MURLI 28-04-2024/BRAHMAKUMARIS

28-04-24
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
”अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज: 23-10-99 मधुबन

“समय की पुकार – दाता बनो”

आज सर्व श्रेष्ठ भाग्य विधाता, सर्व शक्तियों के दाता बापदादा चारों ओर के सर्व बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। चाहे मधुबन में सम्मुख में हैं, चाहे देश विदेश में याद में सुन रहे हैं, देख रहे हैं, जहाँ भी बैठे हैं लेकिन दिल से सम्मुख हैं। उन सब बच्चों को देख बापदादा हर्षित हो रहे हैं। आप सभी भी हर्षित हो रहे हो ना! बच्चे भी हर्षित और बापदादा भी हर्षित। और यही दिल का सदा का सच्चा हर्ष सारी दुनिया के दु:खों को दूर करने वाला है। यह दिल का हर्ष आत्माओं को बाप का अनुभव कराने वाला है क्योंकि बाप भी सदा सर्व आत्माओं के प्रति सेवाधारी है और आप सब बच्चे बाप के साथ सेवा साथी हैं। साथी हैं ना! बाप के साथी और विश्व के दु:खों को परिवर्तन कर सदा खुश रहने का साधन देने की सेवा में सदा उपस्थित रहते हो। सदा सेवाधारी हो। सेवा सिर्फ चार घण्टा, छ: घण्टा करने वाले नहीं हो। हर सेकेण्ड सेवा की स्टेज पर पार्ट बजाने वाले परमात्म साथी हो। याद निरन्तर है, ऐसे ही सेवा भी निरन्तर है। अपने को निरन्तर सेवाधारी अनुभव करते हो? या 8-10 घण्टे के सेवाधारी हैं? यह ब्राह्मण जन्म ही याद और सेवा के लिए है। और कुछ करना है क्या? यही है ना! हर श्वांस, हर सेकेण्ड याद और सेवा साथ-साथ है या सेवा के घण्टे अलग हैं और याद के घण्टे अलग हैं? नहीं है ना! अच्छा, बैलेन्स है? अगर 100 परसेन्ट सेवा है तो 100 परसेन्ट ही याद है? दोनों का बैलेन्स है? अन्तर पड़ जाता है ना? कर्म योगी का अर्थ ही है कर्म और याद, सेवा और याद – दोनों का बैलेन्स समान, समान होना चाहिए। ऐसे नहीं कोई समय याद ज्यादा है और सेवा कम, या सेवा ज्यादा है याद कम। जैसे आत्मा और शरीर जब तक स्टेज पर है तो साथ-साथ है ना। अलग हो सकते हैं? ऐसे याद और सेवा साथ-साथ रहे। याद अर्थात् बाप समान, स्व के स्वमान की भी याद। जब बाप की याद रहती है तो स्वत: ही स्वमान की भी याद रहती है। अगर स्वमान में नहीं रहते तो याद भी पावरफुल नहीं रहती।

स्वमान अर्थात् बाप समान। सम्पूर्ण स्वमान है ही बाप समान। और ऐसे याद में रहने वाले बच्चे सदा ही दाता होंगे। लेवता नहीं, देवता माना देने वाला। तो आज बापदादा सभी बच्चों के दातापन की स्टेज चेक कर रहे थे कि कहाँ तक दाता के बच्चे दाता बने हैं? जैसे बाप कभी भी लेने का संकल्प नहीं कर सकता, देने का करता है। अगर कहते भी हैं, सब कुछ पुराना दे दो तो भी पुराने के बदले नया देता है। लेना माना बाप का देना। तो वर्तमान समय बापदादा को बच्चों की एक टॉपिक बहुत अच्छी लगी। कौन सी टॉपिक? विदेश की टॉपिक है। कौन सी? (कॉल ऑफ टाइम।)

