MURLI 10-09-2024/MURLI 10-09-2024/BRAHMAKUMARIS
“मीठे बच्चे – माया को वश करने का मन्त्र है मन्मनाभव, इसी मन्त्र में सब खूबियां समाई हुई हैं, यही मन्त्र तुम्हें पवित्र बना देता है” | |
प्रश्नः- | आत्मा की सेफ्टी का नम्बरवन साधन कौन-सा है और कैसे? |
उत्तर:- | याद की यात्रा ही सेफ्टी का नम्बरवन साधन है क्योंकि इस याद से ही तुम्हारे कैरेक्टर सुधरते हैं। तुम माया पर जीत पा लेते हो। याद से पतित कर्मेन्द्रियां शान्त हो जाती हैं। याद से ही बल आता है। ज्ञान तलवार में याद का जौहर चाहिए। याद से ही मीठे सतोप्रधान बनेंगे। कोई को भी नाराज़ नहीं करेंगे इसलिए याद की यात्रा में कमज़ोर नहीं बनना है। अपने आपसे पूछना है कि हम कहाँ तक याद में रहते हैं? |
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को रोज़-रोज़ सावधानी जरूर देनी होती है। कौन सी? सेफ्टी फर्स्ट। सेफ्टी क्या है? याद की यात्रा से तुम बहुत-बहुत सेफ रहते हो। मूल बात ही बच्चों के लिए यह है। बाप ने समझाया है – तुम बच्चे जितना याद की यात्रा में तत्पर रहेंगे उतनी खुशी भी रहेगी और मैनर्स भी ठीक होंगे क्योंकि पावन भी बनना है। कैरेक्टर्स भी सुधारना है। अपनी जांच करनी है – मेरा कैरेक्टर किसको दु:ख देने जैसा तो नहीं है! मुझे कोई देह-अभिमान तो नहीं आ जाता है? यह अच्छी रीति अपनी जांच रखनी है। बाप बैठ बच्चों को पढ़ाते हैं। तुम बच्चे पढ़ते भी हो तो फिर पढ़ाते भी हो। बेहद का बाप सिर्फ पढ़ाते हैं। बाकी तो सब हैं देहधारी। इसमें सारी दुनिया आ जाती है। एक बाप ही विदेही है। वह तुम बच्चों को कहते हैं कि तुमको भी विदेही बनना है। मैं आया हूँ तुमको विदेही बनाने। पवित्र बनकर ही वहाँ जायेंगे। छी-छी को तो साथ ले नहीं जायेंगे इसलिए पहले-पहले मन्त्र ही यह देते हैं। माया को वश करने का यह मन्त्र है। पवित्र होने का यह मन्त्र है। इस मन्त्र में बहुत खूबियां भरी हुई हैं, इनसे ही पवित्र बनना है। मनुष्य से देवता बनना है। जरूर हम ही देवता थे इसलिए बाप कहते हैं – अपनी सेफ्टी चाहो, मजबूत महावीर बनना चाहो तो यह पुरूषार्थ करो। बाप तो शिक्षा देते रहेंगे। भल ड्रामा भी कहते रहेंगे। ड्रामा अनुसार बिल्कुल ठीक ही चल रहा है फिर आगे के लिए भी समझाते रहेंगे। याद की यात्रा में कमजोर नहीं बनना है। बाहर रहने वाली बांधेली गोपिकाएं जितना याद करती हैं, उतना सामने रहने वाले भी याद नहीं करते हैं क्योंकि उनको तड़फन होती है शिवबाबा से मिलने की। जो मिल जाते हैं उन्हों का पेट जैसेकि भर जाता है। जो बहुत याद करते हैं, वह ऊंच पद पा सकते हैं। देखा जाता है – अच्छे-अच्छे, बड़े-बड़े सेन्टर्स सम्भालने वाले मुख्य भी याद की यात्रा में कमज़ोर हैं। याद का जौहर बहुत अच्छा चाहिए। ज्ञान