Gyan Manthan-20-06-2025

ज्ञान मंथन-20-06-2025/ब्रह्मा विष्णु और शिव का गुप्त रहस्य त्रिमूर्ति का रहस्य

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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आज हम संगमयुग के एक ऐसे गहरे रहस्य पर बात कर रहे हैं जो हमारी आत्मा को फरिश्ता बना सकता है – यह है त्रिमूर्ति शिव, ब्रह्मा और विष्णु का गुप्त संबंध।
परमात्मा शिव कहते हैं:

“बच्चे, अगर स्वर्ग का वर्सा लेना है तो आत्म-अभिमानी होकर याद में रहो – यही सबसे गुप्त मेहनत है।”


 1. “देही-अभिमानी बनो, बाप के प्यार में रहो!”

यह संगमयुग की सबसे पहली सीढ़ी है – देह को नहीं, स्वयं को आत्मा समझना।
जब आत्मा देह से न्यारी होती है, तब वह बाप की गोद में जाती है – और वहीं से मिलती है सच्ची शांति और शक्ति।


 2. “शिवबाबा से मिलन – आत्मा और परमात्मा का मेला!”

यह मिलन सिर्फ संगमयुग पर ही होता है।
यह मिलन मंदिरों में नहीं, ध्यान की गहराई में होता है।
परमात्मा हमें याद दिलाते हैं:

“बच्चे, मैं आया हूँ तुम आत्माओं को पावन बनाने – मुझसे योग लगाओ!”


 3. “ब्राह्मण सो विष्णु – बस एक सेकंड में!”

बाबा कहते हैं –

“तुम आज ब्राह्मण हो, कल विष्णु बनोगे।”
पर याद रखो – यह कोई धार्मिक कहानी नहीं, आत्मा की सच्ची यात्रा है।
यह पुरानी आत्मा, नए जन्म में फरिश्ता बन रही है।


 4. “84 जन्म लगते हैं ब्रह्मा से विष्णु बनने में!”

यह कोई छोटी प्रक्रिया नहीं – यह है 5000 वर्षों की चक्र यात्रा।
शिवबाबा द्वारा ब्रह्मा को चुना गया, और ब्रह्मा से ही शुरू हुई ब्राह्मण कुल की रचना।
बाबा कहते हैं –

“ब्रह्मा ही विष्णु बनते हैं, और वही फिर श्रीकृष्ण।”


 5. “श्रीकृष्ण नहीं, शिव ही हैं सच्चे भगवान!”

श्रीकृष्ण की पूजा साकार रूप में होती है, पर शिव की पूजा निराकार रूप में होती है।
क्यों?
क्योंकि शिव ही वह परमात्मा हैं जो सबको ज्ञान देते हैं, खुद किसी से नहीं लेते।


 6. “संगमयुग की एक ही यात्रा – जन्मों-जन्मों का बदलाव!”

यह संगमयुग – एक सेकंड का समय नहीं है, यह है संपूर्ण चक्र बदलने का काल।
यह है पुरुषोत्तम संगमयुग – जिसमें आत्मा अपने अंतिम और सर्वोच्च स्वरूप में जाती है।


 7. “शरीर नहीं, आत्मा हूँ – यही आत्मज्ञान है!”

जब आत्मा अपने को शरीर नहीं, प्रकाश स्वरूप अनुभव करती है, तब फरिश्ता बनने की प्रक्रिया शुरू होती है।
बाबा बार-बार कहते हैं –

“बच्चे, देही-अभिमानी बनो – यही सच्चा ज्ञान है।”


 8. “सच्चा ध्यान – ‘ममेकं याद करो'”

भगवद गीता का सार है – “मुझे याद करो और मेरा बनो।”
यह स्मृति आत्मा को रावण की दुनिया से उठाकर रामराज्य की ओर ले जाती है।


 9. “संगमयुग: पवित्रता का महान संकल्प!”

संगमयुग पर आत्मा काम विकार पर विजय पाती है।
यही सबसे बड़ा संगम संकल्प है – पवित्र बनो, फरिश्ता बनो।


 10. “शिवबाबा से मिली ब्रह्मा की रचना – अलौकिक परिवार!”

ब्रह्मा द्वारा ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियाँ रची गईं – जो हैं नवयुग के बीज आत्माएँ।
यह है ईश्वरीय परिवार, जिसकी जननी है ब्रह्मा।


 11. “त्रिमूर्ति का रहस्य – शिव, ब्रह्मा, विष्णु का संबंध क्या है?”

शिव हैं रचयिता,
ब्रह्मा हैं माध्यम – जिससे ईश्वरीय रचना होती है,
विष्णु है उसका पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप।

“ब्रह्मा से विष्णु बनना – यही है त्रिमूर्ति का गुप्त राज।”


 12. “ज्ञान की नाव पार लगाती है, भक्ति की नाव घुमा देती है!”