तो बापदादा देख रहे थे कि बच्चों के लिए समय की क्या पुकार है! आप देखते हो विश्व के लिए, सेवा के लिए, बापदादा सेवा के साथी तो हैं ही। लेकिन बापदादा देखते हैं कि बच्चों के लिए अभी समय की क्या पुकार है? आप भी समझते हो ना कि समय की क्या पुकार है? अपने लिए सोचो। सेवा प्रति तो भाषण किये, कर रहे हैं ना! लेकिन अपने लिए, अपने से ही पूछो कि हमारे लिए समय की क्या पुकार है? वर्तमान समय की क्या पुकार है? तो बापदादा देख रहे थे कि अभी के समय अनुसार हर समय, हर बच्चे को दातापन की स्मृति और बढ़ानी है। चाहे स्व-उन्नति के प्रति दाता-पन का भाव, चाहे सर्व के प्रति स्नेह इमर्ज रूप में दिखाई दे। कोई कैसा भी हो, क्या भी हो, मुझे देना है। तो दाता सदा ही बेहद की वृत्ति वाला होगा, हद नहीं और सदा दाता सम्पन्न, भरपूर होगा। दाता सदा ही क्षमा का मास्टर सागर होगा। इस कारण जो हद के अपने संस्कार या दूसरों के संस्कार वो इमर्ज नहीं होंगे, मर्ज होंगे। मुझे देना है। कोई दे नहीं दे लेकिन मुझे दाता बनना है। किसी भी संस्कार के वश परवश आत्मा हो, उस आत्मा को मुझे सहयोग देना है। तो किसी का भी हद का संस्कार आपको प्रभावित नहीं करेगा। कोई मान दे, कोई नहीं दे, वह नहीं दे लेकिन मुझे देना है। ऐसे दातापन अभी इमर्ज चाहिए। मन में भावना तो है लेकिन… लेकिन नहीं आवे। मुझे करना ही है। कोई ऐसी चलन वा बोल जो आपके काम का नहीं है, अच्छा नहीं लगता है, उसे लो ही नहीं। बुरी चीज़ ली जाती है क्या? मन में धारण करना अर्थात् लेना। दिमाग तक भी नहीं। दिमाग में भी बात आ गई ना, वह भी नहीं। जब है ही बुरी चीज, अच्छी है नहीं तो दिमाग और दिल में लो नहीं यानी धारण नहीं करो। और ही लेने के बजाए शुभ भावना, शुभ कामना, दाता बन दो। लो नहीं; क्योंकि अभी समय के अनुसार अगर दिल और दिमाग खाली नहीं होगा तो निरन्तर सेवाधारी नहीं बन सकेंगे। दिल या दिमाग जब किसी भी बातों में बिजी हो गया तो सेवा क्या करेंगे? फिर जैसे लौकिक में कोई 8 घण्टा, कोई 10 घण्टा वर्क करते हैं, ऐसे यहाँ भी हो जायेगा। 8 घण्टे के सेवाधारी, 6 घण्टे के सेवाधारी। निरन्तर सेवाधारी नहीं बन सकेंगे। चाहे मन्सा सेवा करो, चाहे वाणी से, चाहे कर्म अर्थात् संबंध, सम्पर्क से। हर सेकेण्ड दाता अर्थात् सेवाधारी। दिमाग को खाली रखने से बाप की सेवा के साथी बन सकेंगे। दिल को सदा साफ रखने से निरन्तर बाप की सेवा के साथी बन सकते हैं। आप सबका वायदा क्या है? साथ रहेंगे, साथ चलेंगे। वायदा है ना? या आप आगे रहो हम पीछे-पीछे आयेंगे? नहीं ना? साथ का वायदा है ना? तो बाप सेवा के बिना रहता है? याद के बिना भी नहीं रहता। जितना बाप याद में रहता उतना आप मेहनत से रहते हैं। रहते हैं लेकिन मेहनत से, अटेन्शन से। और बाप के लिए है ही क्या? परम आत्मा के लिए हैं ही आत्मायें। नम्बरवार आत्मायें तो हैं ही। सिवाए बच्चों की याद के बाप रह ही नहीं सकता। बाप बच्चों की याद के बिना रह सकता है? आप रह सकते हो? कभी-कभी नटखट हो जाते हैं।

