MURLI 14-02-2025/BRAHMAKUMARIS

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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14-02-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम्हें श्रीमत मिली है कि आत्म-अभिमानी बन बाप को याद करो, किसी भी बात में तुम्हें आरग्यु नहीं करना है”
प्रश्नः- बुद्धियोग स्वच्छ बन बाप से लग सके, उसकी युक्ति कौन-सी रची हुई है?
उत्तर:- 7 दिन की भट्ठी। कोई भी नया आता है तो उसे 7 दिन के लिए भट्ठी में बिठाओ जिससे बुद्धि का किचड़ा निकले और गुप्त बाप, गुप्त पढ़ाई और गुप्त वर्से को पहचान सके। अगर ऐसे ही बैठ गये तो मूंझ जायेंगे, समझेंगे कुछ नहीं।
गीत:- जाग सजनियां जाग……

ओम् शान्ति। बच्चों को ज्ञानी तू आत्मा बनाने के लिए ऐसे-ऐसे जो गीत हैं वह सुनाकर फिर उसका अर्थ करना चाहिए तो वाणी खुलेगी। मालूम पड़ेगा कि कहाँ तक सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान बुद्धि में है। तुम बच्चों की बुद्धि में तो ऊपर से लेकर मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन के आदि-मध्य-अन्त का सारा राज़ जैसेकि चमकता है। बाप के पास भी यह ज्ञान है जो तुमको सुनाते हैं। यह है बिल्कुल नया ज्ञान। भल शास्त्र आदि में नाम है परन्तु वह नाम लेने से अटक पड़ेंगे, डिबेट करने लग पड़ेंगे। यहाँ तो बिल्कुल सिम्पुल रीति समझाते हैं – भगवानुवाच, मुझे याद करो, मैं ही पतित-पावन हूँ। कभी भी श्रीकृष्ण को वा ब्रह्मा, विष्णु, शंकर आदि को पतित-पावन नहीं कहेंगे। सूक्ष्मवतनवासियों को भी तुम पतित-पावन नहीं कहते हो तो स्थूलवतन के मनुष्य पतित-पावन कैसे हो सकते? यह ज्ञान भी तुम्हारी बुद्धि में ही है। शास्त्रों के बारे में जास्ती आरग्यु करना अच्छा नहीं है। बहुत वाद-विवाद हो जाता है। एक-दो को लाठियाँ भी मारने लग पड़ते हैं। तुमको तो बहुत सहज समझाया जाता है। शास्त्रों की बातों में टू मच नहीं जाना है। मूल बात है ही आत्म-अभिमानी बनने की। अपने को आत्मा समझना है और बाप को याद करना है। यह श्रीमत है मुख्य। बाकी है डिटेल। बीज कितना छोटा है, बाकी झाड़ का विस्तार है। जैसे बीज में सारा ज्ञान समाया हुआ है वैसे यह सारा ज्ञान भी बीज में समाया हुआ है। तुम्हारी बुद्धि में बीज और झाड़ आ गया है। जिस प्रकार तुम जानते हो और कोई समझ न सके। झाड़ की आयु ही लम्बी लिख दी है। बाप बैठ बीज और झाड़ वा ड्रामा चक्र का राज़ समझाते हैं। तुम हो स्वदर्शन चक्रधारी। कोई नया आये, बाबा महिमा करे कि स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों, तो कोई समझ न सके। वह तो अपने को बच्चे ही नहीं समझते हैं। यह बाप भी गुप्त है तो नॉलेज भी गुप्त है, वर्सा भी गुप्त है। नया कोई भी सुनकर मूँझ पड़ेंगे इसलिये 7 दिन की भट्ठी में बिठाया जाता है। यह जो 7 रोज भागवत वा रामायण आदि रखते हैं, वास्तव में यह इस समय 7 दिन के लिए भट्ठी में रखा जाता है तो बुद्धि में जो भी सारा किचड़ा है वह निकालें और बाप से बुद्धियोग लग जाए। यहाँ सब हैं रोगी। सतयुग में यह रोग होते नहीं। यह आधाकल्प का रोग है, 5 विकारों का रोग बड़ा भारी है। वहाँ तो देही-अभिमानी रहते हैं, जानते हो हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हैं। पहले से साक्षात्कार हो जाता है। अकाले मृत्यु कभी होता नहीं। तुमको काल पर जीत पहनाई जाती है। काल-काल महाकाल कहते हैं। महाकाल का भी मन्दिर होता है। सिक्ख लोगों का फिर अकालतख्त है। वास्तव में अकाल तख्त यह भृकुटी है, जहाँ आत्मा विराजमान होती है। सभी आत्मायें इस अकालतख्त पर बैठी हैं। यह बाप बैठ समझाते हैं। बाप को अपना तख्त तो है नहीं। वह आकर इनका यह तख्त लेते हैं। इस तख्त पर बैठकर तुम बच्चों को ताउसी तख्त नशीन बनाते हैं। तुम जानते हो वह ताउसी तख्त कैसा होगा जिस पर लक्ष्मी-नारायण विराजमान होते होंगे। ताउसी तख्त तो गाया हुआ है ना।

