Is reading Murli itself yoga?

क्या मुरली पढ़ना ही योग है

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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क्या मुरली पढ़ना ही योग है? | मुरली और योग का गहरा अंतर | Brahma Kumaris Hindi Speech

ओम् शांति।
आज का विषय बहुत विशेष और आत्मिक है —
“क्या मुरली पढ़ना ही योग है?”

बहुत से सेवाधारी और साधक इस प्रश्न पर भ्रमित रहते हैं —
क्या रोज मुरली पढ़ना और सुनना ही योग की साधना है?

आज हम बाबा के महावाक्यों के आधार पर इस बात को समझेंगे।


 मुरली पढ़ना क्या है?

मुरली — बाबा के महावाक्य हैं।
ज्ञान का सागर हमें प्रतिदिन सत्य ज्ञान से सिंचित करता है।

 मुरली हमें जानकारी देती है।
 आत्मा का और परमात्मा का परिचय देती है।
 पुरुषार्थ की दिशा देती है।

लेकिन बाबा ने 6 जुलाई 2025 की मुरली में एक गहरी बात कही:

“मुरली पढ़ना योग नहीं है।”


मुरली पढ़ना योग क्यों नहीं है?

बाबा ने कहा —

“मुरली पढ़ते समय आंख और कान का प्रयोग होता है।”

इसका मतलब है —
जब हम मुरली पढ़ते या सुनते हैं, तब हमारी स्थूल इंद्रियाँ सक्रिय होती हैं।
और योग का अर्थ है —

“आत्मा को परमात्मा से जोड़ना — बिना स्थूल इंद्रियों के प्रयोग के।”


 स्थूल इंद्रियाँ बनाम सूक्ष्म इंद्रियाँ

स्थूल इंद्रियाँ — आंखें, कान, मुंह आदि
सूक्ष्म इंद्रियाँ — मन, बुद्धि, संस्कार

मुरली में आंखें और कान लगते हैं।
योग में मन और बुद्धि बाबा में स्थित होती है।

बाबा कहते हैं:

“कर्मेन्द्रियों का प्रयोग नहीं करना है योग में,
केवल बुद्धि के तीसरे नेत्र का प्रयोग करो।”


 तीसरा नेत्र और विचित्र दृष्टि

बाबा कहते हैं —

“बाबा को देखने के लिए तीसरे नेत्र की ज़रूरत है।”

यह तीसरा नेत्र — ज्ञान का नेत्र है।
जो हमें दिखाई देता है:

  • आत्मा के रूप में देखना

  • परमात्मा को बिंदी रूप में देखना

  • हर आत्मा को उस दृष्टि से देखना

बाबा बार-बार कहते हैं —

“आत्मा विचित्र है। उसका बाप भी विचित्र है। योग भी विचित्र है।”


 उदाहरण: मुरली और योग में अंतर

भोजन का उदाहरण

  • चबाना और निगलना = शरीर का कार्य

  • पाचन क्रिया = शरीर के अंदर की प्रक्रिया

इसी तरह:

  • मुरली पढ़ना = ज्ञान का चबाना

  • मंथन करना = पचाना

  • जब ज्ञान आत्मा में समा जाता है = वही योग की अवस्था है


 योग की सच्ची पहचान

योग का अर्थ है
मन और बुद्धि को परमात्मा के साथ जोड़ना।

बाबा की बात:

“मन मना भव”
— अपने मन को मुझ परमात्मा में लगाओ।

मुरली पढ़ना — हमें ज्ञान देता है।
योग — उस ज्ञान को आत्मा में स्थिर करता है।


 ध्यान और अटेंशन का विज्ञान

कभी हुआ है आपके साथ —

  • आंखें खुली हों, पर कुछ दिखे नहीं?

  • कान खुले हों, पर कुछ सुनाई न दे?

क्यों? क्योंकि ध्यान कहीं और है।

ठीक वैसे ही:
जब हमारी आत्मा —
बाबा की याद में स्थित हो जाए,
मन एकाग्र हो जाए,
व्यर्थ से मुक्त हो जाए
तब होता है सच्चा योग।


 मुरली पढ़ना आवश्यक क्यों?

  • आत्मा की पहचान देता है

  • बाबा की याद को ताज़ा करता है

  • दिनभर की याद यात्रा को बल देता है

लेकिन याद रहे —
 मुरली पढ़ना मंज़िल नहीं, केवल साधन है।

मुरली योग
आंख-कान से पढ़ी जाती है मन-बुद्धि से लगाई जाती है
ज्ञान देती है ज्ञान को स्थित करती है
साधन है साधना है
शुरुआत है मंज़िल है

बोनस टिप्स — मुरली से योग कैसे लगाएं?

  1. मुरली पढ़ते समय एक गहरा पॉइंट चुनें।

  2. 5–10 मिनट बाबा की याद में स्थित हो जाएं।

  3. अनुभव करें — ज्ञान बुद्धि में समा रहा है।

  4. दिनभर उस पॉइंट को स्मृति में दोहराएं।

  5. हर कार्य करते हुए मन मना भव की स्थिति रखें।


 समाप्ति:

शिव बाबा की मुरली —
हमें ज्ञान देती है, मार्ग दिखाती है।
लेकिन सच्चा योग तब होता है जब हम उस ज्ञान में स्थित हो जाते हैं।

इसलिए,
मुरली पढ़ो, समझो और उसमें स्थित हो जाओ।
वही सच्चा योग है।

ओम् शांति।

क्या मुरली पढ़ना ही योग है? | मुरली और योग का गहरा अंतर | Brahma Kumaris Hindi Q&A


प्रश्न 1: क्या मुरली पढ़ना ही योग है?

