(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
| 07-05-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
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मधुबन |
| “मीठे बच्चे – निश्चय ज्ञान योग से बैठता, साक्षात्कार से नहीं। साक्षात्कार की ड्रामा में नूँध है, बाकी उससे किसी का कल्याण नहीं होता” | |
| प्रश्नः- | बाप कौन-सी ताकत नहीं दिखाते लेकिन बाप के पास जादूगरी अवश्य है? |
| उत्तर:- | मनुष्य समझते हैं भगवान तो ताकतमंद है, वह मरे हुए को भी जिंदा कर सकते हैं, परन्तु बाबा कहते यह ताकत मैं नहीं दिखाता। बाकी कोई नौधा भक्ति करते हैं तो उन्हें साक्षात्कार करा देता हूँ। यह भी ड्रामा में नूँध है। साक्षात्कार कराने की जादूगरी बाप के पास है इसलिए कई बच्चों को घर बैठे भी ब्रह्मा वा श्रीकृष्ण का साक्षात्कार हो जाता है। |
| गीत:- | कौन आया मेरे मन के द्वारे…….. |
ओम् शान्ति। यह बच्चों के अनुभव का गीत है। सतसंग तो बहुत हैं, खास भारत में तो ढेर सतसंग हैं, अनेक मत-मतान्तर हैं, वास्तव में वह कोई सतसंग नहीं। सतसंग एक होता है। बाकी तुम वहाँ किसी विद्वान, आचार्य, पण्डित का मुँह देखेंगे, बुद्धि उस तरफ जायेगी। यहाँ फिर अनोखी बात है। यह सतसंग एक ही बार इस संगमयुग पर होता है। यह तो बिल्कुल नई बात है, उस बेहद के बाप का शरीर तो कोई है नहीं। कहते हैं मैं तुम्हारा निराकार शिवबाबा हूँ। तुम और सतसंगों में जाते हो तो शरीरों को ही देखते हो। शास्त्र याद कर फिर सुनाते हैं, अनेक प्रकार के शास्त्र हैं, वह तो तुम जन्म-जन्मान्तर सुनते आये हो। अब है नई बात। बुद्धि से आत्मा जानती है, बाप कहते हैं – हे मेरे सिकीलधे बच्चे, हे मेरे सालिग्रामों! तुम बच्चे जानते हो 5 हज़ार वर्ष पहले इस शरीर द्वारा बाबा ने पढ़ाया था। तुम्हारी बुद्धि एकदम दूर चली जाती है। तो बाबा आया है। बाबा अक्षर कितना मीठा है। वह है मात-पिता। कोई भी सुनेंगे तो कहेंगे पता नहीं इन्हों के मात-पिता कौन हैं? बरोबर वह साक्षात्कार कराते हैं तो उसमें भी वह मूँझते हैं। कभी ब्रह्मा को, कभी कृष्ण को देख लेते हैं। तो विचार करते रहते कि ये क्या है? ब्रह्मा का भी बहुतों को घर बैठे साक्षात्कार होता है। अब ब्रह्मा की तो कभी कोई पूजा करते नहीं हैं। श्री कृष्ण आदि की तो करते हैं। ब्रह्मा को तो कोई जानते भी नहीं होंगे। प्रजापिता ब्रह्मा तो अब आया है, यह है प्रजापिता। बाप बैठ समझाते हैं कि सारी दुनिया पतित है तो जरूर यह भी बहुत जन्मों के अन्त में पतित ठहरे। कोई भी पावन नहीं है इसलिए कुम्भ के मेले पर, हरिद्वार गंगा सागर के मेले पर जाते हैं, समझते हैं स्नान करने से पावन बन जायेंगे। लेकिन यह नदियाँ कोई पतित-पावनी थोड़ेही हो सकती। नदियाँ तो निकलती हैं सागर से। वास्तव में तुम हो ज्ञान गंगायें, महत्व तुम्हारा है। तुम ज्ञान गंगायें जहाँ तहाँ निकलती हो, वो लोग फिर दिखलाते हैं, तीर मारा और गंगा निकली। तीर मारने की तो बात नहीं। यह ज्ञान गंगायें देश-देशान्तर जाती हैं।
