MURLI 22-02-2025/BRAHMAKUMARIS

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

22-02-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम्हें जो बाप सुनाते हैं वही सुनो, आसुरी बातें मत सुनो, मत बोलो, हियर नो इविल, सी नो इविल….”
प्रश्नः- तुम बच्चों को कौन-सा निश्चय बाप द्वारा ही हुआ है?
उत्तर:- बाप तुम्हें निश्चय कराते कि मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, टीचर भी हूँ, सतगुरू भी हूँ, तुम पुरूषार्थ करो इस स्मृति में रहने का। परन्तु माया तुम्हें यही भुलाती है। अज्ञान काल में तो माया की बात नहीं।
प्रश्नः- कौन-सा चार्ट रखने में विशाल बुद्धि चाहिए?
उत्तर:- अपने को आत्मा समझकर बाप को कितना समय याद किया – इस चार्ट रखने में बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। देही-अभिमानी हो बाप को याद करो तब विकर्म विनाश हों।

ओम् शान्ति। स्टूडेन्ट ने यह समझा कि टीचर आये हुए हैं। यह तो बच्चे जानते हैं वह बाप भी है, शिक्षक भी है और सुप्रीम सतगुरू भी है। बच्चों को स्मृति में है परन्तु नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। कायदा कहता है – जब एक बार जान गये कि टीचर है अथवा यह बाप है, गुरू है तो फिर भूल नहीं सकते। परन्तु यहाँ माया भुला देती है। अज्ञान काल में माया कभी भुलाती नहीं। बच्चा कभी भूल नहीं सकता कि यह हमारा बाप है, उनका यह आक्यूपेशन है। बच्चे को खुशी रहती है, हम बाप के धन का मालिक हूँ। भल खुद भी पढ़ते हैं परन्तु बाप की प्रापर्टी तो मिलती है ना। यहाँ तुम बच्चे भी पढ़ते हो और बाप की तुम्हें प्रापर्टी भी मिलती है। तुम राजयोग सीख रहे हो। बाप द्वारा निश्चय हो जाता है – हम बाप का हूँ, बाप ही सद्गति का रास्ता बता रहे हैं इसलिए वह सतगुरू भी है। यह बातें भूलनी नहीं चाहिए। जो बाप सुनाते हैं वही सुनना है। यह जो बन्दरों का खिलौना दिखाते हैं – हियर नो ईविल, सी नो ईविल……. यह है मनुष्य की बात। बाप कहते हैं आसुरी बातें मत बोलो, मत सुनो, मत देखो। हियर नो ईविल……. यह पहले बन्दरों का बनाते थे। अभी तो मनुष्य का बनाते हैं। तुम्हारे पास नलिनी का बनाया हुआ है। तो तुम बाप के ग्लानि की बातें मत सुनो। बाप कहते हैं मेरी कितनी ग्लानि करते हैं। तुमको मालूम है – श्रीकृष्ण के भक्त के आगे धूप जगाते हैं तो राम के भक्त नाक बंद कर लेते हैं। एक-दो की खुशबू भी अच्छी नहीं लगती। आपस में जैसे दुश्मन हो जाते हैं। अब तुम हो राम वंशी। दुनिया है सारी रावण-वंशी। यहाँ धूप की तो बात नहीं है। तुम जानते हो बाप को सर्वव्यापी कहने से क्या गति हुई है! ठिक्कर भित्तर में कहने से ठिक्कर बुद्धि हो गई है। तो बेहद का बाप जो तुमको वर्सा देते हैं, उनकी कितनी ग्लानि करते हैं। ज्ञान तो कोई में है नहीं। वह ज्ञान रत्न नहीं, परन्तु पत्थर हैं। अभी तुम्हें बाप को याद करना पड़े। बाप कहते हैं मैं जो हूँ, जैसा हूँ, यथार्थ रीति मुझे कोई नहीं जानते। बच्चों में भी नम्बरवार हैं। बाप को यथार्थ रीति याद करना है। वह भी इतनी छोटी बिन्दी है, उनमें यह सारा पार्ट भरा हुआ है। बाप को यथार्थ रीति जानकर याद करना है, अपने को आत्मा समझना है। भल हम बच्चे हैं परन्तु ऐसे नहीं कि बाप की आत्मा बड़ी, हमारी छोटी है। नहीं, भल बाप नॉलेजफुल है परन्तु आत्मा कोई बड़ी नहीं हो सकती। तुम्हारी आत्मा में भी नॉलेज रहती है परन्तु नम्बरवार। स्कूल में भी नम्बरवार पास होते हैं ना। जीरो मार्क कोई की नहीं होती। कुछ न कुछ मार्क्स ले लेते हैं। बाप कहते हैं मैं जो तुमको यह ज्ञान सुनाता हूँ, यह प्राय: लोप हो जाता है। फिर भी चित्र हैं, शास्त्र भी बनाये हुए हैं। बाप तुम आत्माओं को कहते हैं हियर नो ईविल……. इस आसुरी दुनिया को क्या देखना है। इस छी-छी दुनिया से आंखें बन्द कर लेनी हैं। अब आत्मा को स्मृति आई है, यह है पुरानी दुनिया। इनसे क्या कनेक्शन रखना है। आत्मा को स्मृति आई है कि इस दुनिया को देखते भी नहीं देखना है। अपने शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना है। आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है तो यह सिमरण करना है। भक्ति मार्ग में भी सवेरे उठकर माला फेरते हैं। सवेरे का मुहूर्त अच्छा समझते हैं। ब्राह्मणों का मुहूर्त है। ब्रह्मा भोजन की भी महिमा है। ब्रह्म भोजन नहीं, ब्रह्मा भोजन। तुमको भी ब्रह्माकुमारी के बदले ब्रह्मकुमारी कह देते हैं, समझते नहीं हैं। ब्रह्मा के बच्चे तो ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ होंगे ना। ब्रह्म तो तत्व है, रहने का ठिकाना है, उनकी क्या महिमा होगी। बाप बच्चों को उल्हना देते हैं – बच्चे, तुम एक तरफ तो पूजा करते हो, दूसरी तरफ फिर सबकी ग्लानि करते हो। ग्लानि करते-करते तमोप्रधान बन पड़े हो। तमोप्रधान भी बनना ही है, चक्र रिपीट होगा। जब कोई बड़े आदमी आते हैं तो उनको चक्र पर जरूर समझाना है। यह चक्र 5 हज़ार वर्ष का ही है, इनके ऊपर बहुत अटेन्शन देना है। रात के बाद दिन जरूर होना ही है। यह हो नहीं सकता कि रात के बाद दिन न हो। कलियुग के बाद सतयुग जरूर आना है। यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है।

