MURLI 18-01-2025/BRAHMAKUMARIS

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Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

18-01-25
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
”अव्यक्त-बापदादा”
मधुबन

“पिताश्री जी के पुण्य स्मृति दिवस पर प्रात:क्लास में सुनाने के लिए बापदादा के मधुर अनमोल महावाक्य”

ओम् शान्ति। रूहानी बाप अभी तुम बच्चों से रूहरिहान कर रहे हैं, शिक्षा दे रहे हैं। टीचर का काम है शिक्षा देना और गुरू का काम है मंजिल बताना। मंजिल है मुक्ति जीवनमुक्ति की। मुक्ति के लिए याद की यात्रा बहुत जरूरी है और जीवनमुक्ति के लिए रचना के आदि मध्य अन्त को जानना जरूरी है। अब 84 का चक्र पूरा होता है, अब वापिस घर जाना है। अपने साथ ऐसी-ऐसी बातें करने से बड़ी खुशी आयेगी और फिर दूसरों को भी खुशी में लायेंगे। दूसरों पर भी मेहर करनी है रास्ता बताने की। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाने की। बाबा ने तुम बच्चों को पुण्य और पाप की गहन गति भी समझाई है। पुण्य क्या है और पाप क्या है! सबसे बड़ा पुण्य है – बाप को याद करना और दूसरों को भी याद दिलाना। सेन्टर खोलना, तन-मन-धन दूसरों की सेवा में लगाना, यह है पुण्य। संगदोष में आकर व्यर्थ चिंतन, परचिंतन में अपना समय बरबाद करना यह है पाप। अगर कोई पुण्य करते-करते पाप कर लेते हैं तो की कमाई सारी खत्म हो जाती है। जो कुछ भी पुण्य किया वह सब खत्म हो जाता है, फिर जमा के बदले ना हो जाती है। पाप कर्म की सज़ा भी ज्ञानी तू आत्मा बच्चों के लिए 100 गुणा है क्योंकि सतगुरू के निंदक बन जाते हैं इसलिए बाप शिक्षा देते हैं मीठे बच्चे, कभी भी पाप कर्म नहीं करना। विकारों की चोट खाने से बचकर रहना।

बाप का बच्चों पर लव है तो तरस भी पड़ता है। बाप अनुभव सुनाते हैं जब एकान्त में बैठते हैं तो पहले अनन्य बच्चे याद आते हैं। भल विलायत में हैं अथवा कहाँ भी हैं। कोई अच्छा सर्विसएबुल बच्चा शरीर छोड़ जाता है तो उनकी आत्मा को भी याद कर सर्चलाइट देते हैं। यह तुम बच्चे जानते हो यहाँ दो बत्तियाँ हैं, दोनों लाइट इकट्ठी हैं। यह दोनों जबरदस्त लाइट हैं। सवेरे का टाइम अच्छा है स्नान कर एकान्त में चले जाना चाहिए। अन्दर खुशी भी बहुत रहनी चाहिए।

बेहद का बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं – मीठे बच्चे, अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को और अपने घर को याद करो। बच्चे, इस याद की यात्रा को कभी भूलना नहीं। याद से ही तुम पावन बनेंगे। पावन बनने बिगर तुम वापस घर जा नहीं सकते। मुख्य है ही ज्ञान और योग। बाप के पास यही बहुत बड़ा खजाना है जो बच्चों को देते हैं, इसमें योग की बहुत बड़ी सब्जेक्ट है। बच्चे अच्छी रीति याद करते हैं तो बाप की भी याद से याद मिलती है। याद से बच्चे बाप को खींचते हैं। पिछाड़ी में आने वाले जो ऊंच पद पाते, उसका आधार भी याद है। वह कशिश करते हैं। कहते हैं ना – बाबा रहम करो, कृपा करो, इसमें भी मुख्य चाहिए याद। याद से ही करेन्ट मिलती रहेगी, इससे आत्मा हेल्दी बनती है, भरपूर हो जाती है। कोई समय बाप को किसी बच्चे को करेन्ट देनी होती है तो नींद भी फिट जाती है। यह फुरना लगा रहता है कि फलाने को करेन्ट देनी है। तुम जानते हो करेन्ट मिलने से आयु बढ़ती है, एवरहेल्दी बनते हैं। ऐसे भी नहीं एक जगह बैठ याद करना है। बाप समझाते हैं चलते फिरते भोजन खाते, कार्य करते भी बाप को याद करो। दूसरे को करेन्ट देनी है तो रात्रि को भी जागो। बच्चों को समझाया है – सवेरे उठकर जितना बाप को याद करेंगे उतना कशिश होगी। बाप भी सर्चलाइट देंगे। आत्मा को याद करना अर्थात् सर्चलाइट देना, फिर इसको कृपा कहो, आशीर्वाद कहो।

