(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
| 01-07-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
|
मधुबन |
| “मीठे बच्चे – तुम्हारी बुद्धि में अभी सारे ज्ञान का सार है, इसलिए तुम्हें चित्रों की भी दरकार नहीं, तुम बाप को याद करो और दूसरों को कराओ” | |
| प्रश्नः- | पिछाड़ी के समय तुम बच्चों की बुद्धि में कौन-सा ज्ञान रहेगा? |
| उत्तर:- | उस समय बुद्धि में यही रहेगा कि अभी हम जाते हैं वापिस घर। फिर वहाँ से चक्र में आयेंगे। धीरे-धीरे सीढ़ी उतरेंगे फिर बाप आयेंगे चढ़ती कला में ले जाने। अभी तुम जानते हो पहले हम सूर्यवंशी थे फिर चन्द्रवंशी बनें…… इसमें चित्रों की दरकार नहीं। |
ओम् शान्ति। बच्चे आत्म-अभिमानी होकर बैठे हो? 84 का चक्र बुद्धि में है अर्थात् अपने वैराइटी जन्मों का ज्ञान है। विराट रूप का भी चित्र है ना। इसका ज्ञान भी बच्चों में है कि कैसे हम 84 जन्म लेते हैं। मूलवतन से पहले-पहले देवी-देवता धर्म में आते हैं। यह ज्ञान बुद्धि में है, इसमें चित्र की कोई दरकार नहीं। हमको कोई चित्र आदि याद नहीं करना है। अन्त में याद सिर्फ यह रहेगा कि हम आत्मा हैं, मूलवतन की रहने वाली हैं, यहाँ हमारा पार्ट है। यह भूलना नहीं चाहिए। यह मनुष्य सृष्टि के चक्र की ही बातें हैं और बहुत सिम्पुल हैं। इसमें चित्रों की बिल्कुल दरकार नहीं क्योंकि यह चित्र आदि सब हैं भक्ति मार्ग की चीज़ें। ज्ञान मार्ग में तो है पढ़ाई। पढ़ाई में चित्रों की दरकार नहीं। इन चित्रों को सिर्फ करेक्ट किया गया है। जैसे वह कहते हैं गीता का भगवान श्रीकृष्ण है, हम कहते हैं शिव है। यह भी बुद्धि से समझने की बात है। बुद्धि में यह नॉलेज रहती है, हमने 84 का चक्र लगाया है। अब हमको पवित्र बनना है। पवित्र बन फिर नये सिर चक्र लगायेंगे। यह है सार जो बुद्धि में रखना है। जैसे बाप की बुद्धि में है वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी वा 84 जन्मों का चक्र कैसे फिरता है, वैसे तुम्हारी बुद्धि में है पहले हम सूर्यवंशी फिर चन्द्र-वंशी बनते हैं। चित्रों की दरकार है नहीं। सिर्फ मनुष्यों को समझाने के लिए यह बनाये हैं। ज्ञान मार्ग में तो सिर्फ बाप कहते हैं – मनमनाभव। जैसे यह चतुर्भुज का चित्र है, रावण का चित्र है, यह सब समझाने के लिए दिखलाने पड़ते हैं। तुम्हारी बुद्धि में तो यथार्थ ज्ञान है। तुम बिना चित्र के भी समझा सकते हो। तुम्हारी बुद्धि में 84 का चक्र है। चित्रों द्वारा सिर्फ सहज करके समझाया जाता है, इनकी दरकार नहीं है। बुद्धि में है पहले हम सूर्यवंशी घराने के थे फिर चन्द्रवंशी घराने के बने। वहाँ बहुत सुख है, जिसको स्वर्ग कहा जाता है, यह चित्रों पर समझाते हैं। पिछाड़ी में तो बुद्धि में यह ज्ञान रहेगा। अभी हम जाते हैं, वापिस चक्र लगायेंगे। सीढ़ी पर समझाया जाता है, तो मनुष्यों को सहज हो जाए। तुम्हारी बुद्धि में यह भी सारा ज्ञान है कि कैसे हम सीढ़ी उतरते हैं। फिर बाप चढ़ती कला में ले जाते हैं। बाप कहते हैं मैं तुमको इन चित्रों का सार समझाता हूँ। जैसे गोला है तो उस पर समझा सकते हैं – यह 5 हज़ार वर्ष का चक्र है। अगर लाखों वर्ष होते तो संख्या कितनी बढ़ जाती। क्रिश्चियन का दिखाते हैं 2 हज़ार वर्ष। इसमें कितने मनुष्य होते हैं। 