तो बाप समझाते हैं – मीठे-मीठे बच्चों, अपने को आत्मा समझो, आत्मा ही सब कुछ करती है, पार्ट बजाती है। यह किसको भी पता नहीं है कि अगर हम पार्टधारी हैं तो नाटक के आदि-मध्य-अन्त को जरूर जानना चाहिए। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है तो ड्रामा ही ठहरा ना। सेकण्ड बाई सेकण्ड वही रिपीट होगा जो पास्ट हो गया है। यह बातें और कोई समझ न सके। कम बुद्धि वाले हमेशा नापास ही होते हैं फिर टीचर भी क्या कर सकते! टीचर को क्या कहेंगे कि कृपा वा आशीर्वाद करो। यह भी पढ़ाई है। इस गीता पाठशाला में स्वयं भगवान राजयोग सिखलाते हैं। कलियुग को बदलकर सतयुग जरूर बनना है। ड्रामा अनुसार बाप को भी आना है। बाप कहते हैं हम कल्प-कल्प संगमयुगे आता हूँ, और कोई थोड़ेही कह सकते कि हम सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनाने आया हूँ। अपने को शिवोहम् कहते हैं, उससे क्या हुआ। शिवबाबा तो आते ही हैं पढ़ाने लिए, सहज राजयोग सिखाने लिए। कोई भी साधू-सन्त आदि को शिव भगवान नहीं कहा जा सकता। ऐसे तो बहुत कहते हैं – हम कृष्ण हैं, हम लक्ष्मी-नारायण हैं। अब कहाँ वह श्रीकृष्ण सतयुग का प्रिन्स, कहाँ यह कलियुगी पतित। ऐसे थोड़ेही कहेंगे इनमें भगवान् है। तुम मन्दिरों में जाकर पूछ सकते हो – यह तो सतयुग में राज्य करते थे फिर कहाँ गये? सतयुग के बाद जरूर त्रेता, द्वापर, कलियुग हुआ। सतयुग में सूर्यवंशी राज्य था, त्रेता में चन्द्रवंशी……. यह सब नॉलेज तुम बच्चों की बुद्धि में है। इतने ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हैं, जरूर प्रजापिता भी होगा। फिर ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि रचते हैं। क्रियेटर ब्रह्मा को नहीं कहा जाता। वह फिर गॉड फादर है। कैसे रचते हैं, वह तो बाप सम्मुख ही बैठ समझाते हैं, यह शास्त्र तो बाद में बने हैं। जैसे क्राइस्ट ने समझाया, उनका बाइबिल बन गया। बाद में बैठ गायन करते हैं। सर्व का सद्गति दाता, सर्व का लिबरेटर, पतित-पावन एक बाप गाया हुआ है, उनको याद करते हैं कि हे गॉड फादर रहम करो। फादर एक होता है। यह है सारे वर्ल्ड का फादर। मनुष्यों को पता नहीं है कि सर्व दु:खों से लिबरेट करने वाला कौन है? अभी सृष्टि भी पुरानी, मनुष्य भी पुराने तमोप्रधान हैं। यह है ही आइरन एजेड वर्ल्ड। गोल्डन एज था ना, फिर होगा जरूर। यह विनाश हो जायेगा, वर्ल्ड वार होगी, अनेक कुदरती आपदायें भी होती हैं। समय तो यही है। मनुष्य सृष्टि कितनी वृद्धि को पाई हुई है।

तुम तो कहते रहते हो – भगवान आया हुआ है। तुम बच्चे सभी को चैलेन्ज देते हो कि ब्रह्मा द्वारा एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है। ड्रामा अनुसार सब सुनते रहते हैं। दैवीगुण भी धारण करते हैं। तुम जानते हो हमारे में कोई गुण नहीं था। नम्बरवन अवगुण है – काम विकार का, जो कितना हैरान करता है। माया की कुश्ती चलती है। न चाहते भी माया का तूफान गिरा देता है। आइरन एज तो है ना। काला मुँह कर देते हैं। सांवरा मुँह नहीं कहेंगे। श्रीकृष्ण के लिए दिखाते हैं सर्प ने डसा तो साँवरा हो गया। इज्जत रखने के लिए सांवरा कह दिया है। काला मुँह दिखाने से इज्ज़त चली जाए। तो दूरदेश, निराकार देश से मुसाफिर आते हैं। आइरन एजेड दुनिया, काले शरीर में आकर इनको भी गोरा बनाते हैं। अब बाप कहते हैं तुमको फिर सतोप्रधान बनना है। मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और तुम विष्णुपुरी के मालिक बन जायेंगे। यह ज्ञान की बातें समझने की हैं। बाबा रूप भी है तो बसन्त भी है। तेजोमय बिन्दी रूप है। उनमें ज्ञान भी है। नाम-रूप से न्यारा तो है नहीं। उनका रूप क्या है, यह दुनिया नहीं जानती। बाप तुमको समझाते हैं, मुझे भी आत्मा कहते हैं सिर्फ सुप्रीम आत्मा। परम आत्मा सो मिलकर हो जाता परमात्मा। बाप भी है, टीचर भी है। कहते भी हैं नॉलेजफुल। वह समझते हैं नॉलेजफुल अर्थात् सबके दिलों को जानने वाला है। अगर परमात्मा सर्वव्यापी है तो फिर सब नॉलेजफुल हो गये। फिर उस एक को क्यों कहते? मनुष्यों की कितनी तुच्छ बुद्धि है। ज्ञान की बातों को बिल्कुल नहीं समझते। बाप ज्ञान और भक्ति का कान्ट्रास्ट बैठ बताते हैं – पहले है ज्ञान दिन सतयुग-त्रेता, फिर है द्वापर-कलियुग रात। ज्ञान से सद्गति होती है। यह राजयोग का ज्ञान हठयोगी समझा न सकें। न गृहस्थी समझा सकेंगे क्योंकि अपवित्र हैं। अब राजयोग कौन सिखलावे? जो कहते हैं मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश हों। निवृत्ति मार्ग का धर्म ही अलग है, वह प्रवृत्ति मार्ग का ज्ञान कैसे सुनायेंगे। यहाँ सब कहते हैं – गॉड फादर इज़ ट्रूथ। बाप ही सच सुनाने वाला है। आत्मा को बाबा की स्मृति आई है इसलिए हम बाप को याद करते हैं कि आकर सच्ची-सच्ची कथा सुनाओ नर से नारायण बनने की। यह तुमको सत्य नारायण की कथा सुनाता हूँ ना। आगे तुम झूठी कथायें सुनते थे। अभी तुम सच्ची सुनते हो। झूठी कथायें सुनते-सुनते कोई नारायण तो बन नहीं सकता फिर वह सत्य नारायण की कथा कैसे हो सकती? मनुष्य किसको नर से नारायण बना न सकें। बाप ही आकर स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। बाप आते भी भारत में हैं। परन्तु कब आते हैं, यह समझते नहीं हैं। शिव-शंकर को मिलाकर कहानियाँ बना दी हैं। शिव पुराण भी है। गीता कहते हैं श्रीकृष्ण की, फिर तो शिव पुराण बड़ा हो गया। वास्तव में नॉलेज तो गीता में है। भगवानुवाच – मनमनाभव। यह अक्षर गीता के सिवाए दूसरे कोई शास्त्रों में हो नहीं सकते। गाया भी जाता है सर्वशास्त्रमई शिरोमणी गीता। श्रेष्ठ मत है ही भगवान की। पहले-पहले यह बताना चाहिए कि हम कहते हैं थोड़े वर्ष के अन्दर नई श्रेष्ठाचारी दुनिया स्थापन हो जायेगी। अभी है भ्रष्टाचारी दुनिया। श्रेष्ठाचारी दुनिया में कितने थोड़े मनुष्य होंगे। अभी तो कितने ढेर मनुष्य हैं। उसके लिए विनाश सामने खड़ा है। बाप राजयोग सिखला रहे हैं। वर्सा बाप से मिलता है। मांगते भी बाप से हैं। कोई को धन जास्ती होगा, बच्चा होगा, कहेंगे भगवान ने दिया। तो भगवान एक हुआ ना फिर सबमें भगवान कैसे हो सकता? अब आत्माओं को बाप कहते हैं मुझे याद करो। आत्मा कहती है हमको परमात्मा ने ज्ञान दिया है जो फिर हम भाईयों को देते हैं। अपने को आत्मा समझकर बाप को कितना समय याद किया, इस चार्ट रखने में बड़ी विशालबुद्धि चाहिए। देही-अभिमानी हो बाप को याद करना पड़े तब विकर्म विनाश हों। नॉलेज तो बड़ी सहज है, बाकी आत्मा समझ बाप को याद करते अपनी उन्नति करनी है। यह चार्ट कोई बिरले रखते हैं। देही-अभिमानी हो बाप की याद में रहने से कभी किसको दु:ख नहीं देंगे। बाप आते ही हैं सुख देने तो बच्चों को भी सबको सुख देना है। कभी किसको दु:ख नहीं देना है। बाप की याद से सब भूत भागेंगे, बड़ी गुप्त मेहनत है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) इस आसुरी छी-छी दुनिया से अपनी आंखें बन्द कर लेनी है। यह पुरानी दुनिया है, इससे कोई कनेक्शन नहीं रखना है, इसे देखते हुए भी नहीं देखना है।

