(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
19-06-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
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मधुबन |
“मीठे बच्चे – अभी तुम ईश्वरीय औलाद बने हो, तुम्हारे में कोई आसुरी गुण नहीं होने चाहिए, अपनी उन्नति करनी है, ग़फलत नहीं करनी है” | |
प्रश्नः- | आप संगमयुगी ब्राह्मण बच्चों को कौन-सा निश्चय और नशा है? |
उत्तर:- | हम बच्चों को निश्चय और नशा है कि अभी हम ईश्वरीय सम्प्रदाय के हैं। हम स्वर्गवासी विश्व के मालिक बन रहे हैं। संगम पर हम ट्रांसफर हो रहे हैं। आसुरी औलाद से ईश्वरीय औलाद बन 21 जन्मों के लिए स्वर्गवासी बनते हैं, इससे भारी कोई वस्तु होती नहीं। |
ओम् शान्ति। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं, अक्सर करके मनुष्य शान्ति को पसन्द करते हैं। घर में अगर बच्चों की खिट-खिट है, तो अशान्ति रहती है। अशान्ति से दु:ख भासता है। शान्ति से सुख भासता है। यहाँ तुम बच्चे बैठे हो, तुमको सच्ची शान्ति है। तुमको कहा गया है बाप को याद करो। अपने को आत्मा समझो। आत्मा में जो आधाकल्प से अशान्ति है, वह निकलनी है शान्ति के सागर बाप को याद करने से। तुमको शान्ति का वर्सा मिल रहा है। यह भी तुम जानते हो शान्ति की दुनिया और अशान्ति की दुनिया बिल्कुल अलग है। आसुरी दुनिया, ईश्वरीय दुनिया, सतयुग, कलियुग किसको कहा जाता है, यह कोई मनुष्य मात्र नहीं जानते। तुम कहेंगे हम भी नहीं जानते थे। भल कितने भी पोजीशन वाले थे। पैसे वाले को पोजीशन वाला कहा जाता है। गरीब और साहूकार समझ तो सकते हैं ना। वैसे तुम भी समझ सकते हो बरोबर ईश्वरीय औलाद और आसुरी औलाद। अभी तुम मीठे बच्चे समझते हो हम ईश्वरीय सन्तान हैं। यह पक्का निश्चय है ना। तुम ब्राह्मण समझते हो हम ईश्वरीय सम्प्रदाय स्वर्गवासी विश्व के मालिक बन रहे हैं। हरदम वह खुशी रहनी चाहिए। बहुत थोड़े हैं जो यथार्थ रीति से समझते हैं। सतयुग में हैं ईश्वरीय सम्प्रदाय। कलियुग में हैं आसुरी सम्प्रदाय। पुरुषोत्तम संगमयुग पर आसुरी सम्प्रदाय बदली होती है। अभी हम शिवबाबा की औलाद बने हैं। बीच में भूल गये थे। अभी फिर इस समय जाना है कि हम शिवबाबा की सन्तान हैं। वहाँ सतयुग में कोई अपने को ईश्वरीय औलाद नहीं कहलाते। वहाँ हैं दैवी औलाद। इनके पहले हम आसुरी औलाद थे। अभी ईश्वरीय औलाद बने हैं। हम ब्राह्मण बी.के. हैं। रचना है एक बाप की। तुम सब भाई-बहन हो और ईश्वरीय औलाद हो। तुम जानते हो बाबा से राज्य मिल रहा है। भविष्य में जाकर हम दैवी स्वराज्य पायेंगे, सुखी होंगे। बरोबर सतयुग है सुख का धाम, कलियुग है दु:खधाम। यह सिर्फ तुम संगमयुगी ब्राह्मण जानते हो। आत्मा ही ईश्वरीय औलाद है। यह भी जानते हो बाबा स्वर्ग की स्थापना करते हैं। वह रचता है ना। नर्क का क्रियेटर तो नहीं है। उनको कौन याद करेंगे। तुम मीठे-मीठे बच्चे जानते हो – बाप स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। वह हमारा बहुत मीठा बाप है। हमको 21 जन्मों के लिए स्वर्गवासी बनाते हैं, इससे भारी वस्तु कोई होती नहीं। यह समझ रखनी चाहिए। हम ईश्वरीय औलाद हैं, तो हमारे में कोई आसुरी अवगुण होना नहीं चाहिए। अपनी उन्नति करनी है। समय बाकी थोड़ा है, इसमें ग़फलत नहीं करनी चाहिए। भूल न जाओ। देखते हो बाप सम्मुख बैठा है, जिनकी हम औलाद हैं। हम ईश्वर बाप से पढ़ रहे