहुत कम है | इस काम के हिसाब से यह १५ दिन भी बहुत हैं, इसलिए अब ऐसे ही सोचना कि लास्ट वालों को फ़ास्ट होना है | बिछड़े हुए जो होते हैं वह आने से ही तीव्र पुरुषार्थ में लग जाते हैं हिम्मत बच्चे रखते हैं, मदद बाप देते हैं | एक कुमारी १०० ब्राह्मणों से उत्तम गाई जाती है | एक में १०० की शक्ति भरेंगे तो क्या नहीं कर सकते | सिर्फ अपने पांव को पक्का मजबूत बनाओ | कितना भी कोई हिलाएं तो हिलना नहीं है | अचलघर भी तुम्हारा यादगार है ना | अचल अर्थात् जिसको कोई हिला न सके | तीन मास में तीन वर्सा लिए हैं ? बापदादा तीन वर्सा कौन सा देते हैं ? सुख, शांति और शक्ति | जितना अधिकार लेंगे उतना वहाँ राज्य के अधिकारी बनेंगे | सम्पूर्ण अधिकार पाने का लक्ष्य रखना है | क्योंकि बाप भी सम्पूर्ण है ना |
युगल रहते हुए अकेले रहे हो गा युगल रूप में रहते हो ? अकेला रूप कौन सा है ? आत्मा अकेली है ना | आते भी अकेले हैं | जाते भी अकेले हैं | तो युगल रूप में पार्ट बजाते भी आत्मिक स्थिति में रहना अर्थात् अकेले बनना है और फिर रूहानी युगल बनना है | तो बाप और बच्चे | वह तो हुआ देह का युगल | आत्मा और परमात्मा यह भी युगल हैं | आत्मा सजनी, सीता कहते हैं ना | परमात्मा है साजन, राम | तो रूहानी युगल मूर्त बनना है | बस | देह के युगल रूप नहीं | देहधारी का युगल रूप ख़त्म हुआ | अनेक जन्म देहधारियों का युगल रूप देखा | अब आत्मा और परमात्मा का युगल रूप बनना है | ऐसी स्थिति में रहते हो ? इस अनोखे युगल रूप के सामने वह युगल तो कुछ नहीं | तो देह की भावना ख़त्म हो जाएगी | सभी से प्रिय चीज़ क्या है ? प्रिय चीज़ अच्छी लगती है ना | तो उस प्रिय वास्तु को छोड़ दुसरे को प्रिय कैसे बना सकते हैं | अकेला भी बन जाना है, फिर युगल भी बनना है |
कोई को आने से ही लॉटरी मिल जाती है | कोई को प्रयत्न करने से लॉटरी मिलती | ऐसे उच्च भाग्यशाली अपने को समझते हो ? कुमारों के लिए भी सरल मार्ग है | क्योंकि उलटी सीढ़ी जो चढ़े हुए हैं, उनको उतरनी पड़ती हैं | इसलिए कुमार-कुमारियों के लिए और ही सहज है | जो बंधन मुक्त होते हैं वह जल्दी दौड़ सकते हैं | तो सभी बातों में निर्बन्धन रहना है | कैसी भी परिस्थिति में अपनी स्थिति ऊँची रखनी है | जो उच्च जीवन का लक्ष्य है उनसे दूर नहीं होना है |
युगल मूर्त समझना – साहस और शक्ति का आधार
प्रश्न 1:
सवाल: युगल मूर्त बनने का अर्थ क्या है?
जवाब: आत्मा और परमात्मा का संगम ही असली युगल मूर्त है, जहाँ आत्मा सजीव सीता और परमात्मा राम के रूप में है।
प्रश्न 2:
सवाल: क्या कदम-कदम पर साथ रहने से शक्ति बढ़ती है?
जवाब: हाँ, जब याद में रहकर बाप को साथी बनाते हैं, तो साहस और शक्ति बढ़ती है, और माया का प्रभाव नहीं पड़ता।
प्रश्न 3:
सवाल: उच्च लक्ष्य के लिए कौन सी धारणा आवश्यक है?
जवाब: उच्च लक्ष्य के साथ दैवी गुण (लक्षण) अपनाने होंगे, जैसे आत्मिक स्थिति में रहकर सेवा और पुरुषार्थ करना।
प्रश्न 4:
सवाल: छोटी कुमारी बड़ा कार्य कैसे कर सकती है?
जवाब: आत्मा की शक्ति को पहचानकर, अपनी स्थिति में स्थित होकर बोलने और सेवा करने से बड़े-बड़े परिणाम ला सकती है।
प्रश्न 5:
सवाल: मधुबन में आकर मुख्य कर्त्तव्य क्या है?
जवाब: मधुबन को सर्व प्राप्तियों की खान मानकर, हर क्षण का उपयोग करते हुए शक्ति और शिक्षा का पूर्ण लाभ लेना।
प्रश्न 6:
सवाल: त्याग से भाग्य कैसे बनता है?
जवाब: सच्चा त्याग वही है, जहाँ मनसा में भी किसी बात का संकल्प न उठे। यह स्थिति ही महान बल की प्राप्ति करवाती है।
प्रश्न 7:
सवाल: योगबल और ज्ञानबल का संतुलन क्यों आवश्यक है?
जवाब: योगबल गुप्त है, जबकि ज्ञानबल प्रकट। दोनों का संतुलन सफलता और शक्ति का कारण बनता है।
प्रश्न 8:
सवाल: संगमयुग के दिन इतने विशेष क्यों हैं?
जवाब: संगम का समय बेहद कम है, और हर क्षण में पद्मों की कमाई और अतीन्द्रिय सुख का अनुभव संभव है।
प्रश्न 9:
सवाल: अविनाशी खुशी का दीपक कैसे जलाए रखें?
जवाब: ज्ञान घृत और योग बत्ती का ध्यान रखकर, यह दीपक सदैव जलता रहेगा।
प्रश्न 10:
सवाल: कुमार-कुमारियों के लिए विशेष लाभ क्या है?
जवाब: वे बंधन-मुक्त होते हैं, जिससे वे सरलता से तीव्र पुरुषार्थ कर सकते हैं और ऊँचे लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न 11:
सवाल: एक बाप को याद करते हुए क्या अनुभव होता है?
जवाब: बाप की याद से सच्चा सुख, शांति और शक्ति प्राप्त होती है, और कोई भी रुकावट टिक नहीं पाती।
प्रश्न 12:
सवाल: याद का उत्तर कैसे मिलता है?
जवाब: बापदादा सर्व के साथ हैं। उनकी उपस्थिति से आत्मा को शक्ति, साहस और मार्गदर्शन मिलता है।
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