D.P”89ड्रामा गुहा्तम राज परमात्मा ने किया रहस्योद्धाटन
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
1. भूमिका: शिव बाबा – सृष्टि का मूल आधार
इस सृष्टि का बीज, आधार और संचालनकर्ता एक ही परमात्मा हैं – शिव बाबा। वे ही सृष्टि का आरंभ, मध्य और अंत जानते हैं। गीता में वर्णित “उल्टा वृक्ष” इसी सृष्टि चक्र की गूढ़ व्याख्या है, जिसे सही से समझना जरूरी है।
🌳 2. गीता में उल्टा वृक्ष – क्या है इसका वास्तविक अर्थ?
गीता में कहा गया है – “यह संसार एक अश्वत्थ वृक्ष के समान है, जिसकी जड़ ऊपर और शाखाएं नीचे हैं।”
इसका अर्थ यह है कि यह सृष्टि परमधाम से निकलती है – वहाँ मूल (root) परमात्मा हैं और आत्माएं हैं, जो बाद में नीचे आकर इस संसार रूपी वृक्ष की शाखाएं बनती हैं।
🕉️ 3. सृष्टि को वृक्ष से क्यों जोड़ा गया है?
जैसे वृक्ष में एक बीज से अनेक शाखाएं, पत्ते, फल और फूल उत्पन्न होते हैं – वैसे ही आत्माएं परमधाम से आकर समय के अनुसार विविध धर्म, मत, और संस्कृतियों के रूप में प्रकट होती हैं।
मूल धर्म “आदि सनातन देवी देवता धर्म” है – वही इस वृक्ष की मुख्य जड़ है।
🌱 4. परमात्मा को “वृक्षपति” क्यों कहा जाता है?
परमात्मा इस कल्पवृक्ष के बीजस्वरूप हैं – जैसे बीज पूरे वृक्ष को जन्म देता है, वैसे ही शिव बाबा ज्ञान द्वारा इस सृष्टि की रचना और पुनरुत्थान करते हैं।
वे एक कल्प में एक बार आते हैं – सिर्फ 100 वर्षों के लिए – जब यह पुरानी दुनिया नष्ट होने को होती है।
📖 5. बृहस्पतिवार और अध्यात्म का संबंध
बृहस्पतिवार को गुरु का दिन कहा गया है – ज्ञान और आत्मिक उन्नति का प्रतीक।
जैसे गुरु दिशा देता है, वैसे ही परमात्मा – “सत्य ज्ञान के सागर” – हमें सत्य स्वरूप की पहचान कराते हैं।
🌿 6. कल्पवृक्ष की विशेषताएं और सृष्टि का विस्तार
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समय के साथ वृक्ष में नई शाखाएं आती हैं – ठीक वैसे ही इस धरती पर समय अनुसार नए-नए धर्म और मत प्रकट होते हैं।
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लेकिन मूल धर्म वही रहता है – देवी देवता धर्म।
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परमात्मा कल्प के अंत में आकर पुरानी जड़ पर “सत्य युग का कलम” लगाते हैं।
🔥 7. राजयोग की तपस्या और कल्पवृक्ष का स्थान
बाबा कहते हैं – “तुम अभी कल्पवृक्ष के नीचे बैठे हो।”
इसका मतलब है – आत्माएं अब मूल जड़ (परमात्मा) से जुड़कर पुनः अपने दिव्य स्वरूप की याद कर रही हैं।
राजयोग = आत्मचिंतन + परमात्म स्मृति।
🎭 8. सृष्टि, आत्मा और ड्रामा – एक चिरस्थायी लीला
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यह विश्व ड्रामा एक परफेक्ट स्क्रिप्ट है।
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हर आत्मा का एक निश्चित पार्ट है।
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कोई भी घटना संजोग नहीं, बल्कि इस अविनाशी ड्रामा का भाग है।
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यह 5000 वर्षों का चक्र लगातार पुनरावृत्ति करता है – जैसे वृक्ष हर मौसम के बाद फिर से खिलता है।
🔗 9. आत्मा, परमात्मा और सृष्टि का अनादि संबंध
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आत्मा: अभिनेता
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परमात्मा: निर्देशक
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प्रकृति: मंच
तीनों मिलकर यह विश्व नाटक रचते हैं।
परमात्मा संगम युग में प्रवेश कर ज्ञान से इस मंच को फिर से नया बनाते हैं।
🌟 10. निष्कर्ष: कल्पवृक्ष का गूढ़ रहस्य
यह सृष्टि एक वृक्ष के समान है – निरंतर बढ़ती, फैलती, और परिवर्तित होती है।
परमात्मा इस वृक्ष के “वृक्षपति” हैं – जो इसे नया जीवन देते हैं।
जब आत्मा परमात्मा से जुड़ती है, तब वह इस वृक्ष की सबसे ऊंची, दिव्य शाखा – देवी देवता धर्म – का अनुभव करती है।
1. भूमिका: शिव बाबा – सृष्टि का मूल आधार
Q: शिव बाबा को सृष्टि का बीज और आधार क्यों कहा जाता है?
