MURLI 24-03-2025/BRAHMAKUMARIS

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Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

24-03-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठे बच्चे – यह ज्ञान तुम्हें शीतल बनाता है, इस ज्ञान से काम-क्रोध की आग खत्म हो जाती है, भक्ति से वह आग खत्म नहीं होती”
प्रश्नः- याद में मुख्य मेहनत कौन सी है?
उत्तर:- बाप की याद में बैठते समय देह भी याद न आये। आत्म-अभिमानी बन बाप को याद करो, यही मेहनत है, इसमें ही विघ्न पड़ता है क्योंकि आधाकल्प देह-अभिमानी रहे हो। भक्ति माना ही देह की याद।

ओम् शान्ति। तुम बच्चे जानते हो याद के लिए एकान्त की बहुत जरूरत है। जितना तुम एकान्त वा शान्त में बाप की याद में रह सकते हो उतना झुण्ड में नहीं रह सकते हो। स्कूल में भी बच्चे पढ़ते हैं तो एकान्त में जाकर स्टडी करते हैं। इसमें भी एकान्त चाहिए। घूमने जाते हो तो उसमें भी याद की यात्रा मुख्य है। पढ़ाई तो बिल्कुल सहज है क्योंकि आधाकल्प माया का राज्य आने से ही तुम देह-अभिमानी बनते हो। पहला-पहला शत्रु है देह-अभिमान। बाप को याद करने के बदले देह को याद कर लेते हैं। इसको देह का अहंकार कहा जाता है। यहाँ तुम बच्चों को कहा जाता है आत्म-अभिमानी बनो, इसमें ही मेहनत लगती है। अब भक्ति तो छूटी। भक्ति होती ही है शरीर के साथ। तीर्थों आदि पर शरीर को ले जाना पड़ता है। दर्शन करना है, यह करना है। शरीर को जाना पड़े। यहाँ तुमको यही चिंतन करना है कि हम आत्मा हैं, हमको परमपिता परमात्मा बाप को याद करना है। बस जितना याद करेंगे तो पाप कट जायेंगे। भक्ति मार्ग में तो कभी पाप कटते नहीं हैं। कोई बुढ़े आदि होते हैं तो अन्दर में यह वहम होता है – हम भक्ति नहीं करेंगे तो नुकसान होगा, नास्तिक बन जायेंगे। भक्ति की जैसे आग लगी हुई है और ज्ञान में है शीतलता। इसमें काम क्रोध की आग खत्म हो जाती है। भक्ति मार्ग में मनुष्य कितनी भावना रखते हैं, मेहनत करते हैं। समझो बद्रीनाथ पर गये, मूर्ति का साक्षात्कार हुआ फिर क्या! झट भावना बन जाती है, फिर बद्री-नाथ के सिवाए और कोई की याद बुद्धि में नहीं रहती। आगे तो पैदल जाते थे। बाप कहते हैं मैं अल्पकाल के लिए मनोकामना पूरी कर देता हूँ, साक्षात्कार कराता हूँ। बाकी मैं इनसे मिलता नहीं हूँ। मेरे बिगर वर्सा थोड़ेही मिलेगा। वर्सा तो तुमको मेरे से ही मिलना है ना। यह तो सभी देहधारी हैं। वर्सा एक ही बाप रचता से मिलता है, बाकी जो भी हैं जड़ अथवा चैतन्य वह सारी है रचना। रचना से कभी वर्सा मिल न सके। पतित-पावन एक ही बाप है। कुमारियों को तो संगदोष से बहुत बचना है। बाप कहते हैं इस पतितपने से तुम आदि-मध्य-अन्त दु:ख पाते हो। अभी सब हैं पतित। तुम्हें अभी पावन बनना है। निराकार बाप ही आकर तुमको पढ़ाते हैं। ऐसे कभी नहीं समझो कि ब्रह्मा पढ़ाते हैं। सबकी बुद्धि शिवबाबा तरफ रहनी चाहिए। शिवबाबा इन द्वारा पढ़ाते हैं। तुम दादियों को भी पढ़ाने वाला शिवबाबा है। उनकी क्या खातिरी करेंगे! तुम शिवबाबा के लिए अंगूर आम ले आते हो, शिवबाबा कहते हैं – मैं तो अभोक्ता हूँ। तुम बच्चों के लिए ही सब कुछ है। भक्तों ने भोग लगाया और बांटकर खाया। मैं थोड़ेही खाता हूँ। बाप कहते हैं मैं तो आता ही हूँ तुम बच्चों को पढ़ाकर पावन बनाने। पावन बनकर तुम इतना ऊंच पद पायेंगे। मेरा धन्धा यह है। कहते ही हैं शिव भगवानुवाच। ब्रह्मा भगवानुवाच तो कहते नहीं हैं। ब्रह्मा वाच भी नहीं कहते हैं। भल यह भी मुरली चलाते हैं परन्तु हमेशा समझो शिवबाबा चलाते हैं। किसी बच्चे को अच्छा तीर लगाना होगा तो खुद प्रवेश कर लेंगे। ज्ञान का तीर तीखा गाया जाता है ना। साइंस में भी कितनी पावर है। बॉम्बस आदि का कितना धमाका होता है। तुम कितनी साइलेन्स में रहते हो। साइंस पर साइलेन्स विजय पाती है।