2) इस बेहद ड्रामा में हम पार्टधारी हैं, यह सेकेण्ड बाय सेकेण्ड रिपीट होता रहता है, जो पास्ट हुआ वह फिर रिपीट होगा… यह स्मृति में रख हर बात में पास होना है। विशालबुद्धि बनना है।

वरदान:- रीयल्टी द्वारा रॉयल्टी का प्रत्यक्ष रूप दिखाने वाले साक्षात्कार मूर्त भव
अभी ऐसा समय आयेगा जब हर आत्मा प्रत्यक्ष रूप में अपने रीयल्टी द्वारा रॉयल्टी का साक्षात्कार करायेगी। प्रत्यक्षता के समय माला के मणके का नम्बर और भविष्य राज्य का स्वरूप दोनों ही प्रत्यक्ष होंगे। अभी जो रेस करते-करते थोड़ा सा रीस की धूल का पर्दा चमकते हुए हीरों को छिपा देता है, अन्त में यह पर्दा हट जायेगा फिर छिपे हुए हीरे अपने प्रत्यक्ष सम्पन्न स्वरूप में आयेंगे, रॉयल फैमली अभी से अपनी रायॅल्टी दिखायेगी अर्थात् अपने भविष्य पद को स्पष्ट करेगी इसलिए रीयॅल्टी द्वारा रायॅल्टी का साक्षात्कार कराओ।
स्लोगन:- किसी भी विधि से व्यर्थ को समाप्त कर समर्थ को इमर्ज करो।