शिवबाबा कहते मैं ड्रामा के बन्धन में बांधा हुआ हूँ। सभी का पार्ट निश्चित किया हुआ है। मेरा भी पार्ट निश्चित है। कोई समझते भगवान तो बहुत ताकतमंद है, मरे हुए को भी जिंदा कर सकते हैं। यह सभी गपोड़े हैं। मैं आता हूँ पढ़ाने के लिए। बाकी ताकत क्या दिखायेंगे। साक्षात्कार की भी जादूगरी है। नौधा भक्ति करते हैं तो मैं साक्षात्कार कराता हूँ। जैसे काली का रूप दिखलाते हैं, उन पर फिर तेल चढ़ाते हैं। अब ऐसी काली तो है नहीं, परन्तु काली की नौधा भक्ति बहुत करते हैं। वास्तव में काली तो जगत अम्बा है। काली का ऐसा रूप तो नहीं, परन्तु नौधा भक्ति करने से बाबा भावना का भाड़ा दे देते हैं। काम चिता पर बैठने से काले बने, अब ज्ञान चिता पर बैठ गोरे बनते हैं। जो काली अब जगदम्बा बनी है वह साक्षात्कार कैसे करायेगी। वह तो अभी बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्त वाले जन्म में है। देवतायें तो अभी हैं नहीं। तो वह क्या साक्षात्कार करायेंगे। बाप समझाते हैं यह साक्षात्कार की चाबी मेरे हाथ में है। अल्पकाल के लिए भावना पूरी करने के लिए साक्षात्कार करा देता हूँ। परन्तु वह कोई मेरे से नहीं मिलते। मिसाल एक काली का देते हैं। इस रीति बहुत हैं – हनुमान, गणेश आदि। भल सिक्ख लोग भी गुरूनानक की बहुत भक्ति करें तो उन्हें भी साक्षात्कार हो जायेगा। परन्तु वह तो नीचे चले आते हैं। बाबा बच्चों को दिखलाते हैं देखो यह गुरूनानक की भक्ति कर रहे हैं। साक्षात्कार फिर भी मैं कराता हूँ। वह कैसे साक्षात्कार करायेंगे। उनके पास साक्षात्कार कराने की चाबी नहीं है। यह बाबा कहते हैं मुझे विनाश, स्थापना का साक्षात्कार भी उस बाबा ने कराया, परन्तु साक्षात्कार से कोई का भी कल्याण नहीं। ऐसे तो बहुतों को साक्षात्कार होते थे। आज वह हैं नहीं। बहुत बच्चे कहते हैं हमको जब साक्षात्कार हो तो निश्चय बैठे। परन्तु निश्चय साक्षात्कार से नहीं हो सकता। निश्चय बैठता है ज्ञान और योग से। 5 हज़ार वर्ष पहले भी मैंने कहा था कि यह साक्षात्कार मैं कराता हूँ। मीरा ने भी साक्षात्कार किया। ऐसे नहीं कि आत्मा वहाँ चली गई। नहीं, बैठे-बैठे साक्षात्कार कर लेते हैं लेकिन मेरे को नहीं प्राप्त कर सकते।
बाप कहते हैं कोई भी बात का संशय हो तो जो भी ब्राह्मणियाँ (टीचर्स) हैं, उनसे पूछो। यह तो जानते हो बच्चियाँ भी नम्बरवार हैं, नदियाँ भी नम्बरवार होती हैं। कोई तो तलाव भी हैं, बहुत गंदा, बांसी पानी होता है। वहाँ भी श्रद्धाभाव से मनुष्य जाते हैं। वह है भक्ति की अन्धश्रद्धा। कभी भी कोई से भक्ति छुड़ानी नहीं है। जब ज्ञान में आ जायेंगे तो भक्ति आपेही छूट जायेगी। बाबा भी नारायण का भक्त था, चित्र में देखा लक्ष्मी दासी बन नारायण के पांव दबा रही है तो यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। सतयुग में ऐसा होता नहीं। तो मैंने एक आर्टिस्ट को कहा कि लक्ष्मी को इस दासीपने से विदाई दे दो। बाबा भक्त तो था परन्तु ज्ञान थोड़ेही था। भक्त तो सभी हैं। हम तो बाबा के बच्चे मालिक