(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
26-05-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
|
मधुबन |
“मीठे बच्चे – तुम्हें संग बहुत अच्छा करना है, बुरे संग का रंग लगा तो गिर पड़ेंगे, कुसंग बुद्धि को तुच्छ बना देता है” | |
प्रश्नः- | अभी तुम बच्चों को कौन सी उछल आनी चाहिए? |
उत्तर:- | तुम्हें उछल आनी चाहिए कि गांव-गांव में जाकर सर्विस करें। तुम्हारे पास जो कुछ है, वह सेवा अर्थ है। बाप बच्चों को राय देते हैं – बच्चे, इस पुरानी दुनिया से अपना पल्लव आज़ाद करो। कोई चीज़ में ममत्व नहीं रखो, इनसे दिल नही लगाओ। |
गीत:- | इस पाप की दुनिया से…… |
ओम् शान्ति। पाप आत्माओं की दुनिया और पुण्य आत्माओं की दुनिया, नाम आत्माओं का ही रखा जाता है। अभी यहाँ दु:ख है तब पुकारते हैं। पुण्य आत्माओं की दुनिया में पुकारते नहीं कि कहाँ ले चलो। तुम बच्चे समझते हो, यह कोई पण्डित वा सन्यासी शास्त्रवादी आदि नहीं सुनाते हैं। यह खुद भी कहते हैं – मैं यह ज्ञान नहीं जानता था, रामायण आदि शास्त्र तो ढेर पढ़ते थे। बाकी यह ज्ञान हम तुमको सुनाते हैं। यह भी सुनते हैं। अभी यह है पाप आत्माओं की दुनिया। पुण्य आत्माओं के लिए सिर्फ कहेंगे कि यह होकर गये हैं। बस, पूजा करके आ जायेंगे, शिव की पूजा करके आयेंगे। तुम बच्चे अब किसकी पूजा करेंगे? तुम जानते हो ऊंच ते ऊंच भगवान शिव है, वह है ओबीडियन्ट बाप, टीचर, ओबीडियन्ट प्रिसेप्टर। साथ ले जाने की गैरन्टी और कोई गुरू आदि कर न सकें। सो भी वह कोई सबको थोड़ेही ले जायेंगे। अभी तुम सम्मुख बैठे हो, यहाँ से अपने घर में जाने से भी तुम भूल जायेंगे। यहाँ सम्मुख सुनने से मज़ा आयेगा। बाप घड़ी-घड़ी कहते हैं – बच्चे, अच्छी रीति पढ़ो। इसमें ग़फलत नहीं करो, कुसंग में नहीं फँसो। नहीं तो और ही तुच्छ बुद्धि हो जायेंगे। बच्चे जानते हैं हम क्या थे, क्या पाप किये। अब हम यह देवता बनते हैं, यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है फिर यहाँ मकान आदि की क्या परवाह रखनी है। इस दुनिया का जो कुछ है वह भूलना है। नहीं तो रूकावट डालेंगे। इसमें दिल लगता नहीं। हम नई दुनिया में अपने हीरे-जवाहरातों के महल जाकर बनायेंगे। यहाँ के पैसे आदि कोई चीज़ अच्छी लगती होगी तो शरीर छोड़ते समय उसमें मोह चला जायेगा। हमारा-हमारा करेंगे तो वह पिछाड़ी में सामने आ जायेगा। यह तो सब यहाँ खत्म हो जाने हैं। हम अपनी राजधानी में आ जायेंगे, इससे क्या दिल लगानी है। वहाँ बहुत सुख रहता है। नाम ही है स्वर्ग। अभी हम चले अपने वतन, यह तो रावण का वतन है, हमारा नहीं। इनसे छूटने का पुरुषार्थ करना है। पुरानी दुनिया से पल्लव आज़ाद कराते हैं इसलिए बाप कहते हैं कोई चीज़ में ममत्व नहीं रखो। पेट कोई जास्ती नहीं मांगता, फालतू चीज़ों पर खर्चा बहुत होता है। तुम बच्चों को सर्विस करने के लिए उछल आनी चाहिए। कई बच्चे हैं जिनको गांव-गांव में सर्विस करने का शौक है। बाकी जिसको सर्विस का शौक नहीं, उन्हें क्या काम के कहेंगे। जैसे बाप वैसे बच्चों को बनना चाहिए। बाप का ही परिचय देना है। बाप को याद करो और बाप से वर्सा लो। बच्चों को शौक होता – हम बाबा की सर्विस पर जाते हैं। तो बाप भी हिम्मत बढ़ाते हैं। बाप आये हैं सर्विस पर, सर्विस के लिए सब कुछ है। यह तो बाप का परिचय सबको देना है। बाप एक ही है। भारत में आया था, भारत में देवताओं का राज्य था। कल की बात है, लक्ष्मी-नारायण का राज्य था फिर राम-सीता का। फिर वाम मार्ग में गिरे। रावण राज्य शुरू हुआ, सीढ़ी नीचे उतरे अब फिर चढ़ती कला सेकण्ड की बात है।
