MURLI 16-05-2024/MURLI 16-05-2024/BRAHMAKUMARIS
“मीठे बच्चे – अपने को सुधारने के लिए अटेन्शन दो, दैवीगुण धारण करो, बाप कभी किसी पर नाराज़ नहीं होते, शिक्षा देते हैं, इसमें डरने की बात नहीं” | |
प्रश्नः- | बच्चों को कौन-सी एक स्मृति रहे तो टाइम वेस्ट न करें? |
उत्तर:- | यह संगम का समय है, बहुत ऊंची लॉटरी मिली है। बाप हमें हीरे जैसा देवता बना रहे हैं। यह स्मृति रहे तो कभी भी टाइम वेस्ट न करें। यह नॉलेज सोर्स ऑफ इनकम है इसलिए पढ़ाई कभी मिस न हो। माया देह-अभिमान में लाने की कोशिश करेगी। लेकिन तुम्हारा डायरेक्ट बाप से योग हो तो समय सफल हो जायेगा। |
ओम् शान्ति। बच्चों को यह तो मालूम है कि यह बाप है, इसमें डरने की कोई बात नहीं। यह कोई साधू, महात्मा नहीं है जो कोई बददुआ करेंगे या गुस्सा करेंगे। उन गुरूओं आदि में तो बहुत क्रोध होता है, तो उनसे मनुष्य डरते हैं, कहाँ श्राप न दे देवें। यहाँ तो ऐसी कोई बात नहीं। बच्चों को कभी डरने की बात नहीं। बाप से डरते वह हैं जो खुद चंचल होते हैं। वह लौकिक बाप तो गुस्सा भी करते हैं। यहाँ तो बाप कभी गुस्सा आदि नहीं करते हैं। समझाते हैं, अगर बाप को याद नहीं करेंगे तो विकर्म विनाश नहीं होंगे। अपना ही जन्म-जन्मान्तर के लिए नुकसान करेंगे। बाप तो समझानी देते हैं, आगे के लिए सुधर जाएं। बाकी ऐसे नहीं कि बाप नाराज़ होते हैं। बाप तो समझाते रहते हैं, बच्चे अपने को सुधारने के लिए याद की यात्रा पर अटेन्शन दो। साथ-साथ चक्र को बुद्धि में रखो, दैवीगुण धारण करो। याद है मुख्य। बाकी सृष्टि चक्र की नॉलेज तो बहुत सिम्पल है। वह है सोर्स ऑफ इनकम। परन्तु उनके साथ दैवीगुण भी धारण करने हैं। इस समय हैं बिल्कुल आसुरी गुण। छोटे बच्चों में भी आसुरी गुण होते हैं लेकिन उन्हों को मारना बिल्कुल नहीं है और ही सीखते हैं। वहाँ सतयुग में तो सीखना नहीं होता है। यहाँ तो माँ-बाप से बच्चे सब सीखते हैं। बाबा गरीबों की बात करते हैं। साहूकारों के लिए तो यहाँ जैसे स्वर्ग है। उनको ज्ञान की दरकार नहीं। यह तो पढ़ाई है। टीचर चाहिए, जो सिखावे, सुधारे। तो बाप गरीबों की बात करते हैं। कैसी हालत है। कैसे-कैसे बच्चे खराब होते हैं। माँ-बाप को सब देखते रहते हैं। फिर छोटेपन में ही सब खराब हो जाते हैं। यह रूहानी बाप कहते हैं मैं भी गरीब निवाज़ हूँ। समझाता हूँ देखो इस दुनिया में मनुष्यों की क्या हालत है। तमोप्रधान दुनिया है। तमोप्रधान की भी कोई हद होती है ना। 1250 वर्ष तो कलियुग को हुए। एक दिन भी कम जास्ती नहीं। दुनिया जब पूरी तमोप्रधान हुई तब बाप को आना पड़ा। बाप कहते हैं मैं ड्रामा अनुसार बंधायमान हूँ। मुझे आना ही पड़ता है, शुरू में कितने गरीब आये। साहूकार भी आये, दोनों इकट्ठे बैठते थे। बड़े-बड़े घर की बच्चियां भागी, कुछ भी ले नहीं आई। कितना हंगामा हो गया। ड्रामा में जो होने का था, वह हो गया। ख्याल भी नहीं था, ऐसे होगा। बाबा खुद वन्डर खाता था, क्या हो रहा है। इन्हों की हिस्ट्री बड़ी वन्डरफुल है। यह भी ड्रामा में नूँध है। बाबा ने सबको कह दिया चिट्ठी लिखाकर ले आओ – हम ज्ञान अमृत