5 हज़ार वर्ष में कितने मनुष्य होते हैं। यह सारा हिसाब तुम बतलाते हो। सतयुग में पवित्र होने कारण थोड़े मनुष्य होते हैं। अभी तो कितने ढेर हैं। लाखों वर्ष की आयु होती तो संख्या भी अनगिनत हो जाए। क्रिश्चियन की भेंट में आदमशुमारी का हिसाब तो निकालते हैं ना। हिन्दुओं की आदमशुमारी कम दिखाते हैं। क्रिश्चियन बहुत बन गये हैं। जो अच्छे समझदार बच्चे हैं, बिगर चित्रों के भी समझा सकते हैं। विचार करो इस समय कितने ढेर मनुष्य हैं। नई दुनिया में कितने थोड़े मनुष्य होंगे। अभी तो पुरानी दुनिया है, जिसमें इतने मनुष्य हैं। फिर नई दुनिया कैसे स्थापन होती है। कौन स्थापन करते हैं, यह बाप ही समझाते हैं। वही ज्ञान का सागर है। तुम बच्चों को सिर्फ यह 84 का चक्र ही बुद्धि में रखना है। अभी हम नर्क से स्वर्ग में जाते हैं, तो अन्दर खुशी होगी ना। सतयुग में दु:ख की कोई बात होती नहीं। ऐसी कोई अप्राप्त वस्तु नहीं जिसकी प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करें। यहाँ पुरुषार्थ करना पड़ता है। यह मशीन चाहिए, यह चाहिए…. वहाँ तो सब सुख मौजूद हैं। जैसे कोई महाराजा होता है तो उनके पास सब सुख मौजूद रहते हैं। गरीब के पास तो सब सुख मौजूद नहीं होते। परन्तु यह तो है कलियुग, तो बीमारियाँ आदि सब कुछ हैं। अभी तुम पुरुषार्थ करते हो नई दुनिया में जाने के लिए। स्वर्ग-नर्क यहाँ ही होता है।
यह सूक्ष्मवतन की जो रमत-गमत है, यह भी टाइम पास करने के लिए है। जब तक कर्मातीत अवस्था हो टाइम पास करने के लिए यह खेलपाल हैं। कर्मातीत अवस्था आ जायेगी, बस। तुमको यही याद रहेगा कि हम आत्मा ने अब 84 जन्म पूरे किये, अब हम जाते हैं घर। फिर आकर सतोप्रधान दुनिया में सतोप्रधान पार्ट बजायेंगे। यह ज्ञान बुद्धि में लिया हुआ है, इसमें चित्रों आदि की दरकार नहीं। जैसे बैरिस्टर कितना पढ़ते हैं, बैरिस्टर बन गये, बस जो पाठ पढ़े वह खलास। रिजल्ट निकली प्रालब्ध की। तुम भी पढ़कर फिर जाए राजाई करेंगे। वहाँ नॉलेज की दरकार नहीं। इन चित्रों में भी रांग-राइट क्या है, यह अभी तुम्हारी बुद्धि में हैं। बाप बैठ समझाते हैं, लक्ष्मी-नारायण कौन हैं? यह विष्णु क्या है? विष्णु के चित्र में मनुष्य मूँझ जाते हैं। बिगर समझ के पूजा भी जैसे फालतू हो जाती है, समझते कुछ भी नहीं। जैसे विष्णु को नहीं समझते हैं, लक्ष्मी-नारायण को भी नहीं समझते। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को भी नहीं समझते। ब्रह्मा तो यहाँ है, यह पवित्र बन शरीर छोड़ चले जायेंगे। इस पुरानी दुनिया से वैराग्य है। यहाँ का कर्मबन्धन दु:ख देने वाला है। अब बाप कहते हैं अपने घर चलो। वहाँ दु:ख का नाम-निशान नहीं होगा। पहले तुम अपने घर में थे फिर राजधानी में आये, अब बाप फिर आये हैं पावन बनाने। इस समय मनुष्यों का खान-पान आदि कितना गन्दा है। क्या-क्या चीजें खाते रहते हैं। वहाँ देवतायें ऐसी गन्दी चीजें थोड़ेही