Avyakta Murli”07-06-1970 (1)

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“दिव्य मूर्त बनने की विधि” 

नयनों द्वारा क्या देख रहे हैं? आप सभी भी नयनों द्वारा देख रहे हो। बापदादा भी नयनों का आधार ले देख रहे हैं। बापदादा क्या देखते हैं? आप सभी क्या देख रहे हैं? देख रहे हो वा देखते हुए भी नहीं देखते हो? क्या स्थिति है? बापदादा क्या देख रहे यही आप देख रहे हो? संकल्पों को कैच करने की प्रैक्टिस होगी तो संकल्प रहित भी सहज बन सकेंगे। ज्यादा संकल्प तब चलाना पड़ता है जब किसके संकल्प को परख नहीं सकते हैं। लेकिन हरेक के संकल्पों को रीड करने की प्रैक्टिस होगी तो व्यर्थ संकल्प ज्यादा नहीं चलेंगे। और सहज ही एक संकल्प में एकरस स्थिति में एक सेकंड में स्थित हो जायेंगे। तो संकल्पों को रीड करना – यह भी एक सम्पूर्णता की निशानी है। जितना-जितना अव्यक्त भाव में स्थित होंगे उतना हरेक के भाव को सहज समझ जायेंगे। एक दो के भाव को न समझने का कारण अव्यक्त भाव की कमी है। अव्यक्त स्थिति एक दर्पण है। जब आप अव्यक्त स्थिति में स्थित होते हो तो कोई भी व्यक्ति के भाव अव्यक्त स्थिति रूप दर्पण में बिल्कुल स्पष्ट देखने में आएगा। फिर मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। दर्पण को मेहनत नहीं करनी पड़ती है कोई के भाव को समझने में। जितनी-जितनी अव्यक्त स्थिति होती है, वह दर्पण साफ़ और शक्तिशाली होआ है। इतना ही बहुत सहज एक दो के भाव को स्पष्ट समझते हैं। अव्यक्त स्थिति रूप दर्पण को साफ़ और स्पष्ट करने के लिए तीन बातें आवश्यक है। उन तीन बातों से कोई एक बात भी सुनाओ (हरेक ने बताया) आज हरेक की सरलता, श्रेष्ठता और सहनशीलता यह तीन चीज़ें एक-एक की देख रहे हैं। इन तीनों बातों में से कोई एक भी ठीक रीति धारण है तो दर्पण स्पष्ट है। अगर एक भी बात की कमी है तो दर्पण पर भी कमी का दाग दिखाई पड़ेगा। इसलिए जो भी कार्य करते हो, हर कार्य में तीन बातें चेक करो। सभी प्रकार से सरलता भी हो, सहनशीलता भी हो और श्रेष्ठता भी हो। साधारणपन भी न हो। अभी कहाँ श्रेष्ठता के बजाय साधारण दिखाई पड़ती है। साधारणपन को श्रेष्ठता में बदली करो और हर कार्य में सहनशीलता को सामने रखो। और अपने चेहरे पर, वाणी पर सरलता को धारण करो। फिर देखो सर्विस वा कर्तव्य की सफलता कितनी श्रेष्ठ होती है। अभी तक कर्तव्य की रिजल्ट क्या देखने में आती है? प्लैन और प्रैक्टिकल में अंतर कितना है?

अन्तर का कारण क्या है? तीनों ही रूप में अभी पूर्ण प्लेन नहीं हुए हो। स्मृति में भी प्लेन, वाणी में भी प्लेन होना चाहिए। कोई भी पुराने संस्कार का कहाँ दाग न हो और कर्म में भी प्लेन अर्थात् श्रेष्ठता। अगर प्लेन हो जायेंगे तो फिर प्लैन और प्रैक्टिकल एक हो जायेंगे। फिर सफलता प्लेन (एरोप्लेन) माफिक उड़ेगी। इसलिए हर बात में मनसा, वाचा कर्मणा और छोटी बात में भी सावधानी चाहिए। मन, वाणी कर्म में तो होना ही है लेकिन उसके साथ-साथ यह जो अलौकिक सम्बन्ध हैं उसमें भी प्लेन होंगे तो सर्विस की सफलता आप सभी के मस्तक पर सितारे के रूप में चमक पड़ेगी। फिर हरेक आप एक-एक को सफलता का सितारा देखेंगे। सुनाया था ना कि स्लोगन कौन सा याद रखो? सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। फिर तुमको कोई भी देखेंगे तो उनको दूर से दिव्यमूर्त देखने में आएंगे। साधारणमूर्त नहीं, लेकिन दिव्यमूर्त। आजकल बहुत सर्विस में बिजी हो। जो कुछ किया बहुत अच्छा किया। आगे के लिए सफलता को समीप लाओ। जितना-जितना एक दो के समीप आयेंगे उतना सफलता समीप आयेगी। एक दो के समीप अर्थात् संस्कारों के समीप। तब कोई भी सम्मेलन की सफलता होगी। जैसे समय समीप आ रहा है वैसे सभी समीप आ रहे हैं। लेकिन अब ऐसी समीपता में क्या भरना है? जितनी समीपता उतना एक दो को सम्मान देना। जितना एक दो को सम्मान देंगे उतना ही सारी विश्व आप सभी का सम्मान करेंगी सम्मान देने से सम्मान मिलेगा। देने से मिलता है न कि लेने से। कोई चीज़ लेने से मिलती है और कोई चीज़ देने से मिलती है। तो कोई को भी सम्मान देना गोया सर्व का सम्मान लेना है। और भाषा में भी परिवर्तन चाहिए। आज सभी सर्विसएबुल बैठे हैं ना तो इसलिए भविष्य के इशारे दे रहे हैं। कभी भी कोई का विचार स्पष्ट न हो तो भी ना कभी नहीं करनी चाहिए। शब्द सदैव हाँ निकलना चाहिए। जब यहाँ हाँ जी करेंगे तब वहाँ सतयुग में भी आपकी प्रजा इतना हाँ जी, हाँ जी करेगी। अगर यहाँ ही ना जी ना जी करेंगे तो वहाँ भी प्रजा दूर से ही प्रणाम करेगी। तो ना शब्द को निकाल देना है।

