Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
11-01-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
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मधुबन |
“मीठे बच्चे – योग, अग्नि के समान है, जिसमें तुम्हारे पाप जल जाते हैं, आत्मा सतोप्रधान बन जाती है इसलिए एक बाप की याद में (योग में) रहो” | |
प्रश्नः- | पुण्य आत्मा बनने वाले बच्चों को किस बात का बहुत-बहुत ध्यान रखना है? |
उत्तर:- | पैसा दान किसे देना है, इस बात पर पूरा ध्यान रखना है। अगर किसको पैसा दिया और उसने जाकर शराब आदि पिया, बुरे कर्म किये तो उसका पाप तुम्हारे ऊपर आ जायेगा। तुम्हें पाप आत्माओं से अब लेन-देन नहीं करनी है। यहाँ तो तुम्हें पुण्य आत्मा बनना है। |
गीत:- | न वह हमसे जुदा होंगे……… |
ओम् शान्ति। इसको कहा जाता है याद की आग। योग अग्नि माना याद की आग। आग अक्षर क्यों कहा है? क्योंकि इसमें पाप जल जाते हैं। यह सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो – कैसे हम तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते हैं। सतोप्रधान का अर्थ ही है पुण्य आत्मा और तमोप्रधान का अर्थ ही है पाप आत्मा। कहा भी जाता है यह बहुत पुण्य आत्मा है, यह पाप आत्मा है। इससे सिद्ध होता है आत्मा ही सतोप्रधान बनती है फिर पुनर्जन्म लेते-लेते तमोप्रधान बनती है इसलिए इनको पाप आत्मा कहा जाता है। पतित-पावन बाप को भी इसलिए याद करते हैं कि आकर पावन आत्मा बनाओ। पतित आत्मा किसने बनाया? यह किसको भी पता नहीं। तुम जानते हो जब पावन आत्मा थे तो उनको रामराज्य कहा जाता था। अभी पतित आत्मायें हैं इसलिए इनको रावण राज्य कहा जाता है। भारत ही पावन, भारत ही पतित बनता है। बाप ही आकर भारत को पावन बनाते हैं। बाकी सब आत्मायें पावन बन शान्तिधाम में चली जाती हैं। अभी है दु:खधाम। इतनी सहज बात भी बुद्धि में बैठती नहीं है। जब दिल से समझें तब सच्चा ब्राह्मण बनें। ब्राह्मण बनने बिगर बाप से वर्सा मिल न सके।
अब यह है संगमयुग का यज्ञ। यज्ञ के लिए तो ब्राह्मण जरूर चाहिए। अभी तुम ब्राह्मण बने हो। जानते हो मृत्युलोक का यह अन्तिम यज्ञ है। मृत्युलोक में ही यज्ञ होते हैं। अमरलोक में यज्ञ होते नहीं। भक्तों की बुद्धि में यह बातें बैठ न सकें। भक्ति बिल्कुल अलग है, ज्ञान अलग है। मनुष्य फिर वेदों-शास्त्रों को ही ज्ञान समझ लेते हैं। अगर उनमें ज्ञान होता तो फिर मनुष्य वापस चले जाते। परन्तु ड्रामा अनुसार वापिस कोई भी जाता नहीं। बाबा ने समझाया है पहले नम्बर को ही सतो, रजो, तमो में आना है तो दूसरे फिर सिर्फ सतो का पार्ट बजाए वापिस कैसे जा सकते? उनको तो फिर तमोप्रधान में आना ही है, पार्ट बजाना ही है। हर एक एक्टर की ताकत अपनी-अपनी होती है ना। बड़े-बड़े एक्टर्स कितने नामी-ग्रामी होते हैं। सबसे मुख्य क्रियेटर, डायरेक्टर और मुख्य एक्टर कौन है? अभी तुम समझते