MURLI 01-06-2025/BRAHMAKUMARIS

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(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

01-06-25
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
”अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज: 21-10-05 मधुबन

सम्पूर्ण और सम्पन्न बनने की डेट फिक्स कर समय प्रमाण अब एवररेडी बनो

आज बापदादा चारों ओर के बच्चों के तीन रूप देख रहे हैं। जैसे बाप के विशेष तीन सम्बन्ध याद रहते हैं वैसे बच्चों के भी तीन रूप देख हर्षित हो रहे हैं। अपने तीनों ही रूप जानते हो ना! इस समय सभी बच्चे ब्राह्मण रूप में हैं और ब्राह्मणों की लास्ट स्टेज, ब्राह्मण सो फरिश्ता है फिर फरिश्ता सो देवता हो। सबसे विशेष वर्तमान ब्राह्मण जीवन है। ब्राह्मण जीवन अमूल्य है। ब्राह्मण जीवन की विशेषता है प्युरिटी। प्युरिटी ही ब्राह्मण जीवन की रीयल्टी है। प्युरिटी ही ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है। प्युरिटी ही सुख शान्ति की जननी है। जितनी प्युरिटी होगी उतनी सुख और शान्ति जीवन में नेचुरल और नेचर होगी। और प्युअर आत्माओं का लक्ष्य है ब्राह्मण सो देवता नहीं लेकिन पहले फरिश्ता बनने का है, फरिश्ता सो देवता है। तो ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता – यह तीन रूप बापदादा सभी बच्चों का देख रहे हैं। आप सभी को अपने तीन रूप सामने आ गये? आ गये? ब्राह्मण तो बन गये, अभी लक्ष्य है फरिश्ता बनने का। यही लक्ष्य है ना! फरिश्ता बनना ही है, चेक करो फरिश्ते पन की विशेषतायें जीवन में कितनी दिखाई देती हैं? फरिश्ता अर्थात् जिसका पुराने संसार और पुराने संस्कार से कोई नाता नहीं। फरिश्ता अर्थात् सिर्फ समस्या के समय डबल लाइट नहीं, लेकिन सदा मन्सा-वाचा, संबंध-सम्पर्क में डबल लाइट, हल्का। हल्की चीज़ अच्छी लगती है वा बोझ वाली चीज़ अच्छी लगती है, क्या अच्छा लगता है? हल्का पसन्द है ना? फरिश्ता अर्थात् जो सर्व का, थोड़ों का नहीं, सर्व का प्यारा और न्यारा हो। सिर्फ प्यारा नहीं, जितना प्यारा उतना ही न्यारा हो। फरिश्ता की निशानी है – वह सर्व का प्रिय होगा, जो भी देखेंगे जो भी मिलेंगे जो भी संबंध में आयेंगे, सम्पर्क में आयेंगे वह अनुभव करेंगे कि यह मेरा है। जैसे बाप के लिए सभी अनुभव करते हैं, मेरा है। अनुभव करते हैं ना? ऐसे फरिश्ता अर्थात् हर एक अनुभव करे – यह मेरा है। अपने-पन का अनुभव हो क्योंकि हल्का होगा ना तो हल्कापन सबका प्रिय बना देता है। सारा ब्राह्मण परिवार अनुभव करे कि यह मेरा है। भारीपन नहीं हो क्योंकि फरिश्ते का अर्थ ही है डबल लाइट। फरिश्ता अर्थात् संकल्प, बोल, कर्म, संबंध, सम्पर्क में बेहद हो। हद नहीं हो। सब अपने हैं और मैं सबका हूँ। जहाँ ज्यादा अपनापन होता है ना वहाँ हल्कापन होता है। संस्कार में भी हल्कापन, तो चेक करो कितना परसेन्ट फरिश्ता स्टेज तक पहुंचे हैं? चेक करना आता है? चेकर भी बन गये हो, मेकर भी बन गये हो। मुबारक हो।

