(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
13-04-25 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
”अव्यक्त-बापदादा”
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रिवाइज: 31-12-2004 मधुबन |
“इस वर्ष के आरम्भ से बेहद की वैराग्य वृत्ति इमर्ज करो, यही मुक्तिधाम के गेट की चाबी है”
आज नवयुग रचता बापदादा अपने बच्चों से नव वर्ष मनाने के लिए, परमात्म मिलन मनाने के लिए बच्चों के स्नेह में अपने दूरदेश से साकार वतन में मिलन मनाने आये हैं। दुनिया में तो नव वर्ष की मुबारक एक दो को देते हैं। लेकिन बापदादा आप बच्चों को नव युग और नये वर्ष की, दोनों की मुबारक दे रहे हैं। नया वर्ष तो एक दिन मनाने का है। नवयुग तो आप संगम पर सदा मनाते रहते। आप सभी भी परमात्म प्यार की आकर्षण में खींचते हुए यहाँ पहुंच गये हो। लेकिन सबसे दूरदेश से आने वाला कौन? डबल विदेशी? वह तो फिर भी इस साकार देश में ही हैं लेकिन बापदादा दूरदेशी कितना दूर से आये हैं? हिसाब निकाल सकते हैं, कितने माइल से आये हैं? तो दूरदेशी बापदादा चारों ओर के बच्चों को चाहे सामने डायमण्ड हॉल में बैठे हैं, चाहे मधुबन में बैठे हैं, चाहे ज्ञान सरोवर में बैठे हैं, गैलरी में बैठे हैं, आप सबके साथ जो दूर बैठे देश विदेश में बापदादा से मिलन मना रहे हैं, बापदादा देख रहे हैं सभी कितने प्यार से, दूर से देख भी रहे हैं, सुन भी रहे हैं। तो चारों ओर के बच्चों को नवयुग और नये वर्ष की पदमगुणा मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। बच्चों को तो नवयुग नयनों के सामने है ना! बस आज संगम पर हैं, कल अपने नवयुग में राज्य अधिकारी बन राज्य करेंगे। इतना नजदीक अनुभव हो रहा है? आज और कल की ही तो बात है। कल था, कल फिर से होना है। अपने नव युग की, गोल्डन युग की गोल्डन ड्रेस सामने दिखाई दे रही है? कितनी सुन्दर है! स्पष्ट दिखाई दे रही है ना! आज साधारण ड्रेस में हैं और कल नव युग की सुन्दर ड्रेस में चमकते हुए दिखाई देंगे। नव वर्ष में तो एक दिन के लिए एक दो को गिफ्ट देते हैं। लेकिन नव युग रचता बापदादा ने आप सबको गोल्डन वर्ल्ड की सौगात दी है, जो अनेक जन्म चलने वाली है। विनाशी सौगात नहीं है। अविनाशी सौगात बाप ने आप बच्चों को दे दी है। याद है ना! भूल तो नहीं गये हो ना! सेकण्ड में आ जा सकते हो। अभी-अभी संगम पर, अभी-अभी अपनी गोल्डन दुनिया में पहुंच जाते हो कि देरी लगती है? अपना राज्य स्मृति में आ जाता है ना!