तो क्या सुना? समय की पुकार है – दाता बनो। आवश्यकता है बहुत। सारे विश्व के आत्माओं की पुकार है – हे हमारे इष्ट… इष्ट तो हो ना! किसी न किसी रूप में सर्व आत्माओं के लिए इष्ट हो। तो अभी सभी आत्माओं की पुकार है – हे इष्ट देव, देवियां परिवर्तन करो। यह पुकार सुनने में आती है? पाण्डवों को यह पुकार सुनने में आती है? सुनकर फिर क्या करते हो? सुनने में आती है तो सैलवेशन देते हो या सोचते हो हाँ करेंगे? पुकार सुनने में आती है? तो समय की पुकार सुनाते हो और आत्माओं की पुकार सिर्फ सुनते हो? तो इष्ट देव-देवियों अभी अपने दाता-पन का रूप इमर्ज करो। देना है। कोई भी आत्मा वंचित नहीं रह जाए। नहीं तो उलाहनों की मालायें पड़ेंगी। उलाहनें तो देंगे ना! तो उलाहनों की माला पहनने वाले इष्ट हो या फूलों की माला पहनने वाले इष्ट हो? कौन से इष्ट हो? पूज्य हो ना! ऐसे नहीं समझना कि हम तो पीछे आने वाले हैं। जो बड़े-बड़े हैं वही दाता बनेंगे, हम कहाँ बनेंगे। लेकिन नहीं, सबको दाता बनना है।

जो फर्स्ट टाइम मधुबन में आने वाले हैं वह हाथ उठाओ। जो फर्स्ट टाइम आये हैं वह दाता बन सकते हैं या दूसरे तीसरे साल में दाता बनेंगे? एक साल वाले दाता बन सकते हैं? (हाँ जी) बहुत अच्छे होशियार हैं। बापदादा हिम्मत के ऊपर सदा खुश होते हैं। चाहे एक मास वाला भी है, यह तो एक साल या 6 मास हुआ होगा लेकिन बापदादा जानते हैं कि एक साल वाले हों या एक मास वाले हों, एक मास में भी अपने को ब्रह्माकुमार या ब्रह्माकुमारी कहलाते हैं ना! तो ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी अर्थात् ब्रह्मा बाप के वर्से के अधिकारी बन गये। ब्रह्मा को बाप माना तब तो कुमार-कुमारी बने ना? तो ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी, बाप ब्रह्मा, शिव बाप के वर्से के अधिकारी बने ना! या एक मास वालों को वर्सा नहीं मिलेगा? एक मास वालों को वर्सा मिलता है? जब वर्सा मिल गया तो देने के लिए दाता तो होंगे ना! जो चीज़ मिलती है वह देना तो शुरू करना ही चाहिए ना।

अगर बाप समझकर कनेक्शन जोड़ा तो एक दिन में भी वर्सा ले सकता है। ऐसे नहीं कि हाँ अच्छा है, कोई शक्ति है, समझ में तो आता है… यह नहीं। वर्से के अधिकारी बच्चे होते हैं। समझने वाले, देखने वाले नहीं। अगर एक दिन में भी दिल से बाप माना तो वर्से का अधिकारी बन सकता है। आप लोग तो सभी अधिकारी हैं ना? आप लोग तो ब्रहमाकुमार कुमारियां हैं ना या बन रहे हैं? बन गये हैं या बनने आये हैं? कोई आपको बदल नहीं सकता? ब्रह्माकुमार कुमारी के बजाए सिर्फ कुमार-कुमारी बन जाओ, नहीं हो सकता? ब्रह्माकुमार और कुमारी बनने में फायदे कितने हैं? एक जन्म के भी फायदे नहीं, अनेक जन्मों के फायदे। पुरुषार्थ आधा जन्म, चौथाई जन्म का और प्रारब्ध है अनेक जन्मों की। फायदा ही फायदा है ना!