विचार करना है, उनको भोलानाथ भगवान क्यों कहा जाता है? भोलानाथ भगवान कहने से बुद्धि ऊपर चली जाती है। साधू-सन्त आदि अंगुली से इशारा भी ऐसे देते हैं ना कि उनको याद करो। यथार्थ रीति तो कोई जान नहीं सकते। अभी पतित-पावन बाप सम्मुख में आकर कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जाएं। गैरन्टी है। गीता में भी लिखा हुआ है परन्तु तुम गीता का एक मिसाल निकालेंगे तो वह 10 निकालेंगे, इसलिए दरकार नहीं है। जो शास्त्र आदि पढ़े हुए हैं वह समझेंगे हम लड़ सकेंगे। तुम बच्चे जो इन शास्त्रों आदि को जानते ही नहीं हो, तुम्हें उनका कभी नाम भी नहीं लेना चाहिए। सिर्फ बोलो भगवान कहते हैं मुझ अपने बाप को याद करो, उनको ही पतित-पावन कहा जाता है। गाते भी हैं पतित-पावन सीताराम……. संन्यासी लोग भी जहाँ-तहाँ धुन लगाते रहते हैं। ऐसे मत-मतान्तर तो बहुत हैं ना। यह गीत कितना सुन्दर है, ड्रामा प्लैन अनुसार कल्प-कल्प ऐसे गीत बनते हैं, जैसेकि तुम बच्चों के लिए ही बनाये हुए हैं। ऐसे-ऐसे अच्छे-अच्छे गीत हैं। जैसे नयनहीन को राह दिखाओ प्रभू। प्रभू कोई श्रीकृष्ण को थोड़ेही कहते हैं। प्रभू वा ईश्वर निराकार को ही कहेंगे। यहाँ तुम कहते हो बाबा, परमपिता परमात्मा है। है तो वह भी आत्मा ना। भक्ति मार्ग में बहुत टू मच चले गये हैं। यहाँ तो बिल्कुल सिम्पुल बात है। अल्फ और बे। अल्फ अल्लाह, बे बादशाही – इतनी तो सिम्पुल बात है। बाप को याद करो तो तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे। बरोबर यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक, सम्पूर्ण निर्विकारी थे। तो बाप को याद करने से ही तुम ऐसा सम्पूर्ण बनेंगे। जितना जो याद करते हैं और सर्विस करते हैं उतना वह ऊंच पद पाते हैं। वह समझ में भी आता है, स्कूल में स्टूडेन्ट समझते नहीं हैं क्या कि हम कम पढ़ते हैं! जो पूरा अटेन्शन नहीं देते हैं तो पिछाड़ी में बैठे रहते हैं, तो जरूर फेल हो जायेंगे।