आज के दिन को विदाई का दिन कहा जाता है और 12 बजे के बाद बधाई का दिन कहा जायेगा। तो विदाई के दिन, वर्ष की विदाई के साथ-साथ आप सबने वर्ष के साथ और किसको विदाई दी? चेक किया सदा के लिए विदाई दी वा थोड़े समय के लिए विदाई दी? बापदादा ने पहले भी कहा है कि समय की रफ्तार तीव्रगति से जा रही है, तो सारे वर्ष की रिजल्ट में चेक किया कि क्या मेरे पुरुषार्थ की रफ्तार तीव्र रही? या कब कैसे, कब कैसे रही? दुनिया की हालतों को देखते हुए अब अपने विशेष दो स्वरूपों को इमर्ज करो, वह दो स्वरूप हैं – एक सर्व प्रति रहमदिल और कल्याणकारी और दूसरा हर आत्मा के प्रति सदा दाता के बच्चे मास्टर दाता। विश्व की आत्मायें बिल्कुल शक्तिहीन, दु:खी, अशान्त चिल्ला रही हैं। बाप के आगे, आप पूज्य आत्माओं के आगे पुकार रही हैं – कुछ घड़ियों के लिए भी सुख दे दो, शान्ति दे दो। खुशी दे दो, हिम्मत दे दो। बाप तो बच्चों के दु:ख, परेशानी को देख नहीं सकते, सुन नहीं सकते। क्या आप सभी पूज्य आत्माओं को रहम नहीं आता! मांग रहे हैं – दो, दो, दो…। तो दाता के बच्चे कुछ अंचली तो दे दो। बाप भी आप बच्चों को साथी बना के, मास्टर दाता बनाके, अपने राइट हैण्ड बनाके यही इशारा देते हैं – इतनी विश्व की आत्मायें सभी को मुक्ति दिलानी है। मुक्तिधाम में जाना है। तो हे दाता के बच्चे अपने श्रेष्ठ संकल्प द्वारा, मन्सा शक्ति द्वारा, चाहे वाणी द्वारा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा, चाहे शुभ भावना शुभ कामना द्वारा, चाहे वायब्रेशन वायुमण्डल द्वारा किसी भी युक्ति से मुक्ति दिलाओ। चिल्ला रहे हैं मुक्ति दो, बापदादा अपने राइट हैण्ड्स को कहते हैं रहम करो।
अभी तक हिसाब निकालो। चाहे मेगा प्रोग्राम किया है, चाहे कॉन्फ्रेन्स की है, चाहे भारत में या विदेश में सेन्टर्स भी खोले हैं लेकिन टोटल विश्व के आत्माओं की संख्या के हिसाब से कितनी परसेन्ट में आत्माओं को मुक्ति का रास्ता बताया है? सिर्फ भारत कल्याणकारी हो या विदेश में जो भी 5 खण्ड हैं, तो जहाँ-जहाँ सेवाकेन्द्र खोले हैं वहाँ के कल्याणकारी हो वा विश्व कल्याणकारी हो? विश्व का कल्याण करने के लिए हर एक बच्चे को बाप का हैण्ड, राइड हैण्ड बनना है। किसको भी कुछ दिया जाता है तो किससे दिया जाता है? हाथों से दिया जाता है ना। तो बापदादा के आप हैण्ड्स हो ना, हाथ हो ना। तो बापदादा राइट हैण्ड्स से पूछते हैं, कितनी परसेन्ट का कल्याण किया है? कितनी परसेन्ट का किया है? सुनाओ, हिसाब निकालो। पाण्डव हिसाब करने में होशियार हैं ना? इसीलिए बापदादा कहते हैं अब स्व-पुरुषार्थ और सेवा के भिन्न-भिन्न विधियों द्वारा पुरुषार्थ तीव्र करो। स्व की स्थिति में भी चार बातें विशेष चेक करो – इसको कहेंगे तीव्र पुरुषार्थ।