उत्तर:नहीं। बाबा ने स्पष्ट कहा है —

“मुरली पढ़ना योग नहीं है।” (मुरली दिनांक: 6 जुलाई 2025)
मुरली पढ़ना एक साधन है ज्ञान प्राप्त करने का, पर योग का अर्थ है आत्मा को परमात्मा से जोड़ना — बिना स्थूल इंद्रियों के प्रयोग के।


प्रश्न 2: मुरली पढ़ने में कौन-कौन सी इंद्रियाँ लगती हैं?

उत्तर:मुरली पढ़ते समय हमारी स्थूल इंद्रियाँ — आंखें और कान सक्रिय होती हैं।
 आंखों से देखते हैं
 कानों से सुनते हैं
इसलिए यह क्रिया “योग” नहीं कही जाती, क्योंकि योग में सूक्ष्म इंद्रियाँ — मन और बुद्धि का उपयोग होता है।


प्रश्न 3: योग के लिए कौन-कौन सी इंद्रियाँ आवश्यक हैं?

उत्तर:योग में केवल सूक्ष्म इंद्रियों का प्रयोग होता है:

  • मन — जो सोचता है

  • बुद्धि — जो निर्णय करती है

  • संस्कार — जो हमारे कर्मों का आधार हैं

बाबा कहते हैं:

“कर्मेन्द्रियों का प्रयोग नहीं, बुद्धि का तीसरा नेत्र प्रयोग करो।”


प्रश्न 4: बाबा “तीसरे नेत्र” की बात क्यों करते हैं?

उत्तर:तीसरा नेत्र यानी ज्ञान की दृष्टि
इस दृष्टि से:

  • आत्मा को आत्मा के रूप में देखना

  • परमात्मा को बिंदी स्वरूप में देखना

  • हर आत्मा को निराकार दृष्टि से देखना
    यही योग की दृष्टि है। यही “विचित्र दृष्टि” है।


प्रश्न 5: मुरली और योग में क्या अंतर है?

उत्तर:

मुरली योग
आंख-कान से पढ़ी जाती है मन-बुद्धि से लगाई जाती है
ज्ञान देती है ज्ञान को आत्मा में स्थित करती है
यह साधन है यह साधना है
यह शुरुआत है यह मंज़िल है

प्रश्न 6: कोई उदाहरण जिससे मुरली और योग का अंतर स्पष्ट हो?

उत्तर:भोजन का उदाहरण:

  • खाना चबाना = मुरली पढ़ना

  • भोजन का पचना = ज्ञान का मंथन

  • भोजन से शक्ति आना = आत्मा में योग स्थित होना

मुरली चबाना है, बुद्धि में मंथन करना पचाना है, और आत्मा में स्थित हो जाना — वह योग है।


प्रश्न 7: क्या मुरली पढ़ना आवश्यक नहीं है?

उत्तर:
मुरली पढ़ना अति आवश्यक है।
यह ज्ञान का स्रोत है, आत्मा और परमात्मा का परिचय है।
परंतु यह योग नहीं है, योग की तैयारी है।
 मुरली दिशा देती है
 योग मंज़िल तक पहुंचाता है


प्रश्न 8: योग कब माना जाता है?

उत्तर:जब हमारी मन और बुद्धि बाबा में स्थित हो जाए,
जब हम “मन मना भव” की स्थिति में आ जाएं —
तब वह अवस्था योग कहलाती है।
बिना मन का एकाग्रता और बुद्धि का संयम — योग संभव नहीं।


प्रश्न 9: मुरली से योग कैसे जोड़ें? (प्रैक्टिकल टिप्स)

उत्तर:

  1. मुरली पढ़ते समय एक पॉइंट पकड़ें।

  2. उस पॉइंट को बुद्धि में बैठाएं।

  3. मुरली के बाद 5–10 मिनट बाबा की याद में स्थित हो जाएं।

  4. दिनभर उस पॉइंट को अंतर्मन में दोहराएं।

  5. हर कार्य करते समय “मन मना भव” की स्थिति बनाए रखें।


प्रश्न 10: मुरली पढ़ना अगर योग नहीं है, तो उसका उद्देश्य क्या है?

उत्तर:मुरली पढ़ना हमें:

  • आत्म-स्मृति में लाता है

  • पुराना ज्ञान दोहराता है

  • पुरुषार्थ की दिशा देता है

  • बाबा के संकल्प आत्मा में समाता है

मुरली ज्ञान है, योग अनुभव है।
ज्ञान का अभ्यास अंततः योग की स्थिति में पहुंचाता है।


समापन विचार:

मुरली पढ़ो, पर उसमें स्थित हो जाओ।
सुनो, पर अनुभव भी करो।
ज्ञान को आत्मा में समाओ — वही सच्चा योग है।

ओम् शांति।

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