MURLI 27-08-2024/MURLI 27-08-2024/BRAHMAKUMARIS
“मीठे बच्चे – चैतन्य अवस्था में रह बाप को याद करना है, सुन्न अवस्था में चले जाना या नींद करना – यह कोई योग नहीं है” | |
प्रश्नः- | तुम्हें आंखे बन्द करके बैठने की मना क्यों की जाती है? |
उत्तर:- | अगर तुम आंख बन्द करके बैठेंगे तो दुकान का सारा सामान ही चोर चोरी करके ले जायेंगे। माया चोर बुद्धि में कुछ भी धारणा होने नहीं देगी। आंख बन्द करके योग में बैठेंगे तो नींद आ जायेगी। पता ही नहीं चलेगा इसलिए आंखे खोलकर बैठना है। कामकाज करते बुद्धि से बाप को याद करना है। इसमें हठयोग की बात नहीं है। |
ओम् शान्ति। रूहानी बाप कहते हैं बच्चों को, यह भी बच्चा है ना। देहधारी सब बच्चे हैं। तो रूहानी बाप आत्माओं को कहते हैं, आत्मा ही मुख्य है। यह तो अच्छी रीति समझो। यहाँ जब सामने बैठते हो तो ऐसे नहीं शरीर से न्यारा हो गुम हो जाना है। शरीर से न्यारा हो गुम हो जाना, यह कोई याद के यात्रा की अवस्था नहीं है। यहाँ तो सुजाग हो बैठना है। चलते फिरते, उठते बैठते अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। बाप ऐसे नहीं कहते यहाँ बैठे बेहोश हो जाओ। ऐसे बहुत बैठे-बैठे गुम हो जाते हैं। तुम्हें तो सुजाग होकर बैठना है और फिर पवित्र भी बनना है। पवित्रता बिगर धारणा नहीं होगी, किसका कल्याण नहीं कर सकेंगे, किसको कह नहीं सकेंगे। खुद पवित्र रहते नहीं और दूसरे को कहते हैं, वह तो पण्डित हो गया। मिया मिट्ठू भी नहीं बनना है, फिर वह दिल अन्दर खाता रहेगा। ऐसे मत समझो हम सुन्न में चले जाते हैं। आंखे बन्द हो जाती हैं, यह कोई याद की अवस्था नहीं है, इसमें चैतन्य अवस्था में रह बाप को याद करना है। नींद करना कोई याद करना नहीं है। बच्चों को कई प्वाइंट्स समझाई जाती हैं। शास्त्रों में दिखाया गया है – सातवीं भूमिका में चले जाते हैं, उनको दुनिया का पता नहीं पड़ता है। तुमको तो दुनिया का पता है ना। यह छी-छी दुनिया है। बाप को कोई जानते नहीं हैं। अगर बाप को जानते तो सृष्टि चक्र को भी जान जाएं। बाप बतलाते हैं यह चक्र कैसे फिरता है। मनुष्य पुनर्जन्म कैसे लेते हैं। सतयुग में भल बड़ी आयु हो जाती तो भी बदसूरत नहीं होंगे। बाकी सन्यासियों का तो है हठयोग। आंखे बन्द करना, गुफाओं में बैठे-बैठे बदसूरत बन जाना….। तुमको तो बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते सुजाग रहना है। सुन्न में चले जाना, यह कोई अवस्था नहीं है। धन्धा आदि भी करना है, गृहस्थ व्यवहार भी सम्भालना है। सुन्न में नहीं जाना है। काम-काज करते बुद्धि से बाप को याद करना है। जरूर काम करेंगे, आंखे खोल-कर करेंगे ना। धन्धा आदि सब कुछ करते रहो। बुद्धि योग बाप के साथ हो। इसमें गफलत नहीं करनी है। दुकान पर बैठे आंखे बन्द हो जायेगी तो कोई सामान ही ले जायेंगे और पता भी नहीं पड़ेगा। यह कोई अवस्था नहीं। हम देह से न्यारे हो जाते हैं, यह सब हठयोगियों की बातें हैं। रिद्धि सिद्धि वाले करते हैं। बाप तो अच्छी रीति बैठ समझाते हैं, इसमें आंखे नहीं बन्द करनी है।
