Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
15-05-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
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मधुबन |
“मीठे बच्चे – अपना स्वभाव बाप समान इज़ी बनाओ, तुम्हारे में कोई घमण्ड नहीं होना चाहिए, ज्ञानयुक्त बुद्धि हो, अभिमान न हो” | |
प्रश्नः- | सर्विस करते हुए भी कई बच्चे बेबी से भी बेबी हैं – कैसे? |
उत्तर:- | कई बच्चे सर्विस करते रहते हैं, दूसरों को ज्ञान सुनाते रहते हैं लेकिन बाप को याद नहीं करते। कहते हैं बाबा याद भूल जाती है। तो बाबा उन्हें बेबी से भी बेबी कहता क्योंकि बच्चे कभी बाप को भूलते नहीं, तुम्हें जो बाप प्रिन्स-प्रिन्सेज़ बनाता, उसे तुम भूल क्यों जाते? अगर भूलेंगे तो वर्सा कैसे मिलेगा। तुम्हें हाथों से काम करते भी बाप को याद करना है। |
ओम् शान्ति। पढ़ाई की एम ऑब्जेक्ट तो बच्चों के सामने है। बच्चे यह भी जानते हैं कि बाप साधारण तन में हैं, सो भी बूढ़ा तन है। वहाँ तो भल बूढ़े होते हैं तो भी खुशी रहती है कि हम बच्चा बनेंगे। तो यह भी जानते हैं, इनको यह खुशी है कि हम यह बनने वाले हैं। बच्चे जैसी चलन हो जाती है। बच्चों मिसल इज़ी रहते हैं। घमण्ड आदि कुछ नहीं। ज्ञान की बुद्धि है। जैसे इनकी है वही तुम बच्चों की होनी चाहिए। बाबा हमको पढ़ाने आये हैं, हम यह बनेंगे। तो तुम बच्चों को यह खुशी अन्दर में होनी चाहिए ना – हम यह शरीर छोड़ जाकर यह बनेंगे। राजयोग सीख रहे हैं। छोटे बच्चे अथवा बड़े, सब शरीर छोड़ेगे। सबके लिए पढ़ाई एक ही है। यह भी कहते हैं हम राजयोग सीखते हैं। फिर हम जाकर प्रिन्स बनेंगे। तुम भी कहते हो हम प्रिन्स-प्रिन्सेज़ बनेंगे। तुम पढ़ रहे हो प्रिन्स-प्रिन्सेज बनने के लिए। अन्त मती सो गति हो जायेगी। बुद्धि में यह निश्चय है हम बेगर से प्रिन्स बनने वाले हैं। यह बेगर दुनिया ही खत्म होनी है। बच्चों को बहुत खुशी रहनी चाहिए। बाबा बच्चों को भी आपसमान बनाते हैं। शिवबाबा कहते हैं हमको तो प्रिन्स-प्रिन्सेज़ बनना नहीं है। यह बाबा कहते हैं हमको तो बनना है ना। हम पढ़ रहे हैं, यह बनने के लिए। राजयोग है ना। बच्चे भी कहते हैं हम प्रिन्स-प्रिन्सेज बनेंगे। बाप कहते हैं बिल्कुल ठीक है। तुम्हारे मुख में गुलाब। यह इम्तहान है भी प्रिन्स-प्रिन्सेज बनने का। नॉलेज तो बड़ी सहज है। बाप को याद करना है और भविष्य वर्से को याद करना है। इस याद करने में ही मेहनत है। इस याद में रहेंगे तो फिर अन्त मती सो गति हो जायेगी। सन्यासी लोग मिसाल देते हैं, कोई कहते भैंस हूँ….. तो सचमुच समझने लगा। वह हैं सब फालतू बातें। यहाँ तो रिलीजन की बात है। तो बाप बच्चों को समझाते हैं ज्ञान तो बड़ा सहज है, परन्तु याद में मेहनत है। बाबा अक्सर कहते हैं – तुम तो बेबी हो। तो बच्चों के उल्हनें आते हैं, हम बेबी हैं? बाबा कहते – हाँ, बेबी हो। भल ज्ञान तो बहुत अच्छा है, प्रदर्शनी में सर्विस बहुत अच्छी करते हो, रात-दिन सर्विस में लग जाते हो फिर भी बेबी कह देता हूँ। बाप कहते हैं यह (ब्रह्मा) भी बेबी है। यह बाबा कहते हैं तुम हमारे से भी बड़े हो, इनके