भक्ति में सिर्फ अंधश्रद्धा है, ज्ञान में जागृति है।
ज्ञान आत्मा को लक्ष्य तक ले जाता है – भक्ति सिर्फ घुमाती है।


 13. “हम हैं ब्राह्मण कुल भूषण – भविष्य के देवता!”

आज हम जो ब्राह्मण हैं – ये साधारण नहीं।
यही आत्माएं भविष्य में देवी-देवता बनेंगी।


 14. “पुरुषोत्तम संगमयुग – 5000 वर्षों में सिर्फ एक बार!”

इस समय को “हीरा जन्म” कहा गया है।

“भगवान मिलते हैं, ज्ञान देते हैं, और नई दुनिया की स्थापना करते हैं – सिर्फ संगमयुग पर।”


 15. “नई दुनिया वाइसलेस, पुरानी दुनिया विशश – क्या फर्क है?”

नई दुनिया (स्वर्ग) में आत्मा गुणवान, निर्विकारी होती है।
पुरानी दुनिया (नरक) में आत्मा दोषों में डूबी होती है।
बाबा कहते हैं –

“अब इस विशश दुनिया को छोड़, वाइसलेस बनो।”


 16. “पवित्रता की शक्ति से बनो फरिश्ता!”

फरिश्ता वही बनता है, जो पवित्रता को पूरी रीति जीवन में उतार लेता है – वाणी, संकल्प और कर्म में भी।


 17. “सत्य नारायण की सच्ची कहानी – ब्रह्मा से विष्णु बनने की!”

यह कोई पौराणिक कथा नहीं – यह है आत्मिक सफर,
जिसमें आज की ब्राह्मण आत्मा सच्चा नारायण बनती है।


 18. “राजयोग – वह ज्ञान जिससे बनते हैं विश्व के मालिक!”

यह है वह सत्य ज्ञान, जिससे आत्मा राजा और महारानी बनती है –
ना सिर्फ मन पर राज्य, बल्कि पूरे विश्व पर।


 19. “ब्रह्मा द्वारा रची गई अलौकिक ब्राह्मण कुल की शुरुआत!”

आज यह ब्रह्माकुमारों का परिवार कोई संस्था नहीं –
यह है परमात्मा की रचना, जो वर्ण, जाति और धर्म से परे है।

✅ त्रिमूर्ति का रहस्य गहन है – पर उसका फल अद्वितीय है।
✅ शिव से ज्ञान, ब्रह्मा से धारणा, विष्णु से सिद्धि – यही संपूर्णता है।
✅ फरिश्ता बनने की गुप्त मेहनत है – आत्म-अभिमानी होकर बाबा की याद में टिकना।
✅ यही मेहनत हमें स्वर्ग का वर्सा दिलाती है – और देवता बनाती है।

🕊 Om Shanti

संगमयुग: ब्रह्मा, विष्णु और शिव का गुप्त संबंध – त्रिमूर्ति का रहस्य” पर आधारित प्रश्न-उत्तर (Q&A) शैली में सुंदर व गूढ़ आध्यात्मिक संवाद प्रस्तुत है। यह YouTube वीडियो स्क्रिप्ट, सेशन या प्रवचन के लिए एकदम उपयुक्त है:


संगमयुग: ब्रह्मा, विष्णु और शिव का गुप्त संबंध – त्रिमूर्ति का रहस्य
बाबा से स्वर्ग का वर्सा लेना है तो आत्म-अभिमानी होकर याद में रहो — यही फरिश्ता बनने की सबसे गुप्त मेहनत है!


प्रश्न 1: त्रिमूर्ति में शिव, ब्रह्मा और विष्णु का गुप्त संबंध क्या है?

उत्तर:त्रिमूर्ति का अर्थ है तीन मुख्य कार्यकारी शक्तियाँ: सृजन (ब्रह्मा), पालन (विष्णु) और विनाश या परिवर्तन (शंकर)।
लेकिन ब्रह्माकुमारी ज्ञान के अनुसार शिव बाबा ही इन तीनों कार्यों के रचयिता हैं।
संगमयुग पर शिव आत्मा निराकार रूप में आकर ब्रह्मा तन द्वारा नई सृष्टि की रचना करते हैं।
वही ब्रह्मा जब संपूर्ण बनते हैं तो वही विष्णु बनते हैं।
इस प्रकार ब्रह्मा = सृजन, विष्णु = फल, शंकर = परिवर्तन का भाव, और इन सबके पीछे कार्यकारी शक्ति है — शिव


प्रश्न 2: ब्रह्मा से विष्णु बनने में 84 जन्म क्यों लगते हैं?

