MURLI 04-09-2025 |BRAHMA KUMARIS

Questions & Answers (प्रश्नोत्तर):are given below

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04-09-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठे बच्चे – संगम पर तुम्हें प्यार का सागर बाप प्यार का ही वर्सा देते हैं, इसलिए तुम सबको प्यार दो, गुस्सा मत करो”
प्रश्नः- अपने रजिस्टर को ठीक रखने के लिए बाप ने तुम्हें कौन सा रास्ता बताया है?
उत्तर:- प्यार का ही रास्ता बाप तुम्हें बतलाते हैं, श्रीमत देते हैं बच्चे हर एक के साथ प्यार से चलो। किसी को भी दु:ख नहीं दो। कर्मेन्द्रियों से कभी भी कोई उल्टा कर्म नहीं करो। सदा यही जाँच करो कि मेरे में कोई आसुरी गुण तो नहीं हैं? मूडी तो नहीं हूँ? कोई बात में बिगड़ता तो नहीं हूँ?
गीत:- यह वक्त जा रहा है……..

ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। दिन-प्रतिदिन अपना घर अथवा मंजिल नज़दीक होती जाती है। अब जो कुछ श्रीमत कहती है, उसमें ग़फलत न करो। बाप का डायरेक्शन मिलता है कि सबको मैसेज पहुँचाओ। बच्चे जानते हैं लाखों करोड़ों को यह मैसेज देना है। फिर कोई समय आ भी जायेंगे। जब बहुत हो जायेंगे तो बहुतों को मैसेज देंगे। बाप का मैसेज मिलना तो सबको है। मैसेज है बहुत सहज। सिर्फ बोलो अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो और कोई भी कर्मेन्द्रियों से मन्सा-वाचा-कर्मणा कोई बुरा काम नहीं करना है। पहले मन्सा में आता है तब वाचा में आता है। अभी तुमको राइट-रांग समझने की बुद्धि चाहिए, यह पुण्य का काम है, यह करना चाहिए। दिल में संकल्प आता है गुस्सा करें, अब बुद्धि तो मिली है – अगर गुस्सा करेंगे तो पाप बन जायेगा। बाप को याद करने से पुण्य आत्मा बन जायेंगे। ऐसे नहीं अच्छा अभी हुआ फिर नहीं करेंगे। ऐसे फिर-फिर कहते रहने से आदत पड़ जायेगी। मनुष्य ऐसा कर्म करते हैं तो समझते हैं यह पाप नहीं है। विकार को पाप नहीं समझते हैं। अभी बाप ने बताया है – यह बड़े से बड़ा पाप है, इन पर जीत पाना है और सबको बाप का मैसेज देना है कि बाप कहते हैं मुझे याद करो, मौत सामने खड़ा है। जब कोई मरने पर होते हैं तो उनको कहते हैं – गॉड फादर को याद करो। रिमेम्बर गॉड फादर। वह समझते हैं यह गॉड फादर पास जाते हैं। परन्तु वो लोग यह तो जानते नहीं कि गॉड फादर को याद करने से क्या होगा? कहाँ जायेंगे? आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। गॉड फादर के पास तो कोई जा न सके। तो अब तुम बच्चों को अविनाशी बाप की अविनाशी याद चाहिए। जब तमोप्रधान दु:खी बन जाते हैं तब तो एक-दो को कहते हैं गॉड फादर को याद करो, सब आत्मायें एक-दो को कहती हैं, कहती तो आत्मा है ना। ऐसे नहीं कि परमात्मा कहते हैं। आत्मा, आत्मा को कहती है – बाप को याद करो। यह एक कॉमन रसम है। मरने समय ईश्वर को याद करते हैं। ईश्वर का डर रहता है। समझते हैं अच्छे वा बुरे कर्मों का फल ईश्वर ही देते हैं, बुरा कर्म करेंगे तो ईश्वर धर्मराज द्वारा बहुत सज़ा देंगे इसलिए डर रहता है, बरोबर कर्मों की भोगना तो होती है ना। तुम बच्चे अभी कर्म-अकर्म-विकर्म की गति को समझते हो। जानते हो यह कर्म अकर्म हुआ। याद में रह जो कर्म करते हैं वह अच्छे करते हैं। रावण राज्य में मनुष्य बुरे कर्म ही करते हैं। राम राज्य में बुरा काम कभी होता नहीं। अब श्रीमत तो मिलती रहती है। कहाँ बुलावा होता है, यह करना चाहिए वा नहीं करना चाहिए – हर बात में पूछते रहो। समझो कोई पुलिस की नौकरी करते हैं तो उन्हें भी कहा जाता – तुम पहले प्यार से समझाओ। सच्ची न करे तो बाद में मार। प्यार से समझाने से हाथ आ सकते हैं परन्तु उस प्यार में भी योगबल भरा होगा तो उस प्यार की ताकत से कोई को भी समझाने से समझेंगे, यह तो जैसे ईश्वर समझाते हैं। तुम ईश्वर के बच्चे योगी हो ना। तुम्हारे में भी ईश्वरीय ताकत है। ईश्वर प्यार का सागर है, उनमें ताकत है ना। सबको वर्सा देते हैं। तुम जानते हो स्वर्ग में प्यार बहुत होता है। अभी तुम प्यार का पूरा वर्सा ले रहे हो। लेते-लेते नम्बरवार पुरुषार्थ करते-करते प्यारे बन जायेंगे।