ऊपर तो बहुत मामले हैं। जिनके माथे मामला…… सब ख्यालात रहती हैं। कितने समाचार बाबा के पास आते हैं इसलिए फिर सुबह को बैठ याद करने की कोशिश करते हैं। वर्सा तो उनसे ही पाना है। तो बाप को याद करना है। सब बच्चों को रोज़ समझाता हूँ। मीठे बच्चों, तुम याद की यात्रा में बहुत कमजोर हो। ज्ञान में तो भल अच्छे हो परन्तु हर एक अपने दिल से पूछे – मैं बाबा की याद में कितना रहता हूँ? अच्छा, दिन में बहुत काम आदि में बिज़ी रहते हो, यूँ तो काम करते भी याद में रह सकते हो। कहावत भी है हथ कार डे दिल यार डे….. (हाथों से काम करते, बुद्धि वहाँ लगी रहे) जैसे भक्ति मार्ग में भल पूजा करते रहते हैं, बुद्धि और-और तरफ धन्धे आदि में चली जाती है अथवा कोई स्त्री का पति विलायत में होगा तो उनकी बुद्धि वहाँ चली जायेगी, जिससे जास्ती कनेक्शन है। तो भल सर्विस अच्छी करते हैं फिर भी बाबा बेबी बुद्धि कहते हैं। बहुत बच्चे लिखते हैं – हम बाबा की याद भूल जाते हैं। अरे, बाप को तो बेबी भी नहीं भूलते तुम तो बेबी से भी बेबी हो। जिस बाप से तुम प्रिन्स-प्रिन्सेज बनते हो, वह तुम्हारा बाप-टीचर-गुरू है, तुम उनको भूल जाते हो!
जो बच्चे अपना पूरा-पूरा पोतामेल बाप को भेज देते हैं बाबा उन्हें ही अपनी राय देते हैं। बच्चों को बताना चाहिए हम बाप को कैसे याद करते हैं? कब याद करते हैं? फिर बाप राय देंगे। बाबा समझ जायेंगे इनकी यह सर्विस है, इस अनुसार उनको कितनी फुर्सत रह सकती है? गवर्मेन्ट की नौकरी वालों को फुर्सत बहुत रहती है। काम थोड़ा हल्का हुआ, बाप को याद करते रहो। घूमते-फिरते भी बाप की याद रहे। बाबा टाइम भी देते हैं। अच्छा, रात को 9 बजे सो जाओ फिर 2-3 बजे उठकर याद करो। यहाँ आकर बैठ जाओ। परन्तु यह भी बैठने की आदत बाबा नहीं डालते हैं, याद तो चलते-फिरते भी कर सकते हो। यहाँ तो बच्चों को बहुत फुर्सत है। आगे तुम एकान्त में पहाड़ों पर जाकर बैठते थे। बाप को याद तो जरूर करना है। नहीं तो विकर्म विनाश कैसे होंगे। बाप को याद नहीं कर सकते हो तो जैसे बेबी से भी बेबी ठहरे ना। सारा मदार याद पर है। पतित-पावन बाप को याद करने की मेहनत है। नॉलेज तो बहुत सहज है। यह भी जानते हैं – यहाँ आकर समझेंगे भी वही जो कल्प पहले आये होंगे। बच्चों को डायरेक्शन मिलते रहते हैं। कोशिश यही करनी है हम तमोप्रधान से सतोप्रधान कैसे बने। सिवाए बाप की याद के और कोई उपाय नहीं। बाबा को बता सकते हो, बाबा हमारा यह धन्धा होने के कारण अथवा यह कार्य होने कारण हम याद नहीं कर सकता हूँ। बाबा फट से राय देंगे – ऐसे नहीं, ऐसे करो। तुम्हारा सारा मदार याद पर है। अच्छे-अच्छे बच्चे ज्ञान तो बहुत अच्छा देते हैं, किसको खुश कर देते हैं परन्तु योग है नहीं। बाप को याद करना है। यह समझते हुए भी फिर भूल जाते हैं, इसमें ही मेहनत है। आदत पड़ जायेगी तो फिर एरोप्लेन या ट्रेन में बैठे रहेंगे तो भी अपनी धुन लगी रहेगी। अन्दर में खुशी होगी हम बाबा से भविष्य प्रिन्स-प्रिन्सेज बन रहे हैं। सुबह को उठकर ऐसे बाप की याद में बैठ जाओ। फिर थक जाते हो। अच्छा, याद में लेट जाओ। बाप युक्तियाँ बतलाते हैं। चलते-फिरते