एक होता है रीयल लव, दूसरा होता है आर्टीफिशियल लव। रीयल लव बाप से तब हो जब अपने को आत्मा समझे। अब तुम बच्चों का इस दुनिया में आर्टीफिशियल लव है। यह तो खत्म होनी है। सर्विस करने वाले कभी भूख नहीं मर सकते। तो सर्विस का बच्चों को शौक रखना चाहिए। तुम्हारी ईश्वरीय मिशन बड़ी सहज है। कोई समझते नहीं कि धर्म कैसे स्थापन होता है। क्राइस्ट आया, क्रिश्चियन धर्म स्थापन किया, धर्म बढ़ता गया। उसकी मत पर चलते-चलते गिरते आये, अब तुम बच्चों को देही-अभिमानी बनना है। आधाकल्प रावण राज्य में हम बाप को भूल गये, अब बाप ने आकर सुजाग किया है। बाबा कहते ड्रामा अनुसार तुमको गिरना ही था। तुम्हारा भी दोष नहीं। रावण राज्य में दुनिया की ऐसी हालत हो जाती है। बाप कहते हैं अब मैं आया हूँ पढ़ाने। तुम फिर से अपनी राजाई लो। मैं और कोई तकलीफ नहीं देता हूँ। एक तो बाज़ार की छी-छी गंदी चीज़ें न खाओ और मामेकम् याद करो। अभी तुम बच्चे जानते हो – यह ड्रामा का चक्र है, जो फिर रिपीट होगा। तुम्हारी बुद्धि में ड्रामा के आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान है। तुम कोई को भी समझा सकते हो। पहले तो बाप की याद रहनी चाहिए। सर्विस के लिए आपस में मिलकर साथी बना लेना चाहिए। माताओं को भी निकलना चाहिए। इसमें डरने की कोई बात नहीं है। चित्र आदि सब तुमको मिलेंगे। तुम्हारी सर्विस जास्ती होगी। कहेंगे आप चले जाते हो, फिर हमको कौन सिखायेंगे? बोलो, हम सर्विस करने के लिए तैयार हैं। मकान आदि का प्रबन्ध करो। बहुतों के कल्याण अर्थ निमित्त बन जायेंगे। बाबा सर्विस का उमंग दिलाते हैं। बच्चों में हिम्मत है, तो सर्विस भी बढ़ती है। यह कोई मेला नहीं है जो 10-15 दिन मेला चला फिर खलास। यह मेला तो चलता ही रहता है। यहाँ आत्माओं और परमात्मा का मिलन होता है, जिसको ही सच्चा मेला कहा जाता है। वह तो अभी चल ही रहा है। मेला बन्द तब होगा जब सर्विस पूरी होगी। ड्रामा अनुसार बच्चों को सर्विस का बड़ा शौक चाहिए। जो बेहद के बाप में नॉलेज है, वह बच्चों की बुद्धि में है। ऊंच ते ऊंच बाप से हम कितना ऊंच बनते आये हैं। ऐसे-ऐसे अपने से बातें करनी हैं। आपस में सेमीनार करना है। बाबा से राय कर सर्विस में लग जाओ। कोई मदद की दरकार हो तो बाबा दुल्हेलाल बैठा है। यह सब ड्रामा में नूँध है। फिक्र की कोई बात नहीं। नहीं तो स्थापना कैसे होगी। दूसरी बात यह भी है, जो करेगा वह पायेगा। अभी तुम बच्चे पत्थरबुद्धि से हीरे जैसा बनते हो। बाप ज्ञान से इतना सीधा करते, माया फिर नाक से पकड़कर पीठ दिला देती है।