अपने आपको रिफ्रेश करने के लिए ज्ञान के जो अच्छे-अच्छे गीत बने हुए हैं उन्हें सुनना चाहिए। ऐसे-ऐसे गीत अपने घर में रखने चाहिए। किसको इस पर समझा भी सकेंगे। कैसे माया का फिर से परछाया पड़ता है। शास्त्रों में तो यह बातें हैं नहीं कि कल्प की आयु 5 हज़ार वर्ष है। ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात आधा-आधा है। यह गीत भी कोई ने तो बनवाये हैं। बाप बुद्धिवानों की बुद्धि है तो कोई की बुद्धि में आया है जो बैठ बनाया है। इन गीतों आदि पर भी तुम्हारे पास कितने ध्यान में जाते थे। एक दिन आयेगा जो इस ज्ञान के गीत गाने वाले भी तुम्हारे पास आयेंगे। बाप की महिमा में ऐसा गीत गायेंगे जो घायल कर देंगे। ऐसे-ऐसे आयेंगे। ट्यून पर भी मदार रहता है। गायन विद्या का भी बहुत नाम है। अभी तो ऐसा कोई है नहीं। सिर्फ एक गीत बनाया था कितना मीठा कितना प्यारा…… बाप बहुत ही मीठा बहुत ही प्यारा है तब तो सब उनको याद करते हैं। ऐसे नहीं कि देवतायें उनको याद करते हैं। चित्रों में राम के आगे भी शिव दिखाया है, राम पूजा कर रहा है। यह है रांग। देवतायें थोड़ेही किसको याद करते हैं। याद मनुष्य करते हैं। तुम भी अभी मनुष्य हो फिर देवता बनेंगे। देवता और मनुष्य में रात-दिन का फर्क है। वही देवतायें फिर मनुष्य बनते हैं। कैसे चक्र फिरता रहता है, किसको भी पता नहीं है। तुमको अभी पता पड़ा है कि हम सच-सच देवता बनते हैं। अभी हम ब्राह्मण हैं, नई दुनिया में देवता कहलायेंगे। अभी तुम वन्डर खाते हो। यह ब्रह्मा खुद ही जो इस जन्म में पहले पुजारी था, श्री नारायण की महिमा गाते थे, नारायण से बड़ा प्रेम था। अब वन्डर लगता है, हम सो बन रहे हैं। तो कितना खुशी का पारा चढ़ना चाहिए। तुम हो अननोन वारियर्स, नान वायोलेन्स। सचमुच तुम डबल अहिंसक हो। न काम कटारी, न वह लड़ाई। काम अलग है, क्रोध अलग चीज़ है। तो तुम हो डबल अहिंसक। नान वायोलेन्स सेना। सेना अक्षर से उन्होंने फिर सेनायें खड़ी कर दी हैं। महाभारत लड़ाई में मेल्स के नाम दिखाये हैं। फीमेल्स नहीं हैं। वास्तव में तुम हो शिव शक्तियां। मैजारिटी तुम्हारी होने कारण शिव शक्ति सेना कहा जाता है। यह बातें बाप ही बैठ समझाते हैं।

