Avyakta Murli”26-03-1970(2)

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

YouTube player

महारथी – पन के गुण और कर्त्तव्य  – २६-०३-१९७०

गुड्डियों का खेल क्या होता है, मालूम है ?  साड़ी जीवन उनकी बना देते हैं, छोटे से बड़ा करते, फिर स्वयंवर करते | वैसे बच्चे भी कई बातों की, संकल्पों की रचना करते हैं फिर उसकी पालना करते हैं फिर उनको बड़ा करते हैं फिर उनसे खुद ही तंग होते हैं |  तो यह गुड्डियों का खेल नहीं हुआ ?  खुद ही अपने से आश्चर्य भी खाते हैं |  अब ऐसी रचना नहीं रचनी है |  बापदादा व्यर्थ रचना नहीं रचते हैं |  और बच्चे भी व्यर्थ रचना रचकर फिर उनसे हटने और मिटने का पुरुषार्थ करते हैं |  इसलिए ऐसी रचना नहीं रचनी है |  एक सेकंड में सुलटी रचना भी क्विक रचते हैं और उलटी रचना भी इतनी तेज़ी से होती है |  एक सेकंड में कितने संकल्प चलते हैं |  रचना रचकर उसमे समय देकर फिर उनको ख़त्म करने लिए प्रयत्न करने की आवश्यकता है ?  अब इस रचना को ब्रेक लगाना है |

वह बर्थ कण्ट्रोल करते हैं ना |  यह भी संकल्पों की उत्पत्ति होती है, तो यह भी बर्थ(जन्म) है |   वहाँ वह जनसँख्या अति में जाती है और यहाँ फिर संकल्पों की संख्या अति होती है |  अब इसको कण्ट्रोल करना है |  पुरुषार्थ की कमजोरी के कारण संकल्पों की रचना होती है, इसलिए अब इनको नाम निशाँ से ख़त्म कर देना है |  पुरानी बातें, पुराने संस्कार ऐसे अनुभव हों जैसे कि नामालुम कब की पुरानी बात है |  ऐसे नाम निशान ख़त्म हो जाए |  अब भाषा बदलनी है |  कई ऐसे बोल अब तक निकलते हैं जो सम्पूर्णता की स्टेज अनुसार नहीं है |  इसलिए अब से संकल्प ही वही करना है, बोल भी वही, कर्म भी वही करनी है |  इस भट्ठी के बाद सभी की सूरत में सम्पूर्णता की झलक देखने में आये |  जब आप लोग अभी से सम्पूर्णता को समीप लायेंगे तब नंबरवार और भी समीप ला सकेंगे |  अगर आप लोग ही अंत में लायेंगे तो दुसरे क्या करेंगे ?  साकार रूप ने सम्पूर्णता को साकार में लाया |  सम्पूर्णता साकर रूप में संपन्न देखने में आती थी |  सम्पूर्ण और साकार अलग देखने में आता था |  वैसे ही आपका साकार स्वरुप अलग देखने में नहीं आये |  साकार रूप में मुख्य गुण क्या स्पष्ट देखने में आये ?  जिस गुण से सम्पूर्णता समीप देखने आती थी ?  वह क्या गुण था ?  जिस गुण को देख सभी कहते थे कि साकार होते भी अव्यक्त अनुभव होता है |  वह क्या गुण था ?  (हरेक ने सुनाया) सभी बातों का रहस्य तो एक ही है |  लेकिन इस स्थिति को कहा जाता है-उपराम |  अपने देह से भी उपराम |  उपराम और दृष्टा |

