Drama-Padma(111) ” Peace will be found in bodiless form

D.P 111″ शांति तो अशरीरी बनकर मिलेगी

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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शांति कहाँ मिलेगी? शरीर में या अशरीरी बनकर? | Om Shanti | Brahma Kumaris Gyan”


🎤 स्पीच: अशरीरी बनकर मिलने वाली सच्ची शांति

🔶 प्रस्तावना:

ओम शांति।
आज का परम पदम वाक्य है –
“शांति तो अशरीरी बनकर ही मिलेगी।”
सिर्फ शब्द नहीं, यह एक जीवन की दिशा है।
बाबा ने आज हमें एक सीधी और सच्ची बात कही – “जब मैं आत्मा बन जाऊँगा, जब मेरे पास शरीर नहीं रहेगा, तब मैं कहाँ रहूँगा? परमधाम में।”
तो आज हम समझेंगे:
➡️ देहभान से अशांति क्यों होती है?
➡️ अशरीरी बनने का सही अर्थ क्या है?
➡️ और शांति किसे, कहाँ, और कैसे अनुभव होती है?


🔶 देहभान – अशांति का बीज

प्रश्न: शांति बाहर खोजने से क्यों नहीं मिलती?
हम जंगलों, मंदिरों, समुद्र के किनारों, पहाड़ों या गुरुद्वारों में शांति खोजते हैं।
पर क्या शांति वहाँ है?

उत्तर:
बिलकुल नहीं! क्योंकि अशांति का कारण बाहर नहीं, “देहभान” है।
जब मैं सोचता हूँ:

  • “मैं पुरुष हूँ”,

  • “मैं स्त्री हूँ”,

  • “यह मेरा शरीर है”,

तो यह देहभान का आरंभ है – और यहीं से अशांति शुरू हो जाती है।


🔶 देहभान से देह-अभिमान और फिर मोह का जाल

एक्टिंग का उदाहरण:
एक एक्टर को नाटक में जो ड्रेस मिलती है, वह जानता है कि यह ड्रेस मेरी नहीं है – यह तो भूमिका के लिए है।
पर कल्पना करो, वह एक्टर ड्रेस को अपना समझने लगे –
तो ड्रेस से मोह, फिर क्रोध, फिर दुख – यही चक्र शुरू हो जाता है।

इसी तरह आत्मा जब शरीर को अपना समझ लेती है,
तो देह-अभिमान में फँस जाती है।
फिर कहती है: मेरा बेटा, मेरी पत्नी, मेरा घर… और यही “मेरा-मेरा” शांति को निगल जाता है।


🔶 परमधाम में कैसी शांति है?

परमधाम में आत्मा संकल्प रहित, पूर्ण अशरीरी होती है।
वहाँ न कोई शरीर है, न कोई ध्वनि –
वहाँ सिर्फ शांति है, लेकिन अनुभव नहीं।
क्यों? क्योंकि अनुभव के लिए संकल्प चाहिए – और परमधाम में संकल्प भी नहीं होते।

इसलिए जब हम “मैं आत्मा हूँ” की सच्ची स्मृति में स्थित होते हैं,
तो हम उस शांति को यहाँ, शरीर में रहते हुए भी अनुभव कर सकते हैं।


🔶 अशरीरी बनने का सही अर्थ

👉 अशरीरी बनने का अर्थ है – “मैं आत्मा हूँ, यह शरीर नहीं।”
जब तक यह स्मृति बनी रहती है,
तब तक मैं साक्षी, स्थिर, और शांत हूँ।
➡️ तब तक शरीर का भी अनुभव होता है, पर बंधन नहीं होता।

जैसे मेहमान किसी के घर में कुछ समय रहता है –
वैसे ही हम आत्माएं इस शरीर रूपी घर में कुछ समय के लिए आई हैं।
ना मोह, ना माया, बस पार्ट निभाकर वापस जाना है।


🔶 देहभान का अंतिम परिणाम – बंधन और दुख

जैसे ही आत्मा कहती है:
“यह मेरा शरीर है” – उसी क्षण अशांति का बीज बो देती है।
और वह बीज बढ़ता है मोह, ममता, क्रोध, ईर्ष्या, लोभ और अंततः दुख के रूप में।

याद रखो:

  • “मैं आत्मा हूँ” = शांति

  • “यह मेरा शरीर है” = अशांति


🔶 यथार्थ याद क्या है?

सच्ची याद यह नहीं कि सुबह-सुबह बाबा बाबा कहते रहें।
यथार्थ याद तब होती है जब हम
“मैं आत्मा हूँ” की स्मृति में स्थित हो जाते हैं और
शरीर को रबड़ की तरह अलग कर देते हैं।

बिना इस स्मृति के कोई भी श्रीमत जीवन में टिक नहीं सकती।
पहली श्रीमत है – “तुम आत्मा हो।”
अगर यह स्वीकृति ही नहीं ली,
तो बाकी सभी श्रीमतें केवल सुनने-सुनाने की बातें बन जाएँगी।


🔶 निष्कर्ष: सच्ची शांति की अनुभूति

✅ जब हम देहभान से मुक्त होते हैं,
✅ जब हम परमधाम की ओर उड़ते हैं,
✅ जब हम शरीर को साधन मात्र समझते हैं,
✅ जब हम बाबा को सच्चे दिल से याद करते हैं,

तभी हम अशरीरी स्थिति में पहुँचते हैं।
और वहीं पर हमें शांति की सच्ची अनुभूति होती है।


🔷 समापन:

तो आज से संकल्प लें:
“मैं आत्मा हूँ – यह शरीर मेरा नहीं। मैं परमधाम से आया हूँ, पार्ट बजाकर वापस चला जाऊँगा।”
यही दृष्टिकोण, यही स्मृति – हमें शांति का वास्तविक अनुभव कराएगी।

“शांति कहाँ मिलेगी? शरीर में या अशरीरी बनकर? | Om Shanti | Brahma Kumaris Gyan”

🎤 मुख्य विषय: अशरीरी बनकर मिलने वाली सच्ची शांति
🕊️ आधारित: ब्रह्मा कुमारीज़ के आध्यात्मिक ज्ञान पर


❓प्रश्न 1: शांति हमें कहाँ मिलती है – शरीर में या अशरीरी बनकर?

