Drama-Padam(100) Is it possible to change the drama of creation or not? Know the truth

D.P 100″सृष्टि नाटक में परिवर्तन संभव है या नहीं? जानें सच

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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भाषण: सृष्टि नाटक में परिवर्तन संभव है या नहीं?

भूमिका: सृष्टि नाटक और हमारी भूमिका

हम सभी इस सृष्टि रूपी नाटक में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। यह नाटक हर 5000 वर्ष का चक्र सटीकता से दोहराता है।
क्या हम इस नाटक में कोई परिवर्तन कर सकते हैं? यह प्रश्न स्वाभाविक है। यदि कर सकते हैं तो कैसे? यदि नहीं तो क्यों नहीं?

पहला प्रश्न: क्या नाटक में परिवर्तन संभव है?

नहीं, क्योंकि यह नाटक पहले से निर्धारित है, डिसाइडेड है।
यह सृष्टि नाटक पहले से लिखित है और इसमें कोई बदलाव संभव नहीं।

किसने लिखा है यह नाटक?

यह नाटक कोई बाहरी व्यक्ति नहीं लिखता, बल्कि हर आत्मा अपना भाग स्वयं ही लिखती है, जैसा उसने कल्प पहले लिखा था।
इसलिए इसे कहा जाता है – “बना बनाया नाटक” या “बना बनाया खेल”।आत्मा का पूर्व निर्धारित भाग

हर आत्मा का भाग स्वयंभू आत्मा के रिकॉर्ड में रहता है।
हर 5000 साल बाद वही भाग पुनः बजता है, कोई बदलाव संभव नहीं।
जो हो रहा है, वह पहले भी हो चुका है और भविष्य में भी होगा।


परम पिता का सत्य ज्ञान

स्वयं परम पिता परमात्मा ने बताया है कि हर घटना पूर्व निर्धारित होती है।
समय का चक्र सटीकता से दोहराया जाता है।
इसलिए जो हुआ, वही पुनः होता रहेगा।

कर्म परिवर्तन और अनुभव में बदलाव

जहां नाटक स्थाई है, वहीं अनुभव कर्मों के अनुसार बदल सकता है।
हर क्षण आत्मा नया कर्म करती है जिसका प्रभाव अगले क्षण पड़ता है।
इसलिए हर आत्मा साल के अंदर अपने पुराने भाग को नहीं दोहरा सकती, बल्कि नया कर्म करती है।

मुरली का संदेश: “Everything new in years but nothing new after years”

इसका अर्थ है कि हर वर्ष के अंदर सब कुछ नया होता है, लेकिन 5000 वर्षों के बाद वही पुराना नाटक दोहराया जाता है।

5000 वर्ष पहले और आज की रिकॉर्डिंग

जो आप आज कर रहे हैं, वह 5000 साल पहले भी हुआ था।
यह नाटक एक रिकॉर्डिंग की तरह बार-बार चलती रहती है।

परिवर्तन के साधन: ज्ञान, योग और श्रेष्ठ कर्म

अपने कर्म श्रेष्ठ बनाकर और योग एवं ज्ञान का अभ्यास कर आत्मा की स्थिति सुधारी जा सकती है।
हमारा दृष्टिकोण सकारात्मक होता है और जीवन को बेहतर तरीके से देखा जा सकता है।

संगम युग: परिवर्तन का समय

वर्तमान संगम युग में आत्मा को अपने कर्म सुधारने और सतोप्रधान बनने का अवसर मिलता है।

दुख क्यों आता है?

दुख का संतुलन आवश्यक है क्योंकि केवल सुख का अनुभव बिना दुख के संभव नहीं।
कर्म सिद्धांत के अनुसार, आत्मा अपने पूर्व जन्मों के कर्मों के फल भोगती है।

दुख का आध्यात्मिक महत्व

दुख आत्मा को सोचने, आत्मचिंतन करने और आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रेरित करता है।

निष्कर्ष

सृष्टि नाटक हर वर्ष दोहराया जाता है, इसमें कोई परिवर्तन नहीं हो सकता।
लेकिन आत्मा अपने कर्मों से अनुभव बदल सकती है।
दुख और सुख दोनों इस नाटक का अभिन्न हिस्सा हैं जो हमें सच्चे सुख की अनुभूति कराते हैं।
हमें वर्तमान क्षण को श्रेष्ठ बनाने और आत्मा की उन्नति के लिए निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए।

अंतिम संदेश

जो हुआ वह पहले भी हो चुका है और जो होगा वह भी पहले हो चुका है।
यह सृष्टि चक्र का नियम है जिसे समझकर ही हम सच्ची शांति और आनंद प्राप्त कर सकते हैं।
“होनी होकर रहे, अनहोनी ना होए” — यही जीवन का सच्चा राज है।

भाषण: सृष्टि नाटक में परिवर्तन संभव है या नहीं? — प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1:सृष्टि नाटक में क्या कोई परिवर्तन संभव है?

