(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
26-06-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
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मधुबन |
“मीठे बच्चे – अभी तुम्हें निंदा-स्तुति, मान-अपमान, दु:ख-सुख सब कुछ सहन करना है तुम्हारे सुख के दिन अभी समीप आ रहे हैं” | |
प्रश्नः- | बाप अपने ब्राह्मण बच्चों को कौन-सी एक वारनिंग देते हैं? |
उत्तर:- | बच्चे कभी भी बाप से रूठना नहीं। अगर बाप से रूठेंगे तो सद्गति से भी रूठ जायेंगे। बाप वारनिंग देते हैं – रूठने वालों को बड़ी कड़ी सज़ा मिलेगी। आपस में या ब्राह्मणी से भी रूठे तो फूल बनते-बनते कांटा बन जायेंगे, इसलिए बहुत-बहुत खबरदार रहो। |
गीत:- | धीरज धर मनुवा…….. |
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों ने गीत सुना, तुम बच्चों के जो भी जन्म-जन्मान्तर के दु:ख हैं सब दूर हो जाने चाहिए। इस गीत की लाइन सुनी, तुम जानते हो अभी हमारा दु:ख का पार्ट पूरा होता है और सुख का पार्ट शुरू होता है। जो पूरी रीति नहीं जानते हैं वह किसी न किसी बात में दु:ख जरूर देखते हैं। यहाँ बाबा के पास आने से भी कोई न कोई प्रकार का दु:ख भासेगा। बाबा समझ सकते हैं, बहुत बच्चों को तकलीफ होती होगी। जब तीर्थ यात्रा पर जाते हैं तो कहाँ भीड़ होती है, बरसात पड़ जाती है, कभी तूफान लग पड़ते हैं। जो सच्चे भगत होंगे वह तो कहेंगे क्या हर्जा है, भगवान के पास जाते हैं। भगवान समझ कर ही यात्रा पर जाते हैं। ढेर के ढेर भगवान हैं मनुष्यों के। तो जो अच्छे मजबूत होते हैं, वह तो कहते हैं हर्जा नहीं, अच्छे काम में हमेशा विघ्न पड़ते हैं, वापिस लौटकर थोड़ेही जायेंगे। कोई-कोई तो लौट भी जाते हैं। कभी विघ्न पड़ते हैं, कभी नहीं भी पड़ते हैं। बाप कहते हैं बच्चे यह भी तुम्हारी यात्रा है। तुम कहेंगे हम बेहद के बाप पास जाते हैं, वह बाप सबके दु:ख हरने वाला है। यह निश्चय है, आजकल देखो मधुबन में कितनी भीड़ है, बाबा को ओना रहता है, बहुतों को तकलीफ भी होती होगी। पट में सोना पड़ता है। बाबा थोड़ेही चाहता है बच्चों को पट में सुलायें। परन्तु ड्रामा अनुसार भीड़ हो गई है, कल्प पहले भी हुई थी फिर होगी, इसमें कोई दु:ख नहीं होना चाहिए। यह भी जानते हैं पढ़ने वाले कोई तो राजा बनेंगे कोई फिर रंक भी बनेंगे। कोई का ऊंचा मर्तबा, कोई का कम। परन्तु सुख जरूर होगा। यह भी बाबा जानते हैं, कोई बहुत कच्चे हैं, जो कुछ भी सहन नहीं कर सकते हैं। उन्हों को कुछ तकलीफ होगी, कहेंगे हम तो नाहेक आये या कहेंगे हमको ब्राह्मणी जोर करके ले आई है। ऐसे भी होंगे जो कहेंगे हमको ब्राह्मणी ने नाहेक फँसाया। पूरी पहचान नहीं कि विश्व विद्यालय में आये हैं। इस समय की पढ़ाई से कोई तो राव बनेंगे। कोई रंक भी बनने वाले हैं भविष्य में। यहाँ के रंक और राव में और वहाँ के रंक, राव में रात-दिन का फ़र्क होता है। यहाँ के राव भी दु:खी हैं तो रंक भी दु:खी हैं। वहाँ दोनों सुखी रहते हैं। यहाँ तो