MURLI 05-01-2025/BRAHMAKUMARIS

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Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

05-01-25
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
”अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज: 17-10-2003 मधुबन

“पूरा वर्ष – सन्तुष्टमणि बन सदा सन्तुष्ट रहना और सबको सन्तुष्ट करना”

आज दिलाराम बापदादा अपने चारों ओर के, सामने वालों को भी और दूर सो समीप वालों को भी हर एक राज़ दुलारे, अति प्यारे बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। हर एक बच्चा राजा है इसलिए राज-दुलारे हैं। यह परमात्म प्यार, दुलार विश्व में बहुत थोड़ी सी आत्माओं को प्राप्त होता है। लेकिन आप सभी परमात्म प्यार, परमात्म दुलार के अधिकारी हैं। दुनिया की आत्मायें पुकार रही हैं आओ, आओ लेकिन आप सभी परमात्म प्यार अनुभव कर रहे हो। परमात्म पालना में पल रहे हो। ऐसा अपना भाग्य अनुभव करते हो? बापदादा सभी बच्चों को डबल राज्य अधिकारी देख रहे हैं। अभी के भी स्व राज्य अधिकारी राजे हो और भविष्य में तो राज्य आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। तो डबल राजे हो। सभी राजा हो ना, प्रजा तो नहीं! राजयोगी हो या कोई-कोई प्रजायोगी भी है? है कोई प्रजायोगी, पीछे वाले राजयोगी हो? प्रजायोगी कोई नहीं है ना! पक्का? सोच के हाँ करना! राज अधिकारी अर्थात् सर्व सूक्ष्म और स्थूल कर्मेन्द्रियों के अधिकारी क्योंकि स्वराज्य है ना? तो कभी-कभी राजे बनते हो या सदा राजे रहते हो? मूल है अपने मन-बुद्धि-संस्कार के भी अधिकारी हो? सदा अधिकारी हो या कभी-कभी? स्व राज्य तो सदा स्वराज्य होता है या एक दिन होता है दूसरे दिन नहीं होता है। राज्य तो सदा होता है ना? तो सदा स्वराज्य अधिकारी अर्थात् सदा मन-बुद्धि-संस्कार के ऊपर अधिकार। सदा है? सदा में हाँ नहीं करते? कभी मन आपको चलाता है या आप मन को चलाते? कभी मन मालिक बनता है? बनता है ना! तो सदा स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी।