बाप कहते हैं – किसको भी दु:ख नहीं देना है, नहीं तो दु:खी होकर मरेंगे। बाप प्यार का रास्ता बताते हैं। मन्सा में आने से वह शक्ल में भी आ जाता है। कर्मेन्द्रियों से कर लिया तो रजिस्टर खराब हो जायेगा। देवताओं की चाल-चलन का गायन करते हैं ना इसलिए बाबा कहते हैं – देवताओं के पुजारियों को समझाओ। वह महिमा गाते हैं आप सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण हो और अपनी चाल-चलन भी सुनाते हैं। तो उनको समझाओ तुम ऐसे थे, अब नहीं हो फिर होंगे जरूर। तुमको ऐसा देवता बनना है तो अपनी चाल ऐसी रखो, तो तुम यह बन जायेंगे। अपनी जांच करनी है – हम सम्पूर्ण निर्विकारी हैं? हमारे में कोई आसुरी गुण तो नहीं हैं? कोई बात में बिगड़ता तो नहीं हूँ, मूड़ी तो नहीं बनता हूँ? अनेक बार तुमने पुरुषार्थ किया है। बाप कहते हैं तुमको ऐसा बनना है। बनाने वाला भी हाज़िर है। कहते हैं कल्प-कल्प तुमको ऐसा बनाता हूँ। कल्प पहले जिन्होंने ज्ञान लिया है वह जरूर आकर लेंगे। पुरुषार्थ भी कराया जाता है और बेफिक्र भी रहते हैं। ड्रामा की नूँध ऐसी है। कोई कहते हैं – ड्रामा में नूँध होगी तो जरूर करेंगे। अच्छा चार्ट होगा तो ड्रामा करायेगा। समझा जाता है – उनकी तकदीर में नहीं है। पहले-पहले भी एक ऐसे बिगड़ा था, तकदीर में नहीं था – बोला ड्रामा में होगा तो ड्रामा हमको पुरुषार्थ करायेगा। बस छोड़ दिया। ऐसे तुमको भी बहुत मिलते हैं। तुम्हारा एम ऑब्जेक्ट तो यह खड़ा है, बैज तो तुम्हारे पास है, जैसे अपना पोतामेल देखते हो तो बैज को भी देखो, अपनी चाल-चलन को भी देखो। कभी भी क्रिमिनल आंखें न हों। मुख से कोई ईविल बात न निकले। ईविल बोलने वाला ही नहीं होगा तो कान सुनेंगे कैसे? सतयुग में सब दैवीगुण वाले होते हैं। ईविल कोई बात नहीं। इन्होंने भी प्रालब्ध बाप द्वारा ही पाई है। यह तो सबको बोलो बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे। इसमें नुकसान की कोई बात नहीं है। संस्कार आत्मा ले जाती है। संन्यासी होगा तो फिर संन्यास धर्म में आ जायेगा। झाड़ तो उनका बढ़ता रहता है ना। इस समय तुम बदल रहे हो। मनुष्य ही देवता बनते हैं। सब कोई इकट्ठे थोड़ेही आयेंगे। आयेंगे फिर नम्बरवार, ड्रामा में कोई बिगर समय एक्टर थोड़ेही स्टेज पर आ जायेंगे। अन्दर बैठे रहते हैं। जब समय होता है तो बाहर स्टेज़ पर आते हैं पार्ट बजाने। वह है हद का नाटक, यह है बेहद का। बुद्धि में है हम एक्टर्स को अपने समय पर आकर अपना पार्ट बजाना है। यह बेहद का बड़ा झाड़ है। नम्बरवार आते जाते हैं। पहले-पहले एक ही धर्म था सभी धर्म वाले तो पहले-पहले आ न सकें।

