MURLI 16-10-2024/BRAHMAKUMARIS

16-10-24                          प्रातः मुरली                        ओम् शान्ति                         “बापदादा”                              मधुबन

“मीठे वच्चे तुम मात-पिता के सम्मुख आये हो, अपार सुख पाने, वाप तुम्हें घनेरे दुःखों से निकाल घनेरे सुखों में ले जाते हैं”

प्रश्न:- एक बाप ही रिजर्व में रहते, पुनर्जन्म नहीं लेते हैं क्यों?

उत्तर:- क्योंकि कोई तो तुम्हें तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाने वाला चाहिए। अगर बाप भी पुनर्जन्म में आये तो तुमको काले से गोरा कौन बनाये इसलिए बाप रिजर्व में रहता है।

प्रश्न:- देवतायें सदा सुखी क्यों हैं?

उत्तर:- क्योंकि पवित्र हैं, पवित्रता के कारण उनकी चलन सुधरी हुई है। जहाँ पवित्रता है वहाँ सुख-शान्ति है। मुख्य है पवित्रता।

ओम् शान्ति। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति रूहानी बाप समझाते हैं। वह बाप भी है, मात-पिता भी है। तुम गाते थे ना – तुम मात-पिता हम बालक तेरे. सब पुकारते रहते हैं। किसको पुकारते हैं? परमपिता परमात्मा को। बाकी उनको समझ में नहीं आता कि उनकी कृपा से सुख घनेरे कौन-से और कब मिले? सुख घनेरे किसको कहा जाता है, वह भी नहीं समझते। अभी तुम यहाँ सामने बैठे हो, जानते हो यहाँ कितने दुःख घनेरे हैं। यह है दुःखधाम। वह है सुखधाम। किसकी बुद्धि में नहीं आता है कि हम 21 जन्म स्वर्ग में बहुत सुखी रहते हैं। तुमको भी पहले यह अनुभव नहीं था। अभी तुम समझते हो हम उस परमपिता परमात्मा, मात-पिता के सामने बैठे हैं। जानते हो हम 21 जन्मों के लिए स्वर्ग की बादशाही प्राप्त करने के लिए ही यहाँ आते हैं। बाप को भी जान लिया और बाप द्वारा सारे सृष्टि चक्र को भी समझ लिया है। हम पहले घनेरे सुख में थे फिर दुःख में आये, यह भी नम्बरवार हर एक की बुद्धि में रहता है। स्टूडेन्ट को तो सदैव याद रहना चाहिए परन्तु बाबा देखते हैं घड़ी घड़ी भूल जाते हैं इसलिए फिर मुरझा जाते हैं। छुई मुई अवस्था हो जाती है। माया वार कर लेती है। वह जो खुशी होनी चाहिए, वह नहीं रहती। नम्बरवार पद तो है ना। स्वर्ग में तो जाते हैं परन्तु वहाँ भी राजा से लेकर रंक तक रहते है ना। वह गरीब प्रजा, वह साहूकार। स्वर्ग में भी ऐसे हैं तो नर्क में भी ऐसे है। ऊंच और नीच। अभी तुम बच्चे जानते हो हम पुरूषार्थ करते हैं सुख घनेरे पाने के लिए। इन लक्ष्मी-नारायण को सबसे जास्ती सुख घनेरे हैं ना। मुख्य है पवित्रता की बात। पवित्रता के सिवाए पीस और प्रासपर्टी मिल नहीं सकती। इसमें चलन बहुत अच्छी चाहिए। मनुष्य को चलन सुधरती है पवित्रता से। पवित्र है तो उनको देवता कहा जाता है। तुम यहाँ आये हो देवता बनने के लिए। देवतायें सदा सुखी थे। मनुष्य कोई सदा सुखी हो न सके। सुख होता ही है देवताओं को। इन देवताओं की ही तुम पूजा करते थे ना क्योंकि पवित्र थे। सारा मदार है पवित्रता पर। विघ्न भी इसमें ही पड़ते हैं। चाहते हैं दुनिया में पीस हो। बाबा कहते हैं सिवाए पवित्रता के शान्ति कभी हो न सके। पहली पहली मुख्य है ही पवित्रता की बात। पवित्रता से ही सुधरी हुई चलन होती है। पतित होने से फिर चलन बिगड़ती है। समझना चाहिए अब हमको फिर से देवता बनना है तो पवित्रता जरूर चाहिए। देवतायें पवित्र हैं तब तो अपवित्र मनुष्य उनके आगे माथा टेकते हैं। मुख्य बात है पवित्रता की। पुकारते भी ऐसे हैं हे पतित-पावन आकर हमको पावन बनाओ। बाप कहते हैं काम महाशत्रु है, इन पर जीत पहनो। इन पर जीत पाने से ही तुम पवित्र बनेंगे। तुम जब पवित्र सतोप्रधान थे तो शान्ति थी, सुख भी था। तुम बच्चों को अब याद आई है, कल की तो बात