MURLI 18-08-2024/BRAHMAKUMARIS

शिव जयन्ती, व्रत लेने और सर्व समर्पण होने का यादगार है”

आज त्रिमूर्ति रचता शिव बाप अपने पूज्य सालिग्रामों से मिलने आये हैं। मिलना भी है तो आज मनाना भी है। आप सभी विश्व के चारों ओर से बापदादा की जयन्ती बड़े उमंग-उत्साह से मनाने के लिए पहुंचे हो। बच्चे कहते हैं बाप की जयन्ती मनाने आये हैं और बाप कहते हैं बच्चों की जयन्ती मनाने आये हैं। आप सब भी अपनी जयन्ती अलौकिक बर्थ डे मनाने के लिए आये हैं। सारे कल्प में ऐसा न्यारा और प्यारा बर्थ डे कभी होता नहीं है। सारे कल्प में देखा है, ऐसा बर्थ डे मनाया है, जो बाप का भी हो और साथ में बच्चों का भी हो? क्योंकि विश्व परिवर्तन के कार्य में शिव बाप ब्रह्मा दादा के साथ-साथ ब्राह्मण भी जरूर चाहिए। ब्राह्मणों के बिना यज्ञ सफल नहीं होता ह इसलिए बाप और बच्चों का इकट्ठा जन्म दिन है अर्थात् जयन्ती है। तो बच्चे दिल ही दिल में बाप को मुबारक दे रहे हैं और बाप हर ब्राह्मण बच्चे को अलौकिक जन्म की अरब-खरब से भी ज्यादा दिल की दुआओं के साथ मुबारक दे रहे हैं। तो मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो! (सभी ने हाथ हिलाया) बहुत अच्छा – एक हाथ की ताली अच्छी लगती है, दो हाथ की नहीं। बहुत खुशी है ना, तो हाथ रूकते नहीं हैं, चल पड़ते हैं।

दुनिया में भक्त लोग भी शिव जयन्ती बड़े धूमधाम से मनाते हैं। लेकिन वह मनाते हैं एक दिन का जागरण वा एक दिन का व्रत। आप बच्चों ने अज्ञान नींद से जागरण का संकल्प एक दिन के लिए नहीं किया है, जागरण वह भी करते लेकिन आपने एक संगम युग का हीरे तुल्य जन्म जागरण किया है और कर रहे हैं। जाग गये हैं ना, अभी फिर सोयेंगे तो नहीं ना! या थोड़ा-थोड़ा सा सो जायेंगे! अच्छा सोये नहीं तो थोड़ा झुटका खा लेंगे! यह जागरण ऐसा जागरण है जो स्वयं तो जाग जाते हैं लेकिन औरों को भी जगाते हैं। ज्ञान की जीवन में जागरण माना अन्धकार से रोशनी में आना। यह अलौकिक जागरण सभी को अच्छा लगता है ना! जब से जन्म लिया, जयन्ती मनाई तब से क्या-क्या व्रत लिया? याद है ना! बच्चे कहते हैं याद तो क्या, हमारी तो नेचुरल जीवन ही व्रत की हो गई। पवित्र आहार, पवित्र व्यवहार और पवित्र विचार यह जीवन बन गई। एक मास के लिए, दो मास के लिए नहीं, जीवन ही व्रत धारण करने वाली बन गई। नेचुरल बन गई और नेचर बन गई। पवित्रता की नेचर बन गई है ना! नेचर बन गई है या बनानी पड़ती है? बन गई है ना? सिर्फ कांध हिलाओ बस। बन गई? अपवित्रता नेचर से समाप्त हो गई और पवित्रता जीवन में समा गई। ऐसी हीरे तुल्य शिव जयन्ती वा सालिग्राम जयन्ती मना ली। चारों ओर के देश-विदेश के बच्चे भी साथ-साथ मना रहे हैं। बापदादा देख रहे हैं कि चारों ओर बाप साथ और आपके साथ वह भी कितने खुश हो रहे हैं।