जो साक्षी  बनते हैं उनका ही दृष्टांत देने में आता है |  तो साक्षी दृष्टा का साबुत और द्रष्टान्त के रूप में सामने रखना है |  एक तो अपनी बुद्धि से उपराम |  संस्कारों से भी उपराम |  मेरे संस्कार हिं इस मेरेपन से भी उपराम |  संस्कारों से भी उपराम |  मेरे संस्कार हैं इस मेरेपन से भी उपराम |  में यह समझती हूँ, इस मैं-पन से भी उपराम |  मैं तो यह समझती हूँ |  नहीं |  लेकिन समझो बापदादा की यही श्रीमत है |  जब ज्ञान की बुद्धि के बाद मैं-पन आता है तो वह मैं-पन भी नुकसान करता है |  एक तो मैं शरीर हूँ यह छोड़ना है, दूसरा मैं समझती हूँ, मैं ज्ञानी आत्मा हूँ, मैं बुद्धिमान हूँ, यह मैं-पन भी मिटाना है |  जहाँ मैं शब्द आता है वहां बापदादा याद आये |  जहाँ मेरी समझ आती है वहां श्रीमत याद  आये |  एक तो मैं-पन मिटाना है दूसरा मेरा-पन |  वह भी गिरता है |  यह मैं और मेरा तुम और तेरा यह चार शब्द हैं इनको मिटाना है |  इन चार शब्दों ने ही सम्पूर्णता से दूर किया है |  इन चार शब्दों को सम्पूर्ण मिटाना है |  साकार के अन्तिम बोल चेक किये, हर बात में क्या सुना ?  बाबा-बाबा |  सर्विस में सफलता न होने की करेक्शन भी कौन सी बात में थी ?  समझाते थे हर बात में बाबा-बाबा कहकर बोलो तो किसको भी तीर लग जायेगा |  जब बाबा याद आता तो मैं-मेरा,तू-तेरा ख़त्म हो जाता है |  फिर क्या अवस्था हो जाएगी ?  सभी बातें प्लेन हो जायेंगी फिर प्लेन याद में ठहर सकेंगे |

अभी बिंदी रूप में स्थित होने में मेहनत लगती है ना |  क्यों ?  सारा दिन की स्थिति प्लेन न होने कारण प्लेन याद ठहरती नहीं |  कहाँ न कहाँ मैं-पन, मेरापन, तू, तेरा आ जाता है |  शुरू में सुनाया था न कि सोने की ज़ंजीर भी कम नहीं नही |  वह ज़ंजीर अपने तरफ खींचती हैं |  हरेक अपने को चेक करे |  बिलकुल उपराम-बुद्धि, बिलकुल-प्लेन |  अगर रास्ता क्लियर होता है तो पहुँचने में कितना टाइम लगता है ?  उसी रास्ते में रुकावट है तो पहुँचने में भी टाइम लग जाता |  रूकावट है तब प्लेन याद में भी रुकावट है |  अब इसको मिटाना है |  जब आप करेंगे आपको देखकर सभी करेंगे |  नंबरवार स्टेज पर पहुंचना है |  आप लोग पहुंचेंगे तब दुसरे पहुंचेंगे |  इतनी जिम्मेवारी है |  संकल्प में, वाणी में, कर्म में वा सम्बन्ध में वा सर्विस में अगर कोई भी हद रह जाती है तो वह बाउंड्रीज़ जो हैं वह बाँडेज में बाँध देती हैं |  बेहद की स्थिति में होने से ही बेहद के रूप में स्थित हो जायेंगे |  अब जो कुछ खाद है उनको मिटाना है |  खाद को मिटाने लिए यह भट्ठी है |  जब संगठन हो तो साक्षात् बापदादा के स्वरूपों का संगठन हो |  अब यह सम्पूर्णता की छाप लगानी है |  सम्पूर्ण अवस्था वर्तमान समय से ही हो |  यह है महारथियों का कर्त्तव्य |  अब और क्या करना है ?  स्कॉलरशिप कौन सा लेते है ?  स्कॉलरशिप लेने वाले का अब प्रत्यक्ष साक्षात्कार होता जायेगा |  ऐसे नहीं कि बापदादा गुप्त रहे तो हम बच्चों को भी गुप्त रहना है |  नहीं |  बच्चों को स्टेज पर प्रत्यक्ष होना है |  प्रत्यक्षता बच्चों की होनी है |  सर्विस के स्टेज पर भी प्रत्यक्ष कौन हैं ?  तो सम्पूर्णता की प्रत्यक्षता भी स्टेज पर लानी है |  ऐसे नहीं समझो अंत तक गुप्त ही रहेंगे |  बापदादा का गुप्त पार्ट है, बच्चों का नहीं |  तो अब वह प्रत्यक्ष रूप में लाओ |  अब मालूम हैं सर्विस कौन सी करनी है ?  सम्मेलन किया, बस यही सर्विस है ?  इनके साथ-साथ और श्रेष्ठ सर्विस कौन सी करनी है ?