हैं दैवी औलाद बनने के लिए, तो कितनी खुशी होनी चाहिए। बाबा सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो जाएं। बाप आये ही हैं सबको ले जाने। जितना-जितना याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे। अज्ञान में जैसे कन्या की सगाई होती है तो याद बिल्कुल छप जाती है। बच्चा पैदा हुआ और याद छप जाती है। यह याद तो स्वर्ग में भी छप जाती, नर्क में भी छप जाती। बच्चा कहेगा यह हमारा बाप है, अब यह तो है बेहद का बाप। जिससे स्वर्ग का वर्सा मिलता है तो उनकी याद छप जानी चाहिए। बाप से हम भविष्य 21 जन्मों का फिर से वर्सा ले रहे हैं। बुद्धि में वर्सा ही याद है।
यह भी जानते हो मरना तो सबको है। एक भी रहने का नहीं है जो भी डियरेस्ट से डियरेस्ट (प्यारा से प्यारा) है, सब चले जायेंगे। यह सिर्फ तुम ब्राह्मण ही जानते हो कि यह पुरानी दुनिया अब गई कि गई। उसके जाने के पहले पूरा पुरुषार्थ करना है। जबकि ईश्वरीय औलाद हैं तो अथाह खुशी होनी चाहिए। बाप कहते रहते हैं – बच्चे, अपना जीवन हीरे जैसा बनाओ। वह है डीटी वर्ल्ड, यह है डेविल वर्ल्ड। सतयुग में कितना अथाह सुख रहता है। वह बाप ही देते हैं। यहाँ तुम बाप के पास आये हो। यहाँ बैठ तो नहीं जायेंगे। ऐसे तो नहीं सब इकट्ठे रहेंगे क्योंकि बेहद बच्चे हैं। यहाँ तुम बहुत उमंग से आते हो। हम जाते हैं बेहद के बाप पास। हम ईश्वरीय औलाद हैं। गॉड फादर के बच्चे हैं, तो हम क्यों न स्वर्ग में होने चाहिए। गॉड फादर तो स्वर्ग रचते हैं ना। अब तुम्हारी बुद्धि में सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी है। जानते हो हेविनली गॉड फादर हमको हेविन के लायक बना रहे हैं। कल्प-कल्प बाद बनाते हैं। एक भी मनुष्य नहीं जिसको यह पता हो कि हम एक्टर हैं। गॉड फादर के बच्चे फिर हम दु:खी क्यों हैं! आपस में लड़ते क्यों हैं! हम आत्मायें सब ब्रदर्स हैं ना। ब्रदर्स आपस में कैसे लड़ते रहते हैं। लड़कर खत्म हो जायेंगे। यहाँ हम बाप से वर्सा ले रहे हैं। ब्रदर्स को आपस में कभी लून-पानी नहीं होना चाहिए। यहाँ तो बाप से भी लून-पानी होते हैं। अच्छे-अच्छे बच्चे लून-पानी हो जाते हैं। माया कितनी जबरदस्त है। जो अच्छे-अच्छे बच्चे हैं वह बाप को याद तो पड़ते हैं। बाप का कितना लव है बच्चों पर। बाप को तो सिवाए बच्चों के और कोई है नहीं जिसको याद करें। तुम्हारे लिए तो बहुत हैं। तुम्हारी बुद्धि इधर-उधर जाती है। धन्धे आदि में भी बुद्धि जाती है। हमारे लिए तो कोई धन्धा आदि भी नहीं है। तुम अनेक बच्चों के अनेक धन्धे हैं। हमारा तो एक ही धन्धा है। हम आये ही हैं बच्चों को स्वर्ग का वारिस बनाने। बेहद के बाप की प्रापर्टी सिर्फ तुम बच्चे हो। गॉड फादर है ना। सभी आत्मायें उनकी प्रापर्टी हैं। माया ने छी-छी बना दिया है। अब गुल-गुल बनाते हैं बाप। बाप कहते हैं मेरे तो तुम ही हो। तुम्हारे ऊपर हमारा मोह भी है। चिट्ठी नहीं लिखते हो तो ओना हो जाता है। अच्छे-अच्छे बच्चों की चिट्ठी नहीं आती है। अच्छे-अच्छे बच्चों को एकदम माया खत्म कर देती है। जरूर देह-अभिमान है। बाप कहते रहते हैं अपनी खुशखैराफत लिखो। बाबा बच्चों से पूछते हैं बच्चे तुमको माया हैरान तो नहीं करती है? बहादुर बन माया पर जीत पहन रहे हो ना! तुम युद्ध के मैदान में हो ना। कर्मेन्द्रियां ऐसे वश करनी चाहिए जो कुछ भी चंचलता न हो। सतयुग में सब कर्मेन्द्रियां वश में