पहले तो देवी-देवता धर्म वाले ही आयेंगे पार्ट बजाने, सो भी नम्बरवार। झाड़ के राज़ को भी समझना है। बाप ही आकर सारे कल्प वृक्ष का ज्ञान सुनाते हैं। इनकी भेंट फिर निराकारी झाड़ से होती है। एक बाप ही कहते हैं मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का बीज मैं हूँ। बीज में झाड़ समाया हुआ नहीं है लेकिन झाड़ का ज्ञान समाया हुआ है। हर एक का अपना-अपना पार्ट है। चैतन्य झाड़ है ना। झाड़ के पत्ते भी नम्बरवार निकलेंगे। इस झाड़ को कोई भी समझते नहीं हैं, इनका बीज ऊपर में है इसलिए इनको उल्टा वृक्ष कहा जाता है। रचयिता बाप है ऊपर में। तुम जानते हो हमको जाना है घर, जहाँ आत्मायें रहती हैं। अभी हमको पवित्र बनकर जाना है। तुम्हारे द्वारा योगबल से सारी विश्व पवित्र हो जाती है। तुम्हारे लिए तो पवित्र सृष्टि चाहिए ना। तुम पवित्र बनते हो तो दुनिया भी पवित्र बनानी पड़े। सब पवित्र हो जाते हैं। तुम्हारी बुद्धि में है, आत्मा में ही मन-बुद्धि है ना। चैतन्य है। आत्मा ही ज्ञान को धारण कर सकती है। तो मीठे-मीठे बच्चों को यह सारा राज़ बुद्धि में होना चाहिए – कैसे हम पुनर्जन्म लेते हैं। 84 का चक्र तुम्हारा पूरा होता है तो सबका पूरा होता है। सब पावन बन जाते हैं। यह अनादि बना हुआ ड्रामा है। एक सेकण्ड भी ठहरता नहीं है। सेकण्ड बाई सेकण्ड जो कुछ होता है, सो फिर कल्प बाद होगा। हर एक आत्मा में अविनाशी पार्ट भरा हुआ है। वह एक्टर्स करके 2-4 घण्टे का पार्ट बजाते हैं। यह तो आत्मा को नैचुरल पार्ट मिला हुआ है तो बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए। अतीन्द्रिय सुख अभी संगम का ही गाया हुआ है। बाप आते हैं, 21 जन्मों के लिए हम सदा सुखी बनते हैं। खुशी की बात है ना। जो अच्छी रीति समझते और समझाते हैं वह सर्विस पर लगे रहते हैं। कोई बच्चे खुद ही अगर क्रोधी हैं तो दूसरे में भी प्रवेशता हो जाती है। ताली दो हाथ की बजती है। वहाँ ऐसे नहीं होता। यहाँ तुम बच्चों को शिक्षा मिलती है – कोई क्रोध करे तो तुम उन पर फूल चढ़ाओ। प्यार से समझाओ। यह भी एक भूत है, बहुत नुकसान कर देंगे। क्रोध कभी नहीं करना चाहिए। सिखलाने वाले में तो क्रोध बिल्कुल नहीं होना चाहिए। नम्बरवार पुरुषार्थ करते रहते हैं। किसका तीव्र पुरुषार्थ होता है, किसका ठण्डा। ठण्डे पुरुषार्थ वाले जरूर अपनी बदनामी करेंगे। कोई में क्रोध है तो जहाँ जाते हैं वहाँ से निकाल देते हैं। कोई भी बदचलन वाले रह नहीं सकते। इम्तहान जब पूरा होगा तो सबको पता पड़ेगा। कौन-कौन क्या बनते हैं, सब साक्षात्कार होगा। जो जैसा काम करते हैं, उनकी ऐसी महिमा होती है।