हो गॉड फादर है मुख्य, पीछे फिर जगत अम्बा, जगतपिता। जगत के मालिक, विश्व के मालिक बनते हैं, इनका पार्ट जरूर ऊंचा है। तो उनकी पे (पगार) भी ऊंची है। पगार देते हैं बाप, जो सबसे ऊंच है। कहते हैं तुम मुझे इतनी मदद करते हो तो तुमको पगार भी जरूर इतनी मिलेगी। बैरिस्टर पढ़ायेगा तो कहेगा ना, इतना ऊंच पद प्राप्त कराता हूँ तो इस पढ़ाई पर बच्चों को कितना अटेन्शन देना चाहिए। गृहस्थ में भी रहना है, कर्मयोग संन्यास है ना। गृहस्थ व्यवहार में रहते, सब कुछ करते हुए बाप से वर्सा पाने का पुरुषार्थ कर सकते हैं, इसमें कोई तकलीफ नहीं है। कामकाज करते शिवबाबा की याद में रहना है। नॉलेज तो बड़ी सहज है। गाते भी हैं – हे पतित-पावन आओ, आकर हमको पावन बनाओ। पावन दुनिया में तो राजधानी है तो बाप उस राजधानी का भी लायक बनाते हैं।
इस ज्ञान की मुख्य दो सब्जेक्ट हैं – अल़फ और बे। स्वदर्शन चक्रधारी बनो और बाप को याद करो तो तुम एवरहेल्दी और वेल्दी बनेंगे। बाप कहते हैं मुझे वहाँ याद करो। घर को भी याद करो, मुझे याद करने से तुम घर चले जायेंगे। स्वदर्शन चक्रधारी बनने से तुम चक्रवर्ती राजा बनेंगे। यह बुद्धि में अच्छी रीति रहना चाहिए। इस समय तो सब तमोप्रधान हैं। सुखधाम में सुख, शान्ति, सम्पत्ति सब मिलता है। वहाँ एक धर्म होता है। अभी तो देखो घर-घर में अशान्ति है। स्टूडेन्ट लोग देखो कितना हंगामा करते हैं। अपना न्यू ब्लड दिखाते हैं। यह है तमोप्रधान दुनिया, सतयुग है नई दुनिया। बाप संगम पर आया हुआ है। महाभारत लड़ाई भी संगम की ही है। अभी यह दुनिया बदलनी है। बाप भी कहते हैं मैं नई दुनिया की स्थापना करने संगम पर आता हूँ, इनको ही पुरुषोत्तम संगमयुग कहते हैं। पुरुषोत्तम मास, पुरुषोत्तम संवत भी मनाते हैं। परन्तु यह पुरुषोत्तम संगम का किसको पता नहीं है। संगम पर ही बाप आकर तुमको हीरे जैसा बनाते हैं। फिर इनमें भी नम्बरवार तो होते ही हैं। हीरे जैसा राजा बन जाते हैं, बाकी सोने जैसी प्रजा बन जाती है। बच्चे ने जन्म लिया और वर्से का हकदार बना। अभी तुम पावन दुनिया के हकदार बन जाते हो। फिर उसमें ऊंच पद पाने के लिए पुरुषार्थ करना है। इस समय का तुम्हारा पुरुषार्थ कल्प-कल्प का पुरुषार्थ होगा। समझा जाता है यह कल्प-कल्प ऐसा ही पुरुषार्थ करेंगे। इनसे जास्ती पुरुषार्थ होगा ही नहीं। जन्म-जन्मान्तर, कल्प-कल्पान्तर यह प्रजा में ही आयेंगे। यह साहूकार प्रजा में दास-दासियाँ बनेंगे। नम्बरवार तो होते हैं ना। पढ़ाई के आधार से सब मालूम पड़ जाता है। बाबा झट बता सकते हैं इस हालत में तुम्हारा कल शरीर छूट जाये तो क्या बनेंगे? दिन-प्रतिदिन टाइम थोड़ा होता जाता है। अगर कोई शरीर छोड़ेंगे फिर तो पढ़ नहीं सकेंगे, हाँ थोड़ा सिर्फ बुद्धि में आयेगा। शिवबाबा को याद करेंगे। जैसे छोटे बच्चे को भी तुम याद कराते हो तो शिवबाबा-शिवबाबा कहता रहता है। तो उनका भी कुछ मिल सकता