बापदादा की यही शुभ आशा है कि अब समय को देखते हुए जो अपने को महारथी समझते हैं उन्हों की स्टेज तो 95 परसेन्ट होनी चाहिए। होनी चाहिए ना! (किसी ने कहा 98 परसेन्ट हो जायेंगे) मुबारक है, मुख में गुलाबजामुन खा लो, क्योंकि देख तो रहे हो, जानते भी हो, कि हो जाना ही है। हो जायेंगे नहीं, होना ही है। गे, गे नहीं करो, हो जायेंगे, देख लेंगे… कोशिश करेंगे… अब यह भाषा परिवर्तन करो। जो भी संकल्प करो, चेक करो कितनी परसेन्ट निश्चय और सफलतापूर्वक है? अभी चेक करने की स्पीड तीव्र करो। पहले चेक करो फिर कर्म में आओ। ऐसे नहीं जो भी संकल्प आया, जो भी बोल में आया, जो भी संबंध सम्पर्क में हुआ, नहीं। जो वी.वी.आई.पी. होते हैं उनकी चेकिंग कितनी होती है, पता है ना। हर चीज़ पहले चेक होती है फिर कदम रखते हैं। तो अभी दो घण्टे चार घण्टे के बाद चेकिंग नहीं चलेगी। पहले चेकिंग फिर कदम क्योंकि आजकल के वी.वी.आई.पी. जो हैं, वह तो एक जन्म के हैं। वह भी थोड़े समय के लिए हैं और आप तो सृष्टि ड्रामा के ब्राह्मण सो फरिश्ते कितने भी वी.वी. लगा दो, इतने हो। देखो, आप अपने आगे वी.वी.वी. लगाते जाओ। आपने अपने चित्र तो देखे हैं ना जो पूजे जा रहे हैं, वह देखे हैं ना। चलो मन्दिर नहीं देखे फोटो तो देखे हैं, अभी भी उन्हों की कितनी वैल्यु है। कितने बड़े-बड़े मन्दिर बनाते हैं और आपका चित्र जो है वह तो तीन फुट में आ जाता है, तो कितना आपकी वैल्यु है। जड़ चित्र की भी वैल्यु है। वैल्यु है ना! आपके चित्र का दर्शन करने के लिए कितनी क्यु लगती है। और चैतन्य में कितने वी.वी.आई.पी. हो। तो कदम उठाने के पहले चेक करो, करने के बाद चेक किया, वह कदम तो गया। वह कदम फिर आपके हाथ में नहीं आयेगा। अज्ञानकाल में भी कहते हैं, सोच समझकर काम करो। काम करके सोचो नहीं। पहले सोचो फिर करो। तो अपने स्वमान की सीट पर रहो। जितना पोजीशन में रहते तो आपोजीशन नहीं हो सकती। माया की आपोजीशन तब होती है जब पोजीशन में नहीं रहते हो। तो अभी बापदादा का क्वेश्चन है, सबका लक्ष्य तो है सम्पूर्ण बनने का, सम्पन्न बनने का। लक्ष्य है या थोड़ा-थोड़ा बनने का है? लक्ष्य है? सबका लक्ष्य है तो हाथ उठाओ। सम्पूर्ण बनना है? अच्छा। कब तक? आप लोगों से क्वेश्चन करते हो ना, स्टूडेन्ट से भी टीचर्स क्वेश्चन करती हैं ना – आपका क्या लक्ष्य है? तो आज बापदादा विशेष टीचर्स से पूछते हैं। 