पीने जाते हैं। फिर उन्हों के पति लोग विलायत से आ गये। वह बोले विष दो, यह कहें हमने ज्ञान अमृत पिया है, विष कैसे दे सकते। इस पर इन्हों का एक गीत भी है। इसको कहते हैं चरित्र। शास्त्रों में फिर श्रीकृष्ण के चरित्र लिख दिये हैं। श्रीकृष्ण की तो बात हो न सके। तो यह सब ड्रामा में नूँध है। नाटक में यह सब होता है। हँसीकुड़ी आदि आदि…. यह तो दोनों बाप कहते हैं हमने कुछ भी नहीं किया। यह तो ड्रामा का खेल चल रहा है। छोटे-छोटे बच्चे आ गये। अभी वह कितने बड़े-बड़े हो गये हैं। बच्चों के कितने वन्डरफुल नाम सन्देश पुत्रियाँ ले आई, फिर जो उनसे भाग गये, उनका वह नाम तो है ही नहीं, फिर पुराना नाम शुरू हो गया इसलिए ब्राह्मणों की माला होती नहीं।
तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है। पहले माला फेरते थे। अभी तुम माला के दाने बनते हो। वहाँ भक्ति होती नहीं, यह नॉलेज है समझने की, है भी सेकण्ड की नॉलेज। फिर उनको कहते हैं ज्ञान का सागर, सारा सागर स्याही बनाओ, जंगल कलम बनाओ तो भी पूरा हो न सके और फिर है भी सेकण्ड की बात। अल्फ को जान गये हो तो बे बादशाही जरूर मिलनी चाहिए। तो वह अवस्था जमाने में अर्थात् पतित से पावन होने में मेहनत है। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझ अपने बेहद के बाप को याद करो। इसमें है मेहनत। तदबीर कराने वाला टीचर तो है परन्तु किसकी तकदीर में नहीं है तो टीचर भी क्या करे। टीचर तो पढ़ायेंगे। ऐसे तो नहीं, रिश्वत लेकर पास कर देंगे! यह तो बच्चे समझते हैं यह बापदादा दोनों इकट्ठे हैं। ढेर बच्चियों की चिट्ठियाँ आती हैं बापदादा के नाम पर। शिवबाबा केयरआफ प्रजापिता ब्रह्मा। बाप से वर्सा लेते हो, इस दादा द्वारा। त्रिमूर्ति में है – ब्रह्मा द्वारा स्थापना कराते हैं। ब्रह्मा को क्रियेटर नहीं कहेंगे। बेहद का क्रियेटर तो वह बाप ही है। प्रजापिता ब्रह्मा भी बेहद का हो गया। प्रजापिता ब्रह्मा है तो बहुत प्रजा हो जायेगी। सब कहते हैं ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर, शिवबाबा को ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर नहीं कहेंगे। वह तो सभी आत्माओं का बाप हो गया। आत्मायें सभी भाई-भाई हैं। फिर बहन-भाई होते हैं। बेहद के सिज़रे का हेड प्रजापिता ब्रह्मा हो गया। जैसे बिरादरी का सिजरा होता है ना। यह है बेहद का सिजरा। आदम और बीबी, एडम और ईव किसको कहते हैं? ब्रह्मा-सरस्वती को कहेंगे। अब सिजरा तो बहुत बड़ा हो गया है। सारा झाड़ जड़जड़ीभूत हो गया है। फिर नया चाहिए। इसको कहा जाता है वैराइटी धर्मों का झाड़। वैराइटी फीचर्स हैं, एक न मिले दूसरे से। हर एक की एक्टिविटी का पार्ट एक न मिले दूसरे से। यह बहुत गुह्य बातें हैं। छोटी बुद्धि वाले तो समझ न सके। बहुत मुश्किल है। हम आत्मा छोटी बिन्दी हैं। परमपिता परमात्मा भी छोटी बिन्दी है, यहाँ बाजू में आकर बैठते हैं। आत्मा कोई छोटी-बड़ी नहीं होती है। बापदादा दोनों का इकट्ठा पार्ट बड़ा वन्डरफुल है। बाबा ने यह रथ बड़ा अनुभवी लिया है। बाबा खुद समझाते हैं यह भाग्यशाली रथ है। इस मकान अथवा रथ में आत्मा बैठी है। हम ऐसे बाप को किराये पर अपना मकान वा रथ देवें तो क्या समझते हो! इसलिए इनको भाग्यशाली रथ कहा जाता है, जिसमें बाप बैठ तुम बच्चों को हीरे जैसा देवता बनाते हैं। आगे थोड़ेही समझते थे। बिल्कुल तुच्छ बुद्धि थे।