है। छोटा बच्चा तो महात्मा मिसल है, विकारों का पता नहीं। जितना बड़ा होता जायेगा, विकारों का असर होता जायेगा, क्रोध होगा, मोह होगा…….। अभी तुमको तो समझाया जाता है इस दुनिया में इन ऑखों से जो कुछ देखते हो उनसे ममत्व मिटा देना है। आत्मा जानती है यह तो सब कब्रदाखिल होने हैं। तमोप्रधान चीजें हैं। मनुष्य मरते हैं तो पुरानी चीज़ें करनीघोर को दे देते हैं। बाप तो फिर बेहद का करनीघोर है, धोबी भी है। तुमसे लेते क्या हैं और देते क्या हैं? तुम जो कुछ थोड़ा धन भी देते हो वह तो खत्म होना ही है। फिर भी बाप कहते हैं यह धन रखो अपने पास। सिर्फ इनसे ममत्व मिटा दो। हिसाब-किताब बाप को देते रहो। फिर डायरेक्शन मिलते रहेंगे। तुम्हारा यह कखपन जो है, युनिवर्सिटी में और हॉस्पिटल में हेल्थ और वेल्थ के लिए लगा देते हैं। हॉस्पिटल होती है बीमार के लिए, युनिवर्सिटी होती है पढ़ाने के लिए। यह तो कॉलेज और हॉस्पिटल दोनों इकट्ठी हैं। इनके लिए तो सिर्फ तीन पैर पृथ्वी के चाहिए। बस जिनके पास और कुछ नहीं है वह सिर्फ 3 पैर जमीन के दे देवें। उसमें क्लास लगा दें। 3 पैर पृथ्वी के, वह तो सिर्फ बैठने की जगह हुई ना। आसन 3 पैर का ही होता है। 3 पैर पृथ्वी पर कोई भी आयेगा, अच्छी रीति समझकर जायेगा। कोई आया, आसन पर बिठाया और बाप का परिचय दिया। बैजेज़ भी बहुत बनवा रहे हैं सर्विस के लिए, यह है बहुत सिम्पुल। चित्र भी अच्छे हैं, लिखत भी पूरी है। इनसे तुम्हारी बहुत सर्विस होगी। दिन-प्रतिदिन जितनी आ़फतें आती रहेंगी तो मनुष्यों को भी वैराग्य आयेगा और बाप को याद करने लग पड़ेंगे – हम आत्मा अविनाशी हैं, अपने अविनाशी बाप को याद करें। बाप खुद कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप उतर जायें। अपने को आत्मा समझ और बाप से पूरा लव रखना है। देह-अभिमान में न आओ। हाँ, बाहर का प्यार भल बच्चों आदि से रखो। परन्तु आत्मा का सच्चा प्यार रूहानी बाप से हो। उनकी याद से ही विकर्म विनाश होंगे। मित्र-सम्बन्धियों, बच्चों आदि को देखते हुए भी बुद्धि बाप की याद में लटकी रहे। तुम बच्चे जैसे याद की फाँसी पर लटके हुए हो। आत्मा को अपने बाप परमात्मा को ही याद करना है। बुद्धि ऊपर लटकी रहे। बाप का घर भी ऊपर है ना। मूलवतन, सूक्ष्मवतन और यह है स्थूलवतन। अब फिर वापिस जाना है।
अब तुम्हारी मुसाफिरी पूरी हुई है। तुम अब मुसाफिरी से लौट रहे हो। तो अपना घर कितना प्यारा लगता है। वह है बेहद का घर। वापिस अपने घर जाना है। मनुष्य भक्ति करते हैं – घर जाने के लिए, परन्तु ज्ञान पूरा नहीं है तो घर जा नहीं सकते। भगवान पास जाने के लिए अथवा निवार्णधाम में जाने के लिए कितनी तीर्थ यात्रायें आदि करते हैं, मेहनत करते हैं। संन्यासी लोग सिर्फ शान्ति का रास्ता ही बताते हैं। सुखधाम को तो जानते ही नहीं। सुखधाम का रास्ता सिर्फ बाप ही बतलाते हैं। पहले जरूर निवार्णधाम, वानप्रस्थ में