उत्तर:नहीं, सृष्टि नाटक पहले से निर्धारित है और इसमें कोई बदलाव संभव नहीं है। यह नाटक हर 5000 वर्ष का चक्र सटीकता से दोहराता है।

प्रश्न 2:यह सृष्टि नाटक किसने लिखा है?

उत्तर:यह नाटक किसी एक व्यक्ति ने नहीं लिखा, बल्कि हर आत्मा अपना भाग स्वयं ही लिखती है, जैसा उसने कल्प पहले लिखा था। इसलिए इसे “बना बनाया नाटक” कहा जाता है।

प्रश्न 3:क्या आत्मा का भाग पूर्व निर्धारित होता है?

उत्तर:हाँ, हर आत्मा का भाग स्वयंभू आत्मा के रिकॉर्ड में होता है और हर 5000 साल बाद वही भाग पुनः दोहराया जाता है। इसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता।

प्रश्न 4:परम पिता परमात्मा ने इस विषय में क्या बताया है?

उत्तर:परम पिता ने समझाया है कि हर घटना पूर्व निर्धारित होती है और समय का चक्र सटीकता से दोहराया जाता है। इसलिए जो हुआ वह फिर से होता रहेगा।

प्रश्न 5:अगर नाटक स्थाई है, तो क्या अनुभव में कोई बदलाव हो सकता है?

उत्तर:हाँ, अनुभव कर्मों के अनुसार बदल सकता है क्योंकि हर क्षण आत्मा नया कर्म करती है, जिसका प्रभाव अगले क्षण पर पड़ता है।

प्रश्न 6:मुरली का वाक्य “Everything new in years but nothing new after years” का क्या अर्थ है?

उत्तर:इसका अर्थ है कि हर वर्ष के अंदर सब कुछ नया होता है, लेकिन 5000 वर्षों के बाद वही पुराना नाटक पुनः दोहराया जाता है।

प्रश्न 7:आज हम जो कर रहे हैं, क्या 5000 साल पहले भी वही हुआ था?

उत्तर:हाँ, जो हम आज कर रहे हैं वह 5000 साल पहले भी हुआ था। यह सृष्टि नाटक एक रिकॉर्डिंग की तरह बार-बार चलता रहता है।

प्रश्न 8:परिवर्तन कैसे संभव है? साधन क्या हैं?

उत्तर:परिवर्तन ज्ञान, योग और श्रेष्ठ कर्म से संभव है। जब हम अपने कर्म सुधारते हैं और योग तथा ज्ञान का अभ्यास करते हैं, तो आत्मा की स्थिति सुधरती है।

प्रश्न 9:संगम युग का क्या महत्व है?

उत्तर:संगम युग वह समय है जब आत्मा को अपने कर्म सुधारने और सतोप्रधान बनने का अवसर मिलता है, इसलिए यह परिवर्तन का विशेष युग है।

प्रश्न 10:दुख क्यों आता है और इसका क्या आध्यात्मिक महत्व है?

उत्तर:दुख का संतुलन आवश्यक है क्योंकि बिना दुख के सुख की अनुभूति संभव नहीं। दुख आत्मा को सोचने, आत्मचिंतन करने और आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रेरित करता है।

प्रश्न 11:इस नाटक के बारे में हमें क्या सीखना चाहिए?

उत्तर:हमें समझना चाहिए कि सृष्टि नाटक हर वर्ष दोहराया जाता है और इसमें कोई स्थायी परिवर्तन नहीं होता, लेकिन आत्मा अपने कर्मों से अनुभव बदल सकती है। दुख-सुख दोनों जीवन का हिस्सा हैं और हमें वर्तमान क्षण को श्रेष्ठ बनाने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।

प्रश्न 12:अंतिम संदेश क्या है?

उत्तर:जो हुआ वह पहले भी हो चुका है और जो होगा वह भी पहले हो चुका है। यह सृष्टि चक्र का नियम है। “होनी होकर रहे, अनहोनी ना होए” – यही जीवन का सच्चा राज है जिससे सच्ची शांति और आनंद मिलता है।

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