एक बात – पहले यह चेक करो कि निमित्त भाव है? कोई भी रॉयल रूप का मैं पन तो नहीं है? मेरापन तो नहीं है? साधारण लोगों का मैं और मेरा भी साधारण है, मोटा है लेकिन ब्राह्मण जीवन का मेरा और मैं पन सूक्ष्म और रॉयल है। उसकी भाषा मालूम है क्या है? यह तो होता ही है, यह तो चलता ही है। यह तो होना ही है। चल रहे हैं, देख रहे हैं…। तो एक निमित्त भाव, हर बात में निमित्त हैं। चाहे सेवा में, चाहे स्थिति में, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क में चेहरा और चलन निमित्त भाव का हो। और उसकी दूसरी विशेषता होगी – निर्मान भावना। निमित्त और निर्मान भाव से निर्माण करना। तो तीन बातें सुनी – निमित्त, निर्मान और निर्माण और चौथी बात है – निर्वाण। जब चाहे निर्वाणधाम में पहुंच जायें। निर्वाण स्थिति में स्थित हो जाएं क्योंकि स्वयं निर्वाण स्थिति में होंगे तब दूसरों को निर्वाणधाम में पहुंचा सकेंगे। अभी सभी मुक्ति चाहते हैं, छुड़ाओ, छुड़ाओ चिल्ला रहे हैं। तो यह चार बातें अच्छी परसेन्ट में प्रैक्टिकल जीवन में होना अर्थात् तीव्र पुरुषार्थी। तब बापदादा कहेंगे वाह! वाह! बच्चे वाह! आप भी कहेंगे वाह! बाबा वाह! वाह! ड्रामा वाह! वाह! पुरुषार्थ वाह! लेकिन पता है अभी क्या करते हो? पता है? कभी वाह! कहते हो कभी व्हाई (क्यों) कहते हो। वाह! के बजाए व्हाई, और व्हाई हो जाता है हाय। तो व्हाई नहीं, वाह! आपको भी क्या अच्छा लगता है, वाह! अच्छा लगता है या व्हाई? क्या अच्छा लगता है? वाह! कभी व्हाई नहीं करते हो? गलती से आ जाता है।
डबल फारेनर्स व्हाई-व्हाई कहते हैं? कभी-कभी कह देते हो? जो डबल फारेनर्स कभी भी व्हाई नहीं कहते वह हाथ उठाओ। बहुत थोड़े हैं। अच्छा – भारतवासी जो वाह! वाह! के बजाए क्यों-क्या कहते हैं वह हाथ उठाओ। क्यों-क्या कहते हो? किसने छुट्टी दी है आपको? संस्कारों ने? पुराने संस्कारों ने आपको व्हाई की छुट्टी दे दी है और बाप कहते हैं वाह! वाह! कहो। व्हाई-व्हाई नहीं। तो अभी नये वर्ष में क्या करेंगे? वाह! वाह! करेंगे? या कभी-कभी व्हाई कहने की छुट्टी दे दें? व्हाई अच्छा नहीं है। जैसे वाई (पेट में गैस) हो जाती है ना, तो खराब हो जाता है ना। तो व्हाई वाई है, यह नहीं करो। वाह! वाह! कितना अच्छा लगता है। हाँ बोलो, वाह! वाह! वाह!
अच्छा – तो दूरदेश में सुन रहे हैं, देख रहे हैं – भारत में भी विदेश में भी, उन बच्चों से भी पूछते हैं वाह! वाह! करते हो या व्हाई, व्हाई करते हो? अभी विदाई का दिन है ना! आज वर्ष के विदाई का लास्ट डे है। तो सभी संकल्प करो – व्हाई नहीं कहेंगे। सोचेंगे भी नहीं। क्वेश्चन मार्क नहीं, आश्चर्य की मात्रा नहीं, बिन्दी। क्वेश्चन मार्क लिखो, कितना टेढ़ा है और बिन्दी कितनी सहज है। बस नयनों में बाप बिन्दु को समा दो। जैसे नयनों में देखने की बिन्दी समाई हुई है ना! ऐसे ही सदा नयनों में बिन्दु बाप को समा लो। समाने आता है? आता है या फिट नहीं होती है? नीचे ऊपर हो जाती है? तो क्या करेंगे? विदाई किसको देंगे? व्हाई को? कभी भी आश्चर्य की निशानी भी नहीं आवे, यह कैसे! यह भी होता है क्या! होना तो नहीं चाहिए, क्यों होता है! क्वेश्चन मार्क नहीं, आश्चर्य की मात्रा भी नहीं। बस बाप और मैं। कई बच्चे कहते हैं यह तो चलता ही है ना! बापदादा को बहुत रमणीक बातें रूहरिहान में कहते हैं, सामने तो कह नहीं सकते हैं ना। तो रूहरिहान में सब कुछ कह देते हैं। अच्छा कुछ भी चलता है लेकिन आपको चलना नहीं है, आपको उड़ना है तो चलने की बातें