बाप कहते हैं मित्र सम्बन्धियों को जो बैठ याद करते हो, वह सब भूल जाओ। एक बाप को याद करना है। सिवाए याद की यात्रा के पाप कट नहीं सकते। भोग ले जाते हैं, गुम हो जाते हैं सूक्ष्मवतन में। इसमें क्या होता है? जितना समय वहाँ हैं विकर्म विनाश हो न सकें। शिवबाबा को याद कर न सकें। न बाबा की वाणी सुन सकेंगे। तो घाटा पड़ जाता है। परन्तु यह ड्रामा में नूंध है इसलिए जाते हैं। फिर आकर मुरली सुनते हैं इसलिए बाबा कहते हैं जाओ, फौरन आओ, बैठो नहीं। खेलपाल करना बाबा ने बन्द कर दिया है। यह भी घूमना फिरना रुलना हुआ ना। भक्ति मार्ग में रुलना पिटना बहुत होता है क्योंकि अन्धियारा मार्ग है ना। मीरा ध्यान में वैकुण्ठ में चली जाती थी। वह योग व पढ़ाई थोड़ेही थी। क्या उसने सद्गति को पाया? स्वर्ग जाने लायक बनी? जन्म-जन्मान्तर के पाप कटे? बिल्कुल नहीं। जन्म-जन्मान्तर के पाप तो बाप की याद से ही कटते हैं। बाकी साक्षात्कार आदि से कोई फायदा नहीं होता। यह तो सिर्फ भक्ति है। न याद है, न ज्ञान है। भक्ति मार्ग में यह सिखलाने वाला कोई होता ही नहीं तो सद्गति को भी पाते नहीं। भल कितना भी साक्षात्कार हो, शुरू में तो बच्चियाँ आपेही चली जाती थी। मम्मा-बाबा थोड़ेही जाते थे। यह तो शुरू में बाबा को सिर्फ स्थापना और विनाश का साक्षात्कार हुआ। पीछे तो कुछ नहीं हुआ। हम किसको भी भेजते नहीं हैं। हाँ, बिठाकर कह देते बाबा इनकी रस्सी खींचो। वह भी ड्रामा में होगा तो रस्सी खींचेंगे, नहीं तो नहीं। साक्षात्कार तो ढेर होते हैं। जैसे शुरू में बहुत साक्षात्कार करते थे, पिछाड़ी में भी बहुत साक्षात्कार करेंगे, मिरूआ मौत मलूका शिकार….. इतने ढेर मनुष्य हैं, वह सब शरीर छोड़ देंगे। शरीर सहित कोई सतयुग में वा शान्तिधाम में नहीं जायेंगे। कितने ढेर मनुष्य हैं, सब विनाश को प्राप्त करेंगे। बाकी एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है ब्रह्मा द्वारा। तुम बच्चियाँ गांव-गांव में जाकर कितनी सर्विस करती हो। यही कहती हो कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। सन्यासी तो राजयोग सिखलाना जानते नहीं। बाप बिगर राजयोग सिखलावे कौन? तुम बच्चों को बाप अभी राजयोग सिखला रहे हैं। फिर राजाई मिल जाती है। तुम अपार सुखों में रहते हो। वहाँ तो फिर याद करने की दरकार ही नहीं। रिंचक भी दु:ख नहीं होता है। आयु भी बड़ी, काया भी निरोगी होती है। यहाँ कितने दु:ख हैं। ऐसे तो नहीं बाप ने दु:ख के लिए खेल रचा है। यह तो खेल सुख-दु:ख, हार-जीत का आदि अनादि है। इन सब बातों को सन्यासी जानते ही नहीं तो समझा कैसे सकते। वह तो भक्ति मार्ग के शास्त्र आदि पढ़ने वाले हैं। तुमको कहा जाता है – अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। वह सन्यासी फिर आत्मा समझ ब्रह्म को याद करते हैं। ब्रह्म को परमात्मा समझते हैं, ब्रह्म ज्ञानी हैं। वास्तव में ब्रह्म है रहने का स्थान। जहाँ तुम आत्मायें रहती हो वह फिर कहते हम उनमें लीन होंगे। उनका ज्ञान ही सारा उल्टा है। यहाँ तो बेहद का बाप तुम बच्चों को पढ़ाते हैं। वह कहते भगवान 40 हज़ार वर्ष बाद आयेगा, इसको कहा जाता है अज्ञान अन्धियारा। बाप कहते हैं नई दुनिया की स्थापना और पुरानी दुनिया का विनाश करने वाला तो मैं हूँ। मैं स्थापना कर