(32)ज्योतिष में कई प्रकार के युग – क्या पुराणों और महाभारत की काल-गणना मेल खाती है?
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“युगों की उलझन: एक ऐतिहासिक पहेली | शास्त्र, पुराण और BK ज्ञान के बीच की सच्चाई”
युगों की उलझन – एक ऐतिहासिक पहेली
आज हम एक ऐसी जटिल पहेली पर चर्चा कर रहे हैं, जो हजारों वर्षों से इतिहासकारों, धर्मशास्त्रियों और ज्योतिषियों को उलझाती आ रही है —
क्या प्राचीन भारत में प्रयुक्त युगों की गिनती एक समान थी?
और
क्या पुराणों में वर्णित युगों का महाभारत से कोई सामंजस्य है?
1. ज्योतिष में प्रयुक्त विविध युग (Astrological Eras)
भारतीय परंपरा में “युग” शब्द का कई अर्थों में प्रयोग हुआ है।
उदाहरण के लिए:
युग का नाम | अवधि (वर्षों में) |
---|---|
पितामह युग | 5 वर्ष |
वसु युग | 8 वर्ष |
रुद्र युग | 11 वर्ष |
दीर्घात्मा युग | 16 वर्ष |
षष्टिसंवत्सर युग | 60 वर्ष |
सप्तऋषि युग | 2700 वर्ष |
जब इतने प्रकार के युग हैं, तो किसे सत्य माना जाए?
यह प्रश्न ही इस पहेली की जड़ है।
2. पुराणों की गिनती और उसकी गुत्थियाँ
उदाहरण 1 – श्रीराम की युग गणना:
वायु पुराण कहता है –
“श्रीराम 24वें त्रेतायुग में हुए।”
अब यदि हम परंपरागत चतुर्युगीय कालगणना को लें —
1 मन्वन्तर = 74 चतुर्युग
7वां मन्वन्तर (वर्तमान) में चल रहा 28वां चतुर्युग
=> अब तक हो चुके हैं 472 त्रेतायुग
तो फिर “24वां त्रेतायुग” कैसे गिना गया?
निष्कर्ष:
यह दर्शाता है कि हर पुराण या ग्रंथ में युगों की गणना अलग है।
3. वैकल्पिक समाधान: यथार्थ युगगणना
अब आइए एक आधुनिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखें:
-
त्रेतायुग की अवधि मान लीजिए = 1200 वर्ष
-
1 अवान्तर त्रेता = 50 वर्ष
➡ 1200 / 50 = 24 अवान्तर त्रेता
इस प्रकार, श्रीराम 24वें अवान्तर त्रेता में हुए —
यानी त्रेता के अंतिम चरण में, द्वापर की संधि पर।
इससे श्रीराम का काल ऐतिहासिक रूप से तर्कसंगत हो जाता है।
4. परशुराम का प्रसंग: त्रेता और द्वापर की संधि
उदाहरण 2 – परशुराम की गणना:
पुराण: “परशुराम 19वें त्रेतायुग में हुए”
महाभारत: “परशुराम द्वापर-त्रेता की संधि पर थे”
यदि:
-
परशुराम हुए 900वें वर्ष (19वां अवान्तर त्रेता)
-
आयु: 200 वर्ष
➡ तो उनका जीवनकाल पहुँचता है त्रेता-द्वापर संधि तक।
इससे दोनों ग्रंथों में सामंजस्य स्थापित होता है।
5. मुरली प्रमाण: क्या युगों की इतनी लंबी अवधियाँ सत्य हैं?
Murli 15 जुलाई 1990:
“यह सतो, रजो, तमो की अवस्था वाला 5000 वर्ष का चक्र है। लाखों वर्ष की बात नहीं।”
Murli 28 फरवरी 1995:
“बाप आकर समझाते हैं – सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग – चारों मिलाकर 5000 वर्ष होते हैं।”
ब्रह्माकुमारी ज्ञान कहता है:
युग | अवधि (वर्षों में) |
---|---|
सतयुग | 1250 |
त्रेतायुग | 1250 |
द्वापरयुग | 1250 |
कलियुग | 1250 |
यह सटीक गणना पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं को आपस में सार्थक रूप से जोड़ती है।
निष्कर्ष: समाधान क्या है?
इतिहास और शास्त्रों की गुत्थियाँ तभी सुलझेंगी जब:
-
यथार्थवादी युग मान अपनाया जाए
-
दिव्य वर्षों को मानवी वर्षों में बदला जाए
-
शास्त्रों की तुलना सन्दर्भ में की जाए
युगों की उलझन: एक ऐतिहासिक पहेली | शास्त्र, पुराण और ज्ञान के बीच की सच्चाई
प्रश्न 1: क्या सभी प्राचीन ग्रंथों में युगों की गणना एक जैसी है?