तुम इस सृष्टि को पावन बनाते हो। पहले तो अपने को पावन बनाना है। ड्रामा अनुसार पावन भी बनना ही है, इसलिए विनाश भी नूँधा हुआ है। ड्रामा को समझ कर बहुत हर्षित रहना चाहिए। अभी हमको जाना है शान्तिधाम। बाप कहते हैं वह तुम्हारा घर है। घर में तो खुशी से जाना चाहिए ना। इसमें देही-अभिमानी बनने की बहुत मेहनत करनी है। इस याद की यात्रा पर ही बाबा बहुत जोर देते हैं, इसमें ही मेहनत है। बाप पूछते हैं चलते फिरते याद करना सहज है या एक जगह बैठकर याद करना सहज है? भक्ति मार्ग में भी कितनी माला फेरते हैं, राम-राम जपते रहते हैं। फायदा तो कुछ भी नहीं। बाप तो तुम बच्चों को बिल्कुल सहज युक्ति बतलाते हैं – भोजन बनाओ, कुछ भी करो, बाप को याद करो। भक्ति मार्ग में श्रीनाथ द्वारे में भोग बनाते हैं, मुँह को पट्टी बांध देते हैं। ज़रा भी आवाज़ न हो। वह है भक्ति मार्ग। तुमको तो बाप को याद करना है। वो लोग इतना भोग लगाते हैं फिर वह कोई खाते थोड़ेही हैं। पण्डे लोगों के कुटुम्ब होते हैं, वह खाते हैं। तुम यहाँ जानते हो हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं। भक्ति में थोड़ेही यह समझते हैं कि हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं। भल शिव पुराण बनाया है परन्तु उनमें शिव-पार्वती, शिव-शंकर सब मिला दिया है, वह पढ़ने से कोई फायदा नहीं होता है। हर एक को अपना शास्त्र पढ़ना चाहिए। भारतवासियों की है एक गीता। क्रिश्चियन का बाइबिल एक होता है। देवी-देवता धर्म का शास्त्र है गीता। उसमें ही नॉलेज है। नॉलेज ही पढ़ी जाती है। तुमको नॉलेज पढ़नी है। लड़ाई आदि की बातें जिन किताबों में हैं, उससे तुम्हारा कोई काम ही नहीं है। हम हैं योगबल वाले फिर बाहुबल वालों की कहानियां क्यों सुनें! तुम्हारी वास्तव में लड़ाई है नहीं। तुम योगबल से 5 विकारों पर विजय पाते हो। तुम्हारी लड़ाई है 5 विकारों से। वह तो मनुष्य, मनुष्य से लड़ाई करते हैं। तुम अपने विकारों से लड़ाई लड़ते हो। यह बातें संन्यासी आदि समझा न सकें। तुमको कोई ड्रिल आदि भी नहीं सिखलाई जाती है। तुम्हारी ड्रिल है ही एक। तुम्हारा है ही योगबल। याद के बल से 5 विकारों पर जीत पाते हो। यह 5 विकार दुश्मन हैं। उनमें भी नम्बरवन है देह-अभिमान। बाप कहते हैं तुम तो आत्मा हो ना। तुम आत्मा आती हो, आकर गर्भ में प्रवेश करती हो। मैं तो इस शरीर में विराजमान हुआ हूँ। मैं कोई गर्भ में थोड़ेही जाता हूँ। सतयुग में तुम गर्भ महल में रहते हो। फिर रावण राज्य में गर्भ जेल में जाते हो। मैं तो प्रवेश करता हूँ। इसको दिव्य जन्म कहा जाता है। ड्रामा अनुसार मुझे इसमें आना पड़ता है। इनका नाम ब्रह्मा रखता हूँ क्योंकि मेरा बना है ना। एडाप्ट होते हैं तो नाम कितने अच्छे-अच्छे रखते हैं। तुम्हारे भी बहुत अच्छे-अच्छे नाम रखे। लिस्ट बड़ी वन्डरफुल आई थी, सन्देशी द्वारा। बाबा को सब नाम थोड़ेही याद हैं। नाम से तो कोई काम नहीं। शरीर पर नाम रखा जाता है ना। अब तो बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो। बस। तुम जानते हो हम पूज्य देवता बनते हैं फिर राज्य करेंगे। फिर भक्ति मार्ग में हमारे ही चित्र बनायेंगे। देवियों के बहुत चित्र बनाते हैं। आत्माओं की भी पूजा होती है। मिट्टी के सालिग्राम बनाते हैं फिर रात को तोड़ डालते हैं। देवियों को भी सज़ाकर, पूजा कर फिर समुद्र में डाल देते हैं। बाप कहते हैं मेरा भी रूप बनाकर, खिला पिलाकर फिर मुझे कह देते ठिक्कर-भित्तर में है। सबसे दुर्दशा तो मेरी करते हैं। तुम कितने गरीब बन गये हो। गरीब ही फिर ऊंच पद पाते हैं। साहूकार मुश्किल उठाते हैं। बाबा भी साहूकारों से इतना लेकर क्या करेंगे! यहाँ तो बच्चों के बूँद-बूँद से यह मकान आदि बनते हैं। कहते हैं बाबा हमारी एक ईट लगा दो। समझते हैं रिटर्न में हमको सोने-चांदी के महल मिलेंगे। वहाँ तो सोना ढेर रहता है। सोने की ईटें होगी तब तो मकान बनेंगे। तो बाप बहुत प्यार से कहते हैं – मीठे-मीठे बच्चों, अब मुझे याद करो, अब नाटक पूरा होता है।