खाते हैं। भक्ति मार्ग देखो कैसा है, मनुष्य की भी बलि चढ़ती है। बाप कहते हैं – यह भी ड्रामा बना हुआ है। पुरानी दुनिया से फिर नई जरूर बननी है। अभी तुम जानते हो – हम सतोप्रधान बन रहे हैं। यह तो बुद्धि समझती है ना, इसमें तो चित्र न हो तो और ही अच्छा। नहीं तो मनुष्य बहुत ही प्रश्न पूछते हैं। बाप ने 84 जन्मों का चक्र समझाया है। हम ऐसे सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, वैश्य वंशी बनते हैं, इतने जन्म लेते हैं। यह बुद्धि में रखना होता है। तुम बच्चे सूक्ष्मवतन का राज़ भी समझते हो, ध्यान में सूक्ष्मवतन में जाते हो, परन्तु इसमें न योग है, न ज्ञान है। यह सिर्फ एक रस्म है। समझाया जाता है, कैसे आत्मा को बुलाया जाता है फिर जब आती है तो रोते हैं, पश्चाताप् होता है, हमने बाबा का कहना नहीं माना। यह सब हैं बच्चों को समझाने के लिए कि पुरुषार्थ में लग पड़ें, ग़फलत न करें। बच्चे सदा यह अटेन्शन रखें कि हमें अपना टाइम सफल करना है, वेस्ट नहीं करना है तो माया ग़फलत नहीं करा सकती है। बाबा भी समझाते रहते हैं – बच्चे टाइम वेस्ट न करो। बहुतों को रास्ता बताने का पुरुषार्थ करो। महादानी बनो। बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। जो भी आते हैं उनको यह समझाओ और 84 का चक्र बताओ। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है, नटशेल में सारा चक्र बुद्धि में रहना चाहिए।
तुम बच्चों को खुशी रहनी चाहिए कि अभी हम इस गन्दी दुनिया से छूटते हैं। मनुष्य समझते हैं स्वर्ग-नर्क यहाँ ही है। जिनको बहुत धन है तो समझते हैं हम स्वर्ग में हैं। अच्छे कर्म किये हैं इसलिए सुख मिला है। अभी तुम बहुत अच्छे कर्म करते हो जो 21 जन्म के लिए तुम सुख पाते हो। वह तो एक जन्म लिए समझते हैं कि हम स्वर्ग में हैं। बाप कहते हैं वह है अल्पकाल का सुख, तुम्हारा है 21 जन्मों का। जिसके लिए बाप कहते हैं सभी को रास्ता बताते जाओ। बाप की याद से ही निरोगी बनेंगे और स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे। स्वर्ग में है राजाई। उनको भी याद करो। राजाई थी, अभी नहीं है। भारत की ही बात है। बाकी तो है बाई-प्लाट्स। पिछाड़ी में सब चले जायेंगे फिर हम आयेंगे नई दुनिया में। अब इस समझाने में चित्रों की दरकार थोड़ेही है। यह सिर्फ समझाने के लिए मूलवतन, सूक्ष्मवतन दिखाते हैं। समझाया जाता है बाकी यह तो भक्ति मार्ग वालों ने चित्र आदि बनाये हैं। तो हमको भी फिर करेक्ट कर बनाने पड़ते हैं। नहीं तो कहेंगे तुम तो नास्तिक हो इसलिए करेक्ट कर बनाये हैं। ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर द्वारा विनाश…… वास्तव में यह भी ड्रामा में नूँध है। कोई कुछ करता थोड़ेही है। साइंसदान भी अपनी बुद्धि से यह सब बनाते हैं। भल कितना भी कोई कहे कि बाम्बस न बनाओ परन्तु जिनके पास ढेर हैं वह समुद्र में डालें तो फिर दूसरा कोई न बनाये। वह रखे हैं तो जरूर और भी बनायेंगे। अभी तुम बच्चे जानते हो सृष्टि का विनाश तो जरूर होना ही है। लड़ाई भी जरूर लगनी है। विनाश होता है, फिर तुम अपना राज्य लेते हो। अब बाप कहते हैं – बच्चे, सबका कल्याणकारी बनो।