है। तुम पवित्र थे तो अथाह सुख-शान्ति सब कुछ था। अब फिर तुमको यह लक्ष्मी-नारायण बनना है, इसमें पहली मुख्य बात है सम्पूर्ण निर्विकारी बनना। यह तो गायन है, यह है ज्ञान यज्ञ, इसमें विघ्न तो जरूर पड़ेंगे। पवित्रता के ऊपर कितना तंग करते हैं। आसुरी सम्पदाय और दैवी सम्पदाय भी गाई हुई है। तुम्हारी बुद्धि में है सतयुग में यह देवता थे। भल सूरत तो मनुष्यों की है परन्तु उन्हों को देवता कहा जाता है। वहाँ हैं सम्पूर्ण सतोप्रधान। कोई भी खामी वहाँ होती नहीं। हर चीज़ परफेक्ट होती है। बाप परफेक्ट है तो बच्चों को भी परफेक्ट बनाते हैं। योगबल से तुम कितने पवित्र, ब्युटीफुल बनते हो। यह मुसाफ़िर तो एवर गोरा है, जो तुमको सांवरे से आकर गोरा बनाते हैं। वहाँ नैचुरल ब्युटी होती है। खूबसूरत बनाने की दरकार नहीं रहती। सतोप्रधान होते ही हैं खूबसूरत। वही फिर तमोप्रधान होने से काले हो पड़ते हैं। नाम ही है श्याम और सुन्दर। श्रीकृष्ण को श्याम और सुन्दर क्यों कहते हैं? इसका अर्थ कभी कोई बता न सके, सिवाए बाप के। भगवान वाप जो बातें सनाते हैं वह और कोई मनष्य सना नहीं सकेंगे। चित्रों में स्वदर्शन चक्र देवताओं को दे दिया है। बाप समझाते हैं- मोठे-मीठे बच्चों, स्वदर्शन चक्र की तो देवताओं को दरकार नहीं। वह क्या करेंगे शंख आदि। स्वदर्शन चक्रधारी तुम ब्राह्मण बच्चे हो। शंखध्वनि भी तुमको करनी है। तुम जानते हो अब विश्व में कैसे शान्ति स्थापन हो रही है। साथ में चलन भी अच्छी चाहिए। भक्ति मार्ग में भी तुम देवताओं के आगे जाकर अपनी चलन का वर्णन करते हो ना। परन्तु देवतायें कोई तुम्हारी चलन को सुधारते नहीं हैं। सुधारने वाला और है। वह शिवबाबा तो है निराकार। उनके आगे ऐसे नहीं कहेंगे कि आप सर्वगुण सम्पन्न हो.. शिव की महिमा ही अलग है। देवताओं की महिमा गाते हैं। परन्तु हम ऐसे कैसे बनें। आत्मा ही पवित्र और अपवित्र बनती है ना। अब तुम्हारी आत्मा पवित्र बन रही है। जब आत्मा सम्पूर्ण बन जायेगी तो फिर यह शरीर पतित नहीं रहेगा फिर जाकर पावन शरीर लेंगे। यहाँ तो पावन शरीर हो न सके। पावन शरीर तब हो जब प्रकृति भी सतोप्रधान हो। नई दुनिया में हर एक चीज़ सतोप्रधान होती है। अभी 5 तत्व तमोप्रधान हैं इसलिए कितने उपद्रव होते रहते हैं। कैसे मनुष्य मरते रहते हैं। तीर्थ यात्रा पर जाते हैं, कोई एक्सीडेंट हुआ मर पड़ते। जल, पृथ्वी आदि कितना नुकसान करते हैं। यह सब तत्व तुमको मदद करते हैं। विनाश में अचानक बाढ़ आ जाती, तूफान लगते-यह है नैचुरल आपदायें। वह बॉम्ब्स आदि जो बनाते हैं, वह भी ड्रामा में नूँध है। उनको ईश्वरीय आपदायें नहीं कहेंगे। वह तो मनुष्यों के बनाये हुए हैं। अर्थ-ववेक आदि कोई मनुष्यों के बनाये हुए नहीं हैं। यह आपदायें सब आपस में मिलती हैं, पृथ्वी से हल्काई होती है। तुम जानते हो कैसे बाबा हमको एकदम हल्का बनाकर साथ ले जाते हैं नई दुनिया में। माथा हल्का होने से फिर चुस्त हो जाते हैं ना। तुमको बाबा बिल्कुल हल्का कर देते हैं। सब दुःख दूर हो जाते हैं। अभी तुम सबका माथा बहुत भारी है फिर सब हल्के, शान्त, सुखी हो जायेंगे। जो जिस धर्म वाले हैं, सबको खुशी होनी चाहिए, बाबा आया हुआ है, सबकी सद्गति करने। जब पूरी स्थापना हो जाती है तब फिर सब धर्म विनाश हो जाते हैं। आगे तुम्हारी बुद्धि में यह ख्याल भी नहीं था। अभी समझते हो, गायन भी है ब्रह्मा द्वारा स्थापना। बाकी अनेक धर्म सब विनाश। यह कर्तव्य एक बाप ही करते हैं, दूसरा कोई कर न सके। सिवाए एक शिवबाबा के। ऐसा अलौकिक जन्म और अलौकिक कर्तव्य किसका हो न सके। बाप है ऊंच ते ऊंच। तो उनका कर्तव्य भी बहुत ऊंच है। करनकरावनहार है ना। तुम नॉलेज सुनाते