तलवार में याद का जौहर न होने कारण किसको तीर लगता ही नहीं, पूरा मरते नहीं। बच्चे कोशिश करते हैं ज्ञान का बाण लगाकर बाप का बनायें वा मरजीवा बनायें। परन्तु मरते नहीं, तो जरूर ज्ञान तलवार में गड़बड़ है। बाबा भल जानते हैं – ड्रामा बिल्कुल एक्यूरेट चल रहा है, परन्तु आगे के लिए तो समझाते रहेंगे ना। हरेक अपनी दिल से पूछो – हम कहाँ तक याद करते हैं? याद से ही बल आयेगा इसलिए कहा जाता है – ज्ञान तलवार में जौहर चाहिए। ज्ञान तो बहुत सहज रीति समझा सकते हैं।
जितना-जितना याद में रहेंगे उतना बड़े मीठे बनते जायेंगे। तुम सतोप्रधान थे तो बहुत मीठे थे। अब फिर सतोप्रधान बनना है। तुम्हारा स्वभाव भी बहुत मीठा चाहिए। कभी रंज (नाराज़) नहीं होना चाहिए। ऐसा वातावरण न हो जो कोई रंज हो। ऐसी कोशिश करनी चाहिए क्योंकि यह ईश्वरीय कॉलेज स्थापन करने की सर्विस बहुत ऊंची है। विश्व विद्यालय तो भारत में बहुत गाये जाते हैं। वास्तव में वह हैं नहीं। विश्व विद्यालय तो एक ही होता है। बाप आकर सबको मुक्ति-जीवनमुक्ति देते हैं। बाप जानते हैं सारी दुनिया के जो भी मनुष्य मात्र हैं, सब खत्म होने हैं। बाप को बुलाया भी इसलिए है कि छी-छी दुनिया का खात्मा और नई दुनिया की स्थापना करो। बच्चे भी समझते हैं बरोबर बाप आया हुआ है। अभी माया का पाम्प कितना है। फॉल ऑफ पाम्पिया का खेल भी दिखाते हैं। बड़े-बड़े मकान आदि बना रहे हैं – यह है पाम्प। सतयुग में इतने मंजिल के मकान बनते नहीं हैं। यहाँ बनते हैं क्योंकि रहने के लिये जमीन कम है। विनाश जब होता है तब सब बड़े-बड़े मकान भी गिर पड़ते हैं। आगे इतनी बड़ी-बड़ी बिल्डिंग नहीं बनती थी। बाम्बस जब छोड़ेंगे तो ऐसे गिरेंगे जैसे ताश के पत्ते गिरते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि वही मरेंगे बाकी दूसरे रह जायेंगे। नहीं, जो जहाँ होगा चाहे समुद्र पर हो, पृथ्वी पर हो, आकाश में हो, पहाड़ों पर हो, उड़ रहा हो……. सब खत्म हो जायेंगे। यह पुरानी दुनिया है ना। जो भी 84 लाख योनियां हैं, यह सब खत्म हो जानी हैं। वहाँ नई दुनिया में यह कुछ भी होगा नहीं। न इतने मनुष्य होंगे, न मच्छर, न जीव जन्तु आदि होंगे। यहाँ तो ढेर के ढेर हैं। अब तुम बच्चे भी देवता बनते हो तो वहाँ हर चीज़ सतोप्रधान होती है। यहाँ भी बड़े आदमी के घर में जायेंगे तो बड़ी सफाई आदि रहती है। तुम तो सबसे जास्ती बड़े देवता बनते हो। बड़े आदमी भी नहीं कहेंगे। तुम बहुत ऊंच देवतायें बनते हो, यह कोई नई बात नहीं है। 