 

अव्यक्त इशारे:- एकान्तप्रिय बनो एकता और एकाग्रता को अपनाओ

स्वयं का कल्याण करने के लिए वा स्वयं का परिवर्तन करने के लिए विशेष एकान्तवासी, अन्तर्मुखी बनो। नॉलेजफुल हो लेकिन पॉवरफुल बनो। हर बात के अनुभव में स्वयं को सम्पन्न बनाओ। किसका बच्चा हूँ? क्या प्राप्ति है? इस पहले पाठ के अनुभवी-मूर्त बनो, एकता और एकाग्रता को अपनाओ तो सहज ही मायाजीत हो जायेंगे।

शीर्षक “मीठे बच्चे – तुम्हें जो बाप सुनाते हैं वही सुनो, आसुरी बातें मत सुनो, मत बोलो, हियर नो ईविल, सी नो ईविल…

प्रश्न-उत्तर श्रृंखला

प्रश्न 1: बाप द्वारा तुम्हें कौन-सा निश्चय कराया जाता है?
उत्तर: बाप हमें निश्चय कराते हैं कि वह हमारा बाप भी हैं, टीचर भी हैं, और सतगुरू भी हैं। हमें सदा इस स्मृति में रहकर पुरुषार्थ करना है। परन्तु माया हमें यही भुलाने की कोशिश करती है।

प्रश्न 2: अज्ञान काल में माया की क्या स्थिति होती है?
उत्तर: अज्ञान काल में माया की बात नहीं होती, क्योंकि वहाँ बाप का ज्ञान नहीं होता। लेकिन जब ज्ञान प्राप्त होता है, तब माया का प्रभाव बढ़ता है और वह बच्चों को भुलाने की कोशिश करती है।

प्रश्न 3: कौन-सा चार्ट रखने के लिए विशाल बुद्धि चाहिए?
उत्तर: आत्मा को समझकर बाप को कितना समय याद किया – इस चार्ट को रखने में विशाल बुद्धि चाहिए। जब तक देही-अभिमानी होकर बाप को याद नहीं करेंगे, तब तक विकर्म विनाश नहीं होंगे।

प्रश्न 4: हियर नो ईविल, सी नो ईविल का आध्यात्मिक अर्थ क्या है?
उत्तर: बाप कहते हैं कि आसुरी बातें न सुनो, न बोलो, न देखो। यह पुराने विश्व की छी-छी बातें हैं। हमें इस संसार से कोई कनेक्शन नहीं रखना है। हमें केवल अपने शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना है।

प्रश्न 5: आत्मा को कौन-सा तीसरा नेत्र मिला है और उसका क्या कार्य है?
उत्तर: आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, जिससे वह जान सकती है कि यह पुरानी दुनिया है और इसे देखते हुए भी नहीं देखना है।

प्रश्न 6: बाप का किस प्रकार ग्लानि होती है?
उत्तर: मनुष्य बाप को सर्वव्यापी कहकर उनकी ग्लानि करते हैं। यह मान्यता मनुष्यों को ठिक्कर बुद्धि बना देती है। वे ज्ञान रत्नों को न पहचानकर पत्थरों को ही सत्य मान बैठते हैं।

प्रश्न 7: कौन-सा मुख्य पाठ हमें सदा स्मृति में रखना चाहिए?
उत्तर: हमें सदा स्मृति में रखना चाहिए कि हम आत्मा हैं और बाप ही हमारी सद्गति करने वाले हैं। हमें देही-अभिमानी होकर बाप को याद करना है और अपने विकर्म विनाश करने हैं।

प्रश्न 8: दैवीगुण धारण करने का मुख्य आधार क्या है?
उत्तर: दैवीगुण धारण करने के लिए मुख्य आधार है – बाप की याद में रहना, आत्म-अभिमानी बनना, और आसुरी गुणों से स्वयं को मुक्त करना।