उत्तर:84 जन्मों का यह चक्र आत्मा के पतन और पुनः उत्थान की कहानी है।
संगमयुग पर आत्मा ब्रह्मा बनती है – जो सच्चे ज्ञान को धारण करती है।
लेकिन उस ब्रह्मा आत्मा को संपूर्ण विष्णु बनने के लिए कर्मों की सफाई, पवित्रता और बाबा की याद की यात्रा करनी होती है।
यह सम्पूर्ण बनने की प्रक्रिया पिछले 84 जन्मों के कर्मों का हिसाब-किताब चुकाने की यात्रा है।


प्रश्न 3: ब्राह्मण सो विष्णु – बस एक सेकंड में! इसका अर्थ क्या है?

उत्तर:जब आत्मा देही-अभिमानी होकर शिवबाबा की याद में स्थित हो जाती है,
और संकल्प करती है कि “अब मैं बाबा का बच्चा ब्राह्मण हूँ और मुझे विष्णु बनना है,”
तो यह संकल्प ही परिवर्तन का बीज बन जाता है।
उस एक सेकंड के निर्णय से ही आत्मा ब्राह्मण बनती है – और यही ब्राह्मण कालांतर में विष्णु बनता है।


प्रश्न 4: “श्रीकृष्ण नहीं, शिव ही हैं सच्चे भगवान” — यह क्यों कहा गया?

उत्तर:श्रीकृष्ण सतोप्रधान आत्मा है, लेकिन वह भगवान नहीं।
वह परमात्मा शिव का पहला सपूत है — सतोप्रधान अवस्था का प्रतीक।
भगवान तो वह होता है जो सर्व आत्माओं का पिता हो – और वह है शिव।
शिव ही जन्म-मरण से न्यारा है, जिसे सदैव परमात्मा कहा जाता है।


प्रश्न 5: फरिश्ता बनने की सबसे गुप्त मेहनत क्या है?

उत्तर:फरिश्ता बनने का अर्थ है — देह-अभिमान से मुक्त, पवित्र, उड़ती कला की स्थिति।
इसका आधार है आत्म-अभिमान और बाबा की याद।
जब आत्मा देह, संबंध, पुराने संस्कारों को छोड़ सिर्फ बाबा को याद करती है,
तभी वह अलौकिक फरिश्ता बनती है – जो सेवा करता है बिना आकर्षण और बंधन के।


प्रश्न 6: “सत्य नारायण की सच्ची कहानी” का अर्थ ब्रह्माकुमारी ज्ञान में क्या है?

उत्तर:सत्य नारायण = सत्य मार्ग पर चलने वाला, जो स्वयं नारायण बनता है।
यह कहानी वास्तव में उस आत्मा की है जो ब्रह्मा से शुरू होकर बाबा की याद और पुरूषार्थ से विष्णु अर्थात श्री नारायण बनती है।
यह कोई भक्ति की कहानी नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा का संकेत है।


प्रश्न 7: “ज्ञान की नाव पार लगा देती है, भक्ति की नाव घुमा देती है” – इसका भावार्थ?

उत्तर:भक्ति में आत्मा भगवान को खोजती रहती है लेकिन कभी नहीं पाती।
ज्ञान में, शिवबाबा स्वयं आकर आत्मा को पहचान देता है और उसका रास्ता सीधा स्वर्ग तक दिखा देता है।
भक्ति में सिर्फ भावना है, ज्ञान में साक्षात मार्गदर्शन है।


प्रश्न 8: “पुरुषोत्तम संगमयुग – 5000 वर्षों में सिर्फ एक बार!” इसका अर्थ?

उत्तर:संगमयुग वह संधिकाल है जब परमात्मा शिव स्वयं इस धरती पर आकर
पुरानी दुनिया को समाप्त कर नई दुनिया की स्थापना करते हैं।
यह समय चक्र में सिर्फ एक बार आता है — हर 5000 वर्षों में।
यही सबसे महान युग है — जिसे पुरुषोत्तम संगमयुग कहा जाता है।


प्रश्न 9: ब्रह्मा द्वारा रची गई ब्राह्मण कुल क्या है?

उत्तर:जब शिवबाबा ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर ज्ञान सुनाते हैं,
तो जो आत्माएं उस ज्ञान को स्वीकार करती हैं, वे ब्राह्मण कहलाती हैं।
यह ब्राह्मण कुल देवताओं की आत्माओं का प्रारंभिक रूप है।
यही ब्राह्मण आत्माएं तपस्या, सेवा, और पवित्रता द्वारा देवता बनती हैं।


प्रश्न 10: “शिवबाबा से मिलन – आत्मा और परमात्मा का मेला!” – इसका अनुभव कैसे हो?

उत्तर:जब आत्मा देही-अभिमानी होकर याद में स्थिर होती है,
और बाबा को सच्चे दिल से याद करती है,
तब आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है – यही योग है, यही सच्चा मेला।
इस अनुभव में आत्मा हल्की, पवित्र, और शक्तिशाली अनुभव करती है।

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