30 वर्ष वाले बैठे हैं ना। तो 30 वर्ष वालों को कल ही आपस में बैठकर प्रोग्राम बनाना चाहिए। मीटिंग तो बहुत करते हो। बापदादा देखते हैं मीटिंग सीटिंग, मीटिंग सीटिंग। लेकिन अब ऐसी मीटिंग करो, कि कब तक सम्पन्न बनेंगे? और सब फंक्शन मनाते हो, डेट फिक्स करते हो, फलाना प्रोग्राम फलानी डेट, इसकी डेट नहीं है? जितने साल चाहिए उतने बताओ। क्यों? बापदादा क्यों कहते हैं? क्योंकि बाप से प्रकृति पूछती है कि कब तक विनाश करें? तो बापदादा क्या जवाब दें। बापदादा बच्चों से ही पूछेंगे ना। कब तक? आज की विशेष टॉपिक है कब तक? डबल फारेनर्स बैठे हैं ना, तो डबल पुरुषार्थ होगा ना। कमाल करो। फारेनर्स एक्जैम्पुल बनो – बस ब्राह्मण परिवार के आगे, विश्व के आगे सम्पन्न और सम्पूर्ण। सर्व शक्तियां, सर्व गुण से सम्पन्न अर्थात् सम्पूर्ण, सर्व हो। मन्सा, वाचा, संबंध-सम्पर्क चार ही में, चार में से अगर एक में भी कमजोर रह गये, तो सम्पन्न नहीं कहेंगे। चार बातें याद है ना – मन्सा, वाचा, सम्बन्ध-सम्पर्क में कर्म आ गया, चार ही बातों में। ऐसे नहीं मन्सा वाचा में तो हम ठीक हैं, सम्बन्ध-सम्पर्क में थोड़ा है। सुनाया ना – जिसके सामने भी जायें, चाहे जिसके भी सम्पर्क में जायें वह अनुभव करे कि यह मेरा है। मेरे के ऊपर हुज्जत होती है ना। दूसरे के ऊपर इतना हल्कापन नहीं होता है, थोड़ा भारी होता है लेकिन अपने के ऊपर हल्कापन होता है। तो सबसे हल्के, ऐसे नहीं सिर्फ अपने ज़ोन में हल्के, अपने सेन्टर में हल्के, नहीं। अगर ज़ोन में हल्के या सेन्टर में हल्के, तो विश्वराजन कैसे बनेंगे? न विश्व कल्याणकारी बन सकते हैं, न विश्व राजन बन सकते हैं। राजन का अर्थ यह नहीं है कि तख्त पर बैठे, राजधानी में रॉयल फैमिली में भी राज्य अधिकार है, राज्य का। तो क्या करेंगे? कब तक के प्रश्न का उत्तर देंगे ना! मीटिंग करेंगे! मीटिंग करके फाइनल करना। ठीक है? अच्छा।