जाना है जिसको ब्रह्माण्ड भी कहते हैं। वह फिर ब्रह्म को ईश्वर समझ बैठे हैं। हम आत्मा बिन्दी हैं। हमारा रहने का स्थान है ब्रह्माण्ड। तुम्हारी भी पूजा तो होती है ना। अब बिन्दी की पूजा क्या करेंगे। जब पूजा करते हैं तो सालिग्राम बनाए एक-एक आत्मा को पूजते हैं। बिन्दी की पूजा कैसे हो – इसलिए बड़े-बड़े बनाते हैं। बाप को भी अपना शरीर तो है नहीं। यह बातें अभी तुम जानते हो। चित्रों में भी तुमको बड़ा रूप दिखाना पड़े। बिन्दी से कैसे समझेंगे? यूँ बनाना चाहिए स्टॉर। ऐसे बहुत तिलक भी मातायें लगाती हैं, तैयार मिलते हैं सफेद। आत्मा भी सफेद होती है ना, स्टॉर मिसल। यह भी एक निशानी है। भृकुटी के बीच आत्मा रहती है। बाकी अर्थ का किसको पता भी नहीं है। यह बाप समझाते हैं इतनी छोटी आत्मा में कितना ज्ञान है। इतने बाम्ब्स आदि बनाते रहते हैं। वन्डर है, आत्मा में इतना पार्ट भरा हुआ है। यह बड़ी गुह्य बातें हैं। इतनी छोटी आत्मा शरीर से कितना काम करती है। आत्मा अविनाशी है, उनका पार्ट कभी विनाश नही होता है, न एक्ट बदलती है। अभी बहुत बड़ा झाड़ है। सतयुग में कितना छोटा झाड़ होता है। पुराना तो होता नहीं। मीठे छोटे झाड़ का कलम अभी लग रहा है। तुम पतित बने थे अब फिर पावन बन रहे हो। छोटी-सी आत्मा में कितना पार्ट है। कुदरत यह है, अविनाशी पार्ट चलता रहता है। यह कभी बन्द नहीं होता, अविनाशी चीज़ है, उसमें अविनाशी पार्ट भरा हुआ है। यह वन्डर है ना। बाप समझाते हैं – बच्चे, देही-अभिमानी बनना है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, इसमें है मेहनत, जास्ती पार्ट तुम्हारा है। बाबा का इतना पार्ट नहीं, जितना तुम्हारा।
बाप कहते हैं तुम स्वर्ग में सुखी बन जाते हो तो मैं विश्राम में बैठ जाता हूँ। हमारा कोई पार्ट नहीं। इस समय इतनी सर्विस करता हूँ ना। यह नॉलेज इतनी वन्डरफुल है, तुम्हारे सिवाए ज़रा भी कोई नहीं जानते हैं। बाप की याद में रहने बिगर धारणा भी नहीं होगी। खान-पान आदि का भी फ़र्क पड़ने से धारणा में फ़र्क पड़ जाता है, इसमें प्योरिटी बड़ी अच्छी चाहिए। बाप को याद करना बहुत सहज है। बाप को याद करना है और वर्सा पाना है इसलिए बाबा ने कहा था तुम अपने पास भी चित्र रख दो। योग का और वर्से का चित्र बनाओ तो नशा रहेगा। हम ब्राह्मण सो देवता बन रहे हैं। फिर हम देवता सो क्षत्रिय बनेंगे। ब्राह्मण हैं पुरुषोत्तम संगमयुगी। तुम पुरुषोत्तम बनते हो ना। मनुष्यों को यह बातें बुद्धि में बिठाने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है। दिन-प्रतिदिन जितना नॉलेज को समझते जाते हैं तो खुशी भी बढ़ेगी।