अभी तुम बच्चे नवयुग को याद करते हो। दुनिया में कोई को भी नवयुग का मालूम नहीं है। वह तो समझते हैं नवयुग 40 हज़ार वर्ष बाद आयेगा। सतयुग नवयुग है, यह तो बड़ा क्लीयर है। तो बाबा राय देते हैं ऐसे-ऐसे अच्छे गीत भी सुनकर रिफ्रेश होंगे और किसको समझायेंगे भी। यह सब युक्तियां हैं। इनका अर्थ भी सिर्फ तुम ही समझ सकते हो। बहुत अच्छे-अच्छे गीत हैं अपने को रिफ्रेश करने के लिए। यह गीत बहुत मदद करते हैं। अर्थ करना चाहिए तो मुख भी खुल जायेगा, खुशी भी होगी। बाकी जो जास्ती धारणा नहीं कर सकते हैं उनके लिए बाप कहते हैं घर बैठे बाप को याद करते रहो। गृहस्थ व्यवहार में रहते सिर्फ यह मन्त्र याद रखो – बाप को याद करो और पवित्र बनो। आगे पुरूष लोग पत्नी को कहते थे भगवान को तो घर में भी याद कर सकते हैं फिर मन्दिरों आदि में भटकने की क्या दरकार है? हम तुमको घर में मूर्ति दे देते हैं, यहाँ बैठ याद करो, धक्का खाने क्यों जाती हो? ऐसे बहुत पुरूष लोग स्त्रियों को जाने नहीं देते थे। चीज़ तो एक ही है, पूजा करना है और याद करना है। जबकि एक बार देख लिया फिर तो ऐसे भी याद कर सकते हैं। श्रीकृष्ण का चित्र तो कॉमन है – मोरमुकुटधारी। तुम बच्चों ने साक्षात्कार किया है – कैसे वहाँ जन्म होता है, वह भी साक्षात्कार किया है, परन्तु क्या तुम उसका फ़ोटो निकाल सकते हो? एक्यूरेट कोई निकाल न सके। दिव्य दृष्टि से सिर्फ देख ही सकते हैं, बना नहीं सकते, हाँ देखकर वर्णन कर सकते हो, बाकी वह पेन्ट आदि नहीं कर सकते। भल होशियार पेन्टर हो, साक्षात्कार भी करे तो भी एक्यूरेट फीचर्स निकाल न सके। तो बाबा ने समझाया, कोई से आरग्यु जास्ती नहीं करना है। बोलो, तुमको पावन बनने से काम। और शान्ति मांगते हो तो बाप को याद करो और पवित्र बनो। पवित्र आत्मा यहाँ रह न सके। वह चली जायेगी वापिस। आत्माओं को पावन बनाने की शक्ति एक बाप में है, और कोई पावन बना नहीं सकता। तुम बच्चे जानते हो यह सारी स्टेज है, इस पर नाटक होता है। इस समय सारी स्टेज पर रावण का राज्य है। सारे समुद्र पर सृष्टि खड़ी है। यह बेहद का टापू है। वह हैं हद के। यह है बेहद की बात। जिस पर आधाकल्प दैवी राज्य, आधाकल्प आसुरी राज्य होता है। यूँ खण्ड तो अलग-अलग हैं, परन्तु यह है सारी बेहद की बात। तुम जानते हो हम गंगा जमुना नदी के मीठे पानी के कण्ठे पर ही होंगे। समुद्र आदि पर जाने की दरकार नहीं रहती। यह जो द्वारिका कहते हैं, वह कोई समुद्र के बीच होती नहीं है। द्वारिका कोई दूसरी चीज़ नहीं है। तुम बच्चों ने सब साक्षात्कार किये हैं। शुरू में यह सन्देशी और गुल्जार बहुत साक्षात्कार करती थी। इन्हों ने बड़े पार्ट बजाये हैं क्योंकि भट्ठी में बच्चों को बहलाना था। तो साक्षात्कार से बहुत-बहुत बहले हैं। बाप कहते हैं फिर पिछाड़ी में बहुत बहलेंगे। वह पार्ट फिर और है। गीत भी है ना – हमने जो देखा सो तुमने नहीं देखा। तुम जल्दी-जल्दी साक्षात्कार करते रहेंगे। जैसे इम्तहान के दिन नज़दीक होते हैं तो मालूम पड़ जाता है कि हम कितने मार्क्स से पास होंगे। तुम्हारी भी यह पढ़ाई है। अभी तुम जैसे नॉलेजफुल हो बैठे हो। सभी फुल तो नहीं होते हैं। स्कूल में हमेशा नम्बरवार होते हैं। यह भी नॉलेज है – मूलवतन, सूक्ष्मवतन, तीनों लोकों का तुमको ज्ञान है। इस सृष्टि के चक्र को तुम जानते हो, यह फिरता रहता है। बाप कहते हैं तुमको जो नॉलेज दी है, यह और कोई समझा न सके। तुम्हारे पर है बेहद की दशा। कोई पर बृहस्पति की दशा, कोई पर राहू की दशा होती है तो जाकर चण्डाल आदि बनेंगे। यह है बेहद की दशा, वह होती है हद की दशा। बेहद का बाप बेहद की बातें सुनाते हैं, बेहद का वर्सा देते हैं। तुम बच्चों को कितनी न खुशी होनी चाहिए। तुमने अनेक बार बादशाही ली है और गँवाई है, यह तो बिल्कुल पक्की बात है। नथिंग न्यु, तब तुम सदैव हर्षित रह सकेंगे। नहीं तो माया घुटका खिलाती है।