अभी तुम बच्चे समझते हो तो फिर अच्छी रीति पुरूषार्थ भी करना चाहिए, टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए। स्कूल में टाइम वेस्ट करने से नापास हो जायेंगे। बाप तुमको बहुत बड़ी लॉटरी देते हैं। कोई राजा के घर जन्म लेते हैं तो जैसेकि लॉटरी मिली ना। कंगाल हैं तो उनको लॉटरी थोड़ेही कहेंगे। यह है सबसे ऊंची लॉटरी, इसमें टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए। बाबा जानते हैं माया की बॉक्सिंग है। घड़ी-घड़ी माया देह-अभिमान में लाती है। तुम्हारा बाप के साथ डायरेक्ट योग है। सम्मुख बैठे हैं ना इसलिए यहाँ रिफ्रेश होने आते हो ड्रामा अनुसार। बाप कहते हैं मैं तुमको जो समझाता हूँ वह धारण करना है। यह ज्ञान भी तुमको अभी मिलता है। फिर प्राय: लोप हो जाता है। ढेर आत्मायें चली जाती हैं शान्तिधाम। फिर आधाकल्प के बाद भक्ति मार्ग शुरू होता है। आधाकल्प से तुम वेद-शास्त्र पढ़ते आये, भक्ति करते आये हो। अब मूल बात समझाई जाती है कि तुम बाप को याद करो तो जन्म-जन्मान्तर के विकर्म विनाश हों। यह नॉलेज है सोर्स ऑफ इनकम, इससे तुम पद्मापद्म भाग्यशाली बनते हो। स्वर्ग के मालिक बनते हो। वहाँ तो सब सुख हैं। बाप याद दिलाते हैं तुमको स्वर्ग में कितने अपार सुख दिये हैं। तुम विश्व के मालिक थे फिर सब गंवा दिया। तुम रावण के गुलाम बन गये हो। राम और रावण का कितना यह वन्डरफुल खेल है। यह फिर भी होगा। अनादि बना-बनाया खेल है। स्वर्ग में तुम एवरहेल्दी-वेल्दी रहते हो। यहाँ मनुष्य को हेल्दी बनाने के लिए कितना खर्चा करते हैं वह भी एक जन्म के लिए। तुमको आधाकल्प एवरहेल्दी बनाने में क्या खर्च होता है! एक नया पैसा भी नहीं। देवतायें एवरहेल्दी हैं ना। तुम यहाँ आये ही हो एवरहेल्दी बनने के लिए। एक बाप के बिगर सर्व को एवरहेल्दी और कोई बना न सके। तुम अभी सर्व-गुण सम्पन्न बन रहे हो। अभी तुम संगम पर हो। बाप तुमको नई दुनिया का मालिक बना रहे हैं। ड्रामा प्लैन अनुसार जब तक ब्राह्मण न बनें तब तक देवता बन न सकें। जब तक पुरूषोत्तम संगमयुग पर बाप से पुरूषोत्तम बनने न आयें तो देवता बन न सकें।
अच्छा, आज बाबा ने रूहानी ड्रिल भी सिखाई, नॉलेज भी सुनाई, बच्चों को सावधान भी किया। ग़फलत नहीं करो, उल्टा-सुल्टा बोलो भी नहीं। शान्ति में रहो और बाप को याद करो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विकर्म विनाश कर स्वयं को सुधारने के लिए याद की यात्रा पर पूरा अटेन्शन देना है। दैवीगुण धारण करने हैं।
2) देवता बनने के लिए संगमयुग पर पुरूषोत्तम बनने का पुरुषार्थ करना है, ग़फलत में अपना टाइम वेस्ट नहीं करना है।