आज के दिन विशेष भक्त लोग आपका यादगार बलि भी चढ़ाते हैं। आप सब मन-वचन-कर्म से बाप के आगे समर्पण होते हो, उसी का यादगार भक्त लोग अपने को बलि नहीं चढ़ाते, बकरे को बलि चढ़ा देते हैं। और कोई नहीं मिला, बकरा ही क्यों मिला? इसका भी रहस्य आप जानते हो, क्योंकि सबसे बड़े ते बड़ा देह-अभिमान का कारण है “मैं पन”। यह “मैं पन” जब अर्पण कर लेते हो तब ही ब्राह्मण बनते हो। तो बकरा भी क्या करता है? में, में… तो यह देह-अभिमान के मैं-पन की निशानी है और देह-अभिमान का मैं-पन बहुत सूक्ष्म भी है और भिन्न-भिन्न प्रकार का भी है। सबसे पहला मैं पन है – मैं शरीर हूँ, फलाना हूँ। फिर आगे चलो तो सम्बन्ध में फंसने का भी भिन्न-भिन्न मैं-पन है। और आगे चलो तो भिन्न-भिन्न पोजीशन का भी मैं-पन है। उससे भी सूक्ष्म अपनी विशेषता का मैं-पन ऊपर से नीचे ले आता। विशेषता हर एक में है, ऐसी कोई भी मनुष्य आत्मा नहीं है जिसमें चाहे स्थूल, चाहे सूक्ष्म कोई भी विशेषता न हो, यह नहीं। ज्ञानी जीवन में भी हर ब्राह्मण के अन्दर कम से कम एक विशेषता अवश्य है, लेकिन ज्ञानी जीवन में विशेषता परमात्म देन है, परमात्मा की सौगात है। जब परमात्मा की देन को देह-अभिमान वश मैं-पन में लाते हैं, मैं ऐसा हूँ, यह रॉयल अभिमान बड़े ते बड़ा मैं-पन है। तो समर्पण तो हुए ही हैं लेकिन आगे क्या देखना है?

टीचर्स सभी अपने को क्या कहती हैं? समर्पण हैं ना! टीचर्स सभी समर्पण हैं? अच्छा-प्रवृत्ति में रहने वाले समर्पण हैं? हाँ या ना? पाण्डव समर्पण हैं? बहुत अच्छा मुबारक हो। आगे क्या करना है? समर्पण तो हो गये, बहुत अच्छा। अभी आगे यह चेक करना है, बतायें क्या? आप कहेंगे समर्पण तो हैं ना फिर क्या करना है? तो एक है समर्पण और आगे है सर्व समर्पण। सर्व में विशेष अण्डरलाइन है अपने मन-बुद्धि-संस्कार सहित समर्पण क्योंकि जितना आगे बढ़ते हो, पुरुषार्थ में तीव्रगति से कदम उठाते हो और उठा भी रहे हो लेकिन वर्तमान वायुमण्डल प्रमाण ब्राह्मण जीवन में भी मन और बुद्धि के ऊपर व्यर्थ का प्रभाव, बुरा नहीं, बुरा खत्म हुआ लेकिन व्यर्थ और निगेटिव का प्रभाव ज्यादा है, इसलिए यथार्थ और सत्य निर्णय करने की महसूसता शक्ति कम हो जाती है। समझ से महसूसता होती है – हाँ यह रांग है, यह ठीक नहीं है लेकिन एक है विवेक से महसूसता, दूसरा है दिल से महसूसता। अगर दिल से कोई भी बात को महसूस कर लिया तो दुनिया बदल जाए लेकिन स्वयं नहीं बदलेगा। और संस्कार, पुराने 63 जन्मों के होने के कारण नेचुरल हो गये हैं, जिसको दूसरे शब्दों में कहते हो यह गलती नहीं है लेकिन मेरी नेचर है। तो पुराने संस्कार कुछ मिटते हैं, कुछ दब जाते हैं फिर निकल आते हैं। लेकिन सर्व समर्पण का अर्थ है – मन का भाव और भावना हर आत्मा के प्रति परिवर्तन हो जाए, जिसको बापदादा कहते हैं कैसी भी आत्मा हो, भिन्न-भिन्न तो होगी ही, कल्प वृक्ष है, वैरायटी नहीं हो तो शोभा नहीं लेकिन हर आत्मा के प्रति शुभ भावना और शुभ कामना। अशुभ भावना को भी परिवर्तन कर शुभ भावना रखना वा शुभ भावना देना। हर आत्मा के प्रति शुभ कामना, यह अवश्य बदलेंगे। ऐसा नहीं कि यह तो बदलना ही नहीं है, उसके प्रति जज बनके जजमेंट नहीं दो, यह बदलना ही नहीं है। जब चैलेन्ज की है कि प्रकृति को भी परिवर्तन कर सतोगुणी बनाना ही है, बनाना ही है। बनेगी, नहीं बनेंगी – क्वेश्चन नहीं, बनाना ही है। ही शब्द को अण्डरलाइन किया है। तो क्या प्रकृति बदल सकती है, आत्मा नहीं बदल सकती? आत्मा तो प्रकृति का पुरुष है। तो प्रकृति बदले पुरुष नहीं बदले क्यों? तो वर्तमान समय यह मन-बुद्धि-संस्कार स्व के परिवर्तन और सर्व के परिवर्तन – यही सेवा है।