तुम बच्चों को संग बड़ा अच्छा करना चाहिए। बुरे संग का रंग लगने से गिर पड़ेंगे। बाबा बाइसकोप (सिनेमा) आदि देखने की मना करते हैं। जिसको बाइसकोप की आदत पड़ी वह पतित बनने बिगर रह नहीं सकेंगे। यहाँ हर एक की एक्टिविटी डर्टी है, नाम ही है वेश्यालय। बाप शिवालय स्थापन कर रहे हैं। वेश्यालय को पूरी आग लगनी है। कुम्भकरण जैसे आसुरी नींद में सोये पड़े हैं। तुम समझते हो कि हम शिवालय में जा रहे हैं। पहले हम भी बन्दर सदृश्य थे, इस पर रामायण में भी कहानी है। अभी तुम बाप के मददगार बने हो। तुम अपनी शक्ति से राज्य स्थापन कर रहे हो। फिर यह रावण राज्य खलास हो जाना है। तुम बच्चों को अनेक प्रकार की युक्तियाँ बताते रहते हैं। किसको दान नहीं करेंगे तो फल भी कैसे मिलेगा। पहले-पहले 10-15 को रास्ता बताकर फिर बाद में भोजन खाना चाहिए। पहले शुभ काम करके आओ, इसमें ही तुम्हारा कल्याण है। कोई भी देहधारी को याद नहीं करो। यह तो पतित दुनिया है। पतित-पावन एक बाप को याद करो तो पावन दुनिया के मालिक बन जायेंगे। अन्त मती सो गति हो जायेगी। तो किसी न किसी को सन्देश सुनाकर फिर आए भोजन खाना चाहिए। तुम सबको यही बताते रहो कि बाप को याद करने से इतना ऊंच बन जायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
रात्रि क्लास – 17-3-68
कभी भी कोई भाषण आदि करना हो तो आपस में मिलकर दो चार बारी रिहर्सल करो, प्वाइन्ट्स एडीशन करेक्शन कर तैयार करो तो फिर रिफाईन भाषण करेंगे। मूल एक बात पर (गीता के भगवान पर) ही तुमने विजय पाई तो फिर सभी बातों में विजय हो जायेगी, इसके लिये कान्फ्रेन्स तो होगी ना! समझते रहेंगे झाड़ की वृद्वि तो जरूर होनी है। माया के तूफान तो सभी को लगते हैं। अक्सर करके लिखते हैं बाबा हमने काम की चमाट खाई, इसको कहा जाता है की कमाई चट। क्रोध आदि किया तो कहेंगे कुछ घाटा पड़ा। इसके लिये समझाना पड़ता है, काम पर जीत पहन जगत् जीत बनते हैं। काम से हारे हार होती है। काम से हारने वाले की कमाई चट हो जाती है, दण्ड पड़ जाता है। मंजिल बहुत बड़ी है इसलिये बड़ी खबरदारी रखनी पड़ती है। तुम बच्चे जानते हो 5000 वर्ष पहले भी हमको बादशाही मिली थी। अभी फिर से दैवी राजधानी स्थापन हो रही है। इस पढ़ाई से हम उस राजधानी में जाते हैं, सारा मदार है पढ़ाई पर। पढ़ाई और धारणा से ही बाप समान बनेंगे। रजिस्टर भी चाहिए ना जो मालूम पड़े कितनों को आप समान बनाया। जितना जास्ती धारणा करेंगे उतना ही मीठा बनेंगे। बहुत लवली बच्चे चाहिए। तुम बच्चों के लिये ही वह दिन आया आज, जिसके लिये मनुष्य बहुत कोशिश करते हैं कि मुक्ति में जावें। बाप सभी को इकट्ठा ही मुक्ति जीवनमुक्ति देते हैं। जो देवता बनने का पुरुषार्थ करते हैं वही जीवनमुक्ति में आयेंगे। बाकी सभी मुक्ति में जायेंगे। हिसाब एक्यूरेट नहीं निकाल सकते। कोई तो रहेंगे भी। विनाश का साक्षात्कार करेंगे। यह सुहावना समय भी देखेंगे। हर बात में पुरुषार्थ करना होता है। ऐसे भी नहीं याद में बैठेंगे तो काम हो जायेगा। मकान मिल जायेगा। नहीं। वह तो ड्रामा में जो है वही होता है, आश नहीं रखनी चाहिए। पुरुषार्थ करना होता है। बाकी होता तो वही है जो ड्रामा में नूंध है। आगे चल तुम्हारी वृत्ति भी भाई भाई की हो जायेगी। जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना वह वृत्ति रहेगी। हम अशरीरी आये थे। 84 जन्म का चक्र पूरा किया। अब बाप कहते हैं कर्मातीत अवस्था में जाना है।