रहती हैं। कर्मेन्द्रियों की कोई चंचलता नहीं होती है। न मुख की, न हाथ की, न कान की….. कोई भी चंचलता की बात नहीं होती। वहाँ कोई भी गन्द की चीज़ होती नहीं। यहाँ योगबल से कर्मेन्द्रियों पर जीत पाते हो। बाप कहते हैं कोई भी गन्दी बात नहीं। कर्मेन्द्रियों को वश करना है। अच्छी रीति पुरुषार्थ करना है। टाइम बहुत थोड़ा है। गायन भी है बहुत गई थोड़ी रही। अभी थोड़ी रहती जाती है। नया मकान बनता रहता है तो बुद्धि में रहता है ना – बाकी थोड़ा समय है। अभी यह तैयार हो जायेगा, बाकी यह थोड़ा काम है। वह है हद की बात, यह है बेहद की बात। यह भी बच्चों को समझाया गया है उन्हों का है साइंस बल, तुम्हारा है साइलेन्स बल। है उनका भी बुद्धि बल, तुम्हारा भी बुद्धि बल। साइंस की कितनी इन्वेन्शन निकालते रहते हैं। अभी तो ऐसे बाम्ब्स बनाते रहते हैं जो कहते हैं वहाँ बैठे-बैठे छोड़ेंगे तो सारा शहर खत्म हो जायेगा। फिर यह सेनायें, एरोप्लेन आदि भी काम में नहीं आयेंगे। तो वह है साइंस बुद्धि। तुम्हारी है साइलेन्स बुद्धि। वह विनाश के लिए निमित्त बने हुए हैं। तुम अविनाशी पद पाने के लिए निमित्त बने हो। यह भी समझने की बुद्धि चाहिए ना।
तुम बच्चे समझ सकते हो – बाप कितना सहज रास्ता बताते हैं। भल कितनी भी अहिल्यायें, कुब्जायें हो, सिर्फ दो अक्षर याद करने हैं – बाप और वर्सा। फिर जितना जो याद करे। और संग तोड़ एक बाप को याद करना है। बाप कहते हैं मैं जब अपने घर परमधाम में था तो भक्ति मार्ग में तुम पुकारते थे – बाबा आप आयेंगे तो हम सब कुछ कुर्बान करेंगे। यह हुए जैसे करनीघोर, करनीघोर को पुराना सामान दिया जाता है। तुम बाप को क्या देंगे? इनको (ब्रह्मा को) तो नहीं देते हो ना। इसने भी सब कुछ दे दिया। यह थोड़ेही यहाँ बैठ महल बनायेंगे। यह सब कुछ शिव-बाबा के लिए है। उनके डायरेक्शन से कर रहे हैं। वह करनकरावनहार है, डायरेक्शन देते रहते हैं। बच्चे कहते हैं बाबा आप हमारे लिए एक ही हो। आपके लिए तो बहुत बच्चे हैं। बाबा फिर कहते हमारे लिए सिर्फ तुम बच्चे हो। तुम्हारे लिए तो बहुत हैं। कितने देह के सम्बन्धियों की याद रहती है। मीठे-मीठे बच्चों को बाप कहते हैं जितना हो सके बाप को याद करो और सबको भुलाते जाओ। स्वर्ग की राजाई का मक्खन तुमको मिलता है। ज़रा ख्याल तो करो, कैसे यह खेल की रचना है। तुम सिर्फ बाप को याद करते हो और स्वदर्शन चक्रधारी बनने से चक्रवर्ती राजा बनते हो। अभी तुम बच्चे प्रैक्टिकल में अनुभवी हो। मनुष्य तो समझते हैं भक्ति परम्परा से चली आई है। विकार भी परम्परा से चले आये हैं। इन लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण को भी तो बच्चे थे ना। अरे हाँ, बच्चे क्यों नहीं थे परन्तु उन्हों को कहा जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी। यहाँ हैं सम्पूर्ण विकारी। एक-दो को गालियाँ देते रहते हैं। अब तुम बच्चों को बाप श्री श्री की श्रीमत मिलती है। तुमको श्रेष्ठ बनाते हैं। अगर बाप का कहना नहीं मानेंगे तो फिर थोड़ेही बनेंगे। अब मानो न मानो। सपूत बच्चे तो फौरन मानेंगे। पूरी मदद नहीं देते हैं तो अपने को घाटा डालते हैं। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ। कितना पुरुषार्थ कराता हूँ। कितना खुशी में ले आते हैं। बाप से पूरा वर्सा लेने में ही माया ग़फलत कराती है। परन्तु तुम्हें उस फन्दे में नहीं फँसना है। माया से ही लड़ाई होती है। बहुत बड़े-बड़े तूफान आयेंगे। उसमें भी वारिसों पर जास्ती माया वार करेगी। रूसतम से रूसतम हो लड़ेगी। जैसे वैद्य दवाई देते हैं तो बीमारी सारी बाहर निकल आती है। यहाँ भी मेरे बनेंगे तो फिर सबकी याद आने लग पड़ेगी। तूफान आयेंगे, इसमें लाइन क्लीयर चाहिए। हम पहले पवित्र थे फिर आधाकल्प अपवित्र बनें। अब फिर वापिस जाना है। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। जितना याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। याद करते-करते तुम घर चले जायेंगे, इसमें बिल्कुल अन्तर्मुखता चाहिए। नॉलेज भी आत्मा में धारण होती है ना। आत्मा ही पढ़ती है। आत्मा का ज्ञान भी परमात्मा बाप ही आकर देते हैं। इतना भारी ज्ञान तुम लेते हो विश्व का मालिक बनने के लिए। मुझे तुम कहते ही हो-पतित-पावन, ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर। जो मेरे पास है वह तुमको सब देता हूँ। बाकी सिर्फ दिव्य दृष्टि की चाबी नहीं देता हूँ। उसके बदले फिर तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ। साक्षात्कार में कुछ है नहीं। मुख्य है पढ़ाई। पढ़ाई से तुमको 21 जन्म का सुख मिलता है। मीरा की भेंट में तुम अपने सुख की भेंट करो। वह तो कलियुग में थी, दीदार किया फिर क्या। भक्ति की माला ही अलग है। ज्ञान मार्ग की माला अलग है। रावण की राजाई अलग, तुम्हारी राजाई अलग। उनको दिन, उनको रात कहा जाता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) याद के बल से अपनी कर्मेन्द्रियाँ ऐसी वश करनी है जो कोई भी चंचलता न रहे। टाइम बहुत थोड़ा है इसलिए अच्छी रीति पुरुषार्थ कर मायाजीत बनना है।
2) बाप जो ज्ञान देते हैं उसे अन्तर्मुखी बन धारण करना है। कभी भी आपस में लून-पानी नहीं होना है। बाप को अपनी खुशखैऱाफत का समाचार जरूर देना है।
वरदान:- | कल्याणकारी वृत्ति द्वारा सेवा करने वाले सर्व आत्माओं की दुआओं के अधिकारी भव कल्याणकारी वृत्ति द्वारा सेवा करना – यही सर्व आत्माओं की दुआयें प्राप्त करने का साधन है। जब लक्ष्य रहता है कि हम विश्व कल्याणकारी हैं, तो अकल्याण का कर्तव्य हो नहीं सकता। जैसा कार्य होता है वैसी अपनी धारणायें होती हैं, अगर कार्य याद रहे तो सदा रहमदिल, सदा महादानी रहेंगे। हर कदम में कल्याणकारी वृत्ति से चलेंगे, मैं पन नहीं आयेगा, निमित्त पन याद रहेगा। ऐसे सेवाधारी को सेवा के रिटर्न में सर्व आत्माओं की दुआओं का अधिकार प्राप्त हो जाता है। |
स्लोगन:- | साधनों की आकर्षण साधना को खण्डित कर देती है। |
अव्यक्त इशारे-आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो
अन्तर्मुखी आत्मायें तीन प्रकार की भाषा के अनुभवी होती हैं: 1- नयनों की भाषा 2- भावना की भाषा 3- संकल्प की भाषा। यह तीन प्रकार की भाषा रुहानी योगी जीवन की भाषा है, जितना-जितना आप अन्तर्मुखी स्वीट साइलेन्स स्वरूप में स्थिति होते जायेंगे – उतना इन तीन भाषाओं द्वारा सर्व आत्माओं को अनुभव करा सकेंगे। अब इसी रुहानी भाषा के अभ्यास बनो।
“मीठे बच्चे – अभी तुम ईश्वरीय औलाद बने हो, तुम्हारे में कोई आसुरी गुण नहीं होने चाहिए, अपनी उन्नति करनी है, ग़फलत नहीं करनी है”
नीचे दिए गए प्रश्नोत्तर इस महावाक्य को स्पष्ट रूप से समझाने और जीवन में धारणा कराने के लिए बनाए गए हैं:
प्रश्न 1:आप संगमयुगी ब्राह्मण बच्चों को कौन-सा निश्चय और नशा है?