सभी पूछते हैं – इस वर्ष में क्या करना है? तो डबल सेवा करनी है। एक तो स्व को सर्व समर्पण और इतना स्व को समर्पण करो जो आपका वायुमण्डल, आपका वायब्रेशन, आपका संग, आपका दिल का सहयोग, आपके दिल की दुआयें औरों को भी सहज परिवर्तन करने में सहयोग दें। इतना स्व परिवर्तन करना है। सर्व समर्पित करना है। एक यह सेवा और दूसरी है लोक सेवा, रिजल्ट में देखा है कि चारों ओर देश में, विदेश में, गांव में सभी ब्राह्मण बच्चों ने अब तक जो सेवा की है, बाप के मुहब्बत से की है, उसकी तो बापदादा बहुत-बहुत-बहुत मुबारक देते हैं। आगे क्या करना है?

बापदादा ने देखा जो ब्राह्मण बने हैं, ब्राह्मणों की भी वृद्धि है और भी तीव्रगति की वृद्धि होनी है। लेकिन साथ में जो लोक प्रिय सेवा की है, भिन्न-भिन्न प्रोजेक्ट द्वारा सेवा हो रही है, वह बहुत अच्छी है। अभी भिन्न-भिन्न स्थानों पर सहयोगी आत्मायें अच्छी निमित्त बनी हैं। सहयोगी तो बहुत अच्छे हैं, एक कदम सहयोग का है, एक पांव तो बढ़ाया है लेकिन दूसरा पांव है – सहजयोगी, कर्मयोगी। कर्मयोगी या सहजयोगी भी कुछ कुछ बन गये हैं, यह भी स्टेज दूसरी है। अभी ऐसी आत्मायें प्रैक्टिकल स्वरूप से स्टेज पर पार्ट बजायें। माइक स्टेज पर होता है ना! तो माइक बन सेवा की स्टेज पर प्रत्यक्ष स्वरूप में भी आयेंगे जरूर। आप माइट हो, वह माइक। जैसे ब्रह्मा बाप अव्यक्त रूप में माइट है, और आप बच्चों को माइक बनाया, ऐसे आप माइट बनो और ऐसे माइक तैयार करो। हैं, बहुत अच्छे-अच्छे, उम्मींदवार फास्ट जाने वाले हैं, सिर्फ अब और ऐसी आत्माओं के कनेक्शन को बढ़ाने की आवश्यकता है। वह चाहते हैं क्या करें, कैसे करें, उन्हों को माइट बन विधि ऐसी सुनाओ जो लौकिक आक्युपेशन और अलौकिक सेवा दोनों का बैलेन्स रखते हुए लास्ट सो फास्ट, फास्ट सो फर्स्ट के लाइन में आ जाएं। ऐसे हैं, प्रत्यक्ष होने हैं। सिर्फ कनेक्शन और करेन्ट दो, रूहानियत की करेन्ट, वायब्रेशन, वायुमण्डल की करेन्ट और विधि, जो निमित्त बनें कि बैलेन्स रखने वाली जीवन बहुत अच्छी और सहज है। ठीक है ना! क्या करना है, वह सुन लिया ना!

छोटा-छोटा गुलदस्ता तो तैयार करो। चलो बड़ा गुलदस्ता नहीं, 5 फूलों का, 10 फूलों का गुलदस्ता तो लाओ। और हर एक तरफ बापदादा की नज़रों में हैं। सुना! पाण्डव सुना? बहुत अच्छा।

डबल फारेनर्स जम्प नहीं लेकिन उड़ रहे हैं, तो पहला गुलदस्ता विदेश लायेगा या भारत लायेगा? कौन लायेगा? कि दोनों साथ में लायेंगे? एक तरफ से फारेन का, एक तरफ भारत का, दोनों गुलदस्ते स्टेज पर आयेंगे। जैसे यह सेरीमनी मनाते हैं तो वह भी सेरीमनी मनायेंगे, दोनों गुलदस्तों की, भारत की भी विदेश की भी। ठीक है? विदेश वाले क्या समझते हैं? ठीक है। तो दूसरी सीज़न में लायेंगे? लाना है? भारत वाले लायेंगे? लौकिक और अलौकिक आक्युपेशन के बैलेन्स वाले। आप जैसे सिर्फ ब्राह्मण जीवन वाले नहीं, लौकिक भी अलौकिक भी, उन्हों का प्रभाव ज्यादा होगा। आप लोगों से तो दृष्टि लेने आयेंगे। अच्छा – क्या सोच रही है, जयन्ती?