सदा चेक करो – जितना समय और जितनी पावर से अपने कर्मेन्द्रियों, मन-बुद्धि-संस्कार के ऊपर अभी अधिकारी बनते हो उतना ही भविष्य में राज्य अधिकार मिलता है। अगर अभी परमात्म पालना, परमात्म पढ़ाई, परमात्म श्रीमत के आधार पर यह एक संगमयुग का जन्म सदा अधिकारी नहीं तो 21 जन्म कैसे राज्य अधिकारी बनेंगे? हिसाब है ना! इस समय का स्वराज्य, स्व का राजा बनने से ही 21 जन्म की गैरन्टी है। मैं कौन और क्या बनूंगा, अपना भविष्य वर्तमान के अधिकार द्वारा स्वयं ही जान सकते हो। सोचो, आप विशेष आत्माओं की अनादि आदि पर्सनैलिटी और रॉयल्टी कितनी ऊंची है! अनादि रूप में भी देखो जब आप आत्मायें परमधाम में रहती तो कितनी चमकती हुई आत्मायें दिखाई देती हो। उस चमक की रॉयल्टी, पर्सनैलिटी कितनी बड़ी है। दिखाई देती है? और बाप के साथ-साथ आत्मा रूप में भी रहते हो, समीप रहते हो। जैसे आकाश में कोई-कोई सितारे बहुत ज्यादा चमकने वाले होते हैं ना! ऐसे आप आत्मायें भी विशेष बाप के साथ और विशेष चमकते हुए सितारे होते हो। परमधाम में भी आप बाप के समीप हो और फिर आदि सतयुग में भी आप देव आत्माओं की पर्सनैलिटी, रॉयल्टी कितनी ऊंची है। सारे कल्प में चक्कर लगाओ, धर्म आत्मा हो गये, महात्मा हो गये, धर्म पितायें हो गये, नेतायें हो गये, अभिनेतायें हो गये, ऐसी पर्सनैलिटी कोई की है, जो आप देव आत्माओं की सतयुग में है? अपना देव स्वरूप सामने आ रहा है ना? आ रहा है या पता नहीं हम बनेंगे या नहीं? पक्का है ना! अपना देव रूप सामने लाओ और देखो, पर्सनैलिटी सामने आ गई? कितनी रॉयल्टी है, प्रकृति भी पर्सनैलिटी वाली हो जाती है। पंछी, वृक्ष, फल, फूल सब पर्सनैलिटी वाले, रॉयल। अच्छा फिर आओ नीचे, तो अपना पूज्य रूप देखा है? आपकी पूजा होती है! डबल फारेनर्स पूज्य बनेंगे कि इन्डिया वाले बनेंगे? आप लोग देवियां, देवतायें बने हो? सूंढ वाला नहीं, पूंछ वाला नहीं। देवियां भी वह काली रूप नहीं, लेकिन देव-ताओं के मन्दिर में देखो, आपके पूज्य स्वरूप की कितनी रॉयल्टी है, कितनी पर्सनैलिटी है? मूर्ति होगी, 4 फुट, 5 फुट की और मन्दिर कितना बड़ा बनाते हैं। यह रॉयल्टी और पर्सनैलिटी है। आजकल के चाहे प्राइम मिनिस्टर हो, चाहे राजा हो लेकिन धूप में बिचारे का बुत बनाके रख देंगे, क्या भी होता रहे। और आपके पूज्य स्वरूप की पर्सनैलिटी कितनी बड़ी है। है ना बढ़िया! कुमारियां बैठी हैं ना! रॉयल्टी है ना आपकी? फिर अन्त में संगमयुग में भी आप सबकी रॉयल्टी कितनी ऊंची है। ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी कितनी बड़ी है! डायरेक्ट भगवान ने आपके ब्राह्मण जीवन में पर्सनैलिटी और रॉयल्टी भरी है। ब्राह्मण जीवन का चित्रकार कौन? स्वयं बाप। ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी रॉयल्टी कौन सी है? प्युरिटी। प्युरिटी ही रॉयल्टी है। है ना! ब्राह्मण आत्मायें सभी जो भी बैठे हो तो प्युरिटी की रॉयल्टी है ना! हाँ, कांध हिलाओ। पीछे वाले हाथ उठा रहे हैं। आप पीछे नहीं हो, सामने हो। देखो नज़र पीछे जाती है, आगे तो ऐसे देखना पड़ता है पीछे आटोमेटिक जाती है।

तो चेक करो – प्युरिटी की पर्सनैलिटी सदा रहती है? मन्सा-वाचा-कर्मणा, वृत्ति, दृष्टि और कृति सबमें प्युरिटी है? मन्सा प्युरिटी अर्थात् सदा और सर्व प्रति शुभ भावना, शुभ कामना – सर्व प्रति। वह आत्मा कैसी भी हो लेकिन प्युरिटी की रॉयल्टी की मन्सा है – सर्व प्रति शुभ भावना, शुभ कामना, कल्याण की भावना, रहम की भावना, दातापन की भावना। और दृष्टि में या तो सदा हर एक के प्रति आत्मिक स्वरूप देखने में आये वा फरिश्ता रूप दिखाई दे। चाहे वह फरिश्ता नहीं बना है, लेकिन मेरी दृष्टि में फरिश्ता रूप और आत्मिक रूप ही हो और कृति अर्थात् सम्पर्क सम्बन्ध में, कर्म में आना, उसमें सदा ही सर्व प्रति स्नेह देना, सुख देना। चाहे दूसरा स्नेह दे, नहीं दे लेकिन मेरा कर्तव्य है स्नेह देकर स्नेही बनाना। सुख देना। स्लोगन है ना – ना दु:ख दो, ना दु:ख लो। देना भी नहीं है, लेना भी नहीं है। देने वाले आपको कभी दु:ख भी दे दें लेकिन आप उसको सुख की स्मृति से देखो। गिरे हुए को गिराया नहीं जाता है, गिरे हुए को सदा ऊंचा उठाया जाता है। वह परवश होके दु:ख दे रहा है। गिर गया ना! तो उसको गिराना नहीं है और भी उस बिचारे को एक लात लगा लो, ऐसे नहीं। उसको स्नेह से ऊंचा उठाओ। उसमें भी फर्स्ट चैरिटी बिगन्स एट होम। पहले तो चैरिटी बिगन्स होम है ना, अपने सर्व साथी, सेवा के साथी, ब्राह्मण परिवार के साथी हर एक को ऊंचा उठाओ। वह अपनी बुराई दिखावे भी लेकिन आप उनकी विशेषता देखो। नम्बरवार तो हैं ना! देखो, माला आपका यादगार है। तो सब एक नम्बर तो नहीं है ना! 108 नम्बर हैं ना! तो नम्बरवार हैं और रहेंगे लेकिन मेरा फर्ज क्या है? यह नहीं सोचना अच्छा मैं 8 में तो हूँ ही नहीं, 108 में शायद आ जाऊंगी, आ जाऊंगा। तो 108 में लास्ट भी हो सकता है तो मेरे भी तो कुछ संस्कार होंगे ना, लेकिन नहीं। दूसरे को सुख देते-देते, स्नेह देते-देते आपके संस्कार भी स्नेही, सुखी बन ही जाने हैं। यह सेवा है और यह सेवा फर्स्ट चैरिटी बिगन्स एट होम।