सभी ठीक हैं, उमंग आता है कि करना ही है, होना ही है? बापदादा उमंग-उल्हास दिलाता है। माया देखती है उमंग-उल्हास में हैं तो कुछ न कुछ कर लेती है क्योंकि उसका भी अभी अन्तिम काल नजदीक है ना। तो वह अपने अस्त्र शस्त्र जो भी हैं वह यूज़ करती हैं और ऐसी पालना करती है जो समझ नहीं सकते हैं कि यह माया की पालना है, माया की मत है या बाप की मत है, उसमें मिक्स कर देते हैं। यह फरिश्ते पन में या पुरुषार्थ में विशेष जो रूकावट होती है, उसके दो शब्द ही हैं – जो कॉमन शब्द हैं, मुश्किल भी नहीं हैं और सभी अनेक बार यूज़ भी करते हैं। वह क्या है? मैं और मेरा। बापदादा ने बहुत सहज विधि पहले भी बताई है, इस मैं और मेरे को परिवर्तन करने की, याद है? देखो, जिस समय आप मैं शब्द बोलते हो ना, उस समय सामने आये कि मैं हूँ ही आत्मा, मैं शब्द बोलो और सामने आत्मा रूप को लाओ। मैं शब्द ऐसे नहीं बोलो, मैं, आत्मा। यह नेचुरल स्मृति में लाओ। मैं शब्द के पीछे आत्मा लगा दो। मैं आत्मा। जब मेरा शब्द बोलते हो तो पहले कहो मेरा बाबा, मेरा रूमाल, मेरी साड़ी… मेरा यह। लेकिन पहले मेरा बाबा। मेरा शब्द बोला, बाबा सामने आया। मैं शब्द बोला आत्मा सामने आई, यह नेचर और नेचुरल बनाओ, सहज है ना या मुश्किल है? जानते ही हो मैं आत्मा हूँ। सिर्फ उस समय मानते नहीं हो। जानना 100 परसेन्ट है, मानना परसेन्टेज में है। जब बॉडी कॉन्सेस नेचुरल हो गया, याद करना पड़ता है क्या कि मैं बॉडी (शरीर) हूँ, नेचुरल याद है ना। तो मैं शब्द मुख के पहले तो संकल्प में आता है ना। तो संकल्प में भी मैं शब्द आवे तो फौरन आत्मा स्वरूप सामने आये। यह अभ्यास करना सहज नहीं है? सिर्फ मैं शब्द नहीं बोलना, आत्मा साथ में बोलना, पक्का हो जायेगा। जैसे शरीर का नाम पक्का है ना। दूसरे को भी कोई बुलायेगा तो आप ऐसे-ऐसे करेंगे। तो मैं आत्मा हूँ। आत्मा का संसार बापदादा, आत्मा का संस्कार ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता। तो क्या करेंगे? यह मन की ड्रिल करना। आजकल डॉक्टर्स भी कहते हैं ड्रिल करो, ड्रिल करो। एक्सरसाइज करो। तो यह एक्सरसाइज करो। मैं आत्मा, मेरा बाबा क्योंकि समय की गति को ड्रामानुसार स्लो करना पड़ता है। होना चाहिए क्रियेटर को तीव्र, क्रियेशन को नहीं लेकिन अभी के प्रमाण समय तेज जा रहा है। प्रकृति एवररेडी है सिर्फ आर्डर के लिए रूकी हुई है। ड्रामा का समय ही आर्डर करेगा ना। स्थापना वाले अगर एवररेडी नहीं होंगे तो विनाश के बाद क्या प्रलय होगी? होनी है प्रलय? कि विनाश के बाद स्थापना होनी ही है? तो स्थापना के निमित्त बने हुए अभी समय प्रमाण एवररेडी होने चाहिए। बापदादा यही देखने चाहते हैं, जैसे ब्रह्मा बाप अर्जुन बना ना, एक्जैम्पुल बना ना! ऐसे ब्रह्मा बाप को फॉलो करने वाले कौन बनते हैं? स्वयं को भी देखो, समय को भी देखो।