क्यों देखते हो, उड़ो और उड़ाओ। शुभ भावना, शुभ कामना ऐसी शक्तिशाली है जो बीच में सिर्फ व्हाई नहीं आवे, सिवाए शुभ भावना शुभ कामना के, तो इतनी पावरफुल है जो किसी अशुभ भावना वाले को भी शुभ भावना में बदल सकते हो। सेकण्ड नम्बर – अगर बदल नहीं सकते हो तो भी आपकी शुभ भावना, शुभ कामना अविनाशी है, कभी-कभी वाली नहीं, अविनाशी है तो आपके ऊपर अशुभ भावना का प्रभाव नहीं पड़ सकता है। क्वेश्चन में चले जाते हो, यह क्यों हो रहा है? यह कब तक चलेगा? कैसे चलेगा? इससे शुभ भावना की शक्ति कम हो जाती है। नहीं तो शुभ भावना, शुभ कामना इस संकल्प शक्ति में बहुत शक्ति है। देखो, आप सभी आये बापदादा के पास। पहला दिन याद करो, बापदादा ने क्या किया? चाहे पतित आये, चाहे पापी आये, चाहे साधारण आये, भिन्न-भिन्न वृत्ति वाले, भिन्न-भिन्न भावना वाले आये, बापदादा ने क्या किया? शुभ भावना रखी ना! मेरे हो, मास्टर सर्वशक्तिवान हो, दिलतख्त नशीन हो, यह शुभ भावना रखी ना, शुभ कामना रखी ना, उससे ही तो बाप के बन गये ना। बाप ने कहा क्या कि हे पापी क्यों आये हो? शुभ भावना रखी, मेरे बच्चे, मास्टर सर्व शक्तिवान बच्चे, जब बाप ने आप सबके ऊपर शुभ भावना रखी, शुभ कामना रखी तो आपके दिल ने क्या कहा? मेरा बाबा। बाप ने क्या कहा? मेरे बच्चे। ऐसे ही अगर शुभ भावना, शुभ कामना रखेंगे तो क्या दिखाई देगा? मेरा कल्प पहले वाला मीठा भाई, मेरी सिकीलधी बहन। परिवर्तन हो जायेगा।
तो इस वर्ष में कुछ करके दिखाना। सिर्फ हाथ नहीं उठाना। हाथ उठाना बहुत सहज है। मन का हाथ उठाना क्योंकि बहुत काम रहा हुआ है। बापदादा तो नज़र करते हैं, विश्व की आत्माओं के ऊपर तो बहुत तरस पड़ता है। अब प्रकृति भी तंग हो गई है। प्रकृति खुद तंग हो गई है, तो क्या करे? आत्माओं को तंग कर रही है। और बाप बच्चों को देखके तरस में आ जाते हैं। आप सबको तरस नहीं आता? सिर्फ खबर सुनकर चुप हो जाते हो, बस, इतनी आत्मायें चली गई। वो आत्मायें सन्देश से तो वंचित रह गई। अभी तो दाता बनो, रहमदिल बनो। यह तब होगा, रहम तब आयेगा जब इस वर्ष के आरम्भ से अपने में बेहद की वैराग्य वृत्ति इमर्ज करो। बेहद की वैराग्य वृत्ति। यह देह की, देहभान की स्मृति, यह भी बेहद के वैराग्य की कमी है। छोटी-छोटी हद की बातें स्थिति को डगमग करती हैं, कारण? बेहद की वैराग्य वृत्ति कम है, लगाव है। वैराग्य नहीं है लगाव है। जब बिल्कुल बेहद के वैरागी बन जायेंगे, वृत्ति में भी वैरागी, दृष्टि में भी बेहद के वैरागी, सम्बन्ध-सम्पर्क में, सेवा में सबमें बेहद के वैरागी… तभी मुक्तिधाम का दरवाजा खुलेगा। अभी तो जो आत्मायें शरीर छोड़कर जा रही हैं फिर जन्म लेंगी, फिर दु:खी होंगी। अब मुक्तिधाम का गेट खोलने के निमित्त तो आप हो ना? ब्रह्मा बाप के साथी हो ना! तो बेहद की वैराग्य वृत्ति है गेट खोलने की चाबी। अभी चाबी नहीं लगी है, चाबी तैयार ही नहीं की है। ब्रह्मा बाप भी इन्तजार कर रहा है, एडवांस पार्टी भी इन्तजार कर रही है, प्रकृति भी इन्तजार कर रही है, तंग हो गई है बहुत। माया भी अपने दिन गिनती कर रही है। अभी बोलो, हे मास्टर सर्वशक्तिवान, बोलो क्या करना है?