हो बाप आया हुआ है, इस सृष्टि से पाप आत्माओं का बोझ उतारने के लिए। यह तो गायन भी है ना-बाप आते हैं एक धर्म की स्थापना और अनेक धर्मों का विनाश करने। तुमको अब कितना ऊंच महात्मा बना रहे हैं। महात्मा देवता बिगर कोई होता नहीं। यहाँ तो अनेकों को महात्मा कहते रहते हैं। परन्तु महात्मा कहा जाता है महान आत्मा को। रामराज्य कहा ही जाता है स्वर्ग को। वहाँ रावण राज्य ही नहीं, तो विकार का सवाल भी नहीं उठ सकता इसलिए उसको कहा जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी। जितना सम्पूर्ण बनेंगे उतना बहुत समय सुख पायेंगे। अपूर्ण तो इतना सुख पा न सकें। स्कूल में भी कोई सम्पूर्ण, कोई अपूर्ण होते हैं। फर्क दिखाई पड़ता है। डॉक्टर माना डॉक्टर। परन्तु कोई की पगार बहुत कम, कोई को बहुत जास्ती। वैसे ही देवतायें तो देवतायें होते हैं परन्तु मर्तये का फर्क कितना पड़ जाता है। बाप आकर तुमको ऊंच पढ़ाई पढ़ाते हैं। श्रीकृष्ण को कहते हैं श्याम सुन्दर। सांवरा कृष्ण भी दिखाते हैं। श्रीकृष्ण सांवरा थोड़ेही होता है। नाम रूप तो बदल जाता है ना। सो भी आत्मा सांवरी बनती है, भिन्न नाम, रूप, देश, काल। अभी तुमको समझाया जाता है, तुम समझते हो बरोबर हम शुरू से लेकर कैसे पार्ट में आये हैं। पहले देवता थे फिर देवता से असुर बनें। बाप ने 84 जन्मों का राज़ भी समझाया है, जिसका और कोई को पता नहीं है। बाप ही आकर सब राज़ समझाते हैं। बाप कहते हैं-मेरे लाडले बच्चे, तुम हमारे साथ घर में रहते थे ना। तुम भाई-भाई थे ना। सब आत्मायें थी, शरीर नहीं था। बाप था और तुम भाई-भाई थे। और कोई सम्बन्ध नहीं था। बाप तो पुनर्जन्म में आते नहीं। वह तो ड्रामा अनुसार रिजर्व रहते हैं। उनका पार्ट ही ऐसा है। तुमने कितना समय पुकारा है, वह भी बाप ने बताया है। ऐसे नहीं, द्वापर से पुकारना शुरू किया है। नहीं, बहुत समय के बाद तुमने पुकारना शुरू किया है। तुमको तो बाप सुखी बनाते हैं अर्थात् सुख का वर्सा बाप दे रहे हैं। तुम भी कहते हो बाबा हम आपके पास कल्प-कल्प अनेक बार आये हैं। यह चक्र चलता ही रहता है। हर 5 हजार वर्ष के बाद बाबा आपसे मिलते हैं और यह वर्सा पाते हैं। जो भी सब देहधारी है सब स्टूडेन्ट हैं, पढ़ाने वाला है विदेही। यह उनकी देह नहीं है। खुद विदेही है, यहाँ आकर देह धारण करते हैं। देह बिगर बच्चों को पढ़ावे कैसे। सभी रूहों का वह बाप है। भक्ति मार्ग में सब उनको पुकारते हैं, बरोबर रूद्र माला सिमरते हैं। ऊपर में है फूल और युगल मेरू। वह तो एक जैसे ही हैं। फूल को क्यों नमस्कार करते हैं, यह भी अभी तुमको पता पड़ा है कि माला किसकी फेरते हैं। देवताओं की माला फेरते हैं या तुम्हारी फेरते हैं? माला देवताओं की है या तुम्हारी है? देवताओं की नहीं कहेंगे। यह ब्राह्मण ही हैं जिनको बाप बैठ पढ़ाते हैं। ब्राह्मण से फिर तुम देवता बन जाते हो। अभी पढ़ते हो फिर वहाँ जाकर देवता पद पाते हो। माला तुम ब्राह्मणों की है, जो तुम बाप द्वारा पढ़कर, मेहनत कर फिर देवता बन जाते हो। बलिहारी पढ़ाने वाले की। बाप ने बच्चों की कितनी सेवा की है। वहाँ तो कोई बाप को याद भी नहीं करते हैं। भक्ति मार्ग में तुम माला फेरते थे। अभी वह फूल आकर तुमको भी फूल बनाते हैं अर्थात् अपनी माला का दाना बनाते हैं। तुम गुल-गुल बनते हो ना। आत्मा का ज्ञान भी अभी तुमको मिलता है। सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में है। तुम्हारी ही महिमा है। तुम ब्राह्मण बैठ आप समान ब्राह्मण बनाकर फिर स्वर्गवासी देवी-देवता बनाते हो। देवतायें स्वर्ग में रहते हैं। तुम जब देवता बन जाते हो वहाँ तुमको पास्ट, प्रेजेन्ट, फ्युचर की नॉलेज नहीं होगी।