उत्तर:शांति अशरीरी बनकर ही मिलती है।
जब आत्मा देहभान से मुक्त होकर “मैं आत्मा हूँ” की स्थिति में आती है, तब वह परमधाम की निश्चल, निराकारी और संकल्पहीन स्थिति का अनुभव करती है।
शरीर में रहते हुए शांति नहीं, बल्कि अशरीरी स्थिति में ही सच्ची शांति की अनुभूति होती है।


❓प्रश्न 2: देहभान से अशांति कैसे उत्पन्न होती है?

उत्तर:देहभान का अर्थ है – शरीर को ही अपनी पहचान समझना।
जब आत्मा सोचती है – “मैं पुरुष हूँ”, “मैं स्त्री हूँ”, “यह मेरा शरीर है” – तो वही देहभान है।
इसी से देह-अभिमान, मोह, क्रोध, ईर्ष्या आदि जन्म लेते हैं, और अशांति का बीज बोया जाता है।


❓प्रश्न 3: क्या जंगलों, मंदिरों या समुद्र किनारे शांति मिल सकती है?

उत्तर:नहीं, क्योंकि शांति कोई बाहरी चीज़ नहीं है।
वह आत्मिक स्थिति है, जो तब आती है जब आत्मा देह से परे होकर अपने असली स्वरूप में टिकती है।
जैसे ही आत्मा देह से जुड़ जाती है, शांति खो देती है – चाहे स्थान कितना भी शांत क्यों न हो।


❓प्रश्न 4: अशरीरी बनने का सही अर्थ क्या है?

उत्तर:अशरीरी बनने का मतलब है – “मैं आत्मा हूँ, यह शरीर मेरा नहीं।”
इसका अभ्यास करते हुए जब आत्मा साक्षी और स्थिर रहती है, तब ही वह शांति का अनुभव करती है।
अशरीरी स्थिति में आत्मा शरीर का उपयोग तो करती है, पर उसमें बंधती नहीं।


❓प्रश्न 5: परमधाम में कैसी शांति होती है?

उत्तर:परमधाम में आत्मा निश्चल, निराकारी, संकल्प रहित होती है।
वहाँ न ध्वनि है, न गति – सिर्फ अहिंसक, अनंत शांति
पर वहाँ अनुभव नहीं, क्योंकि अनुभव के लिए संकल्प चाहिए – और वहाँ संकल्प भी नहीं होते।


❓प्रश्न 6: क्या “मैं आत्मा हूँ” की याद से ही शांति का अनुभव होता है?

उत्तर:हाँ, “मैं आत्मा हूँ” की सच्ची स्मृति ही आत्मा को देहभान से मुक्त करती है, और यही स्थिति शांति का द्वार है।
सिर्फ शब्दों से नहीं, बल्कि जब यह बोध हृदय में बैठता है – तब आत्मा सचमुच शांत होती है।


❓प्रश्न 7: देहभान का अंतिम परिणाम क्या होता है?

उत्तर:देहभान आत्मा को बंधनों में बाँध देता है।
“मेरा शरीर, मेरा परिवार, मेरा धन…” यही ‘मेरा-मेरा’ का जाल आत्मा को मोह, क्रोध, लोभ और अंततः दुख में डाल देता है।
देहभान = अशांति का कारण।


❓प्रश्न 8: क्या सिर्फ ‘बाबा बाबा’ कहना याद है?

उत्तर:नहीं।सच्ची याद तब होती है जब आत्मा “मैं आत्मा हूँ” की स्थिति में स्थित होकर बाबा को याद करती है।
बिना इस आत्मिक स्थिति के, श्रीमत पर चलना भी स्थायी नहीं हो सकता।
पहली श्रीमत ही है: “तुम आत्मा हो।”


❓प्रश्न 9: आत्मा शरीर में रहते हुए भी शांति कैसे अनुभव कर सकती है?

उत्तर:जब आत्मा को शरीर से अलग अनुभव होता है – जैसे मेहमान घर में होता है, पर उसका नहीं होता –
तब वह शरीर का उपयोग तो करती है, पर उसमें उलझती नहीं।
यही स्थिति शांति देती है।
“मैं आत्मा हूँ, यह शरीर मेरा नहीं” – इस दृष्टिकोण से जीना ही शांति का मूल है।


❓प्रश्न 10: सच्ची शांति का अनुभव कब होता है?

उत्तर:
🔹 जब आत्मा देहभान से मुक्त होती है,
🔹 जब परमधाम की उड़ान भरती है,
🔹 जब बाबा को दिल से याद करती है,
🔹 और शरीर को केवल साधन समझती है –
तभी आत्मा अशरीरी स्थिति में पहुँचती है।
यहीं पर मिलती है सच्ची, स्थायी शांति।


📜 निष्कर्ष:

🙏 “मैं आत्मा हूँ – यह शरीर मेरा नहीं। मैं परमधाम से आया हूँ, पार्ट बजाकर वापस चला जाऊँगा।”
इसी स्मृति में स्थित रहना ही
‘अशरीरी स्थिति’ है –
और यही है शांति की असली चाबी।

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