तुम बच्चे जानते हो यह अनादि बना बनाया ड्रामा है। यह हार जीत का खेल है। जो होता है वह ठीक है। क्रियेटर को ड्रामा जरूर पसन्द होगा ना। तो क्रियेटर के बच्चों को भी पसन्द होगा। इस ड्रामा में बाप एक ही बार बच्चों के पास बच्चों की दिल व जान, सिक व प्रेम से सेवा करने आते हैं। बाप को तो सब बच्चे प्यारे हैं। तुम जानते हो सतयुग में भी सब एक दो को बहुत प्यार करते हैं। जानवरों में भी प्यार रहता है। ऐसे कोई जानवर नहीं होते जो प्यार से न रहें। तो तुम बच्चों को यहाँ मास्टर प्यार का सागर बनना है। यहाँ बनेंगे तो वह संस्कार अविनाशी बन जायेंगे। बाप कहते हैं कल्प पहले मिसल हूबहू फिर से प्यारा बनाने आया हूँ। कभी किसी बच्चे का गुस्से का आवाज सुनते हैं तो बाप शिक्षा देते हैं बच्चे गुस्सा करना ठीक नहीं है, इससे तुम भी दु:खी होंगे, दूसरों को भी दु:खी करेंगे। बाप सदाकाल का सुख देने वाला है तो बच्चों को भी बाप समान बनना है। एक दो को कभी दु:ख नहीं देना है। बहुत-बहुत लवली बनना है। लवली बाप को बहुत लव से याद करेंगे तो अपना भी कल्याण, दूसरों का भी कल्याण करेंगे।

अभी विश्व का मालिक तुम्हारे पास मेहमान बनकर आया है। तुम बच्चों के सहयोग से ही विश्व का कल्याण होना है। जैसे तुम रूहानी बच्चों को बाप अति प्यारा लगता, वैसे बाप को भी तुम रूहानी बच्चे बहुत प्यारे लगते हो क्योंकि तुम ही श्रीमत पर सारे विश्व का कल्याण करने वाले हो। अभी तुम यहाँ ईश्वरीय परिवार में बैठे हो। बाप सम्मुख बैठा है। तुम्हीं से खाऊं, तुम्ही से बैठूँ.. तुम जानते हो शिवबाबा इसमें आकर कहते हैं मीठे बच्चे, देह सहित देह के सभी सम्बन्धों को भूल मामेकम् याद करो। यह अन्तिम जन्म है, यह पुरानी दुनिया, पुरानी देह खलास हो जानी है। कहावत भी है आप मुये मर गई दुनिया। पुरुषार्थ के लिए थोड़ा सा संगम का समय है। बच्चे पूछते हैं बाबा यह पढ़ाई कब तक चलेगी! जब तक दैवी राजधानी स्थापन हो जाए तब तक सुनाते रहेंगे। फिर ट्रांसफर होंगे नई दुनिया में। बाबा कितना निरंहकार से तुम बच्चों की सेवा करते हैं, तो तुम बच्चों को भी इतनी सेवा करनी चाहिए। श्रीमत पर चलना चाहिए। कहाँ अपनी मत दिखाई तो तकदीर को लकीर लग जायेगी। तुम ब्राह्मण ईश्वरीय सन्तान हो। ब्रह्मा की औलाद भाई-बहन हो, ईश्वरीय पोत्रे-पोत्रियाँ हो, उनसे वर्सा ले रहे हो। जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना पद पायेंगे। इसमें साक्षी रहने का भी बहुत अभ्यास चाहिए। बाप का पहला फरमान है अशरीरी भव, देही-अभिमानी भव। अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो तब ही जो खाद पड़ी है वह निकलेगी, सच्चा सोना बन जायेंगे। तुम बच्चे अधिकार से कह सकते हो बाबा ओ मीठे बाबा, आपने मुझे अपना बनाके सब कुछ वर्से में दे दिया है। इस वर्से को कोई छीन नहीं सकता है, इतना तुम बच्चों को नशा रहना चाहिए। तुम ही सभी को मुक्ति जीवनमुक्ति का रास्ता बताने वाले लाइट हाउस हो, उठते-बैठते, चलते-फिरते तुम लाइट हाउस होकर रहो।