A: क्योंकि वही एक परमात्मा हैं जो सृष्टि चक्र के आदि, मध्य और अंत को जानते हैं। वे ही इस नाटक के रचयिता, ज्ञानदाता और उद्धारकर्ता हैं।
2. गीता में उल्टा वृक्ष – क्या है इसका वास्तविक अर्थ?
Q: गीता में उल्टा वृक्ष किस सृष्टि को दर्शाता है?
A: यह परमधाम की स्थिति को दर्शाता है, जहाँ मूल रूप से आत्माएं और परमात्मा स्थित होते हैं। जड़ ऊपर (परमधाम) है और शाखाएं नीचे (संसार) में हैं – यह आत्माओं का अवतरण दर्शाता है।
3. सृष्टि को वृक्ष से क्यों जोड़ा गया है?
Q: सृष्टि की तुलना वृक्ष से क्यों की जाती है?
A: क्योंकि जैसे एक बीज से समयानुसार वृक्ष फैलता है, वैसे ही आत्माएं परमधाम से आकर विभिन्न धर्म, पंथ और संस्कृतियों में विभाजित होती हैं। मूल धर्म देवी-देवता धर्म है।
4. परमात्मा को “वृक्षपति” क्यों कहा जाता है?
Q: परमात्मा को कल्पवृक्ष का “वृक्षपति” क्यों कहा जाता है?
A: क्योंकि वे ही इस सृष्टि रूपी वृक्ष के बीजस्वरूप हैं – ज्ञान रूपी जल से वे इस वृक्ष को पुष्ट करते हैं और समय आने पर इसका पुनर्निर्माण करते हैं।
5. बृहस्पतिवार और अध्यात्म का संबंध
Q: बृहस्पतिवार को आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष क्यों माना गया है?
A: क्योंकि यह गुरु का दिन है। शिव बाबा सच्चे ज्ञान के सागर हैं – वे ही आत्मा को आत्मा और परमात्मा की पहचान कराते हैं।
6. कल्पवृक्ष की विशेषताएं और सृष्टि का विस्तार
Q: कल्पवृक्ष की विशेषता क्या है?
A: यह समय के अनुसार फैलता है – जैसे-जैसे समय बीतता है, नए धर्म और पंथ प्रकट होते हैं, परंतु मूल धर्म वही देवी-देवता धर्म रहता है।
7. राजयोग की तपस्या और कल्पवृक्ष का स्थान
Q: “कल्पवृक्ष के नीचे तपस्या” का क्या अर्थ है?
A: इसका अर्थ है – आत्माएं अभी परमात्मा के समीप ज्ञान और योग द्वारा अपने दिव्य स्वरूप को पुनः पहचान रही हैं। यही राजयोग की वास्तविक तपस्या है।
8. सृष्टि, आत्मा और ड्रामा – एक चिरस्थायी लीला
Q: क्या यह संसार संयोग मात्र है?
A: नहीं। यह एक पूर्वनियोजित नाटक है – प्रत्येक आत्मा एक निश्चित रोल में बंधी हुई है। यह ड्रामा हर 5000 वर्षों में दोहराया जाता है।
9. आत्मा, परमात्मा और सृष्टि का अनादि संबंध
Q: आत्मा, परमात्मा और प्रकृति के बीच क्या संबंध है?
A: आत्मा अभिनेता है, परमात्मा निर्देशक है और प्रकृति मंच है। संगम युग में परमात्मा ज्ञान के द्वारा आत्मा और प्रकृति दोनों को नया बनाते हैं।
10. निष्कर्ष: कल्पवृक्ष का गूढ़ रहस्य
Q: सृष्टि के कल्पवृक्ष के गूढ़ रहस्य को कैसे समझा जा सकता है?
A: इसे तभी समझा जा सकता है जब आत्मा परमात्मा से जुड़ती है। तब वह अपने दिव्य धर्म – आदि सनातन देवी-देवता धर्म – को पहचानती है और उस ऊँचाई तक पहुँचने का प्रयास करती है।
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