तुमको वास्तव में किसी से भी शास्त्रों आदि पर विवाद करने की दरकार नहीं है। मूल बात है ही याद की और सृष्टि के आदि मध्य अन्त को समझना है। चक्रवर्ती राजा बनना है। इस चक्र को ही सिर्फ समझना है। इनका ही गायन है सेकण्ड में जीवन-मुक्ति। तुम बच्चों को वन्डर लगता होगा, आधा कल्प भक्ति चलती है। ज्ञान रिंचक नहीं। ज्ञान है ही बाप के पास। बाप द्वारा ही जानना है। यह बाप कितना अनकामन है, इसलिये कोटों में कोऊ निकलते हैं। वह टीचर्स ऐसे थोड़ेही कहेंगे। यह तो कहते हैं मैं ही बाप, टीचर, गुरु हूँ। तो मनुष्य सुनकर वन्डर खायेंगे। भारत को मदरकन्ट्री कहते हैं क्योंकि अम्बा का नाम बहुत बाला है। अम्बा के मेले भी बहुत लगते हैं। अम्बा मीठा अक्षर है। छोटे बच्चे भी माँ को प्यार करते हैं ना क्योंकि माँ खिलाती पिलाती सम्भालती है। अब अम्बा का बाबा भी चाहिए ना। यह तो बच्ची है एडाप्टेड, इनका पति तो है नहीं। यह नई बात है ना। प्रजापिता ब्रह्मा जरूर एडाप्ट करते होंगे। यह सभी बातें बाप ही आकर तुम बच्चों को समझाते हैं। कितना मेला लगता है पूजा होती है, क्योंकि तुम बच्चे सर्विस करते हो। मम्मा ने जितने को पढ़ाया होगा उतना और कोई पढ़ा न सके। मम्मा का नामाचार बहुत है, मेला भी बहुत लगता है। अभी तुम बच्चे जानते हो, बाप ने ही आकर रचना के आदि-मध्य-अन्त का सारा राज़ तुम बच्चों को समझाया है। तुमको बाप के घर का भी मालूम पड़ा है। बाप से ही लव है, घर से भी लव है। यह ज्ञान तुमको अभी मिलता है। इस पढ़ाई से कितनी कमाई होती है। तो खुशी होनी चाहिए ना और तुम हो बिल्कुल साधारण। दुनिया को पता नहीं है, बाप आकर यह नॉलेज सुनाते हैं। बाप ही आकर सभी नई नई बातें बच्चों को सुनाते हैं। नई दुनिया बनती है बेहद की पढ़ाई से। पुरानी दुनिया से वैराग्य आ जाता है। तुम बच्चों के अन्दर में ज्ञान की खुशी रहती है। बाप को और घर को याद करना है। घर तो सभी को जाना ही है। बाप तो सभी को कहेंगे ना बच्चों हम तुमको मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा देने आया हूँ। फिर भूल क्यों जाते हो! मैं तुम्हारा बेहद का बाप हूँ, राजयोग सिखलाने आया हूँ। तो क्या तुम श्रीमत पर नहीं चलेंगे। फिर तो बहुत घाटा पड़ जायेगा। यह है बेहद का घाटा। बाप का हाथ छोड़ा तो कमाई में घाटा पड़ जायेगा। अच्छा – गुडनाईट। ओम् शान्ति।
वरदान:- | त्रिकालदर्शी स्टेज द्वारा व्यर्थ का खाता समाप्त करने वाले सदा सफलतामूर्त भव त्रिकालदर्शी स्टेज पर स्थित होना अर्थात् हर संकल्प, बोल वा कर्म करने के पहले चेक करना कि यह व्यर्थ है या समर्थ है! व्यर्थ एक सेकण्ड में पदमों का नुकसान करता है, समर्थ एक सेकेण्ड में पदमों की कमाई करता है। सेकण्ड का व्यर्थ भी कमाई में बहुत घाटा डाल देता है जिससे की हुई कमाई भी छिप जाती है इसलिए एक काल दर्शी हो कर्म करने के बजाए त्रिकालदर्शी स्थिति पर स्थित होकर करो तो व्यर्थ समाप्त हो जायेगा और सदा सफलतामूर्त बन जायेंगे। |
स्लोगन:- | मान, शान और साधनों का त्याग ही महान त्याग है। |
अव्यक्त इशारे – रूहानी रॉयल्टी और प्युरिटी की पर्सनैलिटी धारण करो
जैसे देह और देही दोनों अलग-अलग दो वस्तुएं हैं, लेकिन अज्ञान-वश दोनों को मिला दिया है; मेरे को मैं समझ लिया है और इसी गलती के कारण इतनी परेशानी, दु:ख और अशान्ति प्राप्त की है। ऐसे ही यह अपवित्रता और विस्मृति के संस्कार, जो ब्राह्मणपन के नहीं, शूद्रपन के हैं, इनको भी मेरा समझने से माया के वश हो जाते हो और फिर परेशान होते हो।
“मीठे बच्चे – तुम्हें संग बहुत अच्छा करना है, बुरे संग का रंग लगा तो गिर पड़ेंगे, कुसंग बुद्धि को तुच्छ बना देता है”
❓ प्रश्न 1:अभी तुम बच्चों को कौन सी उछल आनी चाहिए?
