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MURLI 26-12-2024/BRAHMAKUMARIS

December 23, 2024December 25, 2024omshantibk07@gmail.com

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Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

26-12-2024
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम अभी पढ़ाई पढ़ रहे हो, यह पढ़ाई है पतित से पावन बनने की, तुम्हें यह पढ़ना और पढ़ाना है”
प्रश्नः- दुनिया में कौन-सा ज्ञान होते हुए भी अज्ञान अन्धियारा है?
उत्तर:- माया का ज्ञान, जिससे विनाश होता है। मून तक जाते हैं, यह ज्ञान बहुत है लेकिन नई दुनिया और पुरानी दुनिया का ज्ञान किसी के पास नहीं है। सब अज्ञान अन्धियारे में हैं, सभी ज्ञान नेत्र से अंधे हैं। तुम्हें अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलता है। तुम नॉलेजफुल बच्चे जानते हो उन्हों की ब्रेन में विनाश के ख्यालात हैं, तुम्हारी बुद्धि में स्थापना के ख्यालात हैं।

ओम् शान्ति। बाप इस शरीर द्वारा समझाते हैं, इनको जीव कहा जाता है। इनमें आत्मा भी है और मैं भी इसमें आकर बैठता हूँ, यह तो पहले-पहले पक्का होना चाहिए। इनको दादा कहा जाता है। यह निश्चय बच्चों को बहुत पक्का होना चाहिए। इस निश्चय में ही रमण करना है। बरोबर बाबा ने जिसमें पधरामणी की है, वह बाप खुद कहते हैं – मैं इनके बहुत जन्मों के अन्त में आता हूँ। बच्चों को समझाया गया है, यह है सर्व शास्त्र शिरोमणी गीता का ज्ञान। श्रीमत अर्थात् श्रेष्ठ मत। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत है एक भगवान की। जिसकी ही श्रेष्ठ मत से तुम देवता बनते हो। बाप खुद कहते हैं मैं आता ही तब हूँ जब तुम भ्रष्ट मत पर पतित बन जाते हो। मनुष्य से देवता बनने का अर्थ भी समझना है। विकारी मनुष्य से निर्विकारी देवता बनाने बाप आते हैं। सतयुग में मनुष्य ही रहते हैं परन्तु दैवी गुण वाले। अभी कलियुग में हैं सभी आसुरी गुण वाले। है सारी मनुष्य सृष्टि। परन्तु यह है ईश्वरीय बुद्धि और वह है आसुरी बुद्धि। यहाँ है ज्ञान, वहाँ है भक्ति। ज्ञान और भक्ति अलग-अलग है। भक्ति के पुस्तक कितने ढेर के ढेर हैं। ज्ञान का पुस्तक एक है। एक ज्ञान सागर की पुस्तक एक ही होना चाहिए। जो भी धर्म स्थापन करते हैं, उनका पुस्तक भी एक ही होता है, जिसको रिलीजस बुक कहा जाता है।

पहली-पहली रिलीजस बुक है गीता। पहला-पहला आदि सनातन देवी-देवता धर्म है, न कि हिन्दू धर्म। मनुष्य समझते हैं गीता से हिन्दू धर्म स्थापन हुआ। गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण ने दिया। कब दिया? परम्परा से। कोई शास्त्र में शिव भगवानुवाच तो है नहीं। तुम अभी समझते हो इस गीता ज्ञान द्वारा ही मनुष्य से देवता बने हैं, जो बाप अभी हमें दे रहे हैं। इसको ही भारत का प्राचीन राजयोग कहा जाता है। जिस गीता में ही काम महाशत्रु लिखा हुआ है। इस शत्रु ने ही तुम्हें हार खिलाई है। बाप इस पर ही जीत पहनाकर जगतजीत विश्व का मालिक बनाते हैं। बेहद का बाप बैठ इन द्वारा तुमको पढ़ाते हैं। वह है सभी आत्माओं का बाप। यह फिर है सभी मनुष्य आत्माओं का बेहद का बाप। नाम ही है प्रजापिता ब्रह्मा। तुम किससे पूछ सकते हो कि ब्रह्मा के बाप का नाम क्या है, तो मूँझ पड़ेंगे। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर इन तीनों का बाप कोई होगा ना। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर सूक्ष्मवतन में देवतायें हैं। उनके ऊपर है शिव। बच्चे जानते हैं शिवबाबा के जो बच्चे आत्मायें हैं उन्हों ने शरीर धारण किया है, वह तो सदैव निराकार परमपिता परमात्मा है। आत्मा ही शरीर द्वारा कहती है परमपिता। कितनी सहज बात है! इनको कहा जाता है अल्फ और बे की पढ़ाई। कौन पढ़ाते हैं? गीता का ज्ञान किसने सुनाया? श्रीकृष्ण को तो भगवान कहा नहीं जाता। वह तो देहधारी है। ताजधारी है। शिव तो है निराकार। उन पर तो कोई ताज आदि है नहीं। वही ज्ञान का सागर है। बाप ही बीजरूप चैतन्य है। तुम भी चैतन्य हो। सभी झाड़ों के आदि, मध्य, अन्त को तुम जानते हो। भल तुम माली नहीं हो परन्तु समझ सकते हो कि बीज कैसे डालते हैं, उनसे झाड़ कैसे निकलता है। वह है जड़, यह है चैतन्य। आत्मा को चैतन्य कहा जाता है। तुम्हारी आत्मा में ही ज्ञान है, और किसी आत्मा में ज्ञान हो नहीं सकता। तो बाप चैतन्य मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। यह चैतन्य क्रियेशन है।

वह सभी हैं जड़ बीज। ऐसे नहीं कि जड़ बीज में कोई ज्ञान है। यह तो है चैतन्य बीजरूप, उनमें सारे सृष्टि की नॉलेज है। झाड़ की उत्पत्ति, पालना, विनाश का सारा ज्ञान उनमें है। फिर नया झाड़ कैसे खड़ा होता है, वह है गुप्त। तुमको ज्ञान भी गुप्त मिलता है। बाप भी गुप्त आये हैं। तुम जानते हो यह कलम लग रहा है। अभी तो सभी पतित बन गये हैं। अच्छा, बीज से पहला-पहला पत्ता निकला, वह कौन था? सतयुग का पहला पत्ता तो श्रीकृष्ण को ही कहेंगे। लक्ष्मी-नारायण को नहीं कहेंगे। नया पत्ता छोटा होता है। पीछे बड़ा होता है। तो इस बीज की कितनी महिमा है। यह तो चैतन्य है ना। भल दूसरे भी निकलते हैं, धीरे-धीरे उन्हों की महिमा कम होती जाती है। अभी तुम देवता बनते हो। तो मूल बात है हमको दैवी गुण धारण करने हैं। इन जैसा बनना है। चित्र भी हैं। यह चित्र न होते तो बुद्धि में ज्ञान कैसे आता। यह चित्र बहुत काम में आते हैं। भक्ति मार्ग में इन चित्रों की पूजा होती है और ज्ञान मार्ग में तुमको इन्हों से ज्ञान मिलता है कि इन जैसा बनना है। भक्ति मार्ग में ऐसा नहीं समझेंगे कि हमको ऐसा बनना है। भक्ति मार्ग में मन्दिर आदि कितने बनवाते हैं, सबसे जास्ती मन्दिर किसके होंगे? जरूर शिवबाबा के ही होंगे। फिर उनके बाद क्रियेशन के होंगे। पहली क्रियेशन यह लक्ष्मी-नारायण हैं, तो शिव के बाद इनकी पूजा जास्ती होगी। मातायें जो ज्ञान देती हैं उनकी पूजा नहीं। वह तो पढ़ती हैं। तुम्हारी पूजा अभी नहीं होती है क्योंकि तुम अभी पढ़ रहे हो। जब तुम पढ़कर, अनपढ़ बनेंगे फिर पूजा होगी। अभी तुम देवी-देवता बनते हो। सतयुग में बाप थोड़ेही पढ़ाने जायेगा। वहाँ ऐसी पढ़ाई थोड़ेही होगी। यह पढ़ाई पतितों को पावन बनाने की है। तुम जानते हो हमको जो ऐसा बनाते हैं उनकी पूजा होगी फिर हमारी भी पूजा नम्बरवार होगी। फिर गिरते-गिरते 5 तत्वों की भी पूजा करने लग पड़ते हैं। 5 तत्वों की पूजा माना पतित शरीर की पूजा। यह बुद्धि में ज्ञान है कि इन लक्ष्मी-नारायण का सारे सृष्टि पर राज्य था। इन देवी-देवताओं ने राज्य कैसे और कब पाया? यह किसको पता नहीं है। लाखों वर्ष कह देते हैं। लाखों वर्ष की बात तो किसकी बुद्धि में बैठ न सके इसलिए कह देते यह परम्परा से चला आता है। अभी तुम जानते हो देवी-देवता धर्म वाले और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं, जो भारत में हैं वह अपने को हिन्दू कह देते हैं क्योंकि पतित होने कारण देवी-देवता कहना शोभता नहीं। परन्तु मनुष्यों में ज्ञान कहाँ। देवी-देवताओं से भी ऊंचा टाइटल अपने पर रखवाते हैं। पावन देवी-देवताओं की पूजा करते माथा झुकाते हैं, परन्तु अपने को पतित समझते थोड़ेही हैं।

भारत में खास कन्याओं को कितना नमन करते हैं। कुमारों को इतना नहीं करते। मेल से ज्यादा फीमेल को नमन करते हैं क्योंकि इस समय ज्ञान अमृत पहले इन माताओं को मिलता है। बाप इनमें प्रवेश करते हैं। यह भी समझते हो यह (ब्रह्मा बाबा) ज्ञान की बड़ी नदी है। ज्ञान नदी भी है फिर पुरुष भी है। ब्रह्म पुत्रा नदी सबसे बड़ी है, जो कलकत्ता तरफ सागर में जाकर मिलती है। मेला भी वहाँ ही लगता है परन्तु उन्हें यह पता नहीं कि यह आत्माओं और परमात्मा का मेला है। वह तो पानी की नदी है, जिसका नाम ब्रह्म पुत्रा रखा है। वह तो ब्रह्म को ईश्वर कह देते हैं इसलिए ब्रह्म पुत्रा को पावन समझते हैं। पतित-पावन वास्तव में गंगा को नहीं कहा जाता है। यहाँ सागर और ब्रह्मा नदी का मेल है। बाप कहते हैं यह फीमेल तो नहीं है, जिस द्वारा एडाप्शन होती है, यह बहुत गुह्य समझने की बातें हैं जो फिर प्राय:लोप हो जानी हैं। फिर बाद में मनुष्य इस आधार पर शास्त्र आदि बनाते हैं। पहले हाथ के लिखे हुए शास्त्र थे, बाद में बड़ी-बड़ी मोटी किताबें छपवाई हैं। संस्कृत में श्लोक आदि थे नहीं। यह तो बिल्कुल सहज बात है। मैं इन द्वारा राजयोग सिखलाता हूँ फिर यह दुनिया ही खलास हो जायेगी। शास्त्र आदि कुछ भी नहीं रहेंगे। फिर भक्ति मार्ग में यह शास्त्र आदि बनेंगे। मनुष्य समझते हैं यह शास्त्र आदि परम्परा से चले आये हैं, इसको कहा जाता है अज्ञान अन्धियारा। अभी तुम बच्चों को बाप पढ़ाते हैं जिससे तुम सोझरे में आये हो। सतयुग में है पवित्र प्रवृत्ति मार्ग। कलियुग में सभी अपवित्र प्रवृत्ति वाले हैं। यह भी ड्रामा है। बाद में है निवृत्ति मार्ग, जिसको संन्यास धर्म कहते हैं, जंगल में जाकर रहते हैं। वह है हद का संन्यास। रहते तो इस पुरानी दुनिया में हैं। अभी तुम जाते हो नई दुनिया में। तुम्हें तो बाप से ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है तो तुम कितने नॉलेजफुल बनते हो। इससे जास्ती नॉलेज होती ही नहीं। वह तो है माया की नॉलेज, जिससे विनाश होता है। वो लोग मून (चांद) पर जाकर खोज करते हैं। तुम्हारे लिए कोई नई बात नहीं। यह सभी माया का पाम्प है। बहुत शो करते हैं। अति डीपनेस में जाते हैं कि कुछ कमाल करके दिखायें। बहुत कमाल करने से फिर नुकसान हो जाता है। उन्हों के ब्रेन में विनाश के ही ख्यालात आते हैं। क्या-क्या बनाते रहते हैं। बनाने वाले जानते हैं, इससे ही विनाश होगा। ट्रायल भी करते रहते हैं। कहते भी हैं दो बिल्ले लड़े माखन तीसरा खा गया। कहानी तो छोटी है परन्तु खेल कितना बड़ा है। नाम इन्हों का ही बाला है। इन द्वारा ही विनाश की नूँध है। कोई तो निमित्त बनता है ना। क्रिश्चियन लोग समझते हैं पैराडाइज था, पर हम नहीं थे। इस्लामी, बौद्धी भी नहीं थे फिर भी क्रिश्चियन लोगों की समझ अच्छी है। भारतवासी कहते हैं देवी-देवता धर्म लाखों वर्ष पहले था तो बुद्धू ठहरे ना। बाप भारत में ही आते हैं, जो महान बेसमझ हैं उन्हें ही महान ते महान समझदार बनाते हैं। परन्तु फिर भी याद रहे तब।

बाबा तुम बच्चों को कितना सहज करके समझाते हैं, मुझे याद करो तो तुम सोने का बर्तन बन जायेंगे तो धारणा भी अच्छी होगी। याद की यात्रा से ही पाप कटेंगे। मुरली नहीं सुनते तो ज्ञान रफूचक्कर हो जाता है। बाप तो रहमदिल होने के नाते उठने की ही युक्ति बतलाते हैं। अन्त तक भी सिखलाते ही रहेंगे। अच्छा, आज भोग है, भोग लगाकर जल्दी वापस आ जाना है। बाकी वैकुण्ठ में जाकर देवी-देवताओं आदि का साक्षात्कार करना यह सब फालतू है। इसमें बहुत महीन बुद्धि चाहिए। बाप इस रथ द्वारा कहते हैं मुझे याद करो, मैं ही पतित-पावन तुम्हारा बाप हूँ। तुम्हीं से खाऊं….. तुम्हीं से बैठूँ…. यह यहाँ के लिए है। ऊपर में कैसे होगा। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चो को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) बाप इस दादा में प्रवेश हो हमें मनुष्य से देवता अर्थात् विकारी से निर्विकारी बनाने के लिए गीता का ज्ञान सुना रहे हैं, इसी निश्चय से रमण करना है। श्रीमत पर चलकर श्रेष्ठ गुणवान बनना है।

2) याद की यात्रा से बुद्धि को सोने का बर्तन बनाना है। ज्ञान बुद्धि में सदा बना रहे उसके लिए मुरली जरूर पढ़नी वा सुननी है।

वरदान:- अपने पोजीशन की स्मृति द्वारा माया पर विजय प्राप्त करने वाले निरन्तर योगी भव
जैसे स्थूल पोजीशन वाले अपनी पोजीशन को कभी भूलते नहीं। ऐसे आपका पोजीशन है – मास्टर सर्वशक्तिमान, इसे सदा स्मृति में रखो और रोज़ अमृतवेले इस स्मृति को इमर्ज करो तो निरन्तर योगी बन जायेंगे और सारा दिन उसका सहयोग मिलता रहेगा। फिर मास्टर सर्वशक्तिमान के आगे माया आ नहीं सकती, जब आप अपनी स्मृति की ऊंची स्टेज पर रहेंगे तो माया चींटी को जीतना सहज हो जायेगा।
स्लोगन:- आत्मा रूपी पुरुष को श्रेष्ठ बनाने वाले ही सच्चे पुरुषार्थी हैं।

प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1:दुनिया में कौन-सा ज्ञान होते हुए भी उसे अज्ञान अंधियारा कहा जाता है?

उत्तर:माया का ज्ञान, जिससे विनाश होता है। लोग चंद्रमा तक जाने और अन्य तकनीकी ज्ञान में प्रवीण हैं, लेकिन नई और पुरानी दुनिया का ज्ञान उनके पास नहीं है। यह ज्ञान केवल बाप द्वारा दिया जाता है, जो तीसरा नेत्र प्रदान करता है।


प्रश्न 2:गीता का वास्तविक ज्ञान किसके द्वारा और किस उद्देश्य से दिया गया?

उत्तर:गीता का वास्तविक ज्ञान बापदादा (शिव बाबा) के द्वारा दिया जाता है। इसका उद्देश्य पतित मनुष्यों को पावन देवता बनाना और श्रेष्ठ गुणों को धारण कर सतयुग की स्थापना करना है।


प्रश्न 3:देवी-देवता धर्म को लाखों वर्षों पुराना मानने का भ्रम क्यों है?

उत्तर:यह भ्रम शास्त्रों में लिखी कहानियों और भक्ति मार्ग की गलत समझ के कारण है। सत्य यह है कि देवी-देवता धर्म की शुरुआत सतयुग में हुई थी, और इसका वास्तविक काल लाखों वर्ष नहीं, बल्कि कल्प चक्र के अनुसार है।


प्रश्न 4:
भक्ति मार्ग और ज्ञान मार्ग में मुख्य अंतर क्या है?

उत्तर:भक्ति मार्ग में मनुष्य पूजा और अनुष्ठानों में लीन रहते हैं, जबकि ज्ञान मार्ग में आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलता है, जिससे आत्मा को अपने वास्तविक स्वरूप और उद्देश्य का बोध होता है।


प्रश्न 5:याद की यात्रा से आत्मा को क्या लाभ होता है?

उत्तर:याद की यात्रा से आत्मा पवित्रता की ओर बढ़ती है और “सोने का बर्तन” बन जाती है। यह यात्रा पापों को समाप्त करती है और आत्मा को सशक्त बनाती है।


मुख्य सार:

  1. निश्चय: हमें यह समझना है कि बाप स्वयं गीता का ज्ञान देने आए हैं और हमें मनुष्य से देवता बनाने का मार्ग दिखा रहे हैं।
  2. याद: याद की यात्रा से अपनी बुद्धि को पवित्र और निर्मल बनाना है।

वरदान:
अपने “मास्टर सर्वशक्तिमान” पोजीशन की स्मृति में रहते हुए, माया पर विजय प्राप्त करो। यह स्मृति निरंतर योगी बनने में सहायक होगी।

स्लोगन:
आत्मा रूपी पुरुष को श्रेष्ठ बनाने वाले ही सच्चे पुरुषार्थी हैं।

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