याद नहीं कर सकते हो तो बाबा कहेंगे अच्छा रात को नेष्ठा में बैठो तो कुछ तुम्हारा जमा हो जाए। परन्तु यह जबरदस्ती एक जगह बैठना हठयोग हो जाता है। तुम्हारा तो है सहज मार्ग। रोटी खाते हो बाबा को याद करो। हम बाबा द्वारा विश्व का मालिक बन रहे हैं। अपने साथ बातें करते रहो, मैं इस पढ़ाई से यह बनता हूँ। पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन देना है। तुम्हारी सब्जेक्ट ही थोड़ी है। बाबा कितना थोड़ा समझाते हैं, कोई भी बात न समझो तो बाबा से पूछो। अपने को आत्मा समझना है, यह शरीर तो 5 भूतों का है। मैं शरीर हूँ, ऐसा कहना गोया अपने को भूत समझना है। यह है ही आसुरी दुनिया, वह है दैवी दुनिया। यहाँ सब देह-अभिमानी हैं। अपनी आत्मा को कोई भी जानते नहीं। रांग और राइट तो होता है ना। हम आत्मा अविनाशी हैं – यह समझना है राइट। अपने को विनाशी शरीर समझना रांग हो जाता है। देह का बड़ा अहंकार है। अब बाप कहते हैं – देह को भूलो, आत्म-अभिमानी बनो। इसमें है मेहनत। 84 जन्म लेते हो, अब घर चलना है। तुमको ही इज़ी लगता है, तुम्हारे ही 84 जन्म हैं। सूर्यवंशी देवता धर्म वालों के 84 जन्म हैं, करेक्ट कर लिखना होता है। बच्चे पढ़ते रहते हैं, करेक्शन होती रहती है। उस पढ़ाई में भी नम्बरवार होते हैं ना। कम पढ़ेंगे तो पगार (पैसा) भी कम मिलेगा। अब तुम बच्चे बाबा पास आये हो सच्ची-सच्ची नर से नारायण बनने की अमरकथा सुनने। यह मृत्युलोक अब खत्म होना है। हमको अमरलोक जाना है। अभी तुम बच्चों को यह चिंता लग जानी चाहिए कि हमें तमोप्रधान से सतोप्रधान, पतित से पावन बनना है। पतित-पावन बाप सभी बच्चों को एक ही युक्ति बताते हैं – सिर्फ कहते हैं बाप को याद करो, चार्ट रखो तो तुमको बहुत खुशी होगी। अब तुमको ज्ञान है, दुनिया तो घोर अन्धियारे में है। तुमको अब रोशनी मिलती है। तुम त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी बन रहे हो। बहुत ऐसे भी मनुष्य हैं जो कहते हैं ज्ञान तो जहाँ-तहाँ मिलता रहता है, यह कोई नई बात नहीं है। अरे, यह ज्ञान कोई को मिलता ही नहीं। अगर वहाँ ज्ञान मिलता भी है फिर भी करते तो कुछ नहीं हो। नर से नारायण बनने का कोई पुरुषार्थ करते हैं? कुछ भी नहीं। तो बाप बच्चों को कहते हैं – सवेरे का टाइम बहुत अच्छा है। बड़ा मज़ा आता है, शान्त हो जाते हैं, वायुमण्डल अच्छा रहता है। सबसे खराब वायुमण्डल रहता है – 10 से 12 तक इसलिए सवेरे का टाइम बहुत अच्छा है। रात को जल्दी सो जाओ फिर 2-3 बजे उठो। आराम से बैठो। बाबा से बातें करो। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी याद करो। शिवबाबा कहते हैं – मेरे में ज्ञान है ना, रचता और रचना का। मैं तुमको टीचर बनकर पढ़ाता हूँ। तुम आत्मा बाप को याद करते रहते हो। भारत का प्राचीन योग मशहूर है। योग किसके साथ? यह भी लिखना है। आत्मा का परमात्मा के साथ योग अर्थात् याद है। तुम बच्चे अभी जानते हो हम आल-राउन्डर हैं, पूरे 84 जन्म लेते हैं। यहाँ ब्राह्मण कुल के ही आयेंगे। हम ब्राह्मण हैं। अभी हम देवता बनने वाले हैं। सरस्वती भी बेटी है ना। बूढ़ा भी हूँ, बहुत