बाप गरीब बच्चों को साहूकार बनने की युक्ति बताते हैं – मीठे बच्चे, तुम्हारे पास जो कुछ भी है ट्रांसफर कर दो। यहाँ तो कुछ भी रहना नहीं है। यहाँ जो ट्रांसफर करेंगे वह नई दुनिया में तुमको सौ गुणा होकर मिलेगा। बाबा कुछ मांगते नहीं हैं। वह तो दाता है, यह युक्ति बताई जाती है। यहाँ तो सब मिट्टी में मिल जाना है। कुछ ट्रांसफर कर देंगे तो तुमको नई दुनिया में मिलेगा। इस पुरानी दुनिया के विनाश का समय है। यह कुछ भी काम में नहीं आयेगा इसलिए बाबा कहते हैं घर-घर में युनिवर्सिटी कम हॉस्पिटल खोल़ो जिससे हेल्थ और वेल्थ मिलेगी। यही मुख्य है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

रात्रि क्लास 12-3-68

इस समय तुम गरीब साधारण मातायें पुरुषार्थ करके ऊंच पद पा लेती हो। यज्ञ में मदद आदि भी मातायें बहुत करती हैं, पुरुष बहुत थोड़े हैं जो मददगार बनते हैं। माताओं को वारिसपने का नशा नहीं रहता। वह बीज बोती रहती, अपना जीवन बनाती रहती। तुम्हारा ज्ञान है यथार्थ, बाकी है भक्ति। रूहानी बाप ही आकर ज्ञान देते हैं। बाप को समझें तो बाप से वर्सा जरूर लेवें। तुमको बाप पुरुषार्थ कराते रहते हैं, समझाते रहते हैं। टाइम वेस्ट मत करो। बाप जानते हैं कोई अच्छे पुरुषार्थी हैं कोई मीडियम, कोई थर्ड। बाबा से पूछें तो बाबा झट बता दे – तुम फर्स्ट हो या सेकण्ड हो या थर्ड हो। किसको ज्ञान नहीं देते हो तो थर्ड क्लास ठहरे। सबूत नहीं देते तो बाबा जरूर कहेंगे ना। भगवान आकर जो ज्ञान सिखलाते हैं वो फिर प्राय:लोप हो जाता है। यह किसको भी पता नहीं है। ड्रामा के प्लैन अनुसार यह भक्ति मार्ग है, इनसे कोई मुझे प्राप्त कर नहीं सकता। सतयुग में कोई जा नहीं सकता। अभी तुम बच्चे पुरुषार्थ कर रहे हो। कल्प पहले मिसल जितना जिसने पुरुषार्थ किया है, उतना करते रहते हैं। बाप समझ सकते हैं अपना कल्याण कौन कर रहे हैं। बाप तो कहेंगे रोज़ इन लक्ष्मी नारायण के चित्र के आगे आकर बैठो। बाबा आपकी श्रीमत पर यह वर्सा हम जरूर लेंगे। आप समान बनाने की सर्विस का शौक जरूर चाहिए। सेन्टर्स वालों को भी लिखता हूँ, इतने वर्ष पढ़े हो किसको पढ़ा नहीं सकते हो तो बाकी पढ़े क्या हो! बच्चों की उन्नति तो करनी चाहिए ना। बुद्धि में सारा दिन सर्विस के ख्याल चलने चाहिए।