नाम सोच रही है क्या? यह निर्मला, मोहनी नाम सोच रहे हैं ना! यहाँ पाण्डव देखो, भारत के पाण्डव कोई कम हैं, सुभानअल्ला हैं। यह देखो, कुछ-कुछ तो बैठे भी हैं। यह ब्रायन सामने बैठा है ना! (आस्ट्रेलिया के ब्रायन भाई से) गुलदस्ता तैयार करना है ना! बहुत अच्छे-अच्छे क्या नाम देते हो, एन. सी. ओ., अच्छा। फारेन के एन. सी. ओ. वाले हाथ उठाओ। एन. सी. ओ. बनना सहज नहीं है, कमाल करना पड़ेगा। कर सकते हैं कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि धरनी तैयार है। बीज भी पड़ा हुआ है सिर्फ पालना का पानी देना है। अभी बीज को पालना का पानी चाहिए। अच्छा।

टीचर्स भी बहुत आई हैं। टीचर्स को भी मुबारक हैं। आपने ही तो सेवा की है ना! तो सेवा की मुबारक। अच्छा। गुजरात का क्या हाल है? (गुजरात में बहुत बड़ा भूकम्प आया है) हलचल गुजरात से शुरू हुई है। ज्यादा हलचल गुजरात और विदेश में भी थोड़ा-थोड़ा शुरू है। डरते तो नहीं हो ना! धरनी तो हिलती है लेकिन दिल तो नहीं हिलती है ना! जहाँ धरनी हिली है, नुकसान हुआ है वहाँ से जो आये हैं वह उठो। अहमदाबाद वाले भी उठो। अच्छा। दिल हिली कि धरनी हिली? क्या हुआ? दिल में थोड़ा ऐसा-ऐसा हुआ? नहीं हुआ! बहादुर हैं। बापदादा ने देखा कि बच्चों ने अपने हिम्मत और बाप की छत्रछाया से अच्छा अपना रिकार्ड रखा। कोई फेल नहीं हुआ, सब पास हो गये, कोई थोड़ा, कोई ज्यादा। नम्बरवार तो सब होता ही है हर जगह। लेकिन पास हैं। मुबारक हैं। सबसे ज्यादा नाज़ुक स्थान से कौन आये हैं? (एक भुज की और एक भचाऊ की बहन आई है) अच्छा, भुज में आप तो हजार भुजाओं वालों के साथ थे। अच्छा, पेपर में पास। बहुत अच्छा किया। आगे भी हिलना नहीं। अभी तो होता रहेगा। घबराना नहीं। (रोज़ होता है) होने दो। देखो परिवर्तन तो होना है ना! तो प्रकृति भी अपना काम तो करेगी ना! जब मनुष्य आत्माओं ने प्रकृति को तमोगुणी बना दिया, तो वह अपना काम तो करेगी ना। लेकिन हर खेल, ड्रामा के खेल में यह भी खेल है। खेल को देखते हुए अपनी अवस्था नीचे ऊपर नहीं करना। मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं की स्व-स्थिति पर पर-स्थिति प्रभाव नहीं डाले। और ही आत्माओं को मानसिक परेशानियों से छुड़ाने के निमित्त बनो क्योंकि मन की परेशानी आप मेडीटेशन से ही मिटा सकते हो। डाक्टर्स अपना काम करेंगे, साइन्स वाले अपना काम करेंगे, गवर्मेन्ट अपना काम करेगी, आपका काम है मन के परेशानी, टेन्शन को मिटाना। टेन्शन फ्री जीवन का दान देना। सहयोग देना। जैसे वर्तमान समय देश विदेश वाले सहयोगी बन सहयोग दे रहे हैं ना! यह बहुत अच्छा कर रहे हैं। इससे सिद्ध होता है कि चाहे विदेश हो, चाहे कोई भी हो लेकिन भारत देश से प्यार है। हर एक अपना-अपना कार्य तो कर रहे हैं, आप अपना कर रहे हैं। जैसे आग लगती है तो आग बुझाने वाले डरते नहीं हैं, बुझाते हैं। तो आप सब भी मन के परेशानी की आग बुझाने वाले हो। अच्छा।