तुम बच्चे जानते हो बाबा हमारा बहुत कल्याण करते हैं। कल्प-कल्प हमारी चढ़ती कला होती है। यहाँ रहते शरीर निर्वाह अर्थ भी सब-कुछ करना पड़ता है। बुद्धि में रहे हम शिवबाबा के भण्डारे से खाते हैं, शिवबाबा को याद करते रहेंगे तो काल कंटक सब दूर हो जायेंगे। फिर यह पुराना शरीर छोड़ चले जायेंगे। बच्चे समझते हैं – बाबा कुछ भी लेते नहीं हैं। वह तो दाता है। बाप कहते हैं हमारी श्रीमत पर चलो। तुम्हें पैसे का दान किसे करना है, इस बात पर पूरा ध्यान देना है। अगर किसको पैसा दिया और उसने जाकर शराब आदि पिया, बुरे काम किये तो उसका पाप तुम्हारे ऊपर आ जायेगा। पाप आत्माओं से लेन-देन करते पाप आत्मा बन जाते हैं। कितना फ़र्क है। पाप आत्मा, पाप आत्मा से ही लेन-देन कर पाप आत्मा बन जाते हैं। यहाँ तो तुमको पुण्य आत्मा बनना है इसलिए पाप आत्माओं से लेन-देन नहीं करनी है। बाप कहते हैं कोई को भी दु:ख नहीं देना है, कोई में मोह नहीं रखना है। बाप भी सैक्रीन बनकर आते हैं। पुराना कखपन लेते हैं, देते देखो कितना ब्याज हैं। बड़ा भारी ब्याज मिलता है। कितना भोला है, दो मुट्ठी के बदले महल दे देते हैं। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अब मुसाफिरी पूरी हुई, वापस घर जाना है इसलिए इस पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य रख बुद्धियोग बाप की याद में ऊपर लटकाना है।
2) संगमयुग पर बाप ने जो यज्ञ रचा है, इस यज्ञ की सम्भाल करने के लिए सच्चा-सच्चा पवित्र ब्राह्मण बनना है। काम काज करते बाप की याद में रहना है।
वरदान:- | आदि रत्न की स्मृति से अपने जीवन का मूल्य जानने वाले सदा समर्थ भव जैसे ब्रह्मा आदि देव है, ऐसे ब्रह्माकुमार, कुमारियां भी आदि रत्न हैं। आदि देव के बच्चे मास्टर आदि देव हैं। आदि रत्न समझने से ही अपने जीवन के मूल्य को जान सकेंगे क्योंकि आदि रत्न अर्थात् प्रभू के रत्न, ईश्वरीय रत्न-तो कितनी वैल्यु हो गई इसलिए सदा अपने को आदि देव के बच्चे मास्टर आदि देव, आदि रत्न समझकर हर कार्य करो तो समर्थ भव का वरदान मिल जायेगा। कुछ भी व्यर्थ जा नहीं सकता। |
स्लोगन:- | ज्ञानी तू आत्मा वह है जो धोखा खाने से पहले परखकर स्वयं को बचा ले। |
अपनी शक्तिशाली मन्सा द्वारा सकाश देने की सेवा करो
अभी सेवा में सकाश दे, बुद्धियों को परिवर्तन करने की सेवा एड करो। फिर देखो सफलता आपके सामने स्वयं झुकेगी। सेवा में जो विघ्न आते हैं, उस विघ्नों के पर्दे के अन्दर कल्याण का दृश्य छिपा हुआ है। सिर्फ मन्सा-वाचा की शक्ति से विघ्न का पर्दा हटा दो तो अन्दर कल्याण का दृश्य दिखाई देगा।
पुरुषोत्तम संगमयुग के मर्म और मार्गदर्शन
प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: पुण्य आत्मा बनने वाले बच्चों को किस बात का विशेष ध्यान रखना है?
उत्तर: पुण्य आत्मा बनने वाले बच्चों को इस बात पर ध्यान रखना है कि वे अपना धन सही व्यक्ति को दान करें। अगर किसी को पैसा दिया और उसने उसे गलत कार्यों में, जैसे शराब आदि में उपयोग किया, तो उसके कर्मों का पाप दानकर्ता पर आ जाएगा। इसलिए पाप आत्माओं से लेन-देन नहीं करनी है।
प्रश्न 2: योग को अग्नि क्यों कहा गया है?