हैं। ब्रह्माण्ड का भी मालिक बच्चों को बनाते हैं। कहते हैं तुमको राज्य-भाग्य देता हूँ। ऐसा बाबा कभी देखा? उस बाप को पूरा याद करना है। उनको तुम इन आंखों से नहीं देख सकते। उनसे योग लगाना है। याद और ज्ञान भी बिल्कुल सहज है। बीज और झाड़ को जानना है। तुम उस निराकारी झाड़ से साकारी झाड़ में आये हो। बाबा ने साक्षात्कार का राज़ भी समझाया। झाड़ का राज़ भी समझाया। कर्म-अकर्म-विकर्म की गति भी बाबा ने समझाई है। बाप, टीचर, गुरू तीनों से ही शिक्षा मिलती है। अभी बाबा कहते हैं मैं तुमको ऐसी शिक्षा देता हूँ, ऐसे कर्म सिखलाता हूँ जो तुम 21 जन्म सदा सुखी बन जाते हो। टीचर शिक्षा देते हैं ना। गुरू लोग भी पवित्रता की शिक्षा देते हैं अथवा कथायें सुनाते हैं। परन्तु धारणा बिल्कुल नहीं होती। यहाँ तो बाप कहते हैं अन्त मति सो गति होगी। मनुष्य जब मरते हैं तो भी कहते हैं राम-राम कहो तो बुद्धि उस तरफ चली जाती है। अभी बाप कहते हैं तुम्हारा साकार से योग छूटा। अब मैं तुमको बहुत अच्छे कर्म सिखलाता हूँ। श्री कृष्ण का चित्र देखो, पुरानी दुनिया को लात मारते और नई दुनिया में आते हैं। तुम भी पुरानी दुनिया को लात मार नई दुनिया में जाते हो। तो तुम्हारी नर्क के तरफ है लात, स्वर्ग तरफ है मुँह। शमशान में भी अन्दर जब घुसते हैं तो मुर्दे का मुँह उस तरफ कर लेते हैं। लात पिछाड़ी तरफ कर लेते हैं। तो यह चित्र भी ऐसा बनाया है।
मम्मा, बाबा और तुम बच्चे, तुमको तो मम्मा-बाबा को फालो करना पड़े, जो उनकी गद्दी पर बैठो। राजा के बच्चे प्रिन्स-प्रिन्सेज कहलाते हैं ना। तुम जानते हो हम भविष्य में प्रिन्स-प्रिन्सेज बनते हैं। ऐसा कोई बाप-टीचर-गुरू होगा जो तुमको ऐसे कर्म सिखलाये! तुम सदाकाल के लिए सुखी बनते हो। यह शिवबाबा का वर है, वह आशीर्वाद करते हैं। यह नहीं, हमारे ऊपर उनकी कृपा है। सिर्फ कहने से कुछ नहीं होगा। तुमको सीखना होता है। सिर्फ आशीर्वाद से तुम नहीं बन जायेंगे। उसकी मत पर चलना है। ज्ञान और योग की धारणा करनी है। बाप समझाते हैं कि मुख से राम-राम कहना भी आवाज़ हो जाता। तुमको तो वाणी से परे जाना है। चुप रहना है। खेल भी बहुत अच्छे-अच्छे निकलते हैं। अनपढ़े को बुद्धू कहा जाता है। बाबा कहते हैं कि अब सभी को भूल कर तुम बिल्कुल बुद्धू बन जाओ। मैं जो तुमको मत देता हूँ उस पर चलो। परमधाम में तुम सभी आत्मायें बिना शरीर के रहती हो फिर यहाँ आकर शरीर लेती हो तब जीव आत्मा कहा जाता है। आत्मा कहती है मैं एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ। तो बाप कहते मैं तुमको फर्स्टक्लास कर्म सिखलाता हूँ। टीचर पढ़ाते हैं, इसमें ताकत की क्या बात है। साक्षात्कार कराते हैं, इसको जादूगरी कहा जाता है। मनुष्य से देवता बनाना, ऐसी जादूगरी कोई कर न सके। बाबा सौदागर भी है, पुराना लेकर नया देते हैं। इनको पुराना लोहे का बर्तन कहा जाता है। इनका कोई मूल्य नहीं है। आजकल देखो तांबे के भी पैसे नहीं बनते। वहाँ तो सोने के सिक्के होते हैं। वन्डर है ना। क्या से क्या हो गया है!
