Holi -/(09) Holi : A Divine Festival

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होली-/(09)होली :एक दिव्य उत्सव

Holi -/(09) Holi : A Divine Festival

होली का आध्यात्मिक रहस्य

भूमिका

होली एक दिव्य उत्सव है। ईश्वरीय होली का गुण और उसका आध्यात्मिक रहस्य क्या है? भारत ही एक ऐसा देश है जहां त्यौहार न केवल आनंद और उल्लास के प्रतीक हैं बल्कि उनके पीछे गहरा आध्यात्मिक रहस्य भी छिपा हुआ है। शिवरात्रि, दिवाली, जन्माष्टमी जैसे पर्व परमात्मा और देवताओं के दिव्य चरित्र से जुड़े हुए हैं। इसी प्रकार, होली का भी एक गूढ़ आध्यात्मिक अर्थ है जिसे समझे बिना हम इस पर्व का सच्चा लाभ नहीं उठा सकते।

आज लोग होली को मात्र रंग-उत्सव और उन्मुक्त व्यवहार तक सीमित कर चुके हैं। परंतु क्या यही होली का मूल स्वरूप है? क्या गीता के भगवान ने गोप-गोपियों के साथ इस प्रकार की होली खेली थी? यदि नहीं, तो हमें जानना होगा कि उस सच्ची होली का वास्तविक अर्थ क्या था।

होली: गीता के भगवान और गोप-गोपियों के दिव्य क्रीड़ा उत्सव

गीता में वर्णित भगवान ने गोप-गोपियों के साथ जिस प्रकार होली का उल्लास मनाया था, वह मात्र बाहरी रंगों का नहीं, बल्कि आत्मा के रंगने का था। वह होली प्रेम, दिव्यता और परमात्मा से सजीव संबंध का प्रतीक थी। इस होली में आत्माएं परमात्मा के ज्ञान और गुणों में रंगकर सच्चे आनंद की अनुभूति करती थीं।

परमात्मा का हर एक कृत्य अलौकिक, आदर्श और शिक्षाप्रद होता है। भगवान के हर कार्य में कल्याण निहित होता है। तो क्या आज की होली, जिसमें लोग एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं, अनुशासनहीन व्यवहार करते हैं और विकारों में डूब जाते हैं, वही होली है जो गोप-गोपियों ने गीता के भगवान के साथ खेली थी? निश्चित ही नहीं! आज की होली को देखकर कोई नहीं कह सकता कि यह वही दिव्य उत्सव है, जिसे आत्माओं को परमात्मा के संग जोड़ने के लिए मनाया जाता था।

अलौकिक होली

अलौकिक होली वह है, जिसमें आत्मा को ईश्वरीय रंग में रंगा जाता है। यह आत्मा को परमात्मा के ज्ञान, गुण और शक्तियों में रंगकर जीवन को दिव्य बनाना है। जब हम आपस में शुभ भावना और प्रेम से व्यवहार करते हैं, तो यह भी एक सच्ची होली ही होती है।

बाबा हमें सच्ची होली का अर्थ समझाते हैं कि आत्मा को ईश्वरीय रंग में रंगना ही वास्तविक होली है। सच्ची होली वही है, जो आत्मा को परमात्मा के प्रेम और प्रकाश में रंगकर पवित्र बनाती है। गीता का वास्तविक ज्ञान संगमयुग पर स्वयं परमात्मा शिव ने आकर हमें दिया। होली भी सबसे पहले परमात्मा ही मनाते हैं और हमें यह सिखाते हैं कि कैसे इस दिव्य रंग में सभी आत्माओं को रंगना है।

सच्ची होली के तत्व

परमात्मा के ज्ञान और गुणों में रंगना

  • स्वयं को परमात्मा के ज्ञान और गुणों में रंगकर आत्मा को शक्तिशाली बनाना।
  • अपने संबंधों में इस ज्ञान और दिव्यता को समाहित करना।
  • हर आत्मा को भी इस दिव्य रंग में रंगने का प्रयास करना।