कोई भी बात हो पहले हाँ जी। हाँ जी कहना ही दूसरे के संस्कार को सरल बनाने का साधन है। समझा। सुनाया था वर्तमान समय जो कर्म कर रहे हो। वह भविष्य के लॉ बन रहे हैं। आप सभी का कर्म भविष्य का लॉ है। जो लॉ-मेकर्स होते हैं वह सोच-समझकर शब्द निकालते हैं। क्योंकि उनका एक-एक शब्द भविष्य के लिए लॉ बन जाता है। सभी के हर संकल्प भविष्य के लॉ बन रहे हैं। तो कितना ध्यान देना चाहिए! अभी तक एक बात को पकड़ते हैं तो विधान को छोड़ देते हैं। कब विधान को पकड़ते हैं तो विधि को छोड़ देते हैं। लेकिन विधि और विधान दोनों के साथ ही विधाता की याद आती हैं। अगर विधाता ही याद रहे तो विधि और विधान दोनों ही साथ स्मृति में रहेगा। लेकिन विधाता भूल जाता है तो एक चीज़ छूट जाती है। विधाता की याद में रहने से विधि और विधान दोनों साथ रहते हैं। विधाता को भूलने से कभी विधान छूट जाता है तो कभी विधि छूट जाती है। जब दोनों साथ रहेंगे तब सफलता गले का हार बन जाएगी।

दिव्य मूर्त बनने की विधि

प्रश्न 1: नयनों द्वारा हम क्या देख रहे हैं?
उत्तर: हम दिव्यता को देख रहे हैं, और बापदादा भी नयनों द्वारा हमें देख रहे हैं।

प्रश्न 2: बापदादा हमें देखकर क्या देखते हैं?
उत्तर: बापदादा हमारी आत्मिक स्थिति, संकल्पों की स्पष्टता और दिव्यता को देखते हैं।

प्रश्न 3: संकल्पों को कैच करने की प्रैक्टिस क्यों आवश्यक है?
उत्तर: इससे व्यर्थ संकल्प समाप्त होंगे और एकरस स्थिति सहज बन जाएगी।

प्रश्न 4: अव्यक्त स्थिति को दर्पण क्यों कहा गया है?
उत्तर: अव्यक्त स्थिति में स्थित आत्मा दूसरों के भाव को स्पष्ट रूप से समझ सकती है, जैसे दर्पण सब कुछ स्पष्ट दिखाता है।

प्रश्न 5: अव्यक्त स्थिति रूप दर्पण को साफ़ करने के लिए तीन आवश्यक बातें क्या हैं?
उत्तर: सरलता, श्रेष्ठता और सहनशीलता।

प्रश्न 6: सफलता और प्लैन के बीच का अंतर क्यों आता है?
उत्तर: क्योंकि मन, वाणी और कर्म में पूर्ण प्लेन नहीं होते, जिससे प्लैन और प्रैक्टिकल अलग-अलग दिखते हैं।

प्रश्न 7: सफलता को समीप लाने के लिए क्या करना आवश्यक है?
उत्तर: एक-दूसरे के संस्कारों के समीप आना और सम्मान देना।

प्रश्न 8: सम्मान प्राप्त करने का तरीका क्या है?
उत्तर: दूसरों को सम्मान देने से स्वयं भी सम्मान प्राप्त होता है।

प्रश्न 9: “हाँ जी” शब्द क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: “हाँ जी” संस्कारों को सरल बनाने का साधन है और भविष्य में सफलता को सुनिश्चित करता है।

प्रश्न 10: विधि और विधान को याद रखने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर: यदि विधाता की याद स्थिर रहती है, तो विधि और विधान दोनों स्वतः स्मृति में रहेंगे।

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