D.P 112 “ड्रामा पूर्व -निश्चित | फिर पुरुषार्थ क्यों करे?सही पुरुषार्थ है
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
ड्रामा पहले से तय है, फिर पुरुषार्थ क्यों करें? | सही पुरुषार्थ क्या है? | Brahma Kumaris Gyan | Om Shanti
🎤 : ड्रामा पूर्व निर्धारित है, फिर पुरुषार्थ क्यों करें?
🔶 1. प्रस्तावना: प्रश्न जो हर साधक के मन में उठता है
ओम शांति।
आज हम एक बहुत गहन विषय पर चर्चा करेंगे:
“अगर यह विश्व-नाटक पूर्व निर्धारित है, तो फिर पुरुषार्थ क्यों करें?”
क्या सब कुछ पहले से तय है?
फिर प्रयास, तपस्या, याद—यह सब क्यों करें?
क्या यह विरोधाभास नहीं है?
आइए इस विषय को गहराई से समझें—Murli की रोशनी में।
🔶 2. यह विश्व-नाटक परम सुखमय खेल है
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यह नाटक सर्वोच्च सुख देने वाला खेल है।
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यह पूर्ण रीति से रचा गया है—कोई त्रुटि नहीं।
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इसकी सही समझ आत्मा को शांति और शक्ति का अनुभव कराती है।
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परंतु उस परम शांति और आनंद को अनुभव करने के लिए पुरुषार्थ करना आवश्यक है।
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यह भी ड्रामा का ही भाग है कि आत्मा को पुरुषार्थ करना है।
✨ अति इंद्रिय सुख क्या है?
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जो सुख इंद्रियों के पार हो, जो परमात्मा की याद में मिले।
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यही आत्मा की सच्ची उपलब्धि है—जो देह से नहीं, आत्मा से मिलती है।
🔶 3. पुरुषार्थ आत्मा का स्वाभाविक गुण है
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आत्मा कर्म-रहित नहीं रह सकती।
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आत्मा को कर्म करना ही है, यही उसका धर्म है।
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इसलिए पुरुषार्थ आत्मा की स्वाभाविक प्रकृति है।
🔁 कर्म और फल का संबंध
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नाटक में हर आत्मा का स्थान उसका पुरुषार्थ और प्रालब्ध तय करता है।
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राजा, प्रजा, ज्ञानी, अज्ञानी—सबका आधार उनका पुरुषार्थ है।
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इसलिए बिना पुरुषार्थ के कोई आत्मा स्थिर नहीं रह सकती।
🔶 4. क्या पुरुषार्थ बड़ा है या प्रालब्ध?
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प्रश्न: “अगर सब पूर्व निर्धारित है, तो क्या पुरुषार्थ का कोई मूल्य है?”
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उत्तर: बिना पुरुषार्थ के प्रालब्ध नहीं मिल सकती।
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ड्रामा में भी पुरुषार्थ लिखा हुआ है—पर अनुभव से गुजरना पड़ता है।
🌟 सही पुरुषार्थ क्या है?
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यथार्थ ज्ञान को जानना,
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आत्मा की स्थिति में स्थित होना,
-
परमात्मा की याद में रहकर
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अति इंद्रिय सुख को अनुभव करना,
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और दूसरों को यह ज्ञान देना—यही सही पुरुषार्थ है।
🔶 5. वर्तमान समय में यथार्थ पुरुषार्थ क्या है?
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अपने सच्चे स्वरूप “मैं आत्मा हूँ” को पहचानना।
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कर्म बंधन से मुक्त होना।
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बाबा से निस्वार्थ योग का अनुभव करना।
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दृढ़ संकल्प: “मैं आत्मा हूँ, यह मेरा शरीर नहीं।”
👉 यही स्मृति, पुरुषार्थ और सौभाग्य है।
👉 और यही स्मृति हमें परम लक्ष्य तक पहुँचाती है।
🔶 6. निष्कर्ष: ड्रामा पूर्व निश्चित है, फिर भी पुरुषार्थ अनिवार्य है
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ड्रामा में पुरुषार्थ और फल—दोनों पूर्व निर्धारित हैं।
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लेकिन अनुभव हमें पुरुषार्थ करके ही होता है।
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यही क्रिया और प्रतिक्रिया का शाश्वत नियम है।
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आत्मा जैसी क्रिया करती है, वैसी ही प्रतिक्रिया उसे मिलती है—यह अनादि नियम है।
👉 इसीलिए हमें निश्चय बुद्धि होकर पुरुषार्थ करना है।
👉 योगयुक्त जीवन जीना है।
👉 और अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध को अर्जित करना है।
🔚 समापन संदेश
“ड्रामा जानना ही काफी नहीं, उसे निभाना भी है।”
तो आइए, आज से संकल्प लें:
“मैं आत्मा हूँ, पुरुषार्थ मेरा धर्म है, और परमात्मा मेरी शक्ति।”
ओम शांति।
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ड्रामा पहले से तय है, फिर पुरुषार्थ क्यों करें? | सही पुरुषार्थ क्या है? | Brahma Kumaris Gyan | Om Shanti
❓ Q1: अगर सब कुछ पहले से तय है (ड्रामा पूर्व निर्धारित है), तो पुरुषार्थ क्यों करें?