तुम वानप्रस्थी हो ना। वानप्रस्थियों के भी आश्रम होते हैं। वानप्रस्थियों के पास जाना चाहिए, मरने के पहले लक्ष्य तो बता दो। वाणी से परे तुम्हारी आत्मा जायेगी कैसे! पतित आत्मा तो जा न सके। भगवानुवाच मामेकम् याद करो तो तुम वानप्रस्थ में चले जायेंगे। बनारस में भी सर्विस ढेर है। बहुत साधु लोग काशीवास के लिये वहाँ रहते हैं, सारा दिन कहते रहते हैं शिव काशी विश्वनाथ गंगा। तुम्हारे अन्दर में सदैव खुशी की ताली बजती रहनी चाहिए। स्टूडेन्ट हो ना! सर्विस भी करते हैं, पढ़ते भी हैं। बाप को याद करना है, वर्सा लेना है। हम अब शिवबाबा के पास जाते हैं। यह मन्मनाभव है। परन्तु बहुतों को याद रहती नहीं है। झरमुई झगमुई करते रहते। मूल बात है याद की। याद ही खुशी में लायेगी। सभी चाहते तो हैं कि विश्व में शान्ति हो। बाबा भी कहते हैं उन्हें समझाओ कि विश्व में शान्ति अब स्थापन हो रही है, इसलिये बाबा लक्ष्मी-नारायण के चित्र को जास्ती महत्व देते हैं। बोलो, यह दुनिया स्थापन हो रही है, जहाँ सुख-शान्ति, पवित्रता सब था। सभी कहते हैं विश्व में शान्ति हो। प्राईज भी बहुतों को मिलती रहती है। वर्ल्ड में पीस स्थापन करने वाला तो मालिक होगा ना। इन्हों के राज्य में विश्व में शान्ति थी। एक भाषा, एक राज्य, एक धर्म था। बाकी सभी आत्मायें निराकारी दुनिया में थी। ऐसी दुनिया किसने स्थापन की थी! पीस किसने स्थापन की थी! फारेनर्स भी समझेंगे यह पैराडाइज़ था, इन्हों का राज्य था। वर्ल्ड में पीस तो अब स्थापन हो रही है। बाबा ने समझाया था प्रभात फेरी में भी यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र निकालो। जो सभी के कानों में आवाज पड़े कि यह राज्य स्थापन हो रहा है। नर्क का विनाश सामने खड़ा है। यह तो जानते हैं ड्रामा अनुसार शायद देरी है। बड़ो-बड़ों के तकदीर में अभी नहीं है। फिर भी बाबा पुरुषार्थ कराते रहते हैं। ड्रामा अनुसार सर्विस चल रही है। अच्छा। गुडनाईट।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) संगदोष से अपनी बहुत-बहुत सम्भाल करनी है। कभी पतितों के संग में नहीं आना है। साइलेन्स बल से इस सृष्टि को पावन बनाने की सेवा करनी है।