बाप कहते हैं बच्चे, अब टाइम बहुत थोड़ा है, गाया भी जाता है एक घड़ी आधी घड़ी… जितना हो सके एक बाप को याद करने लग जाओ और फिर चार्ट को बढ़ाते रहो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे लकी और लवली ज्ञान सितारों को मातपिता बापदादा का दिल व जान सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

अव्यक्त-महावाक्य – निरन्तर योगी बनो

जैसे एक सेकेण्ड में स्वीच आन और आफ किया जाता है, ऐसे ही एक सेकेण्ड में शरीर का आधार लिया और फिर एक सेकेण्ड में शरीर से परे अशरीरी स्थिति में स्थित हो जाओ। अभी-अभी शरीर में आये फिर अभी-अभी अशरीरी बन गये, यह प्रैक्टिस करनी है, इसी को ही कर्मातीत अवस्था कहा जाता है। जैसे कोई वस्त्र धारण करना वा न करना अपने हाथ में रहता है। आवश्यकता हुई धारण किया, आवश्यकता न हुई तो उतार दिया। ऐसा ही अनुभव इस शरीर रूपी वस्त्र को धारण करने और उतारने में हो। कर्म करते भी ऐसा अनुभव होना चाहिए जैसे कोई वस्त्र धारण कर कार्य कर रहे हैं, कार्य पूरा हुआ और वस्त्र से न्यारे हुए। शरीर और आत्मा दोनों का न्यारापन चलते-फिरते भी अनुभव हो। जैसे कोई प्रैक्टिस हो जाती है ना, लेकिन यह प्रैक्टिस किन्हें हो सकती है? जो शरीर के साथ वा शरीर के सम्बन्ध में जो भी बातें हैं, शरीर की दुनिया, सम्बन्ध वा अनेक जो भी वस्तुयें हैं उनसे बिल्कुल डिटैच होंगे, जरा भी लगाव नहीं होगा तब न्यारा हो सकेंगे। अगर सूक्ष्म संकल्प में भी हल्कापन नहीं है, डिटैच नहीं हो सकते तो न्यारेपन का अनुभव नहीं कर सकेंगे। तो हर एक को अब यह प्रैक्टिस करनी है, बिल्कुल ही न्यारेपन का अनुभव हो। इस स्टेज पर रहने से अन्य आत्माओं को भी आप लोगों से न्यारेपन का अनुभव होगा, वह भी महसूस करेंगे। जैसे योग में बैठने के समय कई आत्माओं को अनुभव होता है ना, यह ड्रिल कराने वाले न्यारी स्टेज में हैं, ऐसे चलते-फिरते फरिश्तेपन के साक्षात्कार होंगे। यहाँ बैठे हुए भी अनेक आत्माओं को, जो भी आपके सतयुगी फैमिली में समीप आने वाले होंगे, उन्हों को आप लोगों के फरिश्ते रूप और भविष्य राज्य पद के दोनों इक्ट्ठे साक्षात्कार होंगे। जैसे शुरू में ब्रह्मा में सम्पूर्ण स्वरूप और श्रीकृष्ण का दोनों साथ-साथ साक्षात्कार करते थे, ऐसे अब उन्हों को तुम्हारे डबल रूप का साक्षात्कार होगा। जैसे-जैसे नम्बरवार इस न्यारी स्टेज पर आते जायेंगे तो आप लोगों के भी यह डबल साक्षात्कार होंगे। अभी यह पूरी प्रैक्टिस हो जाए तो यहाँ वहाँ से यही समाचार आने शुरू हो जायेंगे। जैसे शुरू में घर बैठे भी अनेक समीप आने वाली आत्माओं को साक्षात्कार हुए ना। वैसे अब भी साक्षात्कार होंगे। यहाँ बैठे भी बेहद में आप लोगों का सूक्ष्म स्वरूप सर्विस करेगा। अब यही सर्विस रही हुई है। साकार में सभी इग्जाम्पुल तो देख लिया। सभी बातें नम्बरवार ड्रामा अनुसार होनी हैं। जितना-जितना स्वयं आकारी फरिश्ते स्वरूप में होंगे उतना आपका फरिश्ता रूप सर्विस करेगा। आत्मा को सारे विश्व का चक्र लगाने में कितना समय लगता है? तो अभी आपके सूक्ष्म स्वरूप भी सर्विस करेंगे लेकिन जो इस न्यारी स्थिति में होंगे। स्वयं फरिश्ते रूप में स्थित होंगे। शुरू में सभी साक्षात्कार हुए हैं। फरिश्ते रूप में सम्पूर्ण स्टेज और पुरुषार्थी स्टेज दोनों अलग-अलग साक्षात्कार होता था। जैसे साकार ब्रह्मा और सम्पूर्ण ब्रह्मा का अलग-अलग साक्षात्कार होता था, वैसे अनन्य बच्चों के साक्षात्कार भी होंगे। हंगामा जब होगा तो साकार शरीर द्वारा तो कुछ कर नहीं सकेंगे और प्रभाव भी इस सर्विस से पड़ेगा। जैसे शुरू में भी साक्षात्कार से ही प्रभाव हुआ ना। परोक्ष-अपरोक्ष अनुभव ने प्रभाव ड़ाला। वैसे अन्त में भी यही सर्विस होनी है। अपने सम्पूर्ण स्वरूप का साक्षात्कार अपने आप को होता है? अभी शक्तियों को पुकारना शुरू हो गया है। अभी परमात्मा को कम पुकारते हैं, शक्तियों की पुकार तेज रफ्तार से चालू हो गई है। तो ऐसी प्रैक्टिस बीच-बीच में करनी है। आदत पड़ जाने से फिर बहुत आनन्द फील होगा। एक सेकेण्ड में आत्मा शरीर से न्यारी हो जायेगी, प्रैक्टिस हो जायेगी। अभी यही पुरुषार्थ करना है।