अभी तुम ब्राह्मण बच्चों को ही पास्ट, प्रेजेन्ट, फ्युचर का ज्ञान मिलता है, और कोई को भी ज्ञान नहीं मिलता। तुम बहुत- बहुत भाग्यशाली हो। परन्तु माया फिर भुला देती है। तुमको कोई यह बाबा नहीं पढ़ाते हैं। यह तो मनुष्य है, यह भी पढ़ रहे हैं। यह तो सबसे लास्ट में था। सबसे नम्बरवन पतित वही फिर नम्बरवन पावन बनते हैं। कितना सुखी होते हैं। एम आबजेक्ट सामने खड़ी है। बाप तुमको कितना ऊंच बनाते हैं। आयुश्वान भव, पुत्रवान भव….. यह भी ड्रामा में नूँध है। बाप कहते हैं मैं अगर आशीर्वाद दूँ फिर तो सबको देता रहूँ। मैं तो तुम बच्चों को पढ़ाने आता हूँ। पढ़ाई से ही तुम्हें सब आशीवदिं मिल जाती हैं। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सारः-

1)जैसे बाप परफेक्ट है ऐसे स्वयं को परफेक्ट बनाना है। पवित्रता को धारण कर अपनी चलन सुधारनी है, सच्चे सुख-शान्ति का अनुभव करना है।

2) सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान बुद्धि में रख ब्राह्मण सो देवता बनाने की सेवा करनी है। अपने ऊंचे भाग्य को कभी भूलना नहीं है।

वरदानः धारणा स्वरूप द्वारा सेवा करके खुशी का प्रत्यक्षफल प्राप्त करने वाले सच्चे सेवाधारी भव सेवा का उमंग रखना बहुत अच्छा है लेकिन यदि सरकमस्टांस अनुसार सेवा का चांस आपको नहीं मिलता है तो अपनी अवस्था गिरावट वा हलचल में न आये। अगर ज्ञान सुनाने का चांस नहीं मिलता है लेकिन आप अपनी धारणा स्वरूप का प्रभाव डालते हो तो सेवा की मार्क्स जमा हो जाती हैं। धारणा स्वरूप बच्चे ही सच्चे सेवाधारी हैं। उन्हें सर्व की दुआयें और सेवा के रिटर्न में प्रत्यक्षफल खुशी की अनुभूति होती है।

स्लोगनः सच्चे दिल से दाता, विधाता, वरदाता को राज़ी कर लो तो रूहानी मौज में रहेंगे।

प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: बाप पुनर्जन्म में क्यों नहीं आते?
उत्तर: बाप रिजर्व में रहते हैं ताकि वे तुम्हें तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाने का कार्य कर सकें।


प्रश्न 2: देवताएँ हमेशा सुखी क्यों होती हैं?
उत्तर: देवताएँ पवित्र होती हैं, और पवित्रता से उनकी चलन सुधरी रहती है, जहाँ पवित्रता है, वहाँ सुख और शांति है।


प्रश्न 3: हम सुख घनेरे कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर: हमें बाप के पास आकर पवित्रता को धारण करना होगा और पुरूषार्थ करना होगा।


प्रश्न 4: सुख-शांति के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्या है?
उत्तर: पवित्रता सबसे महत्वपूर्ण है; पवित्रता से ही सुख और शांति प्राप्त होती है।


प्रश्न 5: लक्ष्मी-नारायण बनने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर: हमें सम्पूर्ण निर्विकारी बनना चाहिए और पवित्रता को अपनाना चाहिए।


प्रश्न 6: माया से जीतने का क्या महत्व है?
उत्तर: माया पर विजय पाने से हम फिर से पवित्र बन सकते हैं, जिससे सुख और शांति प्राप्त होती है।


प्रश्न 7: ज्ञान का महत्व क्या है?
उत्तर: ज्ञान से हमें सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान मिलता है, जो हमें ब्राह्मण से देवता बनने में मदद करता है।


प्रश्न 8: हम क्यों भूल जाते हैं?
उत्तर: माया के प्रभाव से हम बार-बार भूल जाते हैं, इसलिए हमें ध्यान और पुरूषार्थ बनाए रखना चाहिए।


प्रश्न 9: बाप का आशीर्वाद कैसे मिलता है?
उत्तर: बाप का आशीर्वाद हमें ज्ञान और पवित्रता की साधना के द्वारा मिलता है।


प्रश्न 10: सच्चे सेवाधारी कौन होते हैं?
उत्तर: धारणा स्वरूप बच्चे ही सच्चे सेवाधारी होते हैं, जो सेवा का उमंग रखते हैं और दूसरों पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।