✅ उत्तर:तुम्हें यह उछल आनी चाहिए कि गांव-गांव जाकर ईश्वरीय सेवा करो। बाप की श्रीमत है – इस पुरानी दुनिया से पल्लव आज़ाद करो। कोई चीज़ में ममत्व नहीं रखो, इनसे दिल नहीं लगाओ। तुम्हारे पास जो कुछ है वह सेवा के लिए है। सेवा से ही भविष्य की पदवी पक्की होती है।
❓ प्रश्न 2:कुसंग का प्रभाव बच्चों की बुद्धि पर कैसे पड़ता है?
✅ उत्तर:कुसंग बच्चों की बुद्धि को तुच्छ बना देता है। बुरे संग का रंग लगने से आत्मा गिर जाती है और माया नाक से पकड़कर नीचे गिरा देती है। इसलिए संग बहुत अच्छा करना है, नहीं तो पतन निश्चित है।
❓ प्रश्न 3:बाबा कौन सा मेला चल रहा है, इसका विशेष रहस्य क्या बताते हैं?
✅ उत्तर:यह सच्चा मेला आत्मा और परमात्मा का मिलन है, जो लगातार चल रहा है। यह कोई साधारण मेला नहीं है जो कुछ दिन चले फिर खत्म हो जाए। यह मेला तभी खत्म होगा जब पूरे विश्व की सेवा पूरी हो जाएगी और स्थापना कार्य संपूर्ण होगा।
❓ प्रश्न 4:बाबा बच्चों को सेवा के लिए कौन सी युक्तियाँ बताते हैं?
✅ उत्तर:बाबा राय देते हैं – पहले 10-15 को ईश्वरीय ज्ञान का रास्ता बताकर फिर भोजन करना चाहिए। सेवा के लिए पहले शुभ कार्य करो, फिर अपने कार्य करो। माताओं को भी निकलना चाहिए, डरना नहीं चाहिए। चित्र आदि साथ लेकर सेवा करो, बाबा तुम्हारी मदद करेंगे।
❓ प्रश्न 5:बच्चों को किस प्रकार का प्रेम रखना है – रीयल या आर्टीफिशियल?
✅ उत्तर:बच्चों को बाप से रीयल लव रखना है, जो आत्मा की पहचान पर आधारित होता है। इस पुरानी दुनिया में जो प्रेम है वह आर्टीफिशियल है क्योंकि वह देह पर आधारित है। रीयल लव तभी होगा जब आत्मा देही-अभिमानी बने और बाप को याद करे।
❓ प्रश्न 6:बाप बच्चों को किससे बचने की विशेष मना करते हैं और क्यों?
✅ उत्तर:बाप बाइसकोप (सिनेमा) आदि देखने से मना करते हैं, क्योंकि वहाँ की एक्टिविटी डर्टी होती है और उसका संग पतित बना देता है। ऐसे बुरे संग में पड़कर आत्मा पवित्र नहीं रह सकती, इसलिए उससे दूरी बनाना ज़रूरी है।
❓ प्रश्न 7:बाबा बच्चों को कौन सी पहचान याद रखने की शिक्षा देते हैं?