उत्तर: नहीं। प्राचीन भारत में “युग” शब्द का विभिन्न ग्रंथों में अलग-अलग अर्थ और अवधि में प्रयोग हुआ है। उदाहरण के लिए, ज्योतिष में पितामह युग 5 वर्ष का है, तो वहीं सप्तऋषि युग 2700 वर्ष का बताया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि युगों की एक समान परिभाषा नहीं है।
प्रश्न 2: वायु पुराण श्रीराम को 24वें त्रेतायुग में क्यों कहता है, जबकि आज 472 त्रेतायुग बीत चुके हैं?
उत्तर: यह अंतर दर्शाता है कि वायु पुराण की युग-गणना पौराणिक चतुर्युग मॉडल से भिन्न है। इसका तात्पर्य यह हो सकता है कि “24वां त्रेता” वास्तव में एक “अवान्तर त्रेता” है, जो 50 वर्षों की अवधि में गिना गया हो, न कि लाखों वर्षों में।
प्रश्न 3: श्रीराम का काल त्रेता के अंतिम चरण में कैसे तर्कसंगत है?
उत्तर: यदि त्रेतायुग की कुल अवधि 1200 वर्ष मानी जाए और प्रत्येक अवान्तर त्रेता 50 वर्षों का हो, तो 24वें अवान्तर त्रेता का अर्थ होगा – त्रेतायुग का अंतिम चरण। यह श्रीराम की ऐतिहासिक उपस्थिति को द्वापर संधि से जोड़कर तर्कसंगत बनाता है।
प्रश्न 4: परशुराम के जीवन काल को त्रेता-द्वापर संधि से कैसे जोड़ा जा सकता है?
उत्तर: यदि परशुराम 19वें अवान्तर त्रेता (900वां वर्ष) में प्रकट हुए और उनकी आयु 200 वर्ष मानी जाए, तो वे त्रेता-द्वापर की संधि तक जीवित रहे। इससे महाभारत और पुराणों में उनके समय संबंधी मतभेदों में सामंजस्य स्थापित होता है।
प्रश्न 5: क्या युग लाखों वर्षों के हैं जैसा कि पौराणिक गणना बताती है?
उत्तर: ब्रह्माकुमारी ज्ञान अनुसार, युगों की अवधि लाखों वर्षों की नहीं बल्कि 5000 वर्षों का सम्पूर्ण चक्र है जिसमें चार युग (सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग) आते हैं – प्रत्येक 1250 वर्षों का।
Murli 15 जुलाई 1990:
“यह सतो, रजो, तमो की अवस्था वाला 5000 वर्ष का चक्र है।”
Murli 28 फरवरी 1995:
“सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग – चारों मिलाकर 5000 वर्ष होते हैं।”
प्रश्न 6: क्या शास्त्रों और BK ज्ञान में सामंजस्य संभव है?
उत्तर: हां। जब हम दिव्य वर्षों को मानवी वर्षों में बदलकर व्यावहारिक गणना करते हैं, तो पुराणों और महाभारत जैसी ग्रंथों की समय-सीमा BK ज्ञान से तालमेल बैठा सकती है। यह दृष्टिकोण अनेक विरोधाभासों को सुलझाने में सहायक होता है।
प्रश्न 7: समाधान क्या है?
उत्तर:
-
यथार्थवादी और व्यावहारिक युग मान अपनाएं।
-
“दिव्य वर्षों” को “मानवी वर्षों” में रूपांतरित करें।
-
ग्रंथों की तुलना तभी करें जब सन्दर्भ समान हो।
-
ब्रह्माकुमारी ज्ञान के “कल्पवृक्ष ज्ञान” से स्पष्टता मिलती है।
Disclaimer (डिस्क्लेमर):
इस वीडियो में प्रस्तुत विचार और विश्लेषण ऐतिहासिक ग्रंथों, पुराणों, ज्योतिषीय दृष्टिकोणों और ब्रह्माकुमारी मुरली ज्ञान पर आधारित हैं। हमारा उद्देश्य किसी ग्रंथ, परंपरा, या मान्यता की आलोचना नहीं, बल्कि एक वैकल्पिक और तर्कसंगत दृष्टिकोण प्रस्तुत करना है। सभी दर्शकों से निवेदन है कि वे इस जानकारी को शोध एवं आत्म-चिंतन के रूप में लें।
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