बापदादा ने पहले भी कहा कि वर्तमान समय आप सभी ब्राह्मण सो फरिश्ते आत्माओं को निमित्त भाव और निर्मान भाव, इन दोनों शब्दों को अण्डरलाइन करना है। इसमें बॉडी-कॉन्सेस का मैं-पन खत्म हो जायेगा। मेरा-पन भी खत्म हो जायेगा। निमित्त हूँ और निर्मान स्वभाव। जितना निर्मान होते है ना उतना मान मिलता है क्योंकि जो निर्मान होता है वह सबका प्यारा बन जाता है। और जब प्यारा बन जाता है तो मान तो आटोमेटिकली मिलेगा। तो निमित्त और निर्मान भाव और भावना, शुभ भावना। भाव और भावना दो चीज़ें होती हैं। तो निमित्त और निर्मान भाव और भावना हर एक के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना। कैसा भी हो, आपका निमित्त निर्मान भाव और शुभ भावना वायुमण्डल ऐसा बनायेगी, जो सामने वाला भी वायब्रेशन से बदल जायेगा। कई बच्चे रूहरिहान करते हैं ना – तो कहते हैं हमने एक मास से शुभ भावना रखी, वह बदलता ही नहीं है। फिर थक जाते हैं, दिलशिकस्त हो जाते हैं। अभी उस बिचारे की जो वृत्ति है या दृष्टि है वह है ही पत्थर जैसी, उसमें थोड़ा तो टाइम लगेगा ना। अच्छा मानो वह नहीं बदलता है तो आप अपने को तो ठीक रखो ना। आप तो अपनी पोजीशन में रहो ना। आप क्यों दिलशिकस्त हो जाते हो। दिलशिकस्त नहीं हो। अच्छा वह नहीं बदला तो मैं तो उसके साथ बदल न जाऊं। अगर आप दिलशिकस्त हो गये तो वह पॉवरफुल हुआ जो उसने आपको बदल लिया। आप अपने स्वमान की सीट क्यों छोड़ते हो? वेस्ट थॉटस भी नहीं उठना चाहिए, क्यों? क्यों कहा और वेस्ट थॉटस का दरवाजा खुला। वह दरवाजा बन्द बहुत मुश्किल होता है इसीलिए क्यों नहीं सोचो, मर्सीफुल होकर वायब्रेशन देते रहो। आप अपनी सीट छोड़कर क्यों दिलशिकस्त हो जाते हो? याद रखा ना – पोजीशन से नीचे नहीं आओ, फिर बहुत आपोजीशन हो जाती है। व्यक्ति-व्यक्ति में आपोजीशन हो जाती है, स्वभाव संस्कार में आपोजीशन हो जाती है, विचारों में आपोजीशन हो जाती है इसलिए पोजीशन में रहो। तो कल क्या करेंगे? याद है? बापदादा का प्यार है ना, तो बापदादा समझते हैं सब ब्रह्मा बाप समान बन जायें। क्या बाप के आगे आपोजीशन नहीं आई, ब्रह्मा बाप के आगे आपोजीशन नहीं हुई, माया की भी हुई, आत्माओं की भी हुई, प्रकृति की भी हुई, लेकिन ब्रह्मा बाप ने पोजीशन छोड़ी? नहीं छोड़ी ना। तभी फरिश्ता बना ना। तो अभी अपने को तो फरिश्ता समझकर चलो, मैं फरिश्ता हूँ… लेकिन एक दो को भी फरिश्ता रूप में देखो, सब फरिश्ते हैं। न मेरा पुराने संसार से नाता, न पुराने संस्कारों से नाता, न इन कोई ब्राह्मणों से। बस खत्म। यह भी फरिश्ता, यह भी फरिश्ता उसी नज़र से देखो। वायुमण्डल फैलाओ। अच्छा।

