Divine Health/(13)

“1 उपवास तोड़ने का महत्व अक्सर लोग उपवास की सफलता को केवल उसके दिनों की संख्या से मापते हैं। लेकिन असली सफलता इस बात में है कि आप उपवास को कैसे समाप्त करते हैं। जैसे कोई लंबी यात्रा के बाद धीरे-धीरे घर में प्रवेश करता है, उसी तरह उपवास के बाद शरीर में आहार को धीरे-धीरे वापस लाना ज़रूरी है। मुरली 14-07-2004: “हर कार्य को मर्यादा में करना, वही आपके लिए रक्षा-कवच है।” (यहाँ उपवास का अंत भी एक मर्यादा का कार्य है।) 2 पहला नियम – धीरे और हल्का आहार उपवास के तुरंत बाद भारी खाना खाना शरीर के लिए झटका साबित हो सकता है। शुरुआत करें – गुनगुना पानी या नींबू-पानी से। फिर – हल्का फल, उबली हुई सब्ज़ी, सलाद।  भोजन को अच्छी तरह चबाएँ,ताकिपाचन तंत्र को आराम से काम करने का समय मिले। उदाहरण: जैसे कार के इंजन को लंबे समय बाद चालू करने पर धीरे-धीरे एक्सीलरेटर दिया जाता है, वैसे ही पेट को भी धीरे-धीरे काम पर लगाना चाहिए। मुरली 03-09-1992: “धीरे-धीरे कदम बढ़ाने से मंज़िल सहज मिलती है।” 3 दूसरा नियम – संक्रमण काल में आराम उपवास तोड़ते समय यह शरीर का संक्रमण काल (Transition Period) होता है। इस समय पाचन शक्ति कमज़ोर होती है, इसलिए –  पर्याप्त नींद और आराम लें।  मानसिक शांति बनाए रखें।  व्यायाम भी हल्के रूप में करें। उदाहरण: जैसे नई पौध को धूप और पानी धीरे-धीरे दिया जाता है, उसी तरह शरीर को भी धीरे-धीरे ऊर्जा दें। मुरली 17-08-2001: “आत्मा को शक्ति देने के लिए शांति और आराम ज़रूरी है।” 4 तीसरा नियम – संतुलित और सही आहार उपवास तोड़ने के बाद का आहार तय करता है कि आपको लाभ मिलेगा या हानि। संतुलित – प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन का मेल।  ताज़ा – प्रसंस्कृत (Processed) चीज़ों से बचें। मर्यादित – मात्रा कम रखें, धीरे-धीरे सामान्य आहार पर लौटें। उदाहरण: जैसे बारिश के बाद खेत को संतुलित पानी की ज़रूरत होती है, वैसे ही उपवास के बाद शरीर को संतुलित पोषण चाहिए। मुरली 22-06-1993: “सही भोजन और सही सोच- दोनों से ही शक्ति का संचय होता है।” आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उपवास शरीर का उपवास हमें हल्का करता है, लेकिन आत्मा का असली उपवास है – विकारी विचारों से दूरी। जब हम मुरली और योग द्वारा आत्मा को सात्विक बनाते हैं, तो यह भी एक “उपवास” है। और इसे तोड़ना होता है – सच्चे ज्ञान और प्रेम से। मुरली 12-03-2002: “सच्चा आहार है – परमात्मा का ज्ञान और प्रेम।” निष्कर्ष;-उपवास केवल शरीर को नहीं, बल्कि मन और आत्मा को भी शुद्ध करता है। लेकिन इसका लाभ तभी मिलता है जब हम-धीरे-धीरे आहार शुरू करें। संक्रमण काल में आराम करें। संतुलित और सही भोजन लें। संकल्प: “मैं शरीर और आत्मा दोनों को मर्यादा में रखकर ही उपवास तोड़ूँगा।

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