उत्तर: योग को अग्नि इसलिए कहा गया है क्योंकि यह पाप जलाने वाली शक्ति है। योग की अग्नि आत्मा को तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाती है। यह याद की आग आत्मा को पवित्र बनाकर पुण्य आत्मा बनाती है।
प्रश्न 3: संगमयुग को पुरुषोत्तम संगमयुग क्यों कहा जाता है?
उत्तर: संगमयुग को पुरुषोत्तम संगमयुग इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस युग में बाप आकर बच्चों को हीरे जैसा मूल्यवान बनाते हैं। यह वह समय है जब आत्माएं अपने श्रेष्ठतम स्वरूप को धारण कर पावन संसार के अधिकारी बनती हैं।
प्रश्न 4: ब्राह्मण बनने के लिए किन बातों का पालन करना आवश्यक है?
उत्तर: ब्राह्मण बनने के लिए सच्चे और पवित्र रहना आवश्यक है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी बाप की याद में रहना और काम-काज करते हुए पुरुषार्थ करना चाहिए। संगमयुग के यज्ञ की संभाल के लिए पवित्र ब्राह्मण बनने की जरूरत है।
प्रश्न 5: बाप का दिया हुआ वर्सा क्या है, और इसे पाने का उपाय क्या है?
उत्तर: बाप का वर्सा है स्वर्ग का सुख, शांति, और संपत्ति। इसे पाने का उपाय है स्वदर्शन चक्रधारी बनकर बाप को याद करना। याद के माध्यम से आत्मा पावन बनती है और जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट होते हैं।
सार
- ध्यान रखने योग्य बातें:
- अपनी बुद्धि बाप की याद में लगानी है।
- पुरानी दुनिया से वैराग्य रखना है।
- धन और संबंधों में सावधानी रखनी है।
- वरदान:
“आदि रत्न की स्मृति से अपने जीवन का मूल्य जानो और समर्थ भव बनो। अपने कार्यों को प्रभु के रत्न समझकर करो, जिससे हर कार्य में सफलता मिलेगी।” - स्लोगन:
“ज्ञानी आत्मा वही है जो धोखा खाने से पहले परख ले और स्वयं को बचा ले।”
सेवा:
अपनी शक्तिशाली मंसा द्वारा बुद्धियों को परिवर्तन करने की सेवा करो। सफलता के मार्ग में आने वाले विघ्नों को देखकर धैर्य रखें और अपने लक्ष्य पर अडिग रहें।
आदि रत्न, मास्टर आदि देव, आदि देव, पुरुषोत्तम संगमयुग, योग अग्नि, पुण्य आत्मा, पाप आत्मा, स्वदर्शन चक्रधारी, पतित-पावन, बापदादा, संगमयुग, ब्राह्माकुमार, मास्टर ब्रह्मा, पवित्र ब्राह्मण, ज्ञान की शक्ति, सकाश, सेवा, तमोप्रधान, सतोप्रधान, निवार्णधाम, सतयुग, पतित आत्मा, ज्ञान का यज्ञ, ईश्वरीय रत्न, परिवर्तन, मन्सा शक्ति, बुद्धि परिवर्तन, व्यर्थ रहित, ब्रह्माकुमारियां, चढ़ती कला, श्रीमत, गृहस्थ व्यवहार, मोह रहित, बाप की याद, घर वापसी, विश्व कल्याण, अमरलोक, महाभारत लड़ाई, ज्ञान और भक्ति, स्वर्ग की पूंजी.
Adi Ratna, Master Adi Dev, Adi Dev, Purushottam Confluence Age, Yoga Agni, virtuous soul, sinful soul, holder of Sudarshan Chakra, Purifier, BapDada, Confluence Age, Brahma Kumar, Master Brahma, pure Brahmin, power of knowledge, Sakaash, service, tamopradhaan, satopradhaan, Nirvanadham, Satyayug, sinful soul, Yagya of Knowledge, Divine Jewel, transformation, power of mind, transformation of intellect, waste free, Brahma Kumaris, ascending stage, Shrimat, household behavior, free from attachment, remembrance of the Father, homecoming, world welfare, Amarlok, Mahabharata war, knowledge and devotion, capital of heaven.