अभी एक मिनट ऐसा पॉवरफुल सर्व शक्तियों सम्पन्न विश्व की आत्माओं को किरणें दो जो चारों ओर आपके शक्तियों का वायब्रेशन विश्व में फैल जाये। (डेड साइलेन्स) अच्छा।

चारों ओर के ब्राह्मण सो फरिश्ते बच्चों को, सदा स्वदर्शन द्वारा स्व को चेक और चेंज करने वाले, ब्रह्मा बाप को फॉलो करने वाले फरमानबरदार बच्चों को, सदा डबल लाइट बन सेवा और पुरुषार्थ करने वाले फरिश्ते आत्माओं को, सदा अपनी पोजीशन की सीट पर सेट हो आपोजीशन को समाप्त करने वाले मास्टर सर्वशक्तिवान बच्चों को, संगमयुग का प्रत्यक्ष फल अनुभव करने वाले बाप के समीप बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

वरदान:- प्रत्यक्षता के समय को समीप लाने वाले सदा शुभ चिंतक और स्व चिंतक भव
सेवा में सफलता का आधार है शुभ चिंतक वृत्ति क्योंकि आपकी यह वृत्ति आत्माओं की ग्रहण शक्ति वा जिज्ञासा को बढ़ाती है, इससे वाणी की सेवा सहज सफल हो जाती है और स्व के प्रति स्व चिंतन करने वाली स्वचिंतक आत्मा सदा माया प्रूफ, किसी की भी कमजोरियों को ग्रहण करने से, व्यक्ति व वैभव की आकर्षण से प्रूफ हो जाती है। तो जब यह दोनों वरदान प्रैक्टिकल जीवन में लाओ तब प्रत्यक्षता का समय समीप आये।
स्लोगन:- अपने संकल्पों को भी अर्पण कर दो तो सर्व कमजोरियां स्वत:दूर हो जायेंगी।

 

अव्यक्त इशारे – आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो

परमात्म प्यार का अनुभव करने के लिए अन्तर्मुखी बन इस देह से न्यारे देही (आत्मिक) रूप में स्थित रहने का अभ्यास बढ़ाओ। सदा अन्तर्मुखता की गुफा में रहो तो पुरानी दुनिया के वातावरण से परे होते जायेंगे। वातावरण के प्रभाव में नहीं आयेंगे।

🌟 शीर्षक: “सम्पूर्ण और सम्पन्न बनने की डेट फिक्स कर समय प्रमाण अब एवररेडी बनो”

(Q&A based on Avyakt BapDada’s Murli extracts)


❓ प्रश्न 1: बापदादा बच्चों के कौन से तीन रूप देख रहे हैं?

उत्तर:बापदादा बच्चों के ये तीन रूप देख रहे हैं:

  1. ब्राह्मण

  2. फरिश्ता

  3. देवता
    ब्राह्मण जीवन की सबसे विशेषता है प्युरिटी, और ब्राह्मण से फरिश्ता और फिर फरिश्ता से देवता बनना ही आत्मा का विकास क्रम है।


❓ प्रश्न 2: फरिश्ते की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर:फरिश्ता वह है:

  • जिसका पुराने संस्कार और पुराने संसार से कोई संबंध नहीं

  • जो सदा डबल लाइट हो, मन्सा, वाचा, कर्म और संबंधों में हल्का

  • सर्व का प्यारा और उतना ही न्यारा हो

  • जिससे सभी को अपनापन और निकटता का अनुभव हो

❓ प्रश्न 3: ब्राह्मण जीवन की “रीयल्टी” और “पर्सनैलिटी” क्या है?

उत्तर:ब्राह्मण जीवन की रीयल्टी और पर्सनैलिटी है – प्युरिटी (पवित्रता)।
प्युरिटी ही सुख-शान्ति की जननी है और यही आत्मा को देवता बनने की पात्रता देती है।

❓ प्रश्न 4: बापदादा ने किस प्रकार की मीटिंग की सलाह दी?

उत्तर:बापदादा ने कहा कि अब सामान्य मीटिंग-सीटिंग नहीं, बल्कि ऐसी मीटिंग हो जिसमें यह “डेट फिक्स” हो कि आत्मा कब तक सम्पूर्ण और सम्पन्न बनेगी।
जैसे बाहरी प्रोग्राम की डेट फिक्स करते हैं, वैसे ही आत्मा की सम्पूर्णता की तारीख तय करनी है।

❓ प्रश्न 5: “मैं” और “मेरा” शब्द किस प्रकार फरिश्ते बनने में रुकावट बनते हैं?

उत्तर:“मैं” और “मेरा” बॉडी कॉन्शस और माया की पालना का रूप है।
बापदादा ने कहा:

  • “मैं” बोलते समय स्मृति आये – मैं आत्मा।

  • “मेरा” बोलते समय पहले कहो – मेरा बाबा।
    यह अभ्यास करने से सहज स्मृति में ब्राह्मण सो फरिश्ता स्थिति बनी रहती है।

❓ प्रश्न 6: सम्पूर्णता की पहचान क्या है?