प्रश्न 9: संगमयुग पर बाप हमें कौन-सा राजयोग सिखाते हैं?
उत्तर: संगमयुग पर बाप हमें सहज राजयोग सिखाते हैं, जिससे हम आत्म-अभिमानी बनकर अपने भविष्य के दैवी स्वरूप को प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न 10: भविष्य में आत्माएँ अपनी रीयल्टी और रॉयल्टी को कैसे प्रकट करेंगी?
उत्तर: आने वाले समय में आत्माएँ अपने वास्तविक स्वरूप को प्रकट करेंगी और अपनी रॉयल फैमिली के रूप में पहचान बनाएँगी। अभी जो आत्माएँ मायाजीत बनने का पुरुषार्थ कर रही हैं, वे ही भविष्य में प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देंगी।


मुख्य धारणा के लिए सार

  1. इस आसुरी दुनिया की छी-छी बातों को नहीं देखना है। पुरानी दुनिया से कोई कनेक्शन नहीं रखना है।
  2. यह नाटक सेकंड-बाय-सेकंड रिपीट हो रहा है। हमें हर परिस्थिति में पास होना है और विशाल बुद्धि बनाना है।

वरदान:“रीयल्टी द्वारा रॉयल्टी का प्रत्यक्ष रूप दिखाने वाले साक्षात्कार मूर्त भव।”

स्लोगन:“किसी भी विधि से व्यर्थ को समाप्त कर समर्थ को इमर्ज करो।”

मीठे बच्चे, जो बाप सुनाते हैं वही सुनो, आसुरी बातें मत सुनो, मत बोलो, हियर नो इविल, सी नो इविल, निश्चय, बाप, टीचर, सतगुरू, पुरूषार्थ, माया, स्मृति, आत्मा, विकर्म विनाश, देही-अभिमानी, राजयोग, बाप की प्रापर्टी, ग्लानि, श्रीकृष्ण, राम वंशी, रावण-वंशी, सर्वव्यापी, ज्ञान रत्न, पत्थर बुद्धि, परमात्मा, ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी, सत्य नारायण, श्रीकृष्ण सतयुग, कलियुग, ज्ञान का तीसरा नेत्र, ब्राह्मणों का मुहूर्त, ब्रह्मा भोजन, आत्मा का नाटक, ड्रामा रिपीट, पतित-पावन, सत्य कथा, श्रेष्ठाचारी दुनिया, भ्रष्टाचारी दुनिया, विनाश, सुख देने वाला, भूत भागेंगे, मात-पिता, याद-प्यार, गुडमॉर्निंग, रूहानी बाप, धारणा, आसुरी दुनिया, कनेक्शन, विशालबुद्धि, रीयल्टी, रॉयल्टी, प्रत्यक्षता, माला के मणके, राज्य का स्वरूप, रेस, रीस की धूल, हीरे, सम्पन्न स्वरूप, रायॅल्टी, भविष्य पद, समर्थ, व्यर्थ समाप्त, इमर्ज, एकान्तप्रिय, एकता, एकाग्रता, अन्तर्मुखी, पॉवरफुल, अनुभव, सम्पन्न, मायाजीत

Sweet children, listen to only what the Father says. Do not listen to devilish things. Do not speak. Hear no evil. See no evil. Faith, Father, Teacher, Satguru, effort, Maya, awareness, soul, destruction of sins, soul conscious, Rajyoga, Father’s property, guilt, Shri Krishna, descendant of Rama, descendant of Ravan, omnipresent, jewel of knowledge, stone intellect, Supreme Soul, Brahma Kumar, Brahma Kumari, Satya Narayan, Shri Krishna, Golden Age, Iron Age, third eye of knowledge, auspicious time for Brahmins, Brahma bhojan, drama of the soul, drama repeat, purifier of the sinful, true story, elevated world, corrupt world, destruction, one who gives happiness, ghosts will run away. Mother, Father, love and remembrance, good morning, spiritual Father, dharna, devilish world, connection, vast intellect, reality, royalty, revelation, beads of a rosary, form of the kingdom, race, dust of pride, diamonds, complete form, royalty, future position. Capable, end of waste, emerge, solitude, unity, concentration, introvert, powerful, experience, accomplished, conqueror of illusion