अब मुख्य सर्विस है ही अपनी वृत्ति और दृष्टि को पलटाना |  यह जो गायन है नज़र से निहाल, तो दृष्टि और वृत्ति की सर्विस यह प्रैक्टिकल में लानी है |  वाचा तो एक साधन है लेकिन कोई को सम्पूर्ण स्नेह और सम्बन्ध में लाना उसके लिए वृत्ति और दृष्टि की सर्विस हो |  यह सर्विस एक स्थान पर बैठे हुए एक सेकंड में अनेकों की कर सकते हैं |  यह प्रत्यक्ष साबुत देखेंगे |  जैसे शुरू में बापदादा का साक्षात्कार पर बैठे हुआ ना |  वैसे अब दूर बैठे आपकी पावरफुल वृत्ति अ इसा कार्य करेगी जैसे कोई हाथ से पकड़ कर लाया जाता है |  कैसा भी नास्तिक तमोगुणी बदला हुआ देखने में आएगा |  अब वह सर्विस करनी है | लेकिन यह सर्विस सफलता को तब पायेगी जब वृत्ति और बैटन में क्लियर होगी |  जिम्मेवारी तो हरे अपनी समझते ही हैं |  हरेक को अपनी सर्विस होते हुए भी यज्ञ की जिम्मेवारी भी अपने सेंटर की जिम्मेवारी के समान ही समझना है |  खुद ऑफर करना है |  वाणी के साथ-साथ वृत्ति और दृष्टि में इतनी ताक़त है, जो किसके संस्कारों को बहुत कम समय में बदल दकते हो |  वाणी के साथ वृत्ति और दृष्टि नहीं मिलती तो सफलता होती ही नहीं |  मुख्य यह सर्विस है |  अभी से ही बेहद की सर्विस पर बेहद की आत्माओं को आकर्षित करना है |  जिस सर्विस को आप सर्विस समझते हो प्रजा बनाने की, वह तो आप की प्रजा के भी प्रजा खुद बनने हैं, वह तो प्रदर्शनियों में बन रहे हैं |  अभी तो आप लोगों को बेहद में अपना सुख देना है तब सारा विश्व आपको सुखदाता मानेगा |  विश्व महाराजन को विश्व का डाटा कहते हैं ना |  तो अब आप भी सभी को सुख देंगे तब सभी तुमको सुखदाता मानेंगे |  सुख देंगे तब तो मानेंगे | इसलिए अब आगे बढ़ना है |  एक सेकंड में अनेकों की सर्विस कर सकते हो |  कोई भी बात में फील करना फ़ैल की निशानी है |  कोई भी बात में फील होता है, कोई के संस्कारों में, सम्पर्क में, कोई की सर्विस में फील किया माना फ़ैल |  वह फिर फ़ैल जमा होता है |  जैसे आजकल रिवाज़ है, तीन-तीन मास में परीक्षा होती है, उसके लिए फ़ैल वा पास के नंबर फाइनल में मिलाते हैं |  जो बार-बार फ़ैल होता है वह फाइनल में फ़ैल हो पड़ते हैं |  इसलिए बिलकुल फ्लोलेस बनना है |  जब फ्लोलेस बनें तब समझो फुल पास |  कोई भी फ्लो होगा तो फुल पास नहीं होंगे |