बापदादा को आज एक बात पर हंसी आ रही थी, बतायें। देखना आपको भी हंसी आयेगी। बापदादा तो बच्चों का खेल देखते रहते हैं ना! बापदादा एक सेकण्ड में कभी किस सेन्टर का टी.वी. खोल देता है, कभी किस सेन्टर का, कभी फॉरेन का, कभी इन्डिया का स्विच ऑन कर देता है, पता पड़ जाता है, क्या कर रहे हैं क्योंकि बाप को बच्चों से प्यार है ना। बच्चे भी कहते हैं समान बनना ही है। पक्का है ना, समान बनना ही है! सोच के हाथ उठाओ। हाँ जो समझते हैं, मरना पड़े, झुकना पड़े, सहन करना पड़े, सुनना पड़े, लेकिन समान बनकर ही दिखायेंगे! वह हाथ उठाओ। कुमारियां सोच के हाथ उठाना। इन्हों का फोटो निकालो। कुमारियां बहुत हैं। मरना पड़ेगा? झुकना पड़ेगा? पाण्डव उठाओ। सुना, समान बनना है। समान नहीं बनेंगे तो मजा नहीं आयेगा। परमधाम में भी समीप नहीं रहेंगे। पूज्य में भी फर्क पड़ जायेगा, सतयुग के राज्य भाग्य में भी फर्क पड़ जायेगा।

ब्रह्मा बाप से आपका प्यार है ना, डबल विदेशियों का सबसे ज्यादा प्यार है। जिसका ब्रह्मा बाबा से जिगरी, दिल का प्यार है वह हाथ उठाओ। अच्छा, पक्का प्यार है ना? अभी क्वेश्चन पूछेंगे, प्यार जिससे होता है, तो प्यार की निशानी है जो उसको अच्छा लगता, वह प्यार करने वाले को भी अच्छा लगता, दोनों के संस्कार, संकल्प, स्वभाव टैली खाते हैं तभी वह प्यारा लगता है। तो ब्रह्मा बाप से प्यार है तो 21 ही जन्म, पहले जन्म से लेकर, दूसरे तीसरे में आये तो अच्छा नहीं है लेकिन फर्स्ट जन्म से लेके लास्ट जन्म तक साथ रहेंगे, भिन्न-भिन्न रूप में साथ रहेंगे। तो साथ कौन रह सकता है? जो समान होगा। वह नम्बरवन आत्मा है। तो साथ कैसे रहेंगे? नम्बरवन बनेंगे तब तो साथ रहेंगे, सबमें नम्बर-वन, मन्सा में, वाणी में, कर्मणा में, वृत्ति में, दृष्टि में, कृति में, सबमें। तो नम्बरवन हैं या नम्बरवार हैं? तो अगर प्यार है तो प्यार के लिए कुछ भी कुर्बानी करना मुश्किल नहीं होता। लास्ट जन्म कलियुग के अन्त में भी बॉडी कॉन्सेस प्यार वाले जान भी कुर्बान कर देते हैं। तो आपने अगर ब्रह्मा बाबा के प्यार में अपने संस्कार परिवर्तन किया तो क्या बड़ी बात है! बड़ी बात है क्या? नहीं है। तो आज से सबके संस्कार चेंज हो गये! पक्का? रिपोर्ट आयेगी, आपके साथी लिखेंगे, पक्का? सुन रही हैं दादियां, कहते हैं संस्कार बदल गये। या टाइम लगेगा? क्या? मोहिनी (न्यूयार्क) सुनावे, बदलेंगे ना! यह सभी बदलेंगे ना? अमेरिका वाले तो बदल जायेंगे। हंसी की बात तो रह गई।