2) ड्रामा को अच्छी तरह समझकर हर्षित रहना है। अपना सब कुछ नई दुनिया के लिए ट्रांसफर करना है।

वरदान:- बाप द्वारा सफलता का तिलक प्राप्त करने वाले सदा आज्ञाकारी, दिलतख्त नशीन भव
भाग्य विधाता बाप रोज़ अमृतवेले अपने आज्ञाकारी बच्चों को सफलता का तिलक लगाते हैं। आज्ञाकारी ब्राह्मण बच्चे कभी मेहनत वा मुश्किल शब्द मुख से तो क्या संकल्प में भी नहीं ला सकते हैं। वह सहजयोगी बन जाते हैं इसलिए कभी भी दिलशिकस्त नहीं बनो लेकिन सदा दिलतख्तनशीन बनो, रहमदिल बनो। अहम भाव और वहम भाव को समाप्त करो।
स्लोगन:- विश्व परिवर्तन की डेट नहीं सोचो, स्वयं के परिवर्तन की घड़ी निश्चित करो।

 

अव्यक्त इशारे – सत्यता और सभ्यता रूपी क्लचर को अपनाओ

जो प्युरिटी की पर्सनैलिटी से सम्पन्न रॉयल आत्मायें हैं उन्हें सभ्यता की देवी कहा जाता है। उनमें क्रोध विकार की इमप्युरिटी भी नहीं हो सकती। क्रोध का सूक्ष्म रूप ईर्ष्या, द्वेष, घृणा भी अगर अन्दर में है तो वह भी अग्नि है जो अन्दर ही अन्दर जलाती है। बाहर से लाल, पीला नहीं होता, लेकिन काला होता है। तो अब इस कालेपन को समाप्त कर सच्चे और साफ बनो।

शीर्षक: मीठे बच्चे – यह ज्ञान तुम्हें शीतल बनाता है, इस ज्ञान से काम-क्रोध की आग खत्म हो जाती है, भक्ति से वह आग खत्म नहीं होती

प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1: याद में मुख्य मेहनत कौन सी है?
उत्तर: बाप की याद में बैठते समय देह भी याद न आए। आत्म-अभिमानी बनकर बाप को याद करना ही मुख्य मेहनत है। इसमें ही विघ्न पड़ता है क्योंकि आधा कल्प देह-अभिमानी रहे हो। भक्ति में तो देह की ही याद होती है।

प्रश्न 2: याद के लिए एकांत क्यों आवश्यक है?
उत्तर: जितना तुम एकांत में शांति से बाप की याद में रह सकते हो, उतना झुंड में नहीं रह सकते। स्कूल में भी बच्चे स्टडी करने के लिए एकांत में जाते हैं। इसी तरह, ज्ञान और योग के लिए भी एकांत बहुत आवश्यक है।