5 हज़ार वर्ष पहले भी तुम यह बने थे नम्बरवार। यह इतना किचड़ा आदि वहाँ कुछ भी नहीं होगा। बच्चों को बड़ी खुशी होती है – हम बहुत ऊंच देवता बनते हैं। एक ही बाप हमको पढ़ाने वाला है जो हमको बहुत ऊंच बनाते हैं। पढ़ाई में हमेशा नम्बरवार पोजीशन वाले होते हैं। कोई कम पढ़ते हैं, कोई जास्ती पढ़ते हैं। अब बच्चे पुरूषार्थ कर रहे हैं, बड़े-बड़े सेन्टर्स खोल रहे हैं इसलिए कि बड़ों-बड़ों को मालूम पड़े। भारत का प्राचीन राजयोग भी गाया हुआ है। खास विलायत वालों को जास्ती उत्सुकता होती है – राजयोग सीखने की। भारतवासी तो तमोप्रधान बुद्धि हैं। वह फिर भी तमो बुद्धि हैं इसलिए उन्हों को शौक रहता है भारत का प्राचीन राजयोग सीखने का। भारत का प्राचीन राजयोग नामीग्रामी है, जिससे ही भारत स्वर्ग बना था। बहुत थोड़े आते हैं, जो पूरी रीति समझते हैं। स्वर्ग हेविन पास हो गया सो फिर होगा जरूर। हेविन अथवा पैराडाइज़ है सबसे वन्डर ऑफ वर्ल्ड। स्वर्ग का कितना नाम बाला है। स्वर्ग और नर्क, शिवालय और वेश्यालय। बच्चों को अब नम्बरवार याद है कि हमको अब शिवालय में जाना है। वहाँ जाने के लिए शिवबाबा को याद करना है। वही पण्डा है सबको ले जाने वाला। भक्ति को कहा जाता है रात। ज्ञान को कहा जाता है दिन। यह बेहद की बात है। नई चीज़ और पुरानी चीज़ में बहुत फर्क होता है। अब बच्चों की दिल होती है – इतनी ऊंच ते ऊंच पढ़ाई, ऊंचे ते ऊंचे मकान में हम पढ़ायें तो बड़े-बड़े लोग आयेंगे। एक-एक को बैठ समझाना पड़ता है। वास्तव में पढ़ाई वा शिक्षा के लिए एकान्त में स्थान होते हैं। ब्रह्म-ज्ञानियों के भी आश्रम शहर से दूर-दूर होते हैं और नीचे ही रहते हैं। इतने ऊपर की मंजिल पर नहीं रहते हैं। अभी तो तमोप्रधान होने से शहर में अन्दर घुस पड़े हैं। वह ताकत खत्म हो गई है। इस समय सबकी बैटरी खाली है। अब बैटरी को कैसे भरना है – यह बाप के सिवाए कोई भी बैटरी चार्ज कर न सके। बच्चों को बैटरी चार्ज करने से ही ताकत आती है। उसके लिए मुख्य है याद। उसमें ही माया के विघ्न पड़ते हैं। कोई तो सर्जन के आगे सच बतलाते हैं, कोई छिपा लेते हैं। अन्दर में जो खामियां हैं, वह तो बाप को बतलानी पड़े। इस जन्म में जो पाप किये हैं, वह अविनाशी सर्जन के आगे वर्णन करना चाहिए, नहीं तो वह दिल अन्दर खाता रहेगा। सुनाने के बाद फिर खायेगा नहीं। अन्दर रख लेना – यह भी नुकसान-कारक है। जो सच्चे-सच्चे बच्चे बनते हैं, वह सब बाप को बतला देते हैं – इस जन्म में यह-यह पाप किये हैं। दिन-प्रतिदिन बाप ज़ोर देते रहते हैं, यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है। तमोप्रधान से पाप तो जरूर होते होंगे ना।