तुम बच्चे ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। तुम सब अन्तर्यामी हो। आत्मा अन्दर में जानती है – यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है। सारे सृष्टि के मनुष्यों की चाल-चलन का, सब धर्मों का तुम्हें ज्ञान है। उनको कहा जायेगा – अन्तर्यामी। आत्मा को सब मालूम पड़ गया। ऐसे नहीं, भगवान घट-घट वासी है, उनको जानने की क्या दरकार है? वो तो अभी भी कहते हैं जो जैसा पुरुषार्थ करेंगे ऐसा फल पायेंगे। मुझे जानने की क्या दरकार है। जो करता है उसकी सज़ा भी खुद पायेंगे। ऐसी चलन चलेंगे तो अधम गति को पायेंगे। पद बहुत कम हो जायेगा, उस स्कूल में तो नापास हो जाते हैं तो फिर दूसरे वर्ष पढ़ते हैं। यह पढ़ाई तो होती है कल्प-कल्पान्तर के लिए। अब न पढ़े तो कल्प-कल्पान्तर नहीं पढ़ेंगे। ईश्वरीय लॉटरी तो पूरी लेनी चाहिए ना। यह बातें तुम बच्चे समझ सकते हो। जब भारत सुखधाम होगा तब बाकी सब शान्तिधाम में होंगे। बच्चों को खुशी होनी चाहिए – अब हमारे सुख के दिन आते हैं। दीपमाला के दिन नज़दीक होते हैं तो कहते हैं ना बाकी इतने दिन हैं फिर नये कपड़े पहनेंगे। तुम भी कहते हो स्वर्ग आ रहा है, हम अपना श्रृंगार करें तो फिर स्वर्ग में अच्छा सुख पायेंगे। साहूकार को तो साहूकारी का नशा रहता है। मनुष्य बिल्कुल घोर नींद में हैं फिर अचानक पता पड़ेगा – यह तो सच कहते थे। सच को तब समझें जब सच का संग हो। तुम अभी सच के संग में हो। तुम सत बनते हो सत बाप द्वारा। वह सब असत्य बनते हैं, असत्य द्वारा। अभी कान्ट्रास्ट भी छपा रहे हैं कि भगवान क्या कहते हैं और मनुष्य क्या कहते हैं। मैगजीन में भी डाल सकते हो। आखरीन विजय तो तुम्हारी ही है, जिन्होंने कल्प पहले पद पाया है वह जरूर पायेंगे। यह सरटेन है। वहाँ अकाले मृत्यु होता नहीं। आयु भी बड़ी होती है। जब पवित्रता थी तो बड़ी आयु थी। पतित-पावन परमात्मा बाप है तो जरूर उसने ही पावन बनाया होगा। श्रीकृष्ण की बात शोभती नहीं। पुरुषोत्तम संगमयुग पर श्रीकृष्ण फिर कहाँ से आयेगा। वही फीचर्स वाला मनुष्य तो फिर होता नहीं। 84 जन्म, 84 फीचर्स, 84 एक्टिविटी – यह बना-बनाया खेल है। उसमें फ़र्क नहीं पड़ सकता। ड्रामा कैसा वन्डरफुल बना हुआ है। आत्मा छोटी बिन्दी है, उसमें अनादि पार्ट भरा हुआ है – इसको कुदरत कहा जाता है। मनुष्य सुनकर वन्डर खायेंगे। परन्तु पहले तो यह पैगाम देना है कि बाप को याद करो। वही पतित-पावन है, सर्व का सद्गति दाता है। सतयुग में दु:ख की बात होती नहीं। कलियुग में तो कितना दु:ख है। परन्तु यह बातें समझने वाले नम्बरवार हैं। बाप तो रोज़ समझाते रहते हैं। तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा आया हुआ है हमको पढ़ाने, फिर साथ ले जायेंगे। साथ में रहने वालों से भी बांधेलियाँ ज्यादा याद करती हैं। वह ऊंच पद पा सकती हैं। यह भी समझ की बात है ना। बाबा की याद में बहुत तड़फती हैं। बाप कहते हैं बच्चे याद की यात्रा में रहो, दैवीगुण भी धारण करो तो बन्धन कटते जायेंगे। पाप का घड़ा खत्म हो जायेगा। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रुहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) अपनी चाल-चलन देवताओं जैसी बनानी है। कोई भी ईविल बोल मुख से नहीं बोलने हैं। यह आंखें कभी क्रिमिनल न हों।

2) क्रोध का भूत बहुत नुकसान करता है। ताली दो हाथ से बजती है इसलिए कोई क्रोध करे तो किनारा कर लेना है, उन्हें प्यार से समझाना है।

वरदान:- त्याग, तपस्या और सेवा भाव की विधि द्वारा सदा सफलता स्वरूप भव
त्याग और तपस्या ही सफलता का आधार है। त्याग की भावना वाले ही सच्चे सेवाधारी बन सकते हैं। त्याग से ही स्वयं का और दूसरों का भाग्य बनता है और दृढ़ संकल्प करना – यही तपस्या है। तो त्याग, तपस्या और सेवा भाव से अनेक हद के भाव समाप्त हो जाते हैं। संगठन शक्तिशाली बनता है। एक ने कहा दूसरे ने किया, कभी भी तू मैं, मेरा तेरा न आये तो सफलता स्वरूप, निर्विघ्न बन जायेंगे।
स्लोगन:- संकल्प द्वारा भी किसी को दु:ख न देना – यही सम्पूर्ण अहिंसा है।

 