✅ उत्तर:बाबा बार-बार स्मृति दिलाते हैं – तुम आत्मा हो, यह शरीर तुम्हारा वेश है। तुम 5000 वर्ष पहले भी देवता थे, अब फिर वही पदवी प्राप्त कर रहे हो। यह ज्ञान और पढ़ाई ही तुम्हें फिर से चक्रवर्ती राजा बनाती है।
❓ प्रश्न 8:सच्चा पुरुषार्थ किस बात में माना गया है?
✅ उत्तर:सच्चा पुरुषार्थ है – बाप को याद करना, सेवा में लग जाना, श्रीमत पर चलना और पुरानी दुनिया से दिल हटाकर नई दुनिया के लिए कमाई करना। पुरुषार्थ से ही कर्मातीत अवस्था प्राप्त होती है और जीवनमुक्ति का वर्सा पक्का होता है।
❓ प्रश्न 9:बाबा का सर्विस में क्या योगदान और वादा है?
✅ उत्तर:बाबा स्वयं सेवा पर आये हैं। वह बच्चों को उमंग-उत्साह देते हैं, हिम्मत बढ़ाते हैं और कहते हैं – “मैं तुम्हारा मददगार हूँ, तुम जो सेवा करोगे उसका फल अवश्य मिलेगा।” बाबा की गारंटी है – जो मुझे याद करेगा वह हीरे जैसा बन जायेगा।
❓ प्रश्न 10:बच्चों को किन बातों में फिक्र नहीं करनी चाहिए?
✅ उत्तर:बच्चों को कोई भी worldly फिक्र नहीं करनी चाहिए – मकान मिलेगा या नहीं, फल मिलेगा या नहीं। बाबा कहते हैं, जो ड्रामा में नूंध है वही होगा। तुम्हारा कार्य सिर्फ श्रीमत पर चलना और सेवा में लग जाना है।
🌸 निष्कर्ष:
बाप की श्रीमत अनुसार संग बहुत अच्छा बनाना है, बुरे संग से सदा बचना है। सेवा में उछल, याद में तत्परता, और वैराग्यपूर्ण जीवन से ही भविष्य उज्ज्वल बनता है। बाप को सदा ओबीडियन्ट मानकर वही करना है जो वह सिखाते हैं। यही जीवन की सच्ची कमाई है।
मीठे_बच्चे, ईश्वरीय_सेवा, ब्रह्माकुमारी_ज्ञान, संग_की_सावधानी, पुरानी_दुनिया_से_वैराग्य, सर्विस_का_उमंग, बाबा_की_याद, रियल_लव_बाप_से, देही_अभिमानी_स्थित, शिवबाबा_का_ज्ञान, आध्यात्मिक_पुरुषार्थ, ज्ञान_की_खुशी, संगम_युग, बाबा_की_शिक्षा, माया_पर_विजय, आत्मा_का_पुनर्जन्म, आत्मा_की_मुक्ति, ज्ञान_से_उध्दार, राजयोग_की_शिक्षा, शिवालय_की_स्थापना, वेश्यालय_से_छूटना, ममत्व_का_त्याग, सेवा_ही_सच्चा_भोजन, बाबा_का_परिचय_फैलाओ, देवता_बनने_की_तैयारी, ड्रामा_की_समझ, कर्मातीत_अवस्था, बाबा_टीचर_गुरु_है, चक्रवर्ती_राजा, अम्बा_का_गौरव, प्रजापिता_ब्रह्मा, जीवनमुक्ति_का_वर्सा, श्रीमत_पर_चलो, मम्मा_की_महिमा, आध्यात्मिक_सेमीनार, परमात्मा_से_प्रेम, बाबा_से_संवाद
Sweet children, Godly service, Brahma Kumari knowledge, Caution about company, Detachment from the old world, Zeal for service, Remembrance of Baba, Real love for the Father, Soul conscious, Knowledge of Shiv Baba, Spiritual effort, Happiness of knowledge, Confluence Age, Baba’s teachings, Victory over Maya, Rebirth of the soul, Liberation of the soul, Liberation through knowledge, Teachings of Raja Yoga, Establishment of the Shivalaya, Liberation from the brothel, Renunciation of attachment, Service is the only true food, Spread Baba’s introduction, Preparation to become a deity, Understanding of the drama, Karmateet stage, Baba is the Teacher and Guru, Chakravarti King, Glory of Amba, Prajapita Brahma, _Blessing_of_liberation_in_life,_follow_the_shrimat,_the_glory_of_Mamma,_spiritual_seminar,_love_for_god,_dialogue_with_Baba