महारथी – पन के गुण और कर्त्तव्य – २६-०३-१९७०

  1. गुड्डियों का खेल क्या है?
    उत्तर: गुड्डियों का खेल संकल्पों की रचना और उनकी पालना करना होता है, लेकिन बाद में स्वयं उनसे तंग हो जाना। यह तरीका सही नहीं है, और हमें व्यर्थ रचनाओं से बचना चाहिए।
  2. संकल्पों का नियंत्रण क्यों महत्वपूर्ण है?
    उत्तर: संकल्पों की संख्या अति होती है और उन्हें नियंत्रित करना जरूरी है, क्योंकि पुरुषार्थ की कमजोरी से संकल्पों की रचना होती है। हमें इन संकल्पों को समाप्त करना है और पुरानी बातों को भूलकर आगे बढ़ना है।
  3. सम्पूर्णता का अनुभव कैसे करें?
    उत्तर: सम्पूर्णता का अनुभव साकार रूप में करना होता है, जैसे बाबा ने साकार रूप में सम्पूर्णता को व्यक्त किया। हमें अपने जीवन में भी यह गुण उतारने की कोशिश करनी चाहिए।
  4. साक्षी दृष्टा की स्थिति क्या है?
    उत्तर: साक्षी दृष्टा बनने का अर्थ है, अपने देह और संस्कारों से उपराम (अलग) होना और अपनी स्थिति को अव्यक्त रूप में महसूस करना। यह स्थिति हमें बापदादा की श्रीमत से प्राप्त होती है।
  5. “मैं” और “मेरा” शब्दों का प्रभाव क्या है?
    उत्तर: “मैं” और “मेरा” शब्दों को मिटाने से हम अपने अहंकार और स्वार्थ से मुक्त हो सकते हैं। बापदादा के श्रीमत का पालन करते हुए हमें इन शब्दों से उपराम होना चाहिए।
  6. सकारात्मक दृष्टि और वृत्ति की सेवा का क्या महत्व है?
    उत्तर: सकारात्मक दृष्टि और वृत्ति की सेवा से हम दूसरों के संस्कारों को जल्दी और प्रभावी तरीके से बदल सकते हैं। यह सेवा सिर्फ वाणी से नहीं, बल्कि हमारी वृत्ति और दृष्टि से भी होती है।
  7. संपूर्णता की सेवा कैसे करें?
    उत्तर: हमें अपनी वृत्ति और दृष्टि को साफ करके, दूसरों को सम्पूर्णता की अनुभूति करानी है। इससे हम न केवल खुद को बल्कि दूसरों को भी आत्मा की श्रेष्ठता से परिचित कराएंगे।
  8. महत्वपूर्ण सर्विस की पहचान क्या है?
    उत्तर: महत्वपूर्ण सर्विस अपने वृत्ति और दृष्टि को बदलने की है, ताकि हम दूसरों को सही मार्गदर्शन और शांति दे सकें। यह सर्विस हमें दूसरों की मदद करने और उन्हें उच्च स्थिति में लाने के लिए करनी है।
  9. “फ्लोलेस” बनने का क्या मतलब है?
    उत्तर: फ्लोलेस बनने का मतलब है हर कार्य में पूरी तरह से सही और निरंतरता बनाए रखना। यह हमें पूर्ण सफलता की ओर ले जाता है और किसी भी विघ्न या समस्या से बचाता है।

महारथी, गुण, कर्त्तव्य, संकल्प, ब्रह्मा बाबा, बापदादा, संस्कार, उपराम, श्रीमत, आत्मा, ध्यान, वृत्ति, दृष्टि, सर्विस, सम्पूर्णता, साधना, ध्यान की शक्ति, तपस्या, ज्ञान, पवित्रता, कर्म, साकार रूप, अव्यक्त, शुद्धता, बंधन, शिक्षा, प्रेम, सेवा, आत्मनिर्भरता, जीवन उद्देश्य, भक्ति, साधक, योग, आत्मा का उन्नति, संकल्प शक्ति, कर्मों का फल, परमात्मा, सकारात्मकता, ध्यान के अभ्यास, आत्म-ज्ञान, ब्रह्मा कुमारि.

Maharathi, qualities, duty, resolution, Brahma Baba, BapDada, sanskar, uprightness, Shrimat, soul, meditation, attitude, vision, service, perfection, sadhana, power of meditation, tapasya, knowledge, purity, karma, corporeal form, subtle, purity, bondage, education, love, service, self-reliance, life purpose, devotion, seeker, yoga, soul’s progress, power of resolution, fruit of actions, God, positivity, meditation practice, self-knowledge, Brahma Kumaris.