हंसी की यह बात है – तो सभी कहते हैं कि पुरुषार्थ तो बहुत करते हैं, और बापदादा को देख करके रहम भी आता है पुरुषार्थ बहुत करते हैं, कभी-कभी मेहनत बहुत करते हैं और कहते क्या हैं – क्या करें, मेरे संस्कार ऐसे हैं! संस्कार के ऊपर कहकर अपने को हल्का कर देते हैं लेकिन बाप ने आज देखा कि यह जो आप कहते हो कि मेरा संस्कार है, तो क्या आपका यह संस्कार है? आप आत्मा हो, आत्मा हो ना! बॉडी तो नहीं हो ना! तो आत्मा के संस्कार क्या हैं? और ओरीज्नल आपके संस्कार कौन से हैं? जिसको आज आप मेरा कहते हो वह मेरा है या रावण का है? किसका है? आपका है? नहीं है? तो मेरा क्यों कहते हो! कहते तो ऐसे ही हो ना कि मेरा संस्कार ऐसा है? तो आज से यह नहीं कहना, मेरा संस्कार। नहीं। कभी यहाँ वहाँ से उड़के किचड़ा आ जाता है ना! तो यह रावण की चीज़ आ गई तो उसको मेरा कैसे कहते हो! है मेरा? नहीं है ना? तो अभी कभी नहीं कहना, जब मेरा शब्द बोलो तो याद करो मैं कौन और मेरा संस्कार क्या? बॉडी कॉन्सेस में मेरा संस्कार है, आत्म-अभिमानी में यह संस्कार नहीं है। तो अभी यह भाषा भी परिवर्तन करना। मेरा संस्कार कहके अलबेले हो जाते हो। कहेंगे भाव नहीं है, संस्कार है। अच्छा दूसरा शब्द क्या कहते हैं? मेरा स्वभाव। अभी स्वभाव शब्द कितना अच्छा है। स्व तो सदा अच्छा होता है। मेरा स्वभाव, स्व का भाव अच्छा होता है, खराब नहीं होता है। तो यह जो शब्द यूज़ करते हो ना, मेरा स्वभाव है, मेरा संस्कार है, अभी इस भाषा को चेंज करो, जब भी मेरा शब्द आवे, तो याद करो मेरा संस्कार ओरीज्नल क्या है? यह कौन बोलता है? आत्मा बोलती है यह मेरा संस्कार है? तो जब यह सोचेंगे ना तो अपने ऊपर ही हंसी आयेगी, आयेगी ना हंसी? हंसी आयेगी तो जो खिटखिट करते हो वह खत्म हो जायेगी। इसको कहते हैं भाषा का परिवर्तन करना अर्थात् हर आत्मा के प्रति स्वमान और सम्मान में रहना। स्वयं भी सदा स्वमान में रहो, औरों को भी स्वमान से देखो। स्वमान से देखेंगे ना तो फिर जो कोई भी बातें होती हैं, जो आपको भी पसन्द नहीं हैं, कभी भी कोई खिटखिट होती है तो पसन्द आता है? नहीं आता है ना? तो देखो ही एक दो को स्वमान से। यह विशेष आत्मा है, यह बाप के पालना वाली ब्राह्मण आत्मा है। यह कोटों में कोई, कोई में भी कोई आत्मा है। सिर्फ एक बात करो – अपने नयनों में बिन्दी को समा दो, बस। एक बिन्दी से तो देखते हो, दूसरी बिन्दी भी समा दो तो कुछ भी नहीं होगा, मेहनत करनी नहीं पड़ेगी। जैसे आत्मा, आत्मा को देख रही है। आत्मा, आत्मा से बोल रही है। आत्मिक वृत्ति, आत्मिक दृष्टि बनाओ। समझा – क्या करना है? अभी मेरा संस्कार कभी नहीं कहना, स्वभाव कहो तो स्व के भाव में रहना। ठीक है ना।