वर्तमान समय मनन शक्ति से आत्मा में सर्व शक्तियाँ भरने की आवश्यकता है तब मगन अवस्था रहेगी और विघ्न टल जायेंगे। विघ्नों की लहर तब आती है जब रूहानियत की तरफ फोर्स कम हो जाता है। तो वर्तमान समय शिवरात्रि की सर्विस के पहले स्वयं में शक्ति भरने का फोर्स चाहिए। भल योग के प्रोग्राम्स रखते हो लेकिन योग द्वारा शक्तियों का अनुभव करना, कराना अब ऐसी क्लासेज़ की आवश्यकता है। प्रैक्टिकल अपने बल के आधार से औरों को बल देना है। सिर्फ बाहर की सर्विस के प्लैन नहीं सोचने हैं लेकिन पूरी ही नज़र चाहिए सभी तरफ। जो निमित्त बने हुए हैं उन्हों को यह ख्यालात आनी चाहिए कि हमारी फुलवारी किस बात में कमजोर है। किसी भी रीति से अपने फुलवारी की कमजोरी पर कड़ी दृष्टि रखनी चाहिए। समय देकर भी कमजोरियों को खत्म करना है।

जैसे साकार रूप को देखा, कोई भी ऐसी लहर का समय होता, तो दिन-रात सकाश देने की विशेष सर्विस, विशेष प्लैन्स चलते थे। निर्बल आत्माओं को बल भरने का विशेष अटेन्शन रहता था जिससे अनेक आत्माओं को अनुभव भी होता था। रात-रात को भी समय निकाल आत्माओं को सकाश भरने की सर्विस चलती थी। तो अभी विशेष सकाश देने की सर्विस करनी है। लाइट हाउस, माइट हाउस बनकर यह सर्विस खास करनी है, तब चारों ओर लाइट माइट का प्रभाव फैलेगा। अभी यही आवश्यकता है। जैसे कोई साहूकार होता है तो अपने नजदीक सम्बन्धियों को मदद देकर ऊंचा उठा लेता है, ऐसे वर्तमान समय जो भी कमजोर आत्मायें सम्पर्क और सम्बन्ध में हैं, उन्हों को विशेष सकाश देनी है। अच्छा-