प्रश्न 3: पहला शत्रु कौन सा है और उससे कैसे बचा जाए?
उत्तर: पहला-पहला शत्रु देह-अभिमान है। बाप को याद करने के बदले बच्चे देह को याद कर लेते हैं। आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत ही मुख्य है, क्योंकि भक्ति शरीर के साथ जुड़ी होती है जबकि ज्ञान आत्मा को बाप से जोड़ता है।

प्रश्न 4: भक्ति मार्ग में पाप क्यों नहीं कटते?
उत्तर: भक्ति मार्ग में मनुष्य भावनाओं में बहकर कर्म करते हैं, जिससे पाप कटते नहीं हैं। वे तीर्थ यात्रा करते हैं, मूर्तियों के दर्शन करते हैं, लेकिन आत्मा पवित्र नहीं बनती। पाप कटने का एकमात्र साधन बाप की याद है, जो आत्मा को शुद्ध कर देती है।

प्रश्न 5: बाबा के अनुसार भक्ति मार्ग में प्राप्त साक्षात्कार का क्या महत्व है?
उत्तर: बाबा कहते हैं कि भक्ति मार्ग में जो साक्षात्कार होते हैं, वे अल्पकालिक होते हैं। भक्त भावनाओं में बह जाते हैं, लेकिन आत्मा पावन नहीं बनती। वर्सा केवल बाप से मिलता है, और वह ज्ञान और योग से ही संभव है।

प्रश्न 6: बाप से वर्सा लेने के लिए मुख्य धारणा कौन सी रखनी है?
उत्तर: बाप को याद करना और उनकी श्रीमत पर चलना ही वर्सा लेने का मुख्य साधन है। देह-अभिमान छोड़कर आत्म-अभिमानी बनना आवश्यक है।

प्रश्न 7: पाँच विकारों पर विजय कैसे प्राप्त करें?
उत्तर: पाँच विकारों पर विजय योगबल से प्राप्त की जाती है। सबसे पहले देह-अभिमान पर जीत पाना आवश्यक है। जब आत्मा बाप को याद करती है, तब बाकी विकार स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं।

प्रश्न 8: विश्व में शांति स्थापना का असली मार्ग कौन सा है?
उत्तर: विश्व शांति की स्थापना योगबल और ज्ञान से होती है। बाबा ने लक्ष्मी-नारायण की दुनिया की स्थापना के लिए ज्ञान दिया है। यह वही संसार है जहाँ सुख, शांति और पवित्रता थी।

प्रश्न 9: ट्रांसफर करने की युक्ति क्या है?
उत्तर: बाबा कहते हैं कि अपने धन को नई दुनिया में ट्रांसफर कर दो, जिससे वहाँ सौ गुना होकर मिलेगा। यहाँ की वस्तुएँ नष्ट हो जाएँगी, लेकिन जो कुछ बाप के लिए लगाया, वह स्वर्ग में लौटकर मिलेगा।

प्रश्न 10: बाबा किसे सफलता का तिलक लगाते हैं?
उत्तर: बाप उन बच्चों को सफलता का तिलक लगाते हैं, जो आज्ञाकारी होते हैं और सदा दिलतख्तनशीन रहते हैं। वे कभी मेहनत या मुश्किल शब्द को संकल्प में भी नहीं लाते, बल्कि सहजयोगी बनकर सेवा में तत्पर रहते हैं।

प्रश्न 11: क्रोध की सूक्ष्म अशुद्धता क्या है और उसे कैसे समाप्त करें?
उत्तर: क्रोध का सूक्ष्म रूप ईर्ष्या, द्वेष और घृणा है। यह अग्नि आत्मा को अंदर ही अंदर जलाती है। इसे समाप्त करने के लिए सत्यता और सभ्यता रूपी संस्कृति को अपनाना चाहिए और सच्चे व साफ बनना चाहिए।