वरदान:- | ज्ञान के श्रेष्ठ खजानों को महादानी बन दान करने वाले मास्टर ज्ञान सागर भव जैसे बाप ज्ञान का सागर है, ऐसे मास्टर ज्ञान सागर बन सदा औरों को ज्ञान दान देते रहो। ज्ञान का कितना श्रेष्ठ खजाना आप बच्चों के पास है। उसी खजाने से भरपूर बन, याद के अनुभवों से औरों की सेवा करो। जो भी खजाने मिले हैं महादानी बन उनका दान करते रहो क्योंकि यह खजाने जितना दान करेंगे उतना और भी बढ़ते जायेंगे। महादानी बनना अर्थात् देना नहीं बल्कि और भी भरना। |
स्लोगन:- | जीवनमुक्त के साथ देह से न्यारे विदेही बनना – यह है पुरुषार्थ की लास्ट स्टेज। |
मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य
“गुप्त वेशधारी परमात्मा के आगे कन्याओं, माताओं का संन्यास”
अभी दुनियावी मनुष्यों को यह विचार तो आना चाहिए कि इन कन्याओं, माताओं ने संन्यास क्यों लिया है? यह कोई हठयोग, कर्म-संन्यास नहीं है परन्तु बिल्कुल सहजयोग, राजयोग, कर्मयोग संन्यास जरूर है। परमात्मा खुद आए जीते जी, देह सहित देह के सभी कर्मेन्द्रियों का मन से संन्यास कराता है अर्थात् पाँच विकारों का सम्पूर्ण संन्यास करना जरूर है। परमात्मा आए कहता है दे दान तो छूटे ग्रहण। अब माया का यह ग्रहण जो आधाकल्प से लगा हुआ है इससे आत्मा काली (पतित) बन गई है, उनको फिर से पवित्र बनाना है। देखो, देवताओं की आत्मायें कितनी पवित्र और चमत्कारी हैं, जब सोल पवित्र है तो तन भी निरोगी पवित्र मिलता है। अब यह भी संन्यास तब हो सकता है जब पहले कुछ चीज़ मिलती है। गरीब का बालक साहूकार की गोद में जाता है तो जरूर कुछ देख गोद लेता है, परन्तु साहूकार का बालक गरीब की गोद में नहीं जा सकता। तो यहाँ यह कोई अनाथ आश्रम नहीं है, यहाँ तो बड़े-बड़े धनवान, कुलवान मातायें-कन्यायें हैं जिन्हों को दुनियावी लोग अब भी चाहते हैं कि घर में वापस आ जाएं, परन्तु इन्होंने क्या प्राप्त किया जो उस मायावी धन, पदार्थ अर्थात् सर्वंश संन्यास किया है। तो जरूर उनसे उन्हों को जास्ती सुख शान्ति की प्राप्ति हुई तभी तो उस धन, पदार्थ को ठोकर मार दी है। जैसे राजा गोपीचंद ने अथवा मीरा ने रानी-पने का अथवा राजाई का संन्यास कर लिया। यह है ईश्वरीय अतीन्द्रिय अलौकिक सुख जिसके आगे वो दुनियावी पदार्थ तुच्छ हैं, उन्हों को यह पता है कि इस मरजीवा बनने से हम जन्म-जन्मान्तर के लिये अमरपुरी की बादशाही प्राप्त कर रहे हैं, तब ही भविष्य बनाने का पुरुषार्थ कर रहे हैं। परमात्मा का बनना माना परमात्मा का हो जाना, सबकुछ उसको अर्पण कर देना फिर वो रिटर्न में अविनाशी पद दे देता है। तो यह मनोकामना परमात्मा ही आकर इस संगम समय पूर्ण करता है क्योंकि अपन जानते हैं कि विनाश ज्वाला में तन-मन-धन सहित सब भस्मीभूत हो ही जायेगा, तो क्यों न परमात्मा अर्थ सफल करें। अब यह राज़ भी समझना है कि जब सब विनाश होना है तो हम भी लेकर क्या करें। हमको कोई संन्यासियों के मुआफिक, मण्डलेश्वर के मुआफिक यहाँ महल बनाए नहीं बैठना है परन्तु ईश्वर अर्थ बीज़ बोने से वहाँ भविष्य जन्म-जन्मान्तर इनका बन जाना है, यह है गुप्त राज़। प्रभु तो दाता है एक देवे सौ पावे। परन्तु इस ज्ञान में पहले सहन करना पड़ता है जितना सहन करेंगे उतना अन्त में प्रभाव निकलेगा इसलिए अभी से लेकर पुरुषार्थ करो। अच्छा। ओम् शान्ति।