विकारों की होली जलाना

  • अहंकार, वासना, क्रोध, लोभ, मोह जैसे विकारों का अंत करना।
  • आत्मा को बुराइयों से मुक्त कर उसकी पवित्रता को पुनः स्थापित करना।

आत्मिक रंगों में खेलना

  • जैसे गोप-गोपियां ईश्वरीय प्रेम में रंगी हुई थीं, वैसे ही हमें भी आत्मिक स्मृति में रहकर अपने जीवन को सुंदर बनाना है।
  • सभी के प्रति शुभ भावना और प्रेम रखना।
  • स्नेहपूर्वक व्यवहार करना।

होली का आध्यात्मिक संदेश

होली का अर्थ है “होली बनना”। आध्यात्मिक रूप से इसका तात्पर्य है कि आत्मा परमात्मा की हो जाए। जब हम स्वयं को परमात्मा के हवाले कर देते हैं और उनके दिव्य गुणों में रंग जाते हैं, तो हमारा जीवन स्वयं एक उत्सव बन जाता है। यह आनंद और उमंग से भरा हो जाता है।

इस होली पर हमारा संकल्प होना चाहिए कि हम केवल बाहरी रंगों तक सीमित न रहें, बल्कि आत्मा को परमात्मा की याद और दिव्य गुणों से सजा लें। जब हम इस आध्यात्मिक होली को अपनाएंगे, तो जीवन में आनंद और सुख की एक नई धारा प्रवाहित होने लगेगी।

सच्ची होली कैसे मनाएं?

  • विकारों की होली जलाएं – अपने अंदर के नकारात्मक विचारों और विकारों को समाप्त करें।
  • परमात्मा के रंग में रंग जाएं – अपने जीवन में ईश्वरीय गुणों और शक्तियों को धारण करें।
  • हर आत्मा को प्रेम और शुभ भावना के रंग में रंगें – सभी के प्रति स्नेह और आत्मिक प्रेम का भाव रखें।

निष्कर्ष

सच्ची होली मनाने के लिए हमें स्वयं को परमात्मा के रंग में रंगना होगा। यह कार्य कोई और हमारे लिए नहीं कर सकता, हमें स्वयं ही अपने प्रयास से यह करना होगा। हम दूसरों को यह विधि समझा सकते हैं, परंतु आत्मा को स्वयं ही इस रंग में रंगने के लिए प्रयास करना होगा। इस बार हम सच्ची होली मनाएं, विकारों की होली जलाएं, और परमात्मा के ज्ञान व गुणों में रंगकर एक दिव्य संसार का निर्माण करें।

होली का आध्यात्मिक रहस्य – प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1: होली का आध्यात्मिक रहस्य क्या है?
उत्तर: होली केवल बाहरी रंगों का त्योहार नहीं है, बल्कि आत्मा को परमात्मा के दिव्य रंग में रंगने का प्रतीक है। यह आत्मा की शुद्धता और विकारों के दहन का संदेश देता है।

प्रश्न 2: क्या गीता के भगवान ने गोप-गोपियों के साथ रंगों वाली होली खेली थी?
उत्तर: नहीं, गीता के भगवान ने आत्माओं को दिव्यता के रंग में रंगा था, जो ईश्वरीय प्रेम और ज्ञान की होली थी, न कि मात्र बाहरी रंगों की।

प्रश्न 3: अलौकिक होली का क्या अर्थ है?
उत्तर: अलौकिक होली का अर्थ है आत्मा को परमात्मा के ज्ञान, गुण और शक्तियों में रंगना और अपने जीवन को दिव्य बनाना।

प्रश्न 4: विकारों की होली जलाने का क्या अर्थ है?
उत्तर: इसका अर्थ है कि अहंकार, वासना

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