तो गुजरात मजबूत है ना! हजार भुजाओं की छत्रछाया में हो। कहाँ भी आये, अभी तो गुजरात को देखकर अनुभवी हो गये हो ना। कहाँ भी आये। देखो प्रकृति को कोई मना नहीं कर सकता है, गुजरात में आओ, आबू में नहीं आओ, बाम्बे में नहीं आओ, नहीं। वह स्वतन्त्र है। लेकिन सभी को अपने स्व-स्थिति को अचल-अडोल और अपने बुद्धि को, मन के लाइन को क्लीयर रखना है। लाइन क्लीयर होगी तो टचिंग होगी। बापदादा ने पहले भी कहा था उन्हों की वायरलेस है, आपकी वाइसलेस बुद्धि है। क्या करना है, क्या होना है, यह निर्णय स्पष्ट और शीघ्र होगा। ऐसे नहीं सोचते रहो बाहर निकलें, अन्दर बैठें, दरवाजे पर बैठें, छत पर बैठें। नहीं। आपके पांव वहाँ ही चलेंगे जहाँ सेफ्टी होगी। और अगर बहुत घबरा जाओ, घबराना तो नहीं चाहिए, लेकिन बहुत घबरा जाओ, बहुत डर लगे तो मधुबन एशलम घर आपका है। डरना नहीं। अभी तो कुछ नहीं है, अभी तो सब कुछ होना है, डरना नहीं, खेल है। परिवर्तन होना है ना। विनाश नहीं, परिवर्तन होना है। सबमें वैराग्य वृत्ति उत्पन्न होनी है। रहमदिल बन सर्व शक्तियों द्वारा सकाश दे रहम करो। समझा! अच्छा।

अभी एक सेकण्ड में मन और बुद्धि को एकाग्र कर सकते हो? स्टॉप, बस स्टॉप हो जाए। अभी एक सेकण्ड के लिए मन और बुद्धि को एकदम एकाग्र बिन्दु, बिन्दु में समा जाओ। अच्छा। (बापदादा ने ड्रिल कराई)

चारों ओर के सर्व श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माओं को, चारों ओर के सदा दृढ़ संकल्प का व्रत रखने वाले अचल आत्माओं को, चारों ओर के सर्व हिम्मत-हुल्लास से स्व सेवा और लोक कल्याण की सेवा करने वाले महान सेवाधारी आत्माओं को, आज के शिव जयन्ती की, हीरे तुल्य जयन्ती की, न्यारी और प्यारी जयन्ती की मुबारक हो, और दुआओं के साथ यादप्यार और नमस्ते।

वरदान:- बाप के स्नेह को दिल में धारण कर सर्व आकर्षणों से मुक्त रहने वाले सच्चे स्नेही भव
बाप सभी बच्चों को एक जैसा स्नेह देते हैं लेकिन बच्चे अपनी शक्ति अनुसार स्नेह को धारण करते हैं। जो अमृतवेले के आदि समय पर बाप के स्नेह को धारण कर लेते हैं, तो दिल में परमात्म स्नेह समाया होने के कारण और कोई स्नेह उन्हें आकर्षित नहीं करता। अगर दिल में पूरा स्नेह धारण नहीं करते तो दिल में जगह होने के कारण माया भिन्न-भिन्न रूप से अनेक स्नेह में आकर्षित कर लेती है इसलिए सच्चे स्नेही बन परमात्म प्यार से भरपूर रहो।
स्लोगन:- देह, देह की पुरानी दुनिया और सम्बन्धों से ऊपर उड़ने वाले ही इन्द्रप्रस्थ निवासी हैं।

 

सूचनाः- आज मास का तीसरा रविवार अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस है, सभी ब्रह्मा वत्स संगठित रूप में सायं 6.30 से 7.30 बजे तक विशेष रहमदिल बाप के साथ अपने मास्टर रहमदिल स्वरूप में स्थित हो, सर्व आत्माओं को पवित्रता का बल दें। पवित्र वायब्रेशन वायुमण्डल में फैलाने की सेवा करें।

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