बाप कहते हैं मैं तुमको नम्बरवन कर्म सिखलाता हूँ। मनमनाभव हो जाओ। फिर है पढ़ाई जिससे स्वर्ग का प्रिन्स बनेंगे। अभी देवता धर्म जो प्राय:लोप हो गया है, वह फिर से स्थापन होता है। मनुष्य तुम्हारी नई बातें सुनकर वन्डर खाते हैं, कहते हैं कि स्त्री-पुरुष दोनों ही इकट्ठे रह पवित्र रह सकें – यह कैसे हो सकता! बाबा तो कहते भल इकट्ठे रहो, नहीं तो मालूम कैसे पड़े। बीच में ज्ञान तलवार रखनी है, इतनी बहादुरी दिखानी है। परीक्षा होती है। तो मनुष्य इन बातों में वन्डर खाते हैं क्योंकि शास्त्रों में तो ऐसी बातें हैं नहीं। यहाँ तो प्रैक्टिकल में मेहनत करनी पड़ती है। गन्धर्वी विवाह की बात यहाँ की है। अभी तुम पवित्र बनते हो। तो बाबा कहते बहादुरी दिखलाओ। सन्यासियों के आगे सबूत देना है। समर्थ बाबा ही सारी दुनिया को पावन बनाते हैं। बाप कहते हैं भल साथ में रहो सिर्फ नंगन नहीं होना है। यह सभी हैं युक्तियां। बड़ी जबरदस्त प्राप्ति है सिर्फ एक जन्म बाबा के डायरेक्शन पर पवित्र रहना है। योग और ज्ञान से एवरहेल्दी बनते हैं 21 जन्मों के लिए, इसमें मेहनत है ना। तुम हो शक्ति सेना। माया पर जीत पहन जगतजीत बनते हो। सभी थोड़ेही बनेंगे। जो बच्चे पुरुषार्थ करेंगे वही ऊंच पद पायेंगे। तुम भारत को ही पवित्र बनाकर फिर भारत पर ही राज्य करते हो। लड़ाई से कभी सृष्टि की बादशाही मिल न सके। यह वन्डर है ना। इस समय सब आपस में लड़कर खलास हो जाते हैं। मक्खन भारत को मिलता है। दिलाने वाली हैं वन्दे मातरम्। मैजारटी माताओं की है। अब बाबा कहते हैं जन्म-जन्मान्तर तुम गुरू करते आये, शास्त्र पढ़ते आये हो। अब हम तुमको समझाते हैं – जज योर सेल्फ, राइट क्या है? सतयुग है राइटियस दुनिया। माया अनराइटियस बनाती है। अब भारतवासी, इरिलीजस बन पड़े हैं। रिलीजन नहीं इसलिए माइट नहीं रही है। इरिलीजस, अनराइटियस, अनलॉफुल, इनसालवेन्ट बन पड़े हैं। बेहद का बाप है इसलिए बेहद की बातें समझाते हैं, कहते हैं कि फिर तुमको रिलीजस मोस्ट पावरफुल बनाता हूँ। स्वर्ग बनाना तो पावरफुल का काम है। परन्तु है गुप्त। इनकागनीटो वारियर्स हैं। बाप का बच्चों पर बहुत प्यार होता है। मत देते हैं। बाप की मत, टीचर की मत, गुरू की मत, सोनार की मत, धोबी की मत – इसमें सभी मतें आ जाती हैं। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस एक अन्तिम जन्म में बाप के डायरेक्शन पर चल घर गृहस्थ में रहते पवित्र रहना है। इसमें बहादुरी दिखानी है।
2) श्रीमत पर सदा श्रेष्ठ कर्म करने हैं। वाणी से परे जाना है, जो कुछ पढ़ा वा सुना है उसे भूल बाप को याद करना है।