बच्चों को अपनी ऊंच तकदीर बनाने के लिए बाप श्रीमत देते हैं – मीठे बच्चे, अपना सब कुछ धनी के नाम पर सफल कर लो। किनकी दबी रहेगी धूल में, किनकी राजा खाए……। धनी (बाप) खुद कहते हैं – बच्चे, इसमें खर्च करो, यह रूहानी हॉस्पिटल, युनिवर्सिटी खोलो तो बहुतों का कल्याण हो जायेगा। धनी के नाम तुम खर्चते हो जिसका फिर 21 जन्म के लिए तुमको रिटर्न में मिलता है। यह दुनिया ही खत्म होनी है इसलिए धनी के नाम जितना हो सके सफल करो। धनी शिवबाबा है ना। भक्ति मार्ग में भी धनी के नाम करते थे। अभी तो है डायरेक्ट। धनी के नाम बड़ी-बड़ी युनिवर्सिटी खोलते जाओ तो बहुतों का कल्याण हो जायेगा। 21 जन्म लिए राज्य-भाग्य चक्र लेंगे। नहीं तो यह धन-दौलत आदि सब खत्म हो जायेंगे। भक्ति मार्ग में खत्म नहीं होते हैं। अभी तो खत्म होना है। तुम खर्चो, फिर तुमको ही रिटर्न मिलेगा। धनी के नाम पर सबका कल्याण करो तो 21 जन्मों का वर्सा मिलेगा। कितना अच्छा समझाते हैं फिर जिनकी तकदीर में है वह खर्च करते रहते हैं। अपना घरबार भी सम्भालना है। इनका (बाबा का) पार्ट ही ऐसा था। एकदम ज़ोर से नशा चढ़ गया। बाबा बादशाही देते हैं फिर गदाई क्या करेंगे। तुम सब बादशाही लेने लिए बैठे हो तो फालो करो ना। जानते हो इसने कैसे सब छोड़ दिया। नशा चढ़ गया, ओहो! राजाई मिलती है, अल्फ को अल्लाह मिला तो बे (भागीदार) को भी राजाई दे दी। राजाई थी, कम नहीं था। अच्छा फरटाइल धन्धा था। अब तुमको यह राजाई मिल रही है, तो बहुतों का कल्याण करो। पहले भट्ठी बनी फिर कोई पक कर तैयार हुए, कोई कच्चे रह गये। गवर्मेन्ट नोट बनाती है फिर ठीक नहीं बनते हैं तो गवर्मेन्ट को जला देने पड़ते हैं। आगे तो चांदी के रूपये चलते थे। सोना और चांदी बहुत था। अभी तो क्या हो रहा है। कोई की राजा खा जाते, कोई की डाकू खा जाते, डाके भी देखो कितने लगते हैं। फैमन भी होगा। यह है ही रावण राज्य। राम राज्य सतयुग को कहा जाता है। बाप कहते हैं तुमको इतना ऊंच बनाया फिर कंगाल कैसे बनें! अब तुम बच्चों को इतनी नॉलेज मिली है तो खुशी होनी चाहिए। दिन-प्रतिदिन खुशी बढ़ती जायेगी। जितना यात्रा पर नजदीक होगे उतनी खुशी होगी। तुम जानते हो शान्तिधाम-सुखधाम सामने खड़ा है। वैकुण्ठ के झाड़ दिखाई पड़ रहे हैं। बस, अब पहुँचे कि पहुँचे। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपना टाइम सफल करने का अटेन्शन रखना है। माया ग़फलत न करा सके – इसके लिए महादानी बन बहुतों को रास्ता बताने में बिजी रहना है।
2) अपनी ऊंची तकदीर बनाने के लिए धनी के नाम पर सब कुछ सफल करना है। रूहानी युनिवर्सिटी खोलनी है।
| वरदान:- | ऊंचे ते ऊंचे बाप को प्रत्यक्ष करने वाले शुभ और श्रेष्ठ कर्मधारी भव जैसे राइट हैण्ड से सदा शुभ और श्रेष्ठ कर्म करते हैं। ऐसे आप राइट हैण्ड बच्चे सदा शुभ वा श्रेष्ठ कर्मधारी बनो, आपका हर कर्म ऊंचे ते ऊचे बाप को प्रत्यक्ष करने वाला हो। क्योंकि कर्म ही संकल्प वा बोल को प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में स्पष्ट करने वाला होता है। कर्म को सभी देख सकते हैं, कर्म द्वारा अनुभव कर सकते हैं इसलिए चाहे रूहानी दृष्टि द्वारा, चाहे अपने खुशी के, रूहानियत के चेहरे द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करो – यह भी कर्म ही है। |