बापदादा समय के अनुसार वर्तमान समय विशेष एक बात अटेन्शन में दिलाते हैं क्योंकि बापदादा बच्चों की रिजल्ट तो देखते रहते हैं ना! तो रिजल्ट में देखा गया, हिम्मत बहुत अच्छी है। लक्ष्य भी बहुत अच्छा है। लक्ष्य अनुसार अभी तक लक्ष्य और लक्षण उसमें अन्तर है। लक्ष्य सबका नम्बरवन है, कोई से भी बापदादा पूछेंगे आपका लक्ष्य 21 जन्म का राज्य भाग्य लेना है, सूर्यवंशी बनने का है वा चन्द्रवंशी? तो सब किसमें हाथ उठायेंगे? सूर्यवंशी में ना! कोई है जो चन्द्रवंशी बनना चाहता है? कोई नहीं। (एक ने हाथ उठाया) अच्छा है, नहीं तो वह सीट खाली रह जायेगी। तो लक्ष्य सभी का बहुत अच्छा है, लक्ष्य और लक्षण की समानता – उस पर अटेन्शन देना जरूरी है। उसका कारण क्या है? जो आज सुनाया कभी कभी लेवता बन जाते हैं। यह हो, यह करे, यह मदद दे, यह बदले तो मैं बदलूँ। यह बात ठीक हो तो मैं ठीक हूँ। यह लेवता बनना है। दातापन नहीं है। कोई दे या न दे, बाप ने तो सब कुछ दे दिया है। क्या बाप ने किसको थोड़ा दिया है किसको ज्यादा दिया है? एक ही कोर्स है ना! चाहे 60 साल वाले हो, चाहे एक मास वाले हो, कोर्स तो एक ही है या 60 साल वाले का कोर्स अलग है एक मास वालों का अलग है? उन्हों ने भी वही कोर्स किया और अभी भी वही कोर्स है। वही ज्ञान है, वही प्यार है, वही सर्व शक्तियां हैं। सब एक जैसा है। उसको 16 शक्तियां, उसको 8 शक्तियां नहीं है। सबको एक जैसा वर्सा है। तो जब बाप ने सभी को भरपूर कर दिया तो फिर भरपूर आत्मा दाता बनती है, लेने वाली नहीं। मुझे देना है। कोई दे न दे, लेने के इच्छुक नहीं, देने के इच्छुक। और जितना देंगे, दाता बनेंगे उतना खजाना बढ़ता जायेगा। मानों किसको आपने स्वमान दिया, तो दूसरे को देना अर्थात् अपना स्वमान बढ़ाना। देना नहीं होता है लेकिन देना अर्थात् लेना। लो नहीं, दो तो लेना हो ही जायेगा। तो समझा – समय की पुकार क्या है? दाता बनो। एक अक्षर याद रखना। कोई भी बात हो जाए “दाता” शब्द सदा याद रखना। इच्छा मात्रम् अविद्या। न सूक्ष्म लेने की इच्छा, न स्थूल लेने की इच्छा। दाता का अर्थ ही है इच्छा मात्रम् अविद्या। सम्पन्न। कोई अप्राप्ति अनुभव नहीं होगी जिसको लेने की इच्छा हो। सर्व प्राप्ति सम्पन्न। तो लक्ष्य क्या है? सम्पन्न बनने का है ना? या जितना मिले उतना अच्छा? सम्पन्न बनना ही सम्पूर्ण बनना है।