| वरदान:- | परिस्थितियों को गुडलक समझ अपने निश्चय के फाउन्डेशन को मजबूत बनाने वाले अचल अडोल भव कोई भी परिस्थिति आये तो आप हाई जम्प दे दो क्योंकि परिस्थिति आना भी गुड-लक है। यह निश्चय के फाउन्डेशन को मजबूत करने का साधन है। आप जब एक बारी अंगद के समान मजबूत हो जायेंगे तो यह पेपर भी नमस्कार करेंगे। पहले विकराल रूप में आयेंगे और फिर दासी बन जायेंगे। चैलेन्ज करो हम महावीर हैं। जैसे पानी के ऊपर लकीर ठहर नहीं सकती, ऐसे मुझ मास्टर सागर के ऊपर कोई परिस्थिति वार कर नहीं सकती। स्व-स्थिति में रहने से अचल-अडोल बन जायेंगे। |
| स्लोगन:- | पुराने वर्ष को विदाई देने के साथ-साथ कडुवेपन को भी विदाई दे दो। |
अव्यक्त इशारे – रूहानी रॉयल्टी और प्युरिटी की पर्सनैलिटी धारण करो
यदि वरदाता और वरदानी दोनों का सम्बन्ध समीप और स्नेह के आधार से निरन्तर हो और सदा कमबाइन्ड रूप में रहो तो पवित्रता की छत्रछाया स्वत: रहेगी। जहाँ सर्वशक्तिवान बाप है वहाँ अपवित्रता स्वप्न में भी नहीं आ सकती है। जब अकेले होते हो तो पवित्रता का सुहाग चला जाता है।
शीर्षक:“मीठे बच्चे – निश्चय ज्ञान योग से बैठता है, साक्षात्कार से नहीं। साक्षात्कार की ड्रामा में नूँध है, बाकी उससे किसी का कल्याण नहीं होता”
❓प्रश्नोत्तर शैली में सहज ज्ञानवर्द्धक अभ्यास
प्रश्न 1:बाप कौन-सी ताकत नहीं दिखाते लेकिन बाप के पास कौन-सी अद्भुत शक्ति है?
उत्तर:बाप मरे हुए को जिंदा करने जैसी ताकत नहीं दिखाते, क्योंकि वे केवल पढ़ाने और नई दुनिया की स्थापना के लिए आते हैं। लेकिन बाप के पास साक्षात्कार कराने की जादूगरी है, जो विशेष भक्ति भावना पर आधारित होती है। यह ड्रामा के अनुसार अल्पकाल के लिए होता है।
प्रश्न 2:साक्षात्कार से क्या निश्चय बैठ सकता है? यदि नहीं, तो कैसे बैठता है?
उत्तर:नहीं, साक्षात्कार से कभी निश्चय नहीं बैठता। निश्चय केवल बाप के दिए हुए ज्ञान और योग के अभ्यास से ही दृढ़ होता है। साक्षात्कार अल्पकालीन होता है, स्थायी कल्याण नहीं करता।
प्रश्न 3:ब्रह्मा बाबा की पूजा क्यों नहीं होती, जबकि श्रीकृष्ण की होती है?
उत्तर:श्रीकृष्ण सतयुग के देवता हैं जिनकी भक्ति होती है, जबकि ब्रह्मा बाबा इस संगमयुग में प्रजापिता रूप में आते हैं। ब्रह्मा की पूजा नहीं होती क्योंकि उन्हें अभी मनुष्य रूप में कार्य करते देखा जाता है। उनकी पहचान इस युग में होती है, जबकि श्रीकृष्ण को दिव्य मानकर पूजा जाता है।
प्रश्न 4:बाप साक्षात्कार किस भाव से कराते हैं? इसका उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर:बाप भावना का भाड़ा पूरा करने के लिए साक्षात्कार कराते हैं, जिससे भक्त की श्रद्धा बनी रहे। परंतु यह कोई अंतिम उद्देश्य नहीं है, क्योंकि इससे न आत्मा शुद्ध होती है, न उसे सच्चा ज्ञान मिलता है। सच्चा कल्याण केवल ज्ञान और योग से ही संभव है।
प्रश्न 5:साक्षात्कार का अधिकार किसके पास होता है?