उत्तर:हम बच्चों को पक्का निश्चय और नशा है कि अब हम ईश्वरीय सम्प्रदाय के हैं। हम आसुरी औलाद से बदलकर ईश्वरीय औलाद बने हैं। अभी हम संगम पर स्वर्गवासी बनने के लिए ट्रांसफर हो रहे हैं। हम विश्व के मालिक बन रहे हैं। इससे भारी कोई वस्तु हो ही नहीं सकती।
प्रश्न 2:ईश्वरीय औलाद बनने के बाद हमारे जीवन में कौन-से गुण नहीं होने चाहिए?
उत्तर:ईश्वरीय औलाद बनने के बाद हमारे में कोई भी आसुरी अवगुण नहीं होना चाहिए। क्रोध, वाणी की कटुता, आलस्य, अहंकार, द्वेष आदि सभी आसुरी संस्कारों को समाप्त करना है और पवित्र, नम्र, मधुर व सच्चे बनना है।
प्रश्न 3:बाबा हमें सबसे बड़ा कौन-सा वरदान दे रहे हैं?
उत्तर:बाबा हमें 21 जन्मों के लिए स्वर्ग का वर्सा दे रहे हैं। वह हमें नर से नारायण बना रहे हैं, आत्मा को पवित्र बना रहे हैं और सम्पूर्ण निर्विकारी स्वरूप में स्थापन कर रहे हैं। इससे बड़ा वरदान कोई हो ही नहीं सकता।
प्रश्न 4:ईश्वरीय औलाद के रूप में हमारे जीवन का मुख्य पुरुषार्थ क्या होना चाहिए?
उत्तर:हमें सच्ची स्मृति में रहकर बाप को याद करना है, जिससे हमारे विकर्म विनाश हों। साथ ही, अपनी कर्मेन्द्रियों को वश कर, ग़फलत छोड़े, पूरा पुरुषार्थ कर, अपनी उन्नति करनी है। बाप ने कहा है – अपने जीवन को हीरे जैसा बनाओ।
प्रश्न 5:बाप हमें किस प्रकार का युद्ध योद्धा बना रहे हैं?
उत्तर:बाप हमें योगबल द्वारा माया पर जीत पहनाने वाला शान्ति का योद्धा बना रहे हैं। यह अन्तिम युद्ध माया के साथ है, जिसमें हमें आत्मबल व स्मृति के बल से जीत हासिल करनी है। हमारी युद्ध शक्ति “साइलेन्स बल” है, जिससे हम अविनाशी पद पाते हैं।
प्रश्न 6:अगर हम ग़फलत करते हैं तो क्या नुकसान हो सकता है?
उत्तर:अगर हम ग़फलत करते हैं तो हम बाबा से पूरा वर्सा लेने से चूक सकते हैं। माया फँसाकर याद भुला देती है, मन को चंचल कर देती है और आत्म-उन्नति की गति को रोक देती है। इससे भविष्य में सच्चे सुख और पद की हानि हो सकती है।
प्रश्न 7:संगमयुग के इस बेहद समय में हमारी प्राथमिकता क्या होनी चाहिए?