बाप कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त में जो नम्बरवन पतित बना है, उनमें ही प्रवेश करता हूँ क्योंकि उनको ही फिर नम्बरवन में जाना है। बहुत मेहनत करनी पड़ती है। इस जन्म में पाप हुए तो हैं ना। कइयों को पता ही नहीं पड़ता है कि हम यह क्या कर रहे हैं। सच नहीं बतलाते हैं। कोई-कोई सच बतला देते हैं। बाप ने समझाया है – बच्चे, तुम्हारी कर्मेन्द्रियां शान्त तब होती हैं, जब कर्मातीत अवस्था बनती हैं। जैसे मनुष्य बूढ़े होते हैं तो कर्मेन्द्रियां ऑटोमेटिकली शान्त हो जाती हैं। इसमें तो छोटेपन में ही सब शान्त हो जाना चाहिए। योगबल में अच्छी तरह रहे तो इन सब बातों की एन्ड हो जाए। वहाँ कोई ऐसी गन्दी बीमारी, किचड़पट्टी आदि कुछ नहीं होता है। मनुष्य बड़े साफ-शुद्ध रहते हैं। वहाँ है ही राम राज्य। यहाँ है रावण राज्य, तो अनेक प्रकार की गन्दगी की बीमारियां आदि हैं। सतयुग में यह कुछ होती नहीं। बात मत पूछो। नाम ही कितना फर्स्टक्लास है – स्वर्ग, नई दुनिया। बड़ी सफाई रहती है। बाप समझाते हैं – इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही तुम यह सब बातें सुनते हो। कल नहीं सुनते थे। कल मृत्युलोक के मालिक थे, आज अमर-लोक के मालिक बनते हो। निश्चय हो जाता है कल मृत्युलोक में थे, अभी संगमयुग पर आने से अमरलोक में जाने के लिए तुम पुरूषार्थ कर रहे हो। पढ़ाने वाला भी अब मिला है। जो अच्छी रीति पढ़ते हैं तो पैसा आदि भी अच्छा कमाते हैं। बलिहारी पढ़ाई की कहेंगे। यह भी ऐसे है। इस पढ़ाई से तुम बहुत ऊंच पद पाते हो। अभी तुम रोशनी में हो। यह भी सिवाए तुम बच्चों के और कोई को मालूम नहीं है। तुम भी फिर घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। पुरानी दुनिया में चले जाते हो। भूलना माना पुरानी दुनिया में चले जाना।
अभी तुम संगमयुगी ब्राह्मणों को मालूम है कि हम कलियुग में नहीं हैं। यह सदैव याद रखना है हम नये विश्व के मालिक बन रहे हैं। बाप हमको पढ़ाते ही हैं नई दुनिया में जाने के लिए। यह है शुद्ध अहंकार। वह है अशुद्ध अहंकार। तुम बच्चों को तो कभी अशुद्ध ख्यालात भी नहीं आने चाहिए। पुरूषार्थ करते-करते आखरीन पिछाड़ी में रिजल्ट निकलेगी। बाप समझाते हैं इस समय तक सब पुरूषार्थी हैं। इम्तहान जब होता है तो नम्बरवार पास हो फिर ट्रॉन्सफर हो जाते हैं। तुम्हारी है बेहद की पढ़ाई जिसको सिर्फ तुम ही जानते हो। तुम कितना समझाते हो। नये-नये आते रहते हैं बेहद के बाप से वर्सा पाने के लिए। भल दूर रहते हैं फिर भी सुनते-सुनते निश्चय बुद्धि हो जाते हैं – ऐसे बाबा के सम्मुख भी जाना चाहिए। जिस बाप ने बच्चों को पढ़ाया है, ऐसे बाप से सम्मुख तो जरूर मिलना चाहिए। समझकर ही यहाँ आते हैं। कोई नहीं समझे हुए हैं तो भी यहाँ आने से समझ जाते हैं। बाप कहते हैं दिल में कोई भी बात हो, समझ में नहीं आती हो तो भल पूछो। बाप तो चुम्बक है ना। जिसकी तकदीर में है वह अच्छी रीति पकड़ सकते हैं। तकदीर में नहीं है तो फिर खलास। सुना-अनसुना कर देते हैं। यहाँ कौन बैठ पढ़ाते हैं? भगवान। उनका नाम है शिव। शिवबाबा