उत्तर:साक्षात्कार की चाबी केवल बाप के पास होती है। कोई भी देवी-देवता, धर्मपिता या महापुरुष स्वयं साक्षात्कार नहीं करा सकते। वे सब ड्रामा के पात्र हैं, परंतु साक्षात्कार की शक्ति केवल बाप के पास है।
प्रश्न 6:यदि साक्षात्कार से कल्याण नहीं होता, तो फिर उसका उपयोग क्या है?
उत्तर:साक्षात्कार केवल अल्पकालीन भावना को तृप्त करने हेतु होता है। यह भक्ति मार्ग का अनुभव है, जिससे आत्मा कुछ समय के लिए प्रेरित हो जाती है, परंतु सच्ची मुक्ति और जीवनमुक्ति का आधार नहीं बन सकता।
प्रश्न 7:मनुष्य देवता कैसे बनते हैं, और यह प्रक्रिया कौन सिखाता है?
उत्तर:मनुष्य से देवता बनना जादूगरी समान कार्य है, जो केवल परमपिता शिवबाबा कर सकते हैं। वह ज्ञान और योग द्वारा आत्मा को पवित्र बनाते हैं, जिससे 21 जन्मों के लिए सुखद जीवन प्राप्त होता है।
प्रश्न 8:इस जन्म में पवित्रता कैसे निभानी है और उसका महत्व क्या है?
उत्तर:इस अंतिम जन्म में बाप की श्रीमत पर घर-गृहस्थ में रहते हुए पवित्रता निभानी है। यह सबसे बड़ा तप है, जिससे आत्मा शक्ति प्राप्त कर माया पर विजय पा लेती है और भविष्य के लिए स्वर्ग का राज्य पाती है।
प्रश्न 9:बाप का मुख्य कार्य क्या है, और वह आकर क्या शिक्षा देते हैं?
उत्तर:बाप का मुख्य कार्य है नई सच्ची दुनिया की स्थापना करना। वे आकर हमें श्रेष्ठ कर्म सिखाते हैं, सच्चा ज्ञान देते हैं और योग द्वारा आत्मा को पावन बनाते हैं। वे बाप, टीचर और सतगुरु तीनों रूपों में सच्ची शिक्षा देते हैं।
प्रश्न 10:बाप की श्रीमत पर चलने से आत्मा को कौन-सी श्रेष्ठ स्थिति प्राप्त होती है?
उत्तर:बाप की श्रीमत पर चलने से आत्मा अचल-अडोल बन जाती है, और परिस्थितियों को भी गुडलक में बदल देती है। इससे आत्मा सदा अडोल, निश्चयवान और विजयी स्थिति को प्राप्त करती है।
मीठे_बच्चे, निश्चय_ज्ञान_योग, साक्षात्कार, ड्रामा_की_नूँध, जादूगरी, ब्रह्मा_का_साक्षात्कार, श्रीकृष्ण_का_साक्षात्कार, सतसंग, संगमयुग_का_सतसंग, निराकार_शिवबाबा, प्रजापिता_ब्रह्मा, ज्ञान_गंगा, भक्ति_से_ज्ञान, साक्षात्कार_की_चाबी, ब्रह्मा_बाबा_का_पार्ट, मनुष्य_से_देवता, मनमनाभव, श्रेष्ठ_कर्म, शिवबाबा_की_शिक्षा, पुराना_से_नया, पवित्रता, शक्ति_सेना, संगमयुग_का_ज्ञान, सतयुग_की_स्थापना, जगतजीत, बाबा_की_मत, योग_और_ज्ञान, ज्ञान_चिता, कर्म_सिखाना, श्रीमत,
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