खुशी होती है, अभी हम शरीर छोड़ फिर जाकर राजा के घर में जन्म लूँगा। मैं पढ़ रहा हूँ। फिर गोल्डन स्पून इन माउथ होगा। तुम सबकी यह एम ऑबजेक्ट है। खुशी क्यों नहीं होनी चाहिए। मनुष्य भल क्या भी बोलते रहें। तुम्हारी खुशी क्यों गुम हो जानी चाहिए। बाप को याद ही नहीं करेंगे तो नर से नारायण कैसे बनेंगे। ऊंच बनना चाहिए ना। ऐसा पुरुषार्थ करके दिखाओ, मूंझते क्यों हो? दिलहोल क्यों होते हो कि सभी थोड़ेही राजायें बनेंगे! यह ख्याल आया, फेल हुआ। स्कूल में बैरिस्टरी, इन्जीनियरी आदि पढ़ते हैं। ऐसे कहेंगे क्या कि सब बैरिस्टर थोड़ेही बनेंगे। नहीं पढ़ेंगे तो फेल हो जायेंगे। 16108 की सारी माला है। पहले-पहले कौन आयेंगे? जितना जो पुरुषार्थ करेंगे। एक-दो से तीखा पुरुषार्थ करते तो हैं ना। तुम बच्चों की बुद्धि में है – अभी हमें यह पुराना शरीर छोड़ घर जाना है। यह भी याद रहे तो पुरुषार्थ तीव्र हो जायेगा। तुम बच्चों की बुद्धि में रहना चाहिए कि सर्व का मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता है ही एक बाप। आज दुनिया में इतने करोड़ों मनुष्य हैं। तुम 9 लाख होंगे। सो भी एबाउट कहा जाता है। सतयुग में और कितने होंगे। राजाई में कुछ तो आदमी चाहिए ना। यह राजाई स्थापन हो रही है। बुद्धि कहती है सतयुग में बहुत छोटा झाड़ होता है, ब्युटीफुल। नाम ही है स्वर्ग पैराडाइज़। तुम बच्चों की बुद्धि में सारा चक्र फिरता रहता है। यह भी सदैव फिरता रहे तो भी अच्छा।
यह खांसी आदि होती है यह कर्मभोग है, यह पुरानी जुत्ती है। नई तो यहाँ मिलनी नहीं है। मैं पुनर्जन्म तो लेता नहीं हूँ। न कोई गर्भ में जाता हूँ। मैं तो साधारण तन में प्रवेश करता हूँ। वानप्रस्थ अवस्था है, अभी वाणी से परे शान्तिधाम जाना है। जैसे रात से दिन, दिन से रात जरूर होनी है, वैसे पुरानी दुनिया जरूर विनाश होनी है। यह संगमयुग जरूर पूरा हो फिर सतयुग आयेगा। बच्चों को याद की यात्रा पर बहुत ध्यान देना है, जो अभी बहुत कम है, इसलिए बाबा बेबी कहते हैं। बेबीपना दिखाते हैं। कहते हैं बाबा को याद नहीं कर सकता हूँ, तो बेबी कहेंगे ना। तुम छोटे बेबी हो, बाप को भूल जाते हो? मीठे ते मीठा बाप, टीचर, गुरू आधा कल्प का बिल्वेड मोस्ट, उनको भूल जाते हो! आधाकल्प दु:ख में तुम उनको याद करते आये हो, हे भगवान! आत्मा शरीर द्वारा कहती है ना। अब मैं आया हूँ, अच्छी रीति याद करो। बहुतों को रास्ता बताओ। आगे चलकर बहुत वृद्धि को पाते रहेंगे। धर्म की वृद्धि तो होती है ना। अरविन्द घोष का मिसाल। आज उनके कितने सेन्टर्स हैं। अभी तुम जानते हो वह सब है भक्ति मार्ग। अब तुमको ज्ञान मिलता है। पुरुषोत्तम बनने की यह नॉलेज है। तुम मनुष्य से देवता बनते हो। बाप आकर सब मूतपलीती कपड़ों को साफ करते हैं। उनकी ही महिमा है। मुख्य है याद। नॉलेज तो बहुत सहज है। मुरली पढ़कर सुनाओ। याद करते रहो। याद करते-करते आत्मा पवित्र हो जायेगी। पेट्रोल भरता जायेगा। फिर यह भागे। यह शिवबाबा की बरात कहो, बच्चे कहो। बाप कहते हैं मैं आया हूँ, काम चिता से उतार तुमको अब योग चिता पर बिठाता हूँ। योग से हेल्थ, ज्ञान से वेल्थ मिलती है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) एम ऑब्जेक्ट को सामने रख खुशी में रहना है। कभी दिलहोल (दिलशिकस्त) नहीं बनना है – यह ख्याल कभी न आये कि सब थोड़ेही राजा बनेंगे। पुरुषार्थ कर ऊंच पद पाना है।