प्रश्न 12: बाबा का मुख्य धंधा क्या है?
उत्तर: बाबा का मुख्य धंधा बच्चों को पढ़ाकर पावन बनाना है। वे विश्व परिवर्तन के लिए ज्ञान और योग सिखाने आते हैं। उनका लक्ष्य आत्माओं को पवित्र बनाकर नई दुनिया की स्थापना करना है।

प्रश्न 13: बाबा को कौन-सा रूप दिया जाता है और उसकी क्या दुर्दशा होती है?
उत्तर: भक्त लोग बाबा का रूप बनाते हैं, भोग लगाकर फिर उन्हें कह देते हैं कि वे ठिक्कर-भित्तर में हैं। सबसे ज्यादा दुर्दशा बाबा की होती है, लेकिन वे फिर भी बच्चों को ऊँच बनाने आते हैं।

प्रश्न 14: सच्ची भक्ति किसे कहते हैं?
उत्तर: सच्ची भक्ति का अर्थ है ज्ञान और योग के माध्यम से आत्मा को शुद्ध बनाना। केवल मूर्तियों की पूजा करना और तीर्थों पर जाना सच्ची भक्ति नहीं है।

प्रश्न 15: बच्चों को समय कैसे व्यतीत करना चाहिए?
उत्तर: बच्चों को सारा दिन सेवा और पढ़ाई में लगाना चाहिए। उनके संकल्पों में सेवा के ख्याल चलते रहने चाहिए, जिससे वे बाप समान बन सकें।

प्रश्न 16: कौन-से आत्माएँ परमधाम जा सकती हैं?
उत्तर: केवल पवित्र आत्माएँ ही परमधाम जा सकती हैं। पतित आत्माएँ वहाँ प्रवेश नहीं कर सकतीं। बाप ने कहा है – “मुझे याद करो तो पावन बन जाओगे और वानप्रस्थ में चले जाओगे।”

प्रश्न 17: बाप विश्व शांति की स्थापना किस प्रकार कर रहे हैं?
उत्तर: बाप योगबल द्वारा विश्व शांति की स्थापना कर रहे हैं। बाबा ने बताया कि सत्य युग में एक धर्म, एक भाषा और एक राज्य था, वही अब पुनः स्थापित हो रहा है।

प्रश्न 18: भक्ति मार्ग में लोग क्या गलती करते हैं?
उत्तर: भक्ति मार्ग में लोग सोचते हैं कि केवल मंत्र जपने, माला फेरने और मूर्ति पूजने से पाप कट जाएंगे। लेकिन असल में, जब तक आत्मा बाप को याद नहीं करती, तब तक वह शुद्ध नहीं हो सकती।

प्रश्न 19: योगबल से कैसे सिद्धि प्राप्त होती है?
उत्तर: योगबल से पाँच विकारों पर विजय पाकर आत्मा शुद्ध बनती है। जब आत्मा पूरी तरह से पवित्र हो जाती है, तभी वह सच्ची शांति और आनंद को प्राप्त कर सकती है।

प्रश्न 20: संगदोष से कैसे बचें?
उत्तर: संगदोष से बचने के लिए आत्मा को साइलेन्स बल द्वारा स्वयं को पावन बनाना है। पतितों के संग में जाने से आत्मा का पतन होता है, इसलिए बाप ने संगदोष से बचने की हिदायत दी है।


धारणा के लिए मुख्य सार:

  1. संगदोष से बहुत-बहुत बचना है और साइलेन्स बल से इस सृष्टि को पावन बनाने की सेवा करनी है।
  2. ड्रामा को समझकर हर्षित रहना है और अपना सब कुछ नई दुनिया के लिए ट्रांसफर करना है।

वरदान: बाप द्वारा सफलता का तिलक प्राप्त करने वाले सदा आज्ञाकारी और दिलतख्तनशीन बनो।

स्लोगन: विश्व परिवर्तन की डेट नहीं सोचो, स्वयं के परिवर्तन की घड़ी निश्चित करो।

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