| स्लोगन:- | रूहानियत का अर्थ है – नयनों में पवित्रता की झलक और मुख पर पवित्रता की मुस्कराहट हो। |
अव्यक्त इशारे – संकल्पों की शक्ति जमा कर श्रेष्ठ सेवा के निमित्त बनो
जैसे आजकल सूर्य की शक्ति जमाकर कई कार्य सफल करते हैं। ऐसे आप संकल्प की शक्ति जमा करो तो औरों में भी बल भर सकते हो, अनेक कार्य सफल कर सकते हो। जो हिम्मतहीन हैं उन्हें वाणी के साथ-साथ श्रेष्ठ संकल्प की सूक्ष्म शक्ति से हिम्मतवान बनाना, यही वर्तमान समय की आवश्यकता है।
“मीठे बच्चे – तुम्हारी बुद्धि में अभी सारे ज्ञान का सार है, इसलिए तुम्हें चित्रों की भी दरकार नहीं, तुम बाप को याद करो और दूसरों को कराओ”
प्रश्न 1: पिछाड़ी के समय तुम बच्चों की बुद्धि में कौन-सा ज्ञान रहेगा?
उत्तर:उस समय बुद्धि में यह स्मृति रहेगी कि हम आत्माएं अब अपने घर (मुक्तिधाम) वापिस जा रही हैं। वहाँ से फिर सतयुग में आयेंगे और धीरे-धीरे द्वापर व कलियुग में उतरते जायेंगे। बाप फिर संगम पर आकर हमें चढ़ती कला में ले जाते हैं। यह संपूर्ण 84 जन्मों का चक्र बुद्धि में रहेगा। इसमें किसी चित्र की दरकार नहीं है।
प्रश्न 2: ज्ञान मार्ग में चित्रों की क्या आवश्यकता है?
उत्तर:ज्ञान मार्ग में चित्रों की कोई दरकार नहीं है। यह केवल समझाने के साधन हैं। पढ़ाई तो बुद्धि की होती है। जैसे बैरिस्टर पढ़ाई से बनता है, वैसे तुम आत्माएं भी बाप की पढ़ाई से राजाई पद प्राप्त करती हो। चित्र तो भक्ति मार्ग की चीज़ें हैं, ज्ञान मार्ग में मुख्य बात है – “बाप को याद करना”।
प्रश्न 3: 84 जन्मों के चक्र का सार क्या है जो बुद्धि में रखना चाहिए?
उत्तर:हम आत्माएं मूलवतन से आकर पहले सतोप्रधान सूर्यवंशी देवता बनती हैं, फिर चन्द्रवंशी, वैश्य और अन्त में शूद्र बनते हैं। अब संगमयुग पर बाप आकर फिर से हमें पावन बनाते हैं ताकि हम फिर से उसी 84 जन्मों का चक्र लगाएँ। यही है ज्ञान का सार, जिसे याद रखना है।
प्रश्न 4: चित्रों के बिना कौन-कौन सी बातें सहज बुद्धि में आ जाती हैं?
उत्तर:
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आत्मा कहाँ से आयी?
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84 जन्म कैसे लिए?
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किस युग में कौन-सा वंश था?
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किसने नई दुनिया स्थापन की?
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ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की सच्ची पहचान क्या है?
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कैसे हम नर्क से स्वर्ग में जाते हैं?
यह सब बातें बिना चित्र के समझी जा सकती हैं क्योंकि यह ज्ञान अब तुम्हारी बुद्धि में बैठ चुका है।
प्रश्न 5: सूक्ष्मवतन की रमत-गमत का क्या महत्व है?