2) मोस्ट बील्वेड बाप को बड़े प्यार से याद करना है, इसमें बेबी नहीं बनना है। याद के लिए सवेरे का टाइम अच्छा है। आराम से शान्ति में बैठ याद करो।
वरदान:- | यज्ञ सेवा द्वारा सर्व प्राप्तियों का प्रसाद प्राप्त करने वाले आलराउन्ड सेवाधारी भव संगमयुग पर आलराउन्ड सेवा का चांस मिलना – यह भी ड्रामा में एक लिफ्ट है, जो प्यार से यज्ञ की आलराउन्ड सेवा करते हैं उन्हें सर्व प्राप्तियों का प्रसाद स्वत:प्राप्त हो जाता है। वे निर्विघ्न रहते हैं। एक बारी सेवा की और हजार बार सेवा का फल प्राप्त हो गया। सदा स्थूल सूक्ष्म लंगर लगा रहे। किसी को भी सन्तुष्ट करना – यह सबसे बड़ी सेवा है। मेहमान निवाजी करना, यह सबसे बड़ा भाग्य है। |
स्लोगन:- | स्वमान में स्थित रहो तो अनेक प्रकार के अभिमान स्वत:समाप्त हो जायेंगे। |
अव्यक्त इशारे – रूहानी रॉयल्टी और प्युरिटी की पर्सनैलिटी धारण करो
जैसे दुनिया की रॉयल आत्मायें कभी छोटी-छोटी बातों में, छोटी चीज़ों में अपनी बुद्धि वा समय नहीं देती, देखते भी नहीं देखती, सुनते भी नहीं सुनती, ऐसे आप रूहानी रॉयल आत्मायें किसी भी आत्मा की छोटी-छोटी बातों में, जो रॉयल नहीं हैं उनमें अपनी बुद्धि वा समय नहीं दे सकते। रूहानी रॉयल आत्माओं के मुख से कभी व्यर्थ वा साधारण बोल भी नहीं निकल सकते।
“मीठे बच्चे – अपना स्वभाव बाप समान इज़ी बनाओ, तुम्हारे में कोई घमण्ड नहीं होना चाहिए, ज्ञानयुक्त बुद्धि हो, अभिमान न हो”
❓प्रश्न 1:सर्विस करते हुए भी कई बच्चे ‘बेबी से भी बेबी’ क्यों कहलाते हैं?
✅उत्तर:क्योंकि वे ज्ञान की बहुत सेवा करते हैं, दूसरों को मुरली सुनाते हैं, परन्तु बाप को याद नहीं करते। याद भूल जाती है। बाप कहते हैं बच्चे बाप को कभी नहीं भूलते, यदि बाप को भूल जाते हो तो तुम बेबी से भी बेबी हो क्योंकि बाप को याद किए बिना वर्सा नहीं मिलेगा।
❓प्रश्न 2:बाप के समान ‘इज़ी’ स्वभाव किसे कहा जा सकता है?
✅उत्तर:जिसका स्वभाव सहज, नम्र, घमण्ड रहित और ईश्वरीय रीति से ज्ञानयुक्त हो। जैसे ब्रह्मा बाबा सहज, सौम्य, विनम्र रहते थे। कोई भी अहंकार नहीं था। वैसा ही इज़ी स्वभाव बच्चों का होना चाहिए।
❓प्रश्न 3:अच्छी सर्विस करने के बावजूद भी बच्चों को योग में मेहनत क्यों करनी पड़ती है?
✅उत्तर:क्योंकि ज्ञान सहज है परन्तु बाप की याद में बुद्धि टिकाना कठिन है। याद में ही विकर्म विनाश होते हैं। याद में ही अन्तमति सो गति होती है। इसलिए बाबा बार-बार कहते हैं – मेहनत याद में है।
❓प्रश्न 4:बाबा बच्चों को ‘बेबी बुद्धि’ क्यों कहते हैं?
✅उत्तर:क्योंकि बच्चे बाप से मिलने आए हैं, राजयोग सीखते हैं, फिर भी बाप को याद नहीं करते। जो याद में कमजोर हैं उन्हें बाबा ‘बेबी बुद्धि’ कहते हैं। बाप को याद नहीं करना सबसे बड़ी कमजोरी है।
❓प्रश्न 5:बाबा कौन सी मुख्य युक्ति याद में रहने के लिए बताते हैं?