तो तुम सभी आशिक हो एक माशूक के। सब आशिक उस एक माशूक को ही याद करते हैं। वह आकर सभी को सुख देते हैं। आधाकल्प उनको याद किया है, अब वह मिला है तो कितनी खुशी होनी चाहिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) सदैव हर्षित रहने के लिए नथिंगन्यु का पाठ पक्का करना है। बेहद का बाप हमें बेहद की बादशाही दे रहे हैं – इस खुशी में रहना है।

2) ज्ञान के अच्छे-अच्छे गीत सुनकर स्वयं को रिफ्रेश करना है। उनका अर्थ निकालकर दूसरों को सुनाना है।

वरदान:- माया के सम्बन्धों को डायवोर्स दे बाप के सम्बन्ध से सौदा करने वाले मायाजीत, मोहजीत भव
अब स्मृति से पुराना सौदा कैन्सिल कर सिंगल बनो। आपस में एक दो के सहयोगी भल रहो लेकिन कम्पेनियन नहीं। कम्पेनियन एक को बनाओ तो माया के सम्बन्धों से डायवोर्स हो जायेगा। मायाजीत, मोहजीत विजयी रहेंगे। अगर जरा भी किसी में मोह होगा तो तीव्र पुरूषार्थी के बजाए पुरूषार्थी बन जायेंगे इसलिए क्या भी हो, कुछ भी हो खुशी में नाचते रहो, मिरूआ मौत मलूका शिकार – इसको कहते हैं नष्टोमोहा। ऐसा नष्टोमोहा रहने वाले ही विजय माला के दाने बनते हैं।
स्लोगन:- सत्यता की विशेषता से डायमण्ड की चमक को बढ़ाओ।

 

अव्यक्त-इशारे:- एकान्तप्रिय बनो एकता और एकाग्रता को अपनाओ

बापदादा चाहते हैं कि हर बच्चा एकरस श्रेष्ठ स्थिति के आसनधारी, एकान्तवासी, अशरीरी, एकता स्थापक, एकनामी, एकॉनामी का अवतार बने। एक दो के विचारों को समझ, सम्मान दे, एक दो को इशारा दे, लेन-देन कर आपस में संगठन की शक्ति का स्वरूप प्रत्यक्ष करे क्योंकि आपके संगठन के एकता की शक्ति सारे ब्राह्मण परिवार को संगठन में लाने के निमित्त बनेगी।

मीठे बच्चे – तुम्हें श्रीमत मिली है कि आत्म-अभिमानी बन बाप को याद करो, किसी भी बात में तुम्हें आरग्यु नहीं करना है

प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: बुद्धियोग स्वच्छ बनाने के लिए कौन-सी विशेष युक्ति अपनाई गई है?
उत्तर: 7 दिन की भट्ठी। कोई भी नया आता है तो उसे 7 दिन तक भट्ठी में रखा जाता है, जिससे उसकी बुद्धि का किचड़ा निकल जाए और वह गुप्त बाप, गुप्त पढ़ाई और गुप्त वर्से को पहचान सके।

प्रश्न 2: आत्म-अभिमानी बनने की मुख्य विधि क्या है?
उत्तर: आत्म-अभिमानी बनने की मुख्य विधि है – अपने को आत्मा समझकर बाप को याद करना। यही मुख्य श्रीमत है, बाकी सारी बातें विस्तार हैं।

प्रश्न 3: स्वदर्शन चक्रधारी कौन होते हैं?
उत्तर: वे बच्चे जो बाप द्वारा दिए गए ज्ञान से सृष्टि के आदि, मध्य और अंत को समझते हैं और आत्म-अभिमानी रहते हैं, वे स्वदर्शन चक्रधारी कहलाते हैं।

प्रश्न 4: नया व्यक्ति ज्ञान सुनकर क्यों मूंझ सकता है?
उत्तर: क्योंकि बाप, नॉलेज और वर्सा – तीनों ही गुप्त हैं। यदि कोई बिना 7 दिन की भट्ठी में रहे ज्ञान सुनता है, तो वह डिबेट करने लगेगा और सटीक समझ नहीं पाएगा।