आज विदेशियों को खास चांस मिला है। अच्छा है। पहला चांस विदेशियों ने लिया है, लाडले हो गये ना। सभी को मना किया है और विदेशियों को निमंत्रण दिया है। बापदादा को भी याद तो सभी बच्चे हैं फिर भी डबल विदेशियों को देख, उन्हों की हिम्मत देख बहुत खुशी होती है। अभी वर्तमान समय इतनी हलचल में नहीं आते हैं। अभी फ़र्क आ गया है। शुरू शुरू के क्वेश्चन जो होते थे ना – इन्डियन कल्चर है, फारेन कल्चर है… अभी समझ में आ गया। अभी ब्राह्मण कल्चर में आ गये। न इन्डियन कल्चर, न फॉरेन कल्चर, ब्राह्मण कल्चर में आ गये। इन्डियन कल्चर थोड़ा खिटखिट करता है लेकिन ब्राह्मण कल्चर सहज है ना! ब्राह्मण कल्चर है ही स्वमान में रहो और स्वराज्य अधिकारी बनो। यही ब्राह्मण कल्चर है। यह तो पसन्द है ना? अभी क्वेश्चन तो नहीं है ना, इन्डियन कल्चर कैसे आये, मुश्किल है? सहज हो गया ना? देखना फिर वहाँ जाकर कहो थोड़ा यह मुश्किल है! वहाँ जाकर ऐसे नहीं लिखना। सहज कह तो दिया लेकिन यह थोड़ा मुश्किल है! सहज है या थोड़ा-थोड़ा मुश्किल है? जरा भी मुश्किल नहीं है। बहुत सहज है। अभी सारे खेल पूरे हो गये हैं इसलिए हंसी आती है। अभी पक्के हो गये हैं। बचपन के खेल अभी समाप्त हो गये हैं। अभी अनुभवी बन गये हैं और बापदादा देखते हैं कि जितने पुराने पक्के होते जाते हैं ना तो जो नये-नये आते हैं वह भी पक्के हो जाते हैं। अच्छा है एक दो को अच्छा आगे बढ़ाते रहते हैं। मेहनत अच्छी करते हैं। अभी दादियों के पास किस्से तो नहीं ले जाते हैं ना। किस्से कहानियां दादियों के पास ले जाते हैं? कम हो गये हैं! फर्क है ना? (दादी जानकी से) तो आप अभी बीमार नहीं होना? किस्से कहानियों में बीमार होते, वह तो खत्म हो गये। अच्छे हैं, सबमें अच्छे ते अच्छा विशेष गुण है – दिल की सफाई अच्छी है। अन्दर नहीं रखते, बाहर निकाल लेंगे। जो बात होगी सच्ची बोल देंगे। ऐसा नहीं, वैसा। ऐसा वैसा नहीं करते, जो बात है वह बोल देते, यह विशेषता अच्छी है। इसीलिए बाप कहते हैं सच्ची और साफ दिल पर बाप राज़ी होता है। हाँ तो हाँ, ना तो ना। ऐसे नहीं – देखेंगे…! मजबूरी से नहीं चलते। चलते हैं तो पूरा, ना तो ना। अच्छा।

जिन बच्चों ने यादप्यार भेजी है, बापदादा उन सभी बच्चों को, जिन्होंने पत्र द्वारा या किसी भी द्वारा याद प्यार भेजा बापदादा को स्वीकार हुआ। और बापदादा रिटर्न में सभी बच्चों को दातापन का वरदान दे रहे हैं। अच्छा! एक सेकेण्ड में उड़ सकते हो? पंख पॉवरफुल है ना? बस बाबा कहा और उड़ा। (ड्रिल)

चारों ओर के सर्व श्रेष्ठ बाप समान दातापन की भावना रखने वाले, श्रेष्ठ आत्माओं को निरन्तर याद और सेवा में तत्पर रहने वाले, परमात्म सेवा के साथी बच्चों को सदा लक्ष्य और लक्षण को समान बनाने वाले, सदा बाप के स्नेही और समान, समीप बनने वाले बापदादा के नयनों के तारे, सदा विश्व कल्याण की भावना में रहने वाले रहमदिल, मास्टर क्षमा के सागर बच्चों को दूर बैठने वाले, मधुबन में नीचे बैठने वाले और बापदादा के सामने बैठे हुए सर्व बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।

वरदान:- दिल में एक दिलाराम को समाकर एक से सर्व संबंधों की अनुभूति करने वाले सन्तुष्ट आत्मा भव
नॉलेज को समाने का स्थान दिमाग है लेकिन माशूक को समाने का स्थान दिल है। कोई-कोई आशिक दिमाग ज्यादा चलाते हैं लेकिन बापदादा सच्ची दिल वालों पर राज़ी है इसलिए दिल का अनुभव दिल जाने, दिलाराम जाने। जो दिल से सेवा करते वा याद करते हैं उन्हें मेहनत कम और सन्तुष्टता ज्यादा मिलती है। दिल वाले सदा सन्तुष्टता के गीत गाते हैं। उन्हें समय प्रमाण एक से सर्व संबंधों की अनुभूति होती है।
स्लोगन:- अमृतवेले प्लेन बुद्धि होकर बैठो तो सेवा की नई विधियां टच होंगी।