वरदान:- हजार भुजा वाले ब्रह्मा बाप के साथ का निरन्तर अनुभव करने वाले सच्चे स्नेही भव
वर्तमान समय हजार भुजा वाले ब्रह्मा बाप के रूप का पार्ट चल रहा है। जैसे आत्मा के बिना भुजा कुछ नहीं कर सकती, वैसे बापदादा के बिना भुजा रूपी बच्चे कुछ नहीं कर सकते। हर कार्य में पहले बाप का सहयोग है। जब तक स्थापना का पार्ट है तब तक बापदादा बच्चों के हर संकल्प और सेकण्ड में साथ-साथ है इसलिए कभी भी जुदाई का पर्दा डाल वियोगी नहीं बनो। प्रेम के सागर की लहरों में लहराओ, गुणगान करो लेकिन घायल नहीं बनो। बाप के स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप सेवा के स्नेही बनो।
स्लोगन:- अशरीरी स्थिति का अनुभव व अभ्यास ही नम्बर आगे आने का आधार है।

अपनी शक्तिशाली मन्सा द्वारा सकाश देने की सेवा करो

हर समय, हर आत्मा के प्रति मन्सा स्वत: शुभभावना और शुभकामना के शुद्ध वायब्रेशन वाली स्वयं को और दूसरों को अनुभव हो। मन से हर समय सर्व आत्माओं प्रति दुआयें निकलती रहें। मन्सा सदा इसी सेवा में बिजी रहे। जैसे वाचा की सेवा में बिजी रहने के अनुभवी हो गये हो। अगर सेवा नहीं मिलती तो अपने को खाली अनुभव करते हो। ऐसे हर समय वाणी के साथ-साथ मन्सा सेवा स्वत: होती रहे।

“ब्रह्मा बाबा के पुण्य स्मृति दिवस पर बापदादा के अमूल्य महावाक्य और मार्गदर्शन”

प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1:योग और ज्ञान में मुख्य अंतर क्या है, और इनका संगम पर क्या महत्व है?

उत्तर:ज्ञान का अर्थ है सृष्टि चक्र, आत्मा और परमात्मा के सत्य को समझना, जबकि योग का तात्पर्य है आत्मा का परमात्मा से संबंध जोड़ना। संगम पर योग द्वारा आत्मा पावन बनती है और ज्ञान द्वारा आत्मा अपनी मंज़िल को स्पष्ट करती है। योग आत्मा को सतोप्रधान बनाता है, जो मुक्ति और जीवनमुक्ति के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 2:ब्रह्मा बाबा ने पुण्य और पाप को कैसे परिभाषित किया?

उत्तर:ब्रह्मा बाबा के अनुसार, सबसे बड़ा पुण्य है – परमपिता परमात्मा को याद करना और दूसरों को भी इस याद में लगाना। तन-मन-धन से सेवा करना पुण्य है। वहीं, संगदोष में आकर समय व्यर्थ करना, व्यर्थ चिंतन या विकारों में लिप्त होना पाप है। पाप कर्म करने से पुण्य की कमाई खत्म हो जाती है और आत्मा तमोप्रधान हो जाती है।


प्रश्न 3:बापदादा ने याद की यात्रा को क्यों महत्वपूर्ण बताया है?

उत्तर:याद की यात्रा आत्मा को पवित्र बनाती है और उसे बाप से जोड़ती है। यही यात्रा आत्मा को ऊर्जा (करेन्ट) देती है, जिससे आत्मा एवरहेल्दी बनती है और उसकी आयु बढ़ती है। यह यात्रा ही आत्मा को मुक्ति और जीवनमुक्ति दिलाने का साधन है। बापदादा कहते हैं कि चलते-फिरते, कार्य करते हुए भी बाप को याद करना चाहिए।


प्रश्न 4:“अशरीरी भव” का क्या अर्थ है, और इसे कैसे प्रैक्टिस किया जा सकता है?

उत्तर:“अशरीरी भव” का अर्थ है – अपने को शरीर से न्यारा अनुभव करना और आत्मा रूपी स्वरूप में स्थित होना। इसे प्रैक्टिस करने के लिए आत्मा को शरीर रूपी वस्त्र की तरह समझें, जिसे आवश्यकता होने पर धारण करें और फिर न्यारा हो जाएं। यह अभ्यास एक सेकंड में शरीर से परे होने की योग्यता विकसित करता है और आत्मा को कर्मातीत स्थिति में ले जाता है।


प्रश्न 5:बापदादा ने “लाइट हाउस और माइट हाउस” बनने की शिक्षा क्यों दी?