ही हमको स्वर्ग की बादशाही देते हैं। फिर कौन-सी पढ़ाई अच्छी? तुम कहेंगे हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं जिससे 21जन्मों की बादशाही मिलती है। ऐसे-ऐसे समझाते-समझाते ले जाते हैं। कोई तो पूरा न समझने कारण इतनी सर्विस नहीं कर सकते हैं। बन्धन की जंजीरों में जकड़े रहते हैं। शुरू में तो तुम कैसे अपने को जंजीरों से छुड़ाकर आये। जैसे कोई मस्ताने होते हैं। यह भी ड्रामा में पार्ट था जो कशिश हुई। ड्रामा में भट्ठी बननी थी। जीते जी मरे फिर माया की तरफ कोई-कोई चले गये। युद्ध तो होती है ना। माया देखती है – इसने बड़ी हिम्मत दिखाई है। अब हम भी ठोक कर देखते हैं कि पक्के हैं वा नहीं? बच्चों की कितनी सम्भाल होती थी। सब कुछ सिखलाते थे। तुम बच्चे एलबम आदि देखते हो लेकिन सिर्फ चित्र देखने से भी समझ न सकें। कोई बैठ समझाये कि क्या-क्या होता था। कैसे भट्ठी में पड़े थे, फिर कोई कैसे निकले, कोई कैसे। जैसे रूपये छपते हैं तो भी कोई-कोई खराब हो पड़ते हैं। यह भी ईश्वरीय मिशनरी है। ईश्वर बैठ धर्म की स्थापना करते हैं। यह बात किसको भी पता नहीं है। बाप को बुलाते भी हैं परन्तु जैसे तवाई, समझते ही नहीं। कहते हैं यह कैसे हो सकता है। माया रावण एकदम ऐसा बना देती है। शिवबाबा की पूजा भी करते हैं फिर कह देते सर्वव्यापी। शिवबाबा कहते हो फिर सर्वव्यापी कैसे होगा। पूजा करते हैं, लिंग को शिव कहते हैं। ऐसे थोड़ेही कहते कि इसमें शिव बैठा है। अब पत्थर-ठिक्कर में भगवान को कहना.. तो क्या सब भगवान ही भगवान हैं। भगवान अनलिमिटेड तो नहीं होंगे ना। तो बाप बच्चों को समझाते हैं, कल्प पहले भी ऐसे समझाया था। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ऐसा मीठा वातावरण बनाना है जिसमें कोई भी नाराज़ न हो। बाप समान विदेही बनने का पुरूषार्थ करना है। याद के बल से अपना स्वभाव मीठा और कर्मेन्द्रियां शान्त करनी हैं।
2) सदा इसी नशे में रहना है कि अभी हम संगमयुगी हैं, कलियुगी नहीं। बाप हमें नये विश्व का मालिक बनाने के लिए पढ़ा रहे हैं। अशुद्ध ख्यालात समाप्त कर देने हैं।
वरदान:- | अकाल तख्त और दिलतख्त पर बैठ सदा श्रेष्ठ कर्म करने वाले कर्मयोगी भव इस समय आप सभी बच्चों को दो तख्त मिलते हैं – एक अकाल तख्त, दूसरा दिल तख्त। लेकिन तख्त पर वही बैठता है जिसका राज्य होता है। जब अकाल तख्तनशीन हैं तो स्वराज्य अधिकारी हैं और बाप के दिल तख्तनशीन हैं तो बाप के वर्से के अधिकारी हैं, जिसमें राज्य भाग्य सब आ जाता है। कर्मयोगी अर्थात् दोनों तख्तनशीन। ऐसी तख्तनशीन आत्मा का हर कर्म श्रेष्ठ होता है क्योंकि सब कर्मेन्द्रियां लॉ और ऑर्डर पर रहती हैं। |
स्लोगन:- | जो सदा स्वमान की सीट पर सेट रहते हैं वही गुणवान और महान हैं। |