उत्तर:सूक्ष्मवतन की रमत-गमत सिर्फ टाइम पास और रस्म है जब तक कर्मातीत अवस्था नहीं आती। इसमें न ज्ञान है न योग। आत्मा सूक्ष्मवतन जाती है, आत्मा आती है, पश्चाताप करती है – यह सब दिखाने की बातें हैं ताकि मनुष्य ध्यान देकर पुरुषार्थ करें।
प्रश्न 6: बाप कौन-सा ज्ञान बुद्धि में भरते हैं जिससे चित्रों की आवश्यकता नहीं रहती?
उत्तर:बाप आत्मा को यह ज्ञान देते हैं कि वह 84 जन्मों की यात्रा पूरी कर अब वापिस घर जा रही है। वहाँ से फिर सतोप्रधान दुनिया में आयेंगे और नई राजाई प्राप्त करेंगे। इस नॉलेज से आत्मा की बुद्धि जागृत हो जाती है। चित्रों की आवश्यकता नहीं रह जाती।
प्रश्न 7: धनी (बाप) के नाम पर धन कैसे सफल किया जा सकता है?
उत्तर:बाप कहते हैं – बच्चों, अपना धन रूहानी हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी खोलने में लगाओ जिससे आत्माओं का कल्याण हो सके। इस धन का रिटर्न तुम्हें 21 जन्मों तक मिलेगा। यह सच्ची कमाई है, जो धनी शिवबाबा के नाम पर होती है और ऊंच तकदीर बनाती है।
प्रश्न 8: स्वर्ग और नर्क का सच्चा ज्ञान क्या है?
उत्तर:स्वर्ग और नर्क कोई अलग जगह नहीं, यह अवस्था है। सतयुग में हम आत्माएं सतोप्रधान और सुखी होती हैं – वही स्वर्ग है। कलियुग में हम पतित और दुखी होते हैं – वही नर्क है। स्वर्ग-नर्क यही धरती पर होते हैं। परिवर्तन ज्ञान और पुरुषार्थ से होता है।
प्रश्न 9: मनुष्यों को कौन-से ज्ञान का सार समझाना चाहिए?
उत्तर:
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आत्मा अजर, अमर है
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आत्मा 84 जन्म लेती है
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अभी संगमयुग है, जब बाप स्वयं ज्ञान दे रहे हैं
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भक्ति मार्ग समाप्त हो, अब ज्ञान मार्ग शुरू है
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बाप की याद से ही विकर्म विनाश होंगे
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नई सतोप्रधान दुनिया की स्थापना हो रही है
यह संपूर्ण ज्ञान नटशेल में समझाना चाहिए।
प्रश्न 10: स्वर्ग का अधिकारी कौन बन सकता है?
उत्तर:जो बच्चे श्रीमत पर चलते हैं, बाप को याद करते हैं, और पुरानी दुनिया से दिल हटा, पवित्रता से पुरुषार्थ करते हैं – वही स्वर्ग के अधिकारी बनते हैं। ऐसे बच्चों की 21 जन्मों की तकदीर बनती है।
तुम बच्चे अभी ज्ञान मार्ग में हो। तुम्हारी बुद्धि में 84 जन्मों का पूरा चक्र और बाप की श्रीमत का सार है। इसलिए चित्रों की आवश्यकता नहीं, सिर्फ बाप को याद करना और यह ज्ञान दूसरों को देना ही सच्चा पुरुषार्थ है।
ओम् शान्ति।
84 जन्मों का चक्र, आत्मा और परमात्मा का ज्ञान, ब्रह्माकुमारी मुरली सार, ब्रह्माकुमारी ज्ञान, शिवबाबा की शिक्षा, संगमयुग का ज्ञान, सहज राजयोग, ब्रह्मा बाबा का ज्ञान, देवी देवता धर्म, चित्रों की दरकार नहीं, आत्म-अभिमान, मनमनाभव, सतयुग की स्थापना, पवित्रता का पुरुषार्थ, सूक्ष्मवतन का अनुभव, मुरली का सार, स्वर्ग और नर्क का रहस्य, विश्व की हिस्ट्री जॉग्राफी, वर्ल्ड ड्रामा चक्र, कर्मातीत अवस्था, ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर द्वारा विनाश, शिवबाबा की श्रीमत, रूहानी हॉस्पिटल युनिवर्सिटी, महादानी बनो, विकर्म विनाश, स्वर्ग का मालिक बनो, आत्मा का पहला पाठ, नॉलेज और भक्ति का अंतर,
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