बापदादा यही चाहते हैं कि यह पूरा वर्ष चाहे सीजन 6 मास चलती है लेकिन पूरा ही वर्ष सभी को जब भी मिलो, जिससे भी मिलो, चाहे आपस में, चाहे और आत्माओं से लेकिन जब भी मिलो, जिससे भी मिलो उसको सन्तुष्टता का सहयोग दो। स्वयं भी सन्तुष्ट रहो और दूसरे को भी सन्तुष्ट करो। इस सीजन का स्वमान है – सन्तुष्टमणि। सदा सन्तुष्टमणि। भाई भी मणि हैं, मणा नहीं होता है, मणि होता है। एक एक आत्मा हर समय सन्तुष्टमणि है। और स्वयं सन्तुष्ट होंगे तो दूसरे को भी सन्तुष्ट करेंगे। सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना। ठीक है, पसन्द है?(सभी ने हाथ उठाया) बहुत अच्छा, मुबारक हो, मुबारक हो। अच्छा। कुछ भी हो जाए, अपने स्वमान की सीट पर एकाग्र रहो, भटको नहीं, कभी किस सीट पर, कभी किस सीट पर, नहीं। अपने स्वमान की सीट पर एकाग्र रहो। और एकाग्र सीट पर सेट होके अगर कोई भी बात आती है ना तो एक कार्टून शो के मुआफिक देखो, कार्टून देखना अच्छा लगता है ना, तो यह समस्या नहीं है, कार्टून शो चल रहा है। कोई शेर आता है, कोई बकरी आती है, कोई बिच्छू आता है, कोई छिपकली आती है गंदी – कार्टून शो है। अपनी सीट से अपसेट नहीं हो। मजा आयेगा। अच्छा।

चारों ओर के राज दुलारे बच्चों को, सर्व स्नेही, सहयोगी, समान बनने वाले बच्चों को, सदा अपने श्रेष्ठ स्व भाव और संस्कार को स्वरूप में इमर्ज करने वाले बच्चों को, सदा सुख देने, सर्व को स्नेह देने वाले बच्चों को, सदा सन्तुष्टमणि बन सन्तुष्टता की किरणें फैलाने वाले बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

वरदान:- शुभचिंतन और शुभचिंतक स्थिति के अनुभव द्वारा ब्रह्मा बाप समान मास्टर दाता भव
ब्रह्मा बाप समान मास्टर दाता बनने के लिए ईर्ष्या, घृणा और क्रिटिसाइज़ – इन तीन बातों से मुक्त रहकर सर्व के प्रति शुभचिंतक बनो और शुभचिंतन स्थिति का अनुभव करो क्योंकि जिसमें ईर्ष्या की अग्नि होती है वे स्वयं जलते हैं, दूसरों को परेशान करते हैं, घृणा वाले खुद भी गिरते हैं दूसरे को भी गिराते हैं और हंसी में भी क्रिटिसाइज़ करने वाले, आत्मा को हिम्मतहीन बनाकर दु:खी करते हैं इसलिए इन तीनों बातों से मुक्त रह शुभचिंतक स्थिति के अनुभव द्वारा दाता के बच्चे मास्टर दाता बनो।
स्लोगन:- मन-बुद्धि और संस्कारों पर सम्पूर्ण राज्य करने वाले स्वराज्य अधिकारी बनो।

 

अपनी शक्तिशाली मन्सा द्वारा सकाश देने की सेवा करो

आप ब्राह्मण बच्चे तना हो। तने से ही सारे वृक्ष को सकाश पहुंचती है। तो अब विश्व को सकाश देने वाले बनो। अगर 20 सेन्टर, 30 सेन्टर या दो अढ़ाई सौ सेन्टर या ज़ोन, यह बुद्धि में रहेगा तो बेहद में सकाश नहीं दे सकेंगे इसलिए हदों से निकल अब बेहद की सेवा का पार्ट आरम्भ करो। बेहद में जाने से हद की बातें आपेही छूट जायेंगी। बेहद की सकाश से परिवर्तन होना – यह फास्ट सेवा का रिजल्ट है।

सदा संतुष्ट रहना और दूसरों को संतुष्ट करना

प्रश्न और उत्तर:

  1. प्रश्न: बापदादा ने बच्चों को “राज-दुलारे” क्यों कहा है?
    उत्तर: बापदादा ने बच्चों को “राज-दुलारे” कहा है क्योंकि हर आत्मा अपने स्वराज्य की अधिकारी है। वर्तमान में स्वराज्य अधिकारी बनकर ही भविष्य में 21 जन्मों तक राज्य अधिकारी बना जा सकता है।
  2. प्रश्न: “स्वराज्य अधिकारी” बनने का क्या अर्थ है?
    उत्तर: स्वराज्य अधिकारी बनने का अर्थ है अपनी मन-बुद्धि और संस्कारों पर पूर्ण अधिकार रखना। यह स्थिति आत्मा को सदा मन, वाणी, और कर्म में संतुलित और संतुष्ट बनाती है।
  3. प्रश्न: ब्राह्मण जीवन की रॉयल्टी और पर्सनैलिटी किस पर आधारित है?
    उत्तर: ब्राह्मण जीवन की रॉयल्टी और पर्सनैलिटी प्यूरिटी (पवित्रता) पर आधारित है। यह पवित्रता ही ब्राह्मण आत्माओं की विशेषता और श्रेष्ठता का आधार है।
  4. प्रश्न: बापदादा ने बच्चों को “मेरा संस्कार” कहने से क्यों मना किया?
    उत्तर: बापदादा ने “मेरा संस्कार” कहने से मना किया क्योंकि नकारात्मक संस्कार आत्मा के मूल संस्कार नहीं होते। वे रावण की देन हैं। आत्मा के मूल संस्कार श्रेष्ठ, शुद्ध, और दिव्य होते हैं।
  5. प्रश्न: बापदादा ने बच्चों से “संतुष्टमणि” बनने की बात क्यों कही?
    उत्तर: संतुष्टमणि बनने का अर्थ है स्वयं संतुष्ट रहकर दूसरों को संतुष्ट करना। यह स्थिति आत्मा को शक्ति, शांति, और स्थिरता प्रदान करती है और उसे बापदादा के समान बनाने की ओर अग्रसर करती है।
  6. प्रश्न: शुभचिंतन और शुभचिंतक बनने के लिए किन बातों से मुक्त रहना आवश्यक है?
    उत्तर: शुभचिंतन और शुभचिंतक बनने के लिए ईर्ष्या, घृणा, और आलोचना से मुक्त रहना आवश्यक है। ये नकारात्मकताएँ आत्मा को कमजोर और दूसरों को हतोत्साहित करती हैं।
  7. प्रश्न: “संतुष्टमणि” बनने के लिए आत्मा को किस दृष्टिकोण को अपनाना चाहिए?
    उत्तर: संतुष्टमणि बनने के लिए आत्मा को हर आत्मा को स्वमान और सम्मान से देखना चाहिए। आत्मिक दृष्टि और आत्मिक वृत्ति को अपनाना चाहिए।
  8. प्रश्न: बापदादा ने “स्वभाव” शब्द का महत्व क्यों बताया?
    उत्तर: “स्वभाव” शब्द आत्मा के मूल स्व की भावना को व्यक्त करता है। बापदादा ने इसे इसलिए महत्व दिया क्योंकि यह आत्मा को उसके दिव्य और पवित्र स्वरूप की स्मृति दिलाता है।
  9. प्रश्न: बापदादा के अनुसार सच्चा “प्यार” क्या है?
    उत्तर: सच्चा प्यार वह है जिसमें समानता हो। यदि ब्रह्मा बाबा से सच्चा प्यार है, तो उसके संस्कार, संकल्प, और स्वभाव के अनुरूप बनने की पूरी कोशिश करनी चाहिए।
  10. प्रश्न: बापदादा ने “हद की सेवा” से निकल “बेहद की सेवा” पर जोर क्यों दिया?
    उत्तर: हद की सेवा सीमित होती है और बेहद की सेवा में पूरे विश्व को सकाश देने का उद्देश्य होता है। यह आत्मा को हदों से मुक्त कर व्यापक सेवा के योग्य बनाती है।

मुख्य संदेश:

बापदादा ने बच्चों को उनके श्रेष्ठ स्वभाव और दिव्य संस्कारों को जाग्रत करने की प्रेरणा दी। आत्मा का असली स्वभाव प्यूरिटी, शुभचिंतन, और संतुष्टता है। सदा स्वराज्य अधिकारी बनकर संतुष्टमणि के रूप में दूसरों को सुख और स्नेह देना ही ब्राह्मण जीवन का सार है।

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Spiritual form, God’s love, Swaraj Adhikari, Rajyogi, Brahmin life, personality, royalty, purity, good feelings, well-wisher’s state, gem of contentment, master giver, Sakash service, transformation of sanskars, Brahma Baba, Paramdham, Confluence Age, Brahmin soul, transformation of nature, self-conceited,