(05)”It is certain that Krishna has been born, but how is he being nurtured by Vishnu?

(05)”निश्चय है कि कृष्ण का जन्म हो चुका है पर विष्णु द्वारा पालना कैसे हो रही है?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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आज एक बहुत सुंदर अनुभव और गहरा ज्ञान आपसे साझा कर रहा हूँ।
मुझे पूरा निश्चय है… श्रीकृष्ण का दिव्य जन्म हो चुका है।
लेकिन प्रश्न यह उठता है — ‘विष्णु द्वारा पालना कैसे हो रही है?’*

और ये सवाल बिल्कुल जायज़ है!
हर आध्यात्मिक जिज्ञासा का समाधान ईश्वरीय ज्ञान में छुपा है।
तो आइए, इस रहस्य को समझते हैं गहराई से।

हम चलते हैं उस आध्यात्मिक चित्र की ओर, जिसे कल्पवृक्ष कहा जाता है।
इसमें पूरे विश्व-चक्र की झलक मिलती है और विष्णु का रोल भी स्पष्ट होता है।

नीचे की ओर एक चित्र में विष्णु देवता को दिखाया गया है।
लेकिन यहां ज़रूरी बात यह है — ब्रह्मा, शंकर और विष्णु का वास्तविक कार्य संगम युग में होता है।

ब्रह्मा का रोल सबसे पहले — 33 वर्षों तक,
फिर शंकर का विनाश का कार्य, और
अंत में विष्णु की पालना का चरण।

ये तीनों देवता संकल्प की रचना हैं।
इनका कार्य स्थूल दुनिया में नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सूक्ष्म स्वरूप में होता है।

बाबा समझाते हैं कि चार हाथ वाला विष्णु कोई चमत्कारी रूप नहीं है,
बल्कि यह ब्राह्मण आत्माओं की संपूर्णता का मॉडल है।

चारों अलंकार — ज्ञान, योग, सेवा, और धारणा —
जब किसी आत्मा में पूर्ण हो जाते हैं,
तो वह विष्णु समान बन जाती है।

जैसे ब्रह्मा बाबा अंत में संपूर्णता को प्राप्त करते हैं,
वैसे ही वो एक सेकंड में विष्णु बन जाते हैं।

कमल के फूल पर बैठा विष्णु — यह पवित्रता का प्रतीक है।
जब ब्रह्मा फूल समान पवित्र बनते हैं,
तो वही आत्मा श्रीकृष्ण के रूप में देवी गुणों की पालना करने लगती है।

हर आत्मा को तीन अवस्थाओं से गुजरना होता है —
पहले ब्रह्मा बनना यानी आत्मा में देवी गुणों की स्थापना,
फिर शंकर के रूप में पुरानी बातों और बुरे संस्कारों का संहार,
और अंत में विष्णु बनकर आत्मा, उन दिव्य संस्कारों की पालना करती है।

यही आत्मा फिर सतयुग में राधा-कृष्ण बनती है।
और विवाह के बाद, ये बन जाते हैं — लक्ष्मी-नारायण।
तब शुरू होता है — संपूर्ण सत्यता और शक्ति का युग।

🌸 आज एक बहुत सुंदर अनुभव और गहरा ज्ञान आपसे साझा कर रहा हूँ

श्रीकृष्ण का दिव्य जन्म और विष्णु की पालना का रहस्य | प्रश्नोत्तर शैली में समझें


प्रश्न 1: श्रीकृष्ण का जन्म हो गया, लेकिन विष्णु द्वारा पालना कैसे हो रही है?

उत्तर:यह एक गहरी आध्यात्मिक प्रक्रिया है। ब्रह्माकुमारी ज्ञान अनुसार, विष्णु कोई स्थूल देवता नहीं, बल्कि ब्रह्मा की संपूर्णता का प्रतीक है। जब ब्रह्मा बाबा आत्मिक रूप से पूर्ण बनते हैं, तो वही आत्मा विष्णु स्वरूप में प्रवेश करती है और अपने अंदर के देवी गुणों की पालना करती है — यही “विष्णु द्वारा पालना” कहलाता है।


प्रश्न 2: विष्णु का असली कार्य कब और कहां होता है?

उत्तर:विष्णु का कार्य संगम युग में होता है, जब आत्मा ब्रह्मा से शुरू होकर शंकर के संहार रूप से गुजरती है और अंत में विष्णु रूप में संपूर्ण बनती है। यह प्रक्रिया संकल्प की रचना है, जो आत्मा के अंदर होती है, न कि बाहरी दुनिया में।


प्रश्न 3: ब्रह्मा, शंकर और विष्णु में क्या संबंध है?

उत्तर:तीनों एक ही आत्मा की तीन अवस्थाएँ हैं:

  1. ब्रह्मा: देवी संस्कारों की स्थापना

  2. शंकर: पुरानी, नकारात्मक बातों का संहार

  3. विष्णु: संपूर्णता प्राप्त करके आत्मा अपने दिव्य संस्कारों की पालना करती है


प्रश्न 4: चार हाथ वाला विष्णु कौन है? क्या वह चमत्कारी रूप है?

उत्तर:नहीं, यह कोई चमत्कारी व्यक्ति नहीं है। यह एक मॉडल है, जो दर्शाता है कि जब कोई आत्मा चार विषयों — ज्ञान, योग, सेवा, और धारणा — में पास हो जाती है, तो वह विष्णु समान बनती है। यह संपूर्णता का प्रतीक है।


प्रश्न 5: ब्रह्मा विष्णु कैसे बनते हैं?

उत्तर:जब ब्रह्मा आत्मा — जिसने शुरुआत से ईश्वरीय ज्ञान में तपस्या और सेवा की — अंत में पूर्ण पवित्र, शक्तिशाली और संकल्पशील बन जाती है, तो वह एक सेकंड में विष्णु रूप में परिवर्तित हो जाती है। इसे “कमल के फूल” पर बैठे विष्णु के चित्र से समझाया गया है, जो पवित्रता का प्रतीक है।


प्रश्न 6: क्या हर आत्मा को यह तीन अवस्थाएँ पार करनी होती हैं?

उत्तर:हाँ, हर ब्राह्मण आत्मा को यह यात्रा करनी होती है —

  • ब्रह्मा बनकर देवी संस्कार स्थापित करना,

  • शंकर रूप में नकारात्मकता का अंत करना,

  • और फिर विष्णु बनकर उन देवी संस्कारों की पालना करना।


प्रश्न 7: फिर ये आत्माएं राधा-कृष्ण कैसे बनती हैं?

उत्तर:जब आत्मा पूर्ण बन जाती है और एक नए कल्प की शुरुआत होती है, तब वह सतयुग में राधा-कृष्ण के रूप में जन्म लेती है। विवाह के बाद ये ही बनते हैं लक्ष्मी-नारायण, जो सतयुग के पहले देवी-देवता होते हैं।


🕊️ अंतिम विचार:विष्णु की पालना कोई बाहरी दृश्य नहीं, बल्कि अंतरात्मा की पूर्णता का अनुभव है।
हर आत्मा इस यात्रा को तय कर सकती है — बस ज्ञान, योग, सेवा और धारणा को जीवन में अपनाने की जरूरत है

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