उत्तर:इस बेहद समय में हमारी एक ही प्राथमिकता होनी चाहिए – बाप और वर्से को याद करना, अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाना, श्रीमत पर चलना और अपनी आत्मा को पवित्र एवं शक्तिशाली बनाना। समय बहुत थोड़ा है, इसलिए इसे सर्वश्रेष्ठ बनाना है।
प्रश्न 8:ईश्वरीय औलाद होने का वास्तविक अनुभव कब होता है?
उत्तर:जब हम सच्ची याद में रहते हैं, विकारों पर जीत पाते हैं, श्रीमत अनुसार चलते हैं, तब हम अनुभव करते हैं कि हम वास्तव में ईश्वरीय औलाद हैं। उस समय आत्मा में अथाह खुशी, शान्ति और शक्ति का अनुभव होता है।
प्रश्न 9:बाबा बच्चों से किस प्रकार का सम्बन्ध रखते हैं?
उत्तर:बाबा बच्चों को बेहद प्यार करते हैं। वह कहते हैं – मेरे तो तुम ही हो। वह बच्चों की उन्नति के लिए निरन्तर प्रेरणा देते हैं, पूछते हैं – “बच्चे, माया हैरान तो नहीं करती?” बाबा को सिर्फ अपने बच्चों की याद रहती है, कोई दूसरा उनके लिए नहीं होता।
प्रश्न 10:बाबा की दृष्टि में कौन-से बच्चे सपूत कहलाते हैं?
उत्तर:जो बच्चे फौरन श्रीमत को मानते हैं, बाप की आज्ञा में चलते हैं, सेवा में तत्पर रहते हैं और सच्ची चिट्ठी लिखते हैं, वे सपूत कहलाते हैं। जो देह-अभिमान, आलस्य या माया में आकर बाप से दूरी बना लेते हैं, वे कपूत बन जाते हैं।
निष्कर्ष (संक्षेप में):अब हम मीठे ईश्वरीय बच्चे बने हैं। हमें अपनी स्थिति को ऊँचा बनाए रखना है, कोई भी ग़फलत नहीं करनी है। हर पल बाप की याद में रहकर, अपने स्वराज्य को प्राप्त करना है। यही हमारे जीवन का सच्चा लक्ष्य है।
मीठे बच्चे, ईश्वरीय औलाद, संगमयुग, ब्राह्मण जीवन, ब्रह्मा कुमारी ज्ञान, शिवबाबा, राजयोग, आत्मा की पहचान, विकर्म विनाश, स्वर्ग की स्थापना, ईश्वर से वर्सा, आत्मा और परमात्मा, संग तोड़ बाप से जोड़, माया पर विजय, स्वदर्शन चक्रधारी, श्रीमत, देही-अभिमानी स्थिति, बाबा का प्यार, कर्मेन्द्रियों पर जीत, ब्रह्मा बाबा, ज्ञान मार्ग, परमधाम, सहज राजयोग, गॉड फादर, स्वर्ग का मालिक, ब्रह्मा कुमारिस मुर्ली, सच्चा बाप, सत्य ज्ञान, संगमयुगी जीवन, आत्म उन्नति, पुराना कलियुग समाप्त, नया युग सतयुग, भक्ति से ज्ञान की ओर, ईश्वरीय सम्प्रदाय, ब्रह्माकुमार, देवी सम्प्रदाय, अशान्ति से शान्ति, देवता बनना, पुरुषोत्तम संगमयुग,
Sweet children, Godly children, Confluence Age, Brahmin life, Brahma Kumari knowledge, Shiv Baba, Rajyoga, recognition of the soul, destruction of sins, establishment of heaven, inheritance from God, soul and Supreme Soul, break all connections and connect with the Father, victory over Maya, wielders of the Sudarshan Chakra, Shrimat, soul conscious stage, Baba’s love, victory over the karmendriyas, Brahma Baba, path of knowledge, Paramdham, easy Rajyoga, God Father, master of heaven, Brahma Kumaris Murli, true Father, true knowledge, confluence age life, soul progress, the old Kaliyuga ends, the new age of Satyuga, from bhakti to knowledge, Godly community, Brahma Kumars, Devi community, peace from unrest, becoming deities, Purushottam Confluence Age,