है ही पतित विकारी दुनिया। भल किसके पास बहुत धन है, बाप समझाते हैं यह धन माल सब मिट्टी में मिल जाना है। यह शरीर भी खत्म हो जायेगा। आत्मा तो मिट्टी में नहीं मिलती, कितने बड़े-बड़े साहूकार हैं, बिड़ला जैसे, परन्तु उनको क्या पता कि अब यह पुरानी दुनिया बदल रही है। मालूम होता तो फट से आ जाते। कहते यहाँ भगवान आया हुआ है फिर भी जायेंगे कहाँ? सिवाए बाप के कोई को सद्गति मिल न सके। अगर कोई रूठ गया तो कहेंगे सद्गति से रूठ गया। ऐसे बहुत रूठते रहेंगे, गिरते रहेंगे। आश्चर्यवत् सुनन्ती, निश्चय होवन्ती……. कोई तो समझते हैं बरोबर इन बिगर कोई रास्ता है नहीं। इनसे तो सुख और शान्ति का वर्सा मिलेगा। इन बिगर सुख-शान्ति मिलना असम्भव है। जब धन बहुत हो तब तो सुख मिले। धन में ही सुख होता है ना। वहाँ (मूलवतन में) तो आत्मायें शान्ति में बैठी हैं। कोई कहे हमारा पार्ट नहीं होता तो सदैव हम वहाँ रहते, परन्तु ऐसे कहने से थोड़ेही होगा। बच्चों को समझाया गया है – यह बना-बनाया खेल है। बहुत हैं जो किसी न किसी संशय में आकर छोड़ जाते हैं। ब्राह्मणी से रूठ जाते हैं या आपस में रूठकर पढ़ाई छोड़ देते हैं।
अभी तुम यहाँ फूल बनने के लिए आये हो। महसूस करते हो – बरोबर हम कांटे से फूल बन रहे हैं। फूल जरूर बनना है। कोई को कुछ संशय है, फलाना यह करते हैं, यह ऐसे हैं, इसलिए हम नहीं आयेंगे। बस रूठकर जाए घर में बैठ जाते हैं। बाप कहते हैं और सबसे तो भल रूठो लेकिन एक बाप से कभी नहीं रूठना। बाबा वारनिंग देते हैं, सज़ायें बहुत कड़ी हैं। गर्भ में भी जो सज़ायें मिलती हैं, सब साक्षात्कार कराते हैं। बिगर साक्षात्कार के सज़ा मिल नहीं सकती। यहाँ का भी साक्षात्कार होगा। तुमने पढ़ते-पढ़ते आपस में लड़-झगड़कर, रूठकर पढ़ाई छोड़ दी थी। तुम बच्चे समझते हो हमको फादर से पढ़ना है। पढ़ाई कभी छोड़नी नहीं है। तुम यहाँ पढ़ते ही हो मनुष्य से देवता बनने। ऐसे ऊंच ते ऊंच बाप के पास तुम मिलने आते हो। कभी जास्ती आ जाते हैं, ड्रामा अनुसार कुछ तकलीफ हो पड़ती है। बच्चों को अनेक तूफान आते हैं। फलानी चीज़ न मिली, यह नहीं मिला, यह तो कुछ भी नहीं है। जब मौत का समय आयेगा तो अज्ञानी मनुष्य कहेंगे हमने क्या गुनाह किया है, नाहेक जो हमें मारते हैं। उस पिछाड़ी के पार्ट को ही कहा जाता है खूने नाहेक पार्ट। अचानक बॉम्ब्स गिरेंगे। ढेर के ढेर मरेंगे। यह खूने नाहेक हुआ ना। अज्ञानी मनुष्य ऐसे चिल्लायेंगे। तुम बच्चे तो बहुत खुश होते हो, क्योंकि तुम जानते हो इस दुनिया का विनाश होना ही है, अनेक धर्मों का विनाश न हो तो एक सत धर्म की स्थापना कैसे होगी। सतयुग में एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। किसको क्या पता सतयुग आदि में क्या था। यह है पुरुषोत्तम संगमयुग। बाप आये ही हैं सबको पुरुषोत्तम बनाने। सबका बाप है ना। ड्रामा को तो तुम जान गये हो। सब तो सतयुग में नहीं आयेंगे। इतनी करोड़ों आत्मायें सतयुग में थोड़ेही आयेंगी। यह हैं डीटेल की बातें। बहुत बच्चियां हैं जो कुछ भी समझती नहीं। भक्ति मार्ग के हिरे हुए हैं। ज्ञान बुद्धि में बैठ न सके। भक्ति की आदत पड़ी हुई है। कहते हैं भगवान क्या नहीं कर सकता। मरे हुए को जिंदा कर सकते हैं। बाबा के पास आते हैं, कहते हैं फलाने मनुष्य ने मरे हुए को जगाया तो क्या भगवान नहीं कर सकता है। कोई ने अच्छा काम किया तो बस उसकी महिमा करने लग पड़ते हैं। फिर उनके हज़ारों फालोअर्स बन जायेंगे। तुम्हारे पास तो बहुत थोड़े आते हैं। भगवान पढ़ाते हैं फिर इतने थोड़े क्यों? ऐसे बहुत कहते हैं। अरे, यहाँ तो मरना होता है। वहाँ तो कनरस है। बड़े भभके से बैठ गीता सुनाते हैं, भगत लोग सुनते हैं। यहाँ कनरस की बात नहीं। तुमको सिर्फ कहा जाता है बाप को याद करो। गीता में भी यह अक्षर हैं मनमनाभव। बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। बाप कहते हैं अच्छा ब्राह्मणी से वा सेन्टर से रूठ जाते हो, अच्छा यह तो काम करो और संग तोड़ अपने को आत्मा समझो, एक बाप को याद करो। बाप ही पतित-पावन है। बस बाप को याद करते रहो। स्वदर्शन चक्र फिराते रहो। इतना याद किया तो भी स्वर्ग में जरूर आयेंगे। स्वर्ग में ऊंच पद तो पुरुषार्थ के अनुसार ही मिलेगा। प्रजा बनानी पड़े। नहीं तो राजाई किस पर करेंगे। जो बहुत मेहनत करते हैं, ऊंच पद भी वही पायेंगे। ऊंच पद के लिए ही कितना माथा मारते हैं। पुरुषार्थ बिगर कोई रह नहीं सकता। तुम बच्चे जानते हो ऊंच ते ऊंच पतित-पावन बाप है। मनुष्य महिमा भल गाते हैं परन्तु अर्थ नहीं समझते हैं। भारत कितना साहूकार था, भारत है स्वर्ग, वन्डर ऑफ वर्ल्ड। वह 7 वन्डर्स माया के। सारे ड्रामा में ऊंच ते ऊंच है स्वर्ग, नीचे ते नीच है नर्क। अभी तुम बाप के पास आये हो, जानते हो मीठा बाबा इतना ऊंच ते ऊंच ले जाते हैं। उनको कौन भूलेंगे। भल कहाँ भी बाहर जाओ सिर्फ एक बात याद रखो, बाप को याद करो। बाप ही श्रीमत देते हैं ö भगवानुवाच, न कि ब्रह्मा भगवानुवाच।
बेहद का बाप बच्चों से पूछते हैं – बच्चे, हम तुमको इतना साहूकार बनाकर गये फिर तुम्हारी दुर्गति कैसे हुई? परन्तु सुनते ऐसे हैं जैसे कुछ भी समझते नहीं। तो बच्चों को थोड़ी तकलीफ होती है, दु:ख-सुख, स्तुति-निंदा भी सब सहन करना पड़ता है। यहाँ के मनुष्य देखो कैसे हैं प्राइम मिनिस्टर को भी पत्थर मारने में देरी नहीं करते हैं। कहते हैं – स्कूल के बच्चों का न्यु ब्लड है। बहुत महिमा करते हैं उनकी। समझते हैं यह फ्युचर का न्यु ब्लड है। परन्तु वही स्टूडेन्ट दु:ख देने वाले निकल पड़ते हैं। कॉलेजों को आग लगा देते हैं। एक-दो को गाली देते रहते हैं। बाप समझाते हैं दुनिया का क्या हाल है। ड्रामा का एक्टर होकर भी ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त और मुख्य एक्टर्स आदि को नहीं जानते हैं तो उन्हें क्या कहें! बड़े ते बड़ा कौन है उसकी बायोग्राफी तो जाननी चाहिए ना। कुछ भी नहीं जानते। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर का क्या पार्ट है, धर्म स्थापकों का क्या पार्ट है। मनुष्य तो अन्धश्रद्धा में आकर सबको प्रीसेप्टर कह देते हैं। गुरू तो वह जो सद्गति करता है। अब सर्व का सद्गति दाता तो एक ही परमपिता परमात्मा है। वह परम गुरू भी है, फिर नॉलेज भी देते हैं। तुम बच्चों को पढ़ाते भी हैं, उनका पार्ट ही वन्डरफुल है। धर्म भी स्थापन करते हैं और सभी धर्मों को खलास भी करते हैं। और तो सिर्फ धर्म स्थापन करते हैं, स्थापना और विनाश करने वाले को ही गुरू कहेंगे ना। बाप कहते हैं मैं कालों का काल हूँ। एक धर्म की स्थापना और बाकी सभी धर्मों का विनाश हो जायेगा अर्थात् इस ज्ञान यज्ञ में स्वाहा हो जायेंगे। फिर न कोई लड़ाई लगेगी, न यज्ञ रचा जायेगा। तुम सारे विश्व के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। और तो सभी नेती-नेती कहते हैं। तुम ऐसे थोड़ेही कहेंगे। बाप बिगर और कोई समझा न सके। तो तुम बच्चों को बड़ी खुशी होनी चाहिए परन्तु माया का सामना ऐसा होता है जो याद ही मिटा देती है। तुम बच्चों को दु:ख-सुख, मान-अपमान, सहन करना है। यूँ तो यहाँ कोई अपमान किया नहीं जाता। अगर कोई भी बात है तो बाप को रिपोर्ट करनी चाहिए। रिपोर्ट नहीं करते तो बड़ा पाप लगता है। बाप को सुनाने से झट उनको सावधानी मिलेगी। इस सर्जन से छिपाना नहीं चाहिए। बड़ा भारी सर्जन है। ज्ञान इन्जेक्शन, इनको अंजन भी कहते हैं। अंजन को ज्ञान-सुरमा भी कहा जाता है। जादू आदि की तो बात ही नहीं है। बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुमको पतित से पावन होने की युक्ति बताने। पवित्र नहीं बनेंगे तो धारणा भी नहीं होगी। इसी काम के कारण ही फिर पाप होते हैं। इन पर जीत पानी है। खुद ही विकार में जाता होगा तो दूसरे कोई को कह नहीं सकेंगे। वह तो महापाप हो जाए। बाप कहानी भी सुनाते हैं – पण्डित ने कहा राम-राम कहने से सागर पार हो जायेंगे। मनुष्य समझते हैं पानी का सागर। जैसे आकाश का अन्त नहीं वैसे सागर का भी अन्त नहीं पा सकते हैं। ब्रह्म महतत्व का भी अन्त नहीं। यहाँ मनुष्य अन्त पाने का पुरुषार्थ करते हैं, वहाँ कोई पुरुषार्थ नहीं करते। यहाँ कितना भी दूर जाते हैं फिर लौट आते हैं। पेट्रोल ही नहीं होगा तो आयेंगे कैसे? यह है साइंस वालों का अति अहंकार, उससे विनाश कर देते हैं। एरोप्लेन से सुख भी है फिर उनसे अति दु:ख भी है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी भी कारण से पढ़ाई नहीं छोड़नी है। सज़ायें बहुत कड़ी हैं उनसे बचने के लिए और सब संग तोड़ एक बाप को याद करना है। रूठना नहीं है।
2) ज्ञान इंजेक्शन वा अंजन देने वाला एक बाप है, उस अविनाशी सर्जन से कोई बात छिपानी नहीं है। बाप को सुनाने से झट सावधानी मिल जायेगी।
वरदान:- | तन की तन्दरूस्ती, मन की खुशी और धन की समृद्धि द्वारा श्रेष्ठ भाग्यवान भव संगमयुग पर सदा स्व में स्थित रहने से तन का कर्मभोग सूली से कांटा हो जाता है, तन का रोग योग में परिवर्तन कर देते हो इसलिए सदा स्वस्थ हो। मनमनाभव होने के कारण खुशियों की खान से सदा सम्पन्न हो इसलिए मन की खुशी भी प्राप्त है और ज्ञान धन सब धनों से श्रेष्ठ है। ज्ञान धन वालों की प्रकृति स्वत: दासी बन जाती है और सर्व संबंध भी एक के साथ हैं, सम्पर्क भी होलीहंसों से है…इसलिए श्रेष्ठ भाग्यवान का वरदान स्वत: प्राप्त है। |
स्लोगन:- | याद और सेवा दोनों का बैलेन्स ही डबल लॉक है। |
अव्यक्त इशारे-आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो
जैसे अनेक जन्म अपने देह के स्वरूप की स्मृति नेचुरल रही है वैसे ही अपने असली स्वरूप की स्मृति का अनुभव थोड़ा समय भी नहीं करेंगे क्या? यह पहला पाठ कम्पलीट करो तब अपनी आत्म-अभिमानी स्थिति द्वारा सर्व आत्माओं को साक्षात्कार कराने के निमित्त बनेंगे।
मीठे बच्चे – अभी तुम्हें निंदा-स्तुति, मान-अपमान, दु:ख-सुख सब कुछ सहन करना है — तुम्हारे सुख के दिन समीप आ रहे हैं
❓प्रश्न 1:बाप अपने ब्राह्मण बच्चों को कौन-सी एक मुख्य वार्निंग देते हैं?
उत्तर:बाप वार्निंग देते हैं – “कभी भी मुझ बाप से रूठना नहीं। जो बच्चे मुझसे रूठते हैं, वे मानो ‘सद्गति’ से ही रूठ जाते हैं।”
रूठने वालों को बहुत कड़ी सज़ा मिलती है। अगर आपस में या ब्राह्मणी से भी रूठे, तो फूल बनते-बनते कांटा बन जाते हैं। इसलिए बहुत सावधान रहना है।
❓प्रश्न 2:जो बच्चे यात्रा या सेवाओं में तकलीफ महसूस करते हैं, उन्हें बाबा क्या समझाते हैं?
उत्तर:बाबा कहते हैं – “बच्चे! यह बेहद की यात्रा है। अगर रास्ते में भी कोई विघ्न आता है, तो कहना चाहिए – यह अच्छे काम में विघ्न है।”
सच्चे भक्त तो कहते हैं – “कोई हर्ज़ा नहीं, भगवान से मिलने जा रहे हैं।” इसलिए अगर पट पर सोना पड़े, भीड़ हो, या सेवा में कोई कठिनाई हो — तो भी खुशी से सहन करो।
❓प्रश्न 3:कुछ आत्माएं ब्राह्मण जीवन में आकर भी क्यों पढ़ाई छोड़ देती हैं?
उत्तर:कुछ आत्माएं आपस में या ब्राह्मणी से रूठ जाती हैं, या किसी संशय में आ जाती हैं — “यह ऐसे हैं, फलाना ऐसे हैं, इसलिए हम नहीं आयेंगे।”
बाप कहते हैं – “बच्चे, भले किसी से भी रूठो, पर बाप से कभी मत रूठो।”
अगर बाप से रूठे, तो बहुत बड़ी हानि हो जाती है — पद गिर जाता है।
❓प्रश्न 4:इस समय पढ़ाई से कौन राजा और कौन रंक बनेंगे?
उत्तर:यह ब्रह्माकुमार-कुमारी जीवन एक परीक्षा है। बाबा ने स्पष्ट कहा है – “कोई राजा बनेंगे, कोई रंक।
यहाँ के रंक और वहाँ के रंक में बहुत फर्क है। सतयुग के रंक भी सुखी होते हैं, परन्तु संगमयुग में मेहनत नहीं की तो भविष्य में पद छोटा होगा।
❓प्रश्न 5:सच्चे बच्चे दुख-सुख, मान-अपमान को कैसे देखते हैं?
उत्तर:सच्चे बच्चे जानते हैं – “यह ड्रामा का पार्ट है। सुख-दुख तो आते-जाते रहेंगे। निंदा-स्तुति, मान-अपमान सब कुछ आत्मा की प्रैक्टिकल परीक्षा है।”
जो बच्चा स्थिर रहता है, वही ऊँच पद पाता है। इसीलिए बाबा कहते हैं – “हर हाल में एक बाप को याद करो, तो विकर्म विनाश होंगे।”
❓प्रश्न 6:अगर कोई ब्राह्मण जीवन में गलती करता है, तो क्या करना चाहिए?
उत्तर:अगर कोई गलती करता है या ब्राह्मण व्यवहार के खिलाफ चलता है, तो उसकी रिपोर्ट तुरंत बाबा को देनी चाहिए।
बाबा कहते हैं – “अगर तुम रिपोर्ट नहीं करते, तो पाप के भागी बनते हो।”
बाबा को बताने से गलती करने वाला सुधर सकता है और भविष्य की हानि से बच सकता है।
❓प्रश्न 7:बाप का उद्देश्य क्या है जब वह संगमयुग पर आते हैं?
उत्तर:बाप का उद्देश्य है – “तुम बच्चों को कांटे से फूल बनाना, रंक से राजा बनाना, और पतित से पावन बनाना।”
इसलिए कहते हैं – “मैं पुरुषोत्तम संगमयुग पर आता हूँ, सभी आत्माओं को पुरुषोत्तम बनाने।”
❓प्रश्न 8:सतयुग की स्थापना और बाकी धर्मों का विनाश कौन करता है?
🔹 उत्तर:केवल परमपिता परमात्मा ही एक ऐसा सतगुरु है जो स्थापना भी करते हैं और विनाश भी।
बाबा कहते हैं – “मैं कालों का काल हूँ। मैं एक धर्म की स्थापना और बाकी सब धर्मों का विनाश करता हूँ।”
यह विनाश कोई हिंसा से नहीं, बल्कि “ज्ञान यज्ञ” की ज्वाला से होता है।
❓प्रश्न 9:अगर कोई छात्र ज्ञान को छोड़ देता है, तो उसका कारण क्या होता है?
उत्तर:ज्ञान छोड़ने का मुख्य कारण होता है – माया के तूफान, संशय, रूठना या संकल्पों की अस्थिरता।
बाबा कहते हैं – “बहुत बच्चे पढ़ते-पढ़ते रूठकर या झगड़कर पढ़ाई छोड़ देते हैं, परन्तु ऐसे बच्चों का भविष्य पद गिरा देता है।”
❓प्रश्न 10:बाबा के अनुसार सबसे बड़ा पद पाने के लिए क्या ज़रूरी है?
उत्तर:“पूरा पुरुषार्थ और एक बाप की सच्ची याद” – यही ऊँच पद दिलाती है।
बाबा कहते हैं – “अगर स्वदर्शन चक्र चलाते रहो, और एक बाप को याद करते रहो, तो स्वर्ग में जरूर आयेंगे।”
परन्तु ऊँच पद उन्हीं को मिलेगा जो ‘पूरा समय और तन-मन से पुरुषार्थ’ करते हैं।
बाबा की सबसे प्यारी शिक्षा यही है – “बच्चे, कोई भी बात हो जाये, एक बाप से कभी रूठना मत। जो भी हो रहा है, वह तुम्हारी उन्नति के लिए है।”
सुख के दिन बहुत पास हैं — बस थोड़ी देर की परीक्षा है। स्थिर रहो, प्यारे रहो, विजयी बनो।
मीठे बच्चे, ब्रह्मा कुमारी मुरली, आज की मुरली, साकार मुरली, ब्रह्माकुमारिज़, बाबा की शिक्षा, माया से युद्ध, बाप से रूठना नहीं, मान अपमान सहन, दु:ख सुख का खेल, संगमयुग का ज्ञान, ब्राह्मण जीवन, आत्मा की पढ़ाई, पतित पावन बाप, श्रीमत, मनमनाभव, ब्रह्मा बाबा, ब्रह्मा विष्णु शंकर रहस्य, ड्रामा का ज्ञान, परमात्मा शिव, सद्गति दाता, आत्मा को फूल बनाना, ब्राह्मण से देवता बनना, स्वदर्शन चक्र, ज्ञान यज्ञ, पुरुषोत्तम संगम युग, सतयुग की स्थापना, कर्मों का फल, बाबा का वार्निंग, ब्राह्मण बच्चों की जिम्मेदारी,
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