✅ उत्तर:ड्रामा पूर्व निर्धारित है, परन्तु उसमें पुरुषार्थ भी लिखा हुआ है। आत्मा को अपने अनुभवों से गुजरना होता है।
जैसे फिल्म की स्क्रिप्ट फाइनल है, पर अभिनेता को पार्ट निभाना पड़ता है — उसी तरह आत्मा को अपना पुरुषार्थ करना ही पड़ता है।
❓ Q2: अगर ड्रामा पर सब कुछ निर्भर है, तो क्या हम सिर्फ दर्शक हैं?
✅ उत्तर:नहीं, आत्मा सिर्फ दर्शक नहीं है — वह कर्ता भी है।
ड्रामा हमें अवसर देता है, लेकिन पुरुषार्थ ही आत्मा को उसकी श्रेष्ठ स्थिति तक पहुँचाता है।
ड्रामा में प्रयास और फल दोनों शामिल हैं।
❓ Q3: सही पुरुषार्थ क्या है?
✅ उत्तर:
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आत्मा की स्मृति में स्थित रहना: “मैं आत्मा हूँ”
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परमात्मा की याद में रहकर अति इंद्रिय सुख पाना
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यथार्थ ज्ञान को जानना, जीना, और बाँटना
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देह और माया के बंधनों से मुक्त होकर सच्चे स्वरूप में स्थित होना
👉 यही सत्य पुरुषार्थ है।
❓ Q4: अगर प्रालब्ध पहले से तय है, तो क्या पुरुषार्थ व्यर्थ है?
✅ उत्तर:बिलकुल नहीं।
प्रालब्ध प्राप्त करने का माध्यम ही पुरुषार्थ है।
जैसे बिना बीज बोए फल नहीं मिल सकता, वैसे बिना पुरुषार्थ किए प्रालब्ध नहीं मिल सकती।
❓ Q5: क्या पुरुषार्थ आत्मा का धर्म है?
✅ उत्तर:हां।पुरुषार्थ आत्मा का स्वाभाविक गुण है।
आत्मा कर्म-रहित नहीं रह सकती।
हर आत्मा का पार्ट, उसकी स्थिति, और उसका अनुभव — सब कुछ उसके पुरुषार्थ पर आधारित है।
❓ Q6: क्या क्रिया और प्रतिक्रिया का नियम ड्रामा में चलता है?
✅ उत्तर:हाँ, यह एक अनादि नियम है।
जैसी क्रिया करते हैं, वैसी ही प्रतिक्रिया मिलती है।
अभी जो पुरुषार्थ करते हैं, वही भविष्य की प्रालब्ध बनती है।
❓ Q7: वर्तमान समय में सबसे श्रेष्ठ पुरुषार्थ क्या है?
✅ उत्तर:
-
अपने आत्म स्वरूप को याद करना
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कर्म बंधन से मुक्त होना
-
परमात्मा से निस्वार्थ योग लगाना
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“मैं आत्मा हूँ, यह शरीर नहीं” की दृढ़ स्मृति में रहना
👉 यही है वर्तमान युग का सच्चा पुरुषार्थ।
🧘♂️ निष्कर्ष:
ड्रामा पूर्व निश्चित है, लेकिन पुरुषार्थ भी उतना ही निश्चित है।
ड्रामा को जानना, समझना और फिर उसका श्रेष्ठतम अभिनय करना — यही पुरुषार्थ है।
📌 समापन प्रेरणा:
“मैं आत्मा हूँ, पुरुषार्थ मेरा धर्म है, परमात्मा मेरी शक्ति है।”
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