उत्तर:सम्पूर्णता का अर्थ है:

  • मन्सा, वाचा, कर्म और संबंध-सम्पर्क – इन चारों में सम्पन्नता।

  • केवल बोल या सोच में ठीक होना पर्याप्त नहीं, चारों ही क्षेत्रों में फरिश्ते जैसे हल्के, प्यारे और न्यारे बनना।

❓ प्रश्न 7: बापदादा का प्रश्न – क्या सिर्फ लक्ष्य सम्पूर्णता का है या समय भी फिक्स किया?

उत्तर:बापदादा ने विशेष रूप से पूछा:

  • क्या सिर्फ सम्पूर्ण बनने का लक्ष्य है या डेट भी फिक्स की है?

  • जैसे विनाश की तिथि प्रकृति पूछती है, वैसे ही आत्मा को अपनी स्थापना की तिथि तय करनी है।

❓ प्रश्न 8: बापदादा ने किस दो शब्दों को अंडरलाइन करने की बात कही?

उत्तर:बापदादा ने निम्न दो शब्द अंडरलाइन करने को कहा:

  1. निमित्त भाव

  2. निर्मान भाव
    इन दोनों के अभ्यास से “मैं और मेरा” का अभिमान समाप्त होता है, और आत्मा सर्व का प्यारा व सम्मानित बनती है।

❓ प्रश्न 9: जब कोई आत्मा आपकी शुभ भावना से भी नहीं बदलती, तब क्या करना चाहिए?

उत्तर:बापदादा ने कहा – आप अपनी स्थिति ना खोएं।

  • वह नहीं बदले तो आप क्यों बदलें?

  • अगर आप बदल गये, तो वह मायावी संस्कार विजयी हुआ।

  • आप अपनी पोजीशन पर स्थित रहें – यही सच्ची सेवा है।

❓ प्रश्न 10: अब समय प्रमाण आत्मा को किस स्थिति में रहना चाहिए?

उत्तर:अब आत्मा को समय प्रमाण एवररेडी बनना है।

  • जैसे प्रकृति विनाश के लिए तैयार बैठी है, वैसे ही आत्मा को स्थापना के निमित्त बनकर सम्पूर्ण, सम्पन्न, फरिश्ता रूप में सदा स्थित रहना है।

  • सम्पूर्णता, सम्पन्नता, फरिश्ता बनने का लक्ष्य, ब्राह्मण जीवन की विशेषता, ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता, ब्रह्मा बाबा, बापदादा, मुरली सार, ब्राह्मण जीवन, प्युरिटी, आत्मा स्वरूप, मैं आत्मा, मेरा बाबा, आध्यात्मिक चेकिंग, डबल लाइट स्टेज, मन्सा वाचा कर्म, सम्पर्क में पवित्रता, निर्मान भाव, निमित्त भाव, शुभ भावना, आत्म साक्षात्कार, पुरुषार्थ, संगम युग की तैयारी, विनाश और स्थापना, ब्राह्मण आत्मा का लक्ष्य, ब्रह्माकुमारिज, ईश्वरीय ज्ञान, अव्यक्त मुरली, आध्यात्मिकता, स्वरूप स्मृति, बापदादा मिलन, फरिश्ते की पहचान, आत्म जागृति, स्वमान की सीट, परसेन्टेज चेकिंग, समय प्रमाण, आत्मिक स्थिति,
  • Completeness, prosperity, aim of becoming an angel, speciality of Brahmin life, Brahmin is an angel, angel is a deity, Brahma Baba, BapDada, essence of Murli, Brahmin life, purity, soul form, I am the soul, my Baba, spiritual checking, double light stage, thoughts, words and actions, purity in contact, feeling of humility, feeling of being an instrument, good feelings, self-realisation, effort, preparation for the Confluence Age, destruction and establishment, aim of Brahmin soul, Brahma Kumaris, Godly knowledge, Avyakt Murli, spirituality, awareness of the form, meeting with BapDada, recognition of an angel, soul awakening, seat of self-respect, percentage checking, according to the time, soul conscious stage,