अव्यक्त इशारे – अब लगन की अग्नि को प्रज्वलित कर योग को ज्वाला रूप बनाओ

योग को ज्वाला रूप बनाने के लिए सेकण्ड में बिन्दी स्वरूप बन मन-बुद्धि को एकाग्र करने का अभ्यास बार-बार करो। स्टॉप कहा और सेकण्ड में व्यर्थ देह-भान से मन-बुद्धि एकाग्र हो जाए। ऐसी कन्ट्रोंलिंग पावर सारे दिन में यूज़ करो। पावरफुल ब्रेक द्वारा मन-बुद्धि को कन्ट्रोल करो, जहाँ मन-बुद्धि को लगाना चाहो वहाँ सेकण्ड में लग जाए।

“मीठे बच्चे – संगम पर तुम्हें प्यार का सागर बाप प्यार का ही वर्सा देते हैं, इसलिए तुम सबको प्यार दो, गुस्सा मत करो”


 प्रश्न–उत्तर

प्रश्न 1: अपने रजिस्टर को ठीक रखने के लिए बाप ने कौन सा रास्ता बताया है?
उत्तर: बाप कहते हैं – बच्चे, प्यार का रास्ता अपनाओ। हर एक के साथ प्यार से चलो, किसी को भी दुःख मत दो। कर्मेन्द्रियों से कोई उल्टा कार्य मत करो। सदा अपनी जांच करो कि मुझमें कोई आसुरी गुण, मूडीपन या बिगड़ने की आदत तो नहीं है।


प्रश्न 2: गुस्सा क्यों पाप माना गया है?
उत्तर: क्योंकि गुस्से से आत्मा का रजिस्टर खराब हो जाता है, पुण्य नष्ट होता है और विकारों की कैद और गहरी हो जाती है। क्रोध का भूत बहुत नुकसान करता है, इसलिए बाबा कहते हैं – क्रोध करने वाले पर भी फूल चढ़ाओ, प्यार से समझाओ।


प्रश्न 3: मुरली में “कर्म-अकर्म-विकर्म” की गति कैसे समझाई गई?
उत्तर: बाबा ने समझाया – याद में रहकर किया गया कार्य अकर्म बन जाता है और आत्मा पावन बनती है। विकारवश किया गया कार्य विकर्म है, जो पाप बनकर सजा दिलाता है। रामराज्य में विकर्म नहीं होता, रावणराज्य में विकर्म ही होते हैं।


प्रश्न 4: देवताओं की चाल-चलन कैसी थी और हमें कैसी बनानी है?
उत्तर: देवताओं की चाल-चलन निर्विकारी और ईविल रहित थी। वे 16 कला सम्पन्न और सर्वगुण सम्पन्न थे। हमें भी अपनी चाल-चलन ऐसी ही बनानी है कि कभी भी क्रिमिनल आंखें न हों, मुख से बुरे बोल न निकलें और संकल्प से भी किसी को दुःख न दें।


प्रश्न 5: बाबा ने सेवा के लिए कौन सी विशेष विधि बताई है?
उत्तर: बाबा कहते हैं – त्याग, तपस्या और सेवा भाव से संगठन शक्तिशाली बनता है। त्याग से भाग्य बनता है, तपस्या दृढ़ संकल्प से होती है और सेवा से संगठन में एकता आती है। इससे आत्मा निर्विघ्न और सफलता स्वरूप बनती है।


 गीत

“यह वक्त जा रहा है…”


 धारणा के मुख्य सार

  1. अपनी चाल–चलन देवताओं जैसी बनानी है। कोई भी ईविल बोल मुख से नहीं बोलने हैं। आंखें कभी क्रिमिनल न हों।

  2. क्रोध का भूत बहुत नुकसान करता है। कोई क्रोध करे तो किनारा करो, प्यार से समझाओ।


 वरदान

त्याग, तपस्या और सेवा भाव की विधि द्वारा सदा सफलता स्वरूप भव।


 स्लोगन

“संकल्प द्वारा भी किसी को दुःख न देना – यही सम्पूर्ण अहिंसा है।”

(Disclaimer:डिस्क्लेमर) यह वीडियो एवं लेख केवल आध्यात्मिक शिक्षा, प्रेरणा और आत्म-विकास के उद्देश्य से बनाया गया है। इसमें प्रस्तुत मुरली पॉइंट्स, व्याख्या और उदाहरण ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्वविद्यालय (Brahma Kumaris) की शिक्षाओं पर आधारित हैं। इसका उद्देश्य किसी भी धर्म, पंथ या व्यक्ति की भावनाओं को आहत करना नहीं है। सभी श्रोताओं/पाठकों से निवेदन है कि इसे सकारात्मक दृष्टिकोण से ग्रहण करें।

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