✅उत्तर:बाबा कहते हैं – काम करते भी याद में रहो, “हथ कार दे, दिल यार दे”। दिन में फुर्सत के समय, घूमते-फिरते, खाते-पीते, सोने से पहले या उठते ही बाबा की याद में रहो। चार्ट रखो कि दिन भर में कितनी बार याद किया।
❓प्रश्न 6:राजयोग में पास होने का मुख्य इम्तिहान क्या है?
✅उत्तर:मुख्य इम्तिहान है – बाप को सच्ची याद। ज्ञान में अच्छे नंबर ला सकते हैं, लेकिन यदि याद नहीं रही, तो फेल हो सकते हैं। इसलिए बाबा बार-बार स्मृति दिलाते हैं कि याद ही प्रधान है।
❓प्रश्न 7:बाबा की याद में रहना सहज कैसे बने?
✅उत्तर:अगर आत्म-अभिमानी स्थिति में रहेंगे, देह-अभिमान को छोड़ेंगे, और मन-बुद्धि को सदा इस स्मृति में रखेंगे कि “मैं आत्मा, बाबा की संतान हूँ, बाबा से वर्सा ले रहा हूँ”, तो याद सहज हो जाएगी।
❓प्रश्न 8:अच्छी सेवा के बावजूद भी अगर योग नहीं है, तो उसका फल क्या होगा?
✅उत्तर:यदि सेवा में अच्छा नंबर है परन्तु योग नहीं है, तो वर्सा पूरा नहीं मिलेगा। योग ही विकर्म विनाश करता है, और योग से ही आत्मा सतोप्रधान बनती है। सेवा फलदायक तब ही होती है जब साथ-साथ योग भी हो।
❓प्रश्न 9:कौन-सी बात बच्चों को अन्दर से खुशी देती है?
✅उत्तर:यह स्मृति कि हम इस ईश्वरीय पढ़ाई से नर से नारायण, बेगर से प्रिन्स-प्रिन्सेज़ बनने जा रहे हैं। इस भविष्य की निश्चयबुद्धि स्थिति ही आत्मा को खुश करती है और पुरुषार्थ तीव्र बनाती है।
❓प्रश्न 10:कौन-सी मुख्य बात हर बच्चे को रोज़ आत्मनिरीक्षण में देखनी चाहिए?
✅उत्तर:हर बच्चे को रोज़ यह पूछना चाहिए – “मैं दिन भर में बाबा की याद में कितना रहा? मेरे कर्म बाबा के स्वभाव के समान इज़ी व विनम्र हैं क्या? क्या मैं देह-अभिमान से मुक्त हूँ?” यही आत्मनिरीक्षण सच्चा पुरुषार्थ है।
ब्रह्मा_कुमारीज़,साकार_मुरली,संगम_युग,बापदादा,शिवबाबा,ब्रह्मा_बाबा,राजयोग,स्मृति_यात्रा,आत्म_अभिमानी,बाप_समान_स्वभाव,सहज_राजयोग,ज्ञान_की_बातें,बेबी_से_भी_बेबी,योग_में_पुरुषार्थ,मीठे_बच्चे,
ईश्वरीय_विश्वविद्यालय,बाबा_की_मुरली,बाबा_की_स्मृति,मनुष्य_से_देवता,नर_से_नारायण,84_जन्म,तमोप्रधान_से_सतोप्रधान,देह_अभिमान_से_मुक्ति,प्रिन्स_प्रिन्सेस_बनना,सेवा_और_योग_संतुलन,
बाप_को_याद_करना,याद_ही_सेवा_है,योगबल_से_विकर्म_विनाश,राजयोग_से_राजाई,अन्त_मती_सो_गति,
Brahma Kumaris, Saakar Murli, Confluence Age, BapDada, ShivBaba, BrahmaBaba, RajYoga, Remembrance Journey, Soul Conscious, Nature Like the Father, Easy RajYoga, Talks of Knowledge, Baby to the Baby, Effort in Yoga, Sweet Children, Divine University, Baba’s Murli, Baba’s Remembrance, Human being to Deity, Man to Narayan, 84 Births, Tamopradhan to Satopradhan, Liberation from Body Consciousness, Becoming Princes and Princesses, Service and Yoga Balance, Remembering the Father, Remembering is Service, Destruction of Sins with the Power of Yoga, Kingship through RajYoga, The Final Thought is the Salvation,