प्रश्न 5: सतयुग में रोग क्यों नहीं होते?
उत्तर: सतयुग में आत्माएँ देही-अभिमानी होती हैं और कोई विकार नहीं होता, इसलिए वहाँ कोई शारीरिक या मानसिक रोग नहीं होते।

प्रश्न 6: अकाल तख्त का वास्तविक अर्थ क्या है?
उत्तर: अकाल तख्त आत्मा का वह स्थान है, जहाँ वह भृकुटि के मध्य विराजमान रहती है। सभी आत्माएँ इस अकाल तख्त पर स्थित हैं, इसलिए इसे अकाल तख्त कहा जाता है।

प्रश्न 7: ‘बाप की बड़ाई करने से लड़ाई बंद’ – इसका क्या अर्थ है?
उत्तर: यदि कोई बुराई समाप्त करनी हो, तो बाप की बड़ाई करनी चाहिए। बड़ाई से आत्मा की स्थिति ऊँची हो जाती है और माया से लड़ने की जरूरत नहीं रहती, क्योंकि आत्मा स्वाभाविक रूप से शक्तिशाली बन जाती है।

प्रश्न 8: माया से बचने के लिए कौन-से दो प्रमुख उपाय हैं?
उत्तर:

  1. अपनी आत्मिक शान में स्थित रहना।
  2. माया को खेल समझकर सदा खुशी में रहना।

प्रश्न 9: “आधारमूर्त” और “उद्धारमूर्त” बनने का क्या अर्थ है?
उत्तर:

  • आधारमूर्त – जो स्वयं को विश्व-परिवर्तन का आधार समझकर श्रेष्ठ कर्म करता है।
  • उद्धारमूर्त – जो हर आत्मा के प्रति कल्याण की भावना रखता है और सेवा के माध्यम से उद्धार करता है।

प्रश्न 10: “नथिंग न्यू” का पाठ क्यों पक्का करना चाहिए?
उत्तर: ताकि हमें यह स्मृति बनी रहे कि हमने अनेक बार बाप से वर्सा लिया है और फिर गँवाया है। इस स्मृति से हम सदा हर्षित रह सकते हैं और माया का प्रभाव नहीं होगा।

प्रश्न 11: नॉन-वायलेंस सेना किसे कहा जाता है?
उत्तर: ब्राह्मण बच्चों को, क्योंकि वे न केवल शारीरिक हिंसा से दूर रहते हैं, बल्कि काम-विकार को भी जीतते हैं। इसीलिए वे “डबल अहिंसक” अर्थात् नॉन-वायलेंस सेना कहलाते हैं।

प्रश्न 12: आत्माओं को पावन बनाने की शक्ति किसके पास है?
उत्तर: केवल बाप के पास। कोई भी अन्य आत्मा किसी को पावन नहीं बना सकती।

प्रश्न 13: ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात आधा-आधा कैसे होते हैं?
उत्तर: आधा कल्प देवताओं का राज्य (ब्रह्मा का दिन) होता है, और आधा कल्प रावण राज्य (ब्रह्मा की रात) चलता है।

प्रश्न 14: नवयुग (सतयुग) के बारे में दुनिया की क्या भ्रांतियाँ हैं?
उत्तर: दुनिया यह मानती है कि नवयुग (सतयुग) 40,000 वर्ष बाद आएगा, जबकि वास्तव में यह संगमयुग के तुरंत बाद आता है।

प्रश्न 15: बापदादा की विशेष इच्छा क्या है?
उत्तर: कि हर बच्चा एकरस श्रेष्ठ स्थिति का आसनधारी, एकान्तवासी, एकनामी, एकनामी का अवतार बने और संगठन में एकता की शक्ति प्रकट करे।

निष्कर्ष:बापदादा हमें सरल विधि बताते हैं – आत्मा बनकर बाप को याद करना और पवित्र रहना। किसी भी प्रकार की बहस, वाद-विवाद में नहीं पड़ना है। ज्ञान के गीत सुनकर स्वयं को रिफ्रेश करना है और सेवा में तत्पर रहना है।

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