उत्तर:लाइट हाउस और माइट हाउस बनने का अर्थ है आत्मा का ज्ञान और शक्ति का स्रोत बनना। यह स्थिति आत्मा को निरंतर सकाश देने योग्य बनाती है, जिससे कमजोर आत्माओं को बल मिलता है। बापदादा ने कहा कि वर्तमान समय में आत्मा को मन्सा (विचार शक्ति) के द्वारा सेवा करनी चाहिए, ताकि पूरे विश्व में शुद्ध वायब्रेशन फैलें।


प्रश्न 6:“ड्रामा” को बापदादा ने किस दृष्टिकोण से समझाया है?

उत्तर:बापदादा ने कहा कि यह अनादि बना-बनाया ड्रामा है, जिसमें हार और जीत का खेल चलता है। जो कुछ भी होता है, वह ड्रामा अनुसार सही होता है। ड्रामा के रचयिता को यह पसंद है, इसलिए बच्चों को भी इसे स्वीकार करना चाहिए। बापदादा के अनुसार, इस ड्रामा में बाप एक बार बच्चों को मिलने आते हैं, और यह संगम का समय अमूल्य है।

प्रश्न 7:अन्तिम समय की तैयारी के लिए बापदादा ने क्या मार्गदर्शन दिया?

उत्तर:बापदादा ने कहा कि अन्तिम समय में एक बाप को याद करना ही मुख्य है। “मामेकम् याद करो” – यह मंत्र है। जीवन के इस अन्तिम जन्म में देह और देह के सभी सम्बन्धों को भूलकर अशरीरी स्थिति में रहना आवश्यक है। संगम का समय बहुत कम है, इसलिए याद का चार्ट बढ़ाते रहना चाहिए।

प्रश्न 8:न्यारी स्थिति” से क्या तात्पर्य है, और यह कैसे अनुभव की जा सकती है?

उत्तर:“न्यारी स्थिति” का अर्थ है आत्मा का शरीर, सम्बन्ध, और सम्पत्ति से पूरी तरह डिटैच (निरासक्त) होना। यह स्थिति केवल उन आत्माओं द्वारा अनुभव की जा सकती है जो अपनी सभी वस्तुओं और सम्बन्धों से मोह-मुक्त हों। इस प्रैक्टिस से आत्मा फरिश्ते जैसे हल्के स्वरूप में स्थित हो जाती है, और दूसरों को भी इस स्थिति का अनुभव कराती है।

प्रश्न 9:बापदादा ने आत्माओं को शक्ति भरने के लिए कौन से विशेष निर्देश दिए?

उत्तर:बापदादा ने कहा कि रात्रि में और सवेरे उठकर आत्माओं को विशेष सकाश दें। मन से शुभभावना और शुभकामना के वायब्रेशन फैलाएं। ध्यान रखें कि निर्बल आत्माओं को बल भरने के लिए मन्सा सेवा में विशेष रूप से व्यस्त रहें। यह सेवा वर्तमान समय की प्रमुख आवश्यकता है।


प्रश्न 10:ब्रह्मा बाबा के अनुसार, अशरीरी स्थिति का अभ्यास क्यों आवश्यक है?

उत्तर:अशरीरी स्थिति का अभ्यास आत्मा को कर्मातीत अवस्था में ले जाता है, जो अन्तिम समय में सर्वश्रेष्ठ स्थिति मानी जाती है। यह अभ्यास आत्मा को रूहानी शक्तियों से भरपूर बनाता है और आत्मा को जीवनमुक्ति की स्थिति में पहुँचाता है।


सार:ब्रह्मा बाबा के पुण्य स्मृति दिवस पर बापदादा ने संगम युग की महत्ता, अशरीरी स्थिति का अभ्यास, याद की शक्ति और मन्सा सेवा के महत्व को स्पष्ट किया। यह मार्गदर्शन हर आत्मा को दिव्यता की ओर प्रेरित करता है।

स्लोगन:अशरीरी स्थिति का अभ्यास ही नम्बर आगे आने का आधार है।”

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