इस वर्ष में कोई नवीनता तो करेंगे ना! नया वर्ष कहते हैं तो नवीनता तो करेंगे ना! अभी बेहद के वैराग्य की, मुक्तिधाम जाने की चाबी तैयार करो। आप सभी को भी तो पहले मुक्तिधाम में जाना है ना। ब्रह्मा बाप से वायदा किया है – साथ चलेंगे, साथ आयेंगे, साथ में राज्य करेंगे, साथ में भक्ति करेंगे…। तो अभी तैयारी करो, इस वर्ष में करेंगे कि दूसरा वर्ष चाहिए? जो समझते हैं इस वर्ष में अटेन्शन प्लीज, बार-बार करेंगे वह हाथ उठाओ। करेंगे? फिर तो एडवांस पार्टी आपको बहुत मुबारक देगी। वह भी थक गये हैं। अच्छा – टीचर्स क्या कहती हैं? पहली लाइन क्या कहती है? पहले तो पहली लाइन के पाण्डव और पहली लाइन की शक्तियां जो करेंगे वह हाथ उठाओ। आधा हाथ नहीं, आधा उठायेंगे तो कहेंगे आधा करेंगे। लम्बा हाथ उठाओ। अच्छा। मुबारक हो, मुबारक हो। अच्छा – डबल विदेशी हाथ उठाओ। एक दो में देखो किसने नहीं उठाया है। अच्छा, यह सिन्धी ग्रुप भी हाथ उठा रहा है, कमाल है। आप भी करेंगे? सिन्धी ग्रुप करेंगे? तब तो डबल मुबारक हो। बहुत अच्छा। एक दो को साथ देकर, शुभ भावना का इशारा देते, हाथ में हाथ मिलाते करना ही है। अच्छा। (सभा में कोई ने आवाज की) सब बैठ जाओ, नथिंग न्यू।
अभी-अभी एक सेकण्ड में बिन्दु बन बिन्दु बाप को याद करो और जो भी कोई बातें हों उसको बिन्दु लगाओ। लगा सकते हो? बस एक सेकण्ड में “मैं बाबा का, बाबा मेरा।” अच्छा।
अभी चारों ओर के सर्व नये युग के मालिक बच्चों को, चारों ओर के नये वर्ष मनाने के उमंग-उत्साह वाले बच्चों को सदा उड़ते रहना और उड़ाते रहना, ऐसे उड़ती कला वाले बच्चों को, सदा तीव्र पुरुषार्थ द्वारा विजय माला के मणके बनने वाले विजयी रत्नों को बापदादा का नये वर्ष और नये युग की दुआओं के साथ-साथ पदमगुणा थालियां भर-भर के मुबारक हो, मुबारक हो। एक हाथ की ताली बजाओ। अच्छा!
वरदान:- | एकाग्रता के अभ्यास द्वारा एकरस स्थिति बनाने वाले सर्व सिद्धि स्वरूप भव जहाँ एकाग्रता है वहाँ स्वत: एकरस स्थिति है। एकाग्रता से संकल्प, बोल और कर्म का व्यर्थ पन समाप्त हो जाता है और समर्थ पन आ जाता है। एकाग्रता अर्थात् एक ही श्रेष्ठ संकल्प में स्थित रहना। जिस एक बीज रूपी संकल्प में सारा वृक्ष रूपी विस्तार समाया हुआ है। एकाग्रता को बढ़ाओ तो सर्व प्रकार की हलचल समाप्त हो जायेगी। सब संकल्प, बोल और कर्म सहज सिद्व हो जायेंगे इसके लिए एकान्तवासी बनो। |
स्लोगन:- | एक बार की हुई गलती को बार-बार सोचना अर्थात् दाग पर दाग लगाना इसलिए बीती को बिन्दी लगाओ। |
अव्यक्त इशारे – “कम्बाइण्ड रूप की स्मृति से सदा विजयी बनो”
जैसे इस समय आत्मा और शरीर कम्बाइण्ड है, ऐसे बाप और आप कम्बाइन्ड रहो। स़िर्फ यह याद रखो कि ‘मेरा बाबा’। अपने मस्तक पर सदा साथ का तिलक लगाओ। जो सुहाग होता है, साथ होता है वह कभी भूलता नहीं। तो साथी को सदा साथ रखो। अगर साथ रहेंगे तो साथ चलेंगे। साथ रहना है, साथ चलना है, हर सेकेण्ड, हर संकल्प में साथ है ही।
“इस वर्ष के आरम्भ से बेहद की वैराग्य वृत्ति इमर्ज करो, यही मुक्तिधाम के गेट की चाबी है”
Q1: बेहद की वैराग्य वृत्ति का क्या अर्थ है?
A: बेहद की वैराग्य वृत्ति का अर्थ है हर प्रकार की देह, देह के सम्बन्ध, देह की इच्छाओं और संसार के आकर्षणों से संपूर्ण रूप से अलग, सहज और सच्चे अर्थों में निर्लिप्त होना। यह वैराग्य केवल स्थिति का नहीं, बल्कि दृष्टि, वृत्ति, संबंध और सेवा में भी झलकता है।
Q2: मुक्तिधाम के गेट की चाबी बेहद की वैराग्य वृत्ति को क्यों कहा गया है?
A: क्योंकि जब आत्मा में किसी भी प्रकार का लगाव नहीं रहता, तब वह सहज ही मुक्तिधाम में जाने के योग्य बनती है। यह वैराग्य ही आत्मा को परिपक्व बनाता है और सेवा के लिए उपयुक्त शक्ति देता है। यही अवस्था मुक्ति दिलाने वाली बनती है।
Q3: बापदादा ने इस मुरली में विशेष रूप से किन दो स्वरूपों को इमर्ज करने को कहा है?
A: 1. सर्व प्रति रहमदिल और कल्याणकारी
2. हर आत्मा के प्रति सदा दाता और मास्टर दाता
इन दोनों स्वरूपों से ही विश्व को मुक्ति देने का कार्य सहज रूप से हो सकता है।
Q4: बापदादा ‘वाह!’ और ‘व्हाई?’ की तुलना से क्या सिखाना चाहते हैं?
A: ‘वाह!’ एक स्वीकारता और प्रसन्नता की भावना है जबकि ‘व्हाई?’ एक प्रश्न और आश्चर्य की स्थिति है। ‘वाह!’ में शक्ति है, और ‘व्हाई?’ में कमजोरी। इसलिए बापदादा कहते हैं — जीवन में ‘वाह!’ लाओ, ‘व्हाई?’ को विदाई दो।
Q5: तीव्र पुरुषार्थी बनने के लिए चार मुख्य बातें कौन-सी बताई गई हैं?
A:
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निमित्त भाव – सेवा और संबंध में अहंकार रहित भावना
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निर्मान भावना – विनम्रता और सहनशीलता
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निर्माण – श्रेष्ठ सोच, बोल और कर्म से दुनिया की रचना
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निर्वाण स्थिति – जब चाहो, बिंदु बन, परमधाम में स्थित हो जाना
Q6: बापदादा के अनुसार शुभ भावना और शुभ कामना की शक्ति क्या कर सकती है?
A: शुभ भावना और शुभ कामना इतनी शक्तिशाली है कि किसी भी आत्मा की अशुभ भावना को शुभ में परिवर्तित कर सकती है। यदि परिवर्तन न भी हो तो भी उस आत्मा की नकारात्मकता का असर नहीं होता क्योंकि यह शक्ति अविनाशी है।
Q7: बापदादा ने इस वर्ष किस नवीनता को अपनाने की प्रेरणा दी है?
A: बेहद की वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करना। इस वैराग्य के साथ-साथ, आत्मा को मुक्तिधाम ले जाने की जिम्मेदारी को आत्मसात करना — यह इस वर्ष की नवीनता है।
Q8: इस वर्ष के आरंभ में आत्मा को कौन-से संकल्प करने चाहिए?
A:
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“मैं बाबा का, बाबा मेरा”
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“मैं मास्टर दाता हूँ”
-
“मैं रहमदिल आत्मा हूँ”
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“मैं बिंदु बन, बिंदु बाप को याद कर सकता हूँ”
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“मैं इस वर्ष व्हाई नहीं, सिर्फ वाह बोलूँगा”
Q9: यदि हम बेहद के वैरागी बन जाते हैं तो क्या होगा?
A:
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हमारा मन शांत और स्थिर रहेगा
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सेवा में यथार्थ परिणाम मिलेगा
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मुक्तिधाम का गेट खुलेगा
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आत्मा स्वत: तीव्र पुरुषार्थी बन जाएगी
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हम बापदादा के राइट हैंड बनेंगे
Q10: अंत में बापदादा ने किस स्थिति को वरदान स्वरूप बताया है?
A: एकाग्रता के अभ्यास से एकरस स्थिति को। जहाँ एकाग्रता है वहाँ संकल्प, बोल और कर्म में समर्थता होती है। ऐसी आत्मा सहज ही सर्व सिद्धि स्वरूप बन जाती है।
ब्रह्मा_कुमारीज, अव्यक्त_बापदादा, प्रातः_मुरली, 13_अप्रैल_2025_मुरली, अव्यक्त_मुरली_हिंदी, नये_वर्ष_की_मुबारक, नवयुग, वैराग्य_वृत्ति, तीव्र_पुरुषार्थ, मुक्तिधाम, बाबा_का_संदेश, आध्यात्मिक_विचार, ब्रह्माकुमारिस_मधुबन, मुरली_हिंदी_2025, बापदादा_का_संदेश, आत्मिक_यात्रा, शुभ_भावना, शुभ_कामना, दाता_बनना, आत्म_परिवर्तन, जीवन_का_सच्चा_उद्देश्य, अव्यक्त_वरदान, ब्रह्मा_बाबा, विश्व_कल्याण, परमात्मा_मिलन, आध्यात्मिक_संदेश, परमात्मा_का_प्यार,
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