रहा हूँ, विनाश भी सामने खड़ा है। अब जल्दी करो। पावन बनो तब ही पावन दुनिया में जायेंगे। यह तो पुरानी तमोप्रधान दुनिया है। लक्ष्मी-नारायण का राज्य थोड़ेही है। इनका राज्य नई दुनिया में था, अब नहीं है। यह पुनर्जन्म लेते आये हैं। शास्त्रों में तो क्या-क्या लिख दिया है। कृष्ण को दिखाया है अर्जुन के घोड़े गाड़ी में बैठा है। ऐसे नहीं कि अर्जुन के अन्दर कृष्ण बैठा है। कृष्ण तो देहधारी था ना, न कोई लड़ाई आदि की बात है। उन्होंने तो पाण्डवों और कौरवों का लश्कर अलग-अलग कर दिया है। यहाँ तो वह बात नहीं। यह भक्ति मार्ग के अथाह शास्त्र हैं। सतयुग में यह होते नहीं। वहाँ तो ज्ञान की प्रालब्ध राजधानी है। वहाँ सुख ही सुख है। बाप नई दुनिया स्थापन करते हैं तो जरूर नई दुनिया में सुख होगा ना। बाप कभी पुराना मकान बनाते हैं क्या! बाप तो नया मकान बनाते हैं, उस दुनिया को ही सतोप्रधान दुनिया कहा जाता है। अभी तो सब तमोप्रधान अपवित्र हैं, पराये रावण राज्य में बैठे हैं।
राम तो कहा जाता है शिवबाबा को, राम-राम कह राम नाम का दान देते हैं। अब कहाँ राम, कहाँ शिवबाबा। अब शिवबाबा तुम बच्चों को कहते हैं मामेकम् याद करो। जहाँ से आये हो वहाँ ही फिर जाना है, जब तक बाप को याद कर पवित्र नहीं बनेंगे तो वापिस भी जा नहीं सकेंगे। तुम्हारे में भी कोई विरले हैं जो अच्छी रीति बाप को याद करते हैं। मुख से तो कहने की बात नहीं। भक्ति में राम-राम मुख से कहते हैं। कोई नहीं कहेंगे तो समझेंगे यह नास्तिक हैं। कितना आवाज़ करके गाते हैं। जितना झाड़ बड़ा होता है, उतनी भक्ति की सामग्री बड़ी होती जाती है। बीज कितना छोटा होता है। तुमको कोई चीज़ नहीं, कोई आवाज़ नहीं। सिर्फ कहते हैं – अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो। मुख से कहना भी नहीं है। लौकिक बाप को भी बच्चे बुद्धि से याद करते हैं। बाबा-बाबा बैठकर कहते थोड़ेही हैं। तुम अभी जानते हो आत्माओं का बाप कौन है। आत्मायें तो सब भाई-भाई हैं। आत्मा को और कोई नाम नहीं। बाकी शरीर का नाम बदलता है। आत्मा तो आत्मा ही है। वह भी परम आत्मा। उनका नाम है शिव। उनको अपना शरीर है नहीं। बाप कहते हैं मुझे भी अगर शरीर होता तो पुनर्जन्म में आना पड़ता। तुमको फिर सद्गति कौन देते? भक्ति मार्ग में मुझे याद करते हैं। अनेक चित्र हैं। अभी तुम नर्कवासी से स्वर्गवासी बनते हो ना। जन्म तो नर्क में लिया है। मरेंगे स्वर्ग के लिए। यहाँ तुम आये ही हो स्वर्ग में जाने के लिए। जैसे कोई ब्रिज आदि बनाते हैं, तो पहले फाउण्डेशन सेरीमनी कर लेते हैं फिर ब्रिज बनती रहती है। स्वर्ग की स्थापना का उद्घाटन (फाउण्डेशन सेरीमनी) बाप ने कर लिया है, अब तैयारी होती रहती है। मकान बनने में टाइम लगता है क्या? गवर्मेन्ट करने पर आये तो एक मास में मकान खड़ा कर ले। विलायत में तो मकान तैयार मिलते हैं। स्वर्ग में तो बहुत विशाल बुद्धि सतोप्रधान होते हैं। साइंस की बुद्धि तीखी होती है। झट बनाते जायेंगे, मकानों में जड़ित भी लगती जायेगी। आजकल इमीटेशन देखो कितना जल्दी बनाते रहते हैं। वह तो फिर रीयल से भी जास्ती चमकता है। और आजकल की मशीनरी से झट बना लेते हैं। वहाँ मकान बनने में देरी नहीं लगती, सफाई आदि होने में टाइम लगता है। ऐसे नहीं कि सोने की द्वारिका समुद्र से निकल आयेगी। तो बाप कहते हैं खाओ पिओ भल, सिर्फ बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हों, और कोई उपाय नहीं। जन्म-जन्मान्तर यह गंगा स्नान आदि करते आये हो परन्तु कोई भी मुक्ति-जीवनमुक्ति को तो पाते ही नहीं। यहाँ तो बाप पावन बनने की युक्ति बताते हैं। बाप कहते हैं मैं ही पतित-पावन हूँ। तुमने बुलाया है हे पतित-पावन बाबा आओ, आकरके हमको पावन बनाओ। ड्रामा पूरा हुआ तो फिर सब एक्टर्स स्टेज पर होने चाहिए। क्रियेटर भी होना चाहिए। सब खड़े हो जाते हैं ना। यह भी ऐसे है। सभी आत्मायें आ जायेंगी फिर वापिस जाना होगा। अभी तुम तैयार नहीं हुए हो। कर्मातीत अवस्था ही नहीं हुई है तो विनाश कैसे होगा। बाप आते ही हैं तुमको नई दुनिया के लिए पढ़ाने, वहाँ काल होता ही नहीं। तुम काल पर जीत पाते हो। कौन जीत पहनाते हैं? कालों का काल। वह कितनों को साथ ले जाते हैं! तुम खुशी से जाते हो। अब बाप आये हैं सबका दु:ख दूर करने इसलिए उनकी महिमा गाते है, गॉड फादर लिबरेट करो, दु:ख से। शान्तिधाम-सुखधाम में ले चलो। परन्तु यह तो मनुष्यों को पता नहीं कि अभी बाप स्वर्ग की रचना रच रहे हैं। तुम स्वर्ग में जायेंगे वहाँ झाड़ बहुत छोटा होगा फिर वृद्धि को पायेगा। अभी और सब धर्म हैं, वह एक धर्म है नहीं। नाम, रूप, राजाई आदि बदल जाती है। पहले डबल ताज, फिर सिंगल ताज वाले होते हैं। सोमनाथ का मन्दिर बनाया है, कितना धन था। सबसे बड़ा मन्दिर एक है जिसको लूटकर ले गये। बाप कहते हैं तुम पद्मापद्म भाग्यशाली बनते हो। कदम-कदम पर बाप को याद करते रहो तो पद्म इकट्ठे होंगे। इतनी कमाई बाप को याद करने से होती है। फिर ऐसे बाप को याद करना तुम भूलते क्यों हो? जितना बाप को याद करेंगे, सर्विस करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। अच्छे-अच्छे बच्चे चलते-चलते गिर पड़ते हैं। काला मुँह किया तो की कमाई चट हो जाती है। जबरदस्त लाटरी गँवा देते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) गृहस्थ व्यवहार सम्भालते हुए बुद्धियोग बाप के साथ रखना है। ग़फलत नहीं करनी है। पवित्रता की धारणा से अपना और सर्व का कल्याण करना है।
2) याद की यात्रा और पढ़ाई में ही कमाई है, ध्यान दीदार तो घूमना है इसलिए उससे कोई फायदा नहीं। जितना हो सके सुजाग हो, बाप को याद कर अपने विकर्म विनाश करने है।
वरदान:- | श्रेष्ठ स्मृति द्वारा श्रेष्ठ स्थिति और श्रेष्ठ वायुमण्डल बनाने वाले सर्व के सहयोगी भव योग का अर्थ है श्रेष्ठ स्मृति में रहना। मैं श्रेष्ठ आत्मा श्रेष्ठ बाप की सन्तान हूँ, जब ऐसी स्मृति रहती है तो स्थिति श्रेष्ठ हो जाती है। श्रेष्ठ स्थिति से श्रेष्ठ वायुमण्डल स्वत: बनता है जो अनेक आत्माओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। जहाँ भी आप आत्मायें योग में रहकर कर्म करती हो वहाँ का वातावरण, वायुमण्डल औरों को भी सहयोग देता है। ऐसी सहयोगी आत्मायें बाप को और विश्व को प्रिय हो जाती हैं। |
स्लोगन